जीवन कहानी
देने से मिलनेवाली खुशी मैंने कैसे पायी
जब मैं 12 साल का था तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास दूसरों को देने के लिए कुछ अनमोल चीज़ है। एक सम्मेलन में, एक भाई ने मुझसे पूछा कि क्या मैं प्रचार करना चाहता हूँ। मैंने पहले कभी प्रचार नहीं किया था, फिर भी मैंने “हाँ” कहा। हम प्रचार के इलाके में गए और उस भाई ने मुझे कुछ पुस्तिकाएँ दीं, जो परमेश्वर के राज के बारे में थीं। उसने कहा, “तुम सड़क के उस पार लोगों से मिलो और मैं इस तरफ मिलता हूँ।” जब मैंने घर-घर का प्रचार शुरू किया तो मैं बहुत घबराया हुआ था। लेकिन मैं हैरान हो गया कि मेरे पास जितनी भी पुस्तिकाएँ थीं, वे जल्द ही खत्म हो गयीं। मैं यह साफ देख पाया कि मैं जो लोगों को देना चाहता हूँ उसमें कई लोगों को दिलचस्पी है।
मेरा जन्म 1923 में इंग्लैंड के केन्ट प्रांत के चैथम नगर में हुआ था। पहले विश्व-युद्ध के बाद, लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि दुनिया के हालात अच्छे हो जाएँगे। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो कई लोग निराश हो गए, मेरे मम्मी-पापा भी। मेरे मम्मी-पापा बैपटिस्ट पादरियों से भी निराश थे जिनका ध्यान बस चर्च में ऊँचा ओहदा पाने में ही लगा रहता था। जब मैं करीब 9 साल का था, तब मम्मी ने इंटरनैश्नल बाइबल स्टूडेंट्स असोसिएशन के सभा-घर में जाना शुरू किया। वे यहोवा के साक्षी के तौर पर जाने जाते थे और वहाँ अपनी सभाएँ चलाते थे। वहाँ एक बहन हम बच्चों को बाइबल और द हार्प ऑफ गॉड नाम की किताब से कुछ बातें सिखाती थीं। मैं वहाँ जो सीख रहा था वह मुझे अच्छा लगा।
बुज़ुर्ग भाइयों से सीखना
एक नौजवान के नाते, मुझे लोगों को परमेश्वर के वचन से खुशखबरी बताने में खुशी मिलती थी। अकसर मैं अकेले घर-घर प्रचार करता था, लेकिन मैंने दूसरों के साथ प्रचार करके भी बहुत कुछ सीखा। उदाहरण के लिए, एक दिन मैं और एक बुज़ुर्ग भाई प्रचार के इलाके में जा रहे थे। एक पादरी हमारे पास से गुज़रा और मैंने कहा, ‘वह देखो एक बकरी।’ भाई ने अपनी साइकिल रोकी और प्यार-से मुझसे कहा, “तुम्हें किसने यह न्याय करने का अधिकार दिया कि कौन बकरी है और कौन नहीं? हमें बस लोगों को खुशखबरी सुनानी चाहिए और न्याय यहोवा के हाथ में छोड़ देना चाहिए।” उन दिनों मैंने देने से मिलनेवाली खुशी के बारे में बहुत कुछ सीखा।—मत्ती 25:31-33; प्रेषि. 20:35.
एक और बुज़ुर्ग भाई से मैंने सीखा कि देने से मिलनेवाली खुशी के लिए, कभी-कभी हमें धीरज रखना पड़ता है। उस भाई की पत्नी को यहोवा के साक्षी पसंद नहीं थे। एक बार भाई ने मुझे अपने घर चाय-नाश्ते पर बुलाया। वह भाई प्रचार करके आए थे इसलिए उनकी पत्नी इतनी गुस्से में थी कि वह हम पर चाय पत्ती के पैकेट फेंकने लगी। उसे डाँटने के बजाय, उस भाई ने खुशी-खुशी पैकेट वापस अपनी जगह पर रख दिए। कई सालों बाद, इस भाई के धीरज के अच्छे नतीजे निकले। उनकी पत्नी ने बपतिस्मा ले लिया और यहोवा की साक्षी बन गयी।
सितंबर 1939 में ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। उस वक्त मैं 16 साल का था। मार्च 1940 में, मैंने और मम्मी ने डोवर शहर में बपतिस्मा लिया। फिर जून 1940 में, मैंने अपने घर के सामने से ट्रकों में हज़ारों सैनिकों को जाते देखा। वे सैनिक डनकर्क में हुई लड़ाई से बचकर आए थे। मैं देख सकता था कि वे गहरे सदमे में थे और उनके चेहरे पर निराशा छायी हुई थी। मैं उन्हें परमेश्वर के राज और अच्छे भविष्य के बारे में बताने के लिए बेताब था। उसी साल आगे चलकर, जर्मनी ने ब्रिटेन पर लगातार बमबारी शुरू कर दी। हर रात मैं जर्मनी के गोलाबारी करनेवाले विमानों को अपने इलाके के ऊपर से जाते देखता था। जब बम गिरते थे, तो उनसे जो सीटी जैसी आवाज़ आती थी वह सुनकर हमारे अंदर दहशत बैठ जाती थी। अगले दिन सुबह जब हम बाहर निकलते तो देखते थे कि दूर-दूर तक घर तबाह हो चुके थे। इन अनुभवों से मुझे और भी एहसास हो गया कि भविष्य के लिए मेरे पास एक ही उम्मीद है और वह है परमेश्वर का राज।
खुद को यहोवा की सेवा में पूरी तरह दे देना
सन् 1941 में, मैंने पूरे समय की सेवा शुरू की, यह जीने का एक ऐसा तरीका था जिससे मुझे बहुत खुशी मिली। मैं चैथम नगर के रॉयल डोकयार्ड में काम करता था, जहाँ मैं जहाज़ बनाने का काम सीख रहा था। बहुत-से लोग यह नौकरी पाना चाहते थे क्योंकि इसमें बढ़िया सहूलियतें मिलती थीं। यहोवा के सेवक जानते थे कि मसीहियों को युद्ध में हिस्सा नहीं लेना चाहिए। सन् 1941 के आते-आते, हम समझ गए कि हमें हथियार बनाने वाले कारखानों में काम नहीं करना चाहिए। (यूह. 18:36) डोकयार्ड में पनडुब्बी बनायी जा रही थीं, इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं यह नौकरी छोड़ दूँगा और पूरे-समय की सेवा करूँगा। मैंने सबसे पहले साइरनसेस्टर में सेवा की, जो कॉट्स्वोल्डज़ का एक बहुत खूबसूरत शहर है।
जब मैं 18 साल का हुआ, तो मुझे नौ महीने के लिए जेल में डाल दिया गया क्योंकि मैंने सेना में भरती होने से मना कर दिया था। जैसे ही जेल का दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ और मुझे वहाँ बिलकुल अकेला छोड़ दिया गया तो मुझे बहुत बुरा लगा। लेकिन जल्द ही, पहरेदार और दूसरे कैदी मुझसे पूछने लगे कि मुझे जेल क्यों हुई है। मैंने खुशी-खुशी उन्हें अपने विश्वास के बारे में बताया।
मेरी रिहाई के बाद, मैं लैनर्ड स्मिथ * के साथ मिलकर केन्ट प्रांत के अलग-अलग शहरों में प्रचार करने लगा। हम दोनों केन्ट प्रांत से ही थे। लंदन पर बमबारी करने के लिए नात्ज़ियों के हवाई-जहाज़ों को केन्ट के ऊपर से होकर गुज़रना था। सन् 1944 की शुरूआत में, केन्ट प्रांत पर कई सौ बम गिरे जिन्हें डूडलबग्ज़ कहा जाता था। ये बम असल में जैट विमान थे जिनमें कोई पायलट नहीं होते थे और ये विस्फोटकों से भरे होते थे। जब हमें हवाई-जहाज़ का इंजन बंद होने की आवाज़ सुनायी देती थी, तो हमें पता चल जाता था कि कुछ ही सेकंड में विमान गिरकर फटनेवाला है। इससे सब डर जाते थे। उस दौरान हम एक परिवार के साथ बाइबल अध्ययन करते थे, जिसमें पाँच सदस्य थे। कभी-कभी हम लोहे की बनी मेज़ के नीचे बैठकर अध्ययन करते थे। यह मेज़ इसलिए बनायी गयी थी ताकि अगर घर ढह जाए तो हम सुरक्षित रहें। बाद में, उस पूरे परिवार ने बपतिस्मा ले लिया।
दूसरे देशों में खुशखबरी पहुँचाना
युद्ध के बाद, मैंने दक्षिणी आयरलैंड में दो साल पायनियर सेवा की। हम घर-घर जाते थे और कहते थे कि हम मिशनरी हैं और पूछते थे कि क्या कोई रहने की जगह मिल सकती है। साथ ही, हम सड़क पर किताबें-पत्रिकाएँ देते थे। लेकिन आयरलैंड, इंग्लैंड से बहुत अलग था। ज़्यादातर लोगों को लगता था कि हम बेवकूफ हैं जो यह सोच रहे हैं कि एक कैथोलिक देश में लोग हमारी बात में दिलचस्पी लेंगे! एक आदमी ने जब हमें मारने-पीटने की धमकी दी, तो मैंने पुलिसवाले से उसकी शिकायत की। लेकिन उसने कहा, ‘यह तो होना ही था।’ हमें नहीं पता था कि वहाँ पादरियों की इतनी चलती है। अगर लोग हमारी किताबें लेते थे तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता था। और हमें अपने रहने की जगह छोड़नी पड़ती थी।
जल्द ही हमें एहसास हुआ कि जब हम किसी नए इलाके में जाते हैं तो यही अच्छा रहेगा कि हम ऐसी जगह प्रचार करें जहाँ पादरी हमें न जानता हो। इसलिए हम जहाँ रहते थे वहाँ हम बाद में ही प्रचार करते थे, पहले दूर जाकर प्रचार करते थे। किलकेनी कसबे में, गुस्से से पागल भीड़ ने हमें धमकियाँ दी थीं, फिर भी हम एक नौजवान के साथ हफ्ते में तीन बार अध्ययन करते थे। मुझे बाइबल सिखाने में इतना मज़ा आता था कि मैं मिशनरी बनना चाहता था। मैंने वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड के लिए अर्ज़ी भरने का फैसला किया।
न्यू यॉर्क में पाँच महीने का कोर्स करने के बाद, गिलियड से तालीम पाए हम चार भाइयों को कैरिबियन सागर के छोटे द्वीपों में सेवा करने के लिए भेजा गया। सन् 1948 के नवंबर महीने में, हम न्यू यॉर्क शहर से सिबीआ नाम की 18 मीटर लंबी पालवाली नाव पर सवार हुए। मैंने पहले कभी नाव नहीं चलायी थी, इसलिए मैं बहुत उत्सुक था। हममें से एक मिशनरी जहाज़ का तजुरबेकार कप्तान था। उसका नाम गस्ट माकी था। उसने हमें नाव चलाने की कुछ ज़रूरी बातें सिखायीं जैसे, नाव के पाल को चढ़ाना और उतारना, कम्पास का इस्तेमाल करना और हवा के रुख की उलटी दिशा में नाव चलाना। गस्ट ने 30 दिनों तक बड़ी कुशलता से हमारी नाव चलायी और भयंकर तूफानों से बचाकर हमें बहामास पहुँचाया।
‘द्वीपों में इसका प्रचार करो’
बहामास के छोटे-छोटे द्वीपों पर कुछ महीने प्रचार करने के बाद, हम नाव से लीवर्ड द्वीपों और विंडवर्ड द्वीपों के लिए रवाना हुए। ये छोटे द्वीप वर्जिन आइलेंडस् और ट्रिनिडाड के बीच हैं और करीब 800 किलोमीटर तक फैले हुए हैं। पाँच साल तक हमने उन दूर-दूर के द्वीपों में ही प्रचार किया जहाँ कोई साक्षी नहीं था। कभी-कभी हम हफ्तों तक न तो किसी को चिट्ठी भेज पाते थे, न ही हमें किसी की चिट्ठी मिलती थी। लेकिन हम बहुत खुश थे कि “द्वीपों में” हम लोगों को यहोवा के बारे में बता रहे हैं!—यिर्म. 31:10.
जब हम एक तट पर नाव का लंगर डालते थे, तो गाँववाले उत्सुक हो जाते थे और वे यह देखने के लिए घाट पर इकट्ठा हो जाते थे कि हम कौन हैं। उनमें से कुछ लोगों ने इससे पहले कभी कोई नाव नहीं देखी थी और न ही कोई गोरा आदमी देखा था। द्वीपों पर रहनेवाले लोग दोस्ताना स्वभाव के थे और बाइबल से अच्छी तरह वाकिफ थे। वे अकसर हमें ताज़ी मछली, अवोकाडो और मूँगफली देते थे। उस छोटी-सी नाव में हम खाना पकाते थे, सोते थे और कपड़े धोते थे, हालाँकि उसमें ज़्यादा जगह नहीं थी।
हम द्वीप के तट पर जाकर पूरा दिन लोगों से मिलते थे और उन्हें बताते थे कि बाइबल पर आधारित एक भाषण होगा। फिर सूरज ढलने पर हम जहाज़ की घंटी बजाते थे। वहाँ के निवासियों को आता देख बड़ा अच्छा लगता था। उनके हाथ में लालटेन होती थीं, और दूर से ऐसा लगता था मानो पहाड़ों से टिमटिमाते तारे उतर रहे हों। कभी-कभी करीब सौ लोग आते थे। उनके इतने
सवाल होते थे कि रात को बहुत देर हो जाती थी। उन्हें गाना पसंद था इसलिए हमने कुछ राज गीत टाइप करके उन्हें दिए। हम चारों भाई, गीतों को अच्छी तरह गाने की पूरी कोशिश करते थे। लोग भी हमारे साथ गाने लगते थे और उनकी आवाज़ सुनने में बहुत मधुर लगती थी। वह कितने अच्छे दिन थे!कुछ विद्यार्थी अपने बाइबल अध्ययन के बाद हमारे साथ दूसरे परिवार के घर तक जाते थे ताकि वे उनके अध्ययन में भी बैठ सकें। एक जगह पर कुछ हफ्ते बिताने के बाद हमें दूसरी जगह जाना पड़ता था। लेकिन हम अकसर ज़्यादा दिलचस्पी लेनेवाले लोगों से कहते थे कि जब तक हम लौटकर न आएँ तब तक वे दूसरों के साथ अध्ययन करते रहें। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि उनमें से कुछ ने अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभायी।
आज उनमें से कई द्वीपों पर सैलानियों की भीड़ लगी रहती है लेकिन उस ज़माने में ये जगह बहुत शांत थीं और वहाँ सिर्फ नीले-हरे रंग की झीलें, रेतीले किनारे और खजूर के पेड़ होते थे। हम अकसर रात में एक द्वीप से दूसरे द्वीप जाते थे। डॉल्फिन हमारी नाव के साथ-साथ तैरती थीं। हमें बस पानी को चीरते हुए आगे बढ़ती नाव की आवाज़ सुनायी देती थी। चाँद की रौशनी से समुद्र पर मानो ऐसा रास्ता बन जाता था जो दूर तक दिखायी देता था।
द्वीपों में पाँच साल प्रचार करने के बाद, हम प्यूर्टो रिको के लिए रवाना हुए ताकि हम एक नयी नाव खरीद सकें, जिसमें इंजन हो। जब हम वहाँ पहुँचे तो मेरी मुलाकात मेकसीन बॉइड नाम की एक खूबसूरत मिशनरी बहन से हुई, जिससे मुझे प्यार हो गया। वह बचपन से ही एक जोशीली प्रचारक थी। बाद में, उसने 1950 तक डोमिनिकन रिपब्लिक में मिशनरी के नाते सेवा की। लेकिन वहाँ की कैथोलिक सरकार के दबाव की वजह से उसे देश छोड़ना पड़ा। मैं नाव के कर्मी के तौर पर आया था इसलिए मुझे प्यूर्टो रिको में सिर्फ एक महीना रुकने की इजाज़त थी। इसके बाद मैं नाव से दूसरे द्वीपों के सफर पर जानेवाला था जिसमें मुझे कुछ साल लगते। इसलिए मैंने खुद से कहा, ‘रॉनल्ड, अगर तुम इस लड़की को चाहते हो तो तुम्हें जल्द ही कुछ करना होगा।’ तीन हफ्तों बाद, मैंने उससे कहा कि मैं उससे शादी करना चाहता हूँ और छ: हफ्तों बाद हमारी शादी हो गयी। मेकसीन और मुझे प्यूर्टो रिको में ही मिशनरी के नाते सेवा करनी की ज़िम्मेदारी मिली। इसलिए मैं उस नयी नाव पर गया ही नहीं।
सन् 1956 में, हम सर्किट का काम करने लगे। हमें अपने भाइयों से मिलना बहुत अच्छा लगता था। उनमें से बहुत-से भाई-बहन गरीब थे। उदाहरण के लिए, पोटाला पासतील्यो नाम के गाँव में दो साक्षी परिवार थे जिनके कई बच्चे थे। मैं उनके लिए बाँसुरी बजाता था। उनमें से एक छोटी लड़की का नाम इल्डा था। मैंने उससे पूछा कि क्या वह हमारे साथ प्रचार में चलेगी। उसने कहा, “मैं जाना तो चाहती हूँ लेकिन मैं जा नहीं सकती क्योंकि मेरे पास जूते नहीं हैं।” हम उसके लिए जूते खरीद लाए और वह हमारे साथ प्रचार में गयी। कई सालों बाद, 1972 में जब मैं और मेकसीन ब्रुकलिन गए, तो एक बहन हमारे पास आयी। वह अभी-अभी गिलियड स्कूल से ग्रैजुएट हुई थी और इक्वेडोर में सेवा करने के लिए जा रही थी। उसने कहा, “क्या आपने मुझे पहचाना? मैं पासतील्यो से वही छोटी लड़की हूँ जिसके पास जूते नहीं थे।” वह इल्डा थी! यह जानकर हमारी आँखों में खुशी के आँसू आ गए।
सन् 1960 में, हमें प्यूर्टो रिको के शाखा दफ्तर में सेवा करने के लिए कहा गया। यह दफ्तर, सान हुआन के सानटुर्से शहर में एक छोटे-से घर में बना था। शुरू में ज़्यादातर काम मैं और लेननार्ट जॉनसन करते थे। वह और उसकी पत्नी, डोमिनिकन रिपब्लिक के सबसे पहले यहोवा के साक्षी थे। वे 1957 में प्यूर्टो रिको आकर रहने लगे। फिर मेकसीन को यह काम दिया गया कि वह हमारी पत्रिकाएँ मँगवानेवालों को नियमित तौर पर पत्रिकाएँ भेजे। वह हर हफ्ते हज़ार से भी ज़्यादा पत्रिकाएँ भेजती थी। उसे यह काम करना अच्छा लगता था क्योंकि वह उन लोगों के बारे में सोचती थी जो यहोवा के बारे में सीख रहे हैं।
मुझे बेथेल में काम करने में बहुत मज़ा आता है क्योंकि मैं अपनी ताकत यहोवा की सेवा में लगा पाता हूँ। लेकिन यह हमेशा आसान नहीं होता। उदाहरण के लिए, 1967 में प्यूर्टो रिको में हुए पहले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान मुझे इतने सारे इंतज़ाम करने थे कि समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ से शुरू करूँ। उस वक्त भाई नेथन नॉर यहोवा के साक्षियों के बीच अगुवाई कर रहे थे और वे प्यूर्टो रिको आए थे। उन्हें लगा कि मैंने वहाँ आए हुए मिशनरियों के आने-जाने का कोई इंतज़ाम नहीं किया है, जबकि मैंने सारे इंतज़ाम कर दिए थे। बाद में, उन्होंने मुझे व्यवस्थित तरीके से काम करने के बारे में कड़ी सलाह दी और यह भी कहा कि वे मुझसे खुश नहीं हैं। मैं उनसे बहस नहीं करना चाहता था। लेकिन मुझे लगा कि उन्होंने मेरे साथ गलत व्यवहार किया है और मैं कुछ समय तक थोड़ा परेशान रहा। फिर भी, अगली बार जब मैं और मेकसीन भाई नॉर से मिले, तो उन्होंने हमें अपने कमरे में बुलाया और हमारे लिए खाना बनाया।
हम कई बार मेरे परिवार से मिलने के लिए प्यूर्टो रिको से इंग्लैंड गए। जब मैंने और मम्मी ने सच्चाई अपनायी थी, तब मेरे पिता को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन जब बेथेल से कोई वक्ता आता था, तो मम्मी उन्हें अकसर हमारे घर ठहराती थीं। मेरे पिता
ने देखा कि बेथेल के ये निगरान, उन पादरियों के मुकाबले कितने नम्र थे, जिनसे उन्हें सालों पहले घिन होने लगी थी। आखिरकार 1962 में पिताजी बपतिस्मा लेकर यहोवा के साक्षी बन गए।सन् 2011 में मेरी प्यारी पत्नी मेकसीन की मौत हो गयी। मैं उस समय की आस लगाए हुए हूँ जब उसे ज़िंदा किया जाएगा और मैं उसे दोबारा देख पाऊँगा। वह कितना अच्छा पल होगा! हमारी शादी को 58 साल हो गए थे और मेकसीन और मैंने प्यूर्टो रिको में यहोवा के लोगों की गिनती को करीब 650 से 26,000 होते देखा! फिर 2013 में, प्यूर्टो रिको शाखा दफ्तर को अमरीका के शाखा दफ्तर के साथ मिला दिया गया और मुझे न्यू यॉर्क के वॉलकिल शहर में सेवा करने के लिए कहा गया। प्यूर्टो रिको द्वीप पर 60 साल बिताने के बाद, मैं भी खुद को एक प्यूर्टो रिकन समझने लगा था, एक कॉकी। कॉकी वहाँ के पेड़ पर रहनेवाला एक छोटा-सा जाना-माना मेंढक है जो रात में कॉकी-कॉकी की आवाज़ निकालकर गाता है। लेकिन अब आगे बढ़ने का समय आ गया था।
“परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है”
मुझे अब भी बेथेल में परमेश्वर की सेवा करना अच्छा लगता है। मेरी उम्र अब 90 साल से ऊपर है। मेरा काम है, एक आध्यात्मिक चरवाहे के नाते बेथेल परिवार के सदस्यों का हौसला बढ़ाना। मैं जब से वॉलकिल आया हूँ तब से 600 से भी ज़्यादा सदस्यों से मिल चुका हूँ। जो मुझसे मिलने आते हैं, उनमें से कुछ मेरे साथ निजी या पारिवारिक समस्याओं पर बात करते हैं। दूसरे ऐसे हैं जो बेथेल सेवा में कामयाब होने के लिए मुझसे सलाह माँगते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनकी हाल ही में शादी हुई है और वे उस बारे में सलाह माँगते हैं। जबकि दूसरे इसलिए सलाह माँगते हैं क्योंकि अब उन्हें पायनियर के तौर पर सेवा करने के लिए बेथेल से भेज दिया गया है। मैं उन सबकी सुनता हूँ जो मुझसे बात करने आते हैं और जब सही हो तो मैं अकसर उनसे कहता हूँ, “‘परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।’ इसलिए अपने काम में खुशी पाइए क्योंकि हम यह सब यहोवा के लिए करते हैं।”—2 कुरिं. 9:7.
अगर आप बेथेल सेवा में या किसी और सेवा में खुश रहना चाहते हैं, तो आपको इस बात पर ध्यान लगाना चाहिए कि आप जो काम कर रहे हैं, वह क्यों ज़रूरी है। हम बेथेल में जो करते हैं, वह पवित्र सेवा है। इससे ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ को दुनिया-भर में हमारे भाइयों तक आध्यात्मिक भोजन पहुँचाने में मदद मिलती है। (मत्ती 24:45) हम चाहे कहीं भी यहोवा की सेवा करें, हमारे पास उसकी महिमा करने के कई मौके होते हैं। तो आइए यहोवा हमसे जो करने के लिए कहता है, उसे करने में खुशी पाएँ क्योंकि “परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”
^ पैरा. 13 लैनर्ड स्मिथ की जीवन कहानी 15 अप्रैल, 2012 की प्रहरीदुर्ग में छापी गयी थी।