कीड़े-मकोड़ों से फैलनेवाली बीमारियाँ दिन-ब-दिन बढ़ती समस्या
कीड़े-मकोड़ों से फैलनेवाली बीमारियाँ दिन-ब-दिन बढ़ती समस्या
सोने का वक्त हो रहा है। लैटिन अमरीका के एक घर में, माँ अपने बच्चे को चादर ओढ़ाकर उसे प्यार से सुलाती है और गुड नाइट कहकर चली जाती है। फिर रात के अंधेरे में, बिस्तर के ठीक ऊपर, छत की दरार में से करीब तीन सेंटीमीटर लंबा, एक चमकीला और काला कीड़ा निकलता है, जो किस्सिंग बग कहलाता है। यह कीड़ा, सो रहे बच्चे के चेहरे पर धीरे से गिरता है और अपना मुँह उसकी कोमल त्वचा में भेदता है। बच्चे को इसका एहसास तक नहीं होता। यह कीड़ा बच्चे का खून ऐसे चूसने लगता है मानो वह कई दिनों से भूखा है और इसी दौरान वह रोगाणुओं भरा अपना मल-मूत्र भी वहाँ छोड़ता है। नींद में बच्चा अपना चेहरा खुजाता है और इस तरह रोगाणु-युक्त मल-मूत्र को उसी जगह पर रगड़ देता है जहाँ कीड़े ने उसे काटा था।
कीड़े के इस एक हमले से बच्चे को शागस रोग हो जाता है। एक-दो हफ्ते में उसे तेज़ बुखार आता है और उसका पूरा बदन सूज जाता है। अगर वह बच भी जाता है तौभी रोगाणु उसके शरीर में बस जाते हैं और उसके हृदय, तंत्रिकाओं और ऊतकों पर हमला करने लगते हैं। फिर 10 से 20 सालों तक उसमें रोग के कोई लक्षण नज़र नहीं आते। लेकिन उसके बाद हो सकता है कि उसके पाचन तंत्र में घाव होने लगें, उसके मस्तिष्क में संक्रमण हो जाए और आखिरकार हृदय ठीक तरह काम न कर पाने की वजह से वह मर जाए।
हालाँकि यह घटना सचमुच किसी बच्चे के साथ नहीं हुई है, मगर इससे पता चलता है कि आज दुनिया में कुछ लोगों को किस तरह शागस रोग हो रहा है। लैटिन अमरीका में करोड़ों लोगों को इस किस्सिंग बग के चुंबन से मौत का खतरा है।
इंसान के कई पैरोंवाले साथी
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “कीड़े-मकोड़ों में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु ही इंसानों में ऐसी ज़्यादातर बीमारियाँ फैलाते हैं, जिनका खास लक्षण बुखार होता है।” आम तौर पर लोग जब “कीड़े-मकोड़ों” की बात करते हैं तो उनका मतलब सिर्फ छः पैरोंवाले कीड़े जैसे मक्खी, पिस्सू, मच्छर, जूँ और गोबरैला नहीं बल्कि चिंचड़ी (माइट) और किलनी (टिक) जैसे आठ पैरोंवाले कीड़े भी होते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये सारे कीड़े, संधिपाद (आर्थ्रोपॉड) वर्ग में आते हैं जो पशु-जगत का सबसे बड़ा वर्ग है और इसमें अब तक कम-से-कम दस लाख जातियों का पता लगाया जा चुका है।
इनमें से ज़्यादातर कीड़े, इंसानों को कोई हानि नहीं पहुँचाते, बल्कि कुछ कीड़े तो बहुत फायदेमंद होते हैं। अगर ये कीड़े न होते तो इंसान और जानवर भूखे मर जाते क्योंकि इन्हीं की बदौलत बहुत-से पेड़-पौधों का परागण होता है और उनमें फल लगते हैं। कुछ कीड़े, कूड़े-करकट को चट करके उन्हें फायदेमंद चीज़ों में बदल देते हैं। बहुत-से कीड़े सिर्फ पौधे खाकर जीते हैं जबकि कुछ कीड़े, दूसरे कीड़े-मकोड़ों को खाते हैं।
मगर हाँ, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ कीड़ों ने इंसानों और जानवरों की नाक में दम कर रखा है। इन कीड़ों के काटने से बहुत दर्द होता है, और उनका भारी तादाद में कहीं इकट्ठे हो जाना ही बड़ी परेशानी का कारण होता है। कुछ कीड़े तो खेत-के-खेत उजाड़ देते हैं। मगर इनसे भी खतरनाक वे कीड़े हैं जो बीमारी और मौत के सौदागर होते हैं। अमरीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के ड्वेन गब्ला का कहना है कि ‘सत्रहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी की शुरूआत तक, कुल मिलाकर जितने भी कारणों से लोग बीमार हुए और मरे, उनसे कई गुना ज़्यादा लोग कीड़े-मकोड़ों से फैलनेवाली बीमारियों से मरे।’
आज यह हाल है कि हर छः लोगों में से एक को कीड़ों से फैलनेवाली बीमारी है। इससे ना सिर्फ लोगों को शारीरिक रूप से तकलीफ होती है बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से भी तकलीफ उठानी पड़ती है। और पैसों की तकलीफ खासकर उन विकासशील देश के लोगों को ज़्यादा महसूस होती है जिनके पास बीमारियों का इलाज करवाने की हैसियत नहीं है। ऐसे लोगों के लिए एक महामारी भी बहुत महँगी साबित हो सकती है। मसलन, सन् 1994 में पश्चिम भारत में ऐसी ही एक महामारी फैली। कहा जाता है कि उसे रोकने के लिए भारत देश के साथ-साथ पूरी दुनिया ने पानी की तरह पैसा बहाया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि दुनिया के सबसे गरीब देश तब तक तरक्की नहीं कर पाएँगे जब तक वे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में कामयाब नहीं होते।
कीड़ों से हम कैसे बीमार पड़ते हैं
ऐसे दो खास तरीके हैं जिनसे कीड़े, इंसानों में बीमारी फैलाते हैं। एक तरीका है, यांत्रिक प्रसार यानी कीड़े अपने शरीर से चिपके रोगाणुओं को लेकर घूमते हैं और इस तरह बीमारी फैलाते हैं। यह कुछ ऐसा होता है जैसे गंदे जूते पहनकर, घर के अंदर आने से घर भी गंदा हो जाता है। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है कि ठीक उसी तरह “घरेलू मक्खियाँ, अपने पैरों पर लाखों सूक्ष्म रोगाणुओं को लिए घूमती रहती हैं और रोगाणुओं की इतनी भारी तादाद से बीमारी आसानी से फैल सकती है।” उदाहरण के लिए, मक्खियाँ पहले मल-मूत्र पर बैठती हैं, फिर उड़कर हमारे खाने-पीने की चीज़ों पर बैठ जाती हैं और हमारे खाने को दूषित कर देती है। इस तरह से इंसान को टायफॉइड, डिसॆंट्री, यहाँ तक कि हैजे जैसी खतरनाक और शरीर को कमज़ोर कर देनेवाली बीमारियाँ लगती हैं। मक्खियाँ, ट्रैकोमा फैलाने में भी कुछ हद तक ज़िम्मेदार होती हैं, जो कि दुनिया में अंधेपन की सबसे बड़ी वजह है। ट्रैकोमा में लोगों के कॉर्निया यानी आइरिस के सामने के स्वच्छ भाग पर खरोंच आती है जिस वजह से वे अपनी आँखों की रोशनी खो बैठते हैं। पूरी दुनिया में लगभग 50,00,00,000 लोग इस रोग से पीड़ित हैं।
माना जाता है कि गंदगी में पलनेवाला तिलचट्टा भी यांत्रिक प्रसार से बीमारी फैलाता है। इसके अलावा, विशेषज्ञों का कहना है कि तिलचट्टों से होनेवाली एलर्जी की वजह से हाल ही में दमा रोग से पीड़ित लोगों की गिनती में बड़ी तेज़ी आयी है, खासकर ऐसा बच्चों में देखा गया है। कुछ देर के लिए कल्पना कीजिए: एक पंद्रह साल की लड़की ऐशली को दमे का रोग है जिस वजह से कई रातों से उसे साँस लेने में तकलीफ हो रही है। उसे डॉक्टर के पास ले जाया जाता है। जब डॉक्टर ऐशली की छाती पर कान लगाकर सुनने की कोशिश करती है कि उसकी साँस कैसे चल रही, तभी अचानक ऐशली के कपड़ों से एक तिलचट्टा उछलकर बाहर आता है और उस मेज़ पर यहाँ-वहाँ भागने लगता है जिस पर मरीज़ की जाँच की जाती है।
कीड़ों के शरीर में मौजूद बीमारियाँ
कीड़ों से बीमारी फैलने का दूसरा तरीका यह है कि जब कीड़े अपने शरीर में कीटाणुओं, जीवाणुओं और परजीवियों को शरण देते हैं तो वे इंसानों को काटकर या दूसरे तरीकों से बीमारी फैलाते हैं। लेकिन इस तरह बीमारी फैलानेवाले कीड़ों की संख्या कम है। मसलन, अगर हम मच्छरों की बात लें तो हालाँकि उनकी हज़ारों जातियाँ हैं लेकिन सिर्फ एनोफेलीज जाति का मच्छर ही मलेरिया रोग फैलाता है जो (टी.बी. के बाद) दुनिया का दूसरा सबसे खतरनाक और संक्रामक रोग है।
फिर भी, मच्छरों की दूसरी जातियाँ, कई तरह के रोग फैलाती हैं। WHO रिपोर्ट करता है: “बीमारी फैलानेवाले कीड़ों में सबसे घातक है, मच्छर। इससे मलेरिया, डेंगू बुखार और पीत-ज्वर होता है और इन सभी रोगों से हर साल लाखों जानें जाती हैं और करोड़ों लोग संक्रमित होते हैं।” दुनिया की कम-से-कम 40 प्रतिशत
आबादी को मलेरिया और करीब 40 प्रतिशत को डेंगू बुखार होने का खतरा है। कई जगहों पर, एक-साथ दोनों बीमारियों के होने की गुंजाइश रहती है।लेकिन मच्छरों के अलावा और भी कई कीड़े-मकोड़े हैं जो अपने शरीर में बीमारी लेकर दूसरों में फैलाते हैं। उदाहरण के लिए, सेट्सी मक्खी में ऐसे रोगाणु मौजूद होते हैं जिनसे स्लीपिंग सिकनेस नामक बीमारी होती है। इस बीमारी से आज लाखों लोग पीड़ित हैं। नतीजतन, इन मक्खियों से बचने के लिए पूरी-की-पूरी बिरादरी को मजबूरन अपने हरे-भरे खेत छोड़कर कहीं और बस जाना पड़ता है। इसके अलावा, ब्लैकफ्लाई नाम के कीड़े, इंसानों के शरीर में ऐसे जीवाणु का प्रसार करते हैं जिसकी वजह से रिवर ब्लाइंड्नेस रोग होता है। इस बीमारी ने अफ्रीका में लाखों लोगों की आँखों की रोशनी छीन ली है। और सैंडफ्लाई वे कीड़े हैं जिनमें एक किस्म का रोगाणु बढ़ता है और उससे लीशमैनाइॲसिस रोग होता है। यह नाम ऐसी कई बीमारियों को दिया गया है जिनसे न सिर्फ लोग कुरूप और अपंग होते हैं बल्कि कुछ मामलों में वे अपनी जान भी गँवा बैठते हैं। फिलहाल, लीशमैनाइॲसिस रोग ने पूरी दुनिया में हर उम्र के लोगों को अपना निशाना बना रखा है। पिस्सू एक और कीड़ा है जो जगह-जगह पाया जाता है और वह फीता कृमि, मस्तिष्क-ज्वर, टुलेरीमिया और यहाँ तक कि प्लेग जैसे रोग का वाहक है। प्लेग का ज़िक्र होते ही मध्य युग में फैली ब्लैक डेथ महामारी की याद ताज़ा हो जाती है, जो बस छः साल में ही पूरे यूरोप की एक तिहाई से ज़्यादा आबादी को निगल गयी।
जूँ, चिंचड़ी और किलनी से तरह-तरह के टाइफस और दूसरी कई बीमारियाँ फैल सकती हैं। दुनिया के जिन देशों में ना तो ज़्यादा गर्मी है ना ही ठंड, वहाँ पर किलनी, लाइम रोग फैलाती है जिससे एक इंसान बेहद कमज़ोर हो सकता है। अमरीका और यूरोप में कीड़ों द्वारा फैलायी जानेवाली यह बीमारी सबसे आम है। स्वीडन में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जब प्रवासी पक्षी, एक देश से दूसरे देश जाने के लिए हज़ारों किलोमीटर का सफर तय करते हैं तो उनसे चिपकी हुई किलनियाँ भी नए प्रदेशों में जाकर बीमारी फैला सकती हैं। ब्रिटैनिका कहती है: “किलनी, (मच्छर के अलावा) संधिपाद वर्ग के बाकी सभी कीड़ों के मुकाबले इंसानों में
ज़्यादा बीमारियाँ फैलाती है।” दरअसल, एक अकेली किलनी में ही कम-से-कम तीन किस्म के रोगाणु होते हैं और बस एक बार काटने से एक व्यक्ति को तीन-तीन बीमारियाँ एक-साथ लग सकती हैं!बीमारियों से कुछ देर के लिए “छुट्टी”
विज्ञान ने हाल ही में यानी सन् 1877 में इस बात को साबित किया कि कीड़ों से बीमारी फैलती है। तब से इन कीड़ों को काबू में करने या उनका पूरी तरह से सफाया करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए गए हैं। बीमारी फैलानेवाले कीड़ों के खिलाफ इस जंग में सन् 1939 में एक और नया हथियार, डी.डी.टी. कीटनाशक इस्तेमाल किया जाने लगा। सन् 1960 के दशक तक यह माना जाने लगा कि अफ्रीका को छोड़ बाकी सभी देशों को बीमारी फैलानेवाले इन कीड़ों से कोई बड़ा खतरा नहीं है। इसलिए इन रोगवाहकों को नियंत्रित करने के बजाय इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाने लगा कि इमर्जेंसी केसों में दवाइयाँ देकर कैसे इलाज किया जाना चाहिए। इस तरह धीरे-धीरे कीड़ों और उनके रहने की कुदरती जगहों पर अध्ययन कम होता गया। नयी-नयी दवाइयों का भी पता लगाया जा रहा था और देखने में ऐसा लग रहा था जैसे विज्ञान के पास किसी भी बीमारी से जूझने की “जादुई दवा” है। दुनिया बहुत खुश थी कि उसे आखिरकार संक्रामक बीमारियों से “छुट्टी” मिल गयी। मगर यह छुट्टी सिर्फ चंद दिनों के लिए थी। वह कैसे? अगला लेख हमें इसकी जानकारी देगा। (g03 5/22)
[पेज 3 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
आज, छः लोगों में से एक को कीड़ों से फैलनेवाली बीमारी है
[पेज 3 पर तसवीर]
किस्सिंग बग
[पेज 4 पर तसवीर]
घरेलू मक्खियाँ, अपने पैरों में रोगाणु लिए घूमती हैं
[पेज 5 पर तसवीरें]
कई कीड़े अपने शरीर में बीमारी लेकर दूसरों में फैलाते हैं
ब्लैकफ्लाई से रिवर ब्लाइंड्नेस रोग होता है
मच्छरों से मलेरिया, डेंगू बुखार और पीत-ज्वर जैसी बीमारियाँ फैलती हैं
जूँ से टाइफस हो सकता है
पिस्सू, मस्तिष्क-ज्वर और दूसरी बीमारियों का रोगवाहक है
सेट्सी मक्खी से स्लीपिंग सिकनेस नामक बीमारी होती है
[चित्रों का श्रेय]
WHO/TDR/LSTM
CDC/James D. Gathany
CDC/Dr. Dennis D. Juranek
CDC/Janice Carr
WHO/TDR/Fisher
[पेज 4 पर चित्रों का श्रेय]
Clemson University - USDA Cooperative Extension Slide Series, www.insectimages.org