अध्याय 17
राज के सेवकों का प्रशिक्षण
1-3. (क) यीशु ने क्या इंतज़ाम किया ताकि प्रचार काम और भी बड़े पैमाने पर हो? (ख) इससे क्या सवाल उठते हैं?
यीशु ने दो साल तक पूरे गलील में प्रचार किया था। (मत्ती 9:35-38 पढ़िए।) उसने कई शहरों और गाँवों का दौरा किया और वहाँ परमेश्वर के राज की खुशखबरी का प्रचार किया और सभा-घरों में सिखाया। वह जहाँ भी प्रचार करता था लोगों की भीड़ उसके पास जमा हो जाती थी। यीशु ने कहा, “कटाई के लिए फसल बहुत है।” इस काम के लिए और मज़दूरों की ज़रूरत थी।
2 यीशु ने ऐसा इंतज़ाम किया कि प्रचार काम बड़े पैमाने पर किया जाए। उसने अपने 12 प्रेषितों को भी “परमेश्वर के राज का प्रचार करने” भेजा। (लूका 9:1, 2) प्रेषितों के मन में कुछ सवाल रहे होंगे कि उन्हें यह काम कैसे करना चाहिए। इसलिए प्रचार में भेजने से पहले यीशु ने उन्हें प्रशिक्षण दिया, ठीक जैसे उसके पिता यहोवा ने उसे प्रशिक्षित किया था।
3 इससे हमारे मन में कई सवाल उठते हैं। यीशु को अपने पिता से कैसा प्रशिक्षण मिला था? यीशु ने अपने प्रेषितों को क्या प्रशिक्षण दिया? क्या आज राजा मसीह अपने चेलों को प्रचार करने का प्रशिक्षण दे रहा है? अगर हाँ, तो कैसे?
‘जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं बताता हूँ’
4. यीशु को उसके पिता ने कब और कहाँ सिखाया?
4 यीशु ने साफ बताया था कि उसे उसके पिता ने सिखाया था। अपनी सेवा के दौरान उसने कहा, “जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ।” (यूह. 8:28) यहोवा ने यीशु को कब और कैसे सिखाया था? ऐसा मालूम पड़ता है कि परमेश्वर ने अपने इस पहलौठे बेटे की सृष्टि करने के फौरन बाद उसे सिखाना शुरू किया था। (कुलु. 1:15) यीशु अपने पिता के साथ स्वर्ग में अनगिनत युगों से रहा है और इस दौरान वह अपने “महान उपदेशक” की बातें ध्यान से सुनता रहा और उसके काम गौर से देखता रहा। (यशा. 30:20) इस तरह उसने अपने पिता के गुणों, कामों और मकसद के बारे में इतनी बढ़िया शिक्षा पायी जितनी किसी और ने नहीं पायी है।
5. पिता ने बेटे को धरती पर सेवा करने के बारे में क्या सिखाया?
5 समय आने पर यहोवा ने अपने बेटे को उस सेवा के बारे में सिखाया जो उसे धरती पर करनी थी। एक भविष्यवाणी पर ध्यान दीजिए जिसमें बताया गया है कि महान उपदेशक यहोवा का अपने पहलौठे बेटे के साथ कैसा रिश्ता यशायाह 50:4, 5 पढ़िए।) भविष्यवाणी कहती है कि यहोवा अपने बेटे को “हर सुबह उठाता” था, जैसे एक शिक्षक अपने विद्यार्थी को हर सुबह तड़के जगाता है ताकि वह उसे सिखाए। बाइबल की समझ देनेवाली एक किताब कहती है, ‘जैसे एक शिक्षक विद्यार्थी को स्कूल में सिखाता है, उसी तरह स्वर्ग में यहोवा ने उसे सिखाया कि उसे क्या प्रचार करना चाहिए और कैसे।’ यहोवा ने अपने बेटे को सिखाया कि उसे ‘क्या-क्या बताना है और क्या-क्या बोलना है।’ (यूह. 12:49) पिता ने उसे यह भी बताया कि उसे दूसरों को कैसे सिखाना चाहिए। * यीशु ने अपने पिता से मिले प्रशिक्षण का अच्छा इस्तेमाल किया। उसने न सिर्फ अपनी सेवा पूरी की बल्कि अपने चेलों को भी उनकी सेवा पूरी करने का प्रशिक्षण दिया।
था। (6, 7. (क) यीशु ने अपने प्रेषितों को कैसा प्रशिक्षण दिया? (ख) वे किस काम के काबिल बने? (ग) हमारे दिनों में यीशु ने अपने चेलों को कैसा प्रशिक्षण दिया है?
6 यीशु ने अपने प्रेषितों को कैसा प्रशिक्षण दिया? जैसे मत्ती अध्याय 10 में बताया गया है, उसने प्रचार के बारे में उन्हें कुछ खास हिदायतें दीं। जैसे, उन्हें कहाँ प्रचार करना है (आयत 5, 6), क्या संदेश सुनाना है (आयत 7), यहोवा पर क्यों भरोसा रखना है (आयत 9, 10), घरों पर लोगों से कैसे बात करनी है (आयत 11-13), अगर कोई संदेश ठुकराए तो क्या करना है (आयत 14, 15) और सताए जाने पर क्या करना है (आयत 16-23)। * यीशु ने अपने प्रेषितों को इतना बढ़िया प्रशिक्षण दिया कि वे पहली सदी में प्रचार काम में अगुवाई करने के काबिल बने।
7 हमारे दिनों के बारे में क्या कहा जा सकता है? परमेश्वर के राज के राजा यीशु ने अपने चेलों को बहुत ज़रूरी काम सौंपा है। वह है, ‘राज की खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार करना ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए।’ (मत्ती 24:14) क्या राजा ने हमें यह काम करने के लिए प्रशिक्षण दिया है? बेशक दिया है! स्वर्ग से राजा ने इस बात का ध्यान रखा है कि उसके चेलों को सिखाया जाए कि वे लोगों को कैसे प्रचार करें और मंडली में कुछ खास ज़िम्मेदारियाँ कैसे निभाएँ।
सेवकों को प्रचार करने का प्रशिक्षण
8, 9. (क) परमेश्वर की सेवा स्कूल का खास मकसद क्या था? (ख) हफ्ते के बीच होनेवाली सभा ने प्रचार करने का आपका हुनर कैसे बढ़ाया है?
8 यहोवा का संगठन लंबे अरसे से सम्मेलनों, अधिवेशनों और सेवा सभा जैसी सभाओं के ज़रिए अपने लोगों को प्रचार करना सिखाता रहा है। मगर 1940 के बाद से मुख्यालय में अगुवाई करनेवाले भाइयों ने कई तरह के स्कूलों का इंतज़ाम करना शुरू किया ताकि इस काम के लिए अच्छा प्रशिक्षण दिया जाए।
9 परमेश्वर की सेवा स्कूल: जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा, यह स्कूल 1943 में शुरू हुआ था। क्या इस स्कूल का मकसद सिर्फ यह था कि विद्यार्थियों को सभाओं में बढ़िया भाषण देना सिखाया जाए? जी नहीं। इसका खास मकसद था, परमेश्वर के लोगों को बोलने के वरदान का अच्छा इस्तेमाल करना सिखाया जाए ताकि वे प्रचार में यहोवा की तारीफ कर सकें। (भज. 150:6) स्कूल में जितने भी भाई-बहन दाखिल हुए उन्हें राज का प्रचार करने में और भी काबिल बनाया गया। आज यह प्रशिक्षण हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में दिया जाता है।
10, 11. (क) गिलियड स्कूल के लिए अब किन्हें बुलाया जाता है? (ख) इस स्कूल का मकसद क्या है?
10 वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड: जो स्कूल आज वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड कहलाता है वह 1 फरवरी, 1943 की सोमवार को शुरू हुआ था। शुरू में यह स्कूल इस तरह तैयार किया गया था कि पायनियरों और दूसरे पूरे समय के सेवकों को मिशनरी सेवा करने का प्रशिक्षण दिया जाए। मगर अक्टूबर 2011 से इस स्कूल के लिए सिर्फ ऐसे लोगों को बुलाया जाने लगा जो पहले ही किसी तरह की खास पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। जैसे खास पायनियर, सफरी निगरान और उनकी पत्नियाँ, बेथेल के सदस्य और पूरे समय प्रचार करनेवाले ऐसे मिशनरी जो कभी गिलियड स्कूल नहीं गए हैं।
11 गिलियड स्कूल का मकसद क्या है? इस स्कूल में लंबे समय से शिक्षक रहे एक भाई ने बताया, “परमेश्वर के वचन के गहरे अध्ययन से विद्यार्थियों का विश्वास मज़बूत करना और परमेश्वर को भानेवाले गुण बढ़ाने में उनकी मदद करना ताकि अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते वक्त वे आनेवाली मुश्किलों का सामना कर सकें। इसका एक और बुनियादी मकसद है, विद्यार्थियों में प्रचार काम के लिए और भी ज़बरदस्त इच्छा पैदा करना।”—इफि. 4:11.
12, 13. गिलियड स्कूल से पूरी दुनिया में प्रचार काम पर कैसा असर हुआ? एक मिसाल दीजिए।
12 गिलियड स्कूल से पूरी दुनिया में होनेवाले प्रचार काम पर कैसा असर हुआ है? सन् 1943 से 8,500 से ज़्यादा भाई-बहनों ने इस स्कूल से प्रशिक्षण पाया है * और उन्होंने 170 से ज़्यादा देशों में मिशनरी सेवा की है। इन मिशनरियों ने अपने प्रशिक्षण का अच्छा इस्तेमाल किया है। उन्होंने प्रचार काम जोश से करने में अच्छी मिसाल रखी है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाया है। कई मिशनरियों ने ऐसी जगहों में प्रचार काम को आगे बढ़ाया है जहाँ प्रचारक बहुत कम थे।
13 जापान की मिसाल लीजिए। वहाँ दूसरे विश्व युद्ध के दौरान व्यवस्थित ढंग से प्रचार करना लगभग बंद हो चुका था। अगस्त 1949 तक प्रचारकों की गिनती 10 से कम थी। लेकिन उस साल के खत्म होते-होते, वहाँ 13 गिलियड मिशनरी ज़ोर-शोर से प्रचार करने लगे। बाद में और भी कई मिशनरियों को भेजा गया। शुरू में मिशनरियों ने सिर्फ बड़े-बड़े शहरों में प्रचार किया। बाद में वे दूसरे शहरों में भी गए। उन्होंने अपने बाइबल विद्यार्थियों को और दूसरे भाई-बहनों को पायनियर सेवा करने का बढ़ावा दिया। मिशनरियों के जोश और उनकी मेहनत का बढ़िया नतीजा निकला। आज जापान में 2,16,000 से ज़्यादा प्रचारक हैं और उनमें से तकरीबन 40 प्रतिशत जन पायनियर हैं! *
14. परमेश्वर के संगठन के स्कूल किस बात का ज़बरदस्त सबूत हैं? (यह बक्स भी देखें: “ राज के सेवकों को प्रशिक्षण देनेवाले स्कूल।”)
14 संगठन के दूसरे स्कूल: ये हैं पायनियर सेवा स्कूल, मसीही जोड़ों के लिए बाइबल स्कूल और अविवाहित भाइयों के लिए बाइबल स्कूल। इन स्कूलों में हाज़िर होनेवाले भाई-बहनों को यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने में मदद मिली है और जोश से प्रचार काम करने का बढ़ावा * ये सारे स्कूल इस बात का ज़बरदस्त सबूत हैं कि हमारा राजा अपने चेलों को इस काबिल बना रहा है कि वे अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करें।—2 तीमु. 4:5.
मिला है।भाइयों को खास ज़िम्मेदारियों के लिए प्रशिक्षण
15. ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवाले भाई किस बात में यीशु की मिसाल पर चलना चाहते हैं?
15 यशायाह की वह भविष्यवाणी याद कीजिए जो बताती है कि यीशु को परमेश्वर से कैसा प्रशिक्षण मिला। स्वर्ग में यीशु ने सीखा कि “सही बात कहकर थके-माँदों को जवाब” कैसे देना चाहिए। (यशा. 50:4) धरती पर यीशु ने उस शिक्षा को लागू किया। उसने ‘कड़ी मज़दूरी करनेवालों और बोझ से दबे लोगों’ को ताज़गी दी। (मत्ती 11:28-30) यीशु की तरह, ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवाले भाई अपने भाई-बहनों को ताज़गी देना चाहते हैं। इसलिए इन काबिल भाइयों के लिए तरह-तरह के स्कूल शुरू किए गए ताकि वे अपने भाई-बहनों की और भी अच्छी तरह सेवा कर सकें।
16, 17. राज-सेवा स्कूल का मकसद क्या है? (फुटनोट भी देखें।)
16 राज-सेवा स्कूल: इस स्कूल की पहली क्लास 9 मार्च, 1959 को न्यू यॉर्क के साउथ लैंसिंग शहर में रखी गयी थी। यह एक महीने का कोर्स था *
और इसके लिए सफरी निगरानों और मंडली सेवकों को बुलाया गया। (मंडली सेवक आज प्राचीनों के निकाय का संयोजक कहलाता है।) बाद में इस कोर्स का अनुवाद अँग्रेज़ी से दूसरी भाषाओं में किया गया और वक्त के गुज़रते पूरी दुनिया के भाइयों को प्रशिक्षण दिया गया।17 राज-सेवा स्कूल का मकसद क्या है? इसका जवाब 1962 यहोवा के साक्षियों की सालाना किताब (अँग्रेज़ी) में बताया गया: “आज की दुनिया में हर कोई व्यस्त है। ऐसे में यहोवा के साक्षियों की मंडली की निगरानी करनेवाले हर भाई को चाहिए कि वह अपने जीवन का हर काम अच्छे प्रबंध के अनुसार करे। तभी वह मंडली के सभी लोगों पर पूरा-पूरा ध्यान दे पाएगा और उनके लिए एक आशीष ठहरेगा। मगर मंडली के काम करने के लिए उसे अपने परिवार को अनदेखा नहीं करना चाहिए। उसे सही सोच बनाए रखनी चाहिए। पूरी दुनिया के मंडली सेवकों को क्या ही सुअवसर मिला है कि वे राज-सेवा स्कूल से प्रशिक्षण पा सकते हैं ताकि निगरानी करने की ज़िम्मेदारियाँ ठीक उसी तरह निभा सकें जैसे बाइबल में बताया गया है!”—1 तीमु. 3:1-7; तीतु. 1:5-9.
18. राज-सेवा स्कूल से कैसे परमेश्वर के सभी लोगों को फायदा होता है?
1 थिस्स. 5:11) ऐसे काबिल भाई अपनी मंडलियों के लिए वाकई एक आशीष हैं!
18 राज-सेवा स्कूल से परमेश्वर के सभी लोगों को फायदा होता है। वह कैसे? जब प्राचीन और सहायक सेवक स्कूल में सीखी बातों को लागू करते हैं तो वे यीशु की तरह अपने भाई-बहनों को ताज़गी देते हैं। जब कोई प्राचीन या सहायक सेवक आपसे कोई अच्छी बात कहता है, आपकी बात सुनता है या आपसे मिलकर आपका हौसला बढ़ाता है, तो क्या आपका दिल एहसान से नहीं भर जाता? (19. (क) शिक्षा-समिति की निगरानी में और कौन-कौन-से स्कूल चलाए जाते हैं? (ख) इन स्कूलों में क्या सिखाया जाता है?
19 संगठन के दूसरे स्कूल: शासी निकाय की शिक्षा-समिति की निगरानी में और भी कई स्कूल चलाए जाते हैं। इन स्कूलों में ऐसे भाइयों को प्रशिक्षण दिया जाता है जिन पर बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ हैं। ये स्कूल मंडली के प्राचीनों, सफरी निगरानों और शाखा-समिति के सदस्यों को अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाना सिखाते हैं। इन स्कूलों में बाइबल पर आधारित कोर्स में सिखाया जाता है कि वे यहोवा के साथ अपना रिश्ता कैसे मज़बूत बनाए रख सकते हैं और यहोवा ने उन्हें जो अनमोल भेड़ें सौंपी हैं, उनके साथ व्यवहार करते वक्त बाइबल के सिद्धांतों को कैसे लागू कर सकते हैं।—1 पत. 5:1-3.
20. (क) यीशु क्यों कह सका कि हम सब “यहोवा के सिखाए हुए” लोग हैं? (ख) आपने क्या करने की ठान ली है?
20 इन सारी बातों से साफ है कि राजा मसीह ने इस बात का ध्यान रखा है कि उसके चेलों को अच्छा प्रशिक्षण दिया जाए। यह सारा प्रशिक्षण यहोवा से मिलता है। यहोवा ने अपने बेटे को प्रशिक्षण दिया और बेटे ने अपने चेलों को प्रशिक्षण दिया। इसलिए यीशु कह सका कि हम सब “यहोवा के सिखाए हुए” लोग हैं। (यूह. 6:45; यशा. 54:13) आइए ठान लें कि राजा ने हमारे लिए जिस प्रशिक्षण का इंतज़ाम किया है उसका पूरा-पूरा फायदा उठाएँगे। हम हमेशा याद रखें कि इस पूरे प्रशिक्षण का खास मकसद यह है कि हम यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत रखें और अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करें।
^ पैरा. 5 हम कैसे जानते हैं कि पिता ने अपने बेटे को प्रशिक्षण दिया कि उसे दूसरों को कैसे सिखाना चाहिए? इस बात पर ध्यान दीजिए: यीशु ने सिखाते वक्त कई मिसालें बतायीं। इससे एक भविष्यवाणी पूरी हुई जो उसके जन्म से सदियों पहले लिखी गयी थी। (भज. 78:2; मत्ती 13:34, 35) ज़ाहिर है कि उस भविष्यवाणी को लिखानेवाले यहोवा ने बहुत पहले तय किया था कि उसका बेटा मिसालें देकर सिखाएगा।—2 तीमु. 3:16, 17.
^ पैरा. 6 कुछ महीनों बाद यीशु ने प्रचार के लिए ‘70 और चेले चुने और उन्हें दो-दो की जोड़ियों में भेजा।’ यीशु ने उन्हें भी प्रशिक्षण दिया।—लूका 10:1-16.
^ पैरा. 12 कुछ विद्यार्थी एक-से-ज़्यादा बार गिलियड स्कूल गए हैं।
^ पैरा. 13 गिलियड से प्रशिक्षण पाए मिशनरियों ने पूरी दुनिया में प्रचार काम को कैसे आगे बढ़ाया, इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए यहोवा के साक्षी—परमेश्वर के राज के प्रचारक (अँग्रेज़ी) किताब का अध्याय 23 देखें।
^ पैरा. 14 आखिरी दो स्कूलों के बदले अब राज प्रचारकों के लिए स्कूल चलाया जाता है।
^ पैरा. 16 अब सभी प्राचीन राज-सेवा स्कूल से फायदा पाते हैं। यह स्कूल कुछ सालों के फासले में रखा जाता है और अलग-अलग समय-अवधि का होता है। सन् 1984 से सहायक सेवक भी इस स्कूल से प्रशिक्षण पा रहे हैं।