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परमेश्‍वर की सरकार अपना शासन आरंभ करती है

परमेश्‍वर की सरकार अपना शासन आरंभ करती है

अध्याय १६

परमेश्‍वर की सरकार अपना शासन आरंभ करती है

१. (क) बहुत समय से विश्‍वासी व्यक्‍ति किस बात की प्रतीक्षा करते रहे हैं? (ख) परमेश्‍वर का राज्य क्यों एक “नगर” कहलाया गया है?

हजारों वर्षों से परमेश्‍वर की सरकार में विश्‍वास रखनेवाले व्यक्‍तियों ने उस समय की प्रतीक्षा की थी जब वह अपने शासन का आरंभ करने लगेगी। उदाहरणतया बाइबल कहती है कि वफ़ादार इब्राहीम “उस वास्तविक नींव वाले नगर की प्रतीक्षा करता था जिस नगर का निर्माता और रचयिता परमेश्‍वर है।” (इब्रानियों ११:१०) वह “नगर” परमेश्‍वर का राज्य है। वह यहाँ एक “नगर” क्यों कहलाया गया है? यह इसलिये है क्योंकि प्राचीनकाल में एक राजा का किसी नगर पर राज्य करना एक साधारण बात थी। इसलिये लोग अक्सर एक नगर को ही राज्य समझते थे।

२. (क) किस बात से प्रदर्शित होता है कि मसीह के प्रारंभिक शिष्यों के लिए राज्य एक वास्तविकता थी? (ख) वे राज्य के विषय में क्या मालूम करना चाहते थे?

मसीह के प्रारंभिक अनुयायियों के लिये परमेश्‍वर का राज्य एक वास्तविकता थी। यह उनके उस राज्य में अत्यधिक रुचि लेने से प्रकट होती है। (मत्ती २०:२०-२३) उनके मन में यह प्रश्‍न था: कब यीशु और उसके शिष्य शासन करना आरंभ करेंगे? एक बार जब यीशु अपने जी उठने के बाद अपने शिष्यों को दिखाई दिया तो उन्होंने यह पूछा: “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल के राज्य को पुनः स्थापित करेगा” (प्रेरितों के काम १:६) जिस प्रकार मसीह के शिष्य जानने के लिये उत्सुक थे, उसी प्रकार क्या आप भी उस समय के विषय में जानने के लिये उत्सुक हैं कि जब मसीह परमेश्‍वर की सरकार का राजा बनकर शासन आरंभ करता है?

वह सरकार जिसके लिये मसीही प्रार्थना करते हैं

३, ४. (क) किस बात से प्रदर्शित होता है कि परमेश्‍वर राजा के रूप में हमेशा शासन करता रहा है? (ख) अतः क्यों मसीह अपने अनुयायियों को परमेश्‍वर के राज्य के आने के लिए प्रार्थना करने की शिक्षा देता था?

मसीह ने अपने अनुयायियों को प्रार्थना करनी सिखायी: “तेरा राज्य आये तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है वैसी पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:९, १०) परन्तु शायद कोई यह पूछे: ‘क्या यहोवा परमेश्‍वर ने हमेशा राजा के रूप में राज्य नहीं किया है? यदि वह राज्य करता रहा है तो क्यों उसके राज्य के आने के लिये प्रार्थना की जाय?’

यह सच है, कि बाइबल यहोवा को “अनन्त काल का राजा” कहती है। (१ तीमुथियुस १:१७) और यह कहती है: “स्वयं यहोवा ने स्वर्ग में अपना सिंहासन दृढ़तापूर्वक स्थिर किया है, और सबके ऊपर उसके अपने राज्य का प्रभुत्व है।” (भजन संहिता १०३:१९) अतः यहोवा हमेशा से अपनी सारी सृष्टि के ऊपर सर्वोच्च शासक रहा है। (यिर्मयाह १०:१०) तथापि, अदन के उद्यान में उसकी शासकता के विरुद्ध विद्रोह होने के कारण परमेश्‍वर ने एक विशेष सरकार का प्रबन्ध किया। यह वही हुकूमत है जिसके लिये यीशु मसीह ने बाद में अपने अनुयायियों को प्रार्थना करने की शिक्षा दी थी। जब शैतान अर्थात्‌ इबलीस और अन्य व्यक्‍ति परमेश्‍वर की शासकता से विमुख हुए तो उससे उत्पन्‍न समस्याओं की समाप्ति करना इस हुकूमत का उद्देश्‍य बन गया।

५. यदि यह परमेश्‍वर का राज्य है तो क्यों वह मसीह का राज्य और १४४,००० का राज्य भी कहलाया गया है?

यह नयी राजकीय सरकार शासन करने के लिये सामर्थ्य और अधिकार महान राजा यहोवा परमेश्‍वर से प्राप्त करती है। यह उसका राज्य है, बारम्बार बाइबल उसे “परमेश्‍वर का राज्य” कहती है। (लूका ९: २, ११, ६०, ६२; १ कुरिन्थियों ६:९, १०; १५:५०) तथापि, क्योंकि यहोवा ने अपने पुत्र को उसका मुख्य शासक नियुक्‍त किया है, इसलिये उसे मसीह का राज्य भी माना जाता है। (२ पतरस १:११) जैसाकि हम पिछले एक अध्याय में मालूम कर चुके हैं कि मनुष्यों में से लिये गये १४४,००० व्यक्‍ति इस राज्य में मसीह के साथ शासन करेंगे। (प्रकाशितवाक्य १४:१-४; २०:६) इसलिये बाइबल उसको “उनका राज्य” कहकर भी उसका ज़िक्र करती है।—दानिय्येल ७:२७.

६. कुछ व्यक्‍तियों के अनुसार परमेश्‍वर के राज्य ने कब शासन करना आरम्भ किया था?

कुछ व्यक्‍ति यह कहते हैं कि इस राज्य ने अपना शासन उस समय आरंभ किया था जिस वर्ष यीशु स्वर्ग लौटा था। वे कहते हैं कि मसीह ने उस समय राज्य करना आरंभ किया जब उसने वर्ष ३३ सा.यु. में यहूदियों के पिन्तेकुस्त उत्सव के दिन अपने अनुयायियों पर पवित्र आत्मा को उंडेला था। (प्रेरितों के काम २:१-४) परन्तु उस राजकीय सरकार ने जिसका यहोवा ने शैतान के विद्रोह से उत्पन्‍न सारी समस्याओं को समाप्त करने का प्रबन्ध किया था, अपना शासन तब आरम्भ नहीं किया था। इस बात का कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह प्रदर्शित हो कि उस ‘नर बालक’ ने जो परमेश्‍वर की हुकूमत है और जिसका शासक मसीह है, उस समय जन्म लिया और अपना राज्य आरंभ किया। (प्रकाशितवाक्य १२:१-१०) परन्तु क्या यीशु के पास वर्ष ३३ सा.यु. में किसी प्रकार का कोई राज्य था?

७. किन व्यक्‍तियों के ऊपर मसीह ३३ सा.यु. से शासन करता रहा है?

हाँ, यीशु ने तब अपने अनुयायियों की कलीसिया के ऊपर राज्य करना आरंभ कर दिया था जो समय आने पर, स्वर्ग उसके साथ जा मिलेंगे। इसलिये बाइबल उनके विषय में, जब वे पृथ्वी पर थे, यह कहती है कि वे ‘[परमेश्‍वर के] प्रिय पुत्र के राज्य में ले लिये गये।’ (कुलुस्सियों १:१३) परन्तु यह शासन अथवा उन मसीहियों के ऊपर जो स्वर्गीय जीवन की आशा रखते हैं “यह राज्य” वह राजकीय सरकार नहीं है जिसके लिये यीशु ने अपने अनुयायियों को प्रार्थना करने की शिक्षा दी थी। यह केवल १४४,००० व्यक्‍तियों के ऊपर राज्य है जो स्वर्ग में उसके साथ राज्य करेंगे। शताब्दियों से केवल वही उसकी प्रजा रहे हैं। इस प्रकार यह शासन अथवा ‘परमेश्‍वर के प्रिय पुत्र का राज्य’ उस समय समाप्त होगा जब स्वर्गीय आशा रखनेवाली प्रजा का अन्तिम जन मरता है और स्वर्ग में मसीह के साथ जा मिलता है। फिर वे मसीह की प्रजा नहीं रहेंगे परन्तु तब वे परमेश्‍वर की चिर प्रतिज्ञित राजकीय सरकार में उसके साथ राजा होंगे।

शत्रुओं के मध्य शासन का प्रारम्भ

८. (क) किस बात से प्रदर्शित होता है कि मसीह के पुनरुत्थान के पश्‍चात्‌ उसका शासन आरंभ करने से पहले प्रतीक्षा के समय का व्यतीत होना आवश्‍यक था? (ख) जब मसीह के लिए शासन करने का समय आया तो परमेश्‍वर ने उससे क्या कहा था?

जब मसीह अपने पुनरुत्थान के पश्‍चात्‌ स्वर्ग लौट गया तो उसने उस समय परमेश्‍वर की सरकार का राजा बनकर शासन करना आरंभ नहीं किया था। इसकी अपेक्षा, प्रतीक्षा के समय का व्यतीत होना आवश्‍यक था, जैसा कि प्रेरित पौलुस व्याख्या करता है: “इस व्यक्‍ति [यीशु मसीह] ने सब पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ा दिया और परमेश्‍वर के दाहिने हाथ जा बैठा और उस समय से इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि उसके शत्रु उसके पांव के लिये चौकी बनें।” (इब्रानियों १०:१२, १३) जब मसीह के राज्य आरंभ करने का समय आया तो यहोवा ने उससे कहा: “तू अपने शत्रुओं के मध्य शासन कर [अथवा विजय प्राप्त करता जा]।”—भजन संहिता ११०:१, २, ५, ६.

९. (क) क्यों हर व्यक्‍ति परमेश्‍वर का राज्य नहीं चाहता है? (ख) जब परमेश्‍वर की सरकार अपना शासन आरंभ करती है तब उस समय राष्ट्र क्या करते हैं?

क्या यह विचित्र बात प्रतीत होती है कि कोई व्यक्‍ति परमेश्‍वर के राज्य का शत्रु बने? फिर भी सब व्यक्‍ति उस सरकार के अधीन नहीं रहना चाहते हैं जो अपनी प्रजा से सही कार्य करने की अपेक्षा करती है। अतः यह बताने के पश्‍चात्‌ कि यहोवा और उसके पुत्र ने संसार की शासकता को कैसे अपने अधीन किया, बाइबल इस विषय में कहती है: “राष्ट्र क्रोधित हो गए।” (प्रकाशितवाक्य ११:१५, १७, १८) सभी राष्ट्र परमेश्‍वर के राज्य का स्वागत नहीं करते हैं क्योंकि शैतान उनको उसका विरोध करने के लिये गुमराह करता है।

१०, ११. (क) जब परमेश्‍वर की सरकार अपना शासन आरंभ करती है तो स्वर्ग में क्या घटित होता है? (ख) पृथ्वी पर क्या घटित होता है? (ग) अतः वह महत्वपूर्ण बात क्या है जो हम ध्यान में रखना चाहते हैं?

१० जिस समय परमेश्‍वर की हुकूमत ने अपने शासन आरम्भ किया तो शैतान और उसके दूत स्वर्ग में थे। क्योंकि उन्होंने राजकीय शासन का विरोध किया तो तुरन्त युद्ध छिड़ गया। इसका परिणाम यह हुआ, कि शैतान और उसके दूत स्वर्ग से नीचे फेंक दिये गये। और इस पर एक ज़ोर की आवाज़ यह आई: “अब हमारे परमेश्‍वर का उद्धार और सामर्थ्य और राज्य और उसके मसीह का अधिकार प्रकट हुआ है।” हाँ, परमेश्‍वर की सरकार का शासन आरंभ हुआ! और स्वर्ग से शैतान और उसके दूतों के हटाये जाने से वहाँ बड़ी प्रसन्‍नता हुई। बाइबल कहती है: “इस कारण से हे स्वर्ग और तुम जो उनमें रहते हों, प्रसन्‍न हो जाओ!—प्रकाशितवाक्य १२:७-१२.

११ क्या यह पृथ्वी के लिये भी एक सुखद समय है? नहीं! इसके बजाय यह पृथ्वी के लिये अत्यधिक संकट का समय है जो पहले कभी अनुभव नहीं किया गया था। बाइबल हमें बताती है: “हे पृथ्वी और समुद्र तुम पर हाय क्योंकि इबलीस बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है, क्योंकि वह जानता है, कि उसका थोड़ा समय अब बाक़ी रह गया है।” (प्रकाशितवाक्य १२:१२) अतः ध्यान में रखने के लिये महत्वपूर्ण बात यह है: परमेश्‍वर के राज्य के शासन के प्रारंभ का अर्थ यह नहीं है कि पृथ्वी पर तुरन्त शांति और सुरक्षा हो जाय। सच्ची शांति बाद में उस समय आयेगी जब परमेश्‍वर का राज्य पूर्ण रूप से पृथ्वी को अपने नियंत्रण में लेता है। यह घटना “थोड़े समय” की समाप्ति पर होगी जब शैतान और उसके दूत रास्ते से हटा दिये जायेंगे जिससे कि वे किसी के लिए भी संकट उत्पन्‍न नहीं कर सकें।

१२. हम क्यों बाइबल से यह ज्ञात होने की प्रत्याशा कर सकते हैं कि कब परमेश्‍वर का राज्य अपना शासन आरंभ करता है?

१२ परन्तु कब शैतान स्वर्ग से नीचे फेंका गया जिससे कि वह “थोड़े समय” के लिये पृथ्वी पर संकट उत्पन्‍न करने लगा? कब परमेश्‍वर की हुकूमत का शासन आरंभ होता है? क्या बाइबल इसका उत्तर देती है? हमें बाइबल से इस बात की प्रत्याशा करनी चाहिये। क्यों? इसलिए कि बहुत समय पहले बाइबल ने इस बात की भविष्यसूचना दी थी कि कब परमेश्‍वर का पुत्र मसीहा बनने के लिये पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में प्रकट होगा। वास्तविकता यह है, कि बाइबल ने उस नियत वर्ष की ओर संकेत किया था जब वह मसीहा बनकर प्रकट हुआ था। फिर तब अपने राजकीय शासन का आरंभ करने के लिये मसीहा अथवा मसीह के इससे भी अधिक महत्वपूर्ण आगमन के विषय में क्या कहा जाय? निश्‍चय हम इस बात की प्रत्याशा करें कि बाइबल हमें इस विषय में भी बताये कि वह कब घटित होता है!

१३. बाइबल कैसे उस नियत वर्ष की भविष्य सूचना देती है जब मसीहा पृथ्वी पर प्रकट हुआ था?

१३ परन्तु कोई व्यक्‍ति शायद यह पूछे: ‘कहाँ बाइबल उस नियत वर्ष की जब मसीहा पृथ्वी पर प्रकट हुआ था, भविष्य सूचना देती है?’ बाइबल की दानिय्येल नामक पुस्तक कहती है: “यरूशलेम के पुनःस्थापित और पुनः निर्माण की आज्ञा के निकलने से लेकर मसीहा प्रधान तक सात सप्ताह और बासठ सप्ताह भी बीतेंगे,” और कुल मिलाकर ६९ सप्ताह होंगे। (दानिय्येल ९:२५) तथापि यह अक्षरशः ६९ सप्ताह नहीं हैं जो केवल ४८३ दिनों के बराबर होते हैं या एक वर्ष से कुछ अधिक समय। वे ६९ सप्ताह-वर्ष अथवा ४८३ वर्ष हैं। (गिनती १४:३४ से इसकी तुलना कीजिये) यरूशलेम की दीवारों के पुनर्निर्माण और पुनःस्थापना का आदेश ४५५ सा.यु.पूर्व में दिया गया था। * (नेहम्याह २:१-८) अतः ये ६९ सप्ताह-वर्ष ४८३ वर्ष बाद अर्थात्‌ २९ सा.यु. में समाप्त हुए। और यह वही वर्ष है जब यीशु यूहन्‍ना के पास बपतिस्मा लेने आया था! उस अवसर पर वह पवित्र आत्मा द्वारा अभिषिक्‍त हुआ और मसीहा अथवा मसीह बना।—लूका ३:१, २, २१-२३.

जब परमेश्‍वर की सरकार शासन आरम्भ करती है

१४. दानिय्येल की पुस्तक के अध्याय चार में वर्णित “वृक्ष” किसका प्रतिनिधित्व करता है?

१४ तब कहाँ बाइबल इस वर्ष की भविष्य सूचना देती है जब मसीह परमेश्‍वर की सरकार का राजा बनकर शासन आरंभ करता है? यह भविष्य सूचना बाइबल की उसी दानिय्येल नामक पुस्तक में दी गई है। (दानिय्येल ४:१०-३७) वहाँ एक विशाल, आकाश को छूता हुआ एक ऊंचे वृक्ष का वर्णन जो बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर का प्रतिनिधित्व करता है। वह उस समय का सर्वोच्च मानवीय शासक था। तथापि राजा नबूकदनेस्सर को विवश किया गया था कि वह जाने कि उससे भी कोई ऊंचा व्यक्‍ति राज्य कर रहा था। यह “सर्वोच्च”, अथवा “स्वर्ग का सम्राट” यहोवा परमेश्‍वर है। (दानिय्येल ४:३४, ३७) अतः एक अति महत्वपूर्ण रीति से आकाश को छूता हुआ वृक्ष परमेश्‍वर की सर्वोच्च शासकता का और विशेष रूप से हमारी पृथ्वी से संबंधित शासकता का प्रतिनिधित्व करता है। कुछ समय के लिये यहोवा की शासकता उस राज्य के द्वारा अभिव्यक्‍त हुई थी जो उसने इस्राएल के राष्ट्र पर स्थापित की थी। इस प्रकार यहूदा के कुल के राजा के विषयों में जो इस्राएलियों पर हुकूमत करते थे यह कहा जाता था कि वे “यहोवा के सिंहासन पर विराजते थे।”—१ इतिहास २९:२३.

१५. जब वह “वृक्ष” काटा गया तब उसे बंधनों से क्यों बांधा गया?

१५ बाइबल की दानिय्येल नामक पुस्तक के अध्याय चार में दिये हुए वर्णन के अनुसार आकाश को छूता हुआ ऊंचा वृक्ष काट दिया गया था। तथापि ठूंठ को भूमि पर छोड़ दिया गया और उसको लोहे और तांबे के बंधनों से बांध दिया गया। यह बंधन उस ठूंठ को उगने से उस समय तक रोके रखेंगे, जब तक उन बंधनों को हटाने और उसका फिर से उगना शुरू होने का परमेश्‍वर का नियत समय नहीं आता है। परन्तु कैसे और कब परमेश्‍वर की शासकता को काट दिया गया था?

१६. (क) कैसे और कब परमेश्‍वर की शासकता समाप्त कर दी गयी? (ख) यहूदा के अंतिम राजा से जो “यहोवा के सिंहासन” पर बैठा, क्या कहा गया था?

१६ समय आने पर यहूदा का राज्य जो परमेश्‍वर ने स्थपित किया था, इतना भ्रष्ट हो गया था कि उसने राजा नबूकदनेस्सर को उसे नष्ट करने अथवा काट डालने की अनुज्ञा दी। यह घटना ६०७ सा.यु.पूर्व में हुई। उस समय यहोवा के सिंहासन पर यहूदा के अंतिम राजा सदकिय्याह को यह बताया गया था: “मुकुट को उतार दे . . . जब तक वह न आये जिसका उस पर वैधानिक अधिकार है तब तक वह किसी का नहीं रहेगा और मैं यह उसी को अवश्‍य दूँगा।”—यहेज़केल २१:२५-२७.

१७. किस समयावधि का आरम्भ ६०७ सा.यु.पूर्व में हुआ?

१७ अतः परमेश्‍वर की शासकता को जो उस “वृक्ष” द्वारा चित्रित की गई थी, ६०७ सा.यु.पूर्व में काट डाला गया था। फिर पृथ्वी पर परमेश्‍वर की शासकता का प्रतिनिधित्व करने के लिये कोई हुकूमत नहीं रही थी। इस प्रकार ६०७ सा.यु.पूर्व में उस समयावधि का आरंभ हुआ जिसे बाद में यीशु मसीह ने “राष्ट्रों का नियत समय” अथवा “अन्य जातियों का समय” द्वारा इंगित किया था। (लूका २१:२४; किंग जेम्स वर्शन) इन “नियत समय” के दौरान परमेश्‍वर का पृथ्वी पर अपनी शासकता का प्रतिनिधित्व करने के लिये कोई हुकूमत नहीं थी।

१८. “राष्ट्रों के नियत समय” की समाप्ति पर क्या घटित होना था?

१८ इन “राष्ट्रों के नियत समय” की समाप्ति पर क्या घटित होना था? यहोवा को उसे “जिसका उस पर वैधानिक अधिकार है” शासन करने का सामर्थ्य देना था। यह व्यक्‍ति यीशु मसीह है। इसलिये यदि हम मालूम कर सकते हैं कि “राष्ट्रों का नियत समय” कब समाप्त होता है तो हमें यह भी मालूम हो जायेगा कि कब मसीह राजा बनकर अपना राज्य आरंभ करता है।

१९. कितने “कालों” के लिए पृथ्वी के ऊपर परमेश्‍वर की शासकता बाधित रहेगी?

१९ दानिय्येल की पुस्तक के अध्याय चार के अनुसार यह “नियत समय” “सात काल” होंगे। दानिय्येल यह प्रदर्शित करता है कि ये वे “सात काल” होंगे जिनके दौरान पृथ्वी के ऊपर परमेश्‍वर की शासकता का जो “वृक्ष” द्वारा चित्रित की गयी थी, प्रचलन नहीं होगा। (दानिय्येल ४:१६, २३) ये “सात काल” कितने लंबे हैं?

२०. (क) एक “काल” कितना लंबा है? (ख) “सात काल” कितने लंबे हैं? (ग) हम क्यों एक वर्ष को एक दिन गिनते हैं?

२० प्रकाशितवाक्य की पुस्तक अध्याय १२ पद ६ और १४ में हम यह मालूम करते हैं कि १२६० दिन “एक समय [अर्थात्‌ १ काल] और समयों [अर्थात्‌ २ काल] और अर्ध समय” के बराबर होंगे। कुल मिलाकर वे ३१/२ काल हैं। अतः “एक समय” ३६० दिन के बराबर होंगे। इसलिये “सात काल” ३६० दिनों का ७ गुना अर्थात्‌ २५२० दिन होंगे। अब यदि हम बाइबल के नियम के अनुसार एक दिन को एक वर्ष मानें तो “सात काल” २५२० वर्षों के बराबर होंगे।—गिनती १४:३४; यहेजकेल ४:६.

२१. (क) “राष्ट्रों के नियत समय” कब आरम्भ हुए और कब समाप्त हुए? (ख) परमेश्‍वर की सरकार ने अपना शासन कब आरम्भ किया? (ग) क्यों अब भी परमेश्‍वर के राज्य के आने के लिए प्रार्थना करना उचित है?

२१ हम मालूम कर चुके हैं कि “राष्ट्रों के नियत समय” का प्रारंभ ६०७ सा.यु.पूर्व में हुआ था। अतः यदि २५२० वर्षों को उस तिथि से गिना जाय तो हम वर्ष १९१४ सा.यु. में पहुँचते हैं। यह वही वर्ष है जब “राष्ट्रो” का नियत समय” समाप्त हुआ। लाखों लोगों को जो आप जीवित हैं वे बातें याद हैं जो वर्ष १९१४ में घटित हुई थीं। उस वर्ष से प्रथम विश्‍व युद्ध द्वारा भयंकर संकट के समय आरंभ हुआ जो आज हमारे दिनों तक जारी है। इसका यह अर्थ है कि यीशु मसीह ने वर्ष १९१४ में परमेश्‍वर की स्वर्गीय सरकार का राजा बनकर शासन करना आरंभ किया था। और क्योंकि उस राज्य का शासन आरंभ हो चुका है तो सामयिक है कि हम उसके “आने” की प्रार्थना करें जिससे कि वह पृथ्वी पर से शैतान के दुष्ट रीति-व्यवहार को हटा दे!—मत्ती ६:१०; दानिय्येल २:४४.

२२. वह क्या प्रश्‍न है जो कुछ व्यक्‍ति शायद पूछें?

२२ फिर भी कोई व्यक्‍ति शायद यह पूछे: ‘यदि मसीह अपने पिता के राज्य में शासन करने के लिये आ चुका है तो हम उसे क्यों नहीं देख सकते हैं?’

[फुटनोट]

^ पैरा. 13 यह आज्ञा ४५५ सा.यु.पूर्व में दिया गया था, इसका ऐतिहासिक प्रमाण के लिए, वाच टावर बायबल ॲन्ड ट्रैक्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक, एड टू बायबल अन्डरस्टॅडिंग में “आर्टज़र्कज़ीस्‌” विषय को देखिए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज १४०, १४१ पर चार्ट]

६०७ सा.यु.पूर्व में परमेश्‍वर का यहूदा का राज्य समाप्त हुआ।

१९१४ सा.यु. में परमेश्‍वर की स्वर्गीय सरकार के राजा के रूप में यीशु मसीह के शासन का प्रारंभ हुआ

६०७ सा.यु.पू.—१९१४ सा.यु.

अक्टूबर, ६०७ सा.यु.पू.—अक्टूबर, १ सा.यु.पू. = ६०६ वर्ष

अक्टूबर, १ सा.यु.पू.—अक्टूबर, १९१४ सा.यु. = १, ९१४ वर्ष

अन्यजातियों के सात काल = २, ५२० वर्ष

[पेज १३४ पर तसवीर]

“क्या तू इस्राएल के राज्य को इसी समय पुनःस्थापित करेगा?”

[पेज १३९ पर तसवीर]

दानिय्येल की पुस्तक के अध्याय ४ में वह विशाल वृक्ष ईश्‍वरीय शासकता का प्रतिनिधित्व करता है। कुछ समय के लिए वह यहूदा के राज्य द्वारा अभिव्यक्‍त हुआ था

[पेज १४०, १४१ पर तसवीरें]

जब यहूदा के राज्य का विनाश हुआ तो वह वृक्ष काट डाला गया