परमेश्वर ने बुराई को रहने दिया है इससे हम क्या सीखते हैं
सातवाँ अध्याय
परमेश्वर ने बुराई को रहने दिया है इससे हम क्या सीखते हैं
1, 2. (क) अगर यहोवा ने अदन में बागियों को फौरन मार दिया होता तो हम पर क्या असर होता? (ख) यहोवा ने हमारी खातिर क्या-क्या इंतज़ाम किए?
“मेरे जीवन के दिन थोड़े और दु:ख से भरे हुए . . . थे।” यह बात कुलपिता याकूब ने कही थी। (उत्पत्ति 47:9) इसी से मिलती-जुलती बात अय्यूब ने भी कही कि मनुष्य “थोड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है।” (अय्यूब 14:1) याकूब और अय्यूब की तरह हममें से ज़्यादातर लोगों ने ज़िंदगी में कितने ही दुःख, अन्याय और यहाँ तक कि हादसों का भी सामना किया है। लेकिन इस दुनिया में हमारा पैदा होना, परमेश्वर की तरफ से कोई अन्याय नहीं है। यह सच है कि जैसे आदम और हव्वा का शुरूआत में सिद्ध शरीर और मन था और वे फिरदौस में रहते थे, वह सब आज हमें हासिल नहीं है। मगर सोचिए, अगर आदम और हव्वा के बगावत करने के फौरन बाद, यहोवा ने उन्हें मार दिया होता, तो क्या होता? माना कि ऐसा करने पर बीमारी, दुःख, या मृत्यु जैसी समस्याएँ पैदा ही नहीं होतीं, मगर यह भी सच है कि धरती पर इंसान नहीं रहते। हमें ज़िंदगी पाने का मौका नहीं मिलता। मगर यह परमेश्वर की बड़ी दया है कि उसने आदम और हव्वा को संतान पैदा करने दी, इसके बावजूद कि वे विरासत में असिद्धता हासिल करते। इतना ही नहीं, यहोवा ने मसीह के ज़रिए यह इंतज़ाम किया कि हमें धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका मिले, जिसे आदम ने खो दिया था।—यूहन्ना 10:10; रोमियों 5:12.
2 यह सोचकर हमें कितनी खुशी होती है कि हम नयी दुनिया में हमेशा तक जीने की उम्मीद कर सकते हैं, जहाँ चारों तरफ फिरदौस का माहौल होगा, बीमारी, दुःख, दर्द और मौत का साया तक न होगा, साथ ही बुरे नीतिवचन 2:21,22; प्रकाशितवाक्य 21:4,5) लेकिन बाइबल से हम पाते हैं कि हालाँकि हममें से हरेक का उद्धार हमारे और यहोवा के लिए बेशक बहुत मायने रखता है, मगर इस मामले से जुड़ी एक और बात भी है जो हमारे उद्धार से कहीं ज़्यादा अहमियत रखती है।
इंसान भी कहीं नज़र नहीं आएँगे! (अपने महान नाम की खातिर
3. धरती और इंसानों के लिए यहोवा का मकसद पूरा होना किस बात से ताल्लुक रखता है?
3 धरती और इंसानों के लिए यहोवा का मकसद पूरा होना, उसके नाम से गहरा ताल्लुक रखता है। ‘यहोवा’ नाम का मतलब है, “वह बनने का कारण होता है।” तो उसका नाम यह ज़ाहिर करता है कि वह सारे जहान का महाराजा और मालिक है, सच्चाई का परमेश्वर और मकसद ठहरानेवाला और उन्हें पूरा करनेवाला परमेश्वर है। यहोवा की इस ऊँची पदवी को ध्यान में रखते हुए, विश्व-भर में शांति और खुशहाली के लिए ज़रूरी है कि उसके नाम का और वह नाम जिन-जिन बातों को दर्शाता है, उसका पूरा सम्मान किया जाए और सभी प्राणी उसका हुक्म मानें।
4. धरती के लिए यहोवा का क्या मकसद था?
4 आदम और हव्वा को बनाने के बाद, यहोवा ने उन्हें एक काम सौंपा। उसने अपना मकसद साफ बताया था कि उन्हें न सिर्फ फिरदौस की सरहदों को बढ़ाकर पृथ्वी को अपने वश में करना है बल्कि अपनी संतानों से धरती को आबाद करना है। (उत्पत्ति 1:28) क्या आदम और हव्वा के पाप करने से परमेश्वर का यह मकसद नाकाम हो जाता? बिलकुल नहीं! क्योंकि धरती और इंसानों के लिए अपना मकसद पूरा न कर पाने से, सर्वशक्तिमान यहोवा के नाम पर कितना बड़ा कलंक लगता!
5. (क) अगर पहले इंसान भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ का फल खाते, तो उनकी मौत कब होती? (ख) यहोवा ने उत्पत्ति 2:17 में कही अपनी बात कैसे पूरी की, साथ ही पृथ्वी के बारे में अपना मकसद पूरा करने का रास्ता कैसे खुला रखा?
5 यहोवा ने आदम और हव्वा को आगाह किया था कि अगर वे उसकी आज्ञा के खिलाफ जाकर भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ का फल खाएँगे उत्पत्ति 2:17) यहोवा ने जैसा कहा वैसा ही किया। जिस दिन आदम और हव्वा ने पाप किया उसी दिन यहोवा ने उनसे लेखा लिया और उन्हें मौत की सज़ा सुनायी। परमेश्वर की नज़र में वे उसी दिन मर गए। मगर इससे पहले कि असल में उनकी मौत हो जाती, परमेश्वर ने उन्हें संतान पैदा करने की इजाज़त दी ताकि पृथ्वी के बारे में वह अपना मकसद पूरा कर सके। मगर फिर भी यह कहा जा सकता है कि आदम एक ही “दिन” में मर गया क्योंकि परमेश्वर के लिए 1,000 साल एक दिन के बराबर हैं जबकि आदम की मौत 930 साल की उम्र में हुई। (2 पतरस 3:8; उत्पत्ति 5:3-5) इस तरह, बताए गए समय में सज़ा देकर, यहोवा ने साबित किया कि वह अपनी ज़बान का पक्का है। साथ ही, आदम और हव्वा की मौत से उसके मकसद के पूरा होने में कोई रुकावट नहीं आयी। लेकिन उस मकसद के पूरा होने से पहले, कुछ समय के लिए असिद्ध इंसानों को, जिनमें दुष्ट लोग भी हैं, जीने का मौका दिया गया है।
तो “उसी दिन” उनकी मौत हो जाएगी। (6, 7. (क) जैसे निर्गमन 9:15,16 में बताया गया है यहोवा, दुष्टों को कुछ वक्त के लिए क्यों रहने देता है? (ख) फिरौन के मामले में यहोवा ने अपनी ताकत कैसे दिखायी, और उसका नाम किस तरह मशहूर हुआ? (ख) जब इस दुष्ट संसार का अंत किया जाएगा तब क्या होगा?
6 यहोवा ने मूसा के दिनों में मिस्र के राजा से जो बात कही उससे हम और भी जान पाते हैं कि परमेश्वर ने दुष्टों को क्यों रहने दिया है। जब फिरौन ने इस्राएलियों को मिस्र छोड़कर जाने की इजाज़त नहीं दी, तब यहोवा ने तुरंत उसे नहीं मार डाला। उसने पहले मिस्र देश पर दस विपत्तियाँ लाकर हैरतअंगेज़ तरीकों से अपनी ताकत दिखायी। सातवीं विपत्ति की चेतावनी देते वक्त यहोवा ने फिरौन को बताया कि अगर वह चाहता तो देखते-ही-देखते धरती पर से फिरौन और उसके लोगों का वजूद मिटा सकता था। लेकिन फिर यहोवा ने कहा: “मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपना सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं।”—निर्गमन 9:15,16.
यहोशू 2:1,9-11) आज उस घटना को बीते करीब 3,500 साल हो गए हैं, लेकिन उसे अभी भी नहीं भुलाया गया है। उस घटना से ना सिर्फ यहोवा के नाम की कीर्ति फैली बल्कि लोगों ने उसकी शख्सियत के बारे में भी सच्चाई जानी। इससे यहोवा एक ऐसे परमेश्वर के तौर पर जाना गया जो अपने वादों का पक्का है और अपने सेवकों की खातिर बड़े-बड़े काम करता है। (यहोशू 23:14) यह भी साबित हुआ कि यहोवा सर्वशक्तिमान है, इसलिए उसे अपना मकसद पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता। (यशायाह 14:24,27) इसलिए हम इस बात का पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा जल्द ही, अपने वफादार सेवकों की खातिर शैतान के पूरे दुष्ट संसार को मिटा डालेगा। इस बार यहोवा जिस तरीके से अपनी असीम शक्ति दिखाएगा और इससे यहोवा के नाम की जो महिमा होगी, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। और उस घटना से होनेवाले फायदे भी हमेशा कायम रहेंगे।—यहेजकेल 38:23; प्रकाशितवाक्य 19:1,2.
7 जब यहोवा ने इस्राएलियों को छुटकारा दिलाया तब सचमुच उसका नाम दूर-दूर तक मशहूर हुआ। (‘आहा! परमेश्वर की बुद्धि क्या ही गंभीर है!’
8. पौलुस हमें किन सच्चाइयों पर ध्यान देने के लिए उकसाता है?
8 प्रेरित पौलुस ने रोमियों को लिखी अपनी पत्री में उनसे यह सवाल किया: “क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है?” इसका जवाब उसने ज़ोरदार तरीके से दिया: “कदापि नहीं!” फिर उसने परमेश्वर की दया के बारे में अच्छी तरह समझाया और इसका भी ज़िक्र किया कि यहोवा ने फिरौन को ज़िंदा रहने की इजाज़त देने का क्या कारण बताया था। पौलुस ने यह भी समझाया कि हम इंसान कुम्हार के हाथों में मिट्टी की तरह हैं। इसके बाद उसने कहा: “परमेश्वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। और दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट रोमियों 9:14-24.
करने की इच्छा की? अर्थात् हम पर जिन्हें उस ने न केवल यहूदियों में से, बरन अन्यजातियों में से भी बुलाया।”—9. (क) ‘विनाश के लिए तैयार किए गए क्रोध के बरतन’ कौन हैं? (ख) यहोवा, अपने विरोधियों के साथ बहुत धीरज से क्यों पेश आया, और जो उससे प्रेम करते हैं, उनको आखिर में कैसे फायदा होगा?
9 अदन में हुई बगावत से लेकर आज तक, जिन्होंने भी यहोवा और उसके कायदे-कानूनों का विरोध किया, वे ‘विनाश के लिए तैयार किए गए क्रोध के बरतन’ हैं। शुरू में हुई बगावत से लेकर आज तक यहोवा धीरज धरता आया है। यहोवा ने जो किया, उसकी दुष्टों ने खिल्ली उड़ायी है, उसके सेवकों को सताया है, यहाँ तक कि उसके बेटे को जान से मार डाला। मगर यहोवा ने सहनशीलता दिखाते हुए, काफी समय की इजाज़त दी ताकि सारी सृष्टि के सामने यह अच्छी तरह ज़ाहिर हो जाए कि परमेश्वर के खिलाफ बगावत करने और उससे आज़ाद होकर शासन करने के कितने भयानक अंजाम होते हैं। साथ ही, यीशु की मौत से आज्ञा माननेवाले इंसानों के लिए उद्धार पाना मुमकिन हुआ और “शैतान के कामों को नाश” करने का रास्ता तैयार हुआ।—1 यूहन्ना 3:8; इब्रानियों 2:14,15.
10. यहोवा, बीते 1,900 सालों से दुष्टों को क्यों बरदाश्त करता आया है?
10 यीशु के पुनरुत्थान को 1,900 साल से ज़्यादा हो गए हैं, और इस दौरान भी यहोवा ने “क्रोध के बरतनों” को बरदाश्त किया और उनके नाश करने के समय को टाल दिया है। क्यों? एक वजह है कि वह इन सालों के दौरान उन लोगों को इकट्ठा कर रहा था जो स्वर्ग में यीशु मसीह के साथ राज्य के वारिस होंगे। इनकी संख्या 1,44,000 है और ये ‘दया के बरतन’ हैं जिनका प्रेरित पौलुस ने ज़िक्र किया। स्वर्ग जानेवाले इस समूह के सदस्य बनने का न्यौता सबसे पहले यहूदी जाति के लोगों को दिया गया। बाद में परमेश्वर ने यह न्यौता गैर-यहूदी जातियों के लोगों को भी दिया। यहोवा ने इनमें से किसी पर भी अपने सेवक बनने की ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की। मगर जिन्होंने भी यहोवा के प्यार-भरे इंतज़ामों लूका 22:29; प्रकाशितवाक्य 14:1-4.
के लिए कदर दिखायी, उनमें से चंद लोगों को उसने स्वर्गीय राज्य में उसके बेटे के साथी राजा बनने का सुअवसर दिया। इस स्वर्गीय समूह को इकट्ठा करने का काम लगभग खत्म हो चुका है।—11. (क) आज यहोवा के धीरज से किस समूह को लाभ पहुँच रहा है? (ख) जो मर गए हैं, उन्हें भी कैसे फायदा होगा?
11 लेकिन परमेश्वर के राज्य में पृथ्वी पर रहनेवाले निवासियों के बारे में क्या? यहोवा के धीरज धरने से सभी जातियों में से एक “बड़ी भीड़” को इकट्ठा करना भी मुमकिन हुआ है। आज इस समूह की गिनती लाखों में है। यहोवा का वादा है कि पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवाला यह समूह, इस संसार के अंत से ज़िंदा बचेगा और उसे धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। (प्रकाशितवाक्य 7:9,10; भजन 37:29; यूहन्ना 10:16) और जब परमेश्वर का ठहराया हुआ वक्त आएगा, तो मरे हुए अनगिनत लोगों को ज़िंदा किया जाएगा और उन्हें स्वर्गीय राज्य की प्रजा बनकर धरती पर जीने की आशीष मिलेगी। प्रेरितों 24:15 में परमेश्वर का वचन कहता है: “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।”—यूहन्ना 5:28,29.
12. (क) यहोवा ने अब तक जो बुराई को बरदाश्त किया है, उससे हमने यहोवा के बारे में क्या सीखा? (ख) यहोवा ने जिस तरीके से इन मामलों को निपटाया है, उसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
12 क्या इस तरह मामले को निपटाने में यहोवा ने किसी तरह का अन्याय किया है? बिलकुल नहीं, क्योंकि “क्रोध के बरतनों” यानी दुष्टों के नाश को टालने की वजह से परमेश्वर अपना मकसद पूरा करने के लिए दूसरों पर दया दिखा रहा है। इससे ज़ाहिर होता है कि वह कितना दयालु और प्रेम करनेवाला परमेश्वर है। इसके अलावा, यह देखने पर कि यहोवा का मकसद कैसे अपने अंजाम की ओर बढ़ता जा रहा है, हम यहोवा के बारे में भी काफी कुछ सीखते हैं। यह जानकर हम कितने दंग रह जाते हैं कि उसने जिस तरीके से मामले को निपटाया, उसमें उसके कई गुण ज़ाहिर रोमियों 11:33.
होते हैं, जैसे न्याय, दया, धीरज और अपार बुद्धि। यहोवा ने विश्व पर हुकूमत के मसले को जिस तरह बुद्धिमानी से सुलझाया, वह हमेशा के लिए सबूत बनकर रह जाएगी कि उसके शासन करने का तरीका ही सबसे बेहतरीन है। हम प्रेरित पौलुस के साथ हाँ-में-हाँ मिलाकर कहते हैं: “आहा! परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!”—अपनी-अपनी भक्ति दिखाने का मौका
13. जब हम ज़िंदगी में तकलीफों से गुज़रते हैं, तो हमें क्या मौका मिलता है और कौन-सी बात हमें सही नज़रिया रखने की हिम्मत देगी?
13 आज परमेश्वर के बहुत-से सेवकों को ज़िंदगी में तकलीफों का सामना करना पड़ता है। उन पर तकलीफें इसलिए आ रही हैं क्योंकि परमेश्वर ने अब तक दुष्टों का नाश नहीं किया है, ना ही इंसानों के लिए वादा किए गए हालात को बहाल किया है। लेकिन क्या इस वजह से हमें कुढ़ना चाहिए? ऐसा महसूस करने के बजाय, ज़िंदगी के मुश्किल हालात के बारे में क्या यह नज़रिया रखना अच्छा नहीं होगा कि हमें इब्लीस को झूठा साबित करने का मौका मिल रहा है? हमें ऐसा नज़रिया रखने की हिम्मत ज़रूर मिलेगी अगर हम इस गुज़ारिश को मन में रखें: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” (नीतिवचन 27:11) यहोवा पर ताना कसनेवाले शैतान ने दावा किया कि अगर इंसानों को आर्थिक रूप से कोई नुकसान होगा या उन्हें शारीरिक दुःख पहुँचेगा, तो वे परमेश्वर को दोष देंगे, यहाँ तक कि उसकी निंदा करेंगे। (अय्यूब 1:9-11; 2:4,5) लेकिन जब हम मुश्किलों के बावजूद यहोवा के वफादार रहकर साबित करते हैं कि शैतान की बात हमारे मामले में सही नहीं है, तो हम यहोवा के दिल को खुश करते हैं।
14. अपनी परीक्षाओं के दौरान यहोवा पर भरोसा रखने से हमें क्या फायदे होंगे?
14 अगर हम अपनी परीक्षाओं के दौरान यहोवा पर भरोसा रखें, तो हम अपने अंदर अनमोल गुण पैदा कर सकेंगे। उदाहरण के लिए, यीशु ने इब्रानियों 5:8,9; 12:11; याकूब 1:2-4.
जो पीड़ाएँ सहीं उनकी वजह से उसने इस तरह ‘आज्ञा मानना सीखा’ जिस तरह उसने पहले कभी नहीं सीखा था। हम भी अपनी परीक्षाओं से सीख सकते हैं, यानी हम धीरज, सहनशक्ति जैसे गुण पैदा कर सकते हैं। साथ ही, यहोवा के धर्मी स्तरों के बारे में हमारी समझ बढ़ सकती है और उनके लिए कदरदानी गहरी हो सकती है।—15. अगर हम धीरज धरते हुए तकलीफों का सामना करें, तो इससे दूसरों को क्या फायदा हो सकता है?
15 हम अपनी परीक्षाओं में कैसा रवैया दिखाते हैं, इसे दूसरे लोग भी देखेंगे। जब वे देखते हैं कि धार्मिकता से प्यार करने की वजह से हमें किन मत्ती 25:34-36,40,46) यहोवा और उसका बेटा चाहते हैं कि लोगों को यह मौका मिले।
तकलीफों का सामना करना पड़ता है तो शायद उनमें से कुछ लोग समझ जाएँ कि आज के समय में सच्चे मसीही कौन हैं। और अगर वे हमारे साथ मिलकर सच्ची उपासना करें, तो वे भी अनंत जीवन पानेवालों में गिने जाएँगे। (16. अपनी मुश्किलों के दौरान हम जो नज़रिया रखते हैं, उसका एकता से क्या संबंध है?
16 कितना बढ़िया रहेगा अगर हम अपने मुश्किल हालात के बारे में भी यह समझें कि इनसे हमें यहोवा के लिए अपनी भक्ति दिखाने और उसकी मरज़ी पूरी करने का मौका मिल रहा है! ऐसा नज़रिया रखने से हम इस बात का सबूत देंगे कि हम सचमुच परमेश्वर और मसीह के साथ एक होने की मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं। यीशु ने सभी सच्चे मसीहियों की खातिर यहोवा से प्रार्थना की: “मैं केवल इन्हीं [उसके सबसे करीबी चेलों] के लिये बिनती नहीं करता, परन्तु उन के लिये भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों। जैसा तू हे पिता मुझ में है, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों।”—यूहन्ना 17:20,21.
17. यहोवा के वफादार रहने से हम क्या भरोसा रख सकते हैं?
17 अगर हम यहोवा के वफादार रहेंगे तो वह हमें बेशुमार आशीषें देगा। उसका वचन कहता है: “दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।” (1 कुरिन्थियों 15:58) उसका वचन यह भी कहता है: ‘परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये दिखाया है।’ (इब्रानियों 6:10) याकूब 5:11 कहता है: “देखो, हम धीरज धरनेवालों को धन्य कहते हैं: तुम ने ऐयूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है।” अय्यूब को क्या प्रतिफल मिला था? “यहोवा ने अय्यूब के पिछले दिनों में उसको अगले दिनों से अधिक आशीष दी।” (अय्यूब 42:10-16) जी हाँ, यहोवा सचमुच “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6) और हमें जो प्रतिफल मिलनेवाला है, वह कितना बढ़िया है—धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी!
18. आखिरकार बीते दिनों की दर्द-भरी यादों का क्या होगा?
18 पिछले हज़ारों सालों से इंसानों को हुए हर तरह के नुकसान को परमेश्वर का राज्य मिटा देगा। उस वक्त हमें जो ढेरों खुशियाँ मिलेंगी उनके सामने आज की बड़ी-से-बड़ी तकलीफ भी कुछ नहीं होगी। हमें बीते दिनों की दुःख-तकलीफों की कड़वी यादें नहीं सताएँगी। नयी दुनिया में हमारे सोचने के लिए इतनी अच्छी-अच्छी बातें होंगी और इतना बढ़िया काम होगा कि हमारे दिलों से बीते दिनों की दर्द-भरी यादें धीरे-धीरे मिट जाएँगी। यहोवा ऐलान करता है: “मैं नया आकाश [इंसानों पर शासन करनेवाली एक नयी स्वर्गीय सरकार] और नई पृथ्वी [धर्मी इंसानों का समाज] उत्पन्न करता हूं; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी। इसलिये जो मैं उत्पन्न करने पर हूं, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो।” जी हाँ, यहोवा की नयी दुनिया में धर्मी जन यह कह पाएँगे: “अब सारी पृथ्वी को विश्राम मिला है, वह चैन से है; लोग ऊंचे स्वर से गा उठे हैं।”—यशायाह 14:7; 65:17,18.
आइए याद करें
• हालाँकि यहोवा ने बुराई को रहने दिया है, फिर भी उसने अपने नाम के लिए गहरा आदर कैसे दिखाया?
• “क्रोध के बरतनों” को बरदाश्त करने के ज़रिए परमेश्वर ने कैसे आज हम पर दया दिखायी है?
• जब हमें ज़िंदगी में तकलीफों से गुज़रना पड़ता है, तब हमें कैसा नज़रिया रखने की कोशिश करनी चाहिए?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 67 पर तसवीरें]
“यहोवा ने अय्यूब के पिछले दिनों में उसको अगले दिनों से अधिक आशीष दी”