अध्ययन लेख 46
क्या आपके “विश्वास की बड़ी ढाल” अच्छी हालत में है?
“विश्वास की बड़ी ढाल उठा लो।”—इफि. 6:16.
गीत 119 हमारा विश्वास पक्का हो!
लेख की एक झलक *
1-2. (क) जैसे इफिसियों 6:16 में बताया गया है, हमें “विश्वास की बड़ी ढाल” की ज़रूरत क्यों है? (ख) हम किन सवालों के जवाब देखेंगे?
अगर आपसे पूछा जाए कि क्या आपके पास “विश्वास की बड़ी ढाल” है, तो आप क्या कहेंगे? बेशक आप ‘हाँ’ कहेंगे। (इफिसियों 6:16 पढ़िए।) लेकिन हमें इस ढाल की ज़रूरत क्यों है? जिस तरह एक बड़ी ढाल एक सैनिक के लगभग पूरे शरीर की हिफाज़त करती है, उसी तरह विश्वास की ढाल भी हमारी रक्षा करती है। यह ढाल इस दुष्ट दुनिया में फैली अनैतिकता, हिंसा और दूसरे बुरे कामों से हमारी हिफाज़त करती है।
2 हम जानते हैं कि हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं और इस दौरान हमारे विश्वास की परख होती रहेगी। (2 तीमु. 3:1) ऐसे में हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हमारे विश्वास की ढाल मज़बूत है या नहीं? हम कैसे इसे अच्छी हालत में रख सकते हैं? आइए इन सवालों के जवाब देखें।
अपनी ढाल की अच्छी तरह जाँच करें
3. सैनिक समय-समय पर क्या करते थे और क्यों?
3 बाइबल के ज़माने में सैनिकों की ढाल पर आम तौर पर चमड़ा लगा होता था। सैनिक समय-समय पर ढाल पर तेल लगाते थे, ताकि चमड़ा खराब न हो और ढाल पर लगे धातु के टुकड़े ज़ंग न खाएँ। जब एक सैनिक की ढाल को मरम्मत की ज़रूरत होती थी, तो वह बिना देर किए उस पर काम करता था। इस तरह वह युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहता था। इस उदाहरण का हमारे विश्वास से क्या नाता है?
4. (क) हमें अपने विश्वास की जाँच क्यों करते रहना चाहिए? (ख) हम यह कैसे कर सकते हैं?
4 हमें भी समय-समय पर अपने विश्वास की ढाल की जाँच करनी चाहिए और उसे अच्छी हालत में रखना चाहिए। इस तरह हम हमेशा लड़ाई के लिए तैयार रहेंगे। बेशक हम सचमुच की लड़ाई तो नहीं लड़ते, मगर मसीही होने इफि. 6:10-12) विश्वास की ढाल को अच्छी हालत में रखने के लिए हमें खुद मेहनत करनी होगी, कोई और हमारे लिए यह काम नहीं कर सकता। हम क्या कर सकते हैं ताकि आज़माइशें आने पर हमारा विश्वास न डगमगाए? सबसे पहले, हमें परमेश्वर से मदद माँगनी चाहिए। फिर हमें उसके वचन की जाँच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि हम उसके मुताबिक विश्वास ज़ाहिर कर रहे हैं या नहीं। (इब्रा. 4:12) बाइबल में लिखा है, “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, बल्कि पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखना।” (नीति. 3:5, 6) इन बातों को ध्यान में रखकर एक ऐसी समस्या के बारे में सोचिए, जो हाल ही में आपके सामने खड़ी हुई थी। हो सकता है, आपको पैसों की बड़ी दिक्कत थी। क्या उस वक्त आपको इब्रानियों 13:5 का खयाल आया जहाँ यहोवा कहता है, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा”? क्या इस वादे से आपका भरोसा बढ़ा कि यहोवा आपको सँभालेगा? अगर हाँ, तो इसका मतलब है कि आपके विश्वास की ढाल मज़बूत है।
के नाते हमारी लड़ाई दुष्ट स्वर्गदूतों से है। (5. अपने विश्वास की जाँच करने पर शायद हमें क्या पता चले?
5 जब हम अपने विश्वास की जाँच करते हैं, तो यह जानकर शायद हमें हैरानी हो कि हमारा विश्वास कमज़ोर होने लगा है। इसकी वजह चिंताएँ, झूठ या निराशा हो सकती है। अगर आपके साथ ऐसा हुआ है, तो आप किस तरह अपना विश्वास मज़बूत कर सकते हैं?
चिंता, झूठ और निराशा से अपनी हिफाज़त करें
6. समझाइए कि कुछ तरह की चिंताएँ अच्छी क्यों होती हैं।
6 कुछ चिंताएँ अच्छी होती हैं जैसे, हमें यहोवा और यीशु को खुश करने की फिक्र होती है। (1 कुरिं. 7:32) अगर हमने कोई बड़ा पाप किया हो, तो हमें यह चिंता सताती है कि हम यहोवा के साथ अपना रिश्ता कैसे ठीक करें। (भज. 38:18) इसके अलावा, हम अपने जीवन-साथी को खुश करने की फिक्र में रहते हैं या फिर हमें अपने परिवारवालों और मसीही भाई-बहनों की खैरियत की चिंता होती है।—1 कुरिं. 7:33; 2 कुरिं. 11:28.
7. (क) बहुत ज़्यादा चिंता करने से हमारा विश्वास कैसे कमज़ोर पड़ सकता है? (ख) जैसे नीतिवचन 29:25 में बताया गया है, हमें इंसानों से क्यों नहीं डरना चाहिए?
7 वहीं दूसरी तरफ, बहुत ज़्यादा चिंता करने से हमारा विश्वास कमज़ोर पड़ सकता है। जैसे, हो सकता है कि हम हर वक्त यह चिंता करें कि हम क्या खाएँगे, क्या पहनेंगे। (मत्ती 6:31, 32) इस चिंता को दूर करने के लिए शायद हम इन चीज़ों को जुटाने में ही अपना पूरा ध्यान लगा दें और धीरे-धीरे हमारे अंदर पैसे का प्यार बढ़ने लगे। अगर ऐसा होता है, तो यहोवा पर हमारा विश्वास कमज़ोर पड़ जाएगा और उसके साथ हमारी दोस्ती टूट जाएगी। (मर. 4:19; 1 तीमु. 6:10) इसके अलावा, शायद हमें यह चिंता भी खायी जाए कि लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं। हम नहीं चाहते कि वे हमारा मज़ाक उड़ाएँ या हमें सताएँ। इस वजह से शायद हम यहोवा से डरने के बजाय इंसानों से डरने लगें। हमारे साथ ऐसा न हो, इसके लिए हमें यहोवा से विश्वास और हिम्मत के लिए गिड़गिड़ाकर बिनती करनी चाहिए।—नीतिवचन 29:25 पढ़िए; लूका 17:5.
8. जब कोई हमसे झूठी बातें कहता है, तो हमें क्या करना चाहिए?
8 शैतान “झूठ का पिता है” और वह यहोवा और भाई-बहनों के बारे में झूठ फैलाता है। (यूह. 8:44) इसके लिए वह उन लोगों का इस्तेमाल करता है, जो परमेश्वर से बगावत करते हैं। ये लोग वेबसाइट, टीवी और अखबारों-पत्रिकाओं के ज़रिए यहोवा के संगठन के बारे में या तो झूठी बातें फैलाते हैं या सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। ये झूठी बातें शैतान के उन “जलते हुए तीरों” में से हैं, जो वह हम पर चलाता है। (इफि. 6:16) अगर कोई हमसे इस तरह की बातें करता है, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें उनकी नहीं सुननी चाहिए! वह इसलिए कि हम यहोवा और अपने भाइयों पर विश्वास करते हैं। दरअसल हमें उन बगावती लोगों से कोई नाता नहीं रखना चाहिए। हमें किसी भी विषय पर या किसी भी वजह से उनसे बहस नहीं करनी चाहिए, फिर चाहे हममें यह जिज्ञासा क्यों न हो कि फलाँ विषय पर उनकी सोच क्या है।
9. निराशा की भावनाओं का हम पर क्या असर हो सकता है?
प्रका. 21:3, 4) निराशा की भावनाएँ हम पर इस कदर हावी हो सकती हैं कि हम हिम्मत हार बैठें और यहोवा की सेवा करना छोड़ दें। (नीति. 24:10) लेकिन ज़रूरी नहीं कि हमारे साथ ऐसा हो।
9 निराशा की भावनाएँ भी हमारा विश्वास कमज़ोर कर सकती हैं। कभी-कभी हम अपनी परेशानियों की वजह से निराश हो जाते हैं। यह सच है कि हमें इन परेशानियों को अनदेखा नहीं करना चाहिए, लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि हम दिन-रात इन्हीं के बारे में सोचते रहें। अगर हम ऐसा करें, तो उन बढ़िया वादों से हमारा ध्यान भटक जाएगा, जो यहोवा ने हमसे किए हैं। (10. एक बहन की चिट्ठी से हम क्या सीखते हैं?
10 अमरीका में रहनेवाली एक बहन का उदाहरण लीजिए, जिसके पति बहुत बीमार रहते हैं। ध्यान दीजिए कि बहन किस तरह अपने पति की देखभाल करते हुए भी अपना विश्वास मज़बूत रख पाती है। उसने विश्व मुख्यालय को एक चिट्ठी में लिखा, “हमारे हालात ऐसे हैं कि कई बार हम तनाव से गुज़रते हैं और निराश हो जाते हैं, फिर भी हम अपनी आशा पर ध्यान लगाए रख पाते हैं। मुझे अपना विश्वास मज़बूत करने के लिए जब-जब सलाह और हिम्मत की ज़रूरत पड़ी, यहोवा ने मेरी मदद की। मैं उसका एहसान कभी नहीं भूल सकती। सच कहूँ तो यहोवा की मदद से ही हम उसकी सेवा में लगे रह पाए हैं और उन परीक्षाओं का सामना कर पाए हैं, जो शैतान हम पर लाता है।” बहन की बातों से हम सीखते हैं कि हम निराशा की भावनाओं पर काबू पा सकते हैं। वह कैसे? हमें याद रखना चाहिए कि जिन मुश्किलों का हम सामना करते हैं, वे दरअसल शैतान की वजह से हैं। हमें इस बात का भी भरोसा रखना चाहिए कि यहोवा मुश्किल घड़ी में हमें दिलासा देगा। यही नहीं, उसने हमारा विश्वास मज़बूत करने के लिए जो भी इंतज़ाम किए हैं, उनकी हमें कदर करनी चाहिए।
11. हमारा विश्वास मज़बूत है या नहीं, यह जानने के लिए हम खुद से क्या पूछ सकते हैं?
11 क्या आपके विश्वास की ढाल अच्छी हालत में है या क्या उसे मरम्मत की ज़रूरत है? यह जानने के लिए खुद से पूछिए, ‘पिछले कुछ महीनों में क्या मैं बहुत ज़्यादा चिंता करने से खुद को रोक पाया हूँ? क्या मैंने परमेश्वर से बगावत करनेवालों की झूठी बातें सुनने और उनसे बहस करने से इनकार किया है? क्या मैं निराशा की भावनाओं से लड़ पाया हूँ?’ अगर इन सवालों का जवाब “हाँ” है, तो इसका मतलब है कि आपके विश्वास की ढाल अच्छी हालत में है। लेकिन सावधान रहिए, शैतान के पास और भी कई हथियार हैं जिनसे वह आप पर वार कर सकता है। आइए उनमें से एक पर ध्यान दें।
सुख-सुविधा की चाहत से अपनी हिफाज़त करें
12. सुख-सुविधा की चाहत क्यों हमारे लिए खतरा बन सकती है?
12 सुख-सुविधा की चाहत से हमारा ध्यान बँट सकता है और हमारा विश्वास कमज़ोर पड़ सकता है। प्रेषित पौलुस ने कहा, “कोई भी सैनिक खुद को दुनिया के कारोबार में नहीं लगाता ताकि वह उसे खुश कर सके जिसने उसे सेना में भरती किया है।” (2 तीमु. 2:4) रोमी सैनिकों को फौज में सेवा करने के अलावा कोई और काम करने की इजाज़त नहीं थी। अगर कोई सैनिक इस कानून को नहीं मानता, तो अंजाम क्या होता?
13. सैनिक खुद को किसी कारोबार में क्यों नहीं लगाते थे?
13 ज़रा इस दृश्य की कल्पना कीजिए: सुबह का वक्त है और सारे सैनिक तलवार चलाने का अभ्यास कर रहे हैं। लेकिन एक सैनिक शहर गया हुआ है। उसने वहाँ खाने की दुकान लगायी है और उसका पूरा दिन वहीं निकल जाता है। शाम को बाकी सैनिक अपने हथियारों की जाँच करते हैं और अपनी तलवार की धार तेज़ करते हैं, मगर वह अगले दिन दुकान लगाने की तैयारी करता है। अगले दिन सुबह-सुबह दुश्मन अचानक सैनिकों की छावनी पर हमला बोल देते हैं। आपको क्या लगता है, कौन दुश्मन से लड़ने के लिए तैयार होगा और अपने सेनापति को खुश करेगा? अगर आप वहाँ होते, तो आप किस सैनिक के साथ सुरक्षित महसूस करते? उसके साथ, जो युद्ध के लिए तैयार है या उसके साथ, जिसका ध्यान बँटा हुआ है?
14. मसीह के सैनिक होने के नाते क्या बात हमारे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है?
14 हम उन अच्छे सैनिकों की तरह होना चाहते हैं और मुख्य लक्ष्य पर अपना ध्यान लगाए रखना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य है, अपने सेनापति यहोवा और मसीह को खुश करना। उनकी मंज़ूरी पाना सबसे ज़्यादा मायने रखता है, इस दुनिया की चीज़ों से भी ज़्यादा। इस वजह से हम अपना समय और अपनी मेहनत यहोवा की सेवा करने और विश्वास की ढाल और दूसरे हथियारों को सही हालत में रखने में लगाते हैं।
15. पौलुस हमें किस बात से खबरदार करता है और क्यों?
15 मसीह के सैनिक होने के नाते हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए। वह इसलिए कि प्रेषित पौलुस हमें खबरदार करता है, ‘जो लोग हर हाल में अमीर बनना चाहते हैं, वे विश्वास से भटक जाते हैं।’ (1 तीमु. 6:9, 10) यहाँ शब्द ‘भटक जाते हैं’ से इशारा मिलता है कि हमारा ध्यान ज़रूरी बातों से हटकर उन चीज़ों को बटोरने में लग सकता है जिनकी हमें ज़रूरत नहीं है। फिर धीरे-धीरे हमारे मन में ‘मूर्खता से भरी और खतरनाक ख्वाहिशें’ पैदा हो सकती हैं। हमें अपने दिल में ऐसी ख्वाहिशों को जगह नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इनके ज़रिए शैतान हमारा विश्वास कमज़ोर कर सकता है।
16. मरकुस 10:17-22 में बतायी घटना को ध्यान में रखकर हमें खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए?
16 मान लीजिए, हमारे पास बहुत पैसे हैं और हम जो चाहे खरीद सकते हैं। ऐसे में जब हम कोई चीज़ खरीदते हैं, फिर चाहे हमें उसकी ज़रूरत न हो, तो क्या इसमें कोई बुराई है? ज़रूरी नहीं। लेकिन हमें खुद से पूछना चाहिए, क्या हमारे पास इतना वक्त और ताकत है कि हम खरीदी हुई चीज़ें इस्तेमाल कर सकें और उनका ध्यान रख सकें? क्या यह खतरा हो सकता है कि हमें अपनी चीज़ों से बहुत लगाव हो जाए? कहीं हम उस नौजवान की तरह तो फैसला नहीं कर रहे हैं, जिसने यीशु का न्यौता ठुकरा दिया और यहोवा की सेवा में आगे बढ़ने का मौका गँवा दिया? (मरकुस 10:17-22 पढ़िए।) अगर हम इस नौबत से बचना चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है कि हम अपनी ज़िंदगी को सादा रखें और यहोवा की मरज़ी पूरी करने में समय दें और मेहनत करें।
विश्वास की ढाल को हमेशा साथ रखिए
17. हमें क्या नहीं भूलना चाहिए?
17 हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारी लड़ाई शैतान और उसके दुष्ट दूतों से है और हमें हर दिन यह लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। (प्रका. 12:17) हमें यह भी याद रखना चाहिए कि विश्वास की अपनी ढाल को अच्छी हालत में रखने के लिए हमें खुद मेहनत करनी होगी, हमारे भाई-बहन हमारे लिए यह काम नहीं कर सकते।
18. पुराने ज़माने में सैनिक अपनी ढाल को हमेशा अपने साथ क्यों रखते थे?
18 पुराने ज़माने में एक सैनिक को युद्ध में साहस दिखाने के लिए सम्मानित किया जाता था। लेकिन अगर वह अपनी ढाल के बगैर घर लौटता, तो यह उसके लिए बेइज़्ज़ती की बात होती। रोमी इतिहासकार टैसीटस का कहना था, “एक सैनिक के लिए इससे बड़े अपमान की बात और कुछ नहीं कि वह युद्ध के मैदान में अपनी ढाल छोड़कर आए।” यही वजह है कि सैनिक किसी भी हाल में अपनी ढाल को हाथ से जाने नहीं देते थे, उसे हमेशा अपने साथ रखते थे।
19. बताइए कि हम विश्वास की ढाल को कैसे हमेशा अपने साथ रख सकते हैं।
19 हम विश्वास की ढाल को कैसे हर वक्त अपने साथ रख सकते हैं? हमें नियमित तौर पर मसीही सभाओं में हाज़िर होना चाहिए और लोगों को यहोवा के नाम और उसके राज के बारे में गवाही देनी चाहिए। (इब्रा. 10:23-25) इसके अलावा, हमें हर दिन बाइबल पढ़नी चाहिए और यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह उसमें दी बातों पर चलने के लिए हमारी मदद करे। (2 तीमु. 3:16, 17) जब हम यह सब करते हैं, तो शैतान का कोई भी हथियार हमें हमेशा का नुकसान नहीं पहुँचा सकता। (यशा. 54:17) “विश्वास की बड़ी ढाल” हमारी रक्षा करेगी। हम भाई-बहनों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर और पूरी हिम्मत के साथ डटे रहेंगे। अपने विश्वास को मज़बूत बनाए रखने के लिए हम हर दिन लड़ते रहेंगे और उसमें जीत हासिल करते जाएँगे। हमारी सबसे बड़ी जीत तब होगी, जब यीशु शैतान और उसका साथ देनेवालों को युद्ध में हराएगा। उस वक्त यीशु के पक्ष में खड़े होना क्या ही सम्मान की बात होगी!—प्रका. 17:14; 20:10.
गीत 118 “हमारा विश्वास बढ़ा”
^ पैरा. 5 युद्ध के दौरान सैनिक हिफाज़त के लिए अपनी ढाल हमेशा अपने साथ रखते थे। हम मसीहियों का विश्वास भी एक ढाल की तरह है, जो हमारी रक्षा करता है। जिस तरह एक ढाल को अच्छी हालत में रखना ज़रूरी होता था, उसी तरह हमें भी अपने विश्वास को मज़बूत बनाए रखना है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि हम “विश्वास की बड़ी ढाल” को कैसे अच्छी हालत में रख सकते हैं।
^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: जब टीवी पर यहोवा के साक्षियों के बारे में झूठी खबर आती है, जो परमेश्वर से बगावत करनेवाले लोग फैलाते हैं, तो एक साक्षी परिवार तुरंत टीवी बंद कर देता है।
^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: बाद में, पारिवारिक उपासना के दौरान पिता बाइबल की मदद से अपने परिवार का विश्वास मज़बूत करता है।