पोर्नोग्राफी हर जगह क्यों फैल गयी?
पोर्नोग्राफी हर जगह क्यों फैल गयी?
लैंगिक इच्छाएँ भड़काने के लिए घिनौनी और बेहूदा किस्म की सामग्री तैयार करने की शुरूआत, हज़ारों साल पहले हो चुकी थी। लेकिन उस ज़माने में इन्हें तैयार करना मुश्किल काम था, इसलिए ये ज़्यादातर अमीरों और शाही लोगों को मुहैय्या कराए जाते थे। मगर जब बड़े पैमाने पर छपाई होने लगी, फोटोग्राफी और सिनेमा की ईजाद हुई, तो हालात में बदलाव आया। अब तो जिनके पास ज़्यादा पैसा नहीं है, उनके लिए भी पोर्नोग्राफी देखना मुमकिन हो गया है।
वीडियो-कैसेट रिकॉर्डर की ईजाद ने पोर्नोग्राफी के चलन को और भी बढ़ावा दिया। सिनेमा के रील और पुराने फोटो से वीडियो-कैसेट बिलकुल अलग है। इसे लंबे समय तक रखना, इसकी कॉपियाँ बनाना और बाज़ार में बेचना आसान है। और इसे लोग चुपके से अपने घर की चार दीवारी में रहकर भी देख सकते थे। हाल में, घर-घर में केबल टी.वी. और इंटरनॆट की सहूलियत होने से पोर्नोग्राफी के कार्यक्रम देखना और भी आसान हो गया है। मीडिया के असर का अध्ययन करनेवाले, डेनस मकेलपन कहते हैं कि जो ग्राहक पहले अपने जान-पहचानवालों के डर से, वीडियो की दुकान से पोर्नोग्राफी फिल्में खरीदने की जुर्रत नहीं करता था, वह अब “घर बैठे ही, केबल टी.वी. का बस एक बटन दबाकर आराम से पोर्नोग्राफी देख सकता है।” मकेलपन का कहना है कि पोर्नोग्राफी देखने की ऐसी सुविधा होने की वजह से “अब ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को लगता है कि इसे देखने में कोई बुराई नहीं।”
पोर्नोग्राफी का आम होना
आज पोर्नोग्राफी इतनी आम हो गयी है कि बहुत-से लोग इसे लेकर कश्मकश में हैं कि यह सही है या गलत। लेखिका, जर्मेन ग्रीर कहती हैं: “ओपेरा, नाटक, सिनेमा, संगीत और कला, इन सबका मिलकर भी हमारे जीने के तौर-तरीके पर इतना असर नहीं हुआ है जितना कि अकेले पोर्नोग्राफी का हुआ है।” पोर्नोग्राफी के बारे
में आज की दुनिया के खयालात इन बातों से साफ देखे जा सकते हैं कि जब बड़ी-बड़ी हस्तियाँ, जानी-मानी वेश्याओं जैसे तंग और भड़कीले कपड़े पहनती हैं, तो कहते हैं कि यह नया फैशन है। संगीत के ज़्यादातर वीडियो में भी बड़ी बेहयाई से जिस्म की नुमाइश की जाती है और विज्ञापन में अश्लील तसवीरें, दृश्य वगैरह इस्तेमाल किए जाते हैं। मकेलपन आखिर में कहते हैं: “आज मीडिया जो भी पेश करता है, उसे समाज आँख मूँदकर अपना रहा है। . . . इसी वजह से आज सारा ज़माना मानता है कि [पोर्नोग्राफी] में कोई बुराई नहीं है।” लेखिका एन्ड्रिया ड्वॉरकिन अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहती हैं कि यह सब देखकर ‘दरअसल, लोगों का गुस्सा भड़क उठना चाहिए, मगर उन्हें तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता।’पोर्नोग्राफी के आम होने की वजह
लेखिका ड्वॉरकिन की तरह, एफ.बी.आई. के एक रिटायर्ड एजन्ट, रॉजर यंग कहते हैं कि कई लोग इतने अंधे हो गए हैं कि “उन्हें अश्लील कामों से होनेवाले बुरे असर और उनसे उठनेवाली समस्याएँ बिलकुल नज़र नहीं आतीं।” कुछ लोग तो पोर्नोग्राफी के पैरोकारों के इस बहकावे में आ जाते हैं कि पोर्नोग्राफी के बुरे अंजामों का आज तक कोई सबूत नहीं मिला है। लेखक एफ. क्रिस्टनसन लिखते हैं: “पोर्नोग्राफी तो बस कोरी-कल्पना है। पता नहीं इसके खिलाफ बोलनेवालों के पल्ले यह बात क्यों नहीं पड़ती।” लेकिन अगर पोर्नोग्राफी बस कल्पना है और इससे लोगों पर कोई असर नहीं होता, तो फिर विज्ञापन की दुनिया कल्पना का इस्तेमाल क्यों करती है? और अगर विज्ञापन का लोगों पर गहरा असर नहीं होता, तो बड़ी-बड़ी कंपनियाँ क्यों टी.वी. पर विज्ञापन दिखाने, वीडियो बनाने, अखबार और पत्रिकाओं में विज्ञापन छपवाने के लिए लाखों-करोड़ों रुपया पानी की तरह बहा रही हैं?
सच तो यह है कि दूसरे सभी सफल विज्ञापनों की तरह पोर्नोग्राफी का खास मकसद भी ऐसी वासना जगाना है जो लोगों में पहले नहीं होती। खोजकर्ता, स्टीवन हिल और नाइना सिल्वर कहते हैं: “पोर्नोग्राफी का मकसद कुछ और नहीं बस मुनाफा कमाना है। इस बाज़ार में कोई रोक-टोक नहीं, नफा कमाने के लिए यहाँ हर चीज़ बिकाऊ है, खासकर औरतों का जिस्म और स्त्री-पुरुष के लैंगिक
संबंध।” ग्रीर कहती हैं कि पोर्नोग्राफी फास्ट फूड की तरह है। इसे बस एक बार चखने की देर है, फिर लत अपने-आप लग जाती है। इसमें कोई पौष्टिक तत्त्व नहीं होते, सिर्फ चटपटा बनाने के लिए मसाले और रसायनिक पदार्थ मिला दिए जाते हैं। वे कहती हैं: “मीडिया पर जो अंधाधुंध लैंगिक काम दिखाया जाता है, वह हकीकत नहीं बल्कि धोखा है . . . जिस तरह फास्ट फूड के विज्ञापन में खाने-पीने की घटिया चीज़ों को खरीदने के लिए लुभाया जाता है, उसी तरह सेक्स के विज्ञापन ऐसे लैंगिक संबंधों का मज़ा लूटने के लिए उकसाते हैं, जो असल ज़िंदगी से कोसों दूर हैं।”कुछ डॉक्टर दावे के साथ कहते हैं कि पोर्नोग्राफी की लत एक बार लग जाए, तो उससे छुटकारा पाना, ड्रग्स की लत से छुटकारा पाने से कहीं ज़्यादा मुश्किल है। आम तौर पर ड्रग्स लेनेवालों का इलाज करने में सबसे पहले, उनके शरीर से सारे नशीले पदार्थ निकाले जाते हैं, जिसे डिटॉक्सीफिकेशन (detoxification) कहा जाता है। लेकिन पोर्नोग्राफी की बात अलग है। पॆन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी की डॉक्टर मॆरी ऐना लेडन समझाती हैं कि पोर्नोग्राफी देखने से “दिमाग में ऐसी अश्लील तसवीरें उभर आती हैं कि ये मरते दम नहीं मिट सकतीं। ये घिनौनी तसवीरें मानो मस्तिष्क में होनेवाली क्रिया का एक अटूट हिस्सा बन जाती हैं।” इसीलिए लोगों को बरसों पहले देखी अश्लील तसवीरें भी अच्छी तरह याद रहती हैं। वह आखिर में कहती हैं: “यह ऐसी पहली नशीली दवा है जिसे शरीर से बाहर निकालने का कोई उपाय नहीं है।” तो क्या इसका मतलब है कि पोर्नोग्राफी के गिरफ्त से छूटना नामुमकिन है? पोर्नोग्राफी से कौन-कौन-से नुकसान होते हैं? (g03 7/22)
[पेज 5 पर बक्स]
इंटरनॆट पर पोर्नोग्राफी सबूत क्या कहते हैं?
◼ इंटरनॆट पर लगभग 75 प्रतिशत पोर्नोग्राफी की शुरूआत अमरीका से होती है और करीब 15 प्रतिशत की शुरूआत यूरोप से।
◼ अनुमान लगाया गया है कि हर हफ्ते, तकरीबन सात करोड़ लोग पोर्नोग्राफी के वैब साइटों की सैर करते हैं। इनमें से करीब दो करोड़ लोग अमरीका और कनाडा में हैं।
◼ एक अध्ययन से पता चला है कि हाल के एक महीने के दौरान, पूरे यूरोप में सबसे ज़्यादा जर्मनी के लोगों ने इंटरनॆट पर पोर्नोग्राफी देखी है। जर्मनी के बाद, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और स्पेन का नंबर आता है।
◼ जर्मनी में पोर्नोग्राफी देखनेवाले हर महीने इंटरनॆट पर पोर्नोग्राफी देखने में औसतन 70 मिनट बिताते हैं।
◼ यूरोप में पोर्नोग्राफी देखनेवालों में, 50 से ज़्यादा उम्र के लोग अपना ज़्यादातर वक्त ज़्यादा अश्लील वैब साइट देखने में बिताते हैं।
◼ एक पत्रिका के मुताबिक, 70 प्रतिशत लोग दिन में इंटरनॆट पर पोर्नोग्राफी देखते हैं।
◼ कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि करीब 1,00,000 ऐसे वैब साइट हैं जिनमें बच्चों पर पोर्नोग्राफी दिखायी जाती है।
◼ इंटरनॆट के ज़रिए, बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी का जो धंधा किया जाता है, उसके 80 प्रतिशत की शुरूआत जापान से होती है।
[पेज 4 पर तसवीरें]
अब पोर्नोग्राफी ज़्यादा आसानी से मुहैय्या हो रही है