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यहोवा का अनुशासन हमेशा कबूल कीजिए

यहोवा का अनुशासन हमेशा कबूल कीजिए

यहोवा का अनुशासन हमेशा कबूल कीजिए

“यहोवा की शिक्षा [“अनुशासन,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] से मुंह न मोड़ना।”—नीतिवचन 3:11.

1. हमें परमेश्‍वर के अनुशासन को क्यों कबूल करना चाहिए?

 प्राचीन इस्राएल के राजा सुलैमान ने हममें से हरेक को परमेश्‍वर का अनुशासन कबूल करने की एक बेहतरीन वजह बतायी। उसने कहा: “हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा [“अनुशासन,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना, क्योंकि यहोवा जिस से प्रेम रखता है उसको डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है।” (नीतिवचन 3:11, 12) जी हाँ, स्वर्ग में रहनेवाला आपका पिता आपको अनुशासन इसलिए देता है क्योंकि वह आपसे बेहद प्यार करता है।

2. “अनुशासन” का क्या मतलब है, और एक इंसान को सुधार करने की सलाह कैसे मिल सकती है?

2 “अनुशासन” का मतलब है, सज़ा, सुधार, हिदायत और शिक्षा। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।” (इब्रानियों 12:11) परमेश्‍वर के अनुशासन को कबूल करने और लागू करने से आप धार्मिकता के रास्ते पर चल पाएँगे। नतीजा, आप पवित्र परमेश्‍वर यहोवा के और भी करीब आएँगे। (भजन 99:5) आपको सुधार करने की सलाह कई तरीकों से मिल सकती है। जैसे, मसीही भाई-बहनों से, सभाओं में सिखायी गयी बातों से, बाइबल और ‘विश्‍वास-योग्य भण्डारी’ के साहित्य का अध्ययन करने से। (लूका 12:42-44) जब आपको इन तरीकों से सुधार करने की सलाह दी जाती है, तो आप वाकई कितना शुक्रगुज़ार हो सकते हैं! लेकिन अगर कोई गंभीर पाप करता है, तो उसे किस तरह का अनुशासन देना ज़रूरी हो सकता है?

कुछ लोगों को बहिष्कृत क्यों किया जाता है

3. कलीसिया के किसी सदस्य को कब बहिष्कृत किया जाता है?

3 परमेश्‍वर के सेवक, बाइबल और मसीही साहित्य का अध्ययन करते हैं। उनकी सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में यहोवा के स्तरों के बारे में चर्चा की जाती है। इसलिए मसीही अच्छी तरह जानते हैं कि यहोवा उनसे क्या माँग करता है। कलीसिया के एक सदस्य को सिर्फ तभी बहिष्कृत किया जाता है जब वह बिना पछतावा दिखाए गंभीर पाप करते रहता है।

4, 5. बहिष्कृत किए गए किस आदमी की मिसाल बाइबल में दी गयी है, और कुरिन्थुस की कलीसिया से उसे बहाल करने की गुज़ारिश क्यों की गयी थी?

4 बाइबल में दी एक ऐसे आदमी की मिसाल लीजिए जिसे कलीसिया से बहिष्कृत किया गया था। वह कुरिन्थुस की कलीसिया का सदस्य था और ऐसा व्यभिचार कर रहा था “जो अन्यजातियों में भी नहीं होता।” वह ‘अपने पिता की पत्नी को रखे हुए था।’ कुरिन्थुस के मसीही इस गंभीर पाप को चुपचाप बरदाश्‍त कर रहे थे। इसलिए पौलुस ने उन्हें सख्त हिदायत दी कि वे उस आदमी को ‘शरीर के विनाश के लिये शैतान को सौंप दें ताकि [कलीसिया की] आत्मा उद्धार पाए।’ (1 कुरिन्थियों 5:1-5) जब उस आदमी को बहिष्कृत करके शैतान के हाथों सौंप दिया गया, तो वह दोबारा उसके संसार का हिस्सा बन गया। (1 यूहन्‍ना 5:19) इसके बाद, कलीसिया से बुरा असर दूर हुआ और उसकी “आत्मा” बनी रही, यानी कलीसिया ने परमेश्‍वर के गुण दिखाना जारी रखा।—2 तीमुथियुस 4:22; 1 कुरिन्थियों 5:11-13.

5 कुछ ही समय बाद, पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों से गुज़ारिश की कि वे उस गुनहगार को कलीसिया में बहाल करें। क्यों? पौलुस ने कहा ताकि “शैतान का [उन] पर दांव न चले।” ऐसा लगता है कि उस आदमी ने पश्‍चाताप किया था और साफ-सुथरी ज़िंदगी जीने लगा था। (2 कुरिन्थियों 2:8-11) अगर कुरिन्थुस के मसीही उसे बहाल करने से इनकार कर देते, तो शैतान का उन पर दाँव चल जाता। कैसे? वे भी शैतान की तरह कठोर और बेरहम बन जाते और यही तो वह चाहता था। मगर बाइबल दिखाती है कि जल्द ही, कुरिन्थुस के मसीहियों ने पश्‍चाताप करनेवाले उस आदमी को ‘क्षमा कर दिया और उसे शान्ति’ या दिलासा दिया।—2 कुरिन्थियों 2:5-7.

6. पश्‍चाताप न करनेवाले गुनहगार को बहिष्कृत क्यों किया जाता है?

6 पश्‍चाताप न करनेवाले गुनहगार को बहिष्कृत क्यों किया जाता है? इसलिए कि यहोवा के पवित्र नाम पर कलंक न लगे और उसके लोगों का अच्छा नाम खराब न हो। (1 पतरस 1:14-16) गुनहगार को बेदखल करने से, परमेश्‍वर के स्तरों को कायम रखा जाता है और कलीसिया की आध्यात्मिक शुद्धता बनी रहती है। साथ ही, इससे गुनहगार को यह एहसास करने में मदद मिलती है कि उसने कितना गंभीर पाप किया है।

पश्‍चाताप करना, बहाली के लिए ज़रूरी है

7. जब दाऊद ने अपने पापों को कबूल नहीं किया, तो इसका उस पर क्या असर हुआ?

7 गंभीर पाप करनेवालों में से ज़्यादातर लोग सच्चा पश्‍चाताप दिखाते हैं, इसलिए उन्हें कलीसिया से बहिष्कृत नहीं किया जाता। बेशक, कुछ लोगों के लिए सच्चा पश्‍चाताप दिखाना इतना आसान नहीं होता। प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद को ही लीजिए। उसने अपने भजन 32 में बयान किया कि बतशेबा के साथ गंभीर पाप करने के बाद, उसने कुछ वक्‍त तक अपने पापों को कबूल नहीं किया बल्कि छिपाए रखा। नतीजा, वह इतना परेशान हो गया कि उसकी ताकत और उसका जोश खत्म होने लगा, ठीक उस पेड़ की तरह जिसकी नमी तपती धूप में भाप बनकर उड़ जाती है। इसका उसके दिमाग और उसकी सेहत पर भी बुरा असर हुआ। लेकिन जब दाऊद ने ‘यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को माना, तो उसने उसे क्षमा कर दिया।’ (भजन 32:3-5) यहोवा से माफी पाने के बाद दाऊद ने एक गीत में गाया: “क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले।” (भजन 32:1, 2) वाकई, यहोवा की दया पाकर दाऊद की जान में जान आ गयी होगी!

8, 9. पश्‍चाताप कैसे दिखाया जाता है, और एक बहिष्कृत इंसान को कलीसिया में बहाल करने के लिए यह कितना ज़रूरी है?

8 इससे साफ ज़ाहिर है कि परमेश्‍वर की दया पाने के लिए गुनहगार को पश्‍चाताप करना बेहद ज़रूरी है। लेकिन पश्‍चाताप करने का मतलब यह नहीं कि अपने किए पर शर्म महसूस करना या पाप का खुलासा होने का डर होना। इसके बजाय, “पश्‍चाताप करने” का मतलब है, दुःख या अफसोस होने की वजह से किसी बुरे काम या चालचलन के बारे में “अपना विचार बदलना।” सच्चा पश्‍चाताप करनेवाले का ‘मन टूटा और पिसा होता है’ और जहाँ तक मुमकिन हो, वह अपनी ‘गलती सुधारना’ (NW) चाहता है।—भजन 51:17; 2 कुरिन्थियों 7:11.

9 सच्चे पश्‍चाताप की बिना पर ही यह तय किया जाता है कि एक बहिष्कृत इंसान को कब कलीसिया में बहाल करना सही होगा। बहिष्कृत इंसान को यूँ ही कुछ समय के बाद कलीसिया में बहाल नहीं किया जाता। इसके बजाय, बहाल किए जाने से पहले उसे अपने दिल में भारी बदलाव करने की ज़रूरत है। उसे यह एहसास होना चाहिए कि उसने कितना गंभीर पाप किया है और इसकी वजह से यहोवा और कलीसिया का नाम बदनाम हुआ है। उसे पश्‍चाताप करना चाहिए, गिड़गिड़ाकर परमेश्‍वर से माफी माँगनी चाहिए और उसकी धर्मी माँगों को पूरा करना चाहिए। जब वह बहाल किए जाने की गुज़ारिश करता है, तो उसे ज़ाहिर करना चाहिए कि उसने पश्‍चाताप किया है और “मन फिराव के योग्य काम” कर रहा है।—प्रेरितों 26:20.

गुनाहों को क्यों माने?

10, 11. हमें अपने पाप को क्यों नहीं छिपाना चाहिए?

10 पाप करनेवाले कुछ लोग शायद यह सोचें: ‘अगर मैं किसी को अपने पाप के बारे में बताऊँगा, तो वे मुझसे ऐसे सवाल पूछेंगे जिनसे मुझे शर्मिंदा होना पड़ेगा और शायद मुझे बहिष्कृत भी किया जाए। लेकिन अगर मैं चुप रहूँ तो मुझे शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ेगी और कलीसिया में किसी को कानों-कान खबर भी नहीं होगी।’ मगर ऐसी सोच रखनेवाले इंसान कुछ ज़रूरी मुद्दे भूल जाते हैं। ये मुद्दे क्या हैं?

11 बाइबल बताती है: “यहोवा, ईश्‍वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है।” फिर भी, वह अपने लोगों को “उचित मात्रा में” सुधारता है। (निर्गमन 34:6, 7; यिर्मयाह 30:11, नयी हिन्दी बाइबिल) अगर आप कोई गंभीर पाप करते हैं और उसे छिपाए रखते हैं, तो ऐसे में क्या आप परमेश्‍वर की दया पाने की उम्मीद कर सकते हैं? नहीं। इसके अलावा, याद रखिए कि यहोवा आपके पाप को बखूबी जानता है और वह उसे अनदेखा नहीं करता।—नीतिवचन 15:3; हबक्कूक 1:13.

12, 13. पाप को छिपाने का अंजाम क्या हो सकता है?

12 अगर आपसे कोई गंभीर पाप हुआ है, तो उसे मान लेने से आप दोबारा साफ विवेक पा सकते हैं। (1 तीमुथियुस 1:18-20) लेकिन अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो आपका विवेक भ्रष्ट हो सकता है और आप पाप के दलदल में धँसते चले जाएँगे। ध्यान रखिए, आपने न सिर्फ किसी इंसान या कलीसिया के खिलाफ पाप किया है, बल्कि आपने परमेश्‍वर के खिलाफ पाप किया है। भजनहार ने अपने गीत में गाया: ‘परमेश्‍वर का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आंखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उनको जांचती हैं। यहोवा धर्मी और दुष्टों को परखता है।’—भजन 11:4, 5.

13 यहोवा ऐसे लोगों को कभी आशीष नहीं देता जो अपने गंभीर पापों पर परदा डालते हैं और शुद्ध मसीही कलीसिया में बने रहने की कोशिश करते हैं। (याकूब 4:6) इसलिए अगर आपने कोई पाप किया है और अब सही कदम उठाना चाहते हैं, तो बिना हिचकिचाए, पूरी ईमानदारी के साथ अपने पाप को कबूल कीजिए। वरना, आपका ज़मीर आपको बार-बार कोसेगा, खासकर तब जब आप गंभीर पापों को न करने की सलाह के बारे में पढ़ेंगे या सुनेंगे। इतना ही नहीं, अगर यहोवा आप पर से अपनी आत्मा हटा ले, जैसे उसने शाऊल पर से हटा ली थी, तो इसका अंजाम क्या होगा? (1 शमूएल 16:14) इससे आप और भी गंभीर पाप में पड़ सकते हैं।

अपने वफादार भाइयों पर भरोसा रखिए

14. पाप करनेवाले इंसान को याकूब 5:14, 15 की सलाह क्यों माननी चाहिए?

14 तो फिर पश्‍चाताप करनेवाले इंसान को क्या करना चाहिए? उसे ‘कलीसिया के प्राचीनों को बुलाना चाहिए, जो प्रभु के नाम से उस पर तेल मलकर उसके लिये प्रार्थना करेंगे। और विश्‍वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उसको उठाकर खड़ा करेगा।’ (याकूब 5:14, 15) जी हाँ, उसे प्राचीनों के पास जाकर अपने पापों का खुलासा करना चाहिए। क्योंकि यह “मन फिराव के योग्य फल” लाने का एक तरीका है। (मत्ती 3:8) इसके बाद, प्यार करनेवाले वफादार प्राचीन “उसके लिये प्रार्थना” करेंगे और ‘यहोवा के नाम से उस पर तेल मलेंगे।’ जिस तरह तेल मलने से शरीर को आराम मिलता है, उसी तरह बाइबल से दी उनकी सलाह से सच्चा पश्‍चाताप करनेवाले को राहत मिलेगी।—यिर्मयाह 8:22.

15, 16. मसीही प्राचीन, कैसे यहेजकेल 34:15, 16 में दर्ज़ यहोवा की मिसाल पर चलते हैं?

15 एक चरवाहा होने के नाते, यहोवा ने क्या ही उम्दा मिसाल कायम की है! उसने सा.यु.पू. 537 में यहूदियों को बाबुल की बंधुआई से छुड़ाया था और सा.यु. 1919 में आत्मिक इस्राएल को “बड़े बाबुल” से आज़ाद कराया था। (प्रकाशितवाक्य 17:3-5; गलतियों 6:16) इस तरह उसने अपने इस वादे को पूरा किया: “मैं आप ही अपनी भेड़-बकरियों का चरवाहा हूंगा, और मैं आप ही उन्हें बैठाऊंगा, . . . मैं खोई हुई को ढूंढ़ूंगा, और निकाली हुई को फेर लाऊंगा, और घायल के घाव बान्धूंगा, और बीमार को बलवान्‌ करूंगा।”—यहेजकेल 34:15, 16.

16 यहोवा लाक्षणिक तौर पर अपनी भेड़ों को चराता है, उन्हें बैठाता है यानी उनकी हिफाज़त करता है और खोई हुई को ढूँढ़ता है। ठीक इसी तरह, मसीही चरवाहे भी इस बात का ध्यान रखते हैं कि परमेश्‍वर के झुंड को भरपूर आध्यात्मिक भोजन मिले और उनकी हिफाज़त हो। प्राचीन उन भेड़ों को भी ढूँढ़ते हैं जो कलीसिया से भटक जाती हैं। परमेश्‍वर की तरह ये अध्यक्ष भी ‘भेड़ों के घाव बान्धते’ हैं जो उन्हें दूसरों की बातों से या खुद पाप करने से लग जाते हैं। और जैसे परमेश्‍वर “बीमार को बलवान्‌” करता है, वैसे ही प्राचीन उन लोगों को दुरुस्त होने में मदद देते हैं, जो शायद अपने पाप की वजह से आध्यात्मिक तौर पर बीमार पड़ गए हैं।

चरवाहे कैसे मदद देते हैं

17. हमें प्राचीनों से आध्यात्मिक मदद लेने से क्यों नहीं झिझकना चाहिए?

17 प्राचीन खुशी-खुशी इस सलाह को मानते हैं: “भय के साथ दया करो।” (यहूदा 23) कुछ मसीहियों ने लैंगिक अनैतिकता का गंभीर पाप किया है। लेकिन अगर वे सच्चा पश्‍चाताप करें, तो वे यकीन रख सकते हैं कि प्राचीन उनके साथ दया और प्यार से पेश आएँगे। ये प्राचीन आध्यात्मिक मदद देने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। पौलुस ने सभी प्राचीनों की तरफ से कहा: “यह नहीं, कि हम विश्‍वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं।” (2 कुरिन्थियों 1:24) इसलिए आप प्राचीनों से आध्यात्मिक मदद लेने से ज़रा भी मत झिझकिए।

18. प्राचीन, पाप करनेवाले एक मसीही से किस तरह पेश आते हैं?

18 अगर आप गंभीर पाप कर बैठते हैं तो ऐसे में आप प्राचीनों पर क्यों भरोसा रख सकते हैं? क्योंकि वे खासकर परमेश्‍वर के झुंड के चरवाहे हैं। (1 पतरस 5:1-4) और एक प्यार करनेवाला चरवाहा, अपनी उस मासूम भेड़ को हरगिज़ नहीं मारता जो ज़ख्मी है और दर्द से मिमियाती है। उसी तरह, प्राचीन, पाप करनेवाले किसी मसीही भाई या बहन से पेश आते वक्‍त, इस बात पर ध्यान नहीं देते कि उसे क्या सज़ा दें। इसके बजाय वे देखते हैं कि उसने क्या पाप किया है और जहाँ तक मुमकिन हो, वे उसे आध्यात्मिक मायने में बहाल करने की पूरी-पूरी कोशिश करते है। (याकूब 5:13-20) प्राचीनों को धार्मिकता से न्याय करना चाहिए और ‘झुंड के साथ कोमलता से पेश आना’ चाहिए। (प्रेरितों 20:29, 30, NW; यशायाह 32:1, 2) सभी मसीहियों की तरह, उन्हें भी ‘न्याय से काम करना, और कृपा से प्रीति रखना, और अपने परमेश्‍वर के साथ नम्रता से चलना’ चाहिए। (मीका 6:8) प्राचीनों को ये सारे गुण तब दिखाना बेहद ज़रूरी हैं, जब वे ‘यहोवा की चराई की भेड़ों’ की ज़िंदगी या उनकी पवित्र सेवा से ताल्लुक रखनेवाले मामलों के बारे में कोई फैसला करते हैं।—भजन 100:3.

19. पाप करनेवाले को सुधारते वक्‍त, प्राचीनों का रवैया कैसा होना चाहिए?

19 मसीही चरवाहे, पवित्र आत्मा के ज़रिए ठहराए जाते हैं और वे उसी के मार्गदर्शन में चलने की कोशिश करते हैं। अगर “एक व्यक्‍ति अनजाने में कोई गलत कदम उठाता है” (NW) जिसके लिए मानो वह बिलकुल भी तैयार नहीं है, तो आध्यात्मिक रूप से काबिल भाई उसे ‘नम्रतापूर्वक सुधारने’ (नयी हिन्दी बाइबिल) की कोशिश करते हैं। (गलतियों 6:1; प्रेरितों 20:28) वे नम्रता से उसकी सोच को सुधारने के साथ-साथ परमेश्‍वर के स्तरों को मानने में भी सख्ती बरतते हैं। ठीक जैसे एक हमदर्द डॉक्टर, मरीज़ के हाथ या पैर की टूटी हड्डी को सावधानी से बिठाता है ताकि उसे ज़्यादा दर्द न हो और उसका इलाज भी हो जाए। (कुलुस्सियों 3:12) प्राचीन, प्रार्थना और बाइबल की बिना पर यह तय करते हैं कि पाप करनेवालों को दया दिखायी जानी चाहिए या नहीं, इसलिए उनके फैसले से परमेश्‍वर का नज़रिया ज़ाहिर होता है।—मत्ती 18:18.

20. कलीसिया में जब किसी को ताड़ना दी जाती है, तो इसकी घोषणा करना कब ज़रूरी होता है?

20 अगर पश्‍चाताप करनेवाले के पाप के बारे में लोग जान गए हैं या जल्द ही उन्हें मालूम पड़ जाएगा, तो कलीसिया में उसे ताड़ना दिए जाने की एक घोषणा करना सही होगा ताकि कलीसिया के नाम पर कोई आँच न आए। या अगर प्राचीनों को लगता है कि कलीसिया को इस बारे में इत्तला करना ज़रूरी है, तो उसकी एक घोषणा की जानी चाहिए। जब किसी को न्यायिक तौर पर ताड़ना दी जाती है, तो उस दौरान वह आध्यात्मिक मायने में ठीक हो रहा होता है। उसकी हालत एक ऐसे मरीज़ की तरह होती है जिसके घाव भर रहे होते हैं और वह कोई काम नहीं कर पाता। इसलिए एक पश्‍चाताप करनेवाले के लिए यह अच्छा होगा कि वह कुछ वक्‍त तक सभाओं के कार्यक्रम को सिर्फ सुने और सवाल-जवाब के भाग में कोई हिस्सा न ले। प्राचीन, पश्‍चाताप करनेवाले के साथ अध्ययन करने के लिए किसी का इंतज़ाम कर सकता है, ताकि मसीही शख्सियत के जिस पहलू में वह कमज़ोर है, उसमें सुधार करने में उसे मदद मिल सके। इस तरह वह दोबारा ‘विश्‍वास में पक्का हो’ जाएगा। (तीतुस 2:2) प्राचीन ये सब इंतज़ाम, पाप करनेवाले को सज़ा देने के लिए नहीं बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि वे उससे प्यार करते हैं।

21. पाप के कुछ मामलों से कैसे निपटा जा सकता है?

21 प्राचीन और भी कई तरीकों से आध्यात्मिक मदद दे सकते हैं। मिसाल के लिए, एक भाई जिसे पहले हद-से-ज़्यादा शराब पीने की लत थी, उसने एक या दो दफा घर पर अकेले रहते वक्‍त बहुत ज़्यादा शराब पी है। या फिर, एक भाई जिसने बहुत समय पहले सिगरेट पीना छोड़ दिया था, मगर अब एकाध बार ऐसा हुआ कि वह अपनी इच्छा पर काबू नहीं रख पाया और उसने सिगरेट पी है। हालाँकि उसने इस गलती के लिए प्रार्थना की है और उसे यकीन है कि परमेश्‍वर ने उसे माफ कर दिया है, मगर फिर भी उसे प्राचीनों की मदद लेनी चाहिए। इससे वह पाप करने का आदी बनने से बच सकता है। इस मामले को एक या दो प्राचीन निपटा सकते हैं। लेकिन साथ ही, उन्हें कलीसिया के प्रमुख अध्यक्ष को इस बारे में इत्तला करना चाहिए, क्योंकि इसमें दूसरी बातें भी शामिल हो सकती हैं।

परमेश्‍वर के अनुशासन को हमेशा कबूल कीजिए

22, 23. आपको क्यों परमेश्‍वर के अनुशासन को कबूल करते रहना चाहिए?

22 परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने के लिए, हरेक मसीही को यहोवा के अनुशासन पर ध्यान देना निहायत ज़रूरी है। (1 तीमुथियुस 5:20) इसलिए जब आपको बाइबल या मसीही साहित्य का अध्ययन करते वक्‍त, सुधार करने की कोई सलाह मिलती है या जब यहोवा के लोगों की सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में कोई सलाह दी जाती है, तो उसे अपने जीवन में लागू करने की कोशिश कीजिए। यहोवा की इच्छा पूरी करने का हमेशा ध्यान रखिए। तब परमेश्‍वर के अनुशासन से आप रक्षा करनेवाली अपनी आध्यात्मिक दीवार को मज़बूत बनाए रख पाएँगे और इस तरह पाप से आपकी हिफाज़त होगी।

23 परमेश्‍वर के अनुशासन को कबूल करने से आप उसके प्रेम में बने रहेंगे। यह सच है कि कुछ लोगों को मसीही कलीसिया से बहिष्कृत किया गया है, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि आपके साथ भी ऐसा हो। बशर्ते, आप अपने ‘मन की रक्षा करें’ और ‘बुद्धिमानों की नाईं चलें।’ (नीतिवचन 4:23; इफिसियों 5:15) लेकिन अगर आपको कलीसिया से बहिष्कृत किया गया है, तो क्यों न आप बहाल होने के लिए कदम उठाएँ? परमेश्‍वर चाहता है कि उसके सभी समर्पित सेवक वफादारी और “आनन्द और प्रसन्‍नता” से उसकी उपासना करें। (व्यवस्थाविवरण 28:47) आप हमेशा-हमेशा तक ऐसा कर सकते हैं, अगर आप यहोवा के अनुशासन को कबूल करते रहें।—भजन 100:2. (w06 11/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• मसीही कलीसिया से कुछ लोगों को क्यों बहिष्कृत किया जाता है?

• सच्चे पश्‍चाताप में क्या शामिल है?

• गंभीर पापों को मानना क्यों ज़रूरी है?

• मसीही प्राचीन किन तरीकों से पश्‍चाताप करनेवालों की मदद करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीर]

प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को क्यों एक आदमी को बहिष्कृत करने की हिदायतें दी?

[पेज 19 पर तसवीर]

पुराने ज़माने के चरवाहों की तरह, मसीही प्राचीन परमेश्‍वर की घायल भेड़ों के ‘घाव बान्धते’ हैं