पहले पेज का विषय | क्या बाइबल सच में परमेश्वर ने लिखवायी है?
बाइबल —क्या यह सच में “परमेश्वर की प्रेरणा से” लिखी गयी है?
क्या आप मानते हैं कि बाइबल परमेश्वर की तरफ से है? या आपको लगता है कि यह बस इंसानों की लिखी एक किताब है?
यह एक ऐसा मुद्दा है, जो काफी समय से चर्चा का विषय बना हुआ है, यहाँ तक कि ईसाइयों में भी। सन् 2014 में अमरीका में गैलप नाम के एक जाने-माने संगठन ने इस बारे में एक सर्वे किया। सर्वे से पता चला कि ज़्यादातर ईसाई इस बात से सहमत हैं कि “बाइबल का परमेश्वर से कुछ तो ताल्लुक है।” लेकिन करीब 20 प्रतिशत लोगों का मानना है कि बाइबल में “पुराने ज़माने की मनगढ़ंत कथा-कहानियाँ, इतिहास या इंसानों के उपदेश दर्ज़ हैं।” वहीं बाइबल में बताया गया है कि इसे परमेश्वर की “प्रेरणा” से लिखा गया है, तो इसका क्या मतलब है?—2 तीमुथियुस 3:16.
“प्रेरणा” —इसका क्या मतलब है?
बाइबल 66 छोटी-छोटी किताबों से मिलकर बनी है। इन्हें करीब 40 लोगों ने लगभग 1,600 साल के दौरान लिखा। लेकिन अगर बाइबल इंसानों ने लिखी है, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि इसे “परमेश्वर की प्रेरणा से” लिखा गया है? दरअसल “परमेश्वर की प्रेरणा” शब्दों का मतलब है कि इसमें दी जानकारी परमेश्वर ने लिखवायी है। इसी बात को बाइबल में इस तरह कहा गया है, “इंसान पवित्र शक्ति से उभारे जाकर परमेश्वर की तरफ से बोलते थे।” (2 पतरस 1:21) दूसरे शब्दों में कहें तो, परमेश्वर ने अपनी अदृश्य शक्ति यानी पवित्र शक्ति के ज़रिए अपना संदेश उन लोगों तक पहुँचाया, जिनसे उसने बाइबल की किताबें लिखवायीं। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है। एक बिज़नेसमैन अपने सेक्रेट्री से खत लिखवाता है। हालाँकि खत लिखनेवाला सेक्रेट्री है, लेकिन वह खत उसका नहीं, बल्कि बिज़नेसमैन का माना जाएगा, जिसने वह खत लिखवाया है।
बाइबल लिखनेवाले कुछ लोगों को स्वर्गदूत के ज़रिए परमेश्वर का संदेश मिला। कुछ लोगों को परमेश्वर ने दर्शन या दृश्य दिखाए, तो कुछ को परमेश्वर ने सपने में संदेश दिया। कुछ मामलों में परमेश्वर ने बाइबल के लिखनेवालों को यह छूट दी कि वे उसका संदेश अपने तरीके से लिखें। वहीं कुछ मौकों पर उसने शब्द-ब-शब्द बताया कि उन्हें क्या लिखना है। जैसे भी हो, उन लोगों ने परमेश्वर के विचार लिखे, न कि अपने।
हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि बाइबल लिखनेवालों ने इसे परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा? आइए इसके तीन सबूतों पर गौर करें।