जो सही है उसे करने के लिये युद्ध
अध्याय २६
जो सही है उसे करने के लिये युद्ध
१. किन दो बातों के विरुद्ध मसीहियों का लड़ते रहना आवश्यक है?
जितने समय तक शैतान की दुनिया कायम रहती है उतने समय तक मसीहियों का उसके दुष्ट प्रभाव से मुक्त रहने के लिये लड़ते रहना आवश्यक है। प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “परमेश्वर के सारे हथियार बांध लो जिससे तुम इबलीस की [धूर्त्त] युक्तियों के विरुद्ध दृढ़ता से खड़े रहो।” (इफ़िसियों ६:११-१८) तथापि हमारा यह युद्ध केवल शैतान और उसकी दुनिया के विरुद्ध नहीं बल्कि बुरे कार्यों के प्रति हमारी अपनी इच्छाओं के प्रति भी है। बाइबल कहती है: “मनुष्य के मन की प्रवृत्ति उसकी युवावस्था से ही बुरी होती है।”—उत्पत्ति ८:२१; रोमियों ५:१२.
२. (क) हमें क्यों अक्सर अनुचित कार्य करने की तीव्र इच्छा होती है? (ख) हमें क्यों अनुचित इच्छाओं के विरुद्ध लड़ते रहना चाहिये?
२ प्रथम पुरुष आदम से जो पाप हमने उत्तराधिकार में प्राप्त किया है उसके कारण हमारा मन बुरे कार्य करने के लिये शायद लालायित हो। यदि हम उस लालसा के सामने झुक जायें तो हम परमेश्वर की नयी व्यवस्था में अनन्त जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। इसलिये जो सही है उसे करने के लिये हमें लड़ना आवश्यक है। यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस को भी इसी प्रकार का युद्ध करना पड़ा था जैसा कि उसने व्याख्या की: “मैं भलाई करने की इच्छा करता हूँ तो बुराई मेरे साथ होती है।” (रोमियों ७:२१-२३) आपको भी शायद यह युद्ध कठिन ज्ञात हो। कभी-कभी आपके अन्दर एक शक्तिशाली संघर्ष होता हो। तब आप उस समय क्या करने का निर्णय करेंगे?
३. (क) वह आन्तरिक संघर्ष क्या है जो अनेक व्यक्तियों में होते रहते हैं? (ख) इस वास्तविकता से कौनसी बाइबल सच्चाई का प्रदर्शन होता है कि अनेक व्यक्ति अच्छे कार्य करने की इच्छा तो रखते हैं, परन्तु गलत कार्य करते हैं?
३ आप पृथ्वी पर आदर्श स्थितियों के अधीन सर्वदा जीवित रहने के विषय में परमेश्वर की अद्भुत प्रतिज्ञाएं जान गये हैं। आपको इन प्रतिज्ञाओं पर विश्वास है और आप अपने लिये ये अच्छी बातें चाहते हैं। अतः आप जानते हैं कि परमेश्वर की सेवा करना आप ही के चिरस्थायी उत्तम लाभ के लिये है। परन्तु आप अपने मन में उन वस्तुओं की इच्छा करें जो आप जानते यिर्मयाह १७:९.
हैं कि बुरी है। कभी-कभी शायद आपके मन में व्यभिचार करने, चोरी करने या अन्य किसी अनुचित कार्य करने की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न हो। कुछ व्यक्ति जो इस पुस्तक का अध्ययन कर रहे हैं शायद वास्तव में इस प्रकार के बुरे कार्यों में लिप्त हों यद्यपि कि वे जानते हैं कि परमेश्वर इन बातों का धिक्कार करता है। यह वास्तविकता कि जब वे सही कार्य करने की इच्छा करते हैं तो वे अनुचित कार्य करने लगते हैं तो उससे बाइबल की यह सच्चाई प्रदर्शित होती है: “मन सबसे ज्यादा विश्वासघाती और अत्यंत बुरा है।”—यह युद्ध जीता जा सकता है
४. (क) उस संघर्ष में जीत होती है या हार वह किस पर निर्भर है? (ख) जो उचित है उसके लिए युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए क्या अपेक्षित है?
४ तथापि इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई व्यक्ति अनुचित कार्य करने के लिये अपनी तीव्र इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख सकता है। यदि आप वास्तव में चाहते हैं तो आप अपने मन को दृढ़ कर सकते हैं जिससे कि वह आपका सही मार्ग पर नेतृत्व करेगा। परन्तु यह करना आप पर निर्भर है। (भजन संहिता २६:१, ११) कोई दूसरा आपके लिये यह युद्ध नहीं जीत सकता। इसलिये सबसे पहले जीवनदायक बाइबल ज्ञान प्राप्त करते रहिये। (यूहन्ना १७:३) अपने दिमाग में केवल ज्ञान लेने की अपेक्षा कुछ अधिक करने की आवश्यकता है। उसे आपके हृदय की गहराई तक उतरना चाहिये जो आप सीख रहे हैं। उसके विषय में आपके मन में गहरी अनुभूति होनी चाहिये जिससे कि आप वास्तव में उसपर अमल करने की इच्छा करें।
५. परमेश्वर के नियमों का हार्दिक मूल्यांकन कैसे कर सकते हैं?
५ परन्तु आप परमेश्वर के नियमों के लिये हृदय से मूल्यांकन कैसे कर सकते हैं? आपको उनके विषय में चिन्तन करने और गहराई से सोचने की आवश्यकता है। उदाहरणतया आप अपने आपसे पूछिये: परमेश्वर की आज्ञा पालन करने से वास्तव में क्या फर्क पडता है? फिर उन लोगों के जीवन पर दृष्टि डालिये जिन्होंने उसके नियमों की उपेक्षा की जैसा कि एक १९ वर्षीय लड़की ने की जिसने यह लिखा: “मैं तीन बार यौन रोग से ग्रस्त हो चुकी हूँ। पिछली बार इसकी कीमत मुझे यह देनी पड़ी कि मुझसे जनन का अधिकार छिन गया क्योंकि आपरेशन द्वारा मेरा गर्भाशय निकाल दिया गया।” जब लोग परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन करते हैं तब उससे उत्पन्न सारी परेशानियों पर विचार करना वास्तव में एक दुःखपूर्ण बात है। (२ शमूएल १३:१-१९) एक स्त्री जिसने व्यभिचार किया दुःखी होकर बोली: “अवज्ञा से जो दुःख और भावात्मक परास्ति उत्पन्न होती है वह उस योग्य नहीं कि उसके लिये ये अनुचित कार्य किया जाय। मैं अब उसके कारण दुःख उठा रही हूँ।”
६. (क) जो बुरा है उसे करने से जो भोग विलास मिलता है वह क्यों व्यर्थ है? (ख) मिस्र में मूसा किस प्रकार के जीवन का सुख उठा सकता था?
६ फिर भी आप लोगों को यह कहते सुनेंगे कि परगमन, शराब में मतवाला होना और नशीली दवाओं का प्रयोग करना आमोद-प्रमोद है। परन्तु यह तथाकथित आमोद-प्रमोद केवल अस्थायी है। इस प्रकार के कार्यमार्ग पर चलने के लिये पथभ्रष्ट न होइये क्योंकि वह आपकी सच्ची और स्थायी खुशी छीन लेगा। मूसा के विषय में सोचिये जिसका पालन-पोषण “फ़िरौन की पुत्री के पुत्र” की हैसियत से हुआ था। वह प्राचीन मिस्र शाही घराने में समृद्धि का जीवन इब्रानियों ११:२४, २५) अतः अनैतिक बंधन रहित जीवन-रीति जो प्रत्यक्षतः उस समय मिस्री शाही घराने में थी उसमें अवश्य आनन्द अथवा आमोद-प्रमोद प्राप्त होता होगा। तब क्यों मूसा ने उस प्रकार की जिन्दगी से अपना मुंह फेर लिया था?
व्यतीत करता था। तथापि बाइबल कहती है कि जब वह बड़ा हुआ तो उसने “पाप का अस्थायी आनन्द लेने की अपेक्षा परमेश्वर के लोगों के साथ दुःख उठाना” पसन्द किया। (७. मिस्री शाही घराने में मूसा ने “पाप के अस्थायी आनंद” से क्यों मुंह फेर लिया था?
७ यह इसलिये हुआ कि मूसा यहोवा परमेश्वर में विश्वास करता था। और वह पाप के अस्थायी आनन्द की अपेक्षा जो वह मिस्री शाही घराने में अनुभव करता कहीं बेहतर बातों से परिचित था। बाइबल कहती है “उसकी आँखें एकाग्रता से फल पाने की ओर लगी थीं।” मूसा उन बातों पर जिनकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने की थी, मनन अथवा गहन चिन्तन करता था। उसे परमेश्वर के इस उद्देश्य में कि वह न्याययुक्त नयी व्यवस्था सृष्ट करेगा, विश्वास रखता था। मानवजाति के लिये परमेश्वर के महान प्रेम और रुचि ने उसके हृदय पर गहरा प्रभाव डाला था। इसका केवल यही कारण नहीं था कि मूसा ने यहोवा के विषय में सुना या पढ़ा था। बाइबल कहती है कि “वह उसकी ओर जो अदृश्य है, देखता रहा इब्रानियों ११:२६, २७) मूसा के लिये यहोवा वास्तविक था, और उसकी अनन्त काल की प्रतिज्ञाएं भी वास्तविक थीं।
और दृढ़ रहा।” (८. (क) उचित कार्य के लिए युद्ध में जीतने के लिए हमें क्या करने की आवश्यकता है? (ख) वह दृष्टिकोण जैसा कि एक युवक ने अभिव्यक्त किया, क्या है जो हमारे लिए भी रखना बुद्धिमता है?
८ क्या यह आपके लिये भी सच है? क्या आप यहोवा को एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में अर्थात् एक पिता के रूप में जो आपसे प्रेम करता है, देखते हैं? जब आप पृथ्वी पर परादीस में अनन्त जीवन प्रदान करने की उसकी प्रतिज्ञाओं के विषय में पढ़ते हैं तो क्या आप अपने आपको इन आशीषों का आनन्द लेते हुए चित्रित करते हैं? (पृष्ठ १५६ से १६२ को देखिये) अनेक दबावों द्वारा अनुचित कार्य करने के विरुद्ध युद्ध जीतने के लिये हमें यहोवा के साथ नज़दीकी संबंध रखने की आवश्यकता है। जैसा कि मूसा ने किया हमें भी “फल पाने की ओर एकाग्रता से देखने की आवश्यकता है।” एक बीस वर्षीय युवक जिसके सामने व्यभिचार करने का प्रलोभन आया, मूसा का दृष्टिकोण रखता था। उसने कहा: “अनन्त काल के जीवन के लिये मेरी आशा अतिमूल्यवान है कि उसे अनैतिकता के कुछ क्षणों के लिये खोना व्यर्थ है।” क्या इस प्रकार की मनोवृत्ति रखना सही नहीं है?
दूसरों की गलतियों से सीखना
९. जो उचित है उसके लिए युद्ध करने में राजा दाऊद किस प्रकार असफल हुआ?
९ आप इस युद्ध में अपनी सतर्कता को ढील नहीं दे सकते जैसा कि राजा दाऊद से एक बार हुआ था। एक दिन वह अपने महल की छत से नीचे देख रहा था और उसने दूर सुन्दर बतशेबा को स्नान करते देखा। अपने मन में अनुचित विचारों के उठने से पहले अपना मुंह मोड़ने की अपेक्षा वह उस ओर देखता ही रहा। बतशेबा के साथ मैथुनिक संबंध रखने की उसकी लालसा इतनी तीव्र हो गयी कि उसने उसे अपने महल में बुला लिया। बाद में, क्योंकि वह गर्भवती हो गयी और वह अपने और उसके व्यभिचार को छिपाने योग्य नहीं हुआ इसलिये उसने युद्ध में उसके पति के मारे जाने का प्रबंध किया।—२ शमूएल ११:१-१७.
१०. (क) दाऊद को अपने पाप के लिए कैसे सजा मिली? (ख) वह क्या है जो दाऊद को व्यभिचार करने से बचा सकता था?
भजन संहिता ५१:३, ४; २ शमूएल १२:१०-१२) दाऊद ने जितना समझा था उससे कहीं अधिक उसका हृदय कपटी निकला; उसकी अनुचित लालसाओं ने उसे पराजित किया। बाद में उसने कहा: “देख! मैं त्रुटि के साथ उत्पन्न हुआ और पाप के साथ मैं अपनी माता के गर्भ में पड़ा।” (भजन संहिता ५१:५) परन्तु दाऊद ने बतशेबा के साथ जो बुरा कार्य किया था उसके होने की जरूरत नहीं थी। उसकी समस्या यह थी कि वह उसकी ओर देखता रहा; उसने अपने आपको उस स्थिति से बचाए नहीं रखा जिससे दूसरे पुरुष की पत्नी के लिये उसकी यौन इच्छा बढ़ गयी थी।
१० वह वास्तव में एक भयंकर पाप था। और दाऊद ने वास्तव में उसके लिये दुःख उठाया। जो कुछ उसने किया उससे न केवल वह व्यथित हुआ बल्कि यहोवा ने उसे उसकी यह सज़ा दी कि बाक़ी सारी उम्र अपने घराने में परेशानियों का सामना करना पड़ा। (११. (क) हमें दाऊद के अनुभव से क्या सीखना चाहिये? (ख) वे क्रियाकलाप क्या हैं जो “कामुकता की भूख” को उत्तेजित कर सकते हैं? (ग) जैसा कि एक युवक ने कहा है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने आपको किस बात से दूर रखेगा?
११ हमें दाऊद के इस अनुभव से सीखना चाहिये कि हम उन स्थितियों के विरुद्ध चौकस रहें जो अनुचित काम-वासनाओं को उत्तेजित करती हैं। उदाहरणतया उस समय क्या घटित होगा यदि आप उन पुस्तकों को पढ़े और टेलीविज़न पर उन कार्यक्रमों और फिल्मों को देखे जो कामुकता को अधिक महत्व देते हैं? इससे काम-वासनाओं के उत्तेजित होने की संभावना होगी। इसलिये इन कार्यकलापों और मनोरंजन से अपने आपको दूर रखिये जो “कामुकता की भूख” को उत्तेजित करती है। (कुलुस्सियों ३:५; १ थिस्सलुनीकियों ४:३-५; इफिसियों ५:३-५) अपने आपको किसी दूसरे व्यक्ति के साथ ऐसी स्थिति में न रखिये जिससे व्यभिचार होने की संभावना हो। एक १७ वर्षीय युवक ने बुद्धिमता की बात कही: “कोई भी कह सकता है, ‘हम जानते हैं कि हम किस हद तक जा सकते हैं।’ यह सच है कि एक व्यक्ति शायद जानता हो कि कहाँ तक उसे जाना चाहिये परन्तु कितने हैं जो उस हद तक जा सकते हैं? बेहतर है कि आप स्वयं को उस स्थिति से दूर रखें।”
१२. यूसुफ के किस उदाहरण को हमें अपने मन में रखना चाहिये?
१२ यदि दाऊद ने अपने मन में यूसुफ के उदाहरण को याद रखा होता तो वह परमेश्वर के विरुद्ध इतना बड़ा पाप कभी नहीं करता। मिस्र में यूसुफ पोतीपर के घराने का अधिकारी था। पोतीपर जब कभी बाहर रहता था तो उसकी यौन-मद पत्नी सुन्दर यूसुफ को यह कहकर पथभ्रष्ट करने का प्रयत्न करती थी: “मेरे साथ लेट जा।” परन्तु यूसुफ इन्कार करता था। तब एक दिन उसने उसे पकड़ लिया और उसे अपने साथ लिटाने का प्रयत्न किया परन्तु यूसुफ ने अपने को छुड़ा लिया और भाग गया। वह यह सोचकर नहीं कि अपनी स्वयं की यौन लालसाओं को सन्तुष्ट करे परन्तु यह सोचकर परमेश्वर की दृष्टि में जो उचित है उसे करके अपने हृदय को दृढ़ रखता था। उसने पूछा: “मैं इतनी बड़ी दुष्टता का कार्य करके परमेश्वर के विरुद्ध वास्तव में पाप कैसे कर सकता हूँ?”—सहायता जो आपको विजय प्राप्त करने के लिये चाहिये
१३, १४. (क) इस युद्ध को जीतने के लिए किस बात की आवश्यकता है? (ख) उन व्यक्तियों में जो कुरिन्थ में मसीही बन गये थे उन्होंने अपने आप में क्या परिवर्तन उत्पन्न किये थे और किसकी सहायता से? (ग) पौलुस और तीतुस पहले किस प्रकार के व्यक्ति रहे थे?
१३ इस युद्ध पर विजय प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि आप बाइबल ज्ञान को अपने हृदय की गहराई में इस हद तक उतार लें जिससे कि आप उसपर अमल करने के लिये प्रेरित १ कुरिन्थियों ६:९-११.
हों। परन्तु, यहोवा के दृश्य संगठन का भाग बनने के लिये परमेश्वर के लोगों की संगति में रहने की भी आवश्यकता है। संगठन की सहायता से आप चाहे कितने ही अधिक अनुचित कार्यों में अंतर्ग्रस्त हों, आप बदल सकते हैं। प्राचीन कुरिन्थुस के व्यक्तियों के विषय में जो बदल गये थे, प्रेरित पौलुस ने यह लिखा: “धोखा न खाओ। न व्यभिचारी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न वे पुरुष जो अस्वाभाविक कार्यों के लिये रखे जाते हैं, न पुरुषगामी, न चोर, न लोभी, न शराबी, न गाली देने वाले, न लुटेरे परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे। और तुममें से कितने एसे ही थे। परन्तु तुम . . . धुलकर पवित्र हो गये हो।”—१४ जरा सोचिये! उन प्रारंभिक मसीहियों में कुछ पहले व्यभिचारी, परस्त्रीगामी, समलिंगी, चोर और शराबी रह चुके थे। परन्तु मसीही संगठन की सहायता से वे बदल गये। प्रेरित पौलुस स्वयं भी किसी समय बुरे कार्यों में लिप्त था। (१ तीमुथियुस १:१५) संगी मसीही तीतुस को उसने लिखा: “क्योंकि हम भी पहले निर्बुद्धि अवज्ञाकारी, भ्रम में पड़े हुए, रंग-रंग की अभिलाषाओं और सुख-विलास के दासत्व में थे।”—तीतुस ३:३.
१५. (क) किस बात से प्रदर्शित होता है कि पौलुस के लिए जो उचित था उसका करना उसके लिए आसान नहीं था? (ख) हम कैसे पौलुस के उदाहरण से लाभान्वित हो सकते?
१५ जब पौलुस मसीही बन गया, तब क्या उसके लिये जो बात सही है उसे करना आसान हो गया था? नहीं। पौलुस को अनुचित अभिलाषाओं और सुखविलास के विरुद्ध जिनकी दासता में वह एक समय रह चुका था, जीवन भर युद्ध करना पड़ा था। उसने लिखा: “मैं अपनी देह को मारता कूटता हूँ और उसे अपने वश में रखता हूँ ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके मैं स्वयं अस्वीकृत समझा जाऊं।” (१ कुरिन्थियों ९:२७) पौलुस ने अपने साथ ‘सख्ती बरती’ की वह अपने आपको वही करने के लिये विवश करता था जो सही था, यहाँ तक कि जब उसकी देह अनुचित कार्य करने की इच्छा करती थी। यदि आप भी वही करें जैसा उसने किया था तो आप भी इस युद्ध को जीत सकते हैं
१६. वे आधुनिक उदाहरण क्या हैं जो हमें सही करने के युद्ध में विजय प्राप्त करने में सहायता दे सकते हैं?
१६ यदि आपको कोई बुरी आदत पर विजय प्राप्त करने में कठिनाई महसूस हो रही है तो आप यहोवा के गवाहों के अगले बड़े सम्मेलन में शरीक होइये। निःसन्देह आप उन लोगों की खुशी और स्वच्छ आचरण से, जो वहाँ उपस्थित होंगे, प्रभावित होंगे। फिर भी इन लोगों में अनेक व्यक्ति किसी समय इसी दुनिया के भाग थे जिसमें व्यभिचार, परस्त्रीगमन, शराब में मतवाला होना, समलैंगिकता, धूम्रपान, नशीली दवाओं का सेवन, चोरी, छल-कपट, झूठ और जुआबाज़ी इत्यादि बहुत ही सामान्य है। इनमें अनेक लोग एक समय इन्ही बातों में लिप्त रहते थे। (१ पतरस ४:३, ४) इसके अतिरिक्त जब आप यहोवा के गवाहों की संगति में उनकी मंडली की छोटी सभाओं में सम्मिलित होते हैं, और इसके लिये आपको देर नहीं करनी चाहिये, तो आप उन व्यक्तियों के बीच होंगे जिन्होंने उसी प्रकार के बुरे कार्यों और इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के लिये युद्ध किया है जिनके विरुद्ध अब आप शायद युद्ध कर रहे हों। अतः हिम्मत न हारिये! वे वही करने के लिये युद्ध को जीत रहे हैं जो सही है। आप भी परमेश्वर की सहायता से यही कर सकते हैं।
१७. (क) यदि हम युद्ध में विजय प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें किनकी संगति की आवश्यकता है? (ख) अपनी समस्याओं के लिए आप किनसे सहायता प्राप्त कर सकते हैं?
१७ यदि आप अब कुछ समय से यहोवा के गवाहों के साथ बाइबल का अध्ययन करते रहे हैं, तो निःसन्देह आप किंगडम हाल में उनकी सभाओं में शरीक हुए हैं। इन सभाओं में नियमित रूप से उपस्थित होने की आदत डालिये। हम सबको इस प्रकार की मसीही संगति से आध्यात्मिक प्रोत्साहन प्राप्त करने की आवश्यकता है। (इब्रानियों १०:२४, २५) मसीही सभा के “प्रौढ़ पुरुषों” अथवा प्राचीन से परिचित होने का प्रयत्न कीजिये। “परमेश्वर के झुंड का नेतृत्व करना” उनकी जिम्मेदारी है। (१ पतरस ५:१-३; प्रेरितों के काम २०:२८) यदि आपको किसी प्रकार की आदत पर विजय प्राप्त करने के लिये जो परमेश्वर के नियम के विरुद्ध है, सहायता की आवश्यकता हो तो उनके पास जाने में संकोच न कीजिए। आप उनको स्नेही, कृपालु और विचारशील पायेंगे।—१ थिस्सलुनीकियों २:७, ८.
१८. वह भविष्य की प्रत्याशा क्या है जो हमें इस युद्ध को जारी रखने में शक्ति दे सकती है?
१८ हम पर अनुचित कार्य करने का दबाव न केवल शैतान की दुनिया की ओर से बल्कि हमारे अपने पापपूर्ण स्वभाव के कारण भी है। इसलिये परमेश्वर के प्रति वफ़ादार रहना प्रतिदिन का युद्ध है। परन्तु यह कितनी अच्छी बात है कि यह युद्ध सर्वदा जारी न रहेगा! शीघ्र ही शैतान हटा दिया जायेगा और उसकी संपूर्ण दुनिया नष्ट कर दी जायेगी। तब परमेश्वर की नयी व्यवस्था में जो निकट है, न्याययुक्त परिस्थितियाँ होंगी जिनसे हमारा कार्य मार्ग ज्यादा आसान हो जायेगा। अन्ततः पाप के सब अवशेष जाते रहेंगे, और जो सही है उसके करने के लिये यह कठिन युद्ध अस्तित्व में नहीं रहेगा।
१९. यहोवा को प्रसन्न करने के लिए किसी भी प्रकार का प्रयत्न करने के लिए आपको क्यों इच्छुक होना चाहिये?
१९ नियमित रूप से उस नयी व्यवस्था की आशीषों के विषय में सोचते रहिये। हाँ, “उद्धार की आशा का टोप” पहन लीजिये। (१ थिस्सलुनीकियों ५:८) आपकी मनोवृति वही हो जो उस युवा स्त्री की है जिसने कहा: “मैं उस प्रत्येक बात के लिये सोचती हूँ जो यहोवा ने मेरे लिये किया है और जिसकी उसने प्रतिज्ञा की है। उसने मुझे नहीं छोड़ा है। उसकी मुझपर अनेक प्रकार से आशीषें रही हैं। मैं जानती हूँ कि वह मेरे लिये केवल उत्तम बात चाहता है और मैं उसको प्रसन्न करना चाहती हूँ। अनन्त जीवन के लिये कोई भी प्रयत्न व्यर्थ नहीं।” यदि हम वफ़ादारी से धार्मिकता की खोज में लगे रहेंगे तो “वह सारी उत्तम प्रतिज्ञाएं जो यहोवा ने उनसे की हैं” जो उससे प्रेम करते हैं, सब पूरी होंगी।—यहोशू २१:४५.
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज २१९ पर तसवीरें]
क्योंकि प्राचीन मिस्र की जीवन-रीति विलासपूर्ण थी तो मूसा ने क्यों उसका परित्याग किया?
[पेज २२०, २२१ पर तसवीरें]
दाऊद देखता रहा; उसने उस परिस्थिति से नहीं बचाया जो अनैतिकता की ओर ले गयी
[पेज २२२ पर तसवीरें]
यूसुफ पोतीपर की पत्नी की अनैतिक हरकतों से दूर भाग गया