अध्ययन लेख 29
“जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी ताकतवर होता हूँ”
“मैं मसीह की खातिर कमज़ोरियों में, बेइज़्ज़ती में, तंगी में, ज़ुल्मों और मुश्किलों में खुश होता हूँ।”—2 कुरिं. 12:10.
गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा
लेख की एक झलक *
1. प्रेषित पौलुस ने कभी-कभी कैसा महसूस किया?
प्रेषित पौलुस कभी-कभी खुद को बहुत कमज़ोर महसूस करता था। पौलुस ने कहा कि उसका शरीर “मिटता जा रहा है” यानी सही काम करने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पड़ता है। वह जानता था कि यहोवा हमेशा उसी तरीके से प्रार्थनाओं का जवाब नहीं देता जैसे वह उम्मीद करता है। (2 कुरिं. 4:16; 12:7-9; रोमि. 7:21-23) पौलुस के विरोधी कहते थे कि वह कमज़ोर * है, लेकिन पौलुस ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और न ही अपनी कमज़ोरियों की वजह से खुद को बेकार समझा।—2 कुरिं. 10:10-12, 17, 18.
2. दूसरा कुरिंथियों 12:9, 10 के मुताबिक पौलुस ने कौन-सा अहम सबक सीखा?
2 पौलुस जब मुश्किलों से गुज़रा, तो उसने एक अहम सबक सीखा। वह यह कि भले ही एक इंसान कमज़ोर हो, फिर भी वह ताकतवर हो सकता है। (2 कुरिंथियों 12:9, 10 पढ़िए।) यहोवा ने पौलुस से कहा, “जब तू कमज़ोर होता है तब मेरी ताकत पूरी तरह दिखायी देती है।” इसका मतलब, पौलुस अपनी ताकत से जो नहीं कर पा रहा था उसे पूरा करने की ताकत यहोवा उसे देता। आइए सबसे पहले देखें कि जब हमारा मज़ाक उड़ाया जाता है, तो हमें निराश क्यों नहीं होना चाहिए।
‘बेइज़्ज़त किए जाने पर खुश रहिए’
3. जब हमारी बेइज़्ज़ती की जाती है, तो हमें खुश क्यों होना चाहिए?
3 हम नहीं चाहते कि कोई हमारी बेइज़्ज़ती करे, इसलिए जब कोई हमारे बारे में बुरा-भला कहता है और हम उस बारे में हद-से-ज़्यादा सोचने लगते हैं, तो हम निराश हो सकते हैं। (नीति. 24:10) ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? हमें भी पौलुस की तरह खुश होना चाहिए। उसने कहा, मैं “बेइज़्ज़ती में . . . खुश होता हूँ।” (2 कुरिं. 12:10) जब हमारी बेइज़्ज़ती की जाती है या हमारा विरोध किया जाता है, तो हमें खुश क्यों होना चाहिए? क्योंकि इससे साबित होता है कि हम सही मायनों में यीशु के चेले हैं। (1 पत. 4:14) यीशु ने कहा था कि उसके चेलों को सताया जाएगा। (यूह. 15:18-20) पहली सदी में ऐसा ही हुआ। उस समय लोगों पर यूनानी संस्कृति का गहरा असर होने लगा था। इस वजह से वे मसीहियों को कमज़ोर और मूर्ख समझते थे। यहूदी भी ऐसा सोचते थे, इसलिए उन्होंने प्रेषित पतरस और यूहन्ना के बारे में कहा कि वे “कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी हैं।” (प्रेषि. 4:13) उन्हें लगता था कि मसीही अपनी हिफाज़त नहीं कर सकते, क्योंकि वे न तो राजनीति में हिस्सा लेते हैं और न ही सेना में भरती होते हैं। इस वजह से लोग उनकी इज़्ज़त भी नहीं करते थे।
4. जब पहली सदी के मसीहियों को बेइज़्ज़त किया गया, तो उन्होंने क्या किया?
4 जब पहली सदी के मसीहियों को बेइज़्ज़त किया गया, तो क्या उन्होंने प्रचार करना बंद कर दिया? नहीं। ध्यान दीजिए कि प्रेषित पतरस और यूहन्ना ने क्या किया था। जब यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाने की वजह से उन्हें सताया गया, तो उन्होंने इसे एक सम्मान की बात समझा। (प्रेषि. 4:18-21; 5:27-29, 40-42) उन्होंने शर्मिंदा महसूस नहीं किया। विरोधियों ने उनकी कोई इज़्ज़त नहीं की थी। फिर भी इन मसीहियों ने ऐसे काम किए जिससे आगे चलकर सभी इंसानों को फायदा हुआ। जैसे, कुछ मसीहियों ने बाइबल की जो किताबें लिखीं, उनसे आज भी लाखों लोगों को फायदा हो रहा है। उन्होंने जिस राज के बारे में प्रचार किया था, वह आज स्वर्ग में हुकूमत कर रहा है और बहुत जल्द धरती पर भी हुकूमत करेगा। (मत्ती 24:14) इसके उलट, जिन सरकारों ने मसीहियों पर ज़ुल्म किए थे, आज उनका नामो-निशान मिट चुका है। जिन मसीहियों पर उन्होंने ज़ुल्म किए थे, आज वे स्वर्ग में राज कर रहे हैं जबकि उनके विरोधी मर चुके हैं। अगर उन्हें भविष्य में ज़िंदा भी किया जाएगा, तो वे उसी राज की प्रजा बनकर रहेंगे और वही मसीही उन पर राज करेंगे जिनसे वे नफरत करते थे।—प्रका. 5:10.
5. यूहन्ना 15:19 के मुताबिक लोग यहोवा के साक्षियों को नीची नज़रों से क्यों देखते हैं?
5 आज लोग हमारी इज़्ज़त नहीं करते और हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, क्योंकि हम यहोवा के साक्षी हैं। उन्हें लगता है कि हम मूर्ख और कमज़ोर हैं। वे ऐसा क्यों सोचते हैं? क्योंकि हमारी सोच उनके जैसी नहीं है। आज दुनिया के लोग घमंडी हैं, मगरूर हैं और अपनी मन-मरज़ी करते हैं। यह दुनिया ऐसे ही लोगों को अहमियत देती है। लेकिन हम नम्र और दीन रहने की कोशिश करते हैं और लोगों की सुनने के लिए तैयार रहते हैं। इसके अलावा हम राजनीति में हिस्सा नहीं लेते और न ही सेना में भरती होते हैं। हम दुनिया के लोगों जैसे बनने की कोशिश नहीं करते, इसलिए वे हमें नीची नज़रों से देखते हैं।—यूहन्ना 15:19 पढ़िए; रोमि. 12:2.
6. आज यहोवा अपने लोगों से कौन से बड़े-बड़े काम करवा रहा है?
6 दुनिया के लोग भले ही हमें मूर्ख और मामूली समझें, लेकिन यहोवा आज हमारे ज़रिए बड़े-बड़े काम करवा रहा है। आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रचार काम हो रहा है। आज वे जितनी भाषाओं में पत्रिकाएँ अनुवाद कर रहे हैं और लोगों में बाँट रहे हैं, उतना कोई और संगठन नहीं कर रहा है। वे लाखों लोगों को बाइबल की शिक्षाएँ सिखा रहे हैं जिससे उनकी ज़िंदगी सँवर रही है। यह सबकुछ यहोवा ही करवा रहा है। दुनिया जिन्हें मामूली समझती है, उन्हीं के ज़रिए वह बड़े-बड़े काम करवा रहा है। लेकिन क्या यहोवा हममें से हरेक को भी ताकतवर बना सकता है? अगर हाँ, तो उससे मदद पाने के लिए हमें क्या करना होगा? इस मामले में प्रेषित पौलुस हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है। आइए देखें कि हम उससे कौन-सी तीन बातें सीख सकते हैं।
अपनी ताकत पर भरोसा मत कीजिए
7. पौलुस से हम कौन-सी पहली बात सीखते हैं?
7 पौलुस से हम एक बात यह सीखते हैं कि यहोवा की सेवा करते वक्त हमें अपनी काबिलीयतों और ताकत पर भरोसा नहीं करना चाहिए। पौलुस चाहे तो घमंड कर सकता था और खुद पर भरोसा कर सकता था। वह एक रोमी प्रांत की राजधानी तरसुस में पला-बढ़ा था। तरसुस एक फलता-फूलता शहर था और शिक्षा के लिए बहुत मशहूर था। पौलुस बहुत पढ़ा-लिखा था। उसने उस ज़माने के जाने-माने यहूदी शिक्षक गमलीएल से शिक्षा पायी थी। (प्रेषि. 5:34; 22:3) एक समय पर यहूदी समाज में पौलुस का काफी दबदबा था। उसने कहा, “मैं यहूदी धर्म में अपने राष्ट्र और अपनी उम्र के कई लोगों से ज़्यादा तरक्की कर रहा था।” (गला. 1:13, 14; प्रेषि. 26:4) इस सब के बावजूद पौलुस ने खुद पर भरोसा नहीं किया।
8. (क) फिलिप्पियों 3:8 के मुताबिक पौलुस ने किन बातों को कूड़ा समझा? (ख) पौलुस क्यों अपनी कमज़ोरियों के बावजूद खुश रहा?
8 जिन बातों की वजह से पौलुस दुनिया की नज़रों में ताकतवर बना था उसने उन्हें खुशी-खुशी ठुकरा दिया। दरअसल उसने इन सब बातों को “ढेर सारा कूड़ा” कहा। (फिलिप्पियों 3:8 पढ़िए।) मसीह का चेला बनने के लिए पौलुस ने कई तकलीफें सहीं। उसके अपने ही राष्ट्र के लोगों ने उससे नफरत की। (प्रेषि. 23:12-14) रोमी लोगों ने उसे मारा-पीटा और जेल में डाल दिया। (प्रेषि. 16:19-24, 37) इसके अलावा उसे अपनी कमज़ोरियों से भी लड़ना पड़ा। (रोमि. 7:21-25) लेकिन इतना कुछ सहने पर भी उसने मसीह के पीछे चलना नहीं छोड़ा। वह अपनी ‘कमज़ोरियों के बावजूद खुश रहा।’ वह ऐसा क्यों कर पाया? क्योंकि जब वह कमज़ोर था, तो उसने देखा कि परमेश्वर कैसे उसकी मदद कर रहा है।—2 कुरिं. 4:7; 12:10.
9. अगर हमें लगता है कि हम यहोवा की सेवा नहीं कर पाएँगे, तो हमें क्या करना चाहिए?
9 अगर हम शारीरिक रूप से कमज़ोर हैं, ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं या गरीब हैं, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम कुछ नहीं हैं। यहोवा इन बातों पर ध्यान नहीं देता। चाहे हमारी सेहत अच्छी हो या नहीं या हम चाहे किसी भी संस्कृति से हों या हम बहुत पढ़े-लिखे हों या नहीं, हम ज़रूर यहोवा के काम आ सकते हैं। सच तो यह है कि यहोवा के संगठन में बहुत कम ऐसे लोग हैं, “जो इंसान की नज़र में बुद्धिमान हैं, ताकतवर हैं या ऊँचे खानदान में पैदा हुए हैं।” यहोवा 1 कुरिं. 1:26, 27) आपके हालात चाहे जो भी हों, आप ज़रूर यहोवा की सेवा कर सकते हैं। आप देख पाएँगे कि यहोवा कैसे आपको ताकत दे रहा है। जैसे अगर कोई आपके विश्वास पर सवाल खड़ा करता है और आपको जवाब देने में घबराहट होती है, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको अपने विश्वास के बारे में बताने की हिम्मत दे। (इफि. 6:19, 20) अगर आप किसी बीमारी से जूझ रहे हैं, तो यहोवा से बिनती कीजिए कि वह आपको उसकी सेवा में लगे रहने की ताकत दे। जैसे-जैसे आप देखेंगे कि यहोवा कैसे आपकी मदद कर रहा है, आपका विश्वास मज़बूत होगा और आप और भी ताकतवर बन जाएँगे।
ने “दुनिया के कमज़ोरों” को चुना है, ताकि वे उसका काम कर सकें। (बाइबल के किरदारों से सीखिए
10. इब्रानियों 11:32-34 में बताए लोगों की मिसाल पर हमें क्यों मनन करना चाहिए?
10 पौलुस से हम दूसरी बात यह सीखते हैं कि हमें बाइबल में बताए लोगों से सीखना चाहिए। पौलुस शास्त्र का अच्छी तरह अध्ययन करता था और उसमें बताए वफादार लोगों से उसने बहुत कुछ सीखा। पौलुस ने इब्रानी मसीहियों के नाम खत में उनसे कहा कि वे यहोवा के वफादार सेवकों की मिसाल पर मनन करें और उनसे सीखें। (इब्रानियों 11:32-34 पढ़िए।) राजा दाविद पर ध्यान दीजिए। दाविद के कई दुश्मन थे और कुछ मौकों पर उसके कुछ दोस्त भी उसके खिलाफ हो गए थे। आइए देखें कि दाविद की मिसाल पर मनन करने से पौलुस को कैसे ताकत मिली होगी। हम यह भी देखेंगे कि हम कैसे पौलुस की तरह बन सकते हैं।
11. गोलियात को ऐसा क्यों लगा कि दाविद कमज़ोर है? (बाहर दी तसवीर देखें।)
11 गोलियात ने दाविद को बहुत कमज़ोर समझा। गोलियात बहुत लंबा-चौड़ा था और एक ताकतवर योद्धा था। उसके पास युद्ध के हथियार भी थे। वहीं दाविद सिर्फ एक लड़का था। उसके पास न तो युद्ध करने का कोई तजुरबा था और न ही हथियार थे, इसलिए गोलियात ने उसे “नीची नज़रों से देखा” और उसकी “खिल्ली उड़ायी।” लेकिन असल में दाविद कमज़ोर नहीं, बल्कि ताकतवर था। उसने यहोवा पर भरोसा रखा और उसकी ताकत से गोलियात को हरा दिया।—1 शमू. 17:41-45, 50.
12. दाविद ने और किस मुश्किल का सामना किया?
12 दाविद ने एक और मुश्किल का सामना किया जिस वजह से शायद उसने कमज़ोर महसूस किया। दाविद यहोवा के चुने हुए राजा शाऊल का वफादार था और उसकी सेवा करता था। शुरू में तो शाऊल दाविद की इज़्ज़त करता था, लेकिन बाद में वह घमंडी बन गया और दाविद से जलने लगा। शाऊल ने दाविद के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया, यहाँ तक कि उसे जान से भी मारने की कोशिश की।—1 शमू. 18:6-9, 29; 19:9-11.
13. राजा शाऊल के बुरे व्यवहार के बावजूद दाविद ने क्या किया?
13 राजा शाऊल के बुरे व्यवहार के बावजूद दाविद उसकी इज़्ज़त करता रहा, क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त राजा था। (1 शमू. 24:6) शाऊल ने उसके साथ जो भी किया, उसकी वजह से दाविद यहोवा से नाराज़ नहीं हुआ। इसके बजाय उसने यहोवा पर भरोसा रखा और उससे हिम्मत माँगी, ताकि वह इस मुश्किल का सामना कर सके।—भज. 18:1, उपरिलेख।
14. प्रेषित पौलुस ने कैसे दाविद के जैसी मुश्किलों का सामना किया?
14 प्रेषित पौलुस ने भी दाविद के जैसी मुश्किलों का सामना किया। पौलुस के दुश्मन उससे कहीं ज़्यादा ताकतवर थे। बड़े-बड़े अधिकारी उससे नफरत करते थे। उन्होंने कई बार उसे पिटवाया और जेल में डलवा दिया। जैसे दाविद के साथ हुआ, पौलुस के कुछ दोस्तों ने भी उसके साथ बुरा व्यवहार किया। मंडली के कुछ लोगों ने भी उसका विरोध किया। (2 कुरिं. 12:11; फिलि. 3:18) लेकिन पौलुस ने हार नहीं मानी। विरोध के बावजूद वह प्रचार करता रहा। जब भाई-बहनों ने उसका साथ नहीं दिया, तब भी वह उनकी मदद करता रहा। सबसे बढ़कर, वह मरते दम तक यहोवा का वफादार रहा। (2 तीमु. 4:8) यह सब वह अपने आप नहीं कर पाया, बल्कि यहोवा पर भरोसा रखने की वजह से कर पाया।
15. (क) जब लोग हमारा विरोध करते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए? (ख) हम यह कैसे कर सकते हैं?
15 क्या आपके साथ पढ़नेवाले या काम करनेवाले आपका मज़ाक उड़ाते हैं? क्या आपके परिवार के सदस्य जो साक्षी नहीं हैं, आप पर ज़ुल्म करते हैं? या क्या मंडली के किसी भाई या बहन ने आपके साथ बुरा सलूक किया है? अगर हाँ, तो याद रखिए कि दाविद और पौलुस ने क्या किया था। उनकी तरह आप भी ‘भलाई से बुराई को जीत’ सकते हैं। (रोमि. 12:21) जब लोग हमारा विरोध करते हैं, तो हमें उनसे लड़ना नहीं है, जैसे दाविद गोलियात से लड़ा था। इसके बजाय हमें उन्हें बाइबल और यहोवा के बारे में सिखाने की कोशिश करनी है। हम यह कैसे कर सकते हैं? बाइबल से लोगों के सवालों के जवाब देकर, उन लोगों से भी प्यार और आदर से पेश आकर जो हमारे साथ बुरा सलूक करते हैं और सबके साथ भलाई करके, अपने दुश्मनों के साथ भी।—मत्ती 5:44; 1 पत. 3:15-17.
भाई-बहनों से मदद लीजिए
16-17. पौलुस कौन-सी बात कभी नहीं भूला?
16 पौलुस से हम तीसरी बात यह सीखते हैं कि हमें भाई-बहनों से मदद लेनी चाहिए। यीशु का चेला बनने से पहले प्रेषित पौलुस शाऊल के नाम से जाना जाता था। वह मसीहियों की इज़्ज़त नहीं करता था और उन्हें सताता था। (प्रेषि. 7:58; 1 तीमु. 1:13) यीशु ने खुद उसे ज़ुल्म करने से रोका। यीशु ने स्वर्ग से उससे बात की और उसकी आँखों की रौशनी छीन ली। अपनी आँखों की रौशनी वापस पाने के लिए पौलुस को उन्हीं लोगों से मदद लेनी पड़ी जिन पर वह ज़ुल्म कर रहा था। जब हनन्याह नाम के एक मसीही ने उसकी मदद की, तो उसने नम्र होकर उससे मदद कबूल की। हनन्याह ने उसकी आँखों की रौशनी लौटा दी।—प्रेषि. 9:3-9, 17, 18.
17 आगे चलकर पौलुस ने मसीही मंडली में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभायीं। लेकिन वह उस सीख को कभी नहीं भूला, जो यीशु ने उसे दमिश्क के रास्ते पर दी थी। पौलुस नम्र बना रहा और उसने खुशी-खुशी कुलु. 4:10, 11, फु.
भाई-बहनों से मदद स्वीकार की। उसने कहा कि मसीही भाई-बहन उसकी “हिम्मत बँधानेवाले मददगार” हैं।—18. हम शायद दूसरों से मदद लेने से क्यों हिचकिचाएँ?
18 हमें भी पौलुस की तरह क्या करना चाहिए? जब हम सच्चाई सीख रहे थे, तो शायद हम खुशी-खुशी लोगों से मदद लेते थे, क्योंकि हम जानते थे कि हमें सबकुछ नहीं पता, हमें बहुत कुछ सीखना है। (1 कुरिं. 3:1, 2) लेकिन क्या हम अब भी ऐसा करते हैं? हो सकता है, अब हमें यहोवा की सेवा करते हुए कई साल हो गए हों, हमने बहुत कुछ सीख लिया हो और हम बहुत अनुभवी हो गए हों। अब शायद हम लोगों से मदद स्वीकार करने में झिझकते हों, खासकर ऐसे भाई-बहनों से जो हमारे बाद सच्चाई में आए हैं। लेकिन हमें याद रखना है कि यहोवा अकसर भाई-बहनों के ज़रिए हमें मज़बूत करता है। (रोमि. 1:11, 12) अगर हम यहोवा से ताकत पाना चाहते हैं, तो हमें भाई-बहनों से मदद स्वीकार करनी चाहिए।
19. पौलुस क्यों बड़े-बड़े काम कर पाया?
19 मसीही बनने के बाद पौलुस ने कुछ बड़े-बड़े काम किए। वह क्यों ऐसा कर पाया? क्योंकि उसने सीखा कि एक व्यक्ति चाहे किसी भी प्रांत का रहनेवाला हो, वह बहुत पढ़ा-लिखा हो या नहीं, अमीर हो या गरीब या उसकी सेहत अच्छी हो या नहीं, वह अगर नम्र रहे और यहोवा पर भरोसा रखे, तो वह उसकी सेवा कर सकता है। आइए हम सब पौलुस की तरह (1) यहोवा पर भरोसा रखें, (2) बाइबल के किरदारों से सीखें और (3) भाई-बहनों से मदद लें। फिर हम कितना भी कमज़ोर क्यों न महसूस करें, यहोवा हमें ताकतवर बनाएगा।
गीत 71 हम यहोवा की सेना हैं!
^ पैरा. 5 हममें से कइयों का मज़ाक उड़ाया जाता है। या फिर शायद अपने हालात की वजह से हम खुद को लाचार या बेबस महसूस करें। इस लेख में हम प्रेषित पौलुस की मिसाल पर ध्यान देंगे। हम सीखेंगे कि अगर हम नम्र होंगे, तो यहोवा हमें किसी भी हालात का सामना करने की ताकत दे सकता है।
^ पैरा. 1 इसका क्या मतलब है? हम अलग-अलग कारणों से खुद को कमज़ोर महसूस करते हैं जैसे, अपरिपूर्ण होने की वजह से या फिर गरीब, बीमार या कम पढ़े-लिखे होने की वजह से। इसके अलावा, जब लोग हमारे बारे में बुरा-भला कहते हैं या हम पर ज़ुल्म करते हैं, तो शायद हम कमज़ोर महसूस करने लगें।
^ पैरा. 57 तसवीर के बारे में: जब पौलुस लोगों को यीशु के बारे में सिखाने लगा, तो उसने उन सारी चीज़ों से मुँह मोड़ लिया, जो पहले एक फरीसी के नाते उसके पास थीं। जैसे, दुनियावी ज्ञान देनेवाले खर्रे और वह डिब्बी जिसमें आयतें लिखी होती थीं।
^ पैरा. 61 तसवीर के बारे में: एक भाई के साथ काम करनेवाले उसे जन्मदिन की पार्टी मनाने के लिए उस पर ज़ोर डाल रहे हैं।