अध्ययन लेख 51
‘यहोवा उन्हें बचाता है जो निराश हैं’
“यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है, वह उन्हें बचाता है जो निराश हैं।”—भज. 34:18, फु.
गीत 30 यहोवा, मेरा परमेश्वर, पिता और दोस्त
लेख की एक झलक *
1-2. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
हम सब कभी-कभी बहुत निराश हो जाते हैं। इस छोटी-सी ज़िंदगी में हमें कई दुख झेलने पड़ते हैं। देखा जाए तो हमारी ज़िंदगी “दुखों से भरी” होती है। (अय्यू. 14:1) पुराने ज़माने में भी यहोवा के कई सेवक निराश हो जाते थे। कुछ तो इतने निराश हो गए थे कि वे मर जाना चाहते थे। (1 राजा 19:2-4; अय्यू. 3:1-3, 11; 7:15, 16) लेकिन जब भी वे निराश हुए, यहोवा ने उनकी हिम्मत बँधायी और उनके दुखी मन को दिलासा दिया। उन्हें अपने परमेश्वर पर भरोसा था और परमेश्वर ने उन्हें छोड़ा नहीं। परमेश्वर ने उनके बारे में बाइबल में लिखवाया ताकि हम उनसे सीखें और हमें भी दिलासा मिले।—रोमि. 15:4.
2 इस लेख में हम यहोवा के कुछ ऐसे सेवकों के बारे में चर्चा करेंगे जो मुश्किल हालात से गुज़रे थे और एक वक्त पर निराश हो गए थे। हम याकूब के बेटे यूसुफ के बारे में, विधवा नाओमी और उसकी बहू रूत के बारे में, उस लेवी के बारे में जिसने भजन 73 लिखा था और प्रेषित पतरस के बारे में बात करेंगे। हम जानेंगे कि यहोवा ने कैसे उनकी हिम्मत बँधायी और उनके वाकये से हम क्या सीख सकते हैं। इससे हमें भरोसा होगा कि “यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है, वह उन्हें बचाता है जो निराश हैं।”—भज. 34:18, फु.
यूसुफ ने अन्याय सहा
3-4. यूसुफ ने छोटी उम्र में क्या-क्या मुश्किलें झेली?
3 जब यूसुफ करीब 17 साल का था, तो उसने दो सपने देखे। इसके पीछे यहोवा का हाथ था। इन सपनों का यह मतलब था कि यूसुफ एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा और उसके परिवार के सब लोग उसका बहुत आदर-सम्मान करेंगे। (उत्प. 37:5-10) मगर इसके कुछ समय बाद उसके साथ बिलकुल उलटा हुआ। उसका आदर करना तो दूर, उसके भाइयों ने उसे गुलामी में बेच दिया। उसे मिस्र ले जाया गया और वहाँ पोतीफर नाम के अधिकारी के यहाँ बेच दिया गया। (उत्प. 37:21-28) देखते-ही-देखते यूसुफ की ज़िंदगी बिलकुल बदल गयी। कल तक जो अपने पिता का चहेता बेटा था, अब मिस्र में एक गुलाम बनकर रह गया जहाँ उसे पूछनेवाला कोई नहीं था।—उत्प. 39:1.
4 इसके बाद यूसुफ की मुश्किलें और बढ़ गयीं। पोतीफर की पत्नी ने उस पर झूठा इलज़ाम लगाया कि उसने उसका बलात्कार करने की कोशिश की। पोतीफर ने जानने की कोशिश भी नहीं कि यह इलज़ाम सही है या गलत, सीधे उसे जेल में डाल दिया और लोहे की ज़ंजीरों में जकड़ दिया। (उत्प. 39:14-20; भज. 105:17, 18) इतनी छोटी उम्र में यूसुफ पर बलात्कार करने का इतना बड़ा इलज़ाम लगाया गया। सोचिए यूसुफ को कैसा लगा होगा। जब लोगों ने यह खबर सुनी, तो उन्होंने यहोवा के बारे में बुरा-भला कहा होगा। इससे यूसुफ का दुख और बढ़ गया होगा। यूसुफ ज़रूर निराश हो गया होगा।
5. यूसुफ ने क्या किया जिस वजह से उसने हिम्मत नहीं हारी?
5 जब यूसुफ पोतीफर के यहाँ गुलाम था और बाद में जेल में था, तो वह अपनी समस्याओं से छुटकारा नहीं पा सकता था क्योंकि यह उसके बस में नहीं था। तब उसने क्या किया? उसके बस में जो नहीं था उसी के बारे में सोचते रहने के बजाय, जो उसके बस में था वह करता रहा। उसे जो काम सौंपा गया था, उसे वह लगन से करता रहा। और सबसे खास बात, उसने हमेशा वही किया जो यहोवा की नज़र में सही है। यही वजह है कि उसने हिम्मत नहीं हारी और यहोवा ने भी उसके हर काम पर आशीष दी।—उत्प. 39:21-23.
6. यूसुफ को अपने सपने याद करने से क्यों दिलासा मिला होगा?
6 यूसुफ को एक और बात से हिम्मत मिली होगी। उसने उन सपनों के बारे में गहराई से सोचा होगा जो उसने बहुत पहले देखे थे। उसे एहसास हुआ होगा कि वह एक बार फिर अपने परिवार से मिल पाएगा और उसकी तकलीफें दूर हो जाएँगी। बाद में ऐसा ही हुआ। जब यूसुफ करीब 37 साल का था, तो उसके सपने लाजवाब तरीके से सच होने लगे।—उत्प. 37:7, 9, 10; 42:6, 9.
7. पहला पतरस 5:10 के मुताबिक हम क्यों अपनी मुश्किलें सह पाते हैं?
7 हम क्या सीखते हैं? यूसुफ की कहानी से पता चलता है कि यह दुनिया बहुत बेरहम है और हमें लोगों के हाथों भज. 62:6, 7; 1 पतरस 5:10 पढ़िए।) यूसुफ के वाकये से हम यह भी सीखते हैं कि यहोवा को अपने जवान सेवकों पर बहुत भरोसा है। याद कीजिए कि जब यहोवा ने यूसुफ को वे सपने दिखाए, तब वह शायद सिर्फ 17 साल का रहा होगा। आज भी कई जवानों को यूसुफ की तरह यहोवा पर मज़बूत विश्वास है। उन्होंने यहोवा की आज्ञा तोड़ने से इनकार कर दिया, इसलिए उनके साथ अन्याय किया गया और कुछ को तो जेल की सज़ा भी दी गयी।—भज. 110:3.
अन्याय सहना पड़ सकता है। यह भी हो सकता है कि कोई मसीही भाई या बहन हमारे साथ अन्याय करे। ऐसे में अगर हम यहोवा पर भरोसा रखेंगे और उसे अपना मज़बूत चट्टान और गढ़ मानेंगे, तो हम हिम्मत नहीं हारेंगे और उसकी सेवा करना नहीं छोड़ेंगे। (नाओमी और रूत का दुख बरदाश्त से बाहर था
8. नाओमी और रूत के साथ क्या हुआ?
8 एक बार जब यहूदा के इलाके में भयंकर अकाल पड़ा, तो नाओमी और उसका परिवार वहाँ से मोआब देश चले गए और वहाँ परदेसियों की ज़िंदगी जीने लगे। मोआब में उसके पति एलीमेलेक की मौत हो गयी। उसके बाद वह और उसके दो बेटे रह गए। कुछ समय बाद उसके दोनों बेटों ने रूत और ओरपा नाम की दो मोआबी लड़कियों से शादी की। करीब दस साल बाद नाओमी के बेटों की भी मौत हो गयी और उनके कोई बच्चे भी नहीं थे। (रूत 1:1-5) तब वे तीनों औरतें कितनी दुखी हो गयी होंगी। रूत और ओरपा तो दोबारा शादी कर सकती थीं, मगर बुज़ुर्ग नाओमी का क्या होता? कौन उसकी देखभाल करता? वह बिलकुल टूट चुकी थी। उसने फैसला किया कि वह बेतलेहेम लौट जाएगी। उसके साथ रूत भी चली गयी। नाओमी इतनी निराश थी कि उसने कहा, “मुझे नाओमी नहीं, मारा कहो। क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के होते मेरी ज़िंदगी दुखों से भर गयी है।”—रूत 1:7, 18-20.
9. रूत 1:16, 17, 22 के मुताबिक रूत ने नाओमी की कैसे हिम्मत बँधायी?
9 नाओमी कैसे अपने दुख से उबर पायी? यहोवा ने और दूसरे लोगों ने उसकी मदद की और उसका साथ नहीं छोड़ा। मिसाल के लिए, रूत ने उसे अकेला नहीं छोड़ा। वह उसके साथ-साथ रही। (रूत 1:16, 17, 22 पढ़िए।) रूत बेतलेहेम में बहुत मेहनत करती थी। वह नाओमी के लिए और अपने लिए जौ की बालें बीनकर लाती थी। इसलिए लोग देख पाए कि वह नेक और मेहनती है।—रूत 3:11; 4:15.
10. यहोवा ने नाओमी और रूत जैसे ज़रूरतमंद लोगों का कैसे खयाल रखा?
10 यहोवा ने भी नाओमी और रूत का साथ नहीं छोड़ा। उसने उनके जैसे ज़रूरतमंद लोगों के लिए एक कानून बनाया था ताकि उनका भला हो। वह कानून यह था कि जब इसराएली अपनी फसल की कटाई करेंगे, तो वे खेत के किनारे की बालें छोड़ दें ताकि गरीब आकर उन्हें बीनकर ले जाएँ। (लैव्य. 19:9, 10) इस इंतज़ाम की वजह से नाओमी और रूत को किसी के आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
11-12. बोअज़ ने नाओमी और रूत के लिए क्या किया?
11 रूत एक अमीर इसराएली बोअज़ के खेत में बालें बीनती थी। बोअज़ ने देखा कि रूत अपनी सास नाओमी से कितना प्यार करती है और उसकी कितनी देखभाल करती है। रूत का यह अटल प्यार उसके दिल को छू गया। इसलिए बोअज़ ने उनके परिवार की विरासत की ज़मीन छुड़ाने के लिए उसे खरीद ली और रूत से शादी कर ली। (रूत 4:9-13) बोअज़ और रूत का एक बेटा हुआ जिसका नाम ओबेद रखा गया। ओबेद के खानदान में ही राजा दाविद पैदा हुआ। दाविद उसका पोता था।—रूत 4:17.
12 कल्पना कीजिए कि जब नाओमी ने नन्हे ओबेद को अपनी गोद में लिया, तो उसे कितनी खुशी हुई होगी और उसने यहोवा का कितना धन्यवाद किया होगा। नयी दुनिया में जब नाओमी और रूत ज़िंदा होंगी, तो उन्हें और भी खुशियाँ मिलेंगी। वे यह जानकर फूली नहीं समाएँगी कि ओबेद के खानदान से ही वादा किया गया मसीहा यानी यीशु पैदा हुआ।
13. नाओमी और रूत के वाकये से हम क्या सीखते हैं?
13 हम क्या सीखते हैं? जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो हम भी शायद निराश हो जाएँ, यहाँ तक कि अंदर नीति. 17:17.
से बिलकुल टूट जाएँ। हमें लग सकता है कि हमारी मुश्किलें कभी दूर नहीं होंगी। ऐसे वक्त में हमें अपने पिता यहोवा पर पूरा भरोसा रखना चाहिए और अपने मसीही भाई-बहनों के करीब रहना चाहिए। हो सकता है, यहोवा हमारी मुश्किल दूर न करे। उसने नाओमी के पति और बेटों को ज़िंदा करके उसका दुख दूर नहीं किया। मगर जिस तरह उसने नाओमी की मदद की थी उसी तरह मुश्किलें सहने में वह हमारी भी मदद करेगा। वह हमारे मसीही भाई-बहनों को उभार सकता है कि वे मुसीबत की घड़ी में हमारा साथ दें, हमारी मदद करें।—एक लेवी देर होने से पहले सँभल गया
14. एक लेवी किस वजह से बहुत निराश हो गया था?
14 अब आइए भजन 73 के रचयिता की बात करें। वह एक लेवी था और उस जगह सेवा करता था जहाँ यहोवा की उपासना की जाती थी। यह एक अनोखी आशीष थी। फिर भी वह एक वक्त पर बहुत निराश हो गया। वह दुष्ट और मगरूर लोगों को देखकर जलने लगा। ऐसा नहीं है कि वह भी उनकी तरह बुरे काम करना चाहता था। पर उसे यह देखकर जलन होने लगी कि इतने बुरे काम करने पर भी वे कैसे फल-फूल रहे हैं। (भज. 73:2-9, 11-14) उसे ऐसा लग रहा था कि उनकी ज़िंदगी में कोई कमी नहीं है, कोई दुख, कोई चिंता नहीं है। उन्हें देखकर भजन का वह रचयिता इतना निराश हो गया कि उसने कहा, “मैंने बेकार ही अपना मन शुद्ध बनाए रखा। अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अपने हाथ धोए।” अगर वह इसी तरह निराश रहता, तो यहोवा की उपासना करना छोड़ देता।
15. भजन 73:16-19, 22-25 के मुताबिक वह लेवी कैसे सँभल पाया?
15 भजन 73:16-19, 22-25 पढ़िए। इन आयतों के मुताबिक जब वह लेवी “परमेश्वर के शानदार भवन में गया,” तो वह सँभल पाया। वहाँ जब वह यहोवा की उपासना करनेवाले दूसरे लोगों से मिला, तो वह ठंडे दिमाग से सोच पाया और उसके मन को चैन मिला। और उसने प्रार्थना करके यहोवा को अपने मन की बात बतायी। तब उसे एहसास होने लगा कि उसकी सोच कितनी गलत थी और अगर वह यह सोच नहीं बदलेगा, तो यहोवा से दूर जा सकता है। वह यह भी समझ पाया कि दुष्ट लोग भले ही फलते-फूलते नज़र आते हैं, मगर असल में वे “फिसलनेवाली ज़मीन” पर खड़े हैं और उनका “बुरी तरह अंत” होगा। जब उसने यहोवा की सोच अपनायी, तो वह दुष्टों को देखकर जला नहीं, न ही निराश रहा। उसे शांति मिली और वह फिर से खुश रहने लगा। उसने कहा, “[यहोवा] मेरे साथ है तो मुझे धरती पर और किसी की ज़रूरत नहीं।”
16. उस लेवी से हम क्या सीखते हैं?
सभो. 8:12, 13) उनसे जलने से हम निराश होंगे और हम यहोवा से भी दूर जा सकते हैं। अगर कभी आपको बुरे लोगों की खुशहाली देखकर जलन होने लगे, तो आप क्या कर सकते हैं? उस लेवी की तरह परमेश्वर की सलाह मानिए और उन लोगों की संगति करते रहिए जो यहोवा की मरज़ी पूरी करते हैं। अगर आप ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा यहोवा से प्यार करेंगे, तो आप सही मायनों में खुश रहेंगे। और आप उस राह पर बने रहेंगे जिस पर चलकर आपको “असली ज़िंदगी” मिलेगी।—1 तीमु. 6:19.
16 हम क्या सीखते हैं? जो लोग बुरे काम करते हैं, वे शायद फलते-फूलते नज़र आएँ, लेकिन हमें उनसे जलना नहीं चाहिए। उनकी खुशी बस चंद दिनों की है और उन्हें हमेशा की ज़िंदगी नहीं मिलनेवाली। (पतरस अपनी कमज़ोरियों की वजह से निराश हो गया
17. पतरस अपनी किन गलतियों की वजह से निराश हो गया?
17 प्रेषित पतरस बड़ा ही जोशीला इंसान था, मगर वह उतावला भी था। वह कभी-कभी बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देता था या कुछ भी कर बैठता था और बाद में पछताता था। जैसे, एक बार जब यीशु ने अपने प्रेषितों को बताया कि उसे बहुत दुख झेलना पड़ेगा और उसे मार डाला जाएगा, तो पतरस उसे डाँटने लगा और कहने लगा, “तेरे साथ ऐसा कभी नहीं होगा।” (मत्ती 16:21-23) तब यीशु ने उसकी सोच सुधारी। एक बार जब यीशु को गिरफ्तार करने के लिए एक भीड़ आयी, तो पतरस ने उतावला होकर महायाजक के दास का कान काट दिया। (यूह. 18:10, 11) उस वक्त भी यीशु ने पतरस को समझाया कि उसने जो किया वह गलत है। एक बार पतरस ने शेखी मारते हुए कहा कि भले ही दूसरे प्रेषित यीशु को छोड़कर भाग जाएँ, मगर वह कभी ऐसा नहीं करेगा। (मत्ती 26:33) लेकिन उसी रात उसने डर के मारे तीन बार अपने मालिक यीशु को जानने से इनकार कर दिया। तब उसे एहसास हुआ कि वह उतना मज़बूत नहीं है जितना उसने सोचा था। वह बुरी तरह निराश हो गया और “फूट-फूटकर रोने लगा।” (मत्ती 26:69-75) उसने शायद सोचा होगा कि यीशु उसे कभी माफ नहीं करेगा।
18. यीशु ने पतरस की मदद कैसे की ताकि वह सँभल पाए?
18 हालाँकि पतरस अपनी गलती की वजह से निराश यूह. 21:1-3; प्रेषि. 1:15, 16) पतरस कैसे सँभल पाया? पतरस के गलती करने से पहले ही यीशु ने उसके लिए दिल से प्रार्थना की थी कि वह अपना विश्वास न खो दे। और उसने पतरस से कहा था कि जब वह पश्चाताप करके लौट आएगा, तो वह बाकी चेलों के पास जाए और उन्हें मज़बूत करे। यहोवा ने यीशु की प्रार्थना सुनी। बाद में जब यीशु ज़िंदा हुआ, तो वह पतरस के सामने अलग से प्रकट हुआ। उस वक्त उसने ज़रूर पतरस की हिम्मत बँधायी होगी। (लूका 22:32; 24:33, 34; 1 कुरिं. 15:5) और याद कीजिए कि जब प्रेषितों को सारी रात मेहनत करने पर भी मछलियाँ नहीं मिलीं और यीशु उनके सामने प्रकट हुआ, तो उस वक्त भी क्या हुआ। उसने पतरस को यह साबित करने का एक मौका दिया कि वह यीशु से प्यार करता है। यीशु ने अपने प्यारे दोस्त पतरस को माफ कर दिया था और उसे और भी ज़िम्मेदारियाँ सौंपीं।—यूह. 21:15-17.
हो गया था, मगर उसने हार नहीं मानी। बाइबल बताती है कि वह बाद में बाकी प्रेषितों के साथ यहोवा की सेवा करता रहा। (19. जब हम कोई गलती करते हैं, तो भजन 103:13, 14 के मुताबिक यहोवा क्या करता है?
19 हम क्या सीखते हैं? यीशु ने पतरस के साथ जो व्यवहार किया उससे पता चलता है कि वह अपने पिता यहोवा की तरह बहुत दयालु है। इसलिए जब हम गलतियाँ करते हैं, तो हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि यहोवा हमें कभी माफ नहीं करेगा। शैतान चाहता है कि हम ऐसा सोचें। लेकिन सच तो यह है कि यहोवा हमसे प्यार करता है। वह इस बात को समझता है कि हममें कमज़ोरियाँ हैं। इसलिए जब हमसे गलतियाँ हो जाती हैं, तो वह हमें माफ कर देता है। जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तो हमें भी यहोवा की तरह उसे माफ कर देना चाहिए।—भजन 103:13, 14 पढ़िए।
20. अगले लेख में हम क्या जानेंगे?
20 यूसुफ, नाओमी और रूत, लेवी और पतरस के उदाहरणों से हमने सीखा कि “यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है।” (भज. 34:18) यह सच है कि वह हम पर कभी-कभी मुश्किलें आने देता है और उस वक्त शायद हम बहुत निराश हो जाएँ। मगर ऐसे वक्त में भी यहोवा हमें सँभालता है। हम उन मुश्किलों को सह पाते हैं और हमारा विश्वास और भी मज़बूत हो जाता है। (1 पत. 1:6, 7) अगले लेख में हम इस बारे में और जानेंगे कि यहोवा कैसे अपने उन सेवकों को सँभालता है जो अपनी कमज़ोरियों या मुश्किलों की वजह से निराश हो जाते हैं।
गीत 7 यहोवा बल हमारा!
^ पैरा. 5 यूसुफ, नाओमी, रूत, एक लेवी और प्रेषित पतरस कुछ मुश्किल हालात से गुज़रे थे और वे उस वक्त बहुत निराश हो गए थे। इस लेख में हम सीखेंगे कि यहोवा ने कैसे उन्हें दिलासा दिया और उनकी हिम्मत बँधायी। हम यह भी सीखेंगे कि जब हम पर मुश्किलें आती हैं, तो हम उनकी तरह क्या कर सकते हैं। और जिस तरह परमेश्वर ने उनकी मदद की वह हमारी मदद कैसे करेगा।
^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: नाओमी, रूत और ओरपा बहुत निराश और दुखी थीं, क्योंकि उन्होंने अपने-अपने पति को खो दिया था। बाद में जब ओबेद पैदा हुआ, तो रूत और नाओमी बोअज़ के साथ मिलकर बहुत खुश हुए।