अध्ययन लेख 4
स्मारक मनाने की आपकी कोशिश पर देगा यहोवा आशीष!
“मेरी याद में ऐसा ही किया करना।”—लूका 22:19.
गीत 19 प्रभु का संध्या-भोज
एक झलक a
1-2. हम हर साल स्मारक में क्यों हाज़िर होते हैं?
करीब 2,000 साल पहले यीशु ने हमारे लिए अपनी जान दी। उसके इस बलिदान की वजह से आज हमारे पास हमेशा तक जीने का मौका है। अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी कि वे उसके बलिदान को याद करने के लिए एक समारोह मनाएँ जिसमें वे रोटी और दाख-मदिरा लें।—1 कुरिं. 11:23-26.
2 हम भी यीशु की यह आज्ञा मानते हैं, क्योंकि हम उससे बहुत प्यार करते हैं। (यूह. 14:15) हर साल स्मारक के आस-पास के महीनों में हम इस बारे में मनन करते हैं कि यीशु के बलिदान की वजह से हम इंसानों को कितनी आशीषें मिलती हैं और प्रार्थना करके यहोवा को धन्यवाद भी देते हैं। इससे पता चलता है कि हम उस बलिदान की कितनी कदर करते हैं। हम और भी जोश से प्रचार करते हैं और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को स्मारक के लिए बुलाते हैं। और हम खुद भी इस खास सभा में हाज़िर होने की पूरी कोशिश करते हैं और ध्यान रखते हैं कि कोई भी चीज़ इसके आड़े ना आए।
3. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
3 यहोवा के लोगों के लिए स्मारक मनाना बहुत मायने रखता है। इस लेख में हम ऐसी तीन खास बातों पर ध्यान देंगे जिनसे यह बात साफ पता चलती है। (1) वे स्मारक उसी तरह मनाते हैं जैसे यीशु ने सिखाया था, (2) वे दूसरे लोगों को भी स्मारक में हाज़िर होने के लिए बुलाते हैं और (3) वे मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी स्मारक मनाते हैं।
हम उसी तरह स्मारक मनाते हैं, जैसे यीशु ने सिखाया था
4. हर साल स्मारक के भाषण में कौन-सी बातें बतायी जाती हैं और हमें क्यों इन्हें हलके में नहीं लेना चाहिए? (लूका 22:19, 20)
4 हर साल स्मारक के दिन हम एक भाषण सुनते हैं जिसमें कई सारी बातें बतायी जाती हैं। जैसे हमें बताया जाता है कि इंसानों को फिरौती की ज़रूरत क्यों है और एक आदमी की मौत से लाखों लोगों के पाप कैसे माफ हो सकते हैं। हमें यह भी याद दिलाया जाता है कि रोटी और दाख-मदिरा किसकी निशानी हैं और इन्हें कौन खा-पी सकते हैं। (लूका 22:19, 20 पढ़िए।) हम उन आशीषों पर भी ध्यान देते हैं जो हमें फिरदौस में मिलेंगी। (यशा. 35:5, 6; 65:17, 21-23) बाइबल की ये सच्चाइयाँ बहुत अनमोल हैं, हमें इन्हें हलके में नहीं लेना चाहिए। दुनिया के करोड़ों लोग इनके बारे में नहीं जानते और ना ही यह समझते हैं कि यीशु का बलिदान कितना खास है। और जो लोग यीशु की मौत को याद करते भी हैं, वे उसे उस तरीके से नहीं याद करते जैसे यीशु ने सिखाया था। आइए जानें ऐसा क्यों है।
5. प्रेषितों की मौत के बाद लोग यीशु की मौत को कैसे याद करने लगे?
5 प्रेषितों की मौत के कुछ ही समय बाद मंडली में झूठे मसीही घुस आए। (मत्ती 13:24-27, 37-39) उन्होंने “चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें” कहीं। (प्रेषि. 20:29, 30) उन “टेढ़ी-मेढ़ी” बातों में से एक बात यह थी कि यीशु को बार-बार बलिदान देना होगा तभी हमारे पाप माफ किए जाएँगे, जबकि बाइबल में तो लिखा है कि मसीह “बहुतों का पाप उठाने के लिए एक ही बार हमेशा के लिए बलिदान किया गया।” (इब्रा. 9:27, 28) आज कई सीधे-सादे लोग इस झूठी शिक्षा पर विश्वास करते हैं। वे “मिस्सा” या “मास” के लिए कई बार चर्च जाते हैं और कुछ लोग तो हर दिन जाते हैं। b वहीं कुछ चर्चों के लोग इसे कभी-कभार मनाते हैं, मगर उनमें से ज़्यादातर लोग यह नहीं जानते कि यीशु ने अपनी जान क्यों दी थी। वहीं दूसरे कहते हैं कि यीशु के बलिदान की वजह से हमें पापों की माफी नहीं मिल सकती। इसलिए शायद कुछ लोग सोचें, ‘क्या यीशु के बलिदान पर विश्वास करने से सच में मेरे पाप माफ हो जाएँगे?’ पर आइए जानें कि सच्चे मसीहियों ने दूसरों को कैसे समझाया है कि यीशु क्यों मरा और उसकी मौत को याद करने का सही तरीका क्या है।
6. सन् 1872 के आते-आते कुछ बाइबल विद्यार्थी क्या समझ गए?
6 सन् 1870 में चार्ल्स टेज़ रसल और कुछ और बाइबल विद्यार्थी गहराई से बाइबल का अध्ययन करने लगे। वे जानना चाहते थे कि यीशु क्यों मरा, उसके बलिदान से क्या मुमकिन हो पाया और उसकी मौत को कैसे याद किया जाना चाहिए। सन् 1872 के आते-आते वे लोग समझ गए कि यीशु के फिरौती बलिदान के आधार पर सभी इंसानों के पाप माफ किए जा सकते हैं। उन्होंने यह जानकारी अपने तक ही नहीं रखी। उन्होंने किताबों, अखबारों और पत्रिकाओं के ज़रिए लोगों को इस बारे में बताया। फिर कुछ समय बाद वे साल में सिर्फ एक बार यीशु की मौत को याद करने के लिए इकट्ठा होने लगे, ठीक जैसे पहली सदी के मसीही करते थे।
7. बाइबल विद्यार्थियों ने जो बातें पता लगायी थीं, उनसे आज हमें कैसे फायदा हो रहा है?
7 कई साल पहले उन बाइबल विद्यार्थियों ने जो बातें पता लगायी थीं, उनसे आज हमें भी फायदा हो रहा है। कैसे? यहोवा की आशीष से हम जान पाए हैं कि यीशु क्यों मरा और उसकी मौत से क्या मुमकिन हो पाया है। (1 यूह. 2:1, 2) हम बाइबल से यह भी जान पाए हैं कि जो लोग यहोवा के वफादार रहेंगे, उनमें से कुछ को स्वर्ग में अमर जीवन मिलेगा और ज़्यादातर धरती पर हमेशा-हमेशा के लिए जीएँगे। जब हम इस बारे में सोचते हैं कि यहोवा हमसे कितना प्यार करता है और हमें यीशु के बलिदान से कितनी आशीषें मिलती हैं, तो हम यहोवा के और करीब आ जाते हैं। (1 पत. 3:18; 1 यूह. 4:9) इसलिए बीते समय के वफादार भाइयों की तरह हम दूसरों को भी स्मारक में हाज़िर होने के लिए बुलाते हैं और इसे उसी तरह मनाते हैं जैसे यीशु ने मनाया था।
हम दूसरों को भी स्मारक के लिए बुलाते हैं
8. यहोवा के लोगों ने दूसरों को स्मारक में बुलाने के लिए क्या-क्या किया है? (तसवीर देखें।)
8 सालों से यहोवा के लोग दूसरों को स्मारक के लिए बुलाते आए हैं। सन् 1881 में भाई-बहनों से कहा गया कि वे पेन्सिलवेनिया के अलेगेनी शहर में एक भाई के घर पर इकट्ठा हों ताकि सभी साथ मिलकर स्मारक मना सकें। बाद में हर मंडली अपने-अपने इलाके में स्मारक के लिए इकट्ठा होने लगी। फिर मार्च 1940 में भाई-बहनों को बताया गया कि वे इस खास सभा में उन लोगों को भी बुला सकते हैं जो और जानना चाहते हैं। सन् 1960 में पहली बार मंडलियों को बेथेल से स्मारक के न्यौते मिले ताकि वे इन्हें लोगों को दे सकें। तब से लेकर आज तक हमने लोगों को स्मारक में बुलाने के लिए करोड़ों न्यौते बाँटे हैं। पर हम लोगों को स्मारक में बुलाने के लिए इतनी मेहनत क्यों करते हैं, क्यों इतना समय लगाते हैं?
9-10. हम किन लोगों को स्मारक में बुलाते हैं और उन्हें इससे कैसे फायदा होता है? (यूहन्ना 3:16)
9 दूसरों को स्मारक में बुलाने की एक वजह यह है कि हम चाहते हैं कि जो लोग यहोवा के बारे में नहीं जानते, वे सीखें कि यहोवा और यीशु ने उनके लिए क्या किया है। (यूहन्ना 3:16 पढ़िए।) हमारी यही इच्छा होती है कि वे स्मारक के भाषण में जो भी सुनें, उससे उनका यहोवा के बारे में और जानने का मन करे और वे उसके सेवक बन जाएँ। लेकिन हम कुछ और लोगों को भी स्मारक के लिए बुलाते हैं।
10 हम उन लोगों को भी बुलाते हैं जो कुछ समय से यहोवा की सेवा नहीं कर रहे। इस तरह हम उन्हें याद दिला पाते हैं कि यहोवा अब भी उनसे प्यार करता है। ऐसे कई लोग हमारा न्यौता स्वीकार करते हैं और जब वे स्मारक के लिए आते हैं, तो हमें बहुत खुशी होती है। जब वे स्मारक में हाज़िर होते हैं, वे याद कर पाते हैं कि पहले जब वे यहोवा की सेवा कर रहे थे, तो वे कितने खुश थे। बहन मोनिका के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। c वे कई सालों से यहोवा की सेवा नहीं कर रही थीं। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान वे फिर से प्रचार करने लगीं। सन् 2021 के स्मारक में हाज़िर होने के बाद उन्होंने कहा, “इस साल का स्मारक मेरे लिए सबसे खास था। बीस सालों से मैंने लोगों को प्रचार नहीं किया था, लेकिन इतने समय बाद जब मैंने लोगों को प्रचार किया और उन्हें स्मारक के लिए बुलाया, तो मुझे बहुत खुशी हुई। यहोवा और यीशु ने मेरे लिए जो कुछ किया है उसके लिए मैं बहुत एहसानमंद हूँ, इसलिए मैंने पूरे जोश से लोगों को स्मारक के लिए बुलाया।” (भज. 103:1-4) तो चाहे लोग आएँ या ना आएँ, हम जोश से लोगों को स्मारक के लिए बुलाते रहेंगे और याद रखेंगे कि यहोवा हमारी मेहनत देखकर खुश होता है।
11. हम लोगों को स्मारक में बुलाने के लिए जो मेहनत करते हैं, उस पर यहोवा ने कैसे आशीष दी है? (हाग्गै 2:7)
11 जब हम लोगों को स्मारक में बुलाने के लिए मेहनत करते हैं, तो यहोवा हमें आशीष देता है। जैसे 2021 में जब कोविड-19 महामारी फैली हुई थी और लोग एक-साथ इकट्ठा नहीं हो सकते थे, तब भी 2,13,67,603 लोग स्मारक में हाज़िर हुए। पूरी दुनिया में जितने यहोवा के साक्षी हैं, उससे करीब ढाई गुना ज़्यादा लोग स्मारक में आए। पर यहोवा सिर्फ यह नहीं देखता कि कितने लोग हाज़िर हुए हैं, वह लोगों का दिल देखता है। (लूका 15:7; 1 तीमु. 2:3, 4) इसलिए अगर हम लोगों को स्मारक में बुलाने के लिए मेहनत करें, तो यहोवा नेकदिल लोगों को ढूँढ़ने में ज़रूर हमारी मदद करेगा।—हाग्गै 2:7 पढ़िए।
हम मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी स्मारक मनाते हैं
12. कुछ भाई-बहनों के लिए स्मारक मनाना क्यों मुश्किल हो सकता है? (तसवीर देखें।)
12 यीशु ने बताया था कि आखिरी दिनों में कई मुश्किलें आएँगी, जैसे हमारे परिवारवाले हमारा विरोध करेंगे, हम पर ज़ुल्म किए जाएँगे, युद्ध होंगे, महा-मारियाँ फैलेंगी और इसके अलावा भी बहुत कुछ होगा। (मत्ती 10:36; मर. 13:9; लूका 21:10, 11) कई बार इस सब की वजह से हमारे लिए स्मारक मनाना मुश्किल हो जाता है। आइए जानें कि कुछ भाई-बहनों ने कैसे ये मुश्किलें पार कीं और यहोवा ने कैसे उनकी मदद की।
13. जब यहोवा ने देखा कि भाई आरटम ने ठान लिया है कि वे जेल में भी स्मारक मनाएँगे, तो उसने उन्हें क्या आशीष दी?
13 जेल। यहोवा की सेवा करने की वजह से हमारे कई भाई-बहन जेलों में कैद हैं, फिर भी वे स्मारक मनाने की पूरी कोशिश करते हैं। भाई आरटम के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। सन् 2020 में स्मारक के वक्त वे जेल में थे। उन्हें एक छोटी-सी कोठरी में डाल दिया गया था जिसमें कभी-कभी तो उनके अलावा चार और कैदी होते थे। ऐसे में उन्होंने स्मारक कैसे मनाया? उन्होंने स्मारक मनाने के लिए जैसे-तैसे चीज़ें इकट्ठा कीं और सोचा कि वे अपने लिए स्मारक का भाषण देंगे। पर उनके साथ जो दूसरे कैदी थे, वे बहुत गालियाँ देते थे और सिगरेट पीते थे। इसलिए भाई ने उनसे कहा कि वे बस एक घंटे के लिए गालियाँ ना दें और सिगरेट ना पीएँ। हैरानी की बात है कि वे मान गए। भाई बताते हैं, “मैंने उनसे पूछा कि क्या वे स्मारक के बारे में जानना चाहते हैं।” पहले तो उन्होंने मना कर दिया, लेकिन जब उन्होंने भाई को स्मारक मनाते देखा, तो उसके बाद उन्होंने भाई से कई सवाल किए।
14. कोविड-19 महामारी के दौरान भी यहोवा के लोग स्मारक कैसे मना पाए?
14 कोविड-19 महामारी। जब यह महामारी फैलनी शुरू हुई, तो यहोवा के लोग स्मारक मनाने के लिए एक-साथ इकट्ठा नहीं हो सकते थे। फिर भी वे साथ में स्मारक मना पाए। d कैसे? जिन मंडलियों के पास इंटरनेट की सुविधा थी, उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए स्मारक मनाया। पर जिन मंडलियों के पास इंटरनेट नहीं था, उन्होंने स्मारक कैसे मनाया? कुछ देशों में इंतज़ाम किया गया कि भाई-बहन टीवी पर स्मारक का कार्यक्रम देख पाएँ या फिर रेडियो के ज़रिए इसे सुन पाएँ। इसके अलावा 500 से भी ज़्यादा भाषाओं में स्मारक के भाषण की रिकॉर्डिंग तैयार की गयी। ये रिकॉर्डिंग उन भाई-बहनों तक पहुँचायी गयीं जो दूर-दराज़ के इलाकों में रहते हैं और इस तरह वे भी स्मारक मना पाए।
15. आप सू से क्या सीख सकते हैं?
15 परिवार से विरोध। कुछ लोगों के लिए स्मारक में हाज़िर होना इसलिए भी मुश्किल हो सकता है क्योंकि उनके घरवाले उनका विरोध करते हैं। ध्यान दीजिए कि सू नाम की एक बाइबल विद्यार्थी के साथ क्या हुआ। सन् 2021 में स्मारक से एक दिन पहले उसने उस बहन को फोन किया जो उसका बाइबल अध्ययन करा रही थी। उसने बहन को बताया कि वह स्मारक में हाज़िर नहीं हो पाएगी क्योंकि उसके परिवारवाले उसका बहुत विरोध कर रहे हैं। बहन ने सू को लूका 22:44 पढ़कर सुनाया। फिर बहन ने उसे समझाया कि जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो हम यीशु की तरह यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं और पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह हमारी मदद करेगा। अगले दिन सू ने रोटी और दाख-मदिरा का इंतज़ाम किया और jw.org पर सुबह की उपासना का कार्यक्रम देखा जो खासकर स्मारक के लिए तैयार किया गया था। फिर शाम को वह अपने कमरे में चली गयी और वहाँ अपने फोन से स्मारक के लिए जुड़ी। बाद में सू ने उस बहन को जो उसका बाइबल अध्ययन कराती थी लिखा, “कल आपसे बात करके मेरा बहुत हौसला बढ़ा। स्मारक मनाने के लिए मुझसे जो हो सकता था मैंने किया और बाकी सब यहोवा ने सँभाल लिया। मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूँ और यहोवा की कितनी शुक्रगुज़ार हूँ!” आपको क्या लगता है, अगर आपको ऐसी किसी मुश्किल का सामना करना पड़े, तो क्या यहोवा आपकी मदद करेगा?
16. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि जब हम स्मारक में हाज़िर होने के लिए मेहनत करेंगे, तो यहोवा हमें आशीष देगा? (रोमियों 8:31, 32)
16 जब यहोवा देखता है कि हम स्मारक मनाने के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं और उसके बेटे के बलिदान की कितनी कदर करते हैं, तो वह बहुत खुश होता है और हमें आशीष देता है। (रोमियों 8:31, 32 पढ़िए।) तो आइए ठान लें कि हम इस साल स्मारक में ज़रूर हाज़िर होंगे और स्मारक के आस-पास के महीनों में और जोश से यहोवा की सेवा करने की कोशिश करेंगे!
गीत 18 फिरौती के लिए एहसानमंद
a मंगलवार, 4 अप्रैल, 2023 को दुनिया-भर में लाखों लोग यीशु की मौत का स्मारक मनाएँगे। कई लोग पहली बार इसमें हाज़िर होंगे। इसमें कुछ ऐसे साक्षी भी आएँगे जो कई सालों से स्मारक में नहीं आए हैं। कुछ लोग तो कई मुश्किलें पार करके इसमें हाज़िर होंगे। हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, जब हम स्मारक में हाज़िर होने की पूरी कोशिश करेंगे, तो यहोवा यह देखकर बहुत खुश होगा।
b जो लोग “मास” में जाते हैं, वे मानते हैं कि जब वे रोटी और दाख-मदिरा लेते हैं, तो वे यीशु के शरीर और खून में बदल जाती हैं। उन्हें लगता है कि हर बार जब वे रोटी और दाख-मदिरा लेते हैं, तो यीशु का शरीर और खून बलिदान किया जाता है।
c इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।
d jw.org की अँग्रेज़ी वेबसाइट पर “2021 Memorial Commemoration” नाम के लेख देखें।