अध्याय 10
“यह लिखा है”
1-3. यीशु नासरत के लोगों को किस नतीजे पर पहुँचने में मदद देना चाहता था? इसके लिए उसने क्या सबूत पेश किया?
यीशु को प्रचार काम शुरू किए ज़्यादा समय नहीं हुआ है। वह अपने नगर नासरत लौटता है। उसका मकसद है कि वह लोगों को इस नतीजे पर पहुँचने में मदद दे कि बाइबल में जिस मसीहा के आने के बारे में वादा किया गया था, वह कोई और नहीं बल्कि वह खुद है! इस बात का वह क्या सबूत पेश करता है?
2 इसमें कोई शक नहीं कि वहाँ कई लोग यह आस लगाए बैठे थे कि यीशु उनके बीच चमत्कार करेगा। उन्होंने यीशु के चमत्कारों के बारे में सुना था। लेकिन यहाँ आकर उसने कोई चमत्कार नहीं किया। इसके बजाय वह अपने दस्तूर के मुताबिक सभा-घर में गया। वहाँ वह पढ़ने के लिए खड़ा हुआ और उसके हाथ में भविष्यवक्ता यशायाह का खर्रा दिया गया। वह बहुत ही लंबा खर्रा था, जिसे दो छड़ों पर लपेटा गया था। यीशु ने ध्यान से खर्रा खोला और वह भाग निकाला जिसे वह पढ़ना चाहता था। फिर उसने उस भाग को पढ़ा जो आज हम यशायाह 61:1-3 में पढ़ते हैं।—लूका 4:16-19.
3 सभा-घर में मौजूद सभी लोग इस भाग से अच्छी तरह वाकिफ थे। यह भविष्यवाणी मसीहा के बारे में थी। सभा-घर में सब लोगों की नज़रें यीशु पर टिकी थीं। चारों तरफ खामोशी छाई हुई थी। फिर यीशु उन्हें खुलकर समझाने लगा: “यह शास्त्रवचन जो तुमने अभी-अभी सुना, वह आज पूरा हुआ है।” वहाँ हाज़िर लोग उसकी दिल जीतनेवाली बातों पर ताज्जुब करने लगे, मगर कई लोग अभी भी चाहते थे कि यीशु कोई चमत्कार दिखाए। लेकिन यीशु ने बड़ी हिम्मत के साथ शास्त्र से उदाहरण देकर उनके विश्वास की कमी का खुलासा किया। यीशु की बात सुनकर नासरत के लोग उसे जान से मार डालने पर उतारू हो गए।—लूका 4:20-30.
4. यीशु ने अपनी सेवा के दौरान कैसा नमूना रखा? इस अध्याय में हम किन बातों पर चर्चा करेंगे?
4 यीशु ने यहाँ जो नमूना रखा, उस पर वह अपनी पूरी सेवा के दौरान चला। वह हमेशा परमेश्वर के प्रेरित वचन से ही लोगों को सिखाता था और उसी के मुताबिक काम करता था। बेशक उसके चमत्कारों से यह साफ हो गया कि परमेश्वर की पवित्र शक्ति उस पर है। लेकिन यीशु के लिए पवित्र शास्त्र से बढ़कर कोई चीज़ मायने नहीं रखती थी। आइए देखें कि इस मामले में उसने क्या मिसाल रखी। हम देखेंगे कि हमारे प्रभु ने कैसे परमेश्वर के वचन का हवाला दिया, उसकी पैरवी की और उसे समझाया।
परमेश्वर के वचन का हवाला देना
5. यीशु अपने सुननेवालों को क्या बताना चाहता था? उसने यह कैसे दिखाया कि उसकी बातें सच हैं?
5 यीशु चाहता था कि लोग जानें कि उसका संदेश किसकी तरफ से है। उसने कहा: “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।” (यूहन्ना 7:16) एक और बार यीशु ने कहा: “मैं अपनी पहल पर कुछ भी नहीं करता, बल्कि जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ।” (यूहन्ना 8:28) एक दूसरे मौके पर उसने कहा: “मैं जो बातें तुमसे कहता हूँ वे अपनी तरफ से नहीं कहता, बल्कि पिता है जो अपने काम कर रहा है और मेरे साथ एकता में रहता है।” (यूहन्ना 14:10) यीशु ने अपनी इन बातों को सच साबित करने के लिए बार-बार परमेश्वर के वचन से हवाले दिए।
6, 7. (क) यीशु ने इब्रानी शास्त्र की कितनी किताबों से हवाले दिए और इस बात से क्यों ताज्जुब होता है? (ख) यीशु के सिखाने का तरीका शास्त्रियों से कैसे अलग था?
6 यीशु के कहे शब्दों पर गौर करने से पता चलता है कि उसने इब्रानी शास्त्र की आधी-से-ज़्यादा किताबों से सीधे-सीधे हवाले दिए या उनमें लिखी बातों का ज़िक्र किया। पहले-पहल शायद आपको लगे कि यह तो कोई खास बात नहीं। आप शायद सोचें कि यीशु ने अपने साढ़े तीन साल के प्रचार और सिखाने के काम में इब्रानी शास्त्र की सभी किताबों का हवाला क्यों नहीं दिया। हो सकता है कि उसने ऐसा किया हो। याद रखिए, यीशु की बातों और कामों का एक छोटा-सा हिस्सा ही दर्ज़ किया गया है। (यूहन्ना 21:25) अगर आप बाइबल में दर्ज़ यीशु की बातें पढ़ने बैठें तो आपको इसे पढ़ने में सिर्फ कुछ ही घंटे लगेंगे। ज़रा सोचिए कि आप किसी से कुछ घंटों के लिए परमेश्वर और उसके राज के बारे में बात कर रहे हैं और आप इब्रानी शास्त्र की आधी से ज़्यादा किताबों के हवाले देने की कोशिश करते हैं। यह कितना मुश्किल होगा! और-तो-और यीशु के पास ज़्यादातर मौकों पर शास्त्र के खर्रे भी नहीं होते थे जिनसे वह लोगों को पढ़कर सुनाता। जब उसने अपना मशहूर पहाड़ी उपदेश दिया, तो उसने इब्रानी शास्त्र से कई सीधे-सीधे हवाले दिए या उसमें लिखी बातों का ज़िक्र किया, वह भी सिर्फ अपनी याददाश्त के बल पर!
7 इब्रानी शास्त्र से हवाला देकर यीशु ने दिखाया कि वह परमेश्वर के वचन का गहरा आदर करता है। उसके सुननेवाले “उसका सिखाने का तरीका देखकर दंग थे, क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार रखनेवाले की तरह सिखा रहा था।” (मरकुस 1:22) शास्त्री सिखाते वक्त अकसर इंसानों के बनाए मौखिक नियमों या पुराने ज़माने के रब्बियों की बातों का हवाला देते थे। लेकिन यीशु ने कभी-भी मौखिक नियमों या किसी रब्बी की कही बातों को अपनी शिक्षा का आधार नहीं बनाया। उसके लिए परमेश्वर का वचन ही सबसे बढ़कर था। अपने चेलों को सिखाते वक्त और गलत धारणाओं को सुधारते वक्त उसने कई बार कहा: “यह लिखा है।”
8, 9. (क) मंदिर से व्यापारियों को खदेड़कर यीशु ने कैसे परमेश्वर के वचन के अधिकार को बुलंद किया? (ख) धार्मिक अगुवों ने मंदिर में किस तरह परमेश्वर के वचन का अपमान किया?
8 यरूशलेम के मंदिर से व्यापारियों को खदेड़ने के बाद यीशु ने कहा: “यह लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा’, मगर तुम इसे लुटेरों का अड्डा बना रहे हो।” (मत्ती 21:12, 13; यशायाह 56:7; यिर्मयाह 7:11) इस घटना के एक दिन पहले यीशु ने कई शानदार काम किए थे। यीशु के इन कामों को देखकर कुछ बच्चे बहुत खुश हुए और उसकी जयजयकार करने लगे। इससे धार्मिक अगुवे भड़क गए और यीशु से पूछने लगे कि क्या तू सुन रहा है, ये क्या कह रहे हैं? यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “हाँ, क्या तुमने यह कभी नहीं पढ़ा, ‘नन्हे-मुन्नों और दूध-पीते बच्चों के मुँह से तू ने स्तुति करवायी है’?” (मत्ती 21:16; भजन 8:2) यीशु चाहता था, वे लोग जानें कि बच्चे जो कर रहे हैं, वह परमेश्वर के वचन के मुताबिक है।
9 कुछ दिनों बाद वे धार्मिक अगुवे इकट्ठा होकर यीशु से पूछने लगे: “तू ये सब किस अधिकार से करता है?” (मत्ती 21:23) यीशु ने यह साफ कर दिया था कि उसे यह अधिकार किसने दिया है। उसने जो भी सिखाया वह उसकी दिमागी उपज नहीं थी और न ही वह नयी शिक्षाएँ सिखा रहा था। वह सिर्फ वही सिखाता था जो उसके पिता के प्रेरित वचन में लिखा था। यीशु के कामों पर सवाल उठाकर वे याजक और शास्त्री यहोवा और उसके वचन का घोर अपमान कर रहे थे। इसलिए जब यीशु ने उनकी बुरी सोच का परदाफाश किया और उन्हें फटकारा, तो उसने बिलकुल सही किया।—मत्ती 21:23-46.
10. परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल करने में हम कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? हमारे पास ऐसे कौन-से साहित्य हैं जो यीशु के पास नहीं थे?
10 यीशु की तरह, आज सच्चे मसीही भी प्रचार में लोगों को परमेश्वर के वचन से ही सिखाते हैं। दुनिया-भर में यहोवा के साक्षी बाइबल का संदेश देने के लिए जाने जाते हैं। हमारे साहित्य में बहुत बार बाइबल की आयतें लिखी जाती हैं और कई बार उनका हवाला दिया जाता है। उसी तरह हम भी प्रचार में लोगों से बात करते वक्त शास्त्र वचनों का इस्तेमाल करते हैं। (2 तीमुथियुस 3:16) जब कोई हमें परमेश्वर के वचन से आयतें पढ़ने और उसमें दी बातों का मतलब और उनकी अहमियत समझाने की इजाज़त देता है तो हमें कितनी खुशी होती है! हमारे पास यीशु की तरह सिद्ध याददाश्त तो नहीं है, मगर आज ऐसे साहित्य मौजूद हैं जो यीशु के पास नहीं थे। आज कई भाषाओं में पूरी बाइबल मौजूद है। इसके अलावा कई दूसरे साहित्य भी हैं जिनकी मदद से हम बाइबल की उन आयतों को आसानी से ढूँढ़ सकते हैं जिन्हें हम पढ़ना चाहते हैं। आइए हम ठान लें कि लोगों से बात करते वक्त हम उन्हें बाइबल की कोई बात ज़रूर बताएँगे और उनका ध्यान बाइबल की तरफ खींचेंगे!
परमेश्वर के वचन की पैरवी करना
11. यीशु को क्यों बार-बार परमेश्वर के वचन की पैरवी करनी पड़ी?
11 यीशु ने देखा कि लोग अकसर परमेश्वर के वचन पर उँगली उठाते हैं। लेकिन इस बात से उसे ताज्जुब नहीं होता था। उसने अपने पिता से प्रार्थना में कहा, “तेरा वचन सच्चा है।” (यूहन्ना 17:17) यीशु इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था कि शैतान “इस दुनिया का राजा” है और वह “झूठा है और झूठ का पिता है।” (यूहन्ना 8:44; 14:30) जब शैतान ने यीशु को लुभाने की कोशिश की, तो यीशु ने उसका विरोध करने के लिए तीन बार शास्त्र से हवाले दिए। शैतान ने भजन की एक आयत का हवाला दिया और जानबूझकर उसका गलत मतलब निकाला। लेकिन यीशु ने परमेश्वर के वचन की पैरवी की और शैतान की झूठी दलीलों में नहीं फँसा।—मत्ती 4:6, 7.
12-14. (क) धर्म-गुरुओं ने कैसे मूसा के कानून का अपमान किया? (ख) यीशु ने कैसे परमेश्वर के वचन की पैरवी की?
12 यीशु के समय में कई बार लोग पवित्र शास्त्र का गलत इस्तेमाल करते थे और उसका गलत मतलब निकालते थे। इस वजह से यीशु को अकसर पवित्र शास्त्र की पैरवी करनी पड़ती थी। उस समय के धर्म-गुरु परमेश्वर के वचन का सही मतलब नहीं समझाते थे और लोगों को गुमराह करते थे। वे मूसा के कानून में दिए छोटे-से-छोटे नियम को लागू करने पर बहुत ज़ोर देते थे, मगर उन सिद्धांतों को भूल जाते थे जिन पर वे नियम आधारित थे। इस तरह उन्होंने परमेश्वर की उपासना को एक तमाशा बनाकर रख दिया था और वे सिर्फ दिखावे पर ज़ोर देते थे। उन्होंने न्याय, दया और विश्वासयोग्य होने जैसी ज़रूरी बातों को ताक पर रख दिया। (मत्ती 23:23) यीशु ने कैसे परमेश्वर के कानून की पैरवी की?
13 अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने जब भी मूसा के कानून में दिए किसी नियम के बारे में बताया, तो उसने कहा “तुम सुन चुके हो कि . . . कहा गया था।” फिर वह कहता “मगर मैं तुमसे कहता हूँ।” इसके बाद वह उस नियम में छिपे सिद्धांत को गहराई से समझाता जिससे लोगों को यह पता चल जाता कि दरअसल उस नियम का मकसद क्या है। क्या वह कानून के खिलाफ जिरह कर रहा था? नहीं, वह उसकी पैरवी कर रहा था। उदाहरण के लिए, लोग इस नियम को अच्छी तरह जानते थे कि “तू खून न करना।” अगर वे यह समझने की कोशिश करते कि कानून का मकसद क्या है, तो वे किसी इंसान से नफरत भी नहीं करते। क्योंकि नफरत हत्या की तरफ ले जानेवाला पहला कदम है, इसलिए नफरत कानून के मकसद के खिलाफ है। इसी तरह अगर कोई अपने जीवन-साथी को छोड़ किसी दूसरे व्यक्ति के लिए मन में गलत भावना रखता है, तो वह उस सिद्धांत के खिलाफ काम करता है जिसकी बिनाह पर परमेश्वर के कानून में यह आज्ञा दी गयी थी कि व्यभिचार से दूर रहो।—मत्ती 5:17, 18, 21, 22, 27-39.
14 आखिर में यीशु ने कहा: “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तुझे अपने पड़ोसी से प्यार करना है और अपने दुश्मन से नफरत।’ लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ: अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो और जो तुम पर ज़ुल्म कर रहे हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।” (मत्ती 5:43, 44) “अपने दुश्मन से नफरत” करने का नियम, क्या परमेश्वर के वचन में दिया गया था? नहीं, यह नियम धर्म-गुरु अपनी तरफ से सिखाते थे। धर्म-गुरुओं ने परमेश्वर के सिद्ध कानून में इंसानों के विचार मिला दिए थे और परमेश्वर के कानून की अहमियत कम कर दी थी। यीशु ने बेखौफ होकर परमेश्वर के वचन की पैरवी की, ताकि उस पर इंसानों की बनायी परंपराओं का रंग न चढ़े।—मरकुस 7:9-13.
15. फरीसियों ने जब परमेश्वर के कानून को ज़रूरत-से-ज़्यादा सख्त या कठोर बनाने की कोशिश की, तो यीशु ने कैसे उसकी पैरवी की?
15 धर्म-गुरुओं ने एक और तरीके से परमेश्वर के वचन पर उँगली उठायी। उन्होंने उसे ऐसे पेश करने की कोशिश की जिससे लगे कि वह ज़रूरत-से-ज़्यादा सख्त, या कठोर है। एक बार जब यीशु के चेले सब्त के दिन खेतों से गुज़र रहे थे, तो उन्होंने अनाज की कुछ बालें तोड़ लीं। इस पर कुछ फरीसी कहने लगे कि वे सब्त के नियम का उल्लंघन कर रहे हैं। वे फरीसी शास्त्र में दी बातों का गलत मतलब निकाल रहे थे, इसलिए यीशु ने परमेश्वर के वचन की पैरवी करने के लिए शास्त्र से एक उदाहरण दिया। उसने शास्त्र की वह बात बतायी जहाँ मंदिर की वेदी के बाहर रखी चढ़ावे की रोटियों के इस्तेमाल का सिर्फ एक बार ज़िक्र किया गया है। उसने कहा कि एक बार दाविद और उसके आदमियों को बहुत भूख लगी, तो उन्होंने वे रोटियाँ खा लीं। इस उदाहरण के ज़रिए यीशु ने उन फरीसियों को दिखाया कि वे यहोवा की दया और करुणा को भूल गए।—मरकुस 2:23-27.
16. तलाक के बारे में मूसा ने जो नियम दिया था, उसे धार्मिक अगुवों ने कैसे तोड़-मरोड़कर पेश किया? यीशु ने इस बारे में क्या बताया?
16 धार्मिक अगुवे भी परमेश्वर के वचन में खामी निकालने के लिए कानूनी दाँव-पेंच खेलते थे ताकि परमेश्वर के वचन की अहमियत कम हो जाए। उदाहरण के लिए, कानून में बताया गया था कि अगर एक आदमी अपनी पत्नी में “कुछ लज्जा की बात” पाता, शायद कोई ऐसी बात जिससे पूरे घराने की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाती, तो वह उसे तलाक दे सकता है। (व्यवस्थाविवरण 24:1) लेकिन यीशु के समय के आते-आते धार्मिक अगुवे इस नियम को तोड़-मरोड़कर पेश करने लगे थे। वे आदमियों को हर छोटी बात पर अपनी पत्नी से तलाक लेने की इजाज़त देते थे। यहाँ तक कि अगर पत्नी से खाना जल जाता, तो भी उसे तलाक दिया जा सकता था! a यीशु ने दिखाया कि वे परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे मूसा के नियम को बिलकुल गलत तरीके से लागू कर रहे हैं। फिर यीशु ने बताया कि शादी के बारे में यहोवा का सिद्धांत शुरू से क्या रहा है। उसने कहा कि एक आदमी की एक ही पत्नी होनी चाहिए और व्यभिचार ही एक वजह है जिसके आधार पर तलाक लिया जा सकता है।—मत्ती 19:3-12.
17. परमेश्वर के वचन की पैरवी करने में आज मसीही यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
17 आज भी जब पवित्र शास्त्र पर झूठे आरोप लगाए जाते हैं, तो मसीह की तरह उसके चेले पवित्र शास्त्र की पैरवी किए बिना नहीं रह पाते। जब धार्मिक अगुवे कहते हैं कि परमेश्वर के वचन में दिए नैतिक सिद्धांत पुराने हो गए हैं तो वे असल में बाइबल पर उँगली उठा रहे होते हैं। बाइबल पर तब भी हमला होता है जब ईसाईजगत के धार्मिक अगुवे झूठी शिक्षाओं को बाइबल की शिक्षा का जामा पहनाते हैं। ऐसे में परमेश्वर के सत्य वचन की पैरवी करना हम अपना सम्मान समझते हैं। जैसे कि लोगों को यह बताना कि परमेश्वर त्रिएक का भाग नहीं है। (व्यवस्थाविवरण 4:39) लेकिन हम दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना और गहरे आदर के साथ परमेश्वर के वचन की पैरवी करते हैं।—1 पतरस 3:15.
परमेश्वर के वचन को सही तरीके से समझाना
18, 19. किन उदाहरणों से पता चलता है कि यीशु के पास परमेश्वर के वचन को समझाने की बेमिसाल काबिलीयत थी?
18 जब इब्रानी शास्त्र लिखा जा रहा था तब यीशु स्वर्ग में था। धरती पर आकर जब उसे परमेश्वर के वचन को समझाने का मौका मिला तो उसे कितनी खुशी हुई होगी! उदाहरण के लिए ज़रा उस यादगार दिन के बारे में सोचिए जब पुनरुत्थान के बाद यीशु इम्माऊस के रास्ते पर अपने दो चेलों से मिला। पहले-पहल तो चेले उसे पहचान नहीं पाए। उन्होंने उससे कहा कि अपने प्यारे प्रभु की मौत से वे बहुत दुखी हैं और उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। यीशु ने उन्हें क्या जवाब दिया? “उसने मूसा से शुरू कर सारे भविष्यवक्ताओं की किताबों में, यानी सारे शास्त्र में जितनी भी बातें उसके बारे में लिखी थीं, उन सबका मतलब उन्हें खोलकर समझाया।” उन्हें यह सुनकर कैसा लगा? उन्होंने बाद में एक-दूसरे से कहा: “जब वह सड़क पर हमसे बात कर रहा था और शास्त्र का मतलब हमें खोल-खोलकर समझा रहा था, तो क्या हमारे दिल की धड़कनें तेज़ नहीं हो गयी थीं?”—लूका 24:15-32.
19 उस दिन बाद में यीशु अपने प्रेषितों और दूसरे चेलों से मिला। ध्यान दीजिए उसने उनके लिए क्या किया: “उसने शास्त्रों का मतलब समझने के लिए उनके दिमाग पूरी तरह खोल दिए।” (लूका 24:45) इसमें कोई शक नहीं कि इस खुशी के माहौल में उन्हें वे दिन याद आए होंगे जब यीशु ने उनके और बाकी सुननेवालों के लिए ऐसा ही कुछ किया था। वह अकसर जानी-पहचानी आयतों के हवाले देता और उन्हें इस तरह समझाता कि सुननेवालों के दिलो-दिमाग पर उसका गहरा असर होता, वे परमेश्वर के वचन में दी बातों को नए नज़रिए से देखने लगते और उन्हें गहरी समझ मिलती।
20, 21. यहोवा ने जलती हुई झाड़ी के पास मूसा से जो कहा, उसे यीशु ने कैसे समझाया?
20 एक दिन की बात है यीशु सदूकियों के एक समूह से बात कर रहा था। सदूकी यहूदी धर्म का ही एक पंथ था जिसका यहूदी याजकवर्ग से बहुत करीबी नाता था और वे पुनरुत्थान में विश्वास नहीं करते थे। यीशु ने उनसे कहा: “जहाँ तक मरे हुओं के जी उठने की बात है, क्या तुमने वह नहीं पढ़ा जो परमेश्वर ने तुमसे कहा था, ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर और इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर हूँ’? वह मरे हुओं का नहीं, बल्कि जीवितों का परमेश्वर है।” (मत्ती 22:31, 32) इस आयत को वे बड़ी अच्छी तरह जानते थे। इसे मूसा ने लिखा था, जिसका सदूकी बहुत आदर करते थे। क्या आपको यीशु के सिखाने का ज़बरदस्त तरीका समझ में आया?
21 यहोवा ने ईसा पूर्व 1514 में जलती हुई झाड़ी के पास मूसा से बात की थी। (निर्गमन 3:2, 6) उस वक्त अब्राहम को मरे हुए 329 साल, इसहाक को 224 और याकूब को 197 साल हो चुके थे। फिर भी यहोवा ने कहा: ‘मैं उनका परमेश्वर हूँ।’ वे सदूकी अच्छी तरह जानते थे कि यहोवा झूठे धर्म के देवताओं की तरह मरे हुओं का देवता नहीं, जो किसी काल्पनिक पाताल-लोक पर हुकूमत करता हो। यहोवा “जीवितों का परमेश्वर” है, जैसा कि यीशु ने कहा। इसका मतलब क्या है? यीशु ने अपनी बात बड़े दमदार तरीके से खत्म की: “वे सभी उसकी नज़र में ज़िंदा हैं।” (लूका 20:38) यहोवा के प्यारे सेवक जो मर चुके हैं वे यहोवा की अपार और कभी न मिटनेवाली याददाश्त में सुरक्षित हैं। उन्हें दोबारा ज़िंदा करने का यहोवा का मकसद इतना पक्का है कि उन्हें ज़िंदा कहा जा सकता है। (रोमियों 4:16, 17) यीशु ने कितने बेहतरीन तरीके से परमेश्वर का वचन समझाया! यही वजह है कि “भीड़ उसकी शिक्षा से हैरान रह” जाती थी!—मत्ती 22:33.
22, 23. (क) परमेश्वर के वचन को समझाने में हम कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? (ख) अगले अध्याय में हम क्या गौर करेंगे?
22 मसीहियों को यीशु की मिसाल पर चलकर लोगों को परमेश्वर का वचन समझाने का सम्मान मिला है। माना कि हमारे पास यीशु की तरह सिद्ध दिमाग नहीं है। फिर भी हमें अकसर मौका मिलता है कि हम दूसरों को वे आयतें पढ़कर सुनाएँ जिनके बारे में उन्हें पहले से मालूम है और उन आयतों की वे बातें समझाएँ जिसके बारे में उन्होंने पहले कभी नहीं सोचा था। उदाहरण के लिए वे शायद सारी ज़िंदगी यह रटते रहे हों कि “तेरा नाम पवित्र माना जाए” और “तेरा राज्य आए,” जबकि उन्हें न तो परमेश्वर का नाम और न ही उसके राज के बारे में कुछ पता होता है। (मत्ती 6:9, 10, O.V.) ऐसे में अगर वे हमें इजाज़त दें तो उन्हें परमेश्वर का नाम और उसके राज के बारे में सीधी और साफ समझ देने का हमारे पास कितना बढ़िया मौका होता है!
23 परमेश्वर के वचन से हवाले देना, उसकी पैरवी करना और उसे समझाना, वे अहम तरीके हैं जिनके ज़रिए हम सच्चाई सिखाने में यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं। आइए अब हम उन असरदार तरीकों पर गौर करें जिनकी मदद से यीशु बाइबल की सच्चाइयाँ अपने सुननेवालों के दिल तक पहुँचाता था।
a पहली सदी का इतिहासकार जोसीफस खुद एक तलाकशुदा फरीसी था। आगे चलकर उसने कहा कि तलाक “किसी भी वजह से लिया जा सकता है (और आदमियों के पास तलाक लेने की कई वजह हैं)।”