बपतिस्मा—मसीहियों के लिए एक ज़रूरी कदम
‘बपतिस्मा तुम्हें बचा रहा है।’—1 पत. 3:21.
गीत: 7, 6
1, 2. (क) जब बच्चा बपतिस्मा लेने की इच्छा ज़ाहिर करता है, तो कुछ माता-पिता कैसा महसूस करते हैं? (ख) बपतिस्मे के उम्मीदवारों से क्यों पूछा जाता है कि उन्होंने यहोवा को अपना समर्पण किया है या नहीं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
मारीया नाम की एक छोटी लड़की बपतिस्मा लेनेवाले उम्मीदवारों के साथ खड़ी है और उसके माता-पिता उसे देख रहे हैं। फिर वक्ता उम्मीदवारों से दो सवाल करता है। मारीया साफ और बुलंद आवाज़ में उन सवालों के जवाब “हाँ” में देती है। इसके बाद उसका बपतिस्मा होता है।
2 मारीया के माता-पिता को अपनी बेटी पर नाज़ है कि उसने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया और बपतिस्मा लिया। लेकिन कुछ समय पहले उसकी माँ को कुछ चिंताएँ सता रही थीं। जैसे, क्या मारीया बपतिस्मा लेने के लिए बहुत छोटी तो नहीं? क्या वह इस फैसले की गंभीरता को समझती है? क्या उसे बपतिस्मा लेने के लिए थोड़ा और इंतज़ार करना चाहिए? कई माता-पिताओं के मन में ऐसे सवाल उठते हैं जब उनका बच्चा बपतिस्मा लेने की इच्छा ज़ाहिर करता है। (सभो. 5:5) ऐसे सवाल उठना वाजिब है क्योंकि समर्पण और बपतिस्मा एक मसीही के जीवन का सबसे अहम फैसला होता है।—बक्स, “ क्या आपने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया है?” देखिए।
3, 4. (क) प्रेषित पतरस ने किस तरह समझाया कि बपतिस्मा लेना ज़रूरी है? (ख) पतरस ने बपतिस्मे की तुलना नूह के जहाज़ बनाने के काम से क्यों की?
3 प्रेषित पतरस ने बपतिस्मे की तुलना नूह के दिनों में जहाज़ बनाने के काम से की। उसने कहा, “यह घटना बपतिस्मे की निशानी है जो आज तुम्हें . . . बचा रहा है।” (1 पतरस 3:20, 21 पढ़िए।) जहाज़ इस बात का साफ सबूत था कि नूह तन-मन से परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना चाहता था। नूह ने विश्वास रखते हुए वे सारे काम किए जो यहोवा ने उससे कहे थे। इसी विश्वास की वजह से यहोवा ने उसे और उसके परिवार को जलप्रलय से बचाया। लेकिन पतरस हमें क्या सिखाना चाह रहा था?
4 जब लोगों ने जहाज़ देखा तो वे जान गए कि नूह को परमेश्वर पर विश्वास है। उसी तरह आज जब लोग किसी को बपतिस्मा लेते देखते हैं, तो वे जान जाते हैं कि उसे मसीह के बलिदान और उसके ज़िंदा होने पर विश्वास है, इसीलिए उसने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया है। नूह की तरह बपतिस्मा लेनेवाले भी परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं और उसका दिया काम करते हैं। यहोवा ने जिस तरह नूह को जलप्रलय से बचाया था, उसी तरह वह बपतिस्मा पाए अपने वफादार सेवकों को दुष्ट दुनिया के नाश से बचाएगा। (मर. 13:10; प्रका. 7:9, 10) तो इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यहोवा को अपना जीवन समर्पित करना और बपतिस्मा लेना कितना ज़रूरी है! अगर कोई बपतिस्मा लेने में टाल-मटोल करता है, तो वह हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका गँवा सकता है।
5. इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
5 हमने जैसा देखा कि बपतिस्मा लेना एक गंभीर बात है। इसलिए हमें इन तीन सवालों के जवाब जानना ज़रूरी है: (1) बाइबल बपतिस्मा लेने के बारे में क्या बताती है? (2) बपतिस्मे से पहले एक इंसान को कौन-से कदम उठाने चाहिए? और
(3) अपने बच्चे या बाइबल विद्यार्थी को सिखाते वक्त आपको क्यों बपतिस्मे की अहमियत को ध्यान में रखना चाहिए?बाइबल बपतिस्मे के बारे में क्या बताती है?
6, 7. (क) यूहन्ना ने जो बपतिस्मा दिया, उसका क्या मतलब था? (ख) किसका बपतिस्मा सबसे अनोखा था और क्यों?
6 बाइबल में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला वह पहला शख्स था जिसने लोगों को बपतिस्मा दिया। (मत्ती 3:1-6) बपतिस्मा लेने के लिए लोग उसके पास क्यों आते थे? उनका बपतिस्मा इस बात की निशानी था कि उन्होंने अपने पापों का प्रायश्चित किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे यह कबूल कर रहे थे कि उन्होंने मूसा का कानून तोड़ा है और उन्हें इस बात का गहरा अफसोस है। फिर यूहन्ना को एक ऐसा बपतिस्मा देने का सम्मान मिला जो सबसे अनोखा था। उसने परमेश्वर के परिपूर्ण बेटे यीशु को बपतिस्मा दिया। (मत्ती 3:13-17) यीशु ने कभी कोई पाप नहीं किया था और उसे पश्चाताप करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। (1 पत. 2:22) तो फिर उसने बपतिस्मा क्यों लिया? बपतिस्मा लेकर उसने दिखाया कि अब से वह यहोवा की मरज़ी पूरी करेगा।—इब्रा. 10:7.
7 इसके बाद जब यीशु प्रचार करने लगा तो उसके चेले भी बपतिस्मा देने लगे। (यूह. 3:22; 4:1, 2) उस वक्त भी लोगों ने यह दिखाने के लिए बपतिस्मा लिया कि उन्होंने अपने पापों का प्रायश्चित किया है। लेकिन यीशु की मौत और उसके ज़िंदा होने के बाद जो लोग मसीही बने, उन्हें किसी और वजह से बपतिस्मा लेना था।
8. (क) ज़िंदा किए जाने के बाद यीशु ने क्या आज्ञा दी? (ख) मसीहियों के बपतिस्मे का क्या मतलब होता है?
8 ईसवी सन् 33 में दोबारा ज़िंदा होने के बाद यीशु 500 से ज़्यादा लोगों के सामने प्रकट हुआ। इस भीड़ में आदमी, औरत और शायद बच्चे भी शामिल थे। ऐसा मालूम होता है कि इसी मौके पर उसने कहा था, “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है।” (मत्ती 28:19, 20; 1 कुरिं. 15:6) यीशु ने आज्ञा दी कि वे लोगों को चेला बनाएँ और बपतिस्मा दें। इससे पता चलता है कि अगर कोई उसका “जुआ” उठाना चाहता है यानी उसका चेला बनना चाहता है, तो उसके लिए बपतिस्मा लेना ज़रूरी है। (मत्ती 11:29, 30) लेकिन जो अब से यीशु के चेले यानी मसीही बनते, उनके बपतिस्मे का क्या मतलब होता? उनका बपतिस्मा यह दिखाता कि वे परमेश्वर के मकसद में यीशु की भूमिका को कबूल करते हैं। जी हाँ, जब एक व्यक्ति यीशु की भूमिका कबूल करता है, तभी वह बपतिस्मा ले सकता है और इस बपतिस्मे को यहोवा मंज़ूर करता है। बाइबल बताती है कि पहली सदी में जब लोगों ने समझा कि बपतिस्मा लेना कितना ज़रूरी है, तो उन्होंने बिना देर किए बपतिस्मा लिया। उन्होंने कोई टाल-मटोल नहीं की।—प्रेषि. 2:41; 9:18; 16:14, 15, 32, 33.
देर मत कीजिए
9, 10. हम बपतिस्मे के बारे में इथियोपिया के आदमी और शाऊल से क्या सीखते हैं?
9 प्रेषितों 8:35, 36 पढ़िए। इथियोपिया के एक आदमी पर गौर कीजिए जिसने यहूदी धर्म अपनाया था। एक बार वह यरूशलेम के मंदिर में उपासना करने के बाद घर लौट रहा था। उसी दौरान यहोवा के स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस को उसके पास भेजा ताकि वह उसे “यीशु के बारे में खुशखबरी” सुनाए। खुशखबरी सुनकर वह आदमी समझ गया कि यीशु को प्रभु कबूल करना कितना ज़रूरी है। फिर उसने क्या किया? उसने वही किया जो यहोवा मसीहियों से चाहता है, उसने बिना देर किए बपतिस्मा लिया।
10 अब शाऊल नाम के एक यहूदी आदमी पर गौर कीजिए। वह यहूदी राष्ट्र से था जो यहोवा को समर्पित था। लेकिन यहूदी यहोवा के वफादार नहीं प्रेषि. 9:17, 18; गला. 1:14) शाऊल आगे चलकर प्रेषित पौलुस कहलाया। ध्यान दीजिए, जब पौलुस ने समझा कि परमेश्वर के मकसद में यीशु की एक अहम भूमिका है, तो उसने बिना देर किए बपतिस्मा लिया।—प्रेषितों 22:12-16 पढ़िए।
रहे जिस वजह से उन्हें एक राष्ट्र के तौर पर ठुकरा दिया गया। शाऊल को लगता था कि यहूदी सही तरीके से परमेश्वर की उपासना कर रहे हैं, इसलिए उसने मसीहियों पर ज़ुल्म ढाए। लेकिन एक दिन यीशु ने, जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया था, खुद शाऊल से बात की। इस पर शाऊल ने क्या किया? उसने खुशी-खुशी हनन्याह नाम के एक मसीही चेले की मदद स्वीकार की। इसके बाद बाइबल बताती है, “उसने उठकर बपतिस्मा लिया।” (11. (क) क्या बात बाइबल विद्यार्थियों को बपतिस्मा लेने के लिए उभारती है? (ख) जब कोई बपतिस्मा लेता है तो हमें कैसा लगता है?
11 आज भी कुछ ऐसा ही होता है। कई जवान और बुज़ुर्ग सच्चाई सीखते हैं। इससे उनके दिल में विश्वास और सच्चाई के लिए कदर बढ़ती है और वे बिना देर किए यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते हैं और बपतिस्मा लेते हैं। हर सम्मेलन और अधिवेशन में बपतिस्मे का भाषण खास होता है। इस मौके पर यहोवा के साक्षियों को यह देखकर खुशी होती है कि बाइबल विद्यार्थियों ने सच्चाई अपनायी है और बपतिस्मा लेने का फैसला किया है। माता-पिता भी अपने बच्चों को ऐसा करते देख खुशी से फूले नहीं समाते। सन् 2017 के सेवा साल के दौरान 2,84,000 से ज़्यादा लोगों ने बपतिस्मा लेकर अपना समर्पण ज़ाहिर किया। (प्रेषि. 13:48) इससे पता चलता है कि ये नए लोग अच्छी तरह समझते हैं कि मसीहियों के लिए बपतिस्मा लेना कितना ज़रूरी है। लेकिन एक बाइबल विद्यार्थी को बपतिस्मा लेने से पहले कौन-से कदम उठाने चाहिए?
12. बपतिस्मा लेने से पहले बाइबल विद्यार्थी को कौन-से कदम उठाने चाहिए?
12 एक बाइबल विद्यार्थी को सबसे पहले सही ज्ञान लेना चाहिए। उसे यह मालूम होना चाहिए कि परमेश्वर कौन है, उसने धरती और इंसानों को किस मकसद से बनाया है और लोगों के उद्धार के लिए उसने क्या इंतज़ाम किया है। (1 तीमु. 2:3-6) इससे उसका विश्वास बढ़ेगा और यह विश्वास उसे उभारेगा कि वह परमेश्वर की आज्ञाएँ माने और उन कामों को छोड़ दे जिनसे यहोवा नफरत करता है। (प्रेषि. 3:19) ऐसा करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि यहोवा ऐसे इंसान का समर्पण कबूल नहीं करता जो गलत कामों में लगा रहता है। (1 कुरिं. 6:9, 10) इसके अलावा, बाइबल विद्यार्थी को सभाओं में हाज़िर होना चाहिए और नियमित तौर पर प्रचार करने और चेला बनाने का काम करना चाहिए। यीशु ने कहा था कि उसके सच्चे चेले यही काम करेंगे। (प्रेषि. 1:8) जब एक विद्यार्थी ये सारे कदम उठाता है तभी वह प्रार्थना में यहोवा को अपना जीवन समर्पित कर सकता है और बपतिस्मा ले सकता है।
विद्यार्थी के सामने बपतिस्मे का लक्ष्य रखिए
13. बाइबल सिखानेवालों को क्यों याद रखना चाहिए कि बपतिस्मा लेना बेहद ज़रूरी है?
13 जब हम अपने बच्चों या बाइबल विद्यार्थियों के साथ अध्ययन करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि यीशु का सच्चा चेला बनने के लिए बपतिस्मा लेना बेहद ज़रूरी है। इसलिए वक्त आने पर हम उन्हें समर्पण और बपतिस्मे की अहमियत समझाने से पीछे नहीं हटेंगे। हम दिल से चाहते हैं कि हमारे बच्चे और बाइबल विद्यार्थी सच्चाई में तरक्की करें और बपतिस्मा लें।
14. हम क्यों बपतिस्मा लेने के लिए किसी पर दबाव नहीं डालते?
14 बेशक बपतिस्मा लेने के लिए बच्चे या बाइबल विद्यार्थी पर न तो दबाव डाला जाना चाहिए और न ही ज़ोर-ज़बरदस्ती की जानी चाहिए। यहोवा हममें से किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता कि हम उसकी सेवा करें। (1 यूह. 4:8) जब हम दूसरों को सिखाते हैं तो हम उन्हें समझाएँगे कि यहोवा के साथ उनका एक निजी रिश्ता होना चाहिए। फिर जब वे यहोवा को जानने लगेंगे, उनके दिल में कदर बढ़ेगी और वे मसीह के चेले बनना चाहेंगे, तब वे खुद-ब-खुद बपतिस्मा लेने के लिए आगे आएँगे।—2 कुरिं. 5:14, 15.
15, 16. (क) बपतिस्मा लेने के लिए क्या कोई तय उम्र है? समझाइए। (ख) अगर किसी दूसरे धर्म में पहले से विद्यार्थी का बपतिस्मा हुआ है, तो साक्षी बनने के लिए उसे फिर से बपतिस्मा क्यों लेना होगा?
15 बपतिस्मा लेने के लिए कोई तय उम्र नहीं होती। सभी विद्यार्थी एक-जैसे नहीं होते, कोई जल्दी तरक्की करता है तो किसी को वक्त लगता है। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने जवानी में बपतिस्मा लिया और अब अपने बुढ़ापे में भी वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। दूसरे ऐसे हैं जिन्होंने बुढ़ापे में सच्चाई सीखी और बपतिस्मा लिया। इनमें से कुछ की उम्र तो 100 से भी ज़्यादा है!
16 एक औरत, जिसने दूसरे धर्मों में कई बार बपतिस्मा लिया था, यहोवा के साक्षियों के साथ अध्ययन करने लगी। उसने अपने शिक्षक से पूछा कि क्या मुझे फिर से बपतिस्मा लेना होगा? उसके शिक्षक ने उसे बाइबल से कई आयतें दिखायीं। वह औरत समझ गयी कि बाइबल बपतिस्मा लेने के बारे में क्या कहती है। हालाँकि वह करीब 80 साल की थी फिर भी उसने बिना देर किए बपतिस्मा लिया। हम इस अनुभव से क्या सीखते हैं? यही कि जब एक व्यक्ति यहोवा की मरज़ी के बारे में सही ज्ञान लेने के बाद बपतिस्मा लेता है, तो वही बपतिस्मा यहोवा को मंज़ूर होता है। अगर किसी दूसरे धर्म में पहले से हमारा बपतिस्मा हुआ है, तो यहोवा का साक्षी बनने के लिए हमें फिर से बपतिस्मा लेना होगा।—प्रेषितों 19:3-5 पढ़िए।
17. अपने बपतिस्मे के दिन एक व्यक्ति को किस बात पर मनन करना चाहिए?
17 एक व्यक्ति के लिए उसके बपतिस्मे का दिन बहुत खुशी का दिन होता है। लेकिन साथ ही, इस मौके पर उसे मनन करना चाहिए कि समर्पण और बपतिस्मा कितनी गंभीर बात है। एक सच्चे मसीही को अपने समर्पण के मुताबिक जीने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। बाइबल बताती है कि जो यीशु के चेले बनते हैं, वे ‘अब से खुद के लिए नहीं जीते, बल्कि उसके लिए जीते हैं जो उनके लिए मरा और ज़िंदा किया गया।’—2 कुरिं. 5:15; मत्ती 16:24.
18. अगले लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
18 जैसा कि हमने इस लेख में सीखा, सच्चा मसीही बनने का फैसला करना एक गंभीर बात है। इसीलिए मारीया की मम्मी खुद से वे सवाल करने लगी, जिनके बारे में लेख की शुरूआत में बताया गया है। अगर आप एक माता-पिता हैं, तो आप शायद खुद से पूछें, ‘क्या मेरा बच्चा सच में बपतिस्मे के लिए तैयार है? क्या वह यहोवा को इतनी अच्छी तरह जानता है कि उसे अपना जीवन समर्पित करे? क्या बपतिस्मा लेने से पहले मेरे बच्चे को अच्छी शिक्षा और नौकरी करनी चाहिए? अगर बपतिस्मे के बाद उससे कोई गंभीर पाप हो जाता है तब क्या?’ इन सवालों के बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे और देखेंगे कि कैसे मसीही माता-पिता बपतिस्मे के बारे में सही नज़रिया रख सकते हैं।