ईमानदारी—क्या यह सचमुच सर्वोत्तम नीति है?
अध्याय २७
ईमानदारी—क्या यह सचमुच सर्वोत्तम नीति है?
क्या आपको कभी झूठ बोलने का मन किया है? अरुण ने अपनी माँ से कहा कि उसने अपना कमरा साफ़ कर दिया जबकि असल में, उसने सब कुछ पलंग के नीचे डाल दिया था। रिचर्ड ने भी अपने माता-पिता की आँखों में धूल झोंकने की ऐसी ही बेकार कोशिश की। उसने उन्हें बताया कि वह फ़ेल हो गया, इसलिए नहीं कि उसने पढ़ाई नहीं की, बल्कि इसलिए कि उसकी ‘अपने शिक्षक से नहीं पटती।’
सामान्यतः माता-पिता और दूसरे वयस्क ऐसे खोखले बहानों के आर-पार देख लेते हैं। फिर भी जब लाभकारी दिखता है तब यह अनेक युवाओं को झूठ बोलने, सच को तोड़ने-मोड़ने, या सरासर चीटिंग करने की कम-से-कम कोशिश तो करने से रोक नहीं पाता। एक बात यह है कि माता-पिता समस्याएँ आने पर हमेशा शान्ति से काम नहीं लेते। और जब आप नियत समय से दो घंटे देरी से आते हैं, तब यह कहने का मन कर सकता है कि रास्ते पर एक बड़ी दुर्घटना हो गयी थी, बजाय इसके कि अपने माता-पिता को यह अटपटा सत्य बताएँ—कि आपको समय का पता ही नहीं चला।
स्कूल ईमानदारी के लिए एक और चुनौती प्रस्तुत कर सकता है। छात्र अकसर गृह-कार्य के भार से दबा महसूस करते हैं। प्रायः गला-काट होड़ होती है। अमरीका में, सर्वेक्षण दिखाते हैं कि सभी छात्रों में से आधे से अधिक चीटिंग करते हैं या उन्होंने चीटिंग की है। लेकिन जबकि झूठ आकर्षक लग सकता है, और चीटिंग आसान रास्ता, फिर भी क्या सचमुच बेईमानी करने का कोई लाभ है?
झूठ बोलना—क्यों इसका लाभ नहीं
सज़ा से बचने के लिए झूठ बोलना उस समय लाभकारी लग सकता है। लेकिन बाइबल चिताती है: “जो झूठ बोला करता है, वह न बचेगा।” (नीतिवचन १९:५) इसकी बहुत संभावना है कि वह झूठ सामने आ जाएगा और सज़ा मिलेगी ही। तब आपके माता-पिता न सिर्फ़ आपकी पहली ग़लती के लिए नाराज़ होंगे बल्कि उनसे झूठ बोलने के लिए भी!
स्कूल में चीटिंग करने के बारे में क्या? कैम्पस न्यायिक कार्यक्रमों का एक निदेशक कहता है: “कोई भी छात्र जो शैक्षिक बेईमानी का काम करता है वह भावी शैक्षिक और रोज़गार अवसरों को हानि पहुँचाने के भारी जोख़िम में होगा।”
सच है, ऐसा लगता है कि बहुतेरे इससे बच निकलते हैं। चीटिंग करने से आप पास हो सकते हैं, लेकिन इसके दीर्घ-कालिक प्रभाव क्या हैं? निःसंदेह आप मानते हैं कि तैराकी की कक्षा में चीटिंग करके पास होना बेवकूफ़ी होगी। आख़िर, कौन बाहर रहना चाहता है जब बाक़ी सभी पानी में मज़ा कर रहे हैं! और यदि आपको पानी में धक्का दे दिया जाता है, तो आपकी चीटिंग की आदतों के कारण आप डूब सकते हैं!
नीतिवचन २१:६) झूठ से मिलनेवाला कोई भी लाभ भाप के जैसा क्षणिक होता है। आपके लिए कितना बेहतर होगा कि कमर कसकर पढ़ाई करें, बजाय इसके कि झूठ बोलकर और चीटिंग करके स्कूल पास करें! “परिश्रमी की योजनाएं निःसन्देह लाभदायक होती हैं,” नीतिवचन २१:५ (NHT) कहता है।
लेकिन गणित या पठन में चीटिंग करने के बारे में क्या? सच है, परिणाम शायद इतने नाटकीय न हों—शुरू-शुरू में। लेकिन, यदि आपने मूल शैक्षिक कौशल विकसित नहीं किए हैं, तो आप शायद अपने आपको रोज़गार बाज़ार में “डूबता” पाएँ! और चीटिंग करके पाया डिप्लोमा कोई ख़ास जीवन-रक्षा जैकॆट नहीं होगा। बाइबल कहती है: “जो धन झूठ के द्वारा प्राप्त हो, वह वायु से उड़ जानेवाला कुहरा है।” (झूठ बोलना और आपका अंतःकरण
मिशॆल नाम की एक युवती ने झूठ बोलकर अपने भाई पर एक मनपसन्द वस्तु तोड़ने का आरोप लगाया, जबकि बाद में उसने अपने माता-पिता से अपना झूठ स्वीकार करने के लिए विवश महसूस किया। “अधिकतर समय मुझे सचमुच बहुत बुरा लगा,” मिशॆल बताती है। “मेरे माता-पिता ने मुझ पर भरोसा रखा था, और मैंने उनको निराश किया।” यह सुचित्रित करता है कि परमेश्वर ने कैसे मानवजाति में अंतःकरण शक्ति डाली है। (रोमियों २:१४, १५) मिशॆल के अंतःकरण ने उसे दोष भावनाओं से पीड़ित किया।
१ तीमुथियुस ४:२) क्या आप सचमुच एक मरा हुआ अंतःकरण चाहते हैं?
निःसंदेह, एक व्यक्ति अपने अंतःकरण की उपेक्षा करने का चुनाव कर सकता है। लेकिन जितना अधिक वह झूठ बोलने का अभ्यास करता है, उतना ही अधिक वह कुकर्म के प्रति सुन्न हो जाता है—‘उस का विवेक मानो जलते हुए लोहे से दागा गया हो।’ (झूठ बोलने के बारे में परमेश्वर का दृष्टिकोण
“झूठ बोलनेवाली जीभ” उन बातों में से एक थी और है जिनसे “यहोवा बैर रखता है।” (नीतिवचन ६:१६, १७) आख़िरकार, स्वयं शैतान अर्थात् इब्लीस ही तो “झूठ का पिता है।” (यूहन्ना ८:४४) और बाइबल झूठ और तथाकथित नेकनीयत झूठ के बीच कोई भेद नहीं करती। “कोई झूठ, सत्य की ओर से नहीं।”—१ यूहन्ना २:२१.
अतः ईमानदारी ऐसे किसी भी व्यक्ति की नीति होनी चाहिए जो परमेश्वर का मित्र होना चाहता है। पंद्रहवाँ भजन पूछता है: “हे परमेश्वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा [“अतिथि होगा,” NW]? तेरे पवित्र पर्वत पर कौन बसने पाएगा?” (आयत १) आइए अगली चार आयतों में दिए गए उत्तर पर विचार करें:
“वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है।” (आयत २) क्या यह किसी लुटेरे या बेईमान का वर्णन लगता है? क्या यह वह है जो अपने माता-पिता से झूठ बोलता या वह दिखने का ढोंग करता है जो वह है नहीं? जी नहीं! सो यदि आप परमेश्वर के मित्र होना चाहते हैं, तो आपको ईमानदार होने की ज़रूरत है, अपने कार्यों में ही नहीं बल्कि अपने हृदय में भी।
“जो अपनी जीभ से निन्दा नहीं करता, और न अपने मित्र की बुराई करता, और न अपने पड़ोसी की निन्दा सुनता है।” (आयत ३) क्या आप कभी ऐसे युवाओं के गुट के साथ हो लिए हैं जो किसी दूसरे के बारे में कठोर, कटु बातें कह रहे थे? ऐसी बातों में भाग लेने से इनकार करने के लिए इच्छाशक्ति का बल विकसित कीजिए!
“वह जिसकी दृष्टि में निकम्मा मनुष्य तुच्छ है, और जो यहोवा के डरवैयों का आदर करता है, जो शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि भजन २६:४ से तुलना कीजिए।
उठाना पड़े।” (आयत ४) जो युवा झूठ बोलते, चीटिंग करते, या अनैतिक कारनामों के बारे में डींग मारते हैं उन्हें मित्र मत बनाइए; वे आपसे भी यही काम करने की अपेक्षा करेंगे। जैसा बॉबी नाम के एक युवा ने कहा: “जिस मित्र के साथ मिलकर आप झूठ बोलते हैं वह आपको मुसीबत में डाल देगा। वह ऐसा मित्र नहीं जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं।” ऐसे मित्र ढूँढिए जो ईमानदारी के स्तरों का आदर करते हैं।—क्या आपने ध्यान दिया कि यहोवा उनका मूल्यांकन, या “आदर” करता है जो अपना वचन निभाते हैं? शायद आपने वचन दिया था कि इस शनिवार घर के कामों में हाथ बँटाएँगे, लेकिन अब आपको उस शाम गेंद खेलने के लिए बुलाया गया है। क्या आप अपने वचन की उपेक्षा करके अपने मित्रों के साथ जाएँगे, और काम-काज अपने माता-पिता पर छोड़ देंगे, या क्या आप अपना वचन निभाएँगे?
“जो अपना रुपया ब्याज पर नहीं देता, और निर्दोष की हानि करने के लिये घूस नहीं लेता है। जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा।” (आयत ५) क्या यह सच नहीं कि चीटिंग और बेईमानी का एक मुख्य कारण लालच है? जो छात्र परीक्षाओं में चीटिंग करते हैं वे ऐसे नम्बरों के लालची हैं जिनके लिए उन्होंने पढ़ाई नहीं की है। जो लोग घूस लेते हैं वे न्याय से अधिक महत्त्व पैसे को देते हैं।
सच है, कुछ लोग राजनैतिक और व्यवसायिक नेताओं की ओर इशारा करते हैं जो अपना काम निकालने के लिए ईमानदारी के नियम तोड़ते हैं। लेकिन ऐसे व्यक्तियों की सफलता कितनी ठोस है? भजन ३७:२ उत्तर देता है: “वे घास की नाईं झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाईं मुर्झा जाएंगे।” यदि पकड़े नहीं गए और दूसरों ने थू-थू नहीं की, तो भी आख़िरकार वे यहोवा परमेश्वर के न्याय का सामना करते हैं। लेकिन, परमेश्वर के मित्र ‘कभी नहीं डगमगाएंगे।’ उनका सनातन भविष्य निश्चित किया गया है।
‘शुद्ध विवेक’ विकसित करना
तो फिर, क्या इसका ठोस कारण नहीं कि किसी भी क़िस्म का झूठ बोलने से दूर रहा जाए? प्रेरित पौलुस ने अपने और अपने साथियों के बारे में कहा: “हमें भरोसा है, कि हमारा विवेक शुद्ध है।” (इब्रानियों १३:१८) क्या उसी प्रकार आपका अंतःकरण भी असत्य के प्रति संवेदनशील है? यदि नहीं, तो इसे बाइबल और बाइबल-आधारित साहित्य, जैसे प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! का अध्ययन करने के द्वारा प्रशिक्षित कीजिए।
युवा बॉबी ने ऐसा किया है और अच्छे परिणाम मिले हैं। उसने सीखा है कि समस्याओं को झूठ के जाल से न ढाँके। उसका अंतःकरण उसे उकसाता है कि अपने माता-पिता के पास जाए और मामलों पर ईमानदारी से बात करे। कभी-कभी इसके फलस्वरूप उसे अनुशासन मिला है। फिर भी, वह स्वीकार करता है कि सच बोलने के कारण उसे ‘अन्दर से अच्छा लगता है।’
सच बोलना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन जो सच बोलने का फ़ैसला करता है वह एक अच्छा अंतःकरण, अपने सच्चे मित्रों के साथ एक अच्छा सम्बन्ध, और सबसे बढ़कर, परमेश्वर के तम्बू में “अतिथि” होने का विशेषाधिकार बनाए रखेगा! तो फिर, सभी मसीहियों के लिए ईमानदारी न केवल सर्वोत्तम नीति है, परन्तु सही नीति भी है।
चर्चा के लिए प्रश्न
◻ कौन-सी कुछ स्थितियों में झूठ बोलने का मन कर सकता है?
◻ झूठ बोलने या चीटिंग करने से क्यों लाभ नहीं? क्या आप इसे व्यक्तिगत अवलोकन या अनुभव से चित्रित कर सकते हैं?
◻ झूठ बोलनेवाला अपने अंतःकरण को कैसे हानि पहुँचाता है?
◻ भजन १५ पढ़िए। ये आयतें ईमानदारी के विषय पर कैसे लागू होती हैं?
◻ एक युवा शुद्ध अंतःकरण कैसे विकसित कर सकता है?
[पेज 212 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
‘कोई भी छात्र जो शैक्षिक बेईमानी का काम करता है वह भावी अवसरों को हानि पहुँचाने के भारी जोख़िम में होगा’
[पेज 216 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
बाइबल झूठ और तथाकथित नेकनीयत झूठ के बीच कोई भेद नहीं करती
[पेज 214 पर तसवीर]
सामान्यतः माता-पिता अवज्ञा की सफ़ाई में दी गयी कच्ची दलीलों के आर-पार देख लेंगे