पोर्नोग्राफी विचारों में टकराव
पोर्नोग्राफी विचारों में टकराव
“यह ऐसी वासना जगाती है जो एक इंसान में होनी ही नहीं चाहिए, यह ऐसी हवस पैदा करती है जिसे कभी पूरा नहीं करना चाहिए।”—टोनी पार्सन्स्, अखबार का लेखक।
जॉन ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह ‘इंटरनॆट सेक्स’ का आदी हो जाएगा। * उसके साथ वही हुआ जो ज़्यादातर लोगों के साथ होता है। लोग इंटरनॆट का इस्तेमाल करते-करते अचानक पोर्नोग्राफी के साइटों और सेक्स चैट-रूमों में पहुँच जाते हैं। एक दिन जब जॉन हमेशा की तरह इंटरनॆट पर था, तो वह इत्तफाक से ऐसे साइट पर पहुँच गया जहाँ ऐसे ही चैट-रूम में शरीक होने का बुलावा दिया जा रहा था। कुछ समय बाद, जॉन अपना सारा वक्त इसी में बिताने लगा। वह याद करता है: “मैं बस अपनी पत्नी के दफ्तर जाने का इंतज़ार करता। जैसे ही वह घर के बाहर कदम रखती, मैं उछलकर बिस्तर से उठता और घंटों कंप्यूटर से चिपका रहता।” लंबी बातचीत के दौरान वह खाने-पीने तक के लिए नहीं उठता था। वह कहता है: “मुझे भूख-प्यास का एहसास तक नहीं होता था।” चोरी-छिपे किए गए इस काम से अपनी पत्नी को बेखबर रखने के लिए वह उससे झूठ बोलने लगा। इस लत की वजह से उसका अपने काम में भी मन नहीं लगता था, और वह सहमा-सहमा-सा रहने लगा। उसकी शादी-शुदा ज़िंदगी तबाह होने लगी। आखिरकार, जब उसने उन औरतों में से एक से मिलने का इंतज़ाम किया, जिनके साथ वह इंटरनॆट पर सेक्स की बातें करता था, तो उसकी पत्नी को पता चल गया। आज इस लत को छोड़ने के लिए जॉन का इलाज किया जा रहा है।
पोर्नोग्राफी के खिलाफ आवाज़ उठानेवालों ने ऐसे किस्सों की मिसाल देकर यह साबित करने की कोशिश की है कि पोर्नोग्राफी कैसे बरबादी की तरफ ले जाती है। उनका मानना है कि इससे रिश्ते टूट जाते हैं, औरतों को ज़लील किया जाता है, बच्चे हवस का शिकार होते हैं, और लैंगिक संबंधों के बारे में बिलकुल घिनौनी और भारी नुकसान पहुँचानेवाली सोच पैदा होती है। मगर जो पोर्नोग्राफी की तरफदारी करते हैं, उनका कहना है कि यह आज़ाद ख्यालों और भावनाओं की निशानी है। वे कहते हैं कि पोर्नोग्राफी पर नाक-भौंह सिकोड़नेवाले लोग बचकानी बात करते हैं। पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देनेवाले एक आदमी ने लिखा: “अपनी सेक्स की इच्छाएँ ज़ाहिर करने से किसी को शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। असल में, सेक्स पर खुलकर बातचीत करने और बेझिझक अपने विचार ज़ाहिर करने में पोर्नोग्राफी हमारी मदद करती है।” कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि ज़्यादा-से-ज़्यादा पोर्नोग्राफी देखना, खुले-विचार रखनेवाले और सेहतमंद समाज की पहचान है। लेखक, ब्रायन मैकनेर कहता है: “जो समाज समझदार लोगों से बना है वह रज़ामंद लोगों के बीच खुलेआम दिखाए जानेवाले सेक्स को सही नज़र से देखेगा। ऐसा समाज समलैंगिकता और दूसरे किस्म के लैंगिक संबंधों से नहीं चौंकेगा। साथ ही औरतों को मर्दों के बराबर का दर्जा भी देगा।”
लोगों के विचारों में इस टकराव से क्या यह साबित होता है कि पोर्नोग्राफी गलत नहीं है? आखिर, यह इतनी आम क्यों हो गयी है? क्या पोर्नोग्राफी वाकई खतरनाक है? इन सवालों की चर्चा आगे के लेखों में की जाएगी। (g03 7/22)
[फुटनोट]
^ नाम बदल दिए गए हैं।