अध्ययन लेख 3
यहोवा आपको अनमोल समझता है!
“जब हम निराश थे तब उसने हम पर ध्यान दिया।”—भज. 136:23.
गीत 33 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे!
लेख की एक झलक *
1-2. (क) यहोवा के कई सेवक किन हालात का सामना करते हैं? (ख) इसका नतीजा क्या हो सकता है?
ज़रा आगे बताए तीन हालात पर ध्यान दीजिए: एक जवान भाई को पता चलता है कि उसे एक भयानक बीमारी है, जो उसे धीरे-धीरे कमज़ोर कर देगी और वह पूरी तरह लाचार हो जाएगा। एक भाई, जिसकी उम्र करीब 50 साल है, अपनी नौकरी से हाथ धो बैठता है। बहुत कोशिश करने पर भी उसे दूसरी नौकरी नहीं मिलती। एक बुज़ुर्ग बहन सालों से यहोवा की सेवा कर रही है। लेकिन अब वह उतना नहीं कर पाती जितना पहले करती थी।
2 अगर आपके हालात भी इनकी तरह हैं, तो शायद आपको लगे कि अब आप किसी काम के नहीं रहे। ऐसी सोच आपकी खुशी छीन सकती है, आप खुद को बेकार समझने लग सकते हैं और दूसरों के साथ आपके रिश्ते में दरार भी आ सकती है।
3. शैतान और उसके लोग इंसान के जीवन के बारे में क्या नज़रिया रखते हैं?
3 शैतान ने कभी इंसानों के जीवन की कदर नहीं की। अदन के बाग में वह अच्छी तरह जानता था कि अगर हव्वा मना किया गया फल खाएगी, तो मर जाएगी। फिर भी उसने जानबूझकर हव्वा को फल खाने के लिए बहकाया। आज भी यह दुनिया शैतान का नज़रिया अपनाती है। दुनिया का व्यापार जगत, राजनीति और धर्म शैतान के इशारों पर नाचते हैं। तभी कई बिज़नेसमैन, राजनेता और धर्म के अगुवे न तो इंसान के जीवन की और न ही उनके जज़्बातों की कोई कदर करते हैं।
4. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
4 यहोवा का नज़रिया शैतान से बिलकुल अलग है। वह हमें अनमोल समझता है और चाहता है कि हम हमेशा इस बात को याद रखें। अगर कभी हमारे सामने ऐसे हालात उठें, जब हम खुद को बेकार समझने लगें, तो वह सही भज. 136:23; रोमि. 12:3) इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि यहोवा आगे बताए हालात में किस तरह हमारी मदद करता है: (1) जब हम बीमार होते हैं, (2) जब हम पैसों की तंगी झेलते हैं और (3) जब बुढ़ापे की वजह से हमें लगता है कि हम यहोवा की सेवा में किसी काम के नहीं रहे। लेकिन आइए पहले देखें कि हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हममें से हरेक यहोवा के लिए अनमोल है।
सोच रखने में हमारी मदद करता है। (यहोवा हमें अनमोल समझता है
5. क्या बात दिखाती है कि यहोवा की नज़र में इंसान बहुत अनमोल है?
5 भले ही हम मिट्टी से बने हैं, लेकिन हमारा मोल मिट्टी से कहीं बढ़कर है। (उत्प. 2:7) हम यहोवा की नज़र में इतने अनमोल क्यों हैं? इसके कुछ कारणों पर ध्यान दीजिए। यहोवा ने हमें इस तरह बनाया है कि हम उसके जैसे गुण ज़ाहिर कर सकते हैं। इस वजह से हम धरती की बाकी सभी चीज़ों से श्रेष्ठ हैं। (उत्प. 1:27) उसने हमें धरती और जानवरों की देखभाल करने का अधिकार भी दिया है।—भज. 8:4-8.
6. इस बात के क्या सबूत हैं कि यहोवा अपरिपूर्ण इंसानों को अनमोल समझता है?
6 आदम के पाप करने के बाद भी यहोवा हमें अनमोल समझता रहा। उसने हमें पाप से छुड़ाने के लिए अपने अज़ीज़ बेटे यीशु तक को कुरबान कर दिया। (1 यूह. 4:9, 10) आदम के पाप की वजह से जितने लोग मर गए हैं फिर चाहे वे ‘अच्छे हों या बुरे,’ उन्हें यहोवा इसी फिरौती बलिदान के आधार पर दोबारा ज़िंदा करेगा। (प्रेषि. 24:15) परमेश्वर के वचन से पता चलता है कि हम यहोवा के लिए बहुत अनमोल हैं, फिर चाहे हम बीमार हों, आर्थिक तंगी या बुढ़ापे की मार झेल रहे हों।—प्रेषि. 10:34, 35.
7. यह मानने के और क्या कारण हैं कि यहोवा हमें अनमोल समझता है?
7 यह मानने के और भी कई कारण हैं कि यहोवा हमें अनमोल समझता है। वह हमें अपने पास खींचता है और इस बात पर ध्यान देता है कि हम खुशखबरी के लिए कैसा रवैया रखते हैं। (यूह. 6:44) फिर जैसे-जैसे हम उसके करीब जाने लगते हैं, वह भी हमारे करीब आने लगता है। (याकू. 4:8) यहोवा हमें सिखाने के लिए भी बहुत कुछ करता है। वह अच्छी तरह जानता है कि हम किस तरह के इंसान हैं और भविष्य में कैसे इंसान बन सकते हैं, इसीलिए वह इतनी मेहनत करता है। वह हमसे प्यार करता है और ज़रूरत पड़ने पर हमें सुधारता भी है। (नीति. 3:11, 12) सच में, यहोवा हमें बहुत अनमोल समझता है!
8. मुश्किलों के बारे में सही नज़रिया रखने में भजन 18:27-29 में दिए शब्द कैसे हमारी मदद कर सकते हैं?
8 राजा दाविद के बारे में कुछ लोगों को लगता था कि वह किसी लायक नहीं है। लेकिन दाविद को यकीन था कि यहोवा उससे प्यार करता है और उसका साथ नहीं छोड़ेगा। इस वजह से वह मुश्किल हालात में भी सही नज़रिया रख पाया। (2 शमू. 16:5-7) आज शायद हम भी किसी मुश्किल का सामना करें या निराश हो जाएँ। ऐसे हालात में सही सोच रखने और उस मुश्किल को पार करने में यहोवा हमारी मदद कर सकता है। (भजन 18:27-29 पढ़िए।) अगर यहोवा हमारे साथ है, तो कोई भी बात हमें खुशी-खुशी उसकी सेवा करने से रोक नहीं सकती। (रोमि. 8:31) अब हम उन तीन हालात पर ध्यान देंगे, जिनमें हमें हमेशा याद रखना है कि यहोवा हमसे प्यार करता है और हमें अनमोल समझता है।
जब हम बीमार होते हैं
9. बीमारी का हमारी सोच और भावनाओं पर क्या असर हो सकता है?
9 बीमारी का हमारी भावनाओं पर गहरा असर हो सकता है और हमें लग सकता है कि हम किसी लायक नहीं हैं। बीमार होने पर कई बार हम बहुत दुखी या मायूस हो जाते हैं। कभी-कभी ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें छोटे-छोटे काम के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। हमारी बीमारी के बारे में चाहे दूसरों को पता हो या न हो, फिर भी हम यह सोचकर खुद को नकारा महसूस करने लगते हैं कि हम कुछ नहीं कर पा रहे। मायूस कर देनेवाले इन हालात में यहोवा हमें हौसला दे सकता है। वह कैसे?
10. बीमारी के दौरान नीतिवचन 12:25 में लिखी बात कैसे हमारी मदद करती है?
नीतिवचन 12:25 पढ़िए।) यहोवा ने बाइबल में बहुत-सी अच्छी बातें लिखवायी हैं। ये हमें याद दिलाती हैं कि वह हमें अनमोल समझता है, तब भी जब हम कमज़ोर और बीमार होते हैं। (भज. 31:19; 41:3) इस वजह से जब हम यहोवा का वचन बार-बार पढ़ते हैं, तो हम उन निराश कर देनेवाली भावनाओं से लड़ पाते हैं, जो बीमारी के दौरान हम पर हावी हो सकती हैं।
10 बीमारी के दौरान किसी “अच्छी बात से” हमारा मन खुश हो जाता है और हमें बहुत हौसला मिलता है। (11. भाई होरहे ने कैसे महसूस किया कि यहोवा ने उसकी मदद की है?
11 ज़रा होरहे के अनुभव पर ध्यान दीजिए। जवानी में ही उसे ऐसी बीमारी हो गयी थी, जिसने जल्द ही भयानक रूप ले लिया। होरहे को लगने लगा कि वह अब किसी लायक नहीं रहा। वह कहता है, “इस बीमारी की वजह से मेरे अंदर तरह-तरह की भावनाएँ उठने लगीं। मेरी हालत देखकर बेवजह लोगों का ध्यान मुझ पर जाने लगा और मैं शर्मिंदा महसूस करने लगा। मैं इस सबके लिए तैयार नहीं था। फिर जब मेरी हालत बिगड़ने लगी, तो मैं सोचने लगा कि अब मेरी ज़िंदगी का क्या होगा। मैं पूरी तरह टूट गया था। मैंने यहोवा से प्रार्थना की, गिड़गिड़ाकर उससे मदद माँगी।” यहोवा ने उसकी मदद कैसे की? वह बताता है, “मैं ज़्यादा देर तक किसी बात पर ध्यान नहीं लगा पा रहा था। इस वजह से मैं भजन की किताब का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा पढ़ता था, खासकर वह हिस्सा जिसमें बताया गया है कि यहोवा अपने सेवकों की कितनी परवाह करता है। मैं हर दिन ये आयतें पढ़ता था, कभी-कभी तो दिन में कई बार। मुझे बहुत दिलासा मिला। धीरे-धीरे लोगों ने गौर किया कि अब मैं ज़्यादा खुश रहने लगा हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे खुश देखकर उनका हौसला बढ़ा है। उनकी बातें सुनकर मुझे एहसास हुआ कि यहोवा ने मेरी प्रार्थनाएँ सुन ली हैं। उसने मेरी मदद की कि मैं खुद के बारे में अपनी सोच बदलूँ। अब मैं अपनी बीमारी के बजाय इस बात पर ज़्यादा ध्यान देता हूँ कि यहोवा मेरे बारे में क्या सोचता है।”
12. बीमारी का सामना करते वक्त आप यहोवा से मदद कैसे ले सकते हैं?
12 अगर आप किसी बीमारी से जूझ रहे हैं, तो यकीन रखिए कि यहोवा आपकी तकलीफ समझता है। यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती कीजिए कि वह सही नज़रिया रखने में आपकी मदद करे। परमेश्वर का वचन पढ़िए जिसमें यहोवा ने बहुत सारी अच्छी बातें लिखवायी हैं और जिससे आपको दिलासा मिल सकता है। आप खासकर उन आयतों पर ध्यान दे सकते हैं, जिनसे पता चलता है कि यहोवा अपने सेवकों को कितना अनमोल समझता है। इससे आपको एहसास होगा कि यहोवा उन सभी लोगों से प्यार करता है, जो उसके वफादार रहते हैं।—जब हम पैसों की तंगी झेलते हैं
13. जब परिवार के मुखिया की नौकरी चली जाती है, तो वह शायद कैसा महसूस करे?
13 हर परिवार का मुखिया चाहता है कि वह अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करे। लेकिन ज़रा एक भाई के बारे में सोचिए जिसकी नौकरी चली जाती है जबकि इसमें उसका कोई दोष नहीं था। वह बहुत कोशिश करता है, लेकिन उसे दूसरी नौकरी नहीं मिलती। ऐसे में वह शायद खुद को बेकार समझने लगे। यहोवा के वादों पर भरोसा करने से उसे कैसे मदद मिल सकती है?
14. यहोवा किन कारणों से अपने वादे पूरे करता है?
14 यहोवा हमेशा अपने वादे पूरे करता है। (यहो. 21:45; 23:14) वह ऐसा कई कारणों से करता है। पहला कारण है कि वह अपने नाम की खातिर ऐसा करता है। उसने ज़बान दी है कि वह अपने वफादार सेवकों की देखभाल करेगा और वह अपनी ज़बान से नहीं मुकरता। अगर वह ऐसा करे, तो उसके नाम पर कलंक आएगा। (भज. 31:1-3) दूसरा कारण है कि हम यहोवा के परिवार का हिस्सा हैं। यहोवा अच्छी तरह जानता है कि अगर वह हमारी देखभाल न करे, तो हम दुखी और निराश हो जाएँगे। वह वादा करता है कि हमारे जीने के लिए और उसकी सेवा करते रहने के लिए जो ज़रूरी है, वह हमें देगा। यह वादा पूरा करने से कोई भी बात उसे रोक नहीं सकती!—मत्ती 6:30-33; 24:45.
15. (क) पहली सदी के मसीहियों को किस मुश्किल का सामना करना पड़ा? (ख) भजन 37:18, 19 से हमें किस बात का भरोसा मिलता है?
15 अगर हम हमेशा याद रखें कि यहोवा क्यों अपने वादे पूरे करता है, तो आर्थिक समस्याएँ आने पर भी हम उस पर भरोसा करना नहीं छोड़ेंगे। पहली सदी के मसीहियों का उदाहरण लीजिए। जब यरूशलेम की मंडली पर बहुत ज़ुल्म होने लगे, तो “प्रेषितों को छोड़ बाकी सभी चेले . . . तितर-बितर हो गए।” (प्रेषि. 8:1) ज़रा सोचिए, उन चेलों को अपना घर, अपना कारोबार, सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा होगा। उन्हें पैसों की तंगी ज़रूर हुई होगी, लेकिन यहोवा ने उन्हें अकेला नहीं छोड़ा, न ही उनकी खुशी किसी तरह कम हुई। (प्रेषि. 8:4; इब्रा. 13:5, 6; याकू. 1:2, 3) यहोवा ने उन वफादार मसीहियों को सँभाला था, वह हमें भी सँभालेगा।—भजन 37:18, 19 पढ़िए।
जब हम बूढ़े हो जाते हैं
16. हमें शायद ऐसा क्यों लगे कि यहोवा के लिए हमारी उपासना कोई मायने नहीं रखती?
16 जब हमारी उम्र ढलने लगती है, तो शायद हमें लगे कि अब हम यहोवा की सेवा में ज़्यादा नहीं कर पा रहे हैं। राजा दाविद भी बुढ़ापे में कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था। (भज. 71:9) तो सवाल है कि यहोवा हमारी मदद कैसे कर सकता है?
17. बहन झीरी के अनुभव से हम क्या सीख सकते हैं?
17 ज़रा बहन झीरी के अनुभव पर ध्यान दीजिए। एक बार राज-घर में एक सभा रखी जानेवाली थी, जिसमें यहोवा की उपासना में इस्तेमाल होनेवाली इमारतों के रख-रखाव के बारे में बताया जाता। बहन को भी इस सभा में बुलाया गया। लेकिन बहन नहीं जाना चाहती थीं। वे बताती हैं, “मैंने सोचा, मेरी उम्र हो गयी है, मैं विधवा हूँ और इस काम के लिए मेरे पास कोई भी हुनर नहीं है। भला मैं यहोवा के किस काम आ सकती हूँ?” सभा में जाने से एक रात पहले बहन ने दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना की। अगले दिन जब बहन राज-घर
पहुँचीं, तब भी उन्हें लग रहा था कि वे इस काम के काबिल नहीं हैं। सभा के दौरान एक भाई ने अपने भाषण में कहा कि यहोवा से सीखने की इच्छा होना ही सबसे बढ़िया हुनर है। बहन झीरी कहती हैं, “मैंने मन-ही-मन कहा, ‘यह हुनर तो मेरे पास है!’ यह सोचकर मेरी आँखें भर आयीं कि यहोवा मेरी प्रार्थनाओं का जवाब दे रहा है। वह मानो मुझसे कह रहा हो कि मेरे पास अब भी कुछ है जो मैं उसकी सेवा में दे सकती हूँ और वह मुझे सिखाने के लिए तैयार है।” उस वक्त को याद करके बहन कहती हैं, “जब मैं उस सभा में गयी तो मैं घबरायी हुई और निराश थी। लेकिन सभा के बाद मेरा डर दूर हो गया, मुझमें हिम्मत आ गयी और मैं महसूस कर पायी कि मैं यहोवा के काम आ सकती हूँ।”18. बाइबल से कैसे पता चलता है कि यहोवा अपने बुज़ुर्ग सेवकों की उपासना को अनमोल समझता है?
18 हम यकीन रख सकते हैं कि बूढ़े होने पर भी हम यहोवा के काम आ सकते हैं। (भज. 92:12-15) यीशु ने सिखाया था कि भले ही यहोवा की सेवा में हमारा काम मामूली क्यों न लगे, लेकिन यहोवा उसे बहुत अनमोल समझता है। (लूका 21:2-4) इस वजह से हमें इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए कि हम क्या नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि हम क्या कर सकते हैं। जैसे, हम यहोवा के बारे में दूसरों को बता सकते हैं, भाई-बहनों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और उनका हौसला बढ़ा सकते हैं ताकि वे यहोवा के वफादार रहें। यहोवा हमें अपना सहकर्मी समझता है, इसलिए नहीं कि हममें कोई काबिलीयत या हुनर है बल्कि इसलिए कि हम उसकी आज्ञा मानने को तैयार रहते हैं।—1 कुरिं. 3:5-9.
19. रोमियों 8:38, 39 से हमें किस बात का भरोसा मिलता है?
19 हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हम यहोवा परमेश्वर की उपासना करते हैं, जो अपने सेवकों को बहुत अनमोल समझता है। उसने हमें अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए बनाया है और उसकी सेवा करने से ही हमें ज़िंदगी में सच्ची खुशी मिलती है। (प्रका. 4:11) भले ही यह दुनिया हमें बेकार और किसी लायक नहीं समझती, लेकिन यहोवा हमारे बारे में ऐसा नहीं सोचता। (इब्रा. 11:16, 38) जब हम बीमारी, पैसों की तंगी और बुढ़ापे की वजह से निराश होते हैं, तब आइए हम याद रखें कि कोई भी बात हमें अपने पिता यहोवा के प्यार से अलग नहीं कर सकती है।—रोमियों 8:38, 39 पढ़िए।
^ पैरा. 5 क्या कभी आपकी ज़िंदगी में ऐसे हालात आए हैं, जब आपको लगा हो कि आप किसी काम के लायक नहीं हैं? यह लेख आपको याद दिलाएगा कि यहोवा आपको बहुत अनमोल समझता है। इसमें यह भी चर्चा की जाएगी कि चाहे जो भी समस्या आए, आप अपने बारे में सही नज़रिया कैसे बनाए रख सकते हैं।
गीत 30 यहोवा, मेरा परमेश्वर, पिता और दोस्त