अध्याय 14
“भारी तादाद में लोग उसके पास आए”
1-3. जब माता-पिता अपने बच्चों को यीशु के पास लाते हैं, तब क्या होता है? इस घटना से यीशु के बारे में क्या पता चलता है?
यीशु जानता है कि धरती पर उसका जीवन जल्द ही खत्म होनेवाला है। उसके पास कुछ ही हफ्तों का समय रह गया है, लेकिन अभी बहुत सारा काम बाकी है! वह अपने प्रेषितों के साथ पेरिया में प्रचार कर रहा है, जो यरदन नदी के पूरब में है। वे धीरे-धीरे दक्षिण की तरफ बढ़ते हुए यरूशलेम जा रहे हैं। वहाँ यीशु अपना आखिरी फसह मनाएगा, जिसके बाद उसकी ज़िंदगी में बहुत बड़ी घटना घटेगी।
2 रास्ते में यीशु की कुछ धर्म-गुरुओं के साथ ज़बरदस्त बहस होती है। इसके बाद वहाँ थोड़ी हलचल होती है। कुछ लोग अपने बच्चों को यीशु के पास लाते हैं। शायद ये बच्चे अलग-अलग उम्र के हैं, क्योंकि मरकुस ने इन बच्चों के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया, वही शब्द उसने पहले 12 साल की एक बच्ची के लिए इस्तेमाल किया था। जबकि लूका ने इन बच्चों के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया उसका अनुवाद ‘नन्हे-मुन्ने’ किया जा सकता है। (लूका 18:15; मरकुस 5:41, 42; 10:13) इसमें कोई शक नहीं कि बच्चे जहाँ होते हैं वहाँ थोड़ा-बहुत शोरगुल और चहल-पहल भी होती है। यीशु के चेले माता-पिताओं को डाँट देते हैं और उन्हें वहाँ से जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यीशु बहुत ही व्यस्त है, उसके पास बच्चों के लिए बिलकुल भी वक्त नहीं। इस पर यीशु क्या करता है?
3 जब यीशु देखता है कि वहाँ क्या हो रहा है, तो वह नाराज़ हो जाता है। लेकिन किस पर? बच्चों पर? माता-पिताओं पर? नहीं! वह अपने चेलों पर नाराज़ होता है। वह कहता है: “बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि परमेश्वर का राज ऐसों ही का है। मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई परमेश्वर के राज को एक छोटे बच्चे की तरह स्वीकार नहीं करता वह उसमें किसी भी तरह दाखिल न होगा।” फिर यीशु बच्चों को “अपनी बाँहों में” ले लेता है और उन्हें आशीष देता है। (मरकुस 10:13-16) मरकुस के शब्दों से ज़ाहिर होता है कि यीशु ने बड़े प्यार से बच्चों को गले लगाया और एक अनुवादक के मुताबिक शायद उसने कुछ नन्हें-मुन्नों को “अपनी गोद” में खिलाया। इससे साफ पता चलता है कि यीशु बच्चों से बहुत प्यार करता है। लेकिन इस घटना से हम यीशु के बारे में एक और बात सीखते हैं, वह यह कि यीशु के पास कोई भी बेझिझक आ सकता था।
4, 5. (क) हम क्यों इतने यकीन के साथ कह सकते हैं कि यीशु के पास कोई भी बेझिझक आ सकता था? (ख) इस अध्याय में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
4 यीशु अगर कठोर स्वभाव का या घमंडी होता या अगर वह मिलनसार न होता, तो शायद वे बच्चे उसके पास नहीं आते, न ही उनके माता-पिता बेझिझक उसके पास आते। ज़रा इस घटना को अपने मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए। देखिए कि यीशु बच्चों पर अपना प्यार लुटा रहा है, उन्हें आशीष दे रहा है और यह बता रहा है कि परमेश्वर की नज़र में बच्चों का बहुत मोल है। यह सब देखकर बच्चों के माता-पिताओं के चेहरे कैसे खुशी से खिल उठे होंगे! यह सच है कि उस वक्त यीशु के कंधों पर सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी का बोझ था, फिर भी वही एक ऐसा इंसान था जिसके पास कोई भी बेझिझक आ सकता था।
5 और किन लोगों को लगता था कि वे यीशु के पास बेझिझक आ सकते हैं? यीशु में ऐसी क्या बात थी कि लोग उसके पास बेझिझक चले आते थे? इस मामले में हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं? आइए इन सवालों पर गौर करें।
कौन लोग यीशु के पास बेझिझक चले आते थे?
6-8. यीशु अकसर किनके साथ मेल-जोल रखता था? साधारण लोगों की तरफ उसका रवैया धर्म-गुरुओं से कैसे अलग था?
6 खुशखबरी की किताबें पढ़ते वक्त आप शायद इस बात से हैरान रह जाएँ कि यीशु के पास भारी तादाद में लोग आते थे और उन्हें कोई झिझक महसूस नहीं होती थी। मिसाल के तौर पर, हम अकसर पढ़ते हैं कि यीशु के साथ “भीड़-की-भीड़” या “भारी तादाद में लोग” रहते थे। जैसे ‘गलील से भीड़-की-भीड़ उसके पीछे हो ली।’ “भारी तादाद में लोग उसके पास इकट्ठा हो गए।” “भारी तादाद में लोग उसके पास आए।” ‘भीड़-की-भीड़ उसके पास आती रही।’ (मत्ती 4:25; 13:2; 15:30; लूका 5:15) जी हाँ, यीशु को अकसर सैकड़ों-हज़ारों लोग घेरे रहते थे।
7 यीशु के पास आनेवालों में ज़्यादातर साधारण लोग होते थे, जिन्हें धर्म-गुरु “ज़मीन के लोग” कहकर ज़लील करते थे। फरीसी और याजक खुलेआम कहते थे: “ये लोग जो कानून की रत्ती भर भी समझ नहीं रखते, शापित लोग हैं।” (यूहन्ना 7:49) आगे चलकर रब्बियों ने जो लेख लिखे उनसे पक्का हो गया कि फरीसी और याजक ऐसा रवैया रखते थे। कई धर्म-गुरु साधारण लोगों को नीचे तबके का समझते थे। वे न तो उनके साथ खाते-पीते, न उनसे कुछ खरीदते और न ही उनके साथ कोई मेल-जोल रखते थे। कुछ तो यहाँ तक कहते थे कि जो लोग फरीसियों के बनाए मौखिक नियम को नहीं जानते उनके पास पुनरुत्थान की आशा नहीं। इसलिए शायद कई लोग इन धर्म-गुरुओं से मदद या मार्गदर्शन माँगने के बजाय, उनसे दूर भागते होंगे। लेकिन यीशु इन धर्म-गुरुओं से एकदम अलग था।
8 वह साधारण लोगों के साथ बिना किसी भेद-भाव के मेल-जोल रखता था। वह उनके साथ खाता-पीता, उनकी बीमारियाँ ठीक करता, उन्हें सिखाता और उन्हें भविष्य की आशा देता था। यह सच है कि यीशु ने लोगों से कभी हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं की, वह जानता था कि ज़्यादातर लोग यहोवा की सेवा करने का मौका ठुकरा देंगे। (मत्ती 7:13, 14) फिर भी वह हरेक को इस उम्मीद से देखता था कि वह आगे चलकर यहोवा का सेवक बनेगा और जानता था कि कई लोगों में सच्चाई का पक्ष लेने की काबिलीयत है। यीशु उन पत्थर-दिल याजकों और फरीसियों से कितना अलग था! उसके पास कोई भी आ सकता था। ताज्जुब की बात है कि याजक और फरीसी भी उसके पास आते थे। उनमें से कइयों ने अपने तौर-तरीके बदले और यीशु के चेले बन गए। (प्रेषितों 6:7; 15:5) कुछ रईस और ताकतवर लोग भी यीशु के पास बेझिझक चले आते थे।—मरकुस 10:17, 22.
9. स्त्रियाँ क्यों यीशु के पास बेझिझक चली आती थीं?
9 स्त्रियाँ भी यीशु के पास आने से नहीं झिझकती थीं। लेकिन धर्म-गुरु उन्हें जिस हिकारत-भरी नज़र से देखते थे उसे वे अकसर महसूस करती थीं। अगर कोई स्त्रियों को सिखाता तो रब्बी उसे नीची नज़र से देखते थे। स्त्रियों को कानूनी मामलों में गवाही देने की इजाज़त नहीं थी, उनकी गवाही पर भरोसा नहीं किया जाता था। यहाँ तक रब्बी एक ऐसी प्रार्थना भी करते थे जिसमें वे परमेश्वर को धन्यवाद देते थे कि उन्हें स्त्री नहीं बनाया गया है! लेकिन यीशु स्त्रियों की इज़्ज़त करता था और स्त्रियाँ इसे महसूस कर सकती थीं। कई स्त्रियाँ सीखने के लिए उसके पास आती थीं। मसलन, बाइबल में हम पढ़ते हैं कि एक बार लाज़र की बहन मरियम यीशु के पैरों के पास बैठी बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी, जबकि मारथा को खाना बनाने की चिंता लगी थी और उसके लिए भाग-दौड़ कर रही थी। यीशु ने मरियम की सराहना की कि उसने ज़रूरी बातों को पहली जगह दी।—लूका 10:39-42.
10. बीमार लोगों के साथ पेश आने के मामले में, यीशु धर्म-गुरुओं से कैसे अलग था?
10 बीमार लोग भी बड़ी तादाद में यीशु के पास आते थे, हालाँकि कई बार धर्म-गुरु उनके साथ ऐसे पेश आते थे मानो उन्हें समाज से बेदखल कर दिया गया हो। मूसा के कानून में कोढ़ियों को लोगों से अलग रखने के बारे में बताया गया था, ताकि यह बीमारी दूसरों में न फैल जाए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उनके साथ बदसलूकी की जाए। (लैव्यव्यवस्था, अध्याय 13) मगर आगे चलकर रब्बियों के बनाए नियम में यह बताया गया कि कोढ़ियों से उतनी ही घृणा की जानी चाहिए जितनी कि मल-मूत्र से। कुछ धर्म-गुरु तो इस हद तक चले गए कि वे कोढ़ियों को अपने से दूर रखने के लिए उन पर पत्थर फेंकते थे! सोचिए, जब कोढ़ियों के साथ इतना बुरा सलूक किया जाता था, तो क्या कोई कोढ़ी किसी गुरु के पास जाने की हिम्मत करता? लेकिन यीशु के पास कोढ़ी आए। एक कोढ़ी ने अपना विश्वास ज़ाहिर करते हुए कहा: “प्रभु, बस अगर तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” (लूका 5:12) अगले अध्याय में हम देखेंगे कि यीशु ने उसे क्या जवाब दिया। मगर फिलहाल इतना कहना काफी होगा कि यह सबसे बड़ा सबूत है कि यीशु के पास कोई भी बेझिझक आ सकता था।
11. किस उदाहरण से पता चलता है कि जिन्होंने ज़िंदगी में बड़े-बड़े पाप किए थे, वे बेझिझक यीशु के पास आते थे? इस बात पर ध्यान देना क्यों ज़रूरी है?
11 वे लोग भी यीशु के पास बेझिझक आए, जिनका दिल उन्हें धिक्कार रहा था कि उन्होंने ज़िंदगी में बड़े-बड़े पाप किए हैं। उदाहरण के लिए, ज़रा उस घटना के बारे में सोचिए जब यीशु एक फरीसी के घर खाना खा रहा था। एक बदनाम स्त्री वहाँ आयी जिसके बारे में सब जानते थे कि वह पापिन है। उसे अपने किए पर पछतावा था, इसलिए वह यीशु के पैरों पर गिरकर रोने लगी। उसने अपने आँसुओं से यीशु के पैर भिगो दिए और अपने बालों से उसके पैर पोंछे। यह देखकर मेज़बान फरीसी को घृणा होने लगी और वह मन-ही-मन यीशु की कड़ी निंदा करने लगा कि यीशु ने उस स्त्री को क्यों अपने पास आने दिया। लेकिन यीशु ने उस स्त्री का सच्चा पछतावा देखा और इसके लिए उसकी तारीफ की और भरोसा दिलाया कि यहोवा ने उसे माफ कर दिया है। (लूका 7:36-50) आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि उन लोगों की मदद की जाए, जो पछतावे में घुलते जा रहे हैं। उन्हें यह एहसास दिलाने की ज़रूरत है कि वे बेझिझक उन लोगों के पास आ सकते हैं जो परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता दोबारा जोड़ने में उनकी मदद कर सकते हैं। यीशु में ऐसी क्या बात थी, जिसकी वजह से लोग बेझिझक उसके पास चले आते थे?
किस वजह से लोग यीशु के पास बेझिझक आते थे?
12. इसमें क्यों ताज्जुब नहीं कि लोग यीशु के पास बेझिझक चले आते थे?
12 याद रखिए कि यीशु ने स्वर्ग में रहनेवाले अपने प्यारे पिता की हू-ब-हू नकल की। (यूहन्ना 14:9) बाइबल हमें याद दिलाती है कि यहोवा “हममें से किसी से भी दूर नहीं है।” (प्रेषितों 17:27) यहोवा जो ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है, अपने वफादार सेवकों और उन लोगों की प्रार्थनाएँ सुनने के लिए हमेशा तैयार रहता है, जो सच्चे दिल से उसे ढूँढ़ते हैं और उसकी सेवा करना चाहते हैं। (भजन 65:2) ज़रा सोचिए, विश्व के सबसे ताकतवर और सबसे महान शख्स के पास भी हर कोई बेझिझक जा सकता है! अपने पिता की तरह यीशु भी लोगों से प्यार करता है। आगे के अध्यायों में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि यीशु के दिल में लोगों के लिए कितना गहरा प्यार था। यीशु के पास लोग इसलिए बेझिझक चले आते थे, क्योंकि लोगों के लिए उसका प्यार उन्हें साफ दिखायी देता था। आइए यीशु की कुछ ऐसी खासियतों पर गौर करें, जिनसे उसका यह प्यार ज़ाहिर हुआ।
13. माता-पिता यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
13 यीशु लोगों में निजी दिलचस्पी लेता था और यह बात उन्हें आसानी से पता चल जाती थी। ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब यीशु किसी तनाव से गुज़र रहा था, तो उसने लोगों की परवाह करनी छोड़ दी। जैसा कि हम देख चुके हैं जब माता-पिता अपने बच्चों को उसके पास लाए, तब यीशु बहुत व्यस्त था, उस पर भारी ज़िम्मेदारियों का बोझ था, फिर भी उसने बच्चों के लिए समय निकाला। उसने माता-पिताओं के लिए क्या ही बेहतरीन मिसाल रखी! आज की दुनिया में बच्चों की परवरिश करना एक चुनौती है। फिर भी माता-पिताओं के लिए ज़रूरी है कि वे ऐसे बनें कि बच्चे बेझिझक उनके पास आ सकें। अगर आप एक माँ या पिता हैं तो आप जानते होंगे कि कभी-कभी आप इतने व्यस्त होते हैं कि जब बच्चा अपनी कोई ज़रूरत लेकर आपके पास आता है, तो आप उसे समय नहीं दे पाते। क्या उस वक्त आप उसे भरोसा दिला सकते हैं कि अभी तो नहीं लेकिन जल्द-से-जल्द आप उसके लिए समय ज़रूर निकालेंगे? जब आप अपनी बात पर कायम रहेंगे, तो आपका बच्चा सीखेगा कि सब्र रखने से फायदा होता है। वह यह भी सीखेगा कि वह अपनी समस्या या किसी ज़रूरत को लेकर किसी भी समय आपके पास आ सकता है।
14-16. (क) किन हालात की वजह से यीशु ने अपना पहला चमत्कार किया? यह एक हैरतअँगेज़ काम क्यों था? (ख) काना में यीशु ने जो चमत्कार किया उससे उसके बारे में क्या पता चलता है? इससे माता-पिता क्या सबक सीख सकते हैं?
14 यीशु ने लोगों को यह जताया कि जो बातें उन्हें परेशान कर रही हैं, उसे उनकी फिक्र है। मिसाल के लिए, यीशु के पहले चमत्कार पर गौर कीजिए। वह गलील के काना नाम कसबे में एक शादी की दावत में गया हुआ था। वहाँ एक समस्या खड़ी हो गयी, दाख-मदिरा खत्म हो गयी! जब इस बारे में यीशु की माँ मरियम ने उसे बताया, तो उसने क्या किया? उसने नौकरों से पत्थर के छः मटके पानी से भरने के लिए कहा। जब मटकों से पानी लेकर दावत के इंतज़ाम की देख-रेख करनेवाले को चखने के लिए दिया गया, तो उसने पाया कि वह बढ़िया किस्म की दाख-मदिरा है! क्या यह किसी तरह का जादू था? नहीं, पानी सचमुच “दाख-मदिरा में बदल चुका था।” (यूहन्ना 2:1-11) एक चीज़ को दूसरी चीज़ में बदलने का सपना इंसान काफी समय से देखता आया है। पुराने समय के वैज्ञानिकों ने कई बार सीसे को सोने में बदलने की कोशिश की। लेकिन वे कभी कामयाब नहीं हुए, जबकि देखा जाए तो सीसा और सोना लगभग एक ही तरह के तत्व हैं। a लेकिन पानी और दाख-मदिरा के बारे में क्या कहा जा सकता है? रासायनिक भाषा में बात करें तो पानी सिर्फ दो तत्वों से मिलकर बना होता है। लेकिन दाख-मदिरा में कई मूल तत्वों से बने तकरीबन एक हज़ार पदार्थ पाए जाते हैं, जिनमें बहुत-से पदार्थ ऐसे होते हैं जिनकी संरचना काफी जटिल होती है। एक शादी की दावत में, दाख-मदिरा खत्म हो जाने जैसी छोटी-सी समस्या सुलझाने के लिए यीशु ने इतना हैरतअँगेज़ काम क्यों किया?
15 यह समस्या हमें छोटी लग सकती है, लेकिन दूल्हा-दुलहन के लिए यह छोटी बात नहीं थी। प्राचीन इसराएल में घर आए मेहमानों की मेहमाननवाज़ी करने को बहुत अहमियत दी जाती थी। शादी की दावत में दाख-मदिरा के खत्म हो जाने से दूल्हा-दुलहन को बहुत शर्मिंदा होना पड़ता। इससे शादी की खुशियों पर ग्रहण लग जाता और सालों तक यह बात फाँस बनकर उनके दिल में चुभती रहती। यह समस्या उनके लिए मायने रखती थी, इसलिए यीशु के लिए भी। इसी वजह से यीशु ने इसका समाधान किया। क्या अब आप समझे कि क्यों लोग अपनी समस्याओं को लेकर बेझिझक यीशु के पास आते थे?
16 इस घटना से भी माता-पिता एक बढ़िया सबक सीख सकते हैं। मान लीजिए आपका बच्चा अपनी कोई समस्या लेकर आपके पास आता है। शायद आपको लगे कि उसकी समस्या कुछ खास नहीं है और उसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। या उसकी बातों पर आपको हँसी भी आए। आपकी बड़ी-बड़ी समस्याओं की तुलना में बच्चे की समस्या वाकई छोटी लग सकती है। मगर याद रखिए, बच्चे के लिए वह समस्या छोटी नहीं है! अगर वह समस्या आपके बच्चे के लिए मायने रखती है, जिसे आप बेइंतहा प्यार करते हैं, तो क्या वह आपके लिए भी मायने नहीं रखनी चाहिए? अपने बच्चे को जताइए कि जो बातें उसे परेशान कर रही हैं, उनकी आपको फिक्र है। इससे बच्चा कभी भी बेझिझक आपके पास आ पाएगा।
17. कोमलता दिखाने में यीशु ने कैसी मिसाल रखी? यह क्यों कहा जा सकता है कि कोमलता ताकत की निशानी है?
17 जैसा कि हमने अध्याय 3 में देखा, यीशु कोमल और नम्र स्वभाव का था। (मत्ती 11:29) कोमलता एक लाजवाब गुण है और जो इंसान कोमल स्वभाव का होता है वह दिल से नम्र होता है। कोमलता परमेश्वर की पवित्र शक्ति के फल का एक पहलू है और इसका परमेश्वर से मिलनेवाली बुद्धि से नाता है। (गलातियों 5:22, 23; याकूब 3:13) यीशु ने हमेशा खुद पर काबू रखा, यहाँ तक कि उस वक्त भी जब उसे भड़काने की बहुत कोशिश की गयी। उसने जो कोमलता दिखायी वह कोई कमज़ोरी नहीं थी। इस गुण के बारे में एक विद्वान ने कहा: “कोमलता में फौलाद जैसी ताकत होती है।” सचमुच, अपना गुस्सा काबू में रखने और दूसरों के साथ कोमलता से पेश आने के लिए ताकत की ज़रूरत होती है। लेकिन अगर हम इसके लिए मेहनत करेंगे, तो यहोवा हमारी मदद ज़रूर करेगा और हम कोमलता दिखाने में यीशु की मिसाल पर चल पाएँगे। नतीजा, लोग बेझिझक हमारे पास आ पाएँगे।
18. कौन-सी घटना दिखाती है कि यीशु दूसरों का लिहाज़ करता था? आपको क्यों लगता है कि अगर एक इंसान में यह गुण होगा तो लोग उसके पास बेझिझक आ पाएँगे?
18 यीशु लोगों का लिहाज़ करता था। जब यीशु सोर इलाके में था तब एक स्त्री उसके पास आयी, जिसकी बेटी को “दुष्ट स्वर्गदूत ने बुरी तरह काबू में कर रखा” था। यीशु ने तीन अलग-अलग तरीकों से उस पर ज़ाहिर किया कि वह उसकी बेटी को ठीक नहीं करेगा। पहला, उसने स्त्री की बात का कोई जवाब नहीं दिया, वह चुप रहा। दूसरा, उसने स्त्री को बताया कि वह क्यों उसकी बेटी को ठीक नहीं करेगा। तीसरा, उसने एक मिसाल देकर यह बात और भी साफ कर दी। स्त्री से बात करते वक्त क्या यीशु उसके साथ कठोरता से पेश आया और दिखाया कि चाहे कुछ हो जाए वह अपनी बात पर अड़ा रहेगा? या क्या उसने दिखाया कि यीशु जैसे महान इंसान के मना करने के बावजूद उससे गुज़ारिश करके वह स्त्री बहुत बड़ा खतरा मोल ले रही है? नहीं, वह स्त्री बिना डरे यीशु से बिनती कर रही थी। वह एक बार यीशु से मदद की गुहार लगाकर शांत नहीं हो गयी। यीशु के मना करने के बावजूद वह उससे मदद की भीख माँगती रही। यीशु ने देखा कि स्त्री में गज़ब का विश्वास है, तभी वह बार-बार बिनती कर रही है। इसलिए यीशु ने उसकी बेटी को चंगा कर दिया। (मत्ती 15:22-28) वाकई, यीशु दूसरों का लिहाज़ करता था, यानी उनकी सुनता था और जहाँ सही होता था उनकी बात मान लेता था। इस वजह से लोग बेझिझक उसके पास आते थे।
क्या आपके पास लोग बेझिझक आते हैं?
19. हम यह कैसे पता लगा सकते हैं कि हम सचमुच ऐसे हैं, जिसके पास कोई भी बेझिझक आ सके?
19 हर कोई अपने बारे में यही सोचता है कि वह ऐसा इंसान है जिसके पास लोग बेझिझक आ सकते हैं। मसलन, अधिकार के पद पर बैठे कुछ लोग बड़ी शान से कहते हैं कि उनका दरवाज़ा सभी के लिए खुला है, उनके मातहत काम करनेवाले उनके पास किसी भी समय बेझिझक आ सकते हैं। लेकिन बाइबल में यह ज़बरदस्त चेतावनी दी गयी है: “बहुत से मनुष्य अपनी कृपा का प्रचार करते हैं; परन्तु सच्चा पुरुष कौन पा सकता है?” (नीतिवचन 20:6) यह कहना तो आसान है कि हमारे पास कोई भी बेझिझक आ सकता है, लेकिन क्या प्यार दिखाने के इस मामले में हम सचमुच यीशु की मिसाल पर चल रहे हैं? जवाब हम नहीं दे सकते, दूसरे ही बता सकते हैं कि वे हमें इस कसौटी पर कितना खरा पाते हैं। पौलुस ने कहा: “सब लोग यह जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो।” (फिलिप्पियों 4:5) हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए: ‘लोगों की नज़र में मैं कैसा इंसान हूँ? क्या लोगों के बीच मेरा अच्छा नाम है?’
20. (क) प्राचीनों को क्यों ऐसा होना चाहिए कि लोग उनके पास बेझिझक आ सकें? (ख) हमें क्यों प्राचीनों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए?
20 मसीही प्राचीन खास तौर पर ऐसा बनने की कोशिश करते हैं कि लोग उनके पास बेझिझक आ सकें। वे यशायाह 32:1, 2 में लिखी बात पर खरा उतरने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। वहाँ लिखा है: “हर एक मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।” एक प्राचीन इस तरह की सुरक्षा, ताज़गी और राहत सिर्फ तभी दे सकता है, अगर वह ऐसा इंसान हो जिसके पास लोग बेझिझक आ सकें। माना कि ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता, क्योंकि संकटों से भरे इस वक्त में प्राचीनों पर काफी ज़िम्मेदारियाँ हैं। इसके बावजूद, प्राचीन कभी भी यह नहीं दिखाना चाहते कि वे बहुत व्यस्त हैं और उनके पास यहोवा की भेड़ों की देखभाल करने की फुरसत नहीं है। (1 पतरस 5:2) मंडली के दूसरे सदस्य इन वफादार पुरुषों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करते, वे नम्रता दिखाते हुए उनका साथ देते हैं।—इब्रानियों 13:17.
21. माता-पिता कैसे यह कोशिश कर सकते हैं कि बच्चे बेझिझक उनके पास आएँ? अगले अध्याय में हम किस बात पर चर्चा करेंगे?
21 माता-पिता हमेशा यही कोशिश करते हैं कि उनके बच्चे बेझिझक उनके पास आ सकें। ऐसा करना बेहद ज़रूरी है! वे चाहते हैं कि उनके बच्चे यह जानें कि वे मम्मी-पापा को बिना डरे अपने दिल की बात बता सकते हैं। इसलिए मसीही माता-पिता ध्यान रखते हैं कि वे अपने बच्चों के साथ कोमलता से पेश आएँ और उनका लिहाज़ करें। जब बच्चा अपनी किसी गलती के बारे में बताता है या उसकी बातों से उसकी गलत सोच ज़ाहिर होती है, तो माता-पिता शांति से काम लेते हैं। वे बच्चों को सब्र से तालीम देते हैं और कोशिश करते हैं कि उनके और बच्चों के बीच हमेशा खुलकर बातचीत हो। वाकई, हम सब यीशु की तरह ऐसा इंसान बनना चाहते हैं जिसके पास दूसरे बेझिझक आ सकें। अगले अध्याय में हम यीशु के एक खास गुण पर चर्चा करेंगे, जिसकी वजह से लोग बेझिझक उसके पास आते थे। वह यह कि यीशु दिल से करुणा दिखाता था।
a रसायन विज्ञान के विद्यार्थी जानते हैं कि पीरियोडिक टेबल में सीसे और सोने को एक-दूसरे के बहुत पास रखा गया है। सोने के परमाणु के नाभिक में जितने प्रोटोन होते हैं, सीसे के नाभिक में उससे सिर्फ तीन प्रोटोन ज़्यादा होते हैं। आधुनिक युग में भौतिक वैज्ञानिकों ने सीसे की थोड़ी-सी मात्रा को सोने में बदला है। लेकिन ऐसा करने में इतनी अधिक उर्जा खर्च होती है कि यह सोने की कीमत से भी ज़्यादा महँगी पड़ती है।