मेहमान-नवाज़ी—कितनी अच्छी और ज़रूरी!
“बिना कुड़कुड़ाए एक-दूसरे की मेहमान-नवाज़ी किया करो।”—1 पत. 4:9.
गीत: 50, 20
1. पहली सदी में मसीहियों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
ईसवी सन् 62 और 64 की बात है। प्रेषित पतरस उन मसीहियों को एक चिट्ठी लिखता है, ‘जो पुन्तुस, गलातिया, कप्पदूकिया, एशिया और बितूनिया में फैले हुए थे और प्रवासियों की तरह रह रहे थे।’ (1 पत. 1:1) ये भाई-बहन अलग-अलग जगहों से आए थे। वे ‘परीक्षाओं की आग’ यानी ज़ुल्मों का सामना कर रहे थे और उन्हें हौसले और मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। यही नहीं, वे बहुत ही नाज़ुक वक्त में जी रहे थे। पतरस ने लिखा, “सब बातों का अंत पास आ गया है।” जी हाँ, यहूदी व्यवस्था का अंत होनेवाला था। यह चिट्ठी लिखने के 10 साल के अंदर ही यरूशलेम का नाश हो गया। उस तनाव-भरे वक्त से गुज़रने में किस बात ने पहली सदी के मसीहियों की मदद की?—1 पत. 4:4, 7, 12.
2, 3. पतरस ने क्यों भाई-बहनों की मेहमान-नवाज़ी करने का बढ़ावा दिया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
2 पतरस ने खासकर एक बात पर ज़ोर दिया। उसने कहा, “एक-दूसरे की मेहमान-नवाज़ी किया करो।” (1 पत. 4:9) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “मेहमान-नवाज़ी” किया गया है उसका शाब्दिक मतलब है, “अजनबियों से लगाव रखना या उन पर कृपा करना।” वहाँ के भाई-बहन एक-दूसरे के लिए अजनबी नहीं थे, फिर भी पतरस ने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे “एक-दूसरे की” मेहमान-नवाज़ी करें। इससे उन्हें क्या फायदा हुआ?
3 मेहमान-नवाज़ी करने से वे एक-दूसरे के और भी करीब आए। आपके बारे में क्या? क्या आपके साथ ऐसा हुआ है कि किसी ने आपको अपने घर बुलाया हो और आपने उसके साथ अच्छा समय बिताया? या आपने किसी को अपने घर बुलाया हो और उसके बाद आपकी उससे अच्छी दोस्ती हो गयी? दरअसल भाई-बहनों से जान-पहचान बढ़ाने का एक बढ़िया तरीका है, उनकी मेहमान-नवाज़ी करना। पतरस के दिनों में जैसे-जैसे हालात बदतर होते जा रहे थे, मसीहियों के लिए ज़रूरी था कि वे एक-दूसरे के और भी करीब आएँ। इन “आखिरी दिनों” में हमें भी अपने भाई-बहनों के करीब रहना चाहिए।—4. इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
4 इस लेख में हम इन सवालों पर चर्चा करेंगे: हम किस तरह “एक-दूसरे की” मेहमान-नवाज़ी कर सकते हैं? मेहमान-नवाज़ी करने में कौन-सी रुकावटें आ सकती हैं और हम उन्हें कैसे पार कर सकते हैं? हम अच्छे मेहमान कैसे बन सकते हैं?
मेहमान-नवाज़ी करने के मौके
5. मसीही सभाओं में आप किस तरह दूसरों का आदर-सत्कार कर सकते हैं?
5 सभाओं में: यहोवा और उसका संगठन हमें सभाओं में आने का बुलावा देते हैं। हम चाहते हैं कि सभाओं में आनेवाले हर व्यक्ति को लगे कि उसका स्वागत किया गया है। (रोमि. 15:7) नए लोग भी यहोवा के मेहमान हैं इसलिए हमें उनका भी स्वागत करना चाहिए, फिर चाहे उनका पहनावा या रंग-रूप जैसा भी हो। (याकू. 2:1-4) अगर आप देखते हैं कि सभा में कोई व्यक्ति अकेला है, तो क्या आप उसे अपने साथ बैठने के लिए कह सकते हैं? उसे अच्छा लगेगा जब आप उसे बताएँगे कि कार्यक्रम किस बारे में है या फिर पढ़ी जानेवाली आयतें ढूँढ़ने में उसकी मदद करेंगे। जी हाँ, “मेहमान-नवाज़ी करने” में यह भी शामिल है कि हम सभा में आनेवाले लोगों का आदर-सत्कार करें।—रोमि. 12:13.
6. हमें सबसे बढ़कर किसकी मेहमान-नवाज़ी करनी चाहिए?
6 चाय या खाने पर बुलाइए: बाइबल के ज़माने में लोग अकसर दूसरों को अपने घर खाने पर बुलाकर मेहमान-नवाज़ी करते थे। इस तरह वे दिखाते थे कि वे अपने मेहमानों के दोस्त बनना चाहते थे और उनके साथ शांति का रिश्ता बनाना चाहते थे। (उत्प. 18:1-8; न्यायि. 13:15; लूका 24:28-30) हमें सबसे बढ़कर किसकी मेहमान-नवाज़ी करनी चाहिए? मंडली के भाई-बहनों की। जैसे-जैसे यह व्यवस्था बिगड़ती जा रही है, हमें अपने भाई-बहनों की और भी ज़रूरत होगी और मुश्किल घड़ी में एक-दूसरे का साथ देना होगा। दिलचस्पी की बात है कि 2011 में शासी निकाय की तरफ से एक घोषणा की गयी कि अब से अमरीका के बेथेल परिवार का प्रहरीदुर्ग अध्ययन शाम 6:45 पर नहीं बल्कि 6:15 पर शुरू होगा। यह फेरबदल क्यों किया गया? घोषणा में बताया गया था कि सभा जल्दी खत्म होने से बेथेल के भाई-बहनों को एक-दूसरे को अपने कमरों में बुलाने या एक-दूसरे के यहाँ जाने के ज़्यादा मौके मिलेंगे। दूसरे शाखा दफ्तरों में कुछ ऐसा ही फेरबदल किया गया। इस तरह बेथेल परिवार के सदस्य एक-दूसरे को और भी अच्छी तरह जान पाए हैं।
7, 8. मंडली में भाषण देने आए भाइयों की हम किस तरह मेहमान-नवाज़ी कर सकते हैं?
7 कभी-कभी दूसरी मंडली का कोई भाई, सर्किट निगरान या फिर कुछ मौकों पर बेथेल का कोई प्रतिनिधि हमारे यहाँ भाषण देने आता है। क्या हम इन भाइयों की मेहमान-नवाज़ी कर सकते हैं? (3 यूहन्ना 5-8 पढ़िए।) ऐसा करने का एक तरीका है, उन्हें अपने घर चाय या खाने पर बुलाना।
8 अमरीका में रहनेवाली एक बहन याद करती है, “कई सालों से मैं और मेरे पति अलग-अलग वक्ताओं और उनकी पत्नियों को अपने घर बुलाते आए हैं।” वह बताती है कि हर बार उनका विश्वास मज़बूत हुआ है, साथ ही उन्हें बहुत मज़ा भी आया। क्या मेहमान-नवाज़ी करने का उन्हें कोई अफसोस है? बहन कहती है, “हमें कोई अफसोस नहीं।”
9, 10. (क) किन लोगों को हमें शायद लंबे समय तक ठहराना पड़े? (ख) जिनके घर छोटे हैं, क्या वे भी दूसरों को अपने यहाँ ठहरा सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
9 लंबे समय तक रुकनेवाले मेहमान: बाइबल के ज़माने में लोग कभी-कभी मुसाफिरों को अपने यहाँ ठहराते भी थे। (अय्यू. 31:32; फिले. 22) आज भी हमें ऐसा करने की ज़रूरत पड़ सकती है। जब सर्किट निगरान मंडली का दौरा करने आते हैं, तो उन्हें अकसर ठहरने की एक जगह की ज़रूरत होती है। यही नहीं, संगठन के स्कूलों के विद्यार्थियों और निर्माण स्वयंसेवकों के लिए भी रुकने की जगह चाहिए होती है। उन लोगों के बारे में क्या जिन्हें कुदरती आफत की वजह से बेघर होना पड़ा है? जब तक उनका घर दोबारा नहीं बन जाता, उन्हें रहने की एक जगह चाहिए होगी। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि जिनके घर बड़े हैं, वे ही उन्हें अपने यहाँ ठहराएँगे। हो सकता है, उन्होंने पहले भी कई बार ज़रूरतमंद भाई-बहनों को अपने घर ठहराया हो। लेकिन क्या आप अपने यहाँ किसी को ठहरा सकते हैं, फिर चाहे आपका घर छोटा ही क्यों न हो?
10 दक्षिण कोरिया में एक भाई के यहाँ संगठन के स्कूल के कुछ विद्यार्थी ठहरे थे। वह बताता है, “शुरू-शुरू में, मैं उन्हें अपने यहाँ ठहराने से झिझक रहा था क्योंकि हमारी नयी-नयी शादी हुई थी और हमारा घर भी छोटा था। लेकिन जब हमने ऐसा किया तो हमें बहुत खुशी मिली। एक नए जोड़े के नाते हम देख पाए कि अगर पति-पत्नी साथ मिलकर यहोवा की सेवा में लक्ष्य हासिल करते हैं, तो वे कितने खुश रह पाते हैं!”
11. हमें क्यों नए भाई-बहनों की मेहमान-नवाज़ी करनी चाहिए?
11 मंडली में आए नए भाई-बहन: हो सकता है, दूसरे इलाके की मंडली से कुछ भाई-बहन या कोई परिवार आपके इलाके में आकर बस जाए। वे शायद आपकी मंडली की मदद करने आए हों या फिर वे पायनियर हों जिन्हें आपकी मंडली में भेजा गया है। नयी जगह में बसना उनके लिए आसान नहीं। उन्हें नए इलाके, नयी मंडली और कभी-कभी तो नयी भाषा या संस्कृति में खुद को ढालना पड़ता है। क्या आप ऐसे भाई-बहनों को अपने यहाँ चाय या खाने पर बुला सकते हैं या फिर उनके साथ कहीं घूमने जा सकते हैं? इससे वे नए दोस्त बना पाएँगे और नए हालात में खुद को ढाल पाएँगे।
12. कौन-सा अनुभव दिखाता है कि मेहमान-नवाज़ी करने के लिए हमें ढेरों तैयारियाँ करने की ज़रूरत नहीं?
12 मेहमान-नवाज़ी करने के लिए यह ज़रूरी नहीं कि आप बड़ी-बड़ी तैयारियाँ करें। (लूका 10:41, 42 पढ़िए।) एक भाई उन दिनों को याद करता है जब उसे और उसकी पत्नी को पहली बार मिशनरी के तौर पर नयी जगह भेजा गया था। वह कहता है, “उस वक्त हम जवान थे। हमें ज़्यादा तजुरबा नहीं था और हमें घर की बहुत याद आती थी। एक शाम मेरी पत्नी को घरवालों की बहुत याद आ रही थी और मेरे तसल्ली देने से भी कोई खास फायदा नहीं हुआ। फिर करीब साढ़े सात बजे किसी ने हमारा दरवाज़ा खटखटाया। एक बाइबल विद्यार्थी दरवाज़े पर खड़ी थी और वह हमारे लिए तीन संतरे लायी थी। वह दरअसल हम नए मिशनरियों का स्वागत करने आयी थी। हमने उसे अंदर बुलाया और पानी पिलाया। फिर हमने चाय और गरमा-गरम चॉकलेट ड्रिंक बनायी। हमें स्वाहिली भाषा नहीं पता थी और उस विद्यार्थी को अँग्रेज़ी नहीं आती थी।” फिर भी भाई बताता है कि इस अनुभव ने उनकी मदद की कि वे वहाँ के भाई-बहनों से दोस्ती करें और ऐसा करने से उन्हें ढेरों खुशियाँ मिलीं।
कोई भी बात आपको मेहमान-नवाज़ी करने से न रोके
13. मेहमान-नवाज़ी करने के क्या फायदे होते हैं?
13 क्या आप कभी मेहमान-नवाज़ी करने से पीछे हटे हैं? अगर हाँ, तो आपने एक बढ़िया मौका हाथ से जाने दिया है। आपने उन लोगों के साथ अच्छे पल बिताने का मौका गँवा दिया जो आपके पक्के दोस्त बन सकते थे। याद रखिए, मेहमान-नवाज़ी करने से हम अकेलेपन से लड़ सकते हैं। तो फिर, एक मसीही मेहमान-नवाज़ी करने से क्यों पीछे हट सकता है? आइए इसकी कुछ वजहों पर ध्यान दें।
14. अगर मेहमान-नवाज़ी करने के लिए हमारे पास समय और ताकत नहीं है, तो हमें क्या करना चाहिए?
14 समय और ताकत: यहोवा के लोग व्यस्त रहते हैं और उन पर कई ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। इसलिए शायद कुछ मसीही सोचें कि हमारे पास समय और ताकत ही कहाँ है कि हम मेहमान-नवाज़ी करें? क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं? अगर हाँ, तो शायद आपको अपने रोज़मर्रा के कामों में फेरबदल करने की ज़रूरत हो ताकि आप दूसरों को अपने घर बुला सकें या उनके यहाँ जा सकें। यह क्यों इतना ज़रूरी है? क्योंकि बाइबल गुज़ारिश करती है कि हम मेहमान-नवाज़ी करें। (इब्रा. 13:2) मेहमान-नवाज़ी करना एक भला और ज़रूरी काम है। लेकिन इसके लिए शायद आपको कम अहमियत रखनेवाले कामों से समय निकालना होगा।
15. कुछ लोगों को क्यों लगता है कि मेहमान-नवाज़ी करना उनके बस की बात नहीं?
15 आप अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं: क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप मेहमान-नवाज़ी करना चाहते थे, लेकिन आपको लगा कि ऐसा करना आपके बस में नहीं? शायद आप स्वभाव से शर्मीले हों और सोचें, ‘मैं मेहमानों से क्या बातें करूँगा, वे तो उकता जाएँगे।’ या फिर शायद आपको लगे कि आप इतने अमीर नहीं कि दूसरे भाई-बहनों की तरह अच्छी खातिरदारी कर पाएँ। लेकिन याद रखिए, मेहमान-नवाज़ी करने के लिए ज़रूरी नहीं कि आपका घर आलीशान हो। अगर आपका घर साफ-सुथरा है और आप मिलनसार हैं, तो मेहमानों को आपके यहाँ आने में खुशी होगी।
16, 17. अगर मेहमानों को लेकर आपको कुछ ज़्यादा ही चिंता है, तो आप क्या कर सकते हैं?
16 अगर मेहमानों को लेकर आपको ज़रूरत-से-ज़्यादा चिंता होने लगती है, तो याद रखिए कि ऐसा कई भाई-बहनों के साथ होता है। ब्रिटेन में रहनेवाला एक प्राचीन कबूल करता है, “मेहमानों के लिए तैयारियाँ करने में कुछ हद तक चिंता होती है। लेकिन चिंता से कहीं बढ़कर हमें खुशी और फायदा होता है, ठीक जैसे यहोवा की सेवा से जुड़े दूसरे कामों से होता है। मेहमानों के साथ कॉफी पीने और बातें करने में मुझे खूब मज़ा आता है।” मेहमानों में दिलचस्पी लेना हमेशा अच्छा होता है। (फिलि. 2:4) ज़्यादातर लोगों को अपनी ज़िंदगी के अनुभव बताना अच्छा लगता है। हम उनके अनुभव तभी सुन पाएँगे जब हम उनके साथ फुरसत के पल बिताएँगे। एक और प्राचीन लिखता है, “मैं मंडली के दोस्तों को अपने घर बुलाता हूँ और उनके साथ वक्त बिताता हूँ। वे अपने बारे में हमें बताते हैं खासकर कि वे सच्चाई में कैसे आए। इस तरह मैं उन्हें और अच्छी तरह जान पाया हूँ।” अगर आप मेहमानों में दिलचस्पी लेंगे, तो बेशक आपके साथ वक्त बिताकर उन्हें बहुत खुशी होगी।
17 एक पायनियर बहन, जिसके घर पर अकसर संगठन के स्कूलों के विद्यार्थी आकर रुकते थे, बताती है, “शुरू-शुरू में मुझे चिंता थी कि मेरे घर में ज़्यादा सुविधाएँ नहीं हैं और मेरे यहाँ फर्नीचर भी पुराना है। लेकिन फिर स्कूल के एक शिक्षक की पत्नी ने मुझसे एक बात कही जिससे मुझे बहुत हौसला मिला। उसने बताया कि सर्किट काम में वे कई भाई-बहनों के यहाँ ठहरते हैं। लेकिन उनका यादगार हफ्ता वह होता है जब वे किसी ऐसे मसीही के यहाँ रुकते हैं जो उनकी तरह यहोवा की सेवा को पहली जगह देता है और सादगी-भरी ज़िंदगी जीता है। उसकी बात सुनकर मुझे मम्मी की याद आ गयी। वह हम बच्चों से अकसर कहती थी, ‘उस घर में सादा खाना खाना ज़्यादा अच्छा है जहाँ प्यार हो।’” (नीति. 15:17) तो फिर मेहमानों के लिए आपका प्यार सबसे ज़्यादा मायने रखता है, इसलिए बाकी चीज़ों के बारे में आपको हद-से-ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं।
18, 19. मेहमान-नवाज़ी करने से हम कैसे दूसरों के बारे में अपनी गलत सोच सुधार पाएँगे?
18 आप दूसरों के बारे में क्या सोचते हैं: क्या आपकी मंडली में ऐसा कोई है जो आपको चिढ़ दिलाता है? अगर आप उसके बारे में अपनी गलत सोच नहीं सुधारेंगे, तो यह सोच आपमें और ज़ोर पकड़ती जाएगी। फिर आपको उसका स्वभाव खटकने लगेगा और शायद इस वजह से आप उसे अपने घर न बुलाएँ। या यह भी हो सकता है कि किसी भाई या बहन ने आपका दिल दुखाया हो और आपके लिए यह भुलाना मुश्किल हो।
19 बाइबल बताती है कि मेहमान-नवाज़ी करने से आप दूसरों के साथ, यहाँ तक कि अपने दुश्मनों के साथ भी रिश्ता सुधार सकते हैं। (नीतिवचन 25:21, 22 पढ़िए।) अगर आप उन्हें घर बुलाएँगे, तो उनके साथ आपका मन-मुटाव कम हो सकता है और आपके बीच शांति कायम हो सकती है। फिर धीरे-धीरे आप उनमें वही अच्छे गुण देख पाएँगे जो यहोवा ने उनमें देखे थे और उन्हें सच्चाई की तरफ खींचा था। (यूह. 6:44) जब आप प्यार की खातिर किसी ऐसे व्यक्ति को घर बुलाते हैं जिसने यह उम्मीद नहीं की थी कि आप उसे बुलाएँगे, तो सोचिए इससे क्या हो सकता है? इससे एक अच्छी दोस्ती की शुरूआत हो सकती है। लेकिन सवाल है कि आप कैसे जान सकते हैं कि प्यार की वजह से ही आप मेहमान-नवाज़ी करते हैं? एक तरीका है, यह देखना कि क्या आप फिलिप्पियों 2:3 में दी सलाह को मान रहे हैं या नहीं। वहाँ लिखा है, “नम्रता से दूसरों को खुद से बेहतर समझो।” जी हाँ, हमें यह देखने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारे भाई-बहन किन मायनों में हमसे बेहतर हैं। वे शायद विश्वास, धीरज और दूसरे मसीही गुण दिखाने में हमसे बेहतर हों। जब हम उनके बढ़िया गुणों पर ध्यान देंगे, तो उनके लिए हमारा प्यार गहरा होगा और उनका आदर-सत्कार करना आसान होगा।
एक अच्छा मेहमान बनिए
20. न्यौता कबूल करने के बाद हमें क्यों अपने वादे पर बने रहना चाहिए और यह हम किस तरह कर सकते हैं?
20 भजन के एक लेखक दाविद ने पूछा, “हे यहोवा, कौन तेरे तंबू में मेहमान बनकर रह सकता है?” (भज. 15:1) इसके बाद, उसने उन गुणों के बारे में बताया जो परमेश्वर अपने मेहमानों में देखना चाहता है। एक गुण है, अपने वादे का पक्का होना। ऐसे इंसान के बारे में कहा गया है, “वह अपना वादा निभाता है, फिर चाहे उसे नुकसान सहना पड़े।” (भज. 15:4) अगर हम कोई न्यौता कबूल करते हैं, तो हमें बिना किसी ठोस कारण के उसे रद्द नहीं कर देना चाहिए। हमारे मेज़बान ने शायद काफी तैयारियाँ की हों और अगर हम उसके यहाँ न जाएँ, तो उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। (मत्ती 5:37) कभी-कभी ऐसा होता है कि कुछ लोग एक न्यौता स्वीकार करते हैं, फिर उसे ठुकरा देते हैं। वह इसलिए कि उन्हें कोई और न्यौता मिलता है जो उन्हें पहलेवाले से बढ़िया लगता है। लेकिन क्या ऐसा करके वे पहले मेज़बान के लिए प्यार और आदर ज़ाहिर कर रहे होंगे? हमारा मेज़बान हमारे लिए जो कुछ करता है, उसके लिए हमें एहसानमंद होना चाहिए। (लूका 10:7) लेकिन तब क्या जब किसी वाजिब कारण से हमें कोई न्यौता रद्द करना होता है? ऐसे में मेज़बान का लिहाज़ करते हुए हमें जल्द-से-जल्द उसे बता देना चाहिए।
21. अच्छे मेहमान बनने के लिए इलाके का दस्तूर मानना क्यों ज़रूरी है?
21 इसके अलावा, मेहमान-नवाज़ी को लेकर हर जगह का दस्तूर अलग होता है जिसे मानना ज़रूरी है। जैसे, कुछ संस्कृतियों में बिन बुलाए मेहमानों का स्वागत किया जाता है। मगर दूसरी संस्कृतियों में, किसी के घर जाने से पहले उन्हें इत्तला करना ज़रूरी होता है। कुछ जगहों में मेज़बान अपने मेहमानों को सबसे बढ़िया खाना देते हैं और जो कुछ बचता है वह परिवार के सदस्यों के लिए होता है। वहीं कुछ जगहों में मेहमान और मेज़बान साथ मिलकर खाते हैं। कहीं-कहीं ऐसा भी होता है कि मेहमान खाने-पीने की कुछ चीज़ें अपने साथ लाते हैं। मगर कुछ इलाकों में मेज़बान नहीं चाहते कि मेहमान अपने साथ कुछ लाएँ। कुछ संस्कृतियों में पहला न्यौता ठुकराना बहुत बुरा माना जाता है। वहीं दूसरी संस्कृतियों में पहली और दूसरी बार न्यौता ठुकराना सही माना जाता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए हमें वही करना चाहिए जिससे हमारे मेज़बान को खुशी हो।
22. “एक-दूसरे की मेहमान-नवाज़ी” करना क्यों इतना ज़रूरी है?
22 पतरस ने कहा, “सब बातों का अंत पास आ गया है।” (1 पत. 4:7) बहुत जल्द, हम एक ऐसे बड़े संकट का सामना करनेवाले हैं जो दुनिया में पहले कभी नहीं आया। जैसे-जैसे यह व्यवस्था बदतर होती जा रही है, हमें अपने भाई-बहनों से और भी ज़्यादा प्यार करना चाहिए। पतरस की यह सलाह आज और भी ज़बरदस्त तरीके से हम पर लागू होती है: “एक-दूसरे की मेहमान-नवाज़ी किया करो।” (1 पत. 4:9) जी हाँ, मेहमान-नवाज़ी करना हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है और इससे हमें खुशी मिलती है। यह दस्तूर न सिर्फ आज बल्कि हमेशा-हमेशा तक कायम रहेगा।