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मसीही प्रेम को ज्वालामुखी भी मिटा नहीं सका

मसीही प्रेम को ज्वालामुखी भी मिटा नहीं सका

मसीही प्रेम को ज्वालामुखी भी मिटा नहीं सका

कैमरून के सजग होइए! संवाददाता द्वारा

मार्च 27, 1999 की दोपहर को अफ्रीका के कैमरून पर्वत में धमाकेदार विस्फोट हुआ। पहाड़ के नीचे बसे, बुएई कसबे के लोगों का कहना है कि यह इतना ज़ोरदार धमाका था कि पेड़ों के साथ-साथ घरों की नींवें तक झनझना उठीं। अगली शाम करीब साढ़े आठ बजे इतना ज़बरदस्त भूकंप आया कि 70 किलोमीटर दूर बसा, डुआला शहर भी बुरी तरह हिल गया। समुद्र-तल से 4,070 मीटर ऊँचा कैमरून पर्वत, बीसवीं सदी के दौरान करीब चार बार फट चुका है। लेकिन पिछले साल जब यह पाँचवीं बार फटा तो इसने ऐसी तबाही मचायी जो पहले कभी नहीं देखी गई थी।

मार्च 30, 1999 को ला मेसाज़्हाँ अखबार की सुर्खियों में यह खबर छपी: “कैमरून ज्वालामुखी—2,50,000 लोगों की जान खतरे में!” इस अखबार में लिखा था: “दो दिन में करीब पचास भूकंप आ चुके हैं, चार जगहों पर धरती धँसने से खाई बन गयी है; सैकड़ों घर बर्बाद हो गए; और बुएई में राष्ट्रपति का महल भी तहस-नहस हो गया है।”

बुएई कसबे में रहनेवाले 80 यहोवा के साक्षियों में से बहुतों का घर मलबे का ढेर बन गया था। इनमें वह घर भी था जिनमें भाई अपनी सभाएँ करते थे। मगर खुशी की बात है कि किसी की जान नहीं गई।

मसीही प्यार रोके नहीं रुकता

खबर मिलने की देर थी कि हमारे मसीही भाई तूफान की तरह मदद करने की तैयारी में लग गए। साक्षियों की गर्वनिंग बॉडी ने फटाफट एक राहत कमिटी बनायी और विपत्ति के शिकार भाइयों की मदद के लिए पैसे भेजने का इंतज़ाम किया। सिर्फ इतना ही नहीं, दूसरे सैकड़ों साक्षियों ने भी मदद करने के लिए खुद अपना वक्‍त, पैसा, शक्‍ति सबकुछ लगा दिया। जी हाँ, मसीही प्यार को ज्वालामुखी भी रोक नहीं पाया।

दूसरी तरफ मसीही कलीसियाएँ भी पीछे नहीं रहना चाहती थीं। उन्होंने बुएई के भाइयों के लिए खाने का सामान भेजा। कई भाइयों ने टूटे घरों को दोबारा बनाने का सामान दान दिया। एक भाई ने 1,000 सीमेंट की ईंटें दान दीं। घरों की छत के लिए, एक और भाई ने एलुमिनियम की चादरें कम दाम में दिलवाने का इंतज़ाम किया। दूसरा, 16 किलोमीटर चलकर लकड़ी ले आया। एक जवान भाई ने अपनी शादी के लिए पैसे जोड़ रखे थे, ताकि अपने होनेवाले सास-ससुर को वधु-मूल्य दे सके। मगर इस विपत्ति की खबर सुनकर उसने कुछ वक्‍त के बाद शादी करने का फैसला किया और जमा रकम से अपनी आरा मशीन ठीक करवायी। उसके बाद वह जंगलों में निकल पड़ा और तीन हफ्तों में उसने इतनी लकड़ियाँ काटीं कि उससे एक पूरा घर तैयार हो सकता था! हमारे कुछ हट्टे-कट्टे, जवान भाइयों ने इन लकड़ियों को अपने सिर पर उठाकर पाँच किलोमीटर दूर एक ट्रक तक पहुँचाया।

विपत्ति के शिकार भाई-बहनों की ज़रूरतों को पूरा करने के बाद, अप्रैल 24 को 60 भाई-बहन बुएई में उनके टूटे-फूटे घरों को बनाने के काम में जुट गए। हर शनिवार-इतवार को काम में हाथ बटानेवालों की संख्या 200 तक पहुँच जाती थी। इनमें से तीन ऐसे साक्षी थे जो पूरे दिन नौकरी करने के बाद, देर रात तक घर बनाने में मदद करते थे। डुआला से एक साक्षी, दिन-भर नौकरी करने के बाद अपनी मोटरसाइकिल पर 70 किलोमीटर का सफर तय करके इस काम में हाथ बँटाने आता था और आधी रात तक काम करता रहता था। इन भाई-बहनों की मदद से दो महीने के अंदर ही, छः घर बनकर तैयार हो गए। इस दौरान बुएई कलीसिया की सभाएँ एक भाई के घर में होती रहीं और सभाओं की उपस्थिति पहले से दुगुनी हो गई।

अपने भाई-बहनों की मदद करने के अलावा राहत कमिटी ने, दूषित पानी को साफ करने के लिए 40,000 से ज़्यादा गोलियाँ दूसरे लोगों में बाँट दीं। और 10 ऐसे लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाया जिन्हें ज्वालामुखी की विषैली गैस और राख से साँस की तकलीफ हो गई थी। ऐसी परवाह और गहरा प्यार लोगों की आँखों से छिप नहीं सका। आस-पास के लोगों ने यह सब देखकर क्या कहा आइए देखें।

मसीही प्यार की जीत

एक कृषि अधिकारी ने साक्षियों के बनाए गए एक घर को देखकर कहा: “यह घर खुद ही . . . , इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि सिर्फ इन्हीं लोगों में सच्चा प्यार है।” एक टीचर का भी कुछ ऐसा ही कहना था: “मैंने आज तक ऐसा प्यार नहीं देखा। . . . यही प्यार तो सच्ची मसीहियत की पहचान है।”

जिन लोगों को खुद इस मसीही प्यार से फायदा हुआ है, वे भी इसकी बड़ाई करते नहीं थकते। पैंसठ साल का बीमार तिमथी कहता है: “जब भी हम अपने नए घर को देखते हैं तो हम अपने आँसुओं को रोक नहीं पाते। यहोवा ने हमारे लिए जो कुछ किया है उसके लिए हम बार-बार उसका एहसान मानते हैं।” एक विधवा स्त्री जो साक्षी नहीं थी, उसके चार बच्चे थे। उसका घर क्या टूटा उनका सब कुछ बर्बाद हो गया। फिर उसका घर बनाने के लिए सरकार ने जिन मज़दूरों को यह काम सौंपा था, वे छत का सामान चुराकर नौ दो ग्यारह हो गए। ऐसे में साक्षियों ने आगे बढ़कर उसकी मदद की। वह कहती है: “मैं इतनी खुश हूँ कि क्या बताऊँ! उनकी मैं जितनी भी तारीफ करूँ वह फिर भी कम है।” एक मसीही प्राचीन की पत्नी, एलिज़बेत का कहना है: “मुझे यह देखकर बेहद खुशी होती है कि यहोवा के लोगों में इतना प्यार है! इसी प्यार से साफ ज़ाहिर होता है कि हम वाकई सच्चे परमेश्‍वर की सेवा कर रहे हैं।”

इस ज्वालामुखी के विस्फोट से चारों तरफ कितनी तबाही मची मगर इसके बावजूद मसीही प्यार बरकरार रहा। प्रेरित पौलुस ने एकदम सही लिखा था: “प्रेम कभी मिटता नहीं।”—1 कुरिन्थियों 13:8, NHT.

[पेज 10 पर तसवीरें]

गरम लावे के बहने से चारों तरफ तबाही मच गई

[पेज 11 पर तसवीर]

स्वयंसेवकों ने टूटे घरों को दोबारा बनाने के लिए जी-जान से मेहनत की

[पेज 11 पर तसवीर]

कैमरून पर्वत