“यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है”
“हे इसराएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।”—व्यव. 6:4.
1, 2. (क) व्यवस्थाविवरण 6:4 में लिखे शब्द क्यों इतने जाने-माने हैं? (ख) मूसा ने ये शब्द क्यों कहे?
सैकड़ों साल से यहूदी व्यवस्थाविवरण 6:4 में लिखे शब्द एक खास प्रार्थना में बोलते आए हैं। इस प्रार्थना को शेमा कहा जाता है, जो कि इब्रानी में इस आयत का पहला शब्द है। बहुत-से यहूदी हर दिन सुबह-शाम यह प्रार्थना करते हैं और इस तरह दिखाते हैं कि वे सिर्फ परमेश्वर की भक्ति करते हैं।
2 ये शब्द मूसा के आखिरी भाषण का हिस्सा हैं, जो उसने इसराएल राष्ट्र के सामने दिया था। बात ईसा पूर्व 1473 की है। इसराएल राष्ट्र मोआब के मैदान में था। इसराएली यरदन पार करके वादा किए गए देश पर कब्ज़ा करने ही वाले थे। (व्यव. 6:1) मूसा 40 साल से उनकी अगुवाई कर रहा था। वह चाहता था कि लोग आनेवाली मुश्किलों का हिम्मत से सामना करें। उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखना था और उसके वफादार रहना था। इसलिए मूसा के आखिरी शब्दों से उन्हें ऐसा ही करने का हौसला मिला। यहोवा की तरफ से मिली दस आज्ञाएँ और दूसरे नियम-कानून बताने के बाद, मूसा ने लोगों को जो ज़बरदस्त बात बतायी वह व्यवस्थाविवरण 6:4, 5 में दी है। (पढ़िए।)
3. इस लेख में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
व्यवस्थाविवरण 6:4, 5 में दर्ज़ शब्द आज हम पर कैसे लागू होते हैं?
3 क्या मूसा के साथ इकट्ठा इसराएली यह नहीं जानते थे कि उनका परमेश्वर “यहोवा एक ही है”? बेशक जानते थे। वफादार इसराएली एक ही परमेश्वर की उपासना करते थे, अपने पुरखाओं के परमेश्वर की। तो मूसा ने उन्हें क्यों याद दिलाया कि उनका परमेश्वर “यहोवा एक ही है”? इस सच्चाई का क्या इस बात से कोई ताल्लुक है कि हमें अपने पूरे दिल, पूरी जान और पूरी ताकत से परमेश्वर से प्यार करना है?हमारा परमेश्वर “यहोवा एक ही है”
4, 5. (क) “यहोवा एक ही है” शब्दों का एक मतलब क्या है? (ख) यहोवा उन देवी-देवताओं से कैसे अलग है, जिनकी लोग उपासना करते हैं?
4 बेजोड़। “यहोवा एक ही है” शब्दों का मतलब है कि यहोवा बेजोड़ है, उसके बराबर या उसके जैसा और कोई नहीं। मूसा ने यह बात क्यों कही? ऐसा तो नहीं लगता कि वह यह साबित करना चाहता हो कि त्रिएक में विश्वास करना गलत है। यहोवा ज़मीन और आसमान का बनानेवाला है और वही पूरे विश्व का शासक है। सिर्फ वही सच्चा परमेश्वर है, उसके जैसा कोई ईश्वर नहीं। (2 शमू. 7:22) इसलिए मूसा के शब्द इसराएलियों को यह याद दिलाते कि उन्हें सिर्फ यहोवा की उपासना करनी चाहिए। उन्हें अपने आस-पास के लोगों जैसा नहीं बनना था, जो बहुत-से झूठे देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उन लोगों का मानना था कि उनके देवता कुछ कुदरती चीज़ों को काबू में कर सकते हैं।
5 उदाहरण के लिए, मिस्री लोग सूर्य-देव रा, आकाश-देवी नट, पृथ्वी-देव गेब, नील-देव हापी और बहुत-से जानवरों की उपासना करते थे। इनमें से बहुत-से झूठे देवी-देवताओं को उस वक्त मुँह की खानी पड़ी, जब यहोवा मिस्र पर दस विपत्तियाँ लाया। कनानियों का मुख्य देवता था, बाल। उनका मानना था कि वही जीवन वजूद में लाया है और वही आकाश, बारिश और तूफान का देवता है। कई जगहों पर लोगों का विश्वास था कि बाल देवता उनकी हिफाज़त करेगा। (गिन. 25:3) लेकिन इसराएलियों को याद रखना था कि उनका परमेश्वर, “सच्चा परमेश्वर” (एन.डब्ल्यू.) बेजोड़ है। “यहोवा एक ही है।”—व्यव. 4:35, 39.
6, 7. (क) “एक ही” होने का एक और मतलब क्या है? (ख) यहोवा ने कैसे साबित किया कि वह “एक ही है”?
6 कभी न बदलनेवाला और वफादार। “यहोवा एक ही है” शब्दों का यह भी मतलब है कि उसका मकसद और उसके काम हमेशा भरोसेमंद होते हैं। यहोवा परमेश्वर का मन बँटा हुआ नहीं है या वह ऐसा नहीं कि कब-क्या कर बैठे। वह हमेशा से विश्वासयोग्य, अटल, वफादार और सच्चा है और ऐसा ही रहेगा। जैसे, उसने अब्राहम से वादा किया था कि उसके वंशज वादा किए गए देश में रहेंगे। यह वादा पूरा करने के लिए यहोवा ने बहुत-से बड़े-बड़े चमत्कार किए। चार सौ तीस साल गुज़रने के बाद भी यहोवा का मकसद बदला नहीं।—उत्प. 12:1, 2, 7; निर्ग. 12:40, 41.
7 सैकड़ों साल बाद, यहोवा ने इसराएलियों को अपना साक्षी कहा और उन्हें बताया, “मैं वही हूँ। मुझ से पहले कोई परमेश्वर न हुआ और न मेरे बाद कोई होगा।” यहोवा ने यह भी कहा, “मैं हमेशा से वैसा ही हूँ।” (एन.डब्ल्यू.) (यशा. 43:10, 13; 44:6; 48:12) इस तरह उसने यह साफ ज़ाहिर किया कि उसका मकसद कभी नहीं बदलता। ऐसे परमेश्वर की सेवा करना जो कभी नहीं बदलता और जो हमेशा वफादार रहता है, इसराएलियों के लिए क्या ही बड़ा सम्मान था! यही सम्मान आज हमारे पास भी है।—मला. 3:6; याकू. 1:17.
8, 9. (क) यहोवा अपने उपासकों से क्या उम्मीद करता है? (ख) यीशु ने मूसा के कहे शब्दों की अहमियत कैसे बतायी?
8 जी हाँ, मूसा ने इसराएलियों को याद दिलाया कि यहोवा कभी नहीं बदलेगा। वह हमेशा उनसे प्यार और उनकी परवाह करता रहेगा। तो फिर यहोवा का उनसे यह उम्मीद करना सही था कि वे व्यव. 6:6-9.
सिर्फ और सिर्फ उसकी भक्ति करें और अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपनी पूरी ताकत से उससे प्यार करें। माता-पिताओं को हर मौके पर अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाना था, ताकि बच्चे भी सिर्फ यहोवा की उपासना करें।—9 यहोवा अपना मकसद कभी नहीं बदलता। इसलिए वह अपने सच्चे उपासकों से आज भी वही उम्मीद करता है, जो पहले करता था, खासकर बुनियादी बातों के मामले में। अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी उपासना से खुश हो, तो हमें सिर्फ उसी की भक्ति करनी चाहिए और उसे अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना चाहिए। यीशु ने कहा था कि यह सबसे ज़रूरी आज्ञा है। (मरकुस 12:28-31 पढ़िए।) तो आइए देखें, हम अपने कामों से कैसे दिखा सकते हैं कि हमें यकीन है कि “यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।”
सिर्फ यहोवा की भक्ति कीजिए
10, 11. (क) हम किस तरह सिर्फ यहोवा की भक्ति करते हैं? (ख) बैबिलोन में इब्री जवानों ने कैसे दिखाया कि वे सिर्फ यहोवा की भक्ति करते हैं?
10 सिर्फ यहोवा ही हमारा परमेश्वर है। हम सिर्फ और सिर्फ उसकी भक्ति करते हैं, उसकी उपासना करते हैं। हम किसी दूसरे देवी-देवता की उपासना नहीं कर सकते या यहोवा की उपासना में झूठी शिक्षाएँ या रीति-रिवाज़ शामिल नहीं कर सकते। यहोवा बस कोई देवता नहीं है, ऐसा देवता जो बाकी देवताओं से ऊँचा या ज़्यादा ताकतवर हो। वह सच्चा परमेश्वर है, उसके सिवा और कोई नहीं। इसलिए हमें सिर्फ यहोवा की उपासना करनी चाहिए।—प्रकाशितवाक्य 4:11 पढ़िए।
11 दानिय्येल की किताब में हम चार इब्री जवानों के बारे में पढ़ते हैं, दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह। उन्होंने अपने कामों से दिखाया कि वे सिर्फ यहोवा की भक्ति करते हैं। कैसे? उन्होंने वह खाना खाने से इनकार कर दिया, जो यहोवा के उपासकों के लिए अशुद्ध था। यही नहीं, दानिय्येल के तीन दोस्तों ने उस सोने की मूर्ति के सामने झुकने से भी इनकार कर दिया, जो राजा नबूकदनेस्सर ने खड़ी करवायी थी। उनके लिए यहोवा पहली जगह पर था। वे पूरी तरह उसके वफादार बने रहे।—दानि. 1:1–3:30.
12. हमें सिर्फ यहोवा की भक्ति करनी है, इसलिए हमें किस बात से सावधान रहना चाहिए?
12 हमारी ज़िंदगी में भी यहोवा पहली जगह पर होना चाहिए। अगर हम सिर्फ उसकी भक्ति करना चाहते हैं, तो हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं हमारी ज़िंदगी में दूसरी चीज़ें पहली जगह न ले लें। ये चीज़ें क्या हो सकती हैं? यहोवा ने मूसा के ज़रिए जो दस आज्ञाएँ दी थीं, उनमें उसने कहा कि उसके लोगों को दूसरे देवी-देवताओं की उपासना नहीं करनी चाहिए। उन्हें किसी तरह की मूर्तिपूजा भी नहीं करनी चाहिए। (व्यव. 5:6-10) आज तरह-तरह की मूर्तिपूजा होती है। कुछ तरीके तो ऐसे हैं, जिन्हें पहचानना भी मुश्किल है कि वे मूर्तिपूजा का हिस्सा हैं। लेकिन यहोवा बदला नहीं है, आज भी “यहोवा एक ही है।” वह हमसे उम्मीद करता है कि हम किसी तरह की मूर्तिपूजा न करें। आइए देखें इसका क्या मतलब है।
13. हम यहोवा से ज़्यादा किन बातों से प्यार करने लग सकते हैं?
13 कुलुस्सियों 3:5 (पढ़िए) में ऐसी बातें बतायी गयी हैं, जिनसे यहोवा के साथ हमारी दोस्ती तबाह हो सकती है, जो बहुत खास है। उस आयत में कहा गया है कि लालच मूर्तिपूजा से जुड़ा है। वह कैसे? जब कोई चीज़ पाने की हममें गहरी इच्छा होती है, जैसे खूब पैसा या ऐशो-आराम की चीज़ें, तो यह इच्छा इस कदर हम पर अपना कब्ज़ा जमा लेती है, जैसे यह कोई ताकतवर देवता हो। दरअसल, कुलुस्सियों 3:5 में बताए गए सभी पाप लालच से जुड़े हैं, जो एक तरह की मूर्तिपूजा है। इसलिए अगर हममें इन बातों के लिए गहरी इच्छा होगी, तो हम परमेश्वर से ज़्यादा उन बातों से प्यार करने लग सकते हैं। अगर हम अपने साथ ऐसा होने दें, तो क्या हम कह पाएँगे कि हमारे लिए “यहोवा एक ही है”? हरगिज़ नहीं।
14. प्रेषित यूहन्ना ने किस बात से खबरदार किया?
14 प्रेषित यूहन्ना ने भी कुछ ऐसी ही बात कही। उसने खबरदार किया कि अगर एक व्यक्ति दुनिया की चीज़ों से प्यार करने लगे, यानी ‘शरीर की ख्वाहिशों, आँखों की ख्वाहिशों और अपनी चीज़ों का दिखावा,’ तो “उसमें पिता के लिए प्यार नहीं है।” (1 यूह. 2:15, 16) इसलिए हमें लगातार खुद की जाँच करते रहना चाहिए कि कहीं हम दुनिया से तो प्यार नहीं करने लगे। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें इस दुनिया का मनोरंजन, इसके लोग, इसका पहनावा और बनाव-श्रृंगार कुछ ज़्यादा ही पसंद आने लगा हो। या कहीं हम ऊँची शिक्षा लेकर अपने लिए “बड़ाई” तो नहीं खोजने लगे। (यिर्म. 45:4, 5) नयी दुनिया बहुत करीब है। इसलिए हमें मूसा की कही दमदार बात याद रखनी चाहिए! “यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है,” यह बात अगर हम समझते हैं और हमें इस पर वाकई यकीन है, तो हम सिर्फ यहोवा की भक्ति करेंगे और उसकी सेवा उस तरह करेंगे, जैसे वह चाहता है।—इब्रा. 12:28, 29.
मसीही एकता बनाए रखिए
15. पौलुस ने मसीहियों को क्यों याद दिलाया कि परमेश्वर “यहोवा एक ही है”?
15 “यहोवा एक ही है” शब्दों से हम यह भी समझते हैं कि यहोवा चाहता है कि उसके सेवकों में एकता हो और उन सबकी ज़िंदगी का एक ही मकसद हो। पहली सदी की मसीही मंडली में यहूदी, यूनानी, रोमी और दूसरे राष्ट्रों के लोग थे। उनकी संस्कृति, रस्मों-रिवाज़ और पसंद अलग-अलग थी। इस वजह से उनमें से कुछ लोगों के लिए उपासना करने का नया तरीका अपनाना और पुराने तौर-तरीके छोड़ना मुश्किल था। इसलिए पौलुस को उन्हें याद दिलाना पड़ा कि मसीहियों का एक ही परमेश्वर है, यहोवा।—1 कुरिंथियों 8:5, 6 पढ़िए।
16, 17. (क) हमारे दिनों में कौन-सी भविष्यवाणी पूरी हो रही है और इसका क्या नतीजा निकला है? (ख) किस वजह से हमारे बीच की एकता खतरे में पड़ सकती है?
यशा. 2:2, 3) हमें यह देखकर कितनी खुशी होती है कि आज यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है! हमारे भाई-बहन अलग-अलग जगह और अलग-अलग संस्कृति से हैं और अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं। और हम सब एक होकर यहोवा की उपासना करते हैं। लेकिन हम सब इतने अलग-अलग हैं, इस वजह से कभी-कभी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
16 आज की मसीही मंडली के बारे में क्या कहेंगे? भविष्यवक्ता यशायाह ने कहा कि “अन्त के दिनों में” सभी राष्ट्रों के लोग एक होकर यहोवा की उपासना करेंगे। वे कहेंगे, “वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।” (17 उदाहरण के लिए, आप दूसरी संस्कृति के भाई-बहनों के बारे में क्या सोचते हैं? उनकी भाषा, उनका पहनावा, खान-पान और उनके तौर-तरीके शायद आपसे बहुत अलग हों। तो क्या आप उनसे दूर-दूर रहते हैं और खासकर उनके साथ उठना-बैठना करते हैं, जो आपकी संस्कृति के हैं? आप अपनी मंडली, सर्किट या अपने शाखा-दफ्तर के उन प्राचीनों के बारे में क्या सोचते हैं, जो उम्र में आपसे छोटे हैं या किसी दूसरी जाति या संस्कृति के हैं? अगर हम सावधान न रहें, तो ऐसी बातों का हम पर असर हो सकता है और हमारे बीच की एकता खतरे में पड़ सकती है।
18, 19. (क) इफिसियों 4:1-3 में क्या सलाह दी गयी है? (ख) हम मंडली में एकता बनाए रखने के लिए क्या कर सकते हैं?
18 ऐसी मुश्किलें न खड़ी हों, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को एक कारगर सलाह दी। यह एक ऐसा शहर था जहाँ अलग-अलग संस्कृति के लोग रहते थे। (इफिसियों 4:1-3 पढ़िए।) पौलुस ने मन की दीनता, कोमलता, सहनशीलता और प्यार जैसे गुणों का ज़िक्र किया। ये गुण मज़बूत खंभों की तरह हैं जिनके सहारे घर खड़ा रहता है। लेकिन घर को अच्छी हालत में रखने के लिए लगातार उसका रख-रखाव भी करना होता है, जिसमें मेहनत लगती है। पौलुस चाहता था कि इफिसुस के मसीही “उस एकता में रहने” के लिए जी-जान से कोशिश करते रहें, “जो पवित्र शक्ति की तरफ से मिलती है।”
19 हममें से हर एक को मंडली में एकता बनाए रखने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए। यह हम कैसे कर सकते हैं? सबसे पहले, हमें अपने अंदर वे गुण पैदा करने चाहिए जिनका पौलुस ने ज़िक्र किया: मन की दीनता, कोमलता, सहनशीलता और प्यार। ये गुण अपने व्यवहार से ज़ाहिर भी करने चाहिए। दूसरी बात, हमें “शांति के एक करनेवाले बंधन” को मज़बूत करते जाना चाहिए। हमारे बीच जो गलतफहमियाँ पैदा हो जाती हैं, वे छोटी-छोटी दरारों की तरह हैं। हमें ये दरारें भरने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। इससे हमारे बीच शांति और एकता बनी रहेगी।
20. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यह समझते हैं कि “यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है”?
20 “यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।” क्या ही दमदार बात! इस बात से इसराएलियों को उस समय मुश्किलों का सामना करने की ताकत मिली, जब वे वादा किए देश में दाखिल हुए और उस पर कब्ज़ा किया। इस बात से हमें भी महा-संकट का सामना करने की ताकत मिल सकती है और हम फिरदौस में शांति और एकता बढ़ा सकते हैं। आइए हम सिर्फ यहोवा की भक्ति करते रहें, यानी अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपनी पूरी ताकत से उससे प्यार करते रहें। साथ ही, अपने भाइयों के बीच शांति और एकता बनाए रखने में जी-जान से लगे रहें। अगर हम यह सब करते रहेंगे, तो यीशु हमारा न्याय करके हमें भेड़ समान लोगों में गिनेगा और हम उसकी यह बात सच होते देखेंगे, “मेरे पिता से आशीष पानेवालो, आओ, उस राज के वारिस बन जाओ जो दुनिया की शुरूआत से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है।”—मत्ती 25:34.