वेनिस—‘समंदर पर खड़ी नगरी’
वेनिस—‘समंदर पर खड़ी नगरी’
इटली में सजग होइए! लेखक द्वारा
“समंदर पर खड़ी एक शानदार नगरी जिसकी बहती और बल खाती लहरें, उसकी सड़के और तंग गलियाँ हैं; और जिसके खारे जल की जड़ी उसके महलों के संगमरमर से जा लिपटती हैं।”—सैमयल रॉजर्स, अँग्रेज़ कवि, सन् 1822.
यह “शानदार नगरी” वेनिस है। एक ज़माने में यह किसी बड़े गणराज्य की राजधानी हुआ करती थी, इसलिए कई सदियों तक वह एक रानी की तरह ज़मीन और समंदर दोनों पर हुकूमत करती रही। इस नगरी को “समंदर पर” ही क्यों और कैसे खड़ा किया गया था? किस बात ने इस नगरी की शान बढ़ायी थी? इस साम्राज्य का अंत कैसे हुआ और आज वेनिस की शान में से क्या रह गया है?
जगह जो रहने लायक नहीं थी
वेनिस 118 द्वीपों से बना है। यह एड्रिआटिक सागर के उत्तर-पश्चिम की ओर एक छिछली झील (लगून) के बीच बसा है। जो नदियाँ इस सागर से मिलती हैं, वे अपने साथ ढेर सारी बालू-मिट्टी लाती हैं और उन्हें तटों के पास उथले जल में जमा कर देती हैं। यहाँ इन तटों के पास ज्वार-भाटा और पानी की धाराओं की वजह से रेत के ऐसे टीले बने हैं जिसने लगून को घेरकर उसे सागर से अलग कर दिया। यह लगून तकरीबन 51 किलोमीटर लंबा और 14 किलोमीटर चौड़ा है। इसके सागर से मिलने के सिर्फ तीन तंग रास्ते हैं, जिनसे न सिर्फ तीन फुट ऊँचे [1 m] ज्वार-भाटा आते हैं बल्कि कश्तियाँ भी लगून में आ-जा सकती हैं। एक किताब कहती है: “सदियों तक यह लगून ऐसा केंद्र था जहाँ व्यापारियों का आना-जाना लगा रहता था। कुछ व्यापारी दक्षिण के एड्रिआटिक सागर से होकर यहाँ आते थे, तो कुछ मध्य या उत्तरी यूरोप की नदियों या रास्तों से गुज़रते हुए यहाँ आकर रुकते थे।”
विद्वानों का मानना है कि इस नगरी की शुरूआत करीब सा.यु. पाँचवीं और सातवीं सदी के बीच हुई। उस दौरान उत्तर से आनेवाले बर्बर लोगों ने एक-के-बाद-एक महाद्वीप के शहरों में लूट मचायी और उन्हें जला डाला। लोग शहर से भाग निकले और कइयों ने लगून के द्वीपों में आकर पनाह ली। इन द्वीपों तक पहुँचना आसान नहीं था, फिर भी यह एक महफूज़ जगह थी।
पुराने दस्तावेज़ों से पता चलता है कि पहली बार यहाँ जो इमारतें बनायी गयीं, वे ठोस ज़मीन पर नहीं बनी थीं। इसके बजाय, नींव तैयार करने के लिए लकड़ी के मज़बूत खंभों को मिट्टी में धसाया गया और फिर इन्हें पेड़ की पतली, लचीली शाखाओं या सरकंडों के सहारे बाँध दिया गया। आगे चलकर वेनिस वासियों ने लकड़ी के हज़ारों खंभों से बनी नींव पर पत्थर के घर बनाए। इस दरमियान लगून में रीयाल्टो द्वीप में, जो बाद में बहुत मशहूर शहर बना, हमेशा पानी जम जाता था, और इसलिए उस द्वीप की ज़मीन न तो मज़बूत थी और न ही बड़ी तादाद में आनेवाले लोगों के लिए उसमें काफी जगह थी। इस समस्या से निपटने के लिए द्वीप से पानी निकालना और ज़मीन बढ़ाना ज़रूरी हो गया। पानी को निकालने के लिए नहरें खोदी गयीं। इससे वहाँ के निवासी इन नहरों में अपनी कश्तियाँ चला सकें। उसके बाद बेकार पड़ी ज़मीन को उन्होंने सुधारकर उसे मज़बूत किया ताकि उस पर घर बनाए जा सकें। नहरें रास्तों का काम देती थीं और इन पर कई पुल भी बनाए गए ताकि लोग आसानी से एक द्वीप से दूसरे द्वीप जा सकें।
एक गणराज्य का बनना और उसका ऊपर उठना
पश्चिम में जब रोमी सल्तनत मिट गयी तो लगून के द्वीप बाइज़ेन्टीनी साम्राज्य के कब्ज़े में आ गए। इस साम्राज्य की राजधानी, कॉन्सटनटीनोपल थी जिसे आज इस्तानबुल के नाम से जाना जाता है। मगर लगून में रहनेवालों ने बगावत की और खुद को आज़ाद करार दिया। नतीजा क्या हुआ? कहा जाता है कि वेनिस की हालत बहुत अनोखी थी क्योंकि “वह बाइज़ेन्टीनी साम्राज्य से आज़ाद होकर . . . अब ड्यूक की छोटी-सी रियासत के अधीन थी। साथ ही, वह उस वक्त के दो बड़े साम्राज्यों के इलाकों के एकदम बीच में बसी थी।” एक साम्राज्य फ्रैंक नाम की जर्मन जाति का था तो दूसरा बाइज़ेन्टीनी लोगों का। इस अनोखी हालत की बदौलत ही यह नगरी फलने-फूलने लगी और “व्यापार का बिचवई” बन गयी।
आनेवाली कई सदियों के दौरान वेनिस ने भूमध्य सागर के किनारों पर बसे कई लोगों के साथ युद्ध लड़े। जैसे सैरासन, नोरमंडी और बाइज़ेन्टीनी लोग। आखिरकार, वेनिस इन सबसे ज़्यादा शक्तिशाली साबित हुई। मगर ऐसा तभी हो पाया जब उसने सन् 1204 में चौथे धर्म-युद्ध की सेनाओं को अपने सबसे ताकतवर दुश्मन, कॉन्सटनटीनोपल को तबाह करने में मदद की। वेनिस ने काले सागर और एजियन सागर के तटों पर, यूनान, कॉन्सटनटीनोपल, सीरिया, पैलस्टाइन, कुप्रुस और क्रेते में व्यापार के कई अड्डे बनाए थे। मगर कॉन्सटनटीनोपल की तबाही से जब बाइज़ेन्टीनी साम्राज्य चकनाचूर हो गया, तो वेनिस ने इस मौके का फायदा उठाकर इन जगहों पर अपनी बस्तियाँ बना लीं।
“भूमध्य इलाके की मलिका”
बारहवीं सदी से ही वेनिस के जहाज़ बनानेवाले विशाल कारखानों में हर चंद घंटों में चप्पुओं से चलनेवाला एक जहाज़ तैयार होता था। वहाँ के बाकी कारखानों में काँच और महँगा कपड़ा तैयार किया जाता था जैसे लेस, ज़रीदार कपड़ा, बेल-बूटेदार रेशमी कपड़ा और मखमल। पश्चिमी देशों से, वेनिस के और विदेश के व्यापारी हथियार, घोड़े, ऐम्बर, रोएँदार खाल, लकड़ी, ऊन, मधु, मोम और गुलाम लाया करते थे। दूसरी तरफ
भूमध्य सागर के पूरब में, इसलाम देशों से सोना, चाँदी, रेशम, मसाले, सूत, कपड़ों की रंगाई के लिए रंग, हाथीदाँत, इत्र और ढेर सारी चीज़ें वेनिस में लायी जाती थीं। शहर के अधिकारियों ने इस बात पर कड़ी नज़र रखी कि बाज़ारों में आने-जानेवाले सभी सामानों पर कर लगाए जाएँ।पलाडीओ, टिशन और टिनटरेटो जैसे मशहूर शिल्पकारों और चित्रकारों ने वेनिस की खूबसूरती में चार चाँद लगाए। इस नगरी को ला सेरेनीसईमा कहा गया है जिसका मतलब है “सबसे शांत” या “जन्नत जैसा खूबसूरत।” इसलिए इस नगरी को “भूमध्य इलाके की मलिका, . . . दुनिया का सबसे अमीर और फलता-फूलता व्यापार केंद्र” कहना सही होगा। यह मलिका कई सदियों तक राज करती रही, मगर 16वीं सदी के दौरान उसके ऐश करने के दिन पूरे हुए जब व्यापार के खास मार्ग बदल दिए गए और ज़्यादातर व्यापारी अटलांटिक से होकर अमरीका जाने लगे।
पूरे भूमध्य इलाके में वेनिस की बस्तियाँ आस-पास नहीं बल्कि एक-दूसरे से काफी दूर थीं, इसलिए ये बस्तियाँ भौगोलिक रूप से कभी एक नहीं हो पायीं, न ही वे एक सरकार के अधीन रहकर और साथ काम करके सच्ची एकता का लुत्फ उठा पायीं। इसलिए यह तो होना ही था कि ये बस्तियाँ उसके हाथ से धीरे-धीरे निकल गयीं। आस-पास के राज्यों ने एक-एक करके वेनिस की बस्तियों को ज़ब्त कर लिया। आखिरकार, सन् 1797 में नेपोलियन प्रथम ने लगून में बसी इस नगरी पर फतह हासिल की और उसे ऑस्ट्रिया के हवाले कर दिया। सन् 1866 में वेनिस, इटली का हिस्सा बन गयी।
ख्वाबों जैसी नगरी
कई लोग जब पहली बार वेनिस में कदम रखते हैं तो उन्हें ऐसा लगता है मानो वे समय की धारा में दो या तीन सौ साल पीछे चले गए हैं। पूरी नगरी का माहौल ही बिलकुल अलग है, ऐसा माहौल आपको दुनिया के किसी और शहर में नहीं मिलेगा।
वेनिस की एक खासियत है, इस जगह की शांति। तंग गलियों में चल रहे लोगों के पैरों की आवाज़ ज़्यादातर वक्त नहरों पर चलनेवाली कश्तियों की आवाज़ के साथ-साथ सुनायी नहीं पड़ती। मगर नहरों पर जहाँ-जहाँ पत्थरों के बने मेहराबदार पुल आते हैं, वहाँ ट्रैफिक की आवाज़ सुनायी देती है। यहाँ मोटर गाड़ियों के बजाय कश्तियाँ चलती हैं क्योंकि नहरें “सड़कों” का काम करती हैं। इस नगरी में एक-से-बढ़कर-एक खूबसूरत नज़ारे हैं। सेंट मार्क चौक जिसमें एक बड़ा गिरजाघर और घंटाघर है, और चौक के ठीक सामने हरे लगून पर चमचमाती सूरज की किरणें, ये कुछ ऐसे नज़ारे हैं जो कलाकारों को प्रेरित करते हैं कि वे इस खूबसूरती को अपनी कला में उतार लें।
नगरी के मुख्य चौक यानी सेंट मार्क चौक पर खुली हवा में रेस्तराँ हैं जहाँ पर सैलानियों और निवासियों की भीड़ लगती है। इन रेस्तराँ में आप चाय-कॉफी या फिर जलाटो आइसक्रीम के साथ-साथ क्लासिक संगीत का भी मज़ा ले सकते हैं जो वहाँ मौजूद छोटा-सा ऑरकेस्ट्रा बजाता है। रेस्तराँ में बैठे-बैठे जब आप राह चलते लोगों को, आपको चारों ओर से घिरे लाजवाब इमारतों को देखते हैं और दूर-दूर तक आपको एक भी कार नज़र नहीं आती तो आपको सचमुच लगेगा जैसे आप समय की धारा में पीछे चले गए हों।
कला प्रेमियों के लिए इस नगरी में एक खास आकर्षण है। यहाँ के ढेरों महलों, अजायबघरों और गिरजों में कई मशहूर कलाकारों की पेंटिंग मौजूद हैं। मगर कुछ सैलानी बस तंग गलियों में घूमने और अपने चारों तरफ के अनजाने नज़ारों को निहारने में ही खुश हैं। यहाँ दुकानों की कोई कमी नहीं जहाँ पर सैलानी ऐसा सामान खरीद सकते हैं जिसके लिए यह नगरी मशहूर है। जैसे, बुरानो द्वीप में तैयार किया गया लेस और कढ़ाई का काम, और मूरानो द्वीप में तैयार किया गया बेहतरीन क्रिस्टल और काँच का सामान। वेपरेटो या मोटरबोट के ज़रिए आप इन दोनों में से किसी एक द्वीप में जाकर देख सकते हैं कि ये चीज़ें कैसे बनती हैं। मोटरबोट का छोटा-सा सफर अपने-आप में एक यादगार सफर है।
यहाँ मौजूद विशाल महल और उनके नोकदार मेहराब इस बात का सबूत देते हैं कि एक ज़माने में यहाँ बाइज़ेन्टीनी साम्राज्य का राज हुआ करता था। ग्रैंड कैनाल पर मशहूर रीयाल्टो पुल इस नगरी का सबसे मुख्य रास्ता है। यहाँ पर सैलानियों की भीड़ इस शानदार पुल को और उसके नीचे से बिना आहट किए गुज़रनेवाले पतले और काले रंग के गॉन्डोला (एक किस्म की नौका) को देखने आती है।
वजूद कायम रखने की जद्दोजेहद आज भी जारी
‘जन्नत जैसे खूबसूरत’ वेनिस “गणराज्य” को मिटे हुए 200 साल बीत चुके हैं, मगर अपने वजूद को कायम रखने की वेनिस की जद्दोजेहद आज भी जारी है। लेकिन यह एक अलग किस्म की जद्दोजेहद है। सन् 1951 में, इस ऐतिहासिक नगरी की आबादी 1,75,000 थी। मगर ज़मीन की कीमत बढ़ने, नौकरी और आधुनिक सहूलियतों की कमी की वजह से सन् 2003 में यह आबादी गिरकर सिर्फ 64,000 रह गयी। इस नगरी से जुड़ी कई पेचीदा सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ हैं जिन्हें सुलझाया जाना ज़रूरी है। जैसे, धीरे-धीरे खत्म हो रही इस नगरी को एक नयी शक्ल देनी चाहिए कि नहीं और अगर हाँ तो कैसे।
सन् 1920 के दशक में वेनिस की तंगहाली को दूर करने की उम्मीद से महाद्वीप के एक इलाके में तेल को साफ करने के कारखाने खोले गए। इन कारखानों तक तेलपोत पहुँच सकें इसके लिए लगून की नहर को गहरा किया गया। हालाँकि इस कारोबार से लोगों को नौकरियाँ मिलीं, मगर इससे प्रदूषण भी फैला। साथ ही, आक्वा आल्टा (पूरे ज्वार का समय) नाम के ज्वार-भाटे से बार-बार बाढ़ आती है जिससे यह ऐतिहासिक नगरी धीरे-धीरे मिटती जा रही है।
बरसों से यह एक जानी-मानी बात रही है कि लगून के वातावरण और उसके पानी का बहाव मिलकर एक ऐसा नाज़ुक और कुदरती तालमेल बनाते हैं जिस पर पूरी नगरी का वजूद टिका हुआ है। सन् 1324 से ही वेनिस के लोगों ने उन नदियों की दिशा बदलने का बहुत बड़ा काम हाथ में लिया जो लगून में बालू-मिट्टी जमा करके उसे तबाह करने का खतरा पैदा कर रही थीं। अठारहवीं सदी में उन्होंने समुद्री दीवारें खड़ी कीं ताकि एड्रिआटिक सागर का पानी लगून में तेज़ी से बहकर उन्हें तबाह न कर दे।
मगर अब वेनिस की हालत पहले से ज़्यादा नाज़ुक दिखायी दे रही है। कारखानों के इस्तेमाल के लिए जो पानी ज़मीन से निकाला गया, उससे ज़मीन धस रही है। हालाँकि इसे रोका गया है और उम्मीद की जाती है कि ज़मीन और नहीं धसेगी मगर फिर भी दुनिया में समुद्रतल लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसके अलावा, लगून का इलाका भी घट गया है क्योंकि लगून के छिछले इलाके में से पानी निकालकर उसे ज़मीन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे जल और थल के बीच का संतुलन बिगड़ गया है। लंबे अरसे से पूरे ज्वार का समय इस नगरी के लिए एक खतरा रहा है मगर अब यह खतरा और भी बढ़ गया है। बीसवीं सदी की शुरूआत में एक ही साल के अंदर सेंट मार्क चौक में पाँच से सात दफा बाढ़ आयी थी। सन् 2000 में सेंट मार्क चौक में 80 दफा बाढ़ आयी।
वेनिस जिन समस्याओं से गुज़र रही है, उससे कहीं उसका अनोखा इतिहास और उसकी कला की बेमिसाल विरासत मिट न जाए, इस बात को लेकर तमाम दुनिया में चिंता फैली हुई है। इस नगरी को पूरे ज्वार के समय से बचाने और पर्यावरण की हिफाज़त करने के मकसद से खास कानून पास किए गए हैं। मगर इस बात का ध्यान रखा गया है कि इससे बंदरगाह के कामों में कोई रुकावट न आए, न ही लोगों की रोज़ाना ज़िंदगी में कोई खलल पैदा हो। कानून तो खैर बनाए गए हैं, मगर उसे लागू करने का सबसे बढ़िया उपाय क्या होगा, यह अभी तक नहीं सोचा गया है।
नहरों के किनारों की ऊँचाई बढ़ाने, पक्की ज़मीन को वाटर-प्रूफ बनाने जिससे आक्वा आल्टा के समय पानी ज़मीन से ऊपर न आए और उस दौरान गंदा पानी वापस घरों में न जाए, इन सब पर काम शुरू किया गया है। इस समस्या से निपटने का एक और तरीका जिस पर काफी बहस छिड़ी है, वह है लगून में दाखिल होनेवाले रास्तों पर ऐसी आड़ का निर्माण करना जो तब खड़ी की जा सके जब पूरे ज्वार का खतरा रहता है।
इस नगरी को बचाने का मकसद पूरा करने के लिए काफी समय, ताकत और साधन की ज़रूरत है। ‘समंदर पर खड़ी शानदार नगरी’ का इतिहास वाकई दिलचस्प है। मगर जैसे अलग-अलग लेखकों ने कहा, अब खतरा यह है कि “बाहरवाले इस नगरी को एक अजायबघर बना देंगे और वहाँ रहनेवाली आबादी की ज़रूरतों को नकार देंगे यहाँ तक कि उन्हें अपनी नगरी छोड़ने के लिए मजबूर कर देंगे।” वेनिस ने एक लंबे समय से एक मुश्किल पर्यावरण का सामना किया है। लेकिन “जब तक इस नगरी की सामाजिक या आर्थिक हालत ठीक नहीं की जाती, उसे लोगों से आबाद नहीं किया जाता और दोबारा एक गुलज़ार नगरी नहीं बनायी जाती, तब तक उसे पानी से बचाने का कोई फायदा नहीं होगा।” (g05 3/22)
[पेज 16 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
वेनिस
[पेज 16 पर तसवीर]
ग्रैंड कैनाल पर रीयाल्टो पुल
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
सैन जॉरजो माजोरे
[पेज 17 पर तसवीर]
सांता मारीआ देला सालूटे
[पेज 18 पर तसवीर]
ग्रैंड कैनाल के किनारे पर रेस्तराँ
[पेज 19 पर तसवीर]
सेंट मार्क चौक में आयी बाढ़
[चित्र का श्रेय]
Lepetit Christophe/ GAMMA
[पेज 16 पर चित्रों का श्रेय]
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