अध्ययन लेख 22
अच्छे से अध्ययन करना सीखें!
‘पहचानो कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।’—फिलि. 1:10.
गीत 35 ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें पहचानो’
लेख की एक झलक *
1. कुछ लोगों का शायद अध्ययन करने का मन क्यों न करे?
आजकल रोज़ी-रोटी कमाना बहुत मुश्किल हो गया है। हमारे बहुत-से भाई-बहनों को रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कई-कई घंटे काम करना पड़ता है। दूसरे ऐसे हैं, जिनका हर दिन काफी समय काम पर आने-जाने में ही निकल जाता है। कई भाई-बहनों को गुज़ारा चलाने के लिए मेहनत-मज़दूरी करनी पड़ती है। दिन के आखिर तक ये सभी भाई-बहन थककर चूर हो जाते हैं! उनमें इतनी ताकत ही नहीं बचती कि वे अध्ययन करने की सोचें।
2. अध्ययन के लिए आप कब समय निकालते हैं?
2 लेकिन सच तो यह है कि परमेश्वर के वचन और हमारे प्रकाशनों का अध्ययन करना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए हमें हर हाल में समय निकालना चाहिए। यहोवा के साथ हमारा रिश्ता और हमारी हमेशा की ज़िंदगी इसी पर टिकी हुई है! (1 तीमु. 4:15) कुछ लोग हर सुबह जल्दी उठकर अध्ययन करते हैं, क्योंकि उस समय वे तरो-ताज़ा महसूस करते हैं और आस-पास का माहौल शांत होता है। वहीं कुछ लोग रात को थोड़ा समय निकालकर शांत माहौल में अध्ययन और मनन करते हैं।
3-4. जानकारी उपलब्ध कराने के मामले में कौन-से फेरबदल किए गए और क्यों?
3 इस बात से आप भी सहमत होंगे कि अध्ययन के लिए समय निकालना बहुत ज़रूरी है। लेकिन हमें क्या अध्ययन करना चाहिए? आप शायद कहें, ‘इतनी सारी जानकारी आती रहती है कि मेरे लिए सबकुछ पढ़ना बहुत मुश्किल होता है।’ कुछ लोग ऐसे हैं कि जो भी जानकारी आती है, वह सब किसी-न-किसी तरह पढ़ लेते हैं। लेकिन बहुत-से भाई-बहनों के लिए इतना समय निकालना मुश्किल है। शासी निकाय यह बात समझता है। इस वजह से हाल ही में शासी निकाय ने फैसला लिया कि हमारी किताबों-पत्रिकाओं या फिर वेबसाइट पर जितनी जानकारी उपलब्ध करायी जा रही है, वह थोड़ी कम की जाए।
फिलि. 1:10) आइए गौर करें कि आप कैसे तय कर सकते हैं कि कौन-सी बातें ज़्यादा अहमियत रखती हैं और आप अपने निजी अध्ययन से पूरा फायदा कैसे पा सकते हैं।
4 उदाहरण के लिए, अब हम यहोवा के साक्षियों की सालाना किताब नहीं छापते। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि हौसला बढ़ानेवाले कई अनुभव jw.org® वेबसाइट पर और हर महीने JW ब्रॉडकास्टिंग के कार्यक्रम में आते हैं। सजग होइए! और जनता के लिए प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ अब साल में तीन बार ही आती हैं। यह फेरबदल इसलिए नहीं किए गए, ताकि हमें अपने दूसरे कामों के लिए ज़्यादा वक्त मिले। इसके बजाय ये इसलिए किए गए, ताकि हम ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों’ पर और भी ध्यान दे सकें। (अहमियत रखनेवाली बातों को पहली जगह दें
5-6. हमें किन प्रकाशनों का अच्छे से अध्ययन करना चाहिए?
5 ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों में क्या-क्या आता है? हमें हर दिन वक्त निकालकर परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए। हर हफ्ते मंडली को पढ़ने के लिए बाइबल के जो अध्याय दिए जाते हैं, वे कम किए गए हैं, ताकि मनन करने और खोजबीन करने के लिए हमारे पास ज़्यादा समय हो। हमें इन अध्यायों को पढ़कर ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि इनका इस तरह अध्ययन करना चाहिए कि बाइबल की बातें हमारे दिल को छू जाएँ और हम यहोवा के और भी करीब आएँ।—भज. 19:14.
6 हमें और किन प्रकाशनों का अच्छे से अध्ययन करना चाहिए? सभा में पढ़ी जानेवाली प्रहरीदुर्ग और मंडली बाइबल अध्ययन में पढ़े जानेवाले प्रकाशन का हमें अच्छे से अध्ययन करना है। साथ ही, हफ्ते के बीच की सभा में चर्चा की जानेवाली दूसरी जानकारी की भी हमें तैयारी करनी चाहिए। हमें जनता के लिए प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, उनके हर अंक पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
7. अगर हम वेबसाइट पर और ब्रॉडकास्टिंग में सभी लेख और वीडियो पढ़ या देख नहीं पाते, तो क्या हमें निराश होना चाहिए?
7 आप शायद कहें, ‘हाँ, वह तो ठीक है। लेकिन हमारी वेबसाइट jw.org पर और JW ब्रॉडकास्टिंग में जो ढेर सारे लेख और वीडियो आते हैं, उसके बारे में क्या? इतनी सारी जानकारी कैसे पढ़ूँ?’ एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। आप एक दावत में गए हैं और वहाँ तरह-तरह का ढेर सारा लज़ीज़ खाना रखा गया है। आप शायद हर चीज़ न खा पाएँ। मगर आप कुछ चीज़ों का मज़ा ज़रूर लेंगे। उसी तरह, हमारी वेबसाइट पर और ब्रॉडकास्टिंग में जितनी जानकारी दी जाती है, वह सब अगर आप पढ़ या देख नहीं पाते, तो निराश मत होइए। जितना आपसे हो सकता है, उतना पढ़िए और देखिए। अब आइए जानें कि अध्ययन करने का क्या मतलब है और उससे आपको ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा कैसे हो सकता है।
अध्ययन करने में मेहनत लगती है!
8. (क) आप कौन-से कदम उठाकर प्रहरीदुर्ग का अध्ययन कर सकते हैं? (ख) ऐसा करने से आपको क्या फायदा होगा?
8 अध्ययन करने का मतलब है, किसी जानकारी को ध्यान से पढ़ना, ताकि आप उससे कोई ज़रूरी बात सीख सकें। इसका मतलब यह नहीं है कि आप जानकारी फटाफट पढ़ लें और जवाबों पर निशान लगा लें। उदाहरण के लिए, जब आप प्रहरीदुर्ग अध्ययन की तैयारी करते हैं, तो सबसे पहले लेख की एक झलक पर नज़र डालिए, जो शुरू में दी होती है। फिर लेख के शीर्षक, उपशीर्षकों और दोहराने के लिए सवालों पर गौर कीजिए। इसके बाद पूरा लेख धीरे-धीरे और ध्यान से पढ़िए। उस वाक्य पर खास ध्यान दीजिए, जिससे अकसर पता चलता है कि पैराग्राफ में क्या बताया गया है। यह वाक्य आम तौर पर हर पैराग्राफ का पहला वाक्य होता है। लेख पढ़ते वक्त सोचिए कि हर पैराग्राफ उपशीर्षक से और लेख के मुख्य विषय से कैसे जुड़ा है। अगर आपको किसी शब्द का मतलब पता नहीं है या
किसी मुद्दे पर आप खोजबीन करना चाहते हैं और उसे अच्छी तरह समझना चाहते हैं, तो उसे लिख लीजिए।9. (क) प्रहरीदुर्ग का अध्ययन करते वक्त हमें आयतों पर खास ध्यान क्यों और कैसे देना चाहिए? (ख) जैसे यहोशू 1:8 में बताया गया है, आयतें पढ़ने के साथ-साथ हमें और क्या करना चाहिए?
9 प्रहरीदुर्ग अध्ययन दरअसल बाइबल का अध्ययन होता है, इसलिए आयतों पर ध्यान दीजिए, खासकर उन आयतों पर, जो मंडली में चर्चा के दौरान पढ़ी जाती हैं। आयतों में उन शब्दों पर खास ध्यान दीजिए, जो पैराग्राफ के मुख्य मुद्दे से जुड़े हैं। इतना ही नहीं, आयतें पढ़ते वक्त उन पर मनन कीजिए और सोचिए कि उन्हें आप अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं।—यहोशू 1:8 पढ़िए।
10. इब्रानियों 5:14 को ध्यान में रखते हुए यह क्यों ज़रूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों को अध्ययन और खोजबीन करना सिखाएँ?
10 जब पारिवारिक उपासना की बात आती है, तो माता-पिता चाहते हैं कि हर हफ्ते इसमें बच्चों को मज़ा आए और कुछ हद तक यह सही भी है। माता-पिताओं को हमेशा यह सोचकर रखना चाहिए कि वे पारिवारिक उपासना में क्या करेंगे। वे चाहे तो महीने का ब्रॉडकास्टिंग कार्यक्रम देख सकते हैं या कभी-कभी कुछ खास कर सकते हैं, जैसे नूह का जहाज़ बनाना। लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि माता-पिता को हर हफ्ते कुछ-न-कुछ खास करना है। उन्हें अपने बच्चों को यह भी सिखाना है कि अध्ययन कैसे किया जाता है। वे उन्हें सिखा सकते हैं कि सभाओं की तैयारी कैसे करनी है या स्कूल में उठनेवाली किसी समस्या को लेकर खोजबीन कैसे करनी है। (इब्रानियों 5:14 पढ़िए।) अगर बच्चे घर पर अध्ययन करना सीखेंगे, तो मंडली की सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में वे अच्छे से ध्यान दे पाएँगे, जहाँ हमेशा वीडियो नहीं दिखाए जाते। बेशक यह बच्चों की उम्र और उनके स्वभाव पर निर्भर करता है कि आप उनके साथ कितनी देर अध्ययन करेंगे।
11. यह क्यों ज़रूरी है कि हम अपने बाइबल विद्यार्थियों को गहराई से अध्ययन करना सिखाएँ?
11 हमारे बाइबल विद्यार्थियों को भी सीखना है कि अध्ययन कैसे किया जाता है। शुरू-शुरू में जब वे बाइबल अध्ययन की या मंडली की सभाओं की तैयारी करते हैं, तो शायद वे सिर्फ जवाबों पर निशान लगाएँ और हम यह देखकर खुश होते हैं। लेकिन हमें अपने विद्यार्थियों को खोजबीन करना और गहराई से अध्ययन करना भी सिखाना है। फिर जब उनके सामने कोई समस्या खड़ी होगी, तो भाई-बहनों से पूछने के बजाय वे खुद हमारी किताबों-पत्रिकाओं में खोजबीन करके समझ पाएँगे कि उन्हें क्या करना है।
कोई लक्ष्य रखकर अध्ययन कीजिए
12. अध्ययन के मामले में हम कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?
12 अगर आपको अध्ययन करना पसंद नहीं है, तो शायद आप सोचें, ‘क्या मुझे कभी अध्ययन करने में
मज़ा आएगा?’ ज़रूर आएगा। शुरू-शुरू में थोड़ी देर के लिए अध्ययन कीजिए, फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाइए। मन में कोई लक्ष्य रखकर अध्ययन कीजिए। यह सच है कि अध्ययन करने का हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य है, यहोवा के करीब आना। लेकिन हम दूसरे छोटे-छोटे लक्ष्य भी रख सकते हैं। जैसे, किसी सवाल का जवाब ढूँढ़ना या अपनी किसी समस्या के बारे में खोजबीन करना।13. (क) एक नौजवान कौन-से कदम उठाकर अपने विश्वास के बारे में बता सकता है? समझाइए। (ख) कुलुस्सियों 4:6 में दी सलाह आप कैसे लागू कर सकते हैं?
13 क्या आप स्कूल में पढ़नेवाले नौजवान हैं? शायद आपकी क्लास के सभी बच्चे विकासवाद को मानते हों। आपका मन तो करता होगा कि आप उन्हें बताएँ कि बाइबल के हिसाब से इंसान को परमेश्वर ने बनाया है। लेकिन शायद आप ऐसा करने से झिझकते हों। तो क्यों न आप इसी विषय पर अध्ययन करें? ऐसा करने के आपके दो लक्ष्य हो सकते हैं: (1) अपना यह यकीन पक्का करना कि सबकुछ परमेश्वर ने बनाया है और (2) अपने विश्वास के बारे में दूसरों को अच्छी तरह समझाना। (रोमि. 1:20; 1 पत. 3:15) सबसे पहले खुद से पूछिए, ‘मेरी क्लास के बच्चे किस वजह से विकासवाद को मानते हैं?’ फिर हमारे प्रकाशनों में खोजबीन कीजिए। अपने विश्वास के बारे में दूसरों को समझाना शायद उतना मुश्किल न हो, जितना आपको लगता है। बहुत-से बच्चे विकासवाद को बस इसलिए मानते हैं कि कोई बड़ा व्यक्ति, जिसकी वे इज़्ज़त करते हैं, ऐसा मानता है। अगर आप तर्क करने के लिए एक-दो दलीलें खोज निकालें, तो आप उन बच्चों को अच्छी तरह समझा पाएँगे, जो वाकई सच्चाई जानना चाहते हैं।—कुलुस्सियों 4:6 पढ़िए।
जानने की इच्छा पैदा कीजिए
14-16. (क) अगर आप बाइबल की किसी किताब के बारे में ज़्यादा नहीं जानते, तो आप क्या कर सकते हैं? (ख) पैराग्राफ में दी आयतों से आप आमोस की किताब को कैसे अच्छी तरह समझ सकते हैं? (“ बाइबल अध्ययन बनाएँ मज़ेदार!” बक्स भी देखें।)
14 मान लीजिए, कुछ समय बाद सभाओं में बाइबल की किसी नयी किताब से चर्चा होगी, जो इब्रानी शास्त्र की आखिरी 12 किताबों में से एक है। हो सकता है कि उस किताब के बारे में आप ज़्यादा कुछ न जानते हों। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? सबसे पहले उस किताब के बारे में जानने की इच्छा पैदा कीजिए। यह आप कैसे कर सकते हैं?
15 खुद से पूछिए, ‘इस किताब के लेखक के बारे में मैं क्या जानता हूँ? वह कौन था? कहाँ का रहनेवाला था? और क्या काम करता था?’ उस लेखक के बारे में जानने से हम समझ पाएँगे कि उसने अपनी किताब में क्यों फलाँ शब्द या उदाहरण इस्तेमाल किए। बाइबल पढ़ते वक्त ऐसे शब्दों पर ध्यान दीजिए जिनसे आपको लेखक के स्वभाव के बारे में पता चलता है।
16 इसके बाद यह जानने की कोशिश कीजिए कि वह किताब कब लिखी गयी थी। इसके लिए आप पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद में पीछे की तरफ “बाइबल की किताबों की सूची” देख सकते हैं। इसके अलावा, आप अतिरिक्त लेख क6 में भविष्यवक्ताओं और राजाओं का चार्ट देख सकते हैं। जिस किताब के बारे में आप अध्ययन कर रहे हैं, अगर वह भविष्यवाणियों के बारे में है, तो यह भी जानने की कोशिश कीजिए कि उस समय हालात कैसे थे। उस किताब के लेखक ने लोगों में कौन-सा रवैया सुधारने या किन बुरे कामों को रोकने की कोशिश की? उसके ज़माने में और कौन रहता था? बातों को सही-सही जानने के लिए शायद आपको बाइबल की दूसरी किताबों में भी खोजबीन करनी पड़े। उदाहरण के लिए, भविष्यवक्ता आमोस के दिनों में कैसे हालात थे, यह जानने के लिए आप आमोस 1:1 में दी संबंधित आयतें देख सकते हैं, जो हमें 2 राजा और 2 इतिहास की किताबों में ले जाती हैं। इसके अलावा आप चाहें तो होशे की किताब में देख सकते हैं, क्योंकि शायद होशे भी आमोस के दिनों में जीया था। इस तरह बाइबल की अलग-अलग किताबों में देखने से आप अच्छी तरह समझ पाएँगे कि आमोस के दिनों में कैसे हालात थे।—2 राजा 14:25-28; 2 इति. 26:1-15; होशे 1:1-11; आमो. 1:1.
बारीक जानकारी पर ध्यान दीजिए
17-18. पैराग्राफ में बताए उदाहरण देकर या अपने निजी अध्ययन से कोई उदाहरण देकर समझाइए कि बारीक जानकारी पर ध्यान देने से बाइबल अध्ययन कैसे मज़ेदार हो सकता है।
17 जब आप बाइबल पढ़ते हैं, तो इस मकसद से पढ़िए कि आज आप कुछ नया सीखेंगे। मान लीजिए, आप जकरयाह की किताब का अध्याय 12 पढ़ रहे हैं, जिसमें मसीहा की मौत के बारे में भविष्यवाणी की गयी है। (जक. 12:10) आयत 12 में आप पढ़ते हैं कि “नातान के घराने का परिवार” मसीहा की मौत पर भारी शोक मनाएगा। यह बारीक जानकारी पढ़कर आगे बढ़ने के बजाय आप रुककर खुद से पूछते हैं, ‘नातान के घराने का मसीहा से क्या ताल्लुक है? क्या इस बारे में और जानने का कोई ज़रिया है?’ आप थोड़ी और तहकीकात करते हैं। आप ध्यान देते हैं कि उस आयत में एक संबंधित आयत है, 2 शमूएल 5:13, 14. उस आयत से आपको पता चलता है कि नातान राजा दाविद का एक बेटा था। वहाँ एक और संबंधित आयत लूका 3:23, 31 है। उससे आपको मालूम होता है कि यीशु की माँ मरियम नातान के वंश से थी, इसलिए यीशु नातान का वंशज हुआ। (लूका 3:23 में “यूसुफ एली का” पर दिया अध्ययन नोट देखें।) यह जानकर आपकी दिलचस्पी और बढ़ जाती है! अब तक आपको पता था कि यीशु दाविद का वंशज है। (मत्ती 22:42) लेकिन दाविद के 20 से भी ज़्यादा बेटे थे, इसलिए जकरयाह ने साफ-साफ बताया कि उसके किस बेटे का घराना यीशु की मौत पर मातम मनाएगा। क्या यह जानकर आपको हैरानी नहीं होती?
18 एक और उदाहरण लीजिए। लूका के पहले अध्याय में आप पढ़ते हैं कि जिब्राईल स्वर्गदूत मरियम के पास आता है और उसके होनेवाले बेटे के बारे में यह ऐलान करता है, “वह महान होगा और परम-प्रधान का बेटा कहलाएगा और यहोवा परमेश्वर उसके पुरखे दाविद की राजगद्दी उसे देगा। वह राजा बनकर याकूब के घराने पर हमेशा तक राज करेगा।” (लूका 1:32, 33) शायद आप जिब्राईल के संदेश के पहले भाग पर ध्यान दें, वह यह कि यीशु “परम-प्रधान का बेटा” कहलाएगा। लेकिन जिब्राईल यह भी भविष्यवाणी करता है कि यीशु ‘राजा बनकर राज करेगा।’ इस वजह से आप खुद से पूछते हैं, ‘जिब्राईल के ये शब्द सुनकर मरियम ने क्या समझा होगा? क्या उसने यह सोचा होगा कि यीशु राजा हेरोदेस या उसके किसी वारिस की जगह इसराएल का राजा बनेगा?’ अगर यीशु राजा बनता, तो इसका मतलब होता कि मरियम राजमाता हो जाती और उसका परिवार शाही दरबार में रहता। मगर बाइबल में दर्ज़ मरियम के शब्दों से ऐसा कोई इशारा नहीं मिलता कि उसके मन में ऐसे खयाल आए हों। बाइबल में यह भी नहीं बताया गया है कि मरियम ने परमेश्वर के राज में ऊँचा ओहदा पाने की गुज़ारिश की हो, जैसी गुज़ारिश यीशु के दो चेलों ने की थी। (मत्ती 20:20-23) इस बारीक जानकारी से हमारा यह यकीन और बढ़ जाता है कि मरियम सच में बहुत नम्र थी!
19-20. जैसे याकूब 1:22-25 में और 4:8 में बताया गया है, अध्ययन करते वक्त हमारे कौन-से लक्ष्य होने चाहिए?
19 आइए हम हमेशा याद रखें कि परमेश्वर के वचन का और हमारे प्रकाशनों का अध्ययन करने का सबसे अहम लक्ष्य है, यहोवा के और करीब आना। हम यह भी अच्छी तरह जानना चाहते हैं कि हम ‘किस तरह के इंसान’ हैं और हमें कहाँ बदलाव करना है ताकि यहोवा हमसे खुश हो। (याकूब 1:22-25; 4:8 पढ़िए।) इस वजह से हर बार अध्ययन करने से पहले हमें यहोवा से पवित्र शक्ति माँगनी चाहिए। हमें उससे बिनती करनी चाहिए कि वह जानकारी को अच्छी तरह समझने में और यह देखने में हमारी मदद करे कि हमें कहाँ सुधार करना है।
20 हमारी दुआ है कि हम सब परमेश्वर के उस वफादार सेवक की तरह हों, जिसके बारे में भजन के एक लेखक ने कहा, “वह यहोवा के कानून से खुशी पाता है, दिन-रात उसका कानून धीमी आवाज़ में पढ़ता है। . . . वह आदमी अपने हर काम में कामयाब होगा।”—भज. 1:2, 3.
गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा
^ पैरा. 5 यहोवा हमें देखने, पढ़ने और अध्ययन करने के लिए भरपूर मात्रा में जानकारी देता है। आप कैसे तय कर सकते हैं कि आपको क्या अध्ययन करना चाहिए? इस मामले में यह लेख आपकी मदद करेगा। इसमें कुछ अच्छे सुझाव भी दिए जाएँगे कि आप अपने अध्ययन से ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा कैसे पा सकते हैं।
^ पैरा. 61 तसवीर के बारे में: माता-पिता अपने बच्चों को सिखा रहे हैं कि उन्हें हर हफ्ते होनेवाले प्रहरीदुर्ग अध्ययन की तैयारी कैसे करनी चाहिए।
^ पैरा. 63 तसवीर के बारे में: एक भाई बाइबल के एक लेखक आमोस के बारे में खोजबीन कर रहा है। वही भाई बाइबल पढ़ते वक्त जिन बातों के बारे में मनन और कल्पना करता है, उनकी तसवीरें पीछे की तरफ दिखायी गयी हैं।