अध्याय 2
“राह, सच्चाई और जीवन”
1, 2. हम अपने बलबूते यहोवा के करीब क्यों नहीं आ सकते? इस सिलसिले में यीशु कैसे हमारी मदद करता है?
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप किसी दोस्त या रिश्तेदार से मिलने जा रहे थे और आप रास्ता भटक गए? ऐसे में क्या आपने रुककर किसी से सही रास्ता पूछा? अगर कोई दयालु आदमी रास्ता बताने के साथ-साथ आपसे कहे, “आइए, मैं आपको वहाँ ले चलता हूँ। बस मेरे पीछे चलते रहिए,” तो आप कैसा महसूस करेंगे? आप ज़रूर राहत की साँस लेंगे!
2 यीशु मसीह भी हमारे लिए कुछ ऐसा ही करता है। हम अपने बलबूते परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते। वह इसलिए कि आदम से मिले पाप और असिद्धता की वजह से पूरी मानवजाति सही राह से भटक गयी है और “उस ज़िंदगी से दूर [है] जो परमेश्वर देता है।” (इफिसियों 4:17, 18) सही राह ढूँढ़ने में हमें मदद चाहिए। हमारा दयालु आदर्श यीशु इस सिलसिले में हमारी मदद करता है। वह न सिर्फ हमें यहोवा के करीब आने की सलाह देता और सही राह बताता है बल्कि कुछ और भी करता है। जैसा हमने अध्याय 1 में देखा था, यीशु हमें न्यौता देता है: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” (मरकुस 10:21) वह हमें इस न्यौते को कबूल करने की ठोस वजह भी बताता है। एक मौके पर यीशु ने कहा: “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूहन्ना 14:6) आइए कुछ वजहों पर गौर करें कि क्यों सिर्फ बेटे के ज़रिए ही हम पिता के पास आ सकते हैं। फिर उन वजहों को मन में रखते हुए हम देखेंगे कि कैसे यीशु ही “वह राह, सच्चाई और जीवन” है।
यहोवा के मकसद में एक अहम भूमिका
3. सिर्फ यीशु के ज़रिए ही परमेश्वर के करीब आना क्यों मुमकिन है?
3 सिर्फ यीशु के ज़रिए ही परमेश्वर के करीब आना मुमकिन है, इसकी पहली और अहम वजह है कि यहोवा ने अपने मकसद में अपने बेटे को सबसे अहम भूमिका निभाने के लिए चुना है। a (2 कुरिंथियों 1:20; कुलुस्सियों 1:18-20) बेटे की इस अहम भूमिका को समझने के लिए हमें जानना होगा कि अदन के बाग में क्या हुआ, जब पहले इंसानी जोड़े ने शैतान के साथ मिलकर यहोवा के खिलाफ बगावत की।—उत्पत्ति 2:16, 17; 3:1-6.
4. अदन में हुई बगावत से कौन-सा मसला खड़ा हुआ? इस मसले को सुलझाने के लिए यहोवा ने क्या किया?
4 अदन में हुई बगावत से एक ऐसा मसला खड़ा हुआ जिसका असर स्वर्ग और पृथ्वी के सारे प्राणियों पर पड़ा। वह था, क्या यहोवा परमेश्वर स्वर्गदूतों और इंसानों पर सही तरह हुकूमत करता है? इस अहम मसले को सुलझाने के लिए यहोवा ने तय किया कि स्वर्ग में से उसका एक सिद्ध बेटा धरती पर आएगा। इस बेटे को एक भारी काम सौंपा गया। उसे अपनी जान कुरबान करनी थी ताकि यहोवा की हुकूमत बुलंद हो सके और इंसानों के उद्धार के लिए फिरौती की कीमत अदा की जा सके। अपनी आखिरी साँस तक वफादार रहकर यह बेटा उन तमाम समस्याओं को मिटाना मुमकिन बनाता जो शैतान की बगावत से शुरू हुई थीं। (इब्रानियों 2:14, 15; 1 यूहन्ना 3:8) लेकिन स्वर्ग में यहोवा के लाखों-करोड़ों सिद्ध बेटे थे। (दानिय्येल 7:9, 10) इस खास काम के लिए उसने किसे चुना? यहोवा ने अपना “इकलौता बेटा” चुना, जो आगे चलकर यीशु मसीह के नाम से जाना गया।—यूहन्ना 3:16.
5, 6. यहोवा ने कैसे दिखाया कि उसे अपने बेटे पर पूरा भरोसा है? उसे इतना भरोसा क्यों था?
5 क्या हमें यहोवा के चुनाव पर ताज्जुब करना चाहिए? बिलकुल नहीं! यहोवा को अपने इकलौते बेटे पर पूरा भरोसा था। धरती पर उसके आने से सदियों पहले यहोवा ने भविष्यवाणी की कि यह बेटा तरह-तरह की यातनाएँ और तकलीफें सहकर भी वफादार रहेगा। (यशायाह 53:3-7, 10-12; प्रेषितों 8:32-35) ध्यान दीजिए कि यहोवा का यह भरोसा क्यों गौरतलब है। बाकी बुद्धिमान प्राणियों की तरह यह बेटा भी आज़ाद मरज़ी का मालिक था और अपना फैसला खुद कर सकता था। फिर भी, यहोवा को उस पर इतना एतबार था कि उसने पहले ही बता दिया कि उसका बेटा वफादार साबित होगा। उसे इतना भरोसा क्यों था? सीधे शब्दों में कहें तो वह अपने बेटे को बहुत अच्छी तरह जानता था। उसे मालूम था कि उसका बेटा उसे खुश करने की ज़बरदस्त ख्वाहिश रखता है। (यूहन्ना 8:29; 14:31) बेटे को अपने पिता से बहुत प्यार था और यहोवा भी अपने बेटे से बेइंतिहा प्यार करता था। (यूहन्ना 3:35) इसी प्यार की वजह से उनके बीच एकता और भरोसे का अटूट बंधन कायम हुआ।—कुलुस्सियों 3:14.
6 अब तक हमने देखा कि परमेश्वर के मकसद में उसके बेटे की अहम भूमिका है, पिता को अपने बेटे पर पूरा भरोसा है और उन दोनों के बीच प्यार का अटूट बंधन है। तो क्या इसमें कोई हैरत की बात है कि सिर्फ यीशु के ज़रिए ही हम परमेश्वर के करीब आ सकते हैं? लेकिन इन वजहों के अलावा एक और वजह है कि क्यों सिर्फ बेटा ही हमें पिता के पास ले जा सकता है।
सिर्फ बेटा ही पिता को पूरी तरह जानता है
7, 8. यीशु का यह कहना क्यों सही है कि “सिवा बेटे के” पिता को पूरी तरह कोई नहीं जानता?
7 अगर हम यहोवा के करीब आना चाहते हैं तो हमें कुछ माँगें पूरी करनी होंगी। (भजन 15:1-5) यीशु से बेहतर हमें कौन बता सकता है कि परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक जीने और उसकी मंज़ूरी पाने के लिए क्या करना ज़रूरी है? उसने कहा: “मेरे पिता ने सबकुछ मेरे हवाले किया है, और कोई बेटे को पूरी तरह नहीं जानता सिवा पिता के, न ही पिता को कोई पूरी तरह जानता है सिवा बेटे के और सिवा उसके जिस पर बेटा उसे प्रकट करना चाहे।” (मत्ती 11:27) यीशु का यह कहना कि “सिवा बेटे के” पिता को पूरी तरह कोई नहीं जानता, एकदम सही है और बढ़ा-चढ़ाकर कही बात नहीं है। क्यों? आइए देखें।
8 “सारी सृष्टि में पहलौठा” होने के नाते, यीशु का अपने पिता के साथ बहुत ही खास और करीबी रिश्ता है। (कुलुस्सियों 1:15) उसकी सृष्टि से लेकर बाकी स्वर्गदूतों के बनाए जाने तक, अरबों-खरबों साल बीत गए और इस दौरान पूरे जहान में सिर्फ यहोवा और उसका बेटा ही था। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इतने सालों तक साथ रहने से उनके बीच कितना गहरा और करीबी रिश्ता कायम हुआ होगा? (यूहन्ना 1:3; कुलुस्सियों 1:16, 17) ज़रा सोचिए, इस बेटे को अपने पिता के विचारों को जानने-समझने, उसकी मरज़ी, स्तरों और तौर-तरीकों के बारे में सीखने का क्या ही सुनहरा मौका मिला होगा! सचमुच, यह कहना गलत नहीं है कि पिता को यीशु से बेहतर और कोई नहीं जान सकता। इस करीबी रिश्ते की बदौलत, यीशु यहोवा को उन तरीकों से ज़ाहिर कर पाया, जिन तरीकों से कोई दूसरा नहीं कर सकता था।
9, 10. (क) यीशु ने किन तरीकों से अपने पिता की शख्सियत ज़ाहिर की? (ख) यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए हमें क्या करना होगा?
9 यीशु ने अपनी शिक्षाओं से ज़ाहिर किया कि यहोवा फलाँ मामले के बारे में क्या सोचता है और कैसा महसूस करता है। और यह भी कि वह अपने उपासकों से क्या चाहता है। b यीशु ने एक और बढ़िया तरीके से अपने पिता की शख्सियत ज़ाहिर की। उसने कहा: “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” (यूहन्ना 14:9) यीशु अपनी हर बात और हर काम में हू-ब-हू अपने पिता जैसा था। इसलिए जब हम बाइबल में पढ़ते हैं कि यीशु दमदार और दिल जीतनेवाली बातों से लोगों को सिखाता था, करुणा से उभारे जाकर बीमारों को चंगा करता था और दूसरों का दर्द महसूस कर रो पड़ता था, तो हम सोच सकते हैं कि अगर पिता उसकी जगह होता तो ऐसा ही करता। (मत्ती 7:28, 29; मरकुस 1:40-42; यूहन्ना 11:32-36) यीशु ने अपनी बातों और कामों से बहुत अच्छी तरह दिखाया कि उसके पिता के काम करने का तरीका और उसकी मरज़ी क्या है। (यूहन्ना 5:19; 8:28; 12:49, 50) इसलिए, यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए हमें यीशु की शिक्षाओं को मानना होगा और उसकी मिसाल पर चलना होगा।—यूहन्ना 14:23.
10 यीशु, अपने पिता को बहुत करीबी से जानता है और हू-ब-हू उसकी नकल करता है। इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि यहोवा ने हमें अपने पास आने के लिए यीशु को ज़रिया ठहराया है। अब हम अच्छी तरह समझ गए हैं कि क्यों सिर्फ बेटे के ज़रिए ही हम पिता के पास आ सकते हैं। आइए अब हम देखें कि यीशु के इन शब्दों का क्या मतलब है: “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।”—यूहन्ना 14:6.
“मैं ही वह राह . . . हूँ”
11. (क) क्यों सिर्फ यीशु के ज़रिए ही हम परमेश्वर के साथ अच्छा रिश्ता बना सकते हैं? (ख) यूहन्ना 14:6 के शब्द कैसे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि यीशु की भूमिका बेजोड़ है? (फुटनोट देखिए।)
11 अब तक हमने सीखा कि सिर्फ यीशु के ज़रिए ही परमेश्वर के पास आना मुमकिन है। आइए करीबी से जाँचें कि यह बात हमारे लिए क्या मायने रखती है। यीशु “ही वह राह” है, यानी सिर्फ उसी के ज़रिए हम परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता बना सकते हैं और उसकी मंज़ूरी पा सकते हैं। c वह क्यों? यीशु ने मरते दम तक वफादार रहकर अपनी ज़िंदगी फिरौती बलिदान के तौर पर दे दी। (मत्ती 20:28) फिरौती के इस इंतज़ाम के बगैर, परमेश्वर के करीब आना हमारे लिए नामुमकिन है। क्योंकि हम पापी हैं जबकि परमेश्वर पवित्र है और पाप को कभी मंज़ूर नहीं कर सकता। इसलिए यह पाप हमारे और परमेश्वर के बीच एक दीवार खड़ी कर देता है। (यशायाह 6:3; 59:2) लेकिन यीशु के बलिदान ने यह दीवार ढा दी और हमारे पापों को ढक दिया। (इब्रानियों 10:12; 1 यूहन्ना 1:7) अगर हम यहोवा के इस इंतज़ाम को कबूल करें और उस पर विश्वास रखें, तो हम यहोवा की मंज़ूरी पा सकते हैं। वाकई “परमेश्वर के साथ हमारी सुलह” होने का इससे बेहतर रास्ता और कोई नहीं!—रोमियों 5:6-11.
12. यीशु किन मायनों में “राह” है?
12 प्रार्थना के मामले में भी यीशु “राह” है। सिर्फ यीशु के ज़रिए ही हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं और यह भरोसा रख सकते हैं कि वह दिल से की गयी हमारी बिनतियाँ सुनेगा। (1 यूहन्ना 5:13, 14) खुद यीशु ने कहा: “अगर तुम पिता से कुछ भी माँगोगे तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। . . . माँगो और तुम पाओगे, ताकि तुम्हारी खुशी भरपूर हो जाए।” (यूहन्ना 16:23, 24) इसलिए यीशु के नाम से यहोवा से प्रार्थना करना और उसे ‘हमारा पिता’ कहना सही होगा। (मत्ती 6:9) यीशु इस मायने में भी “राह” है कि उसने हमारे सामने एक मिसाल रखी। जैसा कि पहले बताया गया था, वह एकदम अपने पिता जैसा है। उसकी मिसाल से हम सीखते हैं कि हम ऐसी ज़िंदगी कैसे जी सकते हैं जिससे यहोवा खुश हो। इसलिए यहोवा के करीब आने के लिए हमें यीशु के नक्शे-कदम पर चलना होगा।—1 पतरस 2:21.
‘मैं ही वह सच्चाई हूँ’
13, 14. (क) यीशु किस तरह अपनी बातों में सच्चा था? (ख) यीशु को क्या करना था जिससे उसके बारे में की गयी सारी भविष्यवाणियाँ पूरी हो सकें? उसके ऐसा करने से क्या साबित होगा?
13 यीशु ने अपने पिता के भविष्यवाणी के वचन के बारे में हमेशा सच बोला। (यूहन्ना 8:40, 45, 46) उसके मुँह से कभी छल की कोई बात नहीं निकली। (1 पतरस 2:22) यहाँ तक कि उसके दुश्मनों ने भी कबूल किया कि वह “सच्चाई के मुताबिक परमेश्वर का मार्ग” सिखाता है। (मरकुस 12:13, 14) लेकिन जब यीशु ने कहा कि ‘मैं ही वह सच्चाई हूँ’ तो उसका मतलब सिर्फ यह नहीं था कि उसने अपनी बातों, प्रचार और सिखाने के काम में सच्चाई बयान की। इसमें कुछ और भी शामिल था।
14 याद कीजिए, यहोवा ने बाइबल के लेखकों को मसीहा के आने से सदियों पहले उसके बारे में ढेरों भविष्यवाणियाँ दर्ज़ करने की प्रेरणा दी थी। इन भविष्यवाणियों में मसीहा की ज़िंदगी, सेवा और उसकी मौत के बारे में एक-एक बात बतायी गयी थी। इसके अलावा, मूसा के कानून में जिन आनेवाली बातों की छाया थी वह मसीहा की ओर इशारा करती थी। (इब्रानियों 10:1) क्या यीशु मरते दम तक वफादार रहकर अपने बारे में की गयी सारी भविष्यवाणियाँ पूरी करेगा? सिर्फ तभी यह साबित हो पाएगा कि यहोवा, सच्ची भविष्यवाणियों का परमेश्वर है। यीशु के कंधों पर वाकई बहुत भारी ज़िम्मेदारी थी। यीशु ने अपनी हर बात और हर काम से, जी हाँ अपने जीने के तरीके से आनेवाली बातों की छाया को हकीकत का रूप दिया। (2 कुरिंथियों 1:20) तो फिर, यीशु इस मायने में “सच्चाई” था कि उसके बारे में की गयी यहोवा की सारी भविष्यवाणियाँ उसमें पूरी हुईं।—यूहन्ना 1:17; कुलुस्सियों 2:16, 17.
“मैं ही वह . . . जीवन हूँ”
15. बेटे पर विश्वास दिखाने का क्या मतलब है? इससे हमें क्या फायदा होगा?
15 यीशु “जीवन” है, क्योंकि सिर्फ उसी के ज़रिए हमें “असली ज़िंदगी” यानी हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है। (1 तीमुथियुस 6:19) बाइबल कहती है: “जो बेटे पर विश्वास दिखाता है, हमेशा की ज़िंदगी उसकी है। जो बेटे की आज्ञा नहीं मानता वह ज़िंदगी नहीं पाएगा, बल्कि परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है।” (यूहन्ना 3:36) परमेश्वर के बेटे पर विश्वास दिखाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है, यह यकीन करना कि यीशु के बगैर हमें ज़िंदगी नहीं मिल सकती। इसके अलावा, हमें अपने कामों से अपने विश्वास का सबूत देना होगा, यीशु से लगातार सीखना होगा और उसकी शिक्षाओं और मिसाल पर चलने की जी-तोड़ कोशिश करनी होगी। (याकूब 2:26) इस तरह, परमेश्वर के बेटे पर विश्वास दिखाने से हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। अभिषिक्त मसीहियों के “छोटे झुंड” को स्वर्ग में अमर जीवन मिलेगा। और ‘दूसरी भेड़ों’ की “बड़ी भीड़” को इसी धरती पर फिरदौस में सिद्ध ज़िंदगी मिलेगी।—लूका 12:32; 23:43; प्रकाशितवाक्य 7:9-17; यूहन्ना 10:16.
16, 17. (क) यीशु किस तरह उन लोगों के लिए भी “जीवन” साबित होगा जो मौत की नींद सो रहे हैं? (ख) हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?
16 मगर उन लोगों के बारे में क्या, जो मौत की नींद सो रहे हैं? यीशु उनके लिए भी “जीवन” है। अपने दोस्त लाज़र को जी उठाने से पहले, यीशु ने उसकी बहन मारथा से कहा: “मरे हुओं का जी उठना और जीवन मैं ही हूँ। जो मुझमें विश्वास दिखाता है, वह चाहे मर जाए, तो भी जी उठेगा।” (यूहन्ना 11:25) यहोवा ने अपने बेटे को “मौत और कब्र की चाबियाँ” सौंपी है, यानी मरे हुओं को ज़िंदा करने की ताकत दी है। (प्रकाशितवाक्य 1:17, 18) इन चाबियों की मदद से, महिमा से भरपूर यीशु कब्र के दरवाज़े खोल देगा और उसमें कैद लोगों को छुड़ाएगा।—यूहन्ना 5:28, 29.
17 “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ,” इन चंद शब्दों में यीशु ने बताया कि धरती पर उसकी ज़िंदगी और सेवा का क्या मकसद है। ये शब्द आज हमारे लिए गहरा अर्थ रखते हैं। याद कीजिए कि यीशु ने इसके बाद क्या कहा: “कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूहन्ना 14:6) यीशु के ये शब्द उसके ज़माने में जितनी अहमियत रखते थे, आज भी उतनी ही अहमियत रखते हैं। इसलिए हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि अगर हम यीशु के पीछे-पीछे चलें, तो हम कभी-भी रास्ता नहीं भूलेंगे। वही अकेला हमें “पिता के पास” ले जा सकता है।
आप क्या करेंगे?
18. यीशु के सच्चे चेले होने में क्या शामिल है?
18 जैसा कि हमने देखा, परमेश्वर के मकसद में यीशु की एक अहम भूमिका है और वह अपने पिता को करीबी से जानता है। इसलिए उसके पीछे हो लेने की हमारे पास ठोस वजह है। हमने पिछले अध्याय में सीखा था कि यीशु के चेले होने का सिर्फ दावा करना या उसके लिए अपने मन में गहरी भावनाएँ रखना काफी नहीं। हमें अपने कामों से भी दिखाना होगा कि हम उसके सच्चे चेले हैं। मसीह के पीछे हो लेने में शामिल है कि हम अपनी ज़िंदगी को उसकी शिक्षाओं के मुताबिक ढालें और उसके नक्शे-कदम पर चलें। (यूहन्ना 13:15) ऐसा करने में यह किताब आपकी मदद करेगी।
19, 20. इस किताब की कुछ खासियतें बताइए जो आपको मसीह के पीछे हो लेने में मदद करेंगी?
19 आगे के अध्यायों में हम, यीशु की ज़िंदगी और उसकी सेवा के बारे में गहराई से अध्ययन करेंगे। इन अध्यायों को तीन भागों में बाँटा गया है। पहले भाग में हम उसके गुणों और काम करने के तरीकों के बारे में चर्चा करेंगे। दूसरे भाग में हम देखेंगे कि जोश के साथ प्रचार करने और सिखाने में, उसने हमारे लिए क्या उदाहरण रखा। तीसरे भाग में हम ध्यान देंगे कि उसने किस तरह अपना प्यार ज़ाहिर किया। अध्याय 3 से एक बक्स दिया गया है, जिसका शीर्षक है: “आप यीशु के पीछे कैसे चल सकते हैं?” उसमें दिए सवालों और आयतों की मदद से हम मनन कर सकते हैं कि हम अपनी बातों और कामों में यीशु के नक्शे-कदम पर कैसे चल सकते हैं।
20 यहोवा का लाख-लाख शुक्र है कि आपको सही राह की खोज में भटकना नहीं पड़ेगा और न ही विरासत में मिले पाप की वजह से उससे दूर रहना पड़ेगा। उसने हमारी खातिर भारी कीमत चुकाकर अपने बेटे को धरती पर भेजा, जो हमें उसके साथ एक अच्छा रिश्ता कायम करने की राह दिखाता है। (1 यूहन्ना 4:9, 10) “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले,” यीशु के इस न्यौते को कबूल करने और उसके मुताबिक काम करने के ज़रिए आप यहोवा के महान प्यार का जवाब प्यार से दे पाएँगे। हमारी दुआ है कि ऐसा करने के लिए आपका दिल आपको उभारे!—यूहन्ना 1:43.
a बेटे की भूमिका इतनी अहम है कि बाइबल की भविष्यवाणियों में उसे बहुत-से नाम और उपाधियाँ दी गयी हैं।— पेज 23 पर दिया बक्स देखिए।
b उदाहरण के लिए, यीशु के शब्दों पर गौर कीजिए, जो मत्ती 10:29-31; 18:12-14, 21-35; 22:36-40 में दर्ज़ हैं।
c मूल भाषा में यूहन्ना 14:6 का व्याकरण इस बात पर ज़ोर देता है कि यीशु की भूमिका बेजोड़ है। सिर्फ वही राह है यानी पिता के करीब आने का एकमात्र ज़रिया।