नौजवानो, क्या आप यहोवा की सेवा में अपने लक्ष्यों को पहली जगह देंगे?
“तू जो कुछ करे उसे यहोवा को सौंप दे, तब तेरी योजनाएँ सफल होंगी।”—नीति. 16:3.
गीत: 11, 24
1-3. (क) सभी नौजवानों को किस मुश्किल का सामना करना पड़ता है? इस बात को समझने के लिए कौन-सा उदाहरण दिया गया है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) मसीही नौजवान इस मुश्किल को कैसे पार कर सकते हैं?
मान लीजिए, आप एक खास कार्यक्रम में जाने की तैयारी कर रहे हैं। कार्यक्रम दूर किसी शहर में रखा गया है और आपको बस से सफर करना है। जब आप बस स्टेशन पहुँचते हैं तो क्या देखते हैं? हर तरफ लोगों की भीड़ है और ढेर सारी बसें खड़ी हैं। पहले तो आप थोड़ा चकरा जाते हैं, लेकिन फिर राहत की साँस लेते हैं क्योंकि आपको अपनी मंज़िल पता है और यह भी पता है कि आपको कौन-सी बस लेनी है। इसलिए आप किसी गलत बस में नहीं बैठेंगे।
2 नौजवानो, ज़िंदगी भी एक सफर है और आप उन यात्रियों की तरह हैं जो बस स्टेशन पर खड़े हैं। कभी-कभी ज़िंदगी में आपके सामने ढेरों मौके आते हैं या आपको कई फैसले करने होते हैं। ऐसे में शायद आप चकरा जाएँ कि क्या करना सही होगा। लेकिन अगर आपको पता है कि आपको ज़िंदगी में कौन-सी राह लेनी है, तो आप सही फैसले ले पाएँगे। मगर सवाल उठता है कि आपको कौन-सी राह चुननी चाहिए?
3 इसका जवाब आपको इस लेख में मिलेगा। यही नहीं, आपको बढ़ावा मिलेगा कि आप अपना पूरा ध्यान यहोवा को खुश करने में लगाएँ। इसमें यह शामिल है कि आप ज़िंदगी के हर फैसले में उसकी सलाह पर चलें फिर चाहे यह नौकरी के नीतिवचन 16:3 पढ़िए।
बारे में हो, शिक्षा या परिवार की ज़िम्मेदारियों के बारे में हो। यही नहीं, इसमें यह भी शामिल है कि आप ऐसे लक्ष्यों को पाने में मेहनत करें जिनसे आप यहोवा के और करीब आ पाएँगे। अगर आप अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा में लगाएँगे, तो यकीन रखिए कि वह आपको आशीष देगा और आप ज़िंदगी में सफल हो पाएँगे।—यहोवा की सेवा में लक्ष्य क्यों रखें?
4. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
4 यहोवा के करीब आने और उसकी सेवा करने का लक्ष्य रखना अच्छी बात है। वह क्यों? हम तीन वजहों पर गौर करेंगे। पहली और दूसरी वजह साफ दिखाएँगी कि जब आप इन लक्ष्यों को पाने में मेहनत करते हैं, तो यहोवा के साथ आपका रिश्ता और मज़बूत होता है। तीसरी वजह से आप समझ पाएँगे कि छोटी उम्र से ही लक्ष्य रखने के क्या फायदे होते हैं।
5. यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखने की सबसे अहम वजह क्या है?
5 यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखने की सबसे अहम वजह है कि हम यहोवा के प्यार और उसके उपकारों के लिए उसका धन्यवाद करना चाहते हैं। भजन के एक लेखक ने कहा, “हे यहोवा, यह सही है कि तेरा शुक्रिया अदा किया जाए . . . क्योंकि हे यहोवा, तूने अपने कामों से मुझे मगन किया है। तेरे हाथ के कामों के कारण मैं खुशी से जयजयकार करता हूँ।” (भज. 92:1, 4) ज़रा सोचिए, यहोवा ने आपको क्या-कुछ नहीं दिया है। आपकी ज़िंदगी, आपका विश्वास, बाइबल, मंडली और फिरदौस में हमेशा तक जीने की आशा, सब उसी की देन है। यहोवा की सेवा को पहली जगह देकर आप इन आशीषों के लिए एहसानमंदी दिखा सकते हैं और यहोवा के और भी करीब आ सकते हैं।
6. (क) यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखने से उसके साथ आपका रिश्ता कैसा होगा? (ख) छोटी उम्र से ही आप कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?
6 अब आइए दूसरी वजह पर ध्यान दें। जब आप अपने लक्ष्यों को पाने में मेहनत करते हैं, तो आप यहोवा की नज़र में अच्छे काम कर रहे होते हैं। इस तरह उसके साथ आपका रिश्ता और मज़बूत होगा। प्रेषित पौलुस ने यकीन के साथ कहा, “परमेश्वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्यार को भूल जाए जो तुम्हें उसके नाम के लिए है।” (इब्रा. 6:10) कई नौजवानों को शायद लगे कि पहले मैं बड़ा हो जाऊँ, फिर लक्ष्य रखने के बारे में सोचूँगा। लेकिन आप छोटी उम्र से ही लक्ष्य रख सकते हैं। क्रिसटीन ने ऐसा ही किया। जब वह 10 साल की थी तो उसने फैसला किया कि वह नियमित तौर पर वफादार भाई-बहनों की जीवन कहानियाँ पढ़ेगी। जब टोबी 12 साल का था, तब उसने बपतिस्मे से पहले पूरी बाइबल पढ़ने का लक्ष्य रखा। मैकसिम 11 साल का था और उसकी बहन नोएमी 10 साल की थी जब उन्होंने बपतिस्मा लिया। उन दोनों ने बेथेल में सेवा करने का लक्ष्य रखा। अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाए रखने के लिए उन्होंने बेथेल की अर्ज़ी को घर की दीवार पर चिपका दिया। नौजवानो, क्या आप भी ऐसा कोई लक्ष्य रख सकते हैं और उसे पाने में मेहनत कर सकते हैं?—फिलिप्पियों 1:10, 11 पढ़िए।
7, 8. (क) लक्ष्य रखने से किस तरह सही फैसले लेना आसान होता है? (ख) एक नौजवान ने क्यों यूनिवर्सिटी जाने का फैसला नहीं किया?
7 यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखने की तीसरी वजह क्या है? नौजवानो, आपको शिक्षा, नौकरी और दूसरे मामलों के बारे में कई फैसले लेने होते हैं। यह ऐसा है मानो आप सफर करते-करते एक चौराहे पर आ गए हों और आपको चुनना है कि आप कौन-सा रास्ता लेंगे। अगर आपको अपनी मंज़िल पता है, तो रास्ता चुनना आसान होगा। ठीक उसी तरह, अगर आपको अपना लक्ष्य पता है, तो सही फैसले लेना आपके लिए आसान होगा। नीतिवचन 21:5 बताता है, “मेहनती की योजनाएँ ज़रूर सफल होंगी।” जी हाँ, आप जितनी जल्दी लक्ष्य रखेंगे और उनके लिए योजनाएँ बनाएँगे उतनी जल्दी आप उनमें सफल होंगे। डामारिस नाम की एक बहन ने खुद यह अनुभव किया। जब वह नौजवान थी, तो उसे एक ज़रूरी फैसला करना था।
8 वह हाई स्कूल में अच्छे नंबरों से पास हुई। इस वजह से वह मुफ्त में किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई कर सकती थी और वकील बन सकती थी।
लेकिन उसने कोई छोटी-मोटी नौकरी करने का फैसला किया। वह क्यों? क्योंकि जब वह बहुत छोटी थी तो उसने पायनियर सेवा का लक्ष्य रखा था। वह कहती है, “मैं यह लक्ष्य तभी पा सकती थी जब मुझे कोई पार्ट-टाइम नौकरी मिलती। यूनिवर्सिटी की ड्रिग्री लेने से मैं बहुत पैसे कमा सकती थी, लेकिन पार्ट-टाइम नौकरी मिलना मुश्किल होता।” आज डामारिस को पायनियर सेवा करते हुए 20 साल हो चुके हैं। क्या उसे लगता है कि उसने जवानी में जो लक्ष्य रखा और जो फैसला लिया, वह सही था? बिलकुल! जिस बैंक में वह काम करती है, वहाँ उसकी मुलाकात कई वकीलों से होती है। अगर उसने यूनिवर्सिटी की पढ़ाई की होती, तो वह भी उन वकीलों के जैसे काम करती। डामारिस का कहना है कि इनमें से कई वकील अपनी नौकरी से खुश नहीं और उसका भी यही हाल हो सकता था। लेकिन पायनियर सेवा ने उसे इन सबसे बचाया है और उसे बहुत खुशियाँ दी हैं।9. हमें अपने नौजवानों पर क्यों नाज़ है?
9 पूरी दुनिया में ऐसे हज़ारों नौजवान हैं जो यहोवा के साथ अपने रिश्ते को और उसकी सेवा में अपने लक्ष्यों को पहली जगह देते हैं। हमें ऐसे नौजवानों पर नाज़ है और वे तारीफ के काबिल हैं। ये नौजवान अपनी ज़िंदगी का पूरा मज़ा लेते हैं साथ ही, शिक्षा, नौकरी, परिवार, सब मामलों में यहोवा के मार्गदर्शन पर चलना सीखते हैं। सुलैमान ने लिखा, “पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखना, उसी को ध्यान में रखकर सब काम करना, तब वह तुझे सही राह दिखाएगा।” (नीति. 3:5, 6) नौजवानो, यहोवा आपसे बेहद प्यार करता है! यकीन रखिए, आप उसके लिए बहुत अनमोल है। वह आपकी हिफाज़त करेगा, आपको सही राह दिखाएगा और आपको आशीषें देगा।
गवाही देने की अच्छी तैयारी कीजिए
10. (क) प्रचार काम को पहली जगह देना क्यों ज़रूरी है? (ख) अपने विश्वास के बारे में अच्छी तरह समझाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
10 अगर यहोवा को खुश करना आपकी ज़िंदगी में अहमियत रखता है, तो आप दूसरों को उसके बारे में बताने के लिए उभारे जाएँगे। यीशु मसीह ने कहा कि “यह ज़रूरी है कि पहले सब राष्ट्रों में खुशखबरी का प्रचार किया जाए।” (मर. 13:10) इससे पता चलता है कि प्रचार करना बहुत ज़रूरी है और हमें इस काम को पहली जगह देनी चाहिए। क्या आप प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा करने का लक्ष्य रख सकते हैं? क्या आप पायनियर सेवा कर सकते हैं? लेकिन तब क्या, जब आपको प्रचार काम में कुछ खास मज़ा नहीं आ रहा? आप क्या कर सकते हैं ताकि आप दूसरों को अपने विश्वास के बारे में और भी अच्छी तरह समझा सकें? दो बातों पर ध्यान दीजिए। पहली बात, अच्छी तैयारी कीजिए और दूसरी, बिना हार माने यहोवा के बारे में बताते रहिए। जब आप ऐसा करेंगे तो आपको प्रचार काम में मज़ा आने लगेगा।
11, 12. (क) दूसरों को यहोवा के बारे में बताने के लिए आप क्या तैयारी कर सकते हैं? (ख) एक जवान भाई ने किस तरह स्कूल में गवाही देने का मौका ढूँढ़ा?
11 अच्छी तैयारी में क्या शामिल है? सबसे पहले, उन सवालों के बारे में सोचिए जो अकसर स्कूल के साथी पूछते हैं जैसे, “तुम ईश्वर को क्यों मानते हो?” हमारी वेबसाइट jw.org आपकी बहुत मदद कर सकती है। अगर आप शास्त्र से जानिए > नौजवान भाग देखें, तो वहाँ नौजवानों के लिए अभ्यास दिए गए हैं। उनमें से एक अभ्यास इस सवाल पर है, “मैं परमेश्वर को क्यों मानता हूँ?” इसकी मदद से आप अपना जवाब तैयार कर पाएँगे। इसमें बाइबल की तीन आयतें भी दी गयी हैं जो आप अपने जवाब में शामिल कर सकते हैं: इब्रानियों 3:4, रोमियों 1:20 और भजन 139:14. ऐसे और भी अभ्यास दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप दूसरे सवालों के जवाब तैयार कर पाएँगे।—1 पतरस 3:15 पढ़िए।
12 इसके अलावा, आप अपने स्कूल के साथियों को बढ़ावा दे सकते हैं कि वे खुद हमारी वेबसाइट पर जाएँ। लूका नाम के एक जवान भाई ने यही किया। एक बार उसकी क्लास में अलग-अलग धर्म को लेकर चर्चा हो रही थी। लूका ने गौर किया कि स्कूल की किताब में यहोवा के साक्षियों के बारे में गलत जानकारी दी गयी है। हालाँकि वह घबरा रहा था फिर भी उसने दिमाग लगाएँ, बदमाश भगाएँ नाम का वीडियो देखें। लूका को कितनी खुशी हुई होगी कि वह अपनी क्लास को यहोवा के बारे में बता पाया।
अपनी टीचर से पूछा कि क्या मैं पूरी क्लास के सामने साक्षियों के बारे में सही जानकारी दूँ? टीचर ने उसे इजाज़त दी और लूका को अपने विश्वास के बारे में बताने और हमारी वेबसाइट दिखाने का मौका मिला। नतीजा, टीचर ने सभी विद्यार्थियों को होमवर्क दिया कि वे13. मुश्किलें आने पर हमें क्यों हार नहीं माननी चाहिए?
13 जब आप मुश्किलों का सामना करते हैं, तो हार मत मानिए! अपने लक्ष्यों को पाने में मेहनत करते रहिए। (2 तीमु. 4:2) काटारीना की मिसाल पर ध्यान दीजिए। जब वह 17 साल की थी तो उसने लक्ष्य रखा कि वह अपनी नौकरी की जगह पर हर व्यक्ति को प्रचार करेगी। एक सहकर्मी ने कई बार उसका अपमान किया, फिर भी वह अपने लक्ष्य पर बनी रही। उसके अच्छे व्यवहार का एक दूसरे सहकर्मी पर गहरा असर हुआ। उसका नाम हान्स था। उसने हमारे प्रकाशन पढ़े, बाइबल का अध्ययन किया और बपतिस्मा लिया। काटारीना को यह सब पता नहीं था क्योंकि वह दूसरी जगह चली गयी थी। तेरह साल बाद जब काटारीना अपने परिवार के साथ सभा में बैठी थी, तो उसे यह देखकर हैरानी हुई कि भाषण देने आया भाई कोई और नहीं बल्कि हान्स था! वह कितनी खुश थी कि उसने हार नहीं मानी बल्कि अपने लक्ष्य पर बनी रही।
अपने लक्ष्य मत भूलिए
14, 15. (क) दबाव आने पर आपको क्या नहीं भूलना चाहिए? (ख) आप अपने साथियों के दबावों का डटकर सामना कैसे कर सकते हैं?
14 अब तक हमने देखा कि किस तरह नौजवान यहोवा को खुश करने और उसकी सेवा में लक्ष्य रखने को पहली जगह दे सकते हैं। लेकिन आज दुनिया में ज़्यादातर नौजवान ऐसा नहीं करते। वे सिर्फ मौज-मस्ती करना चाहते हैं और ज़िंदगी का पूरा मज़ा लेना चाहते हैं। वे शायद आपको भी ऐसा करने के लिए उकसाएँ। लेकिन आज नहीं तो कल आपको यह जताना ही होगा कि आप हर हाल में अपने लक्ष्यों को पाना चाहते हैं। इसलिए दूसरों के दबाव में आकर उन लक्ष्यों को मत भूल जाइए। लेख की शुरूआत में बताए गए उदाहरण पर एक बार फिर ध्यान दीजिए। अगर आप बस स्टेशन पर खड़े हैं, तो क्या आप यह देखकर किसी भी बस में चढ़ जाएँगे कि उसमें बैठे लोग बहुत मज़े कर रहे हैं? बिलकुल नहीं!
15 तो फिर, आप अपने साथियों के दबावों का डटकर नीति. 22:3) यह भी सोचिए कि गलत काम करने के क्या बुरे अंजाम हो सकते हैं। (गला. 6:7) इसके अलावा, नम्र होकर कबूल कीजिए कि आपको सलाह की ज़रूरत है। जब आपके माता-पिता और प्रौढ़ भाई-बहन आपको सुझाव देते हैं, तो उनकी सुनिए।—1 पतरस 5:5, 6 पढ़िए।
सामना कैसे कर सकते हैं? ऐसे हालात से दूर रहिए जिनमें साथियों को मना करना मुश्किल हो सकता है। (16. क्रिस्टौफ का अनुभव कैसे दिखाता है कि नम्र होना बहुत ज़रूरी है?
16 ध्यान दीजिए कि नम्रता का गुण होने से क्रिस्टौफ को क्या फायदा हुआ। जब उसका बपतिस्मा हुआ था, तो उसके कुछ समय बाद वह जिम जाने लगा। वहाँ दूसरे जवानों ने उसे स्पोर्ट्स क्लब में शामिल होने के लिए कहा। क्रिस्टौफ ने एक प्राचीन से इस बारे में बात की। प्राचीन ने उसे बताया कि अकसर ऐसे खेलों में कई खतरे हो सकते हैं। एक खतरा यह है कि उसके अंदर होड़ लगाने की भावना बढ़ सकती है। उसने क्रिस्टौफ को सोच-समझकर फैसला करने के लिए कहा, फिर भी क्रिस्टौफ ने स्पोर्ट्स क्लब में जाने का फैसला किया। कुछ समय बाद, उसने देखा कि वह जो खेल खेल रहा था, उसमें धक्का-मुक्की होती है और गहरी चोट लगने का भी खतरा रहता है। उसने एक बार फिर प्राचीनों से बात की जिन्होंने उसे बाइबल से कुछ सलाह दी। क्रिस्टौफ बताता है, “यहोवा ने मेरी मदद करने के लिए अच्छे सलाहकार दिए और भले ही मुझे वक्त लगा लेकिन आखिरकार मैंने यहोवा की सलाह मान ली।” क्या आप भी क्रिस्टौफ की तरह नम्र होंगे और सलाह कबूल करेंगे?
17, 18. (क) यहोवा नौजवानों के लिए क्या चाहता है? (ख) बड़े होने पर कइयों को क्या अफसोस होता है और इससे बचने के लिए आप क्या कर सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
17 बाइबल बताती है, “हे नौजवान, अपनी जवानी में खुशियाँ मना और जवानी के दिनों में तेरा दिल खुश रहे।” (सभो. 11:9) जी हाँ, यहोवा चाहता है कि आप नौजवान खुश रहें। इस लेख में आपने खुश रहने का एक तरीका सीखा। वह है, यहोवा की सेवा से जुड़े लक्ष्यों को पहली जगह देना और अपनी सभी योजनाओं और फैसलों में उसकी सलाह मानना। अगर आप छोटी उम्र से ऐसा करें, तो आप खुद देख पाएँगे कि यहोवा आपको राह दिखा रहा है, आपकी हिफाज़त कर रहा है और आपको आशीषें दे रहा है। ज़रा सोचिए, वह आपको अपने वचन से ढेर सारी अच्छी सलाह देता है! ऐसी ही एक सलाह पर ध्यान दीजिए, “अपनी जवानी के दिनों में अपने महान सृष्टिकर्ता को याद रख।”—सभो. 12:1.
18 जवानी के दिन पलक झपकते ही बीत जाते हैं। बड़े होने पर कइयों को अफसोस होता है कि उन्होंने अपनी जवानी में कोई लक्ष्य नहीं रखे या रखे भी तो गलत किस्म के लक्ष्य। लेकिन अगर आप यहोवा की सेवा से जुड़े लक्ष्य को पहली जगह दें, तो बड़े होकर आपको कोई पछतावा नहीं होगा। मीरयाना के अनुभव पर गौर कीजिए। अपनी जवानी के दिनों में वह खेल-कूद में सबसे आगे थी। उसे विंटर ऑलम्पिक खेल में भाग लेने का न्यौता मिला। मगर उसने पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया। इस बात को 30 से भी ज़्यादा साल हो चुके हैं और मीरयाना अब भी अपने पति के साथ पूरे समय की सेवा कर रही है। वह कहती है कि जो लोग नाम, शोहरत, रुतबे और पैसे के पीछे भागते हैं, वे कभी खुश नहीं होते। इसके बजाय, यहोवा की सेवा करना और दूसरों को उसके बारे में बताना ही ज़िंदगी का सबसे अच्छा लक्ष्य है।
19. बताइए कि छोटी उम्र से ही लक्ष्य रखने के क्या फायदे होते हैं।
19 नौजवानो, हम दिल से आपकी सराहना करना चाहते हैं क्योंकि आप मुश्किलों में भी यहोवा की सेवा को पहली जगह देते हैं। आप उसकी सेवा में लक्ष्य रखते हैं और प्रचार काम को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं। इसके अलावा, आप दुनिया से आनेवाले दबावों के बावजूद अपने लक्ष्य नहीं भूलते। यकीन रखिए, आपकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। सभी भाई-बहन आपसे बेहद प्यार करते हैं और वे आपके साथ हैं। इसलिए बाइबल की यह सलाह मानिए, “तू जो कुछ करे उसे यहोवा को सौंप दे, तब तेरी योजनाएँ सफल होंगी।”