मैं टीवी देखने की आदत पर कैसे क़ाबू पाऊँ?
अध्याय ३६
मैं टीवी देखने की आदत पर कैसे क़ाबू पाऊँ?
बहुतों के लिए, बूढ़े हों या जवान, टीवी देखना एक बुरी लत के बराबर है। सर्वेक्षण दिखाते हैं कि १८ की उम्र तक औसत अमरीकी युवा कुछ १५,००० घंटे टीवी देख चुका होगा! और जब रात-दिन टीवी देखनेवाले इस आदत को छोड़ने की कोशिश करते हैं तब यह स्पष्ट हो जाता है कि यह असल में एक लत है।
“मुझे टॆलिविज़न बहुत-बहुत पसन्द है। जब यह चल रहा होता है, तब मैं इससे ध्यान नहीं हटा पाता। मैं इसे बंद नहीं कर पाता। . . . जैसे ही मैं इसे बंद करने के लिए आगे बढ़ता हूँ, मेरे हाथों से शक्ति चली जाती है। सो मैं वहाँ घंटों बैठा रहता हूँ।” एक नासमझ युवा? जी नहीं, यह एक कॉलेज का अंग्रेज़ी शिक्षक था! लेकिन युवा भी टीवी चिपकू हो सकते हैं। ऐसे कुछ लोगों की प्रतिक्रियाओं को नोट कीजिए जो एक “टीवी निषेध सप्ताह” के लिए सहमत हुए:
“मुझे हताशा हो रही है . . . मैं पागल हो रही हूँ।”—बारह-वर्षीय सुष्मिता।
“मेरे ख़याल से मैं इस आदत को नहीं छोड़ सकती। मैं टीवी से बहुत ज़्यादा प्यार करती हूँ।”—तेरह-वर्षीय लिन्डा।
“मुझ पर बहुत दबाव था। मुझे बार-बार हुड़क होती थी। सबसे कठिन समय था रात का समय, आठ से दस बजे के बीच।”—ग्यारह-वर्षीय ललित।
तो फिर, इसमें आश्चर्य नहीं कि इससे जुड़े अधिकतर युवा “टीवी निषेध सप्ताह” के समाप्त होने पर ख़ुशियाँ मनाते हुए पागलों की तरह टीवी की ओर दौड़े। लेकिन टीवी की लत कोई हँसने की बात नहीं,
बल्कि यह अपने साथ ढेरों संभव समस्याएँ लाती है। उनमें से मात्र कुछ पर विचार कीजिए:गिरते नम्बर: मानसिक स्वास्थ्य राष्ट्रीय संस्थान (यू.एस.) ने रिपोर्ट किया कि ज़रूरत से ज़्यादा टीवी देखने के कारण ‘स्कूल सफलता, ख़ासकर पठन में, कम हो सकती है।’ पुस्तक साक्षरता छलावा आगे आरोप लगाती है: “बच्चों पर टॆलिविज़न का प्रभाव है उनमें एक ऐसी अपेक्षा उत्पन्न करना कि शिक्षा को सरल, निष्क्रिय, और मनोरंजक होना चाहिए।” अतः टीवी व्यसनी को पढ़ाई करना एक आफ़त लग सकती है।
ख़राब पठन आदतें: कितने समय पहले आपने एक पुस्तक उठाकर उसे पहले पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक पढ़ा था? पुस्तक वितरकों के पश्चिम जर्मन संगठन के एक प्रवक्ता ने शोक मनाया: “हम एक ऐसे राष्ट्र के लोग हो गए हैं जो काम के बाद घर जाते हैं और टॆलिविज़न के सामने ही सो जाते हैं। हमारा पढ़ना कम होता जा रहा है।” ऑस्ट्रेलिया से एक रिपोर्ट ने ऐसा ही कुछ कहा: “एक घंटा पढ़ने में बिताने के मुक़ाबले, औसत ऑस्ट्रेलियाई बच्चे ने सात घंटे टॆलिविज़न देख लिया होगा।”
घटता पारिवारिक जीवन: एक मसीही स्त्री ने लिखा: “ज़रूरत से ज़्यादा टीवी देखने के कारण . . . मैं बहुत अकेली थी और अलग-अलग महसूस करती थी। यह ऐसा था मानो [मेरे] परिवार में सभी अजनबी थे।” इसी तरह क्या आपने भी पाया है कि आप टीवी के कारण अपने परिवार के साथ कम समय बिताते हैं?
आलस: कुछ महसूस करते हैं कि टीवी की निष्क्रियता ही ‘एक युवा की इस अपेक्षा का कारण बन सकती है कि उसकी ज़रूरतें बिना प्रयास के पूरी हो जाएँगी और वह जीवन के प्रति एक निष्क्रिय दृष्टिकोण अपना सकता है।’
अहितकर प्रभावों से संपर्क: कुछ केबल टॆलिविज़न नॆटवर्क घर में अश्लील-दृश्य लाते हैं। और अकसर सामान्य कार्यक्रम नियमित रूप से गाड़ियों की टक्कर, विस्फोट, छुरा मारने, गोली चलाने, और कराटे हाथापाई के दृश्य दिखाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, अमरीका में एक युवा १४ की उम्र तक टीवी पर १८,००० लोगों की हत्या देखेगा, घूँसेबाजी और तोड़-फोड़ की बात अलग रही।
ब्रिटिश अनुसंधायक विलियम बॆलसन ने पाया कि जो लड़के हिंसक टीवी कार्यक्रमों का मज़ा लेते हैं उनके “गंभीर क़िस्म की हिंसा में भाग लेने” की संभावना अधिक है। उसने यह दावा भी किया कि टीवी हिंसा इन बातों को भड़का सकती है, “गाली देना और गंदी बोली बोलना, खेल-कूद में आक्रामकता, दूसरे लड़के के साथ हिंसा पर उतरने की धमकी, दीवारों पर नारे लिखना, [और] खिड़कियाँ तोड़ना।” जबकि आप शायद सोचें कि आप ऐसे प्रभावों में नहीं आएँगे, लेकिन बॆलसन के अध्ययन ने पाया कि टीवी हिंसा से संपर्क ने हिंसा “के प्रति लड़कों की सचेतन मनोवृत्तियों को बदला” नहीं। लगता है कि नियमित रूप से हिंसा देखने से हिंसा के विरुद्ध उनका अवचेतन संकोच धीरे-धीरे दूर हो गया।
लेकिन, उससे भी चिंतनीय है टीवी हिंसा की लत का परमेश्वर के साथ एक व्यक्ति के सम्बन्ध पर जो प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि वह ‘उपद्रव से प्रीति रखनेवालों से घृणा करता है।’—भजन ११:५.
मैं टीवी की आदत पर कैसे क़ाबू पाऊँ?
इसका यह अर्थ निकालना ज़रूरी नहीं कि टीवी को अपने आपमें बुरा समझा जाए। लेखक वैन्स पॆकार्ड कहता है: “यू.एस. टॆलिविज़न पर दिखाया जानेवाला काफ़ी कुछ लाभकारी हो सकता है . . . अकसर शाम को फ़ोटोग्राफ़ी में आश्चर्यजनक उपलब्धि के कार्यक्रम होते हैं जो प्रकृति को हरकत में दिखाते हैं—केकड़े, कठफोड़े, कंगारू से लेकर कछुए के करतबों तक। जन टॆलिविज़न में सुन्दर नृत्य, गीति-नाट्य, और सुगम
संगीत होता है। टीवी महत्त्वपूर्ण घटनाओं को बहुत अच्छी तरह दिखाता है . . . कभी-कभी टीवी में प्रबुद्ध करनेवाले नाटकीय कार्यक्रम आते हैं।”फिर भी, अधिक मात्रा में अच्छी चीज़ भी हानिकर हो सकती है। (नीतिवचन २५:२७ से तुलना कीजिए।) और यदि आप पाते हैं कि आपमें हानिकर कार्यक्रमों को बंद करने का आत्म-संयम नहीं, तो प्रेरित पौलुस के शब्द याद रखना अच्छा है: “मैं अपने आपको किसी बात का दास नहीं बनने दूँगा।” (१ कुरिन्थियों ६:१२, टुडेज़ इंग्लिश वर्शन) तो फिर, कैसे आप टीवी की दासता से मुक्त हो सकते हैं और टीवी की आदत पर क़ाबू पा सकते हैं?
लेखिका लिन्डा नीलसन कहती है: “आत्म-संयम लक्ष्य रखना सीखने से शुरू होता है।” पहले, अपनी वर्तमान आदतों को जाँचिए। एक सप्ताह तक, लेखा रखिए कि आप कौन-से कार्यक्रम देखते हैं और हर दिन आप टीवी के सामने कितना समय बिताते हैं। क्या आप घर पहुँचते ही इसे चला देते हैं? आप इसे कब बंद करते हैं? हर सप्ताह कितने कार्यक्रम
ऐसे हैं जिन्हें “अवश्य-देखना” है? आप शायद परिणाम देखकर दंग रह जाएँ।फिर जिन कार्यक्रमों को आप देखा करते हैं उन पर एक सूक्ष्म दृष्टि डालिए। “जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते?” बाइबल पूछती है। (अय्यूब १२:११) सो (अपने माता-पिता की सलाह के साथ-साथ) समझ का प्रयोग कीजिए और जाँचिए कि कौन-से कार्यक्रम सचमुच देखने योग्य हैं। कुछ लोग पहले से निश्चित कर लेते हैं कि वे कौन-से कार्यक्रम देखेंगे और केवल उन कार्यक्रमों के लिए टीवी चलाते हैं! दूसरे और भी कठोर क़दम उठाते हैं, और स्कूल-दिनों-में-टीवी-नहीं नियम या प्रति-दिन-एक-घंटा सीमाएँ बनाते हैं।
लेकिन तब क्या यदि मौन टीवी बहुत बड़ा प्रलोभन साबित होता है? एक परिवार ने समस्या को इस प्रकार सुलझाया: “हम अपना टीवी बेसमॆंट में रखते हैं ताकि सामने न दिखे . . . बेसमॆंट में होने के कारण घर पहुँचते ही उसे चला देने का प्रलोभन कम होता है। आपको कुछ देखने के लिए ख़ास वहाँ तक जाना पड़ता है।” अपना टीवी अलमारी में रखना, या उसका प्लग निकालकर रखना, उतनी ही प्रभावकारी रीति से काम दे सकता है।
दिलचस्पी की बात है, अपनी सभी ‘विनिवर्तन पीड़ाओं’ के बीच “टीवी निषेध सप्ताह” में भाग लेनेवाले युवाओं ने टीवी के कुछ सकारात्मक
विकल्प पाए। एक लड़की ने याद किया: “मैंने अपनी मम्मी से बात की। मेरी दृष्टि में वह काफ़ी ज़्यादा दिलचस्प व्यक्ति बन गयीं, क्योंकि मेरा ध्यान उनके और टॆलिविज़न के बीच बँटा नहीं था।” एक और लड़की ने अपना समय खाना पकाना सीखने में बिताया। जेसन नाम के एक युवक ने यह भी पाया कि “टीवी के बजाय बाग़ीचे में” जाना, या मछली पकड़ने जाना, पढ़ना, या समुद्र किनारे जाना मज़े का हो सकता है।वायॆंट का अनुभव (“मैं टीवी व्यसनी था” शीर्षक का अंतःपत्र देखिए) सचित्रित करता है कि टीवी देखने पर क़ाबू पाने की एक और कुंजी है “प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाना।” (१ कुरिन्थियों १५:५८) आप भी पाएँगे कि परमेश्वर के निकट आना, अभी उपलब्ध अनेक उत्तम प्रकाशनों की मदद से बाइबल का अध्ययन करना, और परमेश्वर के काम में अपने आपको व्यस्त रखना आपको टीवी की लत छोड़ने में मदद देगा। (याकूब ४:८) सच है, टीवी देखना कम करने का अर्थ होगा अपने कुछ मनपसन्द कार्यक्रमों को छोड़ना। लेकिन आप टीवी का पूरा प्रयोग क्यों करें, दास की नाईं हर कार्यक्रम क्यों देखें? (१ कुरिन्थियों ७:२९, ३१ देखिए।) बेहतर है कि प्रेरित पौलुस की तरह अपने साथ ‘सख़्ती बरतें,’ जिसने एक बार कहा: “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं।” (१ कुरिन्थियों ९:२७) क्या यह टीवी के वश में होने से बेहतर नहीं?
चर्चा के लिए प्रश्न
◻ कुछ युवाओं के लिए टीवी देखना एक लत क्यों कही जा सकती है?
◻ ज़रूरत से ज़्यादा टीवी देखने के कुछ संभव हानिकर प्रभाव क्या हैं?
◻ टीवी की आदत पर क़ाबू पाने के कुछ तरीक़े क्या हैं?
◻ टीवी देखने के स्थान पर आप क्या कर सकते हैं?
[पेज 295 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“मुझे हताशा हो रही है . . . मैं पागल हो रही हूँ।”—बारह-वर्षीय सुष्मिता, “टीवी निषेध सप्ताह” में भाग लेनेवाली
[पेज 292, 293 पर बक्स]
‘मैं टीवी व्यसनी था’—एक इंटरव्यू
इंटरव्यूकर्ता: आपकी उम्र क्या थी जब आपको टीवी की लत पड़ी?
वायॆंट: क़रीब दस साल। जैसे ही मैं स्कूल से घर आता, टीवी चला देता। पहले, मैं कार्टून और बच्चों के कार्यक्रम देखता। फिर समाचार आते, . . . और मैं रसोई में जाकर खाने के लिए कुछ ढूँढता। उसके बाद, मैं फिर से टीवी के सामने जाता और तब तक देखता रहता जब तक कि मुझे नींद नहीं आ जाती।
इंटरव्यूकर्ता: लेकिन आपके पास अपने मित्रों के लिए कब समय होता था?
वायॆंट: टीवी मेरा मित्र था।
इंटरव्यूकर्ता: तो फिर आपके पास खेल-कूद के लिए कभी समय नहीं होता था?
वायॆंट: [हँसते हुए] मुझमें कोई खेल क्षमता नहीं है। क्योंकि मैं हर समय टीवी देखता था, मैंने इन्हें कभी विकसित नहीं किया। मैं एक बेकार बासकॆटबॉल खिलाड़ी हूँ। और व्यायाम कक्षा में हमेशा मैं सबसे फिसड्डी था। लेकिन, काश मैंने अपनी खेल क्षमताएँ थोड़ी और विकसित की होतीं—इसलिए नहीं कि मैं डींगें मारता फिरता, बल्कि इसलिए कि कम-से-कम मैंने मज़ा तो किया होता।
इंटरव्यूकर्ता: आपके नम्बरों के बारे में क्या?
वायॆंट: मैंने प्राथमिक स्कूल में काम चला लिया। मैं रात को देर तक जागता और आख़िरी घड़ी अपना गृह-कार्य करता। लेकिन हाई स्कूल में और कठिनाई हुई क्योंकि मुझे ठीक-से पढ़ाई करने की आदत नहीं पड़ी थी।
इंटरव्यूकर्ता: क्या इतना अधिक टीवी देखने से आपके ऊपर असर हुआ है?
वायॆंट: जी हाँ। कभी-कभी जब मैं लोगों के आस-पास होता हूँ, तब बातचीत में भाग लेने के बजाय मैं बस उन्हें देखता रहता हूँ—मानो कोई टीवी टॉक शो देख रहा हूँ। काश मैं लोगों के साथ ज़्यादा अच्छी तरह परस्पर सम्बन्ध बना सकता।
इंटरव्यूकर्ता: यह बातचीत तो आपने बड़ी अच्छी तरह की है। स्पष्ट है कि आपने अपनी लत छोड़ दी है।
वायॆंट: हाई स्कूल में जाने के बाद मैंने टीवी से पीछा छुड़ाना शुरू किया। . . . मैंने साक्षी युवाओं के साथ संगति की और आध्यात्मिक प्रगति करनी शुरू की।
इंटरव्यूकर्ता: लेकिन इसका आपके टीवी देखने से क्या सम्बन्ध था?
वायॆंट: जैसे-जैसे आध्यात्मिक बातों के लिए मेरा मूल्यांकन बढ़ा, मैंने समझा कि जिन कार्यक्रमों को मैं देखता था उनमें से अनेक असल में मसीहियों के लिए नहीं थे। साथ ही, मैंने बाइबल का और अधिक अध्ययन करने की और मसीही सभाओं के लिए तैयारी करने की ज़रूरत महसूस की। इसका अर्थ था टीवी देखने का अधिकतर समय काटना। लेकिन, यह आसान नहीं था। मुझे वे शनिवार-सुबह के कार्टून बड़े पसन्द थे। लेकिन फिर कलीसिया में एक मसीही भाई ने मुझे शनिवार सुबह उसके साथ दर-दर प्रचार कार्य के लिए चलने को कहा। इसने मेरी शनिवार सुबह टीवी की आदत तोड़ दी। सो अंततः मैंने सचमुच कम टीवी देखना सीख लिया।
इंटरव्यूकर्ता: अभी के बारे में क्या?
वायॆंट: मुझे अभी भी यह समस्या है कि यदि टीवी चल रहा है, तो मैं कुछ नहीं कर पाता। सो मैं ज़्यादातर समय उसे बंद रहने देता हूँ। असल में, कुछ महीने पहले मेरा टीवी ख़राब हो गया और मैंने उसे ठीक कराने का कष्ट नहीं किया।
[पेज 291 पर तसवीर]
कुछ लोगों के लिए टीवी देखना एक बुरी लत है
[पेज 294 पर तसवीर]
जब टॆलिविज़न को असुविधाजनक स्थान पर रखा जाता है, तब उसे चलाने का प्रलोभन कम होता है