जॉर्जिया | 1991-1997
“परमेश्वर उसे बढ़ाता रहा।”—1 कुरिं. 3:6.
सन् 1991 में जब सोवियत संघ बिखर गया तब जॉर्जिया को आज़ादी मिल गयी। मगर राजनीति में हुए बदलावों और देश में होनेवाले दंगे-फसाद की वजह से लोगों के हालात बद-से-बदतर होते गए। गेनादी गुदाद्ज़े, जो उन सालों के दौरान सर्किट निगरान था, बताता है कि लोग ब्रैड खरीदने के लिए लगभग पूरा दिन कतार में खड़े रहते थे।
ऐसे में साक्षी अकसर कतार में खड़े लोगों को बाइबल का संदेश सुनाते थे। गेनादी कहता है, “उन मुश्किल सालों के दौरान तकरीबन हर कोई सच्चाई में दिलचस्पी दिखाता था। हमें ऐसे सैकड़ों लोगों के पते मिले जो बाइबल अध्ययन करना चाहते थे।”
हर सभा के आखिर में ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाई ऐसे लोगों के नाम
और पते पढ़कर सुनाते थे जो चाहते थे कि साक्षी उनसे मिलें। प्रचारक उन लोगों से मिलने उनके घर जाते थे।भाई लेवानी साबश्वीली, जो तिब्लिसी में प्राचीन था, बताता है कि जब एक शादीशुदा जोड़े ने अपना पता दिया तो क्या हुआ। वह कहता है, “बाकी सभी लोगों के पते प्रचारकों ने लिए, मगर कोई भी उस जोड़े के पास जाने के लिए तैयार नहीं था। वह इसलिए क्योंकि वे बहुत दूर रहते थे और हममें से ज़्यादातर के पास पहले ही कई बाइबल अध्ययन थे।”
कुछ महीनों बाद उसी जोड़े ने फिर से बाइबल अध्ययन के लिए गुज़ारिश भेजी। कुछ समय रुककर उन्होंने तीसरी बार गुज़ारिश भेजी। इस बार उन्होंने एक परचा भी भेजा जिसमें उन्होंने साक्षियों से मिन्नत की कि वे उनके खून के दोषी न बनें। (प्रेषि. 20:26, 27) लेवानी बताता है, “नए साल के जश्न का समय था। हम उस समय लोगों के यहाँ नहीं जाते थे। फिर भी हमने उस जोड़े से मिलने का फैसला किया क्योंकि हम अब और देर नहीं कर सकते थे।”
वह जोड़ा था, रोयीनी और नाना ग्रीगालाश्वीली। वे बाइबल सीखने के लिए तरस रहे थे। एक दिन सुबह कड़ाके की ठंड में जब भाई लेवानी और एक और भाई उनके घर पहुँचे तो उनकी आँखें फटी-की-फटी रह गयीं। उन्होंने फौरन बाइबल का अध्ययन करना शुरू कर दिया। आज रोयीनी और नाना अपने बच्चों के साथ पायनियर सेवा कर रहे हैं।
दिलचस्पी दिखानेवालों तक पहुँचने के लिए कड़ी मेहनत
जिन लोगों ने सच्चाई स्वीकार की वे इतने एहसानमंद थे कि उन्होंने दूसरों को भी खुशखबरी सुनाने के लिए अपना समय, अपनी ताकत और अपने साधन खुशी-खुशी दे दिए। ऐसा ही एक जोड़ा था, बाद्री और मारीना कोपालीयानी। उन पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ थीं, फिर भी वे बड़ी लगन से नेकदिल लोगों को सच्चाई सिखाने के लिए दूर-दराज़ के गाँवों तक जाते थे।
बाद्री और मारीना के दो किशोर बेटे थे, गोचा और लेवानी। वे अपने
बच्चों के साथ शनिवार और रविवार को दुशेती जाया करते थे, जो तिब्लिसी के उत्तर में एक खूबसूरत पहाड़ी इलाका है। कभी-कभी वे दूर के गाँवों में जाने के लिए करीब 150 किलोमीटर का घुमावदार रास्ता तय करते थे।एक दिन एक औरत ने बाद्री और उसकी पत्नी को अपने काम की जगह बुलाया। बाद्री बताता है, “वहाँ जाने पर हमने देखा कि एक बड़े-से कमरे में करीब 50 लोग हमारा इंतज़ार कर रहे हैं! पहले तो मैं चौंक गया। मगर फिर मैंने यहोवा से प्रार्थना की और उनके साथ मत्ती 24 की कुछ आयतों पर चर्चा की जहाँ आखिरी दिनों की निशानी बतायी गयी है। एक व्यक्ति यह सुनकर इतना हैरान रह गया कि उसने पूछा, ‘हमारे पादरी हमें ये बातें क्यों नहीं बताते?’”
स्मारक ने लोगों का ध्यान खींचा
यीशु की मौत की स्मारक सभा की वजह से जॉर्जिया के कई नेकदिल लोगों को सच्चाई के बारे में सीखने का और भी मौका मिला। मिसाल के लिए, 1990 में जब तिब्लिसी में बहन ईया बाद्रीद्ज़े के घर पर स्मारक की सभा रखी गयी तो उस इलाके के कई लोगों में दिलचस्पी जागी।
बहन बाद्रीद्ज़े ने कहा कि स्मारक के लिए वह अपने अपार्टमेंट में जगह देने को तैयार है। उसका अपार्टमेंट 13वीं मंज़िल पर था। बहन ने अपने बच्चों की मदद से बैठक कमरा खाली किया। मगर इतने सारे मेहमानों के लिए वह कुर्सियाँ कहाँ से लाती? जॉर्जिया में अकसर परिवार बड़ी-बड़ी पार्टियों के लिए टेबल और कुर्सियाँ किराए पर लेते थे। मगर बहन ने सिर्फ कुर्सियाँ किराए पर लीं, इसलिए दुकानवाले उससे पूछते रहे, “आपको टेबल नहीं चाहिए? आप लोग खाना कैसे खाएँगे?”
बहन बाद्रीद्ज़े ने अपने अपार्टमेंट में किसी तरह इतनी जगह बना ली कि सब लोग वहाँ समा गए। यीशु की मौत के स्मारक में 200 लोग हाज़िर हुए! इसलिए ताज्जुब नहीं कि बहुत-से पड़ोसियों ने यहोवा के साक्षियों के बारे में कई सवाल पूछे।
एक यादगार स्मारक
सन् 1992 में देश की अलग-अलग जगहों में स्मारक के लिए बड़े-बड़े हॉल किराए पर लिए गए। दावीत सामकाराद्ज़े, जो गोरी में रहता था, इस बारे में एक अनुभव बताता है। सफरी निगरान ने वहाँ के प्रचारकों से पूछा कि स्मारक के लिए क्या इंतज़ाम किया जा रहा है।
जब प्रचारकों ने उसे बताया कि वे किसी के घर में स्मारक रखने की सोच रहे हैं तो उसने उनसे पूछा, “क्या आपके शहर में कोई बड़ा हॉल नहीं है? आप लोग उसे किराए पर क्यों नहीं लेते?” प्रचारकों को लगा कि इतना बड़ा हॉल लेने की ज़रूरत नहीं क्योंकि उनकी गिनती बस 100 से थोड़ी ज़्यादा थी, जबकि हॉल में 1,000 से ज़्यादा लोग समा सकते थे।
तब सफरी निगरान ने यह सुझाव दिया: “अगर हर प्रचारक दस लोगों को बुलाए तो सारी सीटें भर जाएँगी।” शुरू में भाइयों को यह बात नामुमकिन लगी, फिर भी उन्होंने वह सुझाव मानने के लिए बहुत मेहनत की। नतीजा, स्मारक में 1,036 लोग हाज़िर हुए! वहाँ के भाई-बहनों को हैरानी भी हुई और खुशी भी। *
जोशीले पायनियर नए इलाकों में गए
सन् 1992 तक जॉर्जिया में अब भी ऐसे कई इलाके थे जहाँ यहोवा के लोगों ने बाइबल का संदेश नहीं सुनाया था। जब पूरे देश में आर्थिक तंगी फैली थी तो ऐसे में उन इलाकों तक खुशखबरी कैसे पहुँचती?
तामाज़ी बीब्लाइया, जो उस वक्त पश्चिमी जॉर्जिया में रहता था, बताता है: “एक सफरी निगरान ने हममें से कुछ लोगों से बात की कि उन इलाकों तक पहुँचने के लिए क्या किया जा सकता है। खास पायनियरों का इंतज़ाम कैसे किया जाता है, इस बारे में हमें ज़्यादा जानकारी नहीं थी। मगर हम यह ज़रूर जानते थे कि खुशखबरी जल्द-से-जल्द सुनायी जानी है।” (2 तीमु. 4:2) इसलिए उन्होंने 16 पायनियरों को चुना और उन्हें देश के अलग-अलग इलाकों में भेज दिया।—साथ में दिया नक्शा देखें।
मई 1992 में तिब्लिसी में तीन घंटे की एक सभा रखी गयी, जिसमें उन पायनियरों का जोश बढ़ाया गया जिन्हें पाँच महीनों के लिए उन इलाकों में सेवा करने भेजा गया था। महीने में एक बार प्राचीन उनके पास जाकर उनका हौसला बढ़ाते थे और उन्हें ज़रूरत की चीज़ें भी देते थे।
मानेया आदुयाश्वीली और नाज़ी ज़्वानीया नाम की दो पायनियर बहनों को ओज़ुर्गेती कसबे में भेजा गया। उस वक्त मानेया 60 साल की थी। उसने बताया, “हम जानते थे कि ओज़ुर्गेती के पास एक औरत रहती थी जिसे हमारे संदेश में दिलचस्पी थी। इसलिए वहाँ जाते ही हमने उससे मिलने का इंतज़ाम किया। जब हम उस औरत के घर गए तो हमने देखा कि वह हमारा इंतज़ार कर रही थी। उसके अलावा करीब 30 लोग और थे जिन्हें उसने बुलाया था। उस दिन हमने कई बाइबल अध्ययन शुरू किए।”
अगले कुछ महीनों के दौरान इसी तरह अच्छे नतीजे मिलते रहे। ओज़ुर्गेती में पायनियरों के जाने के बस पाँच महीने बाद 12 लोग बपतिस्मे के लिए तैयार हो गए!
उनकी त्याग की भावना रंग लायी
पावले आब्दुशेलीश्वीली और पाआता मोर्बेदाद्ज़े नाम के दो पायनियर भाइयों को तसागेरी भेजा गया। यह जगह ऐसे इलाके में है जहाँ पुरानी परंपराओं और ईसाईजगत की शिक्षाओं को सख्ती से माना जाता है।
वहाँ सर्दियों में कड़ाके की ठंड पड़ती है। सर्दियाँ शुरू होने से पहले
पायनियरों का पाँच महीने का समय खत्म होनेवाला था। पाआता को दूसरे इलाके में अनुवाद काम के लिए बुलाया गया। अब पावले को फैसला करना था कि वह क्या करेगा। वह बताता है, “मैं जानता था कि तसागेरी में सर्दियाँ बिताना बहुत मुश्किल होगा, मगर हमारे बाइबल विद्यार्थियों को और भी मदद की ज़रूरत थी। इसलिए मैंने वहीं रहने का फैसला किया।”पावले बताता है, “मैं वहाँ के एक परिवार के साथ रहने लगा। दिन का ज़्यादातर वक्त मैं प्रचार करने चला जाता था। शाम को मैं उस परिवार के साथ पहली मंज़िल पर, बैठक कमरे में लकड़ी के चूल्हे के पास बैठता था। लेकिन जब रात को सोने का वक्त आ जाता तो मैं अपनी गरम टोपी पहन लेता और एक मोटा-सा कंबल ओढ़कर सो जाता था।”
जब प्राचीन वसंत के मौसम में पावले से मिलने गए तो तब तक 11 लोग बपतिस्मा-रहित प्रचारक बनने के काबिल हो चुके थे। कुछ ही समय बाद उन सबने बपतिस्मा लिया।
^ पैरा. 20 सन् 1992 में जॉर्जिया में 1,869 जोशीले प्रचारक थे और स्मारक की हाज़िरी 10,332 थी।