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हमारे पाठकों से

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अमरीका के आदिवासी और बाइबल यह लेख आपकी जून 8, 1999 की सजग होइए! पत्रिका में छपा था। मैसाचूसॆट आदिवासियों के लिए छापी गई जॉन ऎलिअट की बाइबल के बारे में आपने जो बताया वह मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं और मेरे पति इस बाइबल की एक कॉपी, कैलिफोर्निया के सैन मैरिनो शहर की हनटिंगटन लाइब्रेरी में देख चुके हैं। उस बाइबल की भजन संहिता की किताब खुली हुई थी और जगह-जगह परमेश्‍वर का नाम, यहोवा लिखा हुआ था। उस 17वीं सदी की बाइबल में यहोवा का नाम पढ़कर हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा!

बी. जे., अमरीका

बाल-श्रम “बाल-श्रम इसका अंत निकट है!” लेखों के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। (जून 8, 1999) जब मैंने सजग होइए! के कवर पेज पर दी गई तस्वीर को देखा, तो मैंने सोचा इसमें दी गई बातें मेरे देश पर लागू नहीं होंगी। मगर जब मैंने इसे पढ़ना शुरू किया तो बस पढ़ती ही गयी। और सच-सच कहूँ तो हकीकत जानने के बाद मेरे रोंगटे खड़े हो गए। क्योंकि हाल ही में मैं, हाथ से बना एक टॆडी-बैर बड़े सस्ते में खरीदकर लायी थी। अगर यह यहाँ जापान में बना होता तो बहुत महँगा होता। उस टॆडी-बैर को बनाने में मासूम बच्चों से शायद मज़दूरी करवायी गयी होगी, इसीलिए इसकी कीमत इतनी कम थी। ये सब बातें सोचकर मुझे बहुत दुख हुआ।

एस. ओ., जापान

वज़न मैं दस साल की हूँ और आपको इस लेख के लिए थैंक्स कहती हूँ, “युवा लोग पूछते हैं . . . मैं वज़न घटाने की सनक पर कैसे काबू पाऊँ?” (जून 8, 1999) मैं हमेशा अपने बारे में यही सोचती रहती थी कि मैं बहुत मोटी हूँ। मगर इस लेख को पढ़ने के बाद मैं अच्छी तरह समझ गई हूँ कि एक इंसान का मोटा या पतला होना सब कुछ नहीं होता। सबसे खास चीज़ तो इंसान के गुण होते हैं।

एम. एस., रशिया

“युवा लोग पूछते हैं . . . मैं वज़न घटाने की सनक पर कैसे काबू पाऊँ?” (जून 8, 1999) लेख के लिए मैं आपका दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ। कुछ समय से मैं, अपने वज़न और आकार के अलावा कुछ और सोच ही नहीं पाती थी। जब मैं आइना देखती हूँ तो मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आता है। और वज़न तौलने की मशीन पर चढ़ने का तो मेरा दिल ही नहीं करता। मगर इस लेख को पढ़कर मुझे महसूस हुआ कि एक इंसान अंदर से जैसा होता है वह ज़्यादा मायने रखता है।

एल. आर., फ्रांस

परमेश्‍वर की नज़रों में आपका महत्त्व! मैं अकसर एकदम निराश और खुद को टूटता हुआ सा महसूस करती थी। मैं खुद को बेकार समझती थी। मुझे लगता था कि मुझे पूरे समय की प्रचारक नहीं होना चाहिए, क्योंकि मैं प्रचार में ज़्यादा मेहनत नहीं कर पाती थी। मगर जब मैंने “बाइबल का दृष्टिकोण: परमेश्‍वर की नज़रों में आपका महत्त्व है!” (जुलाई 8, 1999) लेख को पढ़ा तो मैं बहुत अच्छा महसूस करने लगी। इस लेख की मदद से मैं समझ सकी कि शैतान यही तो चाहता है कि हम इतने निराश हो जाएँ कि यहोवा की सेवा करना ही छोड़ दें।

एल. डब्ल्यू. कनाडा

इस लेख को पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा। अब तक मैं यही सोचती थी कि यहोवा मेरी प्रार्थनाओं को नहीं सुनता। मगर जबसे मैंने यह लेख पढ़ा है तबसे मुझमें एक नया विश्‍वास जागा है और यहोवा पर मेरा भरोसा भी बढ़ा है। कृपया आप इसी तरह के अच्छे-अच्छे लेख आगे भी छापते रहिए।

आर. वी. टी., बेल्जियम

गलत फैसले करने की वज़ह से मैंने बहुत-सी तकलीफें झेली हैं। इन दर्दनाक यादों की वज़ह से मैं अपनी नज़रों में गिर चुकी थी। मगर जब मैंने यह जाना कि यहोवा इतना प्यार करनेवाला पिता है कि उसके प्यार की बराबरी इंसान कर ही नहीं सकता, तो यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता और भी मज़बूत हुआ और आज मैं खुश हूँ और सुरक्षित महसूस करती हूँ।

वी. एस. सी., ब्रज़िल

मैं ने अभी-अभी कैसॆट पर यह लेख सुना है। मैं करीब 44 साल से अंधा हूँ, हालाँकि बपतिस्मा लेकर मैं एक साक्षी बन चुका हूँ, फिर भी मुझे ऐसा ही लगता रहा है कि मैं बेकार हूँ। इस लेख ने मेरे दिल को छू लिया है। मैं यहोवा परमेश्‍वर को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ कि वह हमें उसी नज़र से नहीं देखता जैसे हम खुद को देखते हैं।

ए. के., इटली

दिन-रात मेरे दिमाग में निराशा भरे विचार ही घूमते रहते थे। लेकिन जब मैं यह लेख पढ़ रही थी, तो ऐसा लगा मानो यहोवा बड़े प्यार से मुझसे बात कर रहा हो। अपना सोचने का ढंग बदलना बहुत मुश्‍किल है, मगर लेख में जो कहा गया था उसे याद रखने की मैं पूरी कोशिश करूँगी: “एक प्रेममय पिता की तरह यहोवा हमारे “समीप रहता है”—हमेशा चौकस रहता है, ध्यान रखता है और मदद करने के लिए तैयार रहता है।—भजन 147:1, 3.”

के. एफ., जापान