पाठ 41
परमेश्वर किन बच्चों से खुश होता है
आपके हिसाब से वह बच्चा कौन था, जिसने सबसे ज़्यादा परमेश्वर का दिल खुश किया?— वह था, उसका बेटा यीशु। चलो देखते हैं कि यीशु ने स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता को खुश करने के लिए क्या किया।
यीशु का परिवार जिस जगह रहता था वह यरूशलेम से बहुत दूर था। यरूशलेम पहुँचने के लिए उन्हें 3 दिन का लंबा सफर तय करना पड़ता था। यरूशलेम में यहोवा का शानदार मंदिर था। यीशु ने उस मंदिर को अपने ‘पिता का घर’ कहा। वह हर साल अपने परिवार के साथ वहाँ फसह का त्योहार मनाने जाता था।
जब यीशु 12 साल का था तो वह अपने परिवार के साथ फसह का त्योहार मनाने यरूशलेम गया। वहाँ से लौटते वक्त जब उसका परिवार एक दिन का सफर तय कर चुका और रात को एक जगह रुका तब उन्होंने देखा कि यीशु तो उनके साथ है ही नहीं। उन्होंने रिश्तेदारों और दोस्तों में उसे ढूँढ़ा मगर उसका कहीं पता न चला। इसलिए मरियम और यूसुफ उसी वक्त यीशु को ढूँढ़ने के लिए यरूशलेम वापस गए। आपके हिसाब से यीशु कहाँ हो सकता था?—
यीशु मंदिर में था। वहाँ वह शिक्षकों की बात सुन रहा था और उनसे सवाल पूछ रहा था। जब शिक्षक उससे कोई सवाल पूछते तो वह झट-से उनके हर सवाल का जवाब दे देता। वे उसके बढ़िया जवाब सुनकर हैरान थे। क्या अब आपको पता चला कि परमेश्वर अपने बेटे यीशु से खुश क्यों था?—
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मरियम और यूसुफ मंदिर पहुँचे और वहाँ उन्हें यीशु मिल गया। यीशु को देखकर उन्होंने राहत की साँस ली। लेकिन यीशु तो आराम से वहाँ बैठा था। उसे मालूम था कि मंदिर से बढ़िया जगह कोई और हो ही नहीं सकती। इसलिए उसने मरियम और यूसुफ से कहा: ‘क्या आपको मालूम नहीं था कि मैं अपने पिता के घर में ही मिलूँगा?’
वह जानता था कि मंदिर परमेश्वर का घर है और उसे वहाँ रहना अच्छा लगता था।उसके बाद मरियम और यूसुफ 12 साल के यीशु को लेकर अपने घर नासरत चले गए। आपको क्या लगता है यीशु अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करता होगा?— बाइबल कहती है कि वह “लगातार उनके अधीन रहा।” क्या आपको मालूम है कि अधीन रहने का मतलब क्या है?— इसका मतलब है कि वह उनकी बात मानता था। उसके माता-पिता उससे जो भी काम करने को कहते, वह उसे करता था। फिर चाहे कुँए से पानी भरकर लाने जैसा छोटा काम ही क्यों न हो।—लूका 2:41-52.
अब ज़रा इस बारे में सोचो: यीशु सिद्ध था लेकिन फिर भी वह अपने असिद्ध माता-पिता की आज्ञा मानता था। क्या इससे परमेश्वर को खुशी हुई?— हाँ बिलकुल, क्योंकि परमेश्वर का वचन बच्चों से कहता है: “अपने माता-पिता का कहना माननेवाले बनो।” (इफिसियों 6:1) अगर यीशु की तरह आप अपने माता-पिता का कहना मानें तो आप भी परमेश्वर को खुश कर सकते हो।
परमेश्वर का दिल खुश करने का एक और तरीका है, लोगों को उसके बारे में बताना। कुछ लोग शायद मत्ती 21:16) इससे पता चलता है कि हम सभी दूसरों को यहोवा के बारे में बता सकते हैं और यह भी कि वह कितना महान परमेश्वर है। यह करने से हम परमेश्वर का दिल खुश कर रहे होंगे।
आपसे कहें कि आप अभी बहुत छोटे हो और आपको यह काम नहीं करना चाहिए। लेकिन पता है जब एक बार लोगों ने बच्चों को यह काम करने से रोका तो यीशु ने उनसे क्या कहा? उसने कहा: ‘क्या तुमने शास्त्र में यह कभी नहीं पढ़ा, “परमेश्वर छोटे बच्चों के मुँह से स्तुति करवाएगा?”’ (परमेश्वर के बारे में जो बातें हम दूसरों को बताना चाहते हैं, वे बातें हम कहाँ सीखते हैं?— घर में बाइबल अध्ययन के दौरान। इसके अलावा जहाँ परमेश्वर के लोग अध्ययन के लिए जमा होते हैं, उन सभाओं में हम और ज़्यादा सीख सकते हैं। लेकिन हम परमेश्वर के लोगों को पहचानेंगे कैसे?—
परमेश्वर के लोग अपनी सभाओं में क्या करते हैं? वे बाइबल में लिखी बातें सिखाते हैं। वे उसे पढ़ते और उसमें लिखी बातों पर चर्चा करते हैं। यही वह तरीका है जिससे हम परमेश्वर की बातें सुन सकते हैं, है ना?— और मसीही सभाओं में हमें यही बताया जाता है कि परमेश्वर हमसे क्या चाहता है। क्या आपको लगता है यह बात सच है?— लेकिन अगर कुछ लोग आपसे कहें कि आपको बाइबल की बातों पर चलने की ज़रूरत नहीं, तो क्या आप उन्हें परमेश्वर के लोग कहोगे?—
एक और बात गौर करने लायक है। बाइबल कहती है कि परमेश्वर के लोग ‘उसके नाम से पहचाने जाएँगे।’ (प्रेषितों 15:14) परमेश्वर का नाम यहोवा है, इसलिए हम लोगों से पूछ सकते हैं कि क्या वे यहोवा को अपना परमेश्वर मानते हैं। अगर वे कहते हैं नहीं, तो हमें समझ जाना चाहिए कि वे परमेश्वर के लोग नहीं हैं। परमेश्वर के लोग दूसरों को उसके राज के बारे में भी बताते हैं। और उसकी आज्ञाएँ मानकर वे दिखाते हैं कि वे यहोवा से प्यार करते हैं।—1 यूहन्ना 5:3.
जब आपकी मुलाकात ऐसे लोगों से होती है जो ये सारे काम करते हैं तो आपको उनके साथ मिलकर परमेश्वर की उपासना करनी चाहिए। आपको इन सभाओं में ध्यान से सुनना चाहिए और जब सवाल पूछे जाते हैं तो जवाब देने चाहिए। जब यीशु परमेश्वर के घर में था, तो उसने भी ऐसा ही किया। अगर आप ऐसा करोगे तो यीशु की तरह आप भी परमेश्वर को खुश करोगे।
क्या बाइबल में ऐसे और भी बच्चों के बारे में बताया गया है, जिन्होंने परमेश्वर को
खुश किया?— सबसे बढ़िया उदाहरण है तीमुथियुस का। उसका पिता, यहोवा को नहीं मानता था। लेकिन उसकी माँ यूनीके और नानी लोइस यहोवा पर विश्वास करती थीं। तीमुथियुस उनकी बात सुनता और यहोवा के बारे में सीखता था।तीमुथियुस के बड़े होने पर प्रेषित पौलुस उसके शहर आया। उसने देखा कि तीमुथियुस के दिल में यहोवा की सेवा करने की बहुत इच्छा है। इसलिए पौलुस ने तीमुथियुस को अपने साथ चलने को कहा ताकि वह और ज़्यादा यहोवा की सेवा कर सके। वे जहाँ-जहाँ गए, उन्होंने लोगों को परमेश्वर के राज और यीशु के बारे में बताया।—प्रेषितों 16:1-5; 2 तीमुथियुस 1:5; 3:14, 15.
क्या बाइबल के मुताबिक सिर्फ लड़कों ने यहोवा का दिल खुश किया?— नहीं, ऐसी बात नहीं है। बाइबल एक इसराएली लड़की के बारे में बताती है, जिसने परमेश्वर का दिल खुश किया। यह उस वक्त की बात है जब अराम और इसराएल देश के लोग एक-दूसरे के दुश्मन थे। एक दिन अराम की सेना ने इसराएल पर हमला बोल दिया और उस छोटी लड़की को बंदी बनाकर अपने देश ले गए। लड़की को अराम के सेनापति नामान के यहाँ भेज दिया गया। वहाँ वह नामान की पत्नी की दासी बनकर रहने लगी।
नामान को कोढ़ नाम की भयंकर बीमारी थी। कोई भी डॉक्टर उसे ठीक नहीं कर सका। लेकिन इसराएल से लायी इस लड़की को पूरा यकीन था कि परमेश्वर का एक खास सेवक, जिसे भविष्यवक्ता कहा जाता था, नामान को ठीक कर सकता है। मगर नामान और उसकी पत्नी यहोवा की उपासना नहीं करते थे। तो फिर क्या उस लड़की को नामान और उसकी पत्नी को यह बताना चाहिए था कि परमेश्वर का एक भविष्यवक्ता नामान को ठीक कर सकता है? अगर आप वहाँ होते तो क्या करते?—
उस बच्ची ने नामान की पत्नी से कहा: ‘अगर मेरे मालिक नामान इसराएल में यहोवा के भविष्यवक्ता के पास जाएँ तो वह उनका कोढ़ ठीक कर सकता है।’ नामान ने उस लड़की की बात सुनी और यहोवा के भविष्यवक्ता के पास गया। भविष्यवक्ता ने जैसा कहा, नामान ने वैसा ही किया और उसकी बीमारी ठीक हो गयी। इससे नामान सच्चे परमेश्वर पर विश्वास करने लगा और उसका उपासक बन गया।—2 राजा 5:1-15.
क्या आप उस बच्ची की तरह लोगों को यह सीखने में मदद करना चाहोगे कि यहोवा कौन है और वह क्या कर सकता है?— आप किसकी मदद कर सकते हो?— जिनकी आप मदद करना चाहते हो, उन्हें शुरू-शुरू में लग सकता है कि उन्हें परमेश्वर को जानने में किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है। लेकिन आप उन्हें बता सकते हो कि यहोवा ने कितने अच्छे-अच्छे काम किए हैं। और हो सकता है कि वे आगे चलकर आपकी बात सुनें। आप यकीन रख सकते हो कि आपके इस काम से परमेश्वर को बहुत खुशी होगी।
बच्चे परमेश्वर की सेवा में खुशी कैसे पा सकते हैं, यह जानने के लिए भजन 122:1; 148:12, 13; सभोपदेशक 12:1; 1 तीमुथियुस 4:12 और इब्रानियों 10:23-25 पढ़िए।