क्या ईश्वर आप पर ध्यान देता है?
इंसान की रचना से हमें क्या पता चलता है?
बच्चे के जन्म के शुरू के 60 मिनट काफी अहम होते हैं। इस दौरान ज़रूरी होता है कि माँ उसे सीने से लगाए रखे, ताकि उसे बच्चे से गहरा लगाव हो जाए। यह बच्चे के विकास के लिए बेहद ज़रूरी होता है। *
आखिर क्यों एक माँ अपने दूधपीते बच्चे की इतने प्यार से देखभाल करती है? प्रोफेसर जनेट क्रेनशॉ ने प्रसवकालीन शिक्षा नाम की एक अँग्रेज़ी पत्रिका में बताया कि बच्चे को जन्म देने के बाद माँ के शरीर में ऑक्सीटोसिन नाम के हार्मोन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। इसलिए जब वह बच्चे को छूती है, उसे निहारती है और अपना दूध पिलाती है, तो उसमें ममता जाग उठती है। इसी दौरान माँ के शरीर में एक और तरह का हार्मोन बनता है, जिस वजह से वह बच्चे की हर ज़रूरत फौरन पूरी करती है और खुशी से उसकी देखभाल करती है। यह सब क्यों गौर करने लायक है?
माँ और बच्चे के बीच जो गहरा लगाव होता है, वह हमारे सृष्टिकर्ता ने ही पैदा किया है। उसका नाम यहोवा * है। पुराने ज़माने में दाविद नाम के एक राजा ने कहा कि यहोवा ने ही उसे “माँ की कोख से बाहर निकाला” और उसकी बाँहों में सुरक्षा का एहसास दिलाया। उसने परमेश्वर से कहा, “मुझे पैदा होते ही देखभाल के लिए तुझे सौंपा गया। जब मैं माँ की कोख में था, तभी से तू मेरा परमेश्वर है।”—भजन 22:9, 10.
ज़रा सोचिए: परमेश्वर ने ही माँ के अंदर ऐसी जटिल प्रक्रिया बनायी है, जिससे उसमें बच्चे के लिए भावनाएँ उमड़ आती हैं ताकि वह उस पर ध्यान दे और उसकी हर ज़रूरत पूरी करे। तो क्या परमेश्वर भी हममें से हरेक पर ध्यान नहीं देता होगा? आखिर हम भी तो “परमेश्वर के बच्चे” हैं!—प्रेषितों 17:29.
पवित्र शास्त्र परमेश्वर के प्यार के बारे में क्या बताता है?
ध्यान दीजिए कि यीशु ने, जो परमेश्वर को सबसे अच्छी तरह जानता है, क्या कहा, “क्या एक पैसे में दो चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? मगर उनमें से एक भी तुम्हारे पिता के जाने बगैर ज़मीन पर नहीं गिरती। मगर तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है। इसलिए मत डरो, तुम बहुत-सी चिड़ियों से कहीं ज़्यादा अनमोल हो।”—मत्ती 10:29-31.
हम सब हर रोज़ कितनी ही चिड़ियों को देखते हैं। मगर हम हर चिड़िया को गौर से देखते नहीं रहते, न ही जब कोई चिड़िया ज़मीन पर गिरती है, तो उस पर ध्यान देते हैं। लेकिन परमेश्वर, जो हम सबका पिता है, हर चिड़िया पर ध्यान देता है। और अगर इंसानों की बात करें, तो परमेश्वर की नज़र में एक इंसान का मोल बहुत-सी चिड़ियों से बढ़कर है। तो क्या आपको नहीं लगता कि परमेश्वर आप पर भी ध्यान देता है? वह आप पर न सिर्फ ध्यान देता है, बल्कि आपकी बहुत परवाह भी करता है!
ईश्वर हम पर ध्यान देता है और हमारी भलाई चाहता है
पवित्र शास्त्र हमें यकीन दिलाता है कि . . .
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“यहोवा की आँखें हर जगह लगी रहती हैं, अच्छे-बुरे दोनों को देखती रहती हैं।”—नीतिवचन 15:3.
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“यहोवा की आँखें नेक लोगों पर लगी रहती हैं और उसके कान उनकी मदद की पुकार सुनते हैं।”—भजन 34:15.
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“मैं तेरे अटल प्यार के कारण बहुत मगन होऊँगा, क्योंकि तूने मेरा दुख देखा है, तू मेरे मन की पीड़ा जानता है।”—भजन 31:7.
‘मुझे लगता था कि यहोवा मुझसे प्यार नहीं करता’
अगर हमें यकीन हो कि ईश्वर हम पर ध्यान देता है और हमारी भलाई चाहता है, तो क्या इससे हमारी ज़िंदगी में कोई फर्क पड़ेगा? बेशक पड़ेगा। इंग्लैंड की रहनेवाली हैलन * ने इस बात को सच पाया है।
हैलन कहती है, “मुझे अकसर लगता था कि यहोवा मुझसे प्यार नहीं करता और न ही मेरी प्रार्थना सुनता है। मैं सोचती थी कि इसके लिए मैं ही कसूरवार हूँ, क्योंकि शायद मेरा विश्वास कमज़ोर है। मुझे लगता था कि परमेश्वर मुझे सज़ा दे रहा है या मुझे नज़रअंदाज़ कर रहा है, क्योंकि मैं उसके लिए कोई मायने नहीं रखती। मुझे लगता था कि परमेश्वर को मेरी कोई परवाह नहीं।”
लेकिन अब हैलन को ऐसा नहीं लगता कि यहोवा उससे प्यार नहीं करता या उस पर ध्यान नहीं देता। उसकी सोच कैसे बदल गयी? हैलन बताती है, “यह सब धीरे-धीरे हुआ। सालों पहले मैंने यीशु के बलिदान के बारे में एक भाषण सुना था। उसमें बतायी बातें मेरे दिल को छू गयीं और मुझे यकीन हो गया कि यहोवा मुझसे बहुत प्यार करता है। और जब यहोवा ने मेरी प्रार्थनाओं का जवाब दिया, तो कई बार मेरी आँखें भर आयीं, क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि यहोवा सच में मुझसे प्यार करता है। इसके अलावा, बाइबल पढ़ने से और यहोवा के साक्षियों की सभाओं में जाने से मैंने यहोवा को और उसके गुणों को और अच्छी तरह जाना है। मैंने यह भी जाना कि वह हमारे बारे में कैसा महसूस करता है। अब मुझे पूरा यकीन है कि यहोवा हममें से हरेक की मदद करता है, हरेक से प्यार करता है और हरेक की देखभाल करता है।”
हैलन की इन बातों से साफ ज़ाहिर है कि परमेश्वर हम पर ध्यान देता है। पर सवाल यह है कि क्या वह आपकी भावनाओं को समझता है और क्या वे उसके लिए मायने रखती हैं? आप कैसे इस बात का यकीन कर सकते हैं? आइए अगले लेख में देखें।
^ पैरा. 3 कुछ माँओं को अपने बच्चे के साथ ऐसा लगाव पैदा करना मुश्किल लगता है, क्योंकि प्रसव के बाद वे गहरी निराशा में डूब जाती हैं। इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है। लेकिन उन्हें इसके लिए खुद को दोष नहीं देना चाहिए। अमरीका के मानसिक स्वास्थ्य राष्ट्रीय संस्थान के मुताबिक शरीर में होनेवाले बदलावों और भावनाओं के उतार-चढ़ाव की वजह से कुछ माँएँ प्रसव के बाद ऐसी निराशा की शिकार हो जाती हैं। एक माँ को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसने कुछ ऐसा कर दिया जो उसे नहीं करना चाहिए था या फिर ऐसा काम नहीं किया जो उसे करना चाहिए था, इसीलिए उसे बच्चे से लगाव नहीं हो रहा है। इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 8 जून, 2003 की अँग्रेज़ी सजग होइए! पत्रिका में छपा लेख “पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्या है?” पढ़िए।
^ पैरा. 15 इस श्रृंखला में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।