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‘जिस बंधन को परमेश्‍वर ने बाँधा है,’ उसका आदर कीजिए

‘जिस बंधन को परमेश्‍वर ने बाँधा है,’ उसका आदर कीजिए

“जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।”​—मर. 10:9.

गीत: 131, 132

1, 2. इब्रानियों 13:4 में हमें किस बात का बढ़ावा दिया गया है?

हम सब यहोवा का आदर करना चाहते हैं और वह आदर पाने का हकदार भी है। बदले में वह हमारा आदर करने का वादा करता है। (1 शमू. 2:30; नीति. 3:9; प्रका. 4:11) वह चाहता है कि हम इंसानों का भी आदर करें, जैसे सरकारी अधिकारियों का। (रोमि. 12:10; 13:7) लेकिन एक और पहलू है, जिसमें हमें खास तौर से इस मामले में ध्यान देना है। वह है, शादी का बंधन।

2 प्रेषित पौलुस ने लिखा, “शादी सब लोगों में आदर की बात समझी जाए और शादी की सेज दूषित न की जाए।” (इब्रा. 13:4) पौलुस यहाँ शादी के बारे में कोई आम बात नहीं कर रहा था। वह मसीहियों से सीधे-सीधे यह कह रहा था कि उन्हें शादी के बंधन का आदर करना चाहिए यानी उसे अनमोल समझना चाहिए। क्या आप भी शादी के बंधन को इसी नज़र से देखते हैं? अगर आप शादीशुदा हैं, तो क्या आप अपने इस बंधन को अनमोल समझते हैं?

3. यीशु ने शादी के बारे में कौन-सी अहम सलाह दी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 अगर आप शादी के बंधन को अनमोल समझते हैं, तो आप एक बढ़िया मिसाल पर चल रहे हैं। वह है, यीशु की मिसाल। एक बार जब फरीसियों ने उससे तलाक के बारे में पूछा, तब उसने वह बात दोहरायी, जो परमेश्‍वर ने पहली शादी के बारे में कही थी। यीशु ने कहा, “इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और वे दोनों एक तन होंगे।” (मर. 10:7, 8, फु.) उसने यह भी कहा, “जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” इस तरह उसने दिखाया कि वह शादी के बंधन का आदर करता है।​—मरकुस 10:2-12 पढ़िए; उत्प. 2:24.

4. शादी के बंधन के बारे में परमेश्‍वर का क्या मकसद था?

4 यीशु ने इस बात को माना कि परमेश्‍वर ने ही शादी की शुरूआत की है और यह बंधन अटूट होना चाहिए। जब परमेश्‍वर ने पहली शादी करवायी, तब उसने आदम और हव्वा से यह नहीं कहा कि वे चाहें तो तलाक ले सकते हैं। इसके बजाय उसका मकसद था कि “वे दोनों” हमेशा इस बंधन में बँधे रहें।

ऐसी बातें जिनसे शादी के बंधन पर असर हुआ

5. मौत का शादी के बंधन पर क्या असर हुआ?

5 हम जानते हैं कि जैसा परमेश्‍वर ने चाहा था, वैसा नहीं हुआ। आदम के पाप करने की वजह से बहुत कुछ बदल गया। जैसे, इंसानों की मौत होने लगी और इसका असर शादी के बंधन पर भी होने लगा। प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को समझाया कि जब पति-पत्नी में से किसी एक की मौत हो जाती है, तो शादी का बंधन खत्म हो जाता है। फिर दूसरा साथी चाहे तो दोबारा शादी कर सकता है।​—रोमि. 7:1-3.

6. (क) परमेश्‍वर शादी के बंधन को किस नज़र से देखता है? (ख) यह हमें मूसा के कानून से कैसे पता चलता है?

6 परमेश्‍वर ने इसराएल राष्ट्र को जो कानून दिया था, उसमें शादी से जुड़ी बहुत-सी बातें बतायी गयी थीं। इसराएली आदमियों को एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ रखने की इजाज़त थी। यह चलन कानून दिए जाने के पहले से था। लेकिन कानून में कुछ ऐसे नियम दिए गए थे, जिनसे कोई औरतों और बच्चों का हक नहीं मार सकता था। जैसे, अगर एक इसराएली आदमी किसी दासी से शादी करता और बाद में किसी दूसरी औरत से, तो उसे अपनी पहली पत्नी की ज़रूरतें भी पूरी करनी थीं। परमेश्‍वर उससे उम्मीद करता था कि वह अब भी उसकी हिफाज़त करे और उसका खयाल रखे। (निर्ग. 21:9, 10) आज हम मूसा के कानून के अधीन तो नहीं हैं, लेकिन इससे हम सीखते हैं कि परमेश्‍वर शादी के बंधन को बहुत अनमोल समझता है। इस वजह से हमें इस बंधन का आदर करना चाहिए।

7, 8. (क) व्यवस्थाविवरण 24:1 के मुताबिक कानून में तलाक के बारे में क्या बताया गया था? (ख) यहोवा तलाक को किस नज़र से देखता है?

7 कानून में तलाक के बारे में क्या बताया गया था? हालाँकि परमेश्‍वर ने कभी नहीं चाहा था कि पति-पत्नी तलाक लें, लेकिन अगर एक इसराएली आदमी अपनी पत्नी में “कुछ बुराई पाता,” तो कानून के मुताबिक वह उसे तलाक दे सकता था। (व्यवस्थाविवरण 24:1 पढ़िए।) कानून में यह साफ-साफ नहीं बताया गया था कि वह “बुराई” क्या है। लेकिन यहाँ किसी छोटी-मोटी गलती की नहीं, बल्कि किसी शर्मनाक या गंभीर पाप की बात की गयी थी। (व्यव. 23:14) अफसोस की बात है कि यीशु के दिनों के आते-आते कई यहूदी अपनी-अपनी पत्नियों को “किसी भी वजह से” तलाक देने लगे थे। (मत्ती 19:3) हम उनके जैसा रवैया बिलकुल नहीं अपनाना चाहते!

8 भविष्यवक्‍ता मलाकी के दिनों में तलाक देना बहुत आम हो गया था। बहुत-से इसराएली “अपनी जवानी की पत्नी” को शायद इसलिए तलाक दे रहे थे, ताकि वे जवान औरतों से शादी कर सकें, ऐसी औरतों से जो यहोवा की सेवा नहीं करती थीं। लेकिन परमेश्‍वर ने साफ-साफ बताया कि वह तलाक को किस नज़र से देखता है। उसने कहा, “मुझे तलाक से नफरत है।” (मला. 2:14-16) इससे पता चलता है कि शुरू में जब परमेश्‍वर ने कहा था कि आदमी “अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे,” तब से उसका नज़रिया नहीं बदला था। (उत्प. 2:24) इस बारे में यीशु का नज़रिया भी अपने पिता के जैसा था, तभी उसने कहा, “जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।”​—मत्ती 19:6.

तलाक लेने का एकमात्र आधार

9. मरकुस 10:11, 12 में दर्ज़ यीशु के शब्दों का क्या मतलब है?

9 कुछ लोग शायद कहें, ‘मसीहियों के लिए तलाक लेने और दोबारा शादी करने का क्या कोई आधार है?’ ध्यान दीजिए कि यीशु ने क्या कहा था, “जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है और किसी दूसरी से शादी करता है, वह उस पहली औरत का हक मारता है और व्यभिचार करने का दोषी है। और अगर एक औरत अपने पति को तलाक देकर कभी किसी दूसरे से शादी करती है, तो वह व्यभिचार करने की दोषी है।” (मर. 10:11, 12; लूका 16:18) इससे साफ ज़ाहिर है कि यीशु शादी के बंधन का आदर करता था और चाहता था कि दूसरे भी ऐसा करें। जो आदमी अपनी वफादार पत्नी को तलाक देता है और किसी दूसरी से शादी करता है, वह व्यभिचार करने का दोषी होता है। इस पाप की दोषी वह पत्नी भी होती है, जो अपने वफादार पति को तलाक देती है। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि सिर्फ तलाक दे देने से शादी का बंधन खत्म नहीं हो जाता। परमेश्‍वर की नज़र में वे अब भी “एक तन” हैं। यीशु ने यह भी कहा कि अगर एक आदमी अपनी निर्दोष पत्नी को तलाक दे, तो वह उसे व्यभिचार करने के खतरे में डाल रहा होगा। वह कैसे? उस ज़माने में एक तलाकशुदा औरत के मन में आ सकता था कि अपना गुज़ारा चलाने के लिए उसे मजबूरन दूसरी शादी करनी पड़ेगी। अगर वह शादी करती, तो वह व्यभिचार करने की दोषी होती।

10. मसीहियों के लिए तलाक लेने और दोबारा शादी करने का एकमात्र आधार क्या है?

10 यीशु ने बताया कि तलाक लेने का एकमात्र आधार क्या है। उसने कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई नाजायज़ यौन-संबंध  [यूनानी में पोर्निया ] के अलावा किसी और वजह से अपनी पत्नी को तलाक देता है और किसी दूसरी से शादी करता है, वह व्यभिचार करने का दोषी है।” (मत्ती 19:9) उसने पहाड़ी उपदेश में भी यह बात बतायी थी। (मत्ती 5:31, 32) दोनों मौकों पर उसने “नाजायज़ यौन-संबंध” का ज़िक्र किया। इसमें ऐसे पाप शामिल हैं जैसे, व्यभिचार, वेश्‍या के काम, दो कुँवारे लोगों के बीच यौन-संबंध, समलैंगिकता और जानवरों के साथ यौन-संबंध। मान लीजिए कि एक शादीशुदा आदमी किसी के साथ नाजायज़ यौन-संबंध रखता है, तो उसकी पत्नी फैसला कर सकती है कि वह उसे तलाक देगी या नहीं। अगर वह उसे तलाक देती है, तो परमेश्‍वर की नज़र में उनका रिश्‍ता खत्म हो जाता है।

11. अपने जीवन-साथी की बेवफाई के बाद भी एक निर्दोष मसीही शायद क्यों तलाक न ले?

11 गौर कीजिए कि यीशु ने यह नहीं कहा कि अगर एक शादीशुदा व्यक्‍ति नाजायज़ यौन-संबंध रखता है, तो उसके निर्दोष साथी को उसे तलाक देना ही होगा। हो सकता है कि एक पत्नी अपने पति की बेवफाई के बाद भी उसके साथ रहने का फैसला करे। क्यों? क्योंकि शायद वह अब भी उससे प्यार करती हो, उसे माफ करने को तैयार हो और अपने रिश्‍ते को एक और मौका देना चाहती हो। लेकिन अगर पत्नी तलाक ले और दोबारा शादी न करे, तो उसके सामने कुछ मुश्‍किलें आएँगी। जैसे, वह अपना गुज़ारा कैसे चलाएगी? वह अपनी लैंगिक ज़रूरतों के बारे में क्या करेगी? क्या उसे अकेलापन सताएगा? तलाक का उसके बच्चों पर क्या असर होगा? क्या मसीही सिद्धांतों के मुताबिक उनकी परवरिश करना और भी मुश्‍किल हो जाएगा? (1 कुरिं. 7:14) इन बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि जो निर्दोष साथी तलाक लेने का फैसला करता है, उसे कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ेगा।

12, 13. (क) होशे की शादीशुदा ज़िंदगी में क्या हुआ? (ख) होशे ने गोमेर को दोबारा क्यों अपना लिया? (ग) उसकी शादीशुदा ज़िंदगी से हम क्या सीख सकते हैं?

12 शादी के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया जानने के लिए ज़रा भविष्यवक्‍ता होशे के किस्से पर ध्यान दीजिए। परमेश्‍वर ने होशे से कहा कि वह गोमेर नाम की औरत से शादी करे, एक ऐसी औरत से “जो बाद में वेश्‍या के काम” करती और “अपनी बदचलनी से बच्चे पैदा” करती। गोमेर से होशे का एक बेटा हुआ। (होशे 1:2, 3) बाद में शायद किसी दूसरे आदमी से गोमेर के दो और बच्चे हुए, एक बेटी और एक बेटा। गोमेर ने बार-बार व्यभिचार किया, फिर भी होशे ने उसे नहीं त्यागा। आखिरकार गोमेर होशे को छोड़कर चली गयी और एक दासी बन गयी। इतना सब होने पर भी होशे ने उसे वापस खरीद लिया। (होशे 3:1, 2) यहोवा ने होशे की मिसाल से समझाया कि इसराएल राष्ट्र ने उसके साथ बार-बार बेवफाई की और दूसरे देवी-देवताओं की पूजा की, फिर भी यहोवा उसे माफ करता रहा। होशे की शादीशुदा ज़िंदगी से आज हम क्या सीख सकते हैं?

13 अगर एक मसीही का जीवन-साथी किसी के साथ नाजायज़-यौन संबंध रखता है, तो निर्दोष साथी को एक फैसला करना पड़ता है। यीशु ने कहा था कि ऐसे में निर्दोष साथी के पास तलाक लेने और दोबारा शादी करने का सही आधार होता है। लेकिन अगर निर्दोष मसीही अपने साथी को माफ करने का फैसला करता है, तो यह गलत नहीं होगा। गौर कीजिए कि होशे ने गोमेर को दोबारा अपना लिया था। जब गोमेर वापस आयी, तो होशे ने उससे कहा कि अब वह किसी दूसरे आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रख सकती। होशे ने भी कुछ समय तक गोमेर के साथ ‘संबंध नहीं रखे।’ (होशे 3:3) आखिरकार होशे ने अपनी पत्नी के साथ दोबारा संबंध बनाए होंगे। यह दर्शाता है कि परमेश्‍वर इसराएलियों को दोबारा अपनाने और उनके साथ अपना रिश्‍ता बनाए रखने के लिए तैयार था। (होशे 1:11; 3:3-5) इससे शादी के बंधन के बारे में हम क्या सीखते हैं? अगर एक निर्दोष मसीही अपने दोषी साथी के संग दोबारा यौन-संबंध रखता है, तो यह दिखाता है कि उसने उसे माफ कर दिया है। (1 कुरिं. 7:3, 5) इसके बाद तलाक लेने का कोई सही आधार नहीं रह जाता। अब पति-पत्नी को मिलकर अपना रिश्‍ता सुधारना चाहिए और इस रिश्‍ते के बारे में यहोवा के जैसा नज़रिया रखने में एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

समस्याएँ आने पर भी शादी के बंधन का आदर कीजिए

14. पहला कुरिंथियों 7:10, 11 के मुताबिक शादीशुदा ज़िंदगी में क्या हो सकता है?

14 यहोवा और यीशु की तरह सभी मसीहियों को शादी के बंधन का आदर करना चाहिए। लेकिन अपरिपूर्ण होने की वजह से कुछ लोग कभी-कभी ऐसा नहीं कर पाते। (रोमि. 7:18-23) इस वजह से यह कोई हैरानी की बात नहीं कि पहली सदी में कुछ मसीहियों की शादीशुदा ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी समस्याएँ आयी थीं। पौलुस ने लिखा, “एक पत्नी को अपने पति से अलग नहीं होना चाहिए।” लेकिन कुछ मामलों में ऐसा हुआ था।​—1 कुरिंथियों 7:10, 11 पढ़िए।

पति-पत्नी अपनी शादी को टूटने से कैसे बचा सकते हैं? (पैराग्राफ 15 देखिए)

15, 16. (क) शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ आने पर भी पति-पत्नी को क्या ठान लेना चाहिए और क्यों? (ख) अगर एक मसीही का जीवन-साथी अविश्‍वासी हो, तब भी उसे क्या करना चाहिए?

15 पौलुस ने यह नहीं बताया कि किन कारणों से पति-पत्नी अलग हुए थे। लेकिन एक बात तो साफ है कि पति ने नाजायज़ यौन-संबंध रखने का पाप नहीं किया होगा। अगर ऐसा होता, तो पत्नी के पास उससे तलाक लेने और दूसरी शादी करने का आधार होता। पौलुस ने कहा कि अगर पत्नी अपने पति से अलग हो जाए, तो वह “किसी दूसरे से शादी न करे या अपने पति से सुलह कर ले।” इसका मतलब है कि परमेश्‍वर अब भी उन दोनों को पति-पत्नी मानता है। पौलुस ने कहा कि पति-पत्नी के बीच चाहे जो भी समस्याएँ आएँ, अगर उनमें से किसी ने व्यभिचार नहीं किया है, तो उन्हें ठान लेना चाहिए कि वे सुलह कर लेंगे और एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। वे चाहें तो प्राचीनों से मदद ले सकते हैं। प्राचीन किसी एक का पक्ष नहीं लेंगे, बल्कि बाइबल से उन्हें फायदेमंद सलाह देंगे।

16 लेकिन तब क्या, जब एक मसीही का जीवन-साथी अविश्‍वासी हो? अगर उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्‍किलें आएँ, तो क्या उनका अलग हो जाना सही होगा? जैसे हमने देखा, बाइबल बताती है कि तलाक लेने का बस एकमात्र आधार है, नाजायज़ यौन-संबंध। लेकिन बाइबल में अलग होने के बारे में कोई वजह नहीं बतायी गयी है। पौलुस ने लिखा, “अगर एक औरत का पति अविश्‍वासी हो फिर भी वह अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए राज़ी हो, तो वह औरत अपने पति को न छोड़े।” (1 कुरिं. 7:12, 13) यह बात आज भी लागू होती है।

17, 18. समस्याएँ आने पर भी कुछ मसीहियों ने अपने साथी के संग रहने का फैसला क्यों किया?

17 कुछ मामलों में ‘अविश्‍वासी पति’ ने साफ जताया है कि वह अपनी “पत्नी के साथ रहने के लिए राज़ी” नहीं है। जैसे, शायद वह अपनी पत्नी को इतना मारता-पीटता हो कि उसकी सेहत खराब हो जाए या उसकी जान खतरे में पड़ जाए। या हो सकता है, वह अपने परिवार की आर्थिक रूप से देखभाल करने से इनकार कर दे या पत्नी के लिए परमेश्‍वर की सेवा करना बहुत मुश्‍किल कर दे। ऐसे में एक मसीही पत्नी को लगे कि उसका पति चाहे जो भी कहे, मगर अपने व्यवहार से वह दिखा रहा है कि वह उसके “साथ रहने के लिए राज़ी” नहीं है। इस वजह से पत्नी शायद अलग होने का फैसला करे। लेकिन कुछ मसीहियों ने ऐसे हालात में भी अपने जीवन-साथी के संग रहने का फैसला किया है। उन्होंने धीरज रखते हुए अपने रिश्‍ते को ठीक करने की कोशिश की है। उन्होंने ऐसा फैसला क्यों किया?

18 उन्हें पता है कि इन हालात में अलग हो जाने पर भी उनका बंधन नहीं टूटता और उन्हें वे मुश्‍किलें सहनी पड़ती हैं, जिनका ज़िक्र पहले किया गया था। प्रेषित पौलुस ने एक और वजह बतायी कि पति-पत्नी को क्यों एक-साथ रहना चाहिए। उसने कहा, “अविश्‍वासी पति अपनी पत्नी के साथ शादी के रिश्‍ते की वजह से पवित्र माना जाता है और अविश्‍वासी पत्नी अपने पति यानी उस मसीही भाई के साथ शादी के रिश्‍ते की वजह से पवित्र मानी जाती है। अगर ऐसा न होता, तो तुम्हारे बच्चे अशुद्ध होते मगर अब वे पवित्र हैं।” (1 कुरिं. 7:14) कई मसीहियों ने अपने अविश्‍वासी साथी के संग रहने का फैसला किया, जबकि यह उनके लिए आसान नहीं था। उन्हें खुशी है कि उन्होंने ऐसा किया, क्योंकि बाद में उनके साथी यहोवा के साक्षी बन गए।​—1 कुरिंथियों 7:16 पढ़िए; 1 पत. 3:1, 2.

19. मसीही मंडली में बहुत-से पति-पत्नी किस वजह से अपनी शादी से खुश हैं?

19 हालाँकि यीशु ने तलाक के बारे में और प्रेषित पौलुस ने अलग होने के बारे में कुछ बातें बतायीं, मगर दोनों चाहते थे कि परमेश्‍वर के सेवक शादी के बंधन का आदर करें। आज पूरी दुनिया में मसीही मंडलियों में ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से खुश हैं। आपकी मंडली में भी ऐसे कई पति-पत्नी होंगे। ये पति अपनी पत्नी से प्यार करते हैं और पत्नियाँ अपने पति का आदर करती हैं। इस तरह ये सब शादी के बंधन का आदर करते हैं। कितनी खुशी की बात है कि लाखों पति-पत्नियाँ परमेश्‍वर की यह बात सच साबित कर रहे हैं: “इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे।”​—इफि. 5:31, 33.