तलाक़ पर और बच्चों के लिए प्रेम पर सबक़
अध्याय ९५
तलाक़ पर और बच्चों के लिए प्रेम पर सबक़
यीशु और उनके शिष्य सा.यु. वर्ष ३३ के फसह पर्व में उपस्थित होने के लिए यरूशलेम की ओर जा रहे हैं। वे यरदन नदी को पार करते हैं और पेरीया के ज़िले से गुज़रते हैं। कुछ सप्ताह पहले यीशु पेरीया में थे, लेकिन तब उनको यहूदिया को बुलाया गया क्योंकि उनका दोस्त लाज़र बीमार था। जब वह पेरीया में था, यीशु ने फरीसियों से तलाक़ के बारे में बात की थी और अब वे दुबारा इस विषय की चर्चा चलाते हैं।
फरीसियों के बीच तलाक़ के बारे में विभिन्न विचार धाराएँ हैं। मूसा ने कहा कि एक स्त्री “में कुछ लज्जा की बात” के कारण उसे तलाक़ दिया जा सकता है। कुछ लोग विश्वास करते हैं कि यह केवल अशुद्धता को संकेत करता है। लेकिन अन्य जन “कुछ लज्जा की बात में” बहुत छोटे अपराधों को भी शामिल करते हैं। इसलिए, यीशु को परखने के लिए, फरीसी पूछते हैं: “क्या हर एक कारण से अपनी पत्नी को तलाक़ देना एक पुरुष के लिए उचित है?” (NW) उन्हें यक़ीन है की यीशु जो कुछ भी कहेंगे वह उसे फरीसियों के साथ मुश्क़िल में डाल देगी जो एक विभिन्न विचार रखते हैं।
यीशु इस प्रश्न को कुशलता से निपटते हैं, किसी इंसानी राय से सहायता न माँगते हुए, लेकिन विवाह का मूल प्रबन्ध की ओर ज़िक्र करते हैं। वह पूछता है, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा कि जिस ने उन्हें बनाया, उसने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा, ‘इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे’? सो वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन है। इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करें।”
यीशु बताते हैं कि परमेश्वर का मूल उद्देश्य है कि विवाहित साथी एक साथ रहें, कि वे तलाक़ न दें। अगर यह ऐसा है, तो फरीसी जवाब देते हैं, “फिर, मूसा ने क्यों यह ठहराया, कि त्याग पत्र देकर उसे तलाक़ दे सकते हैं?”—NW.
यीशु जवाब देते हैं, “मूसा ने तुम्हारे मन की कठोरता के कारण तुम्हें अपनी-अपनी पत्नी को तलाक़ देने की आज्ञा दी, परन्तु आरंभ से ऐसा नहीं था।” हाँ, जब परमेश्वर ने अदन की बाटिका में विवाह का सही स्तर स्थापित किया, उन्होंने तलाक़ का कोई प्रबन्ध ही नहीं किया था।
यीशु फरीसियों को आगे कहते हैं, “मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कोई व्यभिचार [पॉर-नि’आ, यूनानी से] को छोड़ और किसी कारण से, अपनी पत्नी को तलाक़ देकर, दूसरी से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है।” (NW) इस तरह वह दिखाता है कि पॉर-नि’आ, जो घोर यौन-संबंधी अनैतिकता है, ही तलाक़ के लिए परमेश्वर द्वारा स्वीकृत एक मात्र आधार है।
यह महसूस करते हुए कि विवाह एक हमेशा का साथ है और सिर्फ़ इसी आधार पर तलाक़ मुमक़िन है, शिष्य यह कहने के लिए प्रेरित होते हैं: “यदि पुरुष अपनी पत्नी के साथ ऐसा संबंध है, तो ब्याह करना अच्छा नहीं है।” इस में कोई संदेह नहीं कि विवाह का विचार करनेवाले एक व्यक्ति ने वैवाहिक बंधन का स्थायित्व पर संजीदगी से ग़ौर करना चाहिए!
यीशु आगे अविवाहित रहने के बारे में बात करते हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि कुछ लड़के नपुंसक ही जन्में है, जो लैंगिक विकास न होने के वजह से विवाह के योग्य नहीं। अन्यों को क्रूरता से मनुष्यों द्वारा लैंगिक रूप से विकलांग किए जाने से नपुंसक बना दिया गया है। आख़िरकार, कई जन विवाह और लैंगिक सम्बन्धों का आनंद लेने की इच्छा को दबा देते हैं ताकि वे स्वर्ग के राज्य से संबंधित मामलों में अपने आप को अधिक ध्यान लगा सके। यीशु आखिर में कहते हैं, “जो [अविवाहितता] को ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करें।”
अब लोग अपने छोटे बच्चों को यीशु के पास लाना शुरू करते हैं। बहरहाल, शिष्य यीशु को अनावश्यक तनाव से बचाने के लिए बच्चों को डाँटकर वहाँ से भगाने की कोशिश करते हैं। लेकिन यीशु कहते हैं: “बालकों को मेरे पास आने दो; और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक की नाईं ग्रहण न करेगा वह उस में कभी प्रवेश न पाएगा।”
यीशु यहाँ पर कितने बढ़िया सबक़ देते हैं! परमेश्वर का राज्य को स्वीकार करने के लिए, हमें छोटे बच्चों की दीनता और शिक्षणीयता का अनुकरण करनी चाहिए। परन्तु यीशु का उदाहरण यह भी दर्शाता है, ख़ासकर माता-पिता के लिए कि कितना आवश्यक है कि वे अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करें। अब यीशु छोटे बच्चों को अपनी गोद में लेकर और उन्हें आशिष देकर, अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं। मत्ती १९:१-१५; व्यवस्थाविवरण २४:१; लूका १६:१८; मरकुस १०:१-१६; लूका १८:१५-१७.
▪ तलाक़ के विषय पर फरीसियों के कौनसे अलग दृष्टि हैं, और वे किस तरह यीशु को परखते हैं?
▪ फरीसियों का यीशु को परखने की कोशिश से यीशु कैसे निपटते हैं, और वह तलाक़ के लिए कौनसा एक मात्र आधार देता है?
▪ यीशु के शिष्य क्यों कहते हैं कि विवाह करना उचित नहीं, और यीशु कौनसी सिफ़ारिश देते हैं?
▪ छोटे बच्चों के साथ अपने व्यवहार से यीशु हमें क्या सिखाते हैं?