हमें क्यों “बहुत फल पैदा करते” रहना है?
“मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत फल पैदा करते रहो और यह साबित करो कि तुम मेरे चेले हो।”—यूह. 15:8.
1, 2. (क) अपनी मौत से पहले यीशु ने अपने प्रेषितों से क्या बातें कीं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) यह क्यों ज़रूरी है कि हम प्रचार करने की वजहों को याद रखें? (ग) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने अपने प्रेषितों से काफी देर तक बातें कीं और उन्हें भरोसा दिलाया कि वह उनसे बहुत प्यार करता है। उसी मौके पर उसने अंगूर की बेल की मिसाल दी जिसके बारे में हमने पिछले लेख में चर्चा की थी। इस मिसाल के ज़रिए यीशु ने अपने चेलों को बढ़ावा दिया कि वे “बहुत फल पैदा करते” रहें यानी धीरज धरते हुए प्रचार के काम में लगे रहें।—यूह. 15:8.
2 लेकिन यीशु ने सिर्फ यह नहीं बताया कि उन्हें क्या काम करना है बल्कि यह भी बताया कि उन्हें क्यों वह काम करना है। उसने उन्हें प्रचार करते रहने की कुछ वजह बतायीं। यह क्यों ज़रूरी है कि हम उन वजहों को याद रखें? क्योंकि इससे हमारा इरादा मज़बूत होगा कि हम “सब राष्ट्रों को गवाही” देने का काम करते रहें। (मत्ती 24:13, 14) इस लेख में हम बाइबल में दी उन चार वजहों पर गौर करेंगे। हम यह भी देखेंगे कि यहोवा ने हमें कौन-से चार तोहफे दिए हैं जिनकी मदद से हम धीरज धरते हुए फल पैदा कर सकते हैं।
हम यहोवा की महिमा करते हैं
3. (क) यूहन्ना 15:8 के मुताबिक प्रचार करने की सबसे अहम वजह क्या है? (ख) यीशु की मिसाल में अंगूर किस बात को दर्शाते हैं और यह तुलना क्यों सही है?
3 प्रचार करने की सबसे अहम वजह है कि हम यहोवा की महिमा करना चाहते हैं और उसके नाम को पवित्र करना चाहते हैं। (यूहन्ना 15:1, 8 पढ़िए।) अंगूर की बेल की मिसाल में यीशु ने कहा कि यहोवा बागबान है जो अंगूर की खेती करता है। यीशु ने खुद को अंगूर की बेल और अपने चेलों को डालियाँ कहा। (यूह. 15:5) इसका मतलब है कि अंगूर वह फल है जो यीशु के चेले पैदा करते हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो वह फल प्रचार काम है। यीशु ने अपने प्रेषितों से कहा, “मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत फल पैदा करते रहो।” जब बेल में अच्छे अंगूर लगते हैं तो इससे बागबान की तारीफ होती है। उसी तरह, जब हम जी-जान से प्रचार करते हैं, तो इससे यहोवा की तारीफ या महिमा होती है।—मत्ती 25:20-23.
4. (क) हम किन तरीकों से परमेश्वर के नाम को पवित्र करते हैं? (ख) इस सम्मान के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
4 यह सच है कि परमेश्वर का नाम पहले से पूरी तरह पवित्र है, हम उसे और ज़्यादा पवित्र नहीं कर सकते। तो फिर, प्रचार काम से कैसे उसका नाम पवित्र किया जा सकता है? गौर कीजिए कि भविष्यवक्ता यशायाह ने कहा, “याद रखो, सेनाओं का परमेश्वर यहोवा पवित्र है।” (यशा. 8:13) यहाँ याद रखने का मतलब है, यह मानना कि यहोवा का नाम हर नाम से अलग और ऊँचा है साथ ही, दूसरों की मदद करना कि वे भी उस नाम को पवित्र मानें। इस तरह हम यहोवा के नाम को पवित्र करते हैं। (मत्ती 6:9, फु.) मिसाल के लिए, जब हम यहोवा के लाजवाब गुणों के बारे में और इंसानों के लिए उसके मकसद के बारे में दूसरों को सच्चाई बताते हैं, तो वे साफ देख पाते हैं कि शैतान ने यहोवा के बारे में जो कहा वह सब झूठ है। (उत्प. 3:1-5) हम एक और तरीके से यहोवा का नाम पवित्र करते हैं। हम लोगों को यह समझने में मदद देते हैं कि सिर्फ यहोवा ही “महिमा, आदर और शक्ति पाने के योग्य है।” (प्रका. 4:11) रेने * नाम का एक भाई जो 16 साल से पायनियर सेवा कर रहा है, कहता है, “जब मैं सोचता हूँ कि मुझे अपने महान सृष्टिकर्ता के बारे में गवाही देने का क्या ही सम्मान मिला है, तो मेरा दिल एहसान से भर जाता है। इससे मेरे अंदर जोश भर आता है कि मैं प्रचार काम में लगा रहूँ।”
हम यहोवा और उसके बेटे से प्यार करते हैं
5. (क) यूहन्ना 15:9, 10 में प्रचार करने की कौन-सी वजह बतायी गयी है? (ख) यीशु ने किस तरह चेलों को समझाया कि उन्हें धीरज की ज़रूरत होगी?
5 यूहन्ना 15:9, 10 पढ़िए। प्रचार करने की दूसरी वजह है कि हम यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं। (मर. 12:30; यूह. 14:15) यीशु ने अपने चेलों से कहा कि उन्हें ‘उसके प्यार के लायक बने रहना’ चाहिए। यीशु ने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि वह जानता था कि उसका सच्चा चेला बनना आसान नहीं होगा, उन्हें धीरज के गुण की ज़रूरत होगी। इसी बात को समझाने के लिए यीशु ने यूहन्ना 15:9, 10 में ‘बने रहना,’ इन शब्दों पर बार-बार ज़ोर दिया।
6. मसीह के प्यार के लायक बने रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
6 हम मसीह के प्यार के लायक बने रहना चाहते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। लेकिन हम यह कैसे कर सकते हैं? उसकी आज्ञाएँ मानकर। गौर करनेवाली बात है कि यीशु हमसे वही करने को कहता है जो उसने खुद किया था। उसने कहा, “मैं पिता की आज्ञाएँ मानता हूँ और उसके प्यार के लायक बना रहता हूँ।” जी हाँ, यीशु ने हमारे लिए क्या ही बेहतरीन मिसाल रखी!—यूह. 13:15.
7. आज्ञा मानने और प्यार के बीच क्या नाता है?
यूह. 14:21) यीशु को अपने पिता से आज्ञाएँ मिली थीं। तो फिर, जब हम यीशु की आज्ञा मानकर प्रचार करते हैं, तब हम उसके लिए और यहोवा के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं। (मत्ती 17:5; यूह. 8:28) बदले में यहोवा और यीशु भी हमें उनके प्यार के लायक समझते हैं।
7 यीशु ने साफ बताया कि आज्ञा मानने और प्यार के बीच क्या नाता है। उसने कहा, “जिसके पास मेरी आज्ञाएँ हैं और जो उन्हें मानता है, वही मुझसे प्यार करता है।” (हम लोगों को चेतावनी देते हैं
8, 9. (क) प्रचार करने की एक और वजह क्या है? (ख) यहेजकेल 3:18, 19 और 18:23 में दिए यहोवा के शब्द किस तरह प्रचार करते रहने का बढ़ावा देते हैं?
8 प्रचार करने की तीसरी वजह है कि हम लोगों को यहोवा के आनेवाले दिन के बारे में चेतावनी देना चाहते हैं। बाइबल में नूह को “प्रचारक” कहा गया है। (2 पतरस 2:5 पढ़िए।) नूह ने प्रचार करते वक्त आनेवाले विनाश के बारे में चेतावनी भी दी होगी। हम ऐसा क्यों कहते हैं? क्योंकि यीशु ने कहा, “जैसे जलप्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक नूह जहाज़ के अंदर न गया, उस दिन तक लोग खा-पी रहे थे और शादी-ब्याह कर रहे थे और जब तक जलप्रलय आकर उन सबको बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कोई ध्यान न दिया। इंसान के बेटे की मौजूदगी भी ऐसी ही होगी।” (मत्ती 24:38, 39) ज़्यादातर लोगों को नूह के संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी वह यहोवा की तरफ से चेतावनी का संदेश सुनाता रहा।
9 आज हम लोगों को राज का संदेश सुनाते हैं और बताते हैं कि भविष्य में यहोवा इंसानों के लिए क्या करेगा। यहोवा की तरह हम भी दिल से चाहते हैं कि लोग इस संदेश पर ध्यान दें और हमेशा तक ‘जीते रहें।’ (यहे. 18:23) यही नहीं, जब हम घर-घर का प्रचार करते और सरेआम गवाही देते हैं, तो हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को चेतावनी भी देते हैं कि परमेश्वर का राज बहुत जल्द इस दुष्ट दुनिया का नाश करेगा।—यहे. 3:18, 19; दानि. 2:44; प्रका. 14:6, 7.
हम लोगों से प्यार करते हैं
10. (क) मत्ती 22:39 में प्रचार करने की कौन-सी वजह बतायी गयी है? (ख) फिलिप्पी में पौलुस और सीलास ने एक जेलर की मदद कैसे की?
10 प्रचार करते रहने की चौथी वजह है कि हमें लोगों से प्यार है। (मत्ती 22:39) हम जानते हैं कि जब लोगों के हालात बदलते हैं, तो उनका रवैया भी बदल सकता है। गौर कीजिए कि पहली सदी में फिलिप्पी शहर में क्या हुआ। विरोधियों ने पौलुस और सीलास को पकड़कर जेल में डाल दिया। फिर आधी रात को एक बड़ा भूकंप आया जिससे जेल की नींव हिल गयी और जेल के सारे दरवाज़े खुल गए। जेलर को लगा कि सभी कैदी भाग गए और इस डर से वह खुदकुशी करने ही वाला था कि पौलुस ने ज़ोर से पुकारकर कहा, “अपनी जान मत ले।” तब जेलर ने पूछा, “मुझे बताओ, उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?” पौलुस और सीलास ने कहा, “प्रभु यीशु पर विश्वास कर, तब तू . . . उद्धार पाएगा।”—प्रेषि. 16:25-34.
11, 12. (क) जेलर की घटना से हम अपनी सेवा के बारे में क्या सीखते हैं? (ख) हमें क्यों प्रचार करते रहना चाहिए?
11 इस घटना से हम प्रचार के बारे में क्या
सीखते हैं? गौर कीजिए कि भूकंप के बाद ही जेलर ने अपना रवैया बदला और मदद की भीख माँगी। उसी तरह, आज कुछ लोग बाइबल का संदेश नहीं सुनते। लेकिन फिर उनके साथ कुछ ऐसा होता है जिससे शायद उनका रवैया बदल जाए और उन्हें एहसास हो कि उन्हें मदद की ज़रूरत है। हो सकता है, उनकी नौकरी चली गयी हो, उनकी शादी टूट गयी हो, उन्हें पता चला हो कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी है या उनके किसी अज़ीज़ की मौत हो गयी हो। ऐसे में वे ज़िंदगी के मकसद के बारे में सोचने लगते हैं। वे यह भी सोचें, ‘उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?’ तब वे शायद जानना चाहें कि हम आशा का कौन-सा संदेश सुना रहे हैं।12 अगर हम वफादारी से प्रचार करते रहें, तो हम ऐसे लोगों को दिलासा दे पाएँगे। (यशा. 61:1) शारलेट जो 38 साल से पायनियर सेवा कर रही है, कहती है, “आज लोग भटक रहे हैं, उनके पास कोई आशा नहीं। इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि उन्हें खुशखबरी सुनायी जाए।” चौंतीस साल से पायनियर सेवा करनेवाली एक बहन ईवा कहती है, “आज लोग पहले से कहीं ज़्यादा मायूस और हताश हैं। मैं दिल से उनकी मदद करना चाहती हूँ। यही बात मुझे प्रचार करने के लिए उभारती है।” सच, अगर हमें लोगों से प्यार है, तो हम प्रचार करते रहेंगे!
तोहफे जिनसे हम प्रचार में लगे रह पाते हैं
13, 14. (क) यूहन्ना 15:11 में किस तोहफे का ज़िक्र किया गया है? (ख) हमें वह खुशी कैसे मिल सकती है जो यीशु को मिली थी? (ग) यह तोहफा प्रचार में किस तरह हमारी मदद करता है?
13 अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने ऐसे कई तोहफों का ज़िक्र किया जिनकी मदद से उसके प्रेषित धीरज धरते हुए फल पैदा कर सकते हैं। ये तोहफे क्या हैं और ये आज हमारी मदद कैसे कर सकते हैं?
14 एक तोहफा है, खुशी। क्या प्रचार करना हमारे लिए एक बोझ है? बिलकुल नहीं! यीशु ने अंगूर की बेल की मिसाल देने के बाद कहा कि जब हम प्रचार करते हैं, तो हमें वह खुशी मिलती है जो उसे मिली थी। (यूहन्ना 15:11 पढ़िए।) वह कैसे? याद कीजिए, मिसाल में यीशु ने अपनी तुलना अंगूर की एक बेल से की और चेलों की तुलना डालियों से। डालियों को पानी और पोषक तत्त्व तभी मिलता है जब वे बेल से जुड़ी रहती हैं। उसी तरह, हमें खुशी तभी मिल सकती है जब हम यीशु के साथ एकता में रहते हैं और उसके नक्शेकदम पर नज़दीकी से चलते हैं। सच, परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में यीशु को जो खुशी मिली थी, वही खुशी हमें भी मिल सकती है। (यूह. 4:34; 17:13; 1 पत. 2:21) ऐना जो 40 से भी ज़्यादा सालों से पायनियर सेवा कर रही है, कहती है, “जब भी मैं प्रचार में जाती हूँ, तो मैं खुश होकर लौटती हूँ। यह खुशी मेरे अंदर जोश भर देती है और मैं यहोवा की सेवा में लगे रह पाती हूँ।” वाकई, खुशी हममें प्रचार करते रहने का जोश भर देती है, फिर चाहे ज़्यादातर लोग हमारी न सुनें।—मत्ती 5:10-12.
15. (क) यूहन्ना 14:27 में किस तोहफे की बात की गयी है? (ख) यह तोहफा किस तरह हमें प्रचार करते रहने की हिम्मत देता है?
15 दूसरा तोहफा है, शांति। (यूहन्ना 14:27 पढ़िए।) अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात यीशु ने प्रेषितों से कहा, “जो शांति मैं देता हूँ वह मैं तुम्हारे पास छोड़कर जा रहा हूँ।” इस तोहफे की मदद से हम कैसे प्रचार करते रह सकते हैं? प्रचार काम से हम यहोवा और यीशु को खुश करते हैं। यह जानकर हमें शांति मिलती है और यही शांति हमें प्रचार में लगे रहने की हिम्मत देती है। (भज. 149:4; रोमि. 5:3, 4; कुलु. 3:15) आलफ्रेदो जो 45 साल से पायनियर सेवा कर रहा है, कहता है, “यह सच है कि प्रचार करने के बाद मैं बहुत थक जाता हूँ, लेकिन इस काम से मुझे सच में सुकून मिलता है और जीने का मकसद भी।” हम कितने एहसानमंद हैं कि हमें वह शांति मिली है जो हमेशा तक कायम रहती है!
16. (क) यूहन्ना 15:15 में किस तोहफे का ज़िक्र मिलता है? (ख) यीशु के प्रेषित किस तरह उसके दोस्त बने रह सकते थे?
यूह. 15:11-13) इसके बाद यीशु ने कहा, “मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है।” यीशु का दोस्त बनना वाकई एक अनमोल तोहफा है! मगर प्रेषित उसके दोस्त कैसे बने रह सकते थे? यीशु ने समझाया, “जाओ और फल पैदा करते रहो।” (यूहन्ना 15:14-16 पढ़िए।) दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें प्रचार करते रहना था। करीब दो साल पहले यीशु ने अपने प्रेषितों को हिदायत दी थी, “तुम जहाँ-जहाँ जाओ वहाँ यह प्रचार करना, ‘स्वर्ग का राज पास आ गया है।’” (मत्ती 10:7) इसलिए अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने अपने चेलों को बढ़ावा दिया कि जो काम उन्होंने शुरू किया था, वे उसमें लगे रहें। (मत्ती 24:13; मर. 3:14) बेशक यीशु जानता था कि यह करना आसान नहीं होगा। फिर भी, उसे भरोसा था कि वे यह काम कर सकते थे और उसके दोस्त बने रह सकते थे। वह कैसे? एक और तोहफे की मदद से।
16 तीसरा तोहफा है, यीशु के साथ दोस्ती। जब यीशु ने कहा कि वह चाहता था कि उसके प्रेषितों को खुशी मिले, तो उसके बाद उसने समझाया कि उनमें निस्वार्थ प्यार होना ज़रूरी है। (17, 18. (क) यूहन्ना 15:7 में किस तोहफे की बात की गयी है? (ख) इस तोहफे ने किस तरह प्रेषितों की मदद की? (ग) किन तोहफों से आज हमें मदद मिलती है?
17 चौथा तोहफा है, हमारी प्रार्थनाएँ सुनी जाती हैं। यीशु ने अपने प्रेषितों से वादा किया था, “तुम जो चाहो और माँगो, वह तुम्हें दे दिया जाएगा।” (यूह. 15:7, 16) इस वादे से उनका कितना हौसला बढ़ा होगा! * भले ही उस मौके पर वे पूरी तरह समझ नहीं पाए कि यीशु जल्द ही मरनेवाला था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसके जाने के बाद वे अकेले पड़ जाते। यहोवा उनके साथ होता। वह न सिर्फ उनकी प्रार्थनाएँ सुनता बल्कि प्रचार काम में भी उनकी मदद करता और ऐसा ही हुआ। यीशु की मौत के कुछ ही समय बाद प्रेषितों ने यहोवा से बिनती की कि वह उन्हें हिम्मत दे और यहोवा ने उनकी प्रार्थनाएँ सुनीं।—प्रेषि. 4:29, 31.
18 आज भी जब हम प्रचार में लगे रहते हैं, तो हम यीशु के दोस्त बने रह पाते हैं। हम यह भी यकीन रख सकते हैं कि जब प्रचार में मुश्किलें आती हैं और हम यहोवा से मदद माँगते हैं, तो वह हमारी ज़रूर सुनता है। (फिलि. 4:13) हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है और यीशु हमें अपना दोस्त मानता है। इन तोहफों की मदद से हम फल पैदा करते रह सकते हैं।—याकू. 1:17.
19. (क) हमें क्यों प्रचार करते रहना चाहिए? (ख) हम कैसे परमेश्वर का दिया काम पूरा कर पाएँगे?
19 इस लेख में हमने प्रचार करते रहने की चार वजह देखीं। वे हैं, हम यहोवा की महिमा करना चाहते हैं और उसके नाम को पवित्र करना चाहते हैं, हम यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं, हम लोगों को चेतावनी देना चाहते हैं और हमें लोगों से प्यार है। इसके अलावा, हमने चार तोहफों के बारे में भी सीखा। वे हैं, खुशी, शांति, यीशु के साथ दोस्ती और हमारी प्रार्थनाओं का जवाब मिलना। इन तोहफों की मदद से हम यहोवा का दिया काम पूरा कर पाते हैं। जब हम जी-जान से “बहुत फल पैदा करते” हैं, तो यह देखकर यहोवा का दिल बहुत खुश होता है!
^ पैरा. 4 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
^ पैरा. 17 प्रेषितों से बात करते वक्त यीशु ने कई बार उन्हें यकीन दिलाया कि यहोवा उनकी प्रार्थनाओं का जवाब देगा।—यूह. 14:13; 15:7, 16; 16:23.