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मैं इतना हताश क्यों हो जाता हूँ?

मैं इतना हताश क्यों हो जाता हूँ?

अध्याय १३

मैं इतना हताश क्यों हो जाता हूँ?

मॆलॆनी हमेशा अपनी माँ की एक आदर्श बच्चे की छवि पर पूरी उतरी थी—जब तक कि वह १७ की नहीं हो गयी। तब उसने स्कूल गतिविधियों से मन हटा लिया, पार्टियों के न्योते स्वीकार करना बंद कर दिया, और जब उसके नम्बर ७०% से गिरकर ५०% हो गए तब ऐसा लगा कि उसने परवाह भी नहीं की। जब उसके माता-पिता ने कोमलता से पूछा कि क्या हो गया है, तब उसने झल्लाकर कहा, “मुझे अकेला छोड़ दीजिए! कुछ नहीं हुआ।”

मार्क, १४ की उम्र में आवेगी और रूखा था, और उसका गुस्सा बड़ा भयंकर था। स्कूल में वह चुलबुला और ऊधमी था। जब वह कुंठित या क्रोधित होता, तब मोटरसाइकिल पर रेगिस्तान में दौड़ लगाता या खड़ी पहाड़ियों पर से अपने स्केटबोर्ड पर नीचे को फिसलने लगता।

मॆलॆनी और मार्क दोनों अलग-अलग तरह एक ही रोग से पीड़ित थे—अवसाद। मानसिक स्वास्थ्य राष्ट्रीय संस्थान का डॉ. डॉनल्ड मॆकन्यू कहता है कि स्कूल के १० से १५ प्रतिशत बच्चे मनोदशा विकारों से पीड़ित हो सकते हैं। उससे कम संख्या में युवा गंभीर अवसाद से पीड़ित हैं।

कभी-कभी समस्या का जैविक आधार होता है। कुछ संक्रमण या अंतःस्रावी रोग, रजोचक्र के हार्मोन परिवर्तन, अल्पग्लूकोज़रक्‍तता, कुछ दवाएँ, विषाक्‍त धातुओं या रसायनों का प्रभाव, एलर्जी प्रभाव, असंतुलित आहार, अल्परक्‍तता—ये सभी हताशा उत्पन्‍न कर सकते हैं।

हताशा की जड़ में दबाव

लेकिन, अकसर किशोरावस्था स्वयं ही भावात्मक तनाव का स्रोत होती है। जीवन के उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए बड़ों जैसा अनुभव न होने के कारण, एक युवा महसूस कर सकता है कि किसी को परवाह नहीं और अपेक्षाकृत सामान्य-सी बातों को लेकर अत्यधिक हताश हो सकता है।

माता-पिता, शिक्षकों, या मित्रों की अपेक्षाओं को पूरा न कर पाना उदासी का एक और कारण है। उदाहरण के लिए, डॉनल्ड को लगा कि उसके सुशिक्षित माता-पिता को प्रसन्‍न करने के लिए उसे स्कूल में अव्वल आना है। ऐसा न कर पाने पर, वह हताश हो गया और आत्महत्या करने की सोची। “मैंने कभी कोई काम ठीक-से नहीं किया। मैंने हमेशा सभी को निराश किया है,” डॉनल्ड ने शोक मनाया।

यह कि असफलता का भाव हताशा उत्पन्‍न कर सकता है, इपफ्रुदीतुस नाम के एक पुरुष के किस्से से प्रकट होता है। प्रथम शताब्दी के दौरान, इस विश्‍वासी मसीही को एक ख़ास मिशन पर बंदी प्रेरित पौलुस की मदद करने के लिए भेजा गया था। लेकिन पौलुस के पास पहुँचने पर वह बीमार पड़ गया—और उसकी बजाय, पौलुस को उसकी सेवा करनी पड़ी! तो फिर, आप कल्पना कर सकते हैं कि इपफ्रुदीतुस को क्यों लगा होगा कि वह इतना असफल है और वह “हताश” (NW) हो गया। प्रत्यक्षतः वह उन सभी भले कामों को भूल गया जो उसने बीमार पड़ने से पहले किए थे।—फिलिप्पियों २:२५-३०.

हानि का भाव

फ्रैन्सीन क्लैगस्ब्रुन ने अपनी पुस्तक मरने के लिए बहुत छोटे—युवा और आत्महत्या (अंग्रेज़ी) में लिखा: “भावात्मक रूप से उत्पन्‍न हुई अनेक हताशाओं की जड़ में किसी अति प्रिय व्यक्‍ति या वस्तु को खोने का गहरा भाव होता है।” अतः मृत्यु या तलाक़ के कारण एक जनक को खोना, नौकरी या जीविका-वृत्ति खोना, या यहाँ तक कि अपने शारीरिक स्वास्थ्य को खोना भी हताशा की जड़ में हो सकता है।

लेकिन, एक युवा की सबसे विनाशक हानि है प्रेम खोना, अनचाहा और उपेक्षित होने की भावना। “जब मेरी माँ हमें छोड़ गयीं तब मैंने छलित और अकेला महसूस किया,” सीमा नाम की एक युवती ने बताया। “अचानक मेरा संसार मानो उलट-पुलट हो गया।”

तो फिर, उस उलझन और पीड़ा की कल्पना कीजिए जो कुछ युवाओं को होती है जब वे ऐसी पारिवारिक समस्याओं का सामना करते हैं, जैसे तलाक़, मद्यव्यसन, कौटुम्बिक व्यभिचार, पत्नी पिटाई, बाल दुर्व्यवहार, या एक जनक द्वारा यूँ ही ठुकरा दिया जाना जो ख़ुद की समस्याओं में डूबा हुआ या डूबी हुई है। बाइबल नीतिवचन कितना सही है: “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्‍ति [जिसमें हताशा का विरोध करने की क्षमता सम्मिलित है] बहुत कम है”! (नीतिवचन २४:१०) यह भी हो सकता है कि एक युवा अपने परिवार की समस्याओं के लिए अकारण अपने को दोषी समझे।

लक्षण पहचानना

हताशा अलग-अलग हद की होती है। एक युवा शायद किसी दुःखद घटना के कारण कुछ समय के लिए निरुत्साहित हो जाए। लेकिन अकसर ऐसी उदासी अपेक्षाकृत थोड़े ही समय में चली जाती है।

लेकिन, यदि हताश मनोदशा बनी रहती है और युवा को सामान्य नकारात्मक भावना है साथ ही अयोग्यता, चिन्ता, और क्रोध की भावनाएँ हैं, तो यह उसमें विकसित हो सकता है जिसे डॉक्टर निम्न-श्रेणी जीर्ण अवसाद कहते हैं। जैसे मार्क और मॆलॆनी (आरंभ में उल्लिखित) के अनुभव दिखाते हैं, लक्षण बहुत ही अलग-अलग हो सकते हैं। एक युवा को चिन्ता के दौरे पड़ सकते हैं। दूसरे को शायद हर समय थकान हो, भूख न लगे, ठीक-से नींद न आए, वज़न घटे, या एक के बाद एक दुर्घटनाएँ हों।

कुछ युवा रंगरलियाँ मनाने के द्वारा हताशा छिपाने की कोशिश करते हैं: बेहिसाब पार्टियाँ, लैंगिक स्वच्छंदता, गुंडागर्दी, बहुत पीना, इत्यादि। “सच कहूँ तो मैं नहीं जानता कि मुझे हर समय बाहर जाने की क्या ज़रूरत है,” एक १४-वर्षीय लड़के ने स्वीकार किया। “मुझे इतना पता है कि जब मैं अपने आप, अकेला होता हूँ, तब मुझे अनुभूति होती है कि मैं कितना उदास हूँ।” यह ठीक बाइबल वर्णन के जैसा है: ‘हंसी के समय भी मन उदास हो सकता है।’—नीतिवचन १४:१३.

जब यह मात्र उदासी से ज़्यादा होता है

यदि निम्न-श्रेणी जीर्ण अवसाद को संभाला न जाए, तो वह बढ़कर और गंभीर विकार बन जाता है—बृहत अवसाद। (पृष्ठ १०७ देखिए।) “मुझे निरन्तर ऐसा लगता था मानो मैं अन्दर से ‘मृत’ हूँ,” बृहत अवसाद की शिकार, सीमा ने बताया। “मैं बिना किसी मनोभाव के बस जीवित थी। मुझ में निरन्तर दहशत की भावना थी।” बृहत अवसाद में उदास मनोदशा हर दम रहती है और महीनों तक रह सकती है। फलस्वरूप, इस क़िस्म का अवसाद किशोर आत्महत्याओं में सबसे सामान्य तत्व है—अनेक देशों में अब एक “छिपी महामारी” समझा जाता है।

बृहत अवसाद से जुड़ी हुई सबसे सतत—और सबसे घातक—भावना है आशाहीनता का गहरा भाव। प्रोफ़ॆसर जॉन इ. मैक बृहत अवसाद की शिकार, विवियॆन नाम की एक १४-वर्षीया के बारे में लिखता है। बाहर से देखने में वह एक भली-चंगी युवती थी जिसके परवाह करनेवाले माता-पिता थे। फिर भी, निराशा की गहराइयों में, उसने अपने आपको फाँसी लगा ली! प्रोफ़ॆसर मैक ने लिखा: “पहले से यह देख पाने की विवियॆन की असमर्थता कि उसकी हताशा कभी दूर होगी, कि उसको अपनी पीड़ा से अंततः राहत पाने की कोई आशा है, अपनी हत्या करने के उसके फ़ैसले का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है।”

अतः बृहत अवसाद से प्रभावित लोग यह महसूस करते हैं कि मानो वे कभी बेहतर नहीं होंगे, कि कोई भविष्य नहीं। ऐसी आशाहीनता, विशेषज्ञों के अनुसार, अकसर आत्महत्या-सम्बन्धी बर्ताव का कारण होती है।

लेकिन, आत्महत्या हल नहीं है। सीमा ने, जिसका जीवन जीवता दुःस्वप्न बन गया था, स्वीकार किया: “आत्महत्या के विचार निश्‍चित ही मेरे मन में आए। लेकिन मैंने समझा कि यदि मैं अपनी हत्या न करूँ तो आशा अवश्‍य है।” काम तमाम करने से सचमुच कुछ नहीं सुलझता। दुःख की बात है, निराशा का सामना करने पर अनेक युवा उपाय या अनुकूल परिणाम की संभावना की कल्पना भी नहीं कर पाते। अतः सीमा ने हेरोइन लेने के द्वारा अपनी समस्या को छिपाने की कोशिश की। उसने कहा: “मेरे पास बहुत आत्म-विश्‍वास होता—जब तक कि नशा चला नहीं जाता।”

छोटे-मोटे कष्ट से निपटना

हताशा की भावनाओं से निपटने के उचित तरीक़े हैं। “कुछ लोग हताश हो जाते हैं क्योंकि वे भूखे होते हैं,” हताशा के एक न्यू यॉर्क विशेषज्ञ, डॉ. नेथन एस. क्लाइन ने कहा। “एक व्यक्‍ति शायद नाश्‍ता न खाए और किसी कारण दिन का भोजन लेने से चूक जाए। फिर तीन बजे तक वह सोचने लगता है कि उसे ठीक-सा क्यों नहीं लग रहा।”

आप जो खाते हैं उससे भी फ़र्क पड़ सकता है। निराशा की भावनाओं से पीड़ित एक युवती, डॆबी ने स्वीकार किया: “मैं नहीं जानती थी कि उल्टा-सीधा खाना मेरी मनोदशा के लिए इतना हानिकर है। मैं बहुत उल्टी-सीधी चीज़ें खाती थी। अब मैं नोट करती हूँ कि जब मैं कम मिठाइयाँ खाती हूँ, तब मैं बेहतर महसूस करती हूँ।” अन्य सहायक क़दम: किसी क़िस्म का व्यायाम आपकी मनोदशा सुधार सकता है। कुछ किस्सों में, चिकित्सीय जाँच उचित होगी, क्योंकि हताशा शारीरिक बीमारी का एक लक्षण हो सकती है।

मन की लड़ाई जीतना

अपने बारे में नकारात्मक विचार रखने से आप अकसर हताशा को बुलाते हैं या उसे बदतर बनाते हैं। “जब आपका पाला ऐसे अनेक लोगों से पड़ता है जो आपको नीचा दिखाते हैं,” १८-वर्षीय ईवलिन ने शोक मनाया, “आप सोचने लगते हैं कि आप किसी काम के नहीं।”

विचार कीजिए: क्या यह दूसरों पर है कि एक व्यक्‍ति के रूप में आपकी योग्यता को आँकें? मसीही प्रेरित पौलुस का ऐसा ही उपहास किया गया था। कुछ ने कहा कि वह कमज़ोर है और बेकार वक्‍ता है। क्या इसने पौलुस को अयोग्यता की भावना दी? बिलकुल भी नहीं! पौलुस जानता था कि परमेश्‍वर के स्तर पर पूरा बैठना महत्त्वपूर्ण बात है। उसने परमेश्‍वर की मदद से जो कुछ निष्पन्‍न किया था उसमें वह घमण्ड कर सकता था—दूसरे चाहे जो भी कह रहे थे। यदि आप भी अपने आपको यह सच्चाई याद दिलाते हैं कि परमेश्‍वर के साथ आपकी एक स्थिति है, तो उदास मनोदशा प्रायः चली जाएगी।—२ कुरिन्थियों १०:७, १०, १७, १८.

तब क्या यदि आप कोई कमज़ोरी या पाप करने के कारण हताश हैं? “तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों,” परमेश्‍वर ने इस्राएल से कहा, “तौभी वे हिम की नाईं उजले हो जाएंगे।” (यशायाह १:१८) हमारे स्वर्गीय पिता की करुणा और धीरज की उपेक्षा कभी मत कीजिए। (भजन १०३:८-१४) लेकिन क्या आप अपनी समस्या को दूर करने के लिए कड़ा प्रयास भी कर रहे हैं? यदि आपको अपना मन दोष भावनाओं से मुक्‍त करना है तो आपको अपना भाग अदा करना है। जैसे नीतिवचन कहता है: “जो [अपने अपराध] मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।”—नीतिवचन २८:१३.

उदासी से लड़ने का एक और तरीक़ा है अपने लिए व्यावहारिक लक्ष्य रखना। सफल होने के लिए आपको अपनी स्कूल कक्षा में सबसे आगे होने की ज़रूरत नहीं। (सभोपदेशक ७:१६-१८) यह सच्चाई स्वीकार कीजिए कि निराशाएँ जीवन का एक भाग हैं। जब ये होती हैं, तब यह महसूस करने के बजाय, ‘किसी को परवाह नहीं कि मुझे क्या होता है और न ही किसी को कभी होगी,’ अपने आपसे कहिए, ‘मैं इससे उबर जाऊँगा।’ और अच्छी तरह रो लेने में कोई बुराई नहीं।

उपलब्धि का महत्त्व

“निराशा अपने आप नहीं जाती,” डैफ़नी सलाह देती है, जो निरुत्साह के कई दौर से सफलतापूर्वक गुज़र चुकी है। “आपको एक अलग लीक पर सोचने या शारीरिक रूप से व्यस्त होने की ज़रूरत है। आपको कुछ काम शुरू करने की ज़रूरत है।” आशा पर विचार कीजिए, जिसने एक ख़राब मनोदशा से लड़ने के लिए कड़ा प्रयास करते समय कहा: “मैं सिलाई अभियान पर हूँ। मैं अपने लिए कपड़े सिल सकती हूँ और कुछ समय बाद, मैं यह भूल जाती हूँ कि कौन-सी बात मुझे तंग कर रही है। यह सचमुच मदद करता है।” ऐसे काम करना जिनमें आप अच्छे हैं आपके स्वाभिमान को बढ़ा सकता है—जो कि हताशा के दौरान अकसर बिलकुल तले में होता है।

उन गतिविधियों में भाग लेना भी लाभकारी है जिनसे आपको आनन्द मिलता है। इन्हें आज़माकर देखिए: अपने लिए उपहार-स्वरूप कुछ ख़रीदना, खेल खेलना, अपनी मनपसन्द विधि का भोजन बनाना, पुस्तकों की दुकान में पुस्तकें देखना, बाहर भोजन खाना, पढ़ना, पहेली का हल निकालना, जैसे कि जो सजग होइए! (अंग्रेज़ी) पत्रिका में निकलती हैं।

डॆबी ने पाया कि अपने लिए छोटी यात्राओं की योजना बनाने या छोटे-छोटे लक्ष्य रखने के द्वारा, वह अपनी हताश मनोदशा से निपट सकी। लेकिन, दूसरों के लिए कुछ करना उसकी एक बहुत बड़ी मदद साबित हुआ। “मुझे एक युवती मिली जो बहुत हताश थी, और मैं उसे बाइबल अध्ययन करने में मदद देने लगी,” डॆबी ने बताया। “इन साप्ताहिक चर्चाओं ने मुझे उसे यह बताने का अवसर दिया कि वह अपनी हताशा कैसे दूर कर सकती है। बाइबल ने उसे सच्ची आशा दी। साथ ही इसने मेरी भी मदद की।” ठीक जैसा यीशु ने कहा: “लेने से देना धन्य है।”—प्रेरितों २०:३५.

इस विषय में किसी से बात कीजिए

“उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है।” (नीतिवचन १२:२५) किसी हमदर्द की “भली बात” से आसमान-ज़मीन का फ़र्क पड़ सकता है। कोई मनुष्य आपका हृदय नहीं पढ़ सकता, सो इसे भरोसे के किसी व्यक्‍ति के सामने खोलिए जिसके पास मदद करने की क्षमता है। नीतिवचन १७:१७ के अनुसार, “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” “जब आप इसे अपने पास रखते हैं यह ऐसा है मानो एक बड़ा भार अकेले ही उठा रहे हों,” २२-वर्षीय ऎवन ने कहा। “लेकिन जब आप इसे किसी के साथ बाँट लेते हैं जो मदद करने के योग्य है, तब यह काफ़ी हलका हो जाता है।”

‘लेकिन मैं यह करके देख चुका हूँ,’ आप शायद कहें, ‘और मुझे बस एक भाषण मिलता है कि जीवन के उजले पहलू की ओर देखो।’ तो फिर, आप ऐसा व्यक्‍ति कहाँ पा सकते हैं जो न केवल सहानुभूतिपूर्ण श्रोता हो बल्कि एक निष्पक्ष सलाहकार भी?—नीतिवचन २७:५, ६.

मदद पाना

अपने माता-पिता ‘की ओर अपना मन लगाने’ से शुरू कीजिए। (नीतिवचन २३:२६) वे आपको किसी दूसरे से ज़्यादा अच्छी तरह जानते हैं, और प्रायः वे मदद कर सकते हैं यदि आप उन्हें करने दें तो। यदि वे समझते हैं कि समस्या गंभीर है, तो वे शायद इसका प्रबन्ध भी करें कि आपको पेशेवर मदद मिले। *

मसीही कलीसिया के सदस्य मदद का एक और स्रोत हैं। “सालों से मैंने ऐसा ढोंग किया कि असल में किसी को पता भी नहीं चला कि मैं कितनी हताश थी,” सीमा ने बताया। “लेकिन फिर मैंने कलीसिया की एक प्रौढ़ स्त्री के सामने अपना मन खोला। उन्होंने इतनी हमदर्दी दिखायी! वह मेरे ही जैसे कुछ अनुभवों से गुज़री थीं। सो मैं यह जानकर प्रोत्साहित हुई कि दूसरे लोग इस तरह की बातों से गुज़रे हैं और सही सलामत निकले हैं।”

जी नहीं, सीमा की हताशा तुरन्त नहीं गयी। लेकिन जैसे-जैसे उसने परमेश्‍वर के साथ अपना सम्बन्ध गहरा किया वह धीरे-धीरे अपनी भावनाओं से निपटने लगी। यहोवा के सच्चे उपासकों के बीच आपको भी “परिवार” और ऐसे मित्र मिल सकते हैं जो सचमुच आपके हित में दिलचस्पी रखते हैं।—मरकुस १०:२९, ३०; यूहन्‍ना १३:३४, ३५.

असीम सामर्थ

लेकिन, उदासी मिटाने की सबसे शक्‍तिशाली मदद वह है जिसे प्रेरित पौलुस “असीम सामर्थ” कहता है, जो परमेश्‍वर की ओर से आती है। (२ कुरिन्थियों ४:७) यदि आप उस पर भरोसा करें तो वह आपको हताशा से लड़ने में मदद दे सकता है। (भजन ५५:२२) वह अपनी पवित्र आत्मा से असीम सामर्थ देता है जो आपकी सामान्य शक्‍ति में नहीं।

परमेश्‍वर के साथ यह मित्रता सचमुच प्रोत्साहक है। “जब मैं दुःखी होती हूँ,” जॉर्जिया नाम की एक युवती ने कहा, “मैं बहुत प्रार्थना करती हूँ। मैं जानती हूँ कि यहोवा रास्ता निकालेगा चाहे मेरी समस्या कितनी भी बड़ी हो।” डैफ़नी इससे सहमत है, और आगे कहती है: “आप यहोवा को सब कुछ बता सकते हैं। आप बस अपना हृदय खोल दीजिए और आप जानते हैं, चाहे कोई मनुष्य न भी समझ पाए, वह आपको वास्तव में समझता है और आपकी परवाह करता है।”

सो यदि आप हताश हैं तो परमेश्‍वर से प्रार्थना कीजिए, और किसी बुद्धिमान और सहानुभूतिपूर्ण व्यक्‍ति को ढूँढिए जिसको आप अपनी भावनाएँ बता सकते हैं। मसीही कलीसिया में आपको ‘प्राचीन’ मिलेंगे जो कुशल सलाहकार हैं। (याकूब ५:१४, १५) वे परमेश्‍वर के साथ अपनी मित्रता बनाए रखने में आपकी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। क्योंकि परमेश्‍वर समझता है और आपको आमंत्रित करता है कि अपनी चिन्ताएँ उस पर डाल दें ‘क्योंकि उस को आपका ध्यान है।’ (१ पतरस ५:६, ७) सचमुच, बाइबल प्रतिज्ञा करती है: “परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।”—फिलिप्पियों ४:७.

[फुटनोट]

^ पैरा. 40 अधिकांश चिकित्सा विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बृहत अवसाद के शिकारों को पेशेवर मदद मिलनी चाहिए क्योंकि आत्महत्या का ख़तरा रहता है। उदाहरण के लिए, शायद किसी ऐसी दवा की ज़रूरत हो जो केवल एक चिकित्सा पेशेवर ही दे सकता है।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ कौन-सी कुछ बातें एक युवा को हताश कर सकती हैं? क्या आपको कभी ऐसा लगा है?

◻ क्या आप निम्न-श्रेणी जीर्ण अवसाद के लक्षण पहचान सकते हैं?

◻ क्या आप जानते हैं कि बृहत अवसाद को कैसे पहचानें? यह इतना गंभीर रोग क्यों है?

◻ उदासी से लड़ने के कुछ तरीक़े बताइए। क्या इनमें से किसी सुझाव ने आप पर काम किया है?

◻ जब आप गंभीर रूप से हताश हैं तब इस विषय में बात करना इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

[पेज 106 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

गंभीर अवसाद किशोर आत्महत्याओं में सबसे सामान्य तत्व है

[पेज 112 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

परमेश्‍वर के साथ एक व्यक्‍तिगत मित्रता आपको बृहत अवसाद से निपटने में मदद दे सकती है

[पेज 107 पर बक्स]

क्या यह बृहत अवसाद हो सकता है?

बिना किसी गंभीर समस्या के कोई भी कुछ समय के लिए नीचे दिए गए एक या अधिक लक्षणों से पीड़ित हो सकता है। लेकिन, यदि कई लक्षण बने रहते हैं, या यदि कोई लक्षण इतना गंभीर है कि वह आपकी सामान्य गतिविधियों में बाधा डालता है, तो आपको शायद (१) एक शारीरिक बीमारी है और एक डॉक्टर से पूरी जाँच कराने की ज़रूरत है या (२) एक गंभीर मानसिक विकार है—बृहत अवसाद।

कोई बात आपको आनन्द नहीं देती। आपको उन गतिविधियों में आनन्द नहीं आता जिनका कभी आप मज़ा लिया करते थे। आप अवास्तविक महसूस करते हैं, मानो धुँध में हों और बस यूँ ही जीए जा रहे हों।

पूर्ण अयोग्यता। आपको लगता है कि आपके जीवन में कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं जिसका योग दे सकें और वह पूरी तरह से व्यर्थ है। आप बहुत दोषी महसूस कर सकते हैं।

मनोदशा में बड़ा बदलाव। यदि आप कभी मिलनसार थे, तो आप रूखे बन सकते हैं या इसके उल्टे। आप शायद अकसर रोएँ।

पूर्ण आशाहीनता। आपको लगता है कि स्थिति ख़राब है, आप उसके बारे में कुछ नहीं कर सकते, और स्थिति कभी नहीं सुधरेगी।

काश आप मर जाते। व्यथा इतनी अधिक है कि बारंबार आपको लगता है कि आप मर जाते तो अच्छा होता।

एकाग्रता नहीं रख पाते। आप बार-बार कोई विचार दोहराते हैं या आप बिना समझे पढ़ते हैं।

भोजन या शौच स्वभाव में बदलाव। भूख मरना या बहुत खाना। बीच-बीच में क़ब्ज़ या दस्त की शिक़ायत।

निद्रा स्वभाव बदल जाता है। कम या बहुत नींद। आपको बारबार बुरे सपने आ सकते हैं।

दुःख-दर्द। सिरदर्द, ऐंठन, और पेट तथा सीने में दर्द। बिना किसी ख़ास कारण के आप हमेशा थकान महसूस कर सकते हैं।

[पेज 108 पर तसवीर]

अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा न कर पाना एक युवा को हताश कर सकता है

[पेज 109 पर तसवीर]

दूसरों से बात करना और अपना हृदय खोलना हताशा से निपटने का बहुत अच्छा तरीक़ा है

[पेज 110 पर तसवीर]

दूसरों के लिए कुछ करना उदासी दूर करने का एक और तरीक़ा है