अध्ययन लेख 3
यहोवा आपको कामयाबी दिला रहा है!
‘यहोवा यूसुफ के साथ था और हर काम में उसे कामयाबी दे रहा था।’—उत्प. 39:2, 3.
गीत 30 यहोवा, मेरा परमेश्वर, पिता और दोस्त
एक झलक a
1-2. (क) जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो हम हैरान क्यों नहीं होते? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे?
हम यहोवा की सेवा करते हैं, इसलिए जब हम पर मुश्किलें आती हैं तो हम हैरान नहीं होते। बाइबल में भी लिखा है, “हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्वर के राज में दाखिल होना है।” (प्रेषि. 14:22) हम यह भी जानते हैं कि हमारी कुछ मुश्किलें नयी दुनिया में जाकर ही खत्म होंगी। उस वक्त “न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा।”—प्रका. 21:4.
2 यहोवा मुश्किलों को आने से रोकता तो नहीं है, लेकिन जब ये हम पर आती हैं तो वह हमें उन्हें सहने की ताकत ज़रूर देता है। ध्यान दीजिए कि पौलुस ने रोम में रहनेवाले मसीहियों को क्या लिखा। सबसे पहले तो उसने उन्हें बताया कि वह और उसके साथी कौन-कौन-सी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। इसके बाद उसने कहा, “जिसने हमसे प्यार किया, हम उसकी मदद से इन सारी मुसीबतों में शानदार जीत हासिल करते हैं।” (रोमि. 8:35-37) इससे पता चलता है कि हम यहोवा की मदद से मुश्किलों के दौरान भी कामयाब हो सकते हैं। यूसुफ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। आइए देखें कि जब उस पर मुश्किलें आयीं, तो यहोवा की मदद से वह कैसे कामयाब हो पाया और आज जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो हम कैसे कामयाब हो सकते हैं।
जब अचानक हालात बदल जाएँ
3. यूसुफ की ज़िंदगी कैसे अचानक बदल गयी?
3 याकूब अपने बेटे यूसुफ से बहुत प्यार करता था। (उत्प. 37:3, 4) इस वजह से यूसुफ के बड़े भाई उससे जलते थे और जैसे ही उन्हें मौका मिला उन्होंने उसे कुछ मिद्यानी व्यापारियों के हाथ बेच दिया। वे व्यापारी उसे उसके घर से सैंकड़ों किलोमीटर दूर मिस्र ले गए। वहाँ उसे एक बार फिर बेच दिया गया, इस बार पोतीफर को जो फिरौन के पहरेदारों का सरदार था। यूसुफ की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गयी। एक वक्त पर जो अपने पिता का चहेता था, अब मिस्र में एक दास बनकर रह गया था।—उत्प. 39:1.
4. हमें किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है?
4 बाइबल में लिखा है, “मुसीबत की घड़ी किसी पर भी आ सकती है।” (सभो. 9:11) यह बात कितनी सच है। कई बार हम पर ऐसी मुश्किलें आती हैं जो “दूसरे इंसानों पर” भी आती हैं। (1 कुरिं. 10:13) लेकिन कभी-कभी हम पर इसलिए मुश्किलें आती हैं क्योंकि हम यीशु के चेले हैं। जैसे कई बार हमारा मज़ाक उड़ाया जाता है, हमारा विरोध होता है और कई बार तो हम पर ज़ुल्म भी किए जाते हैं। (2 तीमु. 3:12) पर चाहे हम पर कैसी भी मुश्किल आए, यहोवा की मदद से हम कामयाब हो सकते हैं। आइए देखें कि उसने मुश्किलें सहने में यूसुफ की कैसे मदद की।
5. यूसुफ की कामयाबी देखकर पोतीफर क्या समझ गया? (उत्पत्ति 39:2-6)
5 उत्पत्ति 39:2-6 पढ़िए। पोतीफर ने ध्यान दिया कि यूसुफ बहुत बुद्धिमान और मेहनती है। वह इसकी वजह भी समझ गया, यही कि “यहोवा हर काम में उसे कामयाबी” दे रहा था। b कुछ समय बाद पोतीफर ने यूसुफ को अपना खास सेवक बना लिया और फिर उसे अपने घर का अधिकारी भी बना दिया। यूसुफ की वजह से पोतीफर की धन-संपत्ति और शोहरत बढ़ती चली गयी।
6. यूसुफ के साथ जो हो रहा था, उस बारे में उसे कैसा लग रहा होगा?
6 अब हालात को यूसुफ की नज़र से देखने की कोशिश कीजिए। वैसे तो पोतीफर के घर में यूसुफ के पास कई अधिकार थे, पर क्या वह यही चाहता था कि पोतीफर उसकी मेहनत पर ध्यान दे और उसे इनाम दे? वह तो बस अपने घर लौटना चाहता होगा, अपने पिता के पास जाना चाहता होगा। आखिर था तो वह एक गुलाम ही, वह भी एक ऐसे आदमी का जो यहोवा की उपासना नहीं करता था। लेकिन यहोवा ने ऐसा कुछ नहीं किया कि पोतीफर यूसुफ को आज़ाद कर दे, उलटा आगे चलकर तो उसे और भी मुश्किलें सहनी थीं।
जब हालात बद-से-बदतर हो जाएँ
7. यूसुफ के हालात कैसे बद-से-बदतर होते चले गए? (उत्पत्ति 39:14, 15)
7 उत्पत्ति अध्याय 39 में बताया गया है कि पोतीफर की पत्नी यूसुफ पर डोरे डालने लगी। वह यूसुफ से बार-बार कहती कि वह उसके साथ सोए। लेकिन यूसुफ उसे हर बार मना कर देता। एक दिन उसे इतना गुस्सा आया कि उसने यूसुफ पर बलात्कार करने का इलज़ाम लगा दिया। (उत्पत्ति 39:14, 15 पढ़िए।) जब पोतीफर को इस बारे में पता चला, तो उसने यूसुफ को जेल में डलवा दिया। और वह कई सालों तक वहाँ रहा। (उत्प. 39:19, 20) यूसुफ को जहाँ कैद किया गया था, वह जगह कैसी थी? यूसुफ ने उसके बारे में बताने के लिए जो इब्रानी शब्द इस्तेमाल किया उसका मतलब, “कुंड” या “गड्ढा” भी हो सकता है। (उत्प. 40:15, फु.) इससे पता चलता है कि शायद उसे एक काल-कोठरी में डाला गया था और वहाँ वह बहुत निराश महसूस कर रहा होगा। बाइबल में यह भी बताया गया है कि कुछ वक्त के लिए उसके पैरों में बेड़ियाँ और उसकी गर्दन में लोहे की ज़ंजीरें डाली गयी थीं। (भज. 105:17, 18) उसके हालात बद-से-बदतर होते जा रहे थे। एक वक्त पर जो भरोसेमंद दास था, अब एक मामूली-सा कैदी बनकर रह गया था।
8. अगर आपके हालत और भी खराब हो जाएँ, तो भी आप किस बात का यकीन रख सकते हैं?
8 क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपने मदद के लिए यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की, लेकिन फिर भी आपके हालात बद-से-बदतर हो गए? हमारे साथ ऐसा हो सकता है, क्योंकि आज शैतान यह दुनिया चला रहा है और यहोवा कोई चमत्कार करके हमें मुश्किलों से बचाता नहीं है। (1 यूह. 5:19) लेकिन आप एक बात का यकीन रख सकते हैं। यहोवा को मालूम है कि आप पर क्या बीत रही है और वह आपकी बहुत परवाह करता है। (मत्ती 10:29-31; 1 पत. 5:6, 7) उसने हममें से हरेक से वादा किया है, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।” (इब्रा. 13:5) यहोवा आपको मुश्किलें सहने की ताकत दे सकता है, तब भी जब आपको कोई उम्मीद नज़र ना आ रही हो। आइए देखें कि उसने यूसुफ की कैसे मदद की।
9. हम क्यों कह सकते हैं कि जब यूसुफ जेल में था, तब यहोवा उसके साथ था? (उत्पत्ति 39:21-23)
9 उत्पत्ति 39:21-23 पढ़िए। यूसुफ बहुत-ही मुश्किल दौर से गुज़र रहा था, फिर भी यहोवा की मदद से वह कामयाब हो पाया। वह कैसे? जिस तरह पोतीफर यूसुफ के काम देखकर उस पर भरोसा करने लगा था, उसी तरह जेल का दारोगा भी यूसुफ पर भरोसा करने लगा। कुछ ही समय में उसने यूसुफ को जेल के सारे कैदियों का अधिकारी ठहरा दिया। बाइबल में यह तक लिखा है कि “यूसुफ की निगरानी में जो कुछ होता था, उस बारे में दारोगा को ज़रा भी चिंता नहीं करनी पड़ती थी।” अब यूसुफ सिर्फ जेल के एक कोने में यूँ ही नहीं बैठा हुआ था, उसके पास करने के लिए कुछ काम था। ज़रा सोचिए, जिस आदमी पर फिरौन के दरबारी की पत्नी का बलात्कार करने का इलज़ाम लगाया गया था, उसे इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दे दी गयी! इसकी सिर्फ एक वजह हो सकती है। उत्पत्ति 39:23 में लिखा है, “यहोवा यूसुफ के साथ था और यहोवा हर काम में उसे कामयाबी दे रहा था।”
10. यूसुफ को शायद क्यों लगा होगा कि वह हर काम में कामयाब नहीं हो रहा?
10 एक बार फिर हालात को यूसुफ की नज़र से देखने की कोशिश कीजिए। उस पर झूठा इलज़ाम लगाया गया था और जेल में डाल दिया गया था। ऐसे में क्या उसे लग रहा होगा कि उसे हर काम में कामयाबी मिल रही है? उस वक्त यूसुफ के मन में क्या चल रहा होगा? क्या वह यही चाहता था कि जेल का दारोगा उससे खुश हो जाए और उसे और ज़िम्मेदारियाँ दे? वह तो बस यह चाहता होगा कि उस पर लगा झूठा इलज़ाम हट जाए और वह आज़ाद हो जाए। उसने तो एक कैदी से बात भी की थी जो रिहा होनेवाला था और उससे कहा था कि छूटने के बाद वह फिरौन को उसके बारे में बताए ताकि वह उस काल-कोठरी से बाहर निकल सके। (उत्प. 40:14) लेकिन वह आदमी फिरौन को उसके बारे में बताना भूल गया और इस वजह से यूसुफ को दो साल और जेल में काटने पड़े। (उत्प. 40:23; 41:1, 14) लेकिन ऐसे में भी यहोवा हर काम में उसे कामयाबी देता रहा। आइए जानें कैसे।
11. (क) यहोवा की मदद से यूसुफ क्या कर पाया? (ख) इससे यहोवा का मकसद कैसे पूरा हो पाया?
11 जब यूसुफ जेल में था, तो यहोवा ने फिरौन को दो सपने दिखाए। उनकी वजह से फिरौन बहुत परेशान हो गया। वह बस किसी भी तरह उनका मतलब जानना चाहता था। फिर राजा को बताया गया कि यूसुफ उसके सपनों का मतलब बता सकता है, इसलिए उसने उसे बुलवाया। यूसुफ ने यहोवा की मदद से फिरौन के सपनों का मतलब बताया और उसे अच्छी सलाह भी दी। फिरौन खुश हो गया और समझ गया कि यहोवा यूसुफ के साथ है, इसलिए उसने उसे पूरे मिस्र देश के अनाज के भंडारों का अधिकारी बना दिया। (उत्प. 41:38, 41-44) बाद में मिस्र और कनान में एक भारी अकाल पड़ा। उस वक्त यूसुफ का परिवार कनान में ही था। लेकिन अब यूसुफ एक बड़ा अधिकारी बन चुका था और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सकता था, इसलिए उसने उन्हें मिस्र बुला लिया। इस तरह उस खानदान की हिफाज़त हो पायी जिसमें आगे चलकर मसीहा पैदा होता।
12. यहोवा ने किस तरह यूसुफ को उसके हर काम में कामयाबी दिलायी?
12 यूसुफ की ज़िंदगी में कई अनोखी घटनाएँ हुईं। ज़रा सोचिए, पोतीफर ने क्यों एक मामूली-से दास पर ध्यान दिया? जेल के दारोगा ने क्यों एक कैदी को इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी दी? किसने फिरौन को वे सपने दिखाए जिनसे वह परेशान हो उठा? और किसने यूसुफ को उनका मतलब बताने की काबिलीयत दी? किसने फिरौन के मन में यह बात डाली कि वह यूसुफ को मिस्र के अनाज के भंडारों का अधिकारी बना दे? (उत्प. 45:5) यह सब कोई इत्तफाक नहीं था। इस सबके पीछे यहोवा का हाथ था। उसने यूसुफ को उसके हर काम में कामयाबी दिलायी। यूसुफ के भाई तो उसे मार डालना चाहते थे, लेकिन यहोवा ने हालात का रुख इस तरह मोड़ा कि उसका मकसद पूरा हो पाया।
यहोवा आपको कैसे कामयाबी दिला सकता है?
13. जब हम पर कोई मुश्किल आती है, तो यहोवा क्या नहीं करता? समझाइए।
13 यूसुफ की कहानी से हम क्या सीखते हैं? जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो यहोवा हमेशा उन्हें रोकता नहीं है और ना ही हर बार हालात का रुख इस तरह मोड़ता है कि उस मुश्किल में भी कुछ अच्छा हो जाए। बाइबल में ऐसा नहीं बताया गया है कि जो भी होता है, अच्छे के लिए ही होता है। (सभो. 8:9; 9:11) लेकिन इसमें यह ज़रूर बताया गया है कि जब हम पर कोई मुश्किल आती है, तो यहोवा को अच्छी तरह पता होता है कि हम पर क्या बीत रही है और जब हम उसे पुकारते हैं, तो वह हमारी सुनता है। (भज. 34:15; 55:22; यशा. 59:1) यही नहीं, यहोवा मुश्किलें सहने में हमारी मदद करता है और हमें कामयाबी दिला सकता है। वह यह कैसे करता है?
14. जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है?
14 जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो यहोवा हमें दिलासा देता है और हमारा हौसला बढ़ाता है ताकि हम इन्हें सह पाएँ। कई बार तो वह ऐसा ठीक उस वक्त करता है जब हमें हौसले की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। (2 कुरिं. 1:3, 4) तुर्कमेनिस्तान में रहनेवाले भाई ऐज़ीस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बाइबल की शिक्षाएँ मानने की वजह से उन्हें दो साल के लिए जेल की सज़ा सुनायी गयी थी। वे बताते हैं, “जिस दिन मेरी सुनवाई थी, उस दिन सुबह एक भाई ने मुझे यशायाह 30:15 दिखाया जहाँ यहोवा हमसे कहता है, ‘शांत रहो और मुझ पर भरोसा करो, तब तुम्हें हिम्मत मिलेगी।’ इस आयत के बारे में सोचने से मुझे बहुत हिम्मत मिली। जब तक मैं जेल में था, मैं शांत रह पाया और यहोवा पर पूरा भरोसा रख पाया।” क्या आपको कोई ऐसा वक्त याद है जब यहोवा ने आपको दिलासा दिया और आपकी हिम्मत बँधायी, वह भी तब जब आपको इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी?
15-16. आपने बहन टोरी से क्या सीखा?
15 अकसर ऐसा होता है कि जब हम किसी मुश्किल से गुज़र रहे होते हैं, तो हम समझ नहीं पाते कि यहोवा किस तरह हमारी मदद कर रहा है। लेकिन जब हम बाद में उस वक्त के बारे में सोचते हैं, तो हमें एहसास होता है कि यहोवा ने कैसे हमें सँभाला था। बहन टोरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उनके बेटे मेसन को कैंसर हो गया था। वह छ: साल तक इस बीमारी से लड़ता रहा और फिर उसकी मौत हो गयी। बहन टोरी पूरी तरह टूट गयीं। वे कहती हैं, “मैं बता नहीं सकती कि जब एक माँ अपने बच्चे को अपनी आँखों के सामने दर्द से तड़पते हुए देखती है, तो उस पर क्या बीतती है। कोई भी माँ-बाप नहीं चाहेगा कि उनके बच्चे इस तरह तड़पें। भले ही उन्हें कुछ भी हो जाए, पर वे यही चाहेंगे कि उनके बच्चों को कुछ ना हो।”
16 अपने बेटे को हर समय दर्द में देखना बहन टोरी के लिए बहुत मुश्किल था। लेकिन बाद में जब उन्होंने उस वक्त के बारे में सोचा, तो वे समझ पायीं कि यहोवा कैसे उनकी मदद कर रहा था। वे बताती हैं “जब मैं उन दिनों के बारे में सोचती हूँ, तो मुझे एहसास होता है कि यहोवा हर पल हमें सँभाल रहा था, उसने हमें कभी नहीं छोड़ा। जैसे जब मेसन की तबियत बहुत ज़्यादा खराब हो गयी और वह किसी से मिल नहीं सकता था, तब भी भाई-बहन दो घंटे गाड़ी चलाकर अस्पताल आते थे। भाई-बहनों ने हमें कभी अकेला नहीं छोड़ा, कोई-ना-कोई हमेशा अस्पताल में होता था। उन्होंने हमारी दूसरी ज़रूरतों का भी खयाल रखा। मुश्किल-से-मुश्किल समय में भी हमें कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।” यहोवा की मदद से टोरी और मेसन अपनी मुश्किलें सह पाए, उन्हें जिस चीज़ की ज़रूरत थी, यहोवा ने उन्हें वह दी।—“ यहोवा ने हमें वह सब दिया जिसकी हमें ज़रूरत थी” नाम का बक्स देखें।
आपको कौन-कौन-सी आशीषें मिली हैं?
17-18. मुश्किलों के दौरान हम क्या कर सकते हैं ताकि हम समझ पाएँ कि यहोवा हमारी मदद कर रहा है? (भजन 40:5)
17 भजन 40:5 पढ़िए। कई लोगों को पहाड़ों पर चढ़ना पसंद है। पहाड़ चढ़ते वक्त वे चोटी पर तो पहुँचना चाहते ही हैं, पर वे बीच-बीच में रुककर आस-पास के सुंदर नज़ारों का भी मज़ा लेते हैं। उसी तरह आप जल्द-से-जल्द अपनी मुश्किलें पार करना चाहते होंगे। पर उनसे गुज़रते वक्त समय-समय पर इस बारे में भी सोचिए कि यहोवा किस तरह आपकी मदद कर रहा है, कैसे आपको कामयाबी दिला रहा है। आप चाहें तो हर दिन के आखिर में इन सवालों के बारे में सोच सकते हैं: ‘आज यहोवा ने किस तरह मुझे आशीष दी? मेरी मुश्किल खत्म तो नहीं हुई है, पर यहोवा कैसे इसे सहने में मेरी मदद कर रहा है?’ कोशिश कीजिए कि आप कम-से-कम एक आशीष के बारे में सोचें, जिससे पता चलता है कि आप कामयाब हुए हैं।
18 आप ज़रूर यही दुआ कर रहे होंगे कि आपकी मुश्किल खत्म हो जाए। और ऐसा करना गलत नहीं है। (फिलि. 4:6) लेकिन इस बात को भी ध्यान में रखिए कि आज यहोवा आपको क्या आशीषें दे रहा है। उसने वादा किया है कि वह आपको हिम्मत देगा और मुश्किलें सहने में आपकी मदद करेगा। कभी मत भूलिए कि यहोवा आपका साथ दे रहा है और हमेशा इस बात के लिए उसका एहसान मानिए। फिर आप समझ पाएँगे कि कैसे मुश्किलों के दौरान भी आप यहोवा की मदद से कामयाब हो रहे हैं, ठीक जैसे यूसुफ कामयाब हुआ था।—उत्प. 41:51, 52.
गीत 32 यहोवा की ओर हो जा!
a शायद हमें लगे कि जब हम कोई मुश्किल पार कर लेंगे तभी हम कह पाएँगे कि हम “कामयाब” हो गए हैं। पर क्या आप जानते हैं कि जब हम किसी मुश्किल से गुज़र रहे होते हैं, हम तब भी कामयाब हो सकते हैं? यूसुफ की कहानी से हम कुछ ऐसा ही सीखते हैं। जिस तरह मुश्किलों के दौरान यहोवा ने उसकी मदद की थी, उसी तरह वह हमारी भी मदद कर सकता है और हम कामयाब हो सकते हैं। इस लेख में हम यही जानेंगे।
b बाइबल में सिर्फ चंद आयतों में बता दिया गया है कि गुलामी में बेचे जाने के बाद यूसुफ के साथ क्या-क्या हुआ। लेकिन यह सब होने में कई साल लग गए होंगे।