पिलग्रिम और प्यूरिटन—वे कौन थे?
पिलग्रिम और प्यूरिटन—वे कौन थे?
उत्तर अमरीका के मैसाचुसेट्स राज्य में प्लायमाउथ नाम का एक छोटा शहर है। उसके समुद्र तट पर एक बड़ा-सा ग्रेनाइट पत्थर है, जिस पर संख्या ‘1620’ गड़ी हुई है। इस पत्थर का नाम ‘प्लायमाउथ चट्टान’ है, और माना जाता है कि इसकी पासवाली एक जगह पर, आज से करीब 400 साल पहले यूरोप से लोगों का एक झुंड आ बसा था। कुछ लोग उन्हें पिलग्रिम या पिलग्रिम फादर्स के नाम से जानते हैं।
उत्तर अमरीका के कई लोगों ने इन पिलग्रिम के बारे में कहानियाँ सुनी हैं कि कैसे वे कटनी के मौके पर, अपने अमरीकी आदिवासी दोस्तों को न्यौता देते और उनकी खूब खातिरदारी करते थे। पर असल में ये पिलग्रिम कौन थे और वे उत्तर अमरीका क्यों आए थे? जवाब के लिए आइए हम अँग्रेज़ राजा हेनरी अष्टम के ज़माने में चलें।
इंग्लैंड में धर्म ने मचायी खलबली
अमरीका की ओर पिलग्रिम लोगों की रवानगी से करीब 100 साल पहले, इंग्लैंड एक रोमन कैथोलिक देश था और राजा हेनरी अष्टम को पोप की तरफ से यह खिताब मिला था, ‘विश्वास का हिमायती।’ मगर बाद में कैथोलिक चर्च और हेनरी के बीच तकरार पैदा हो गयी, क्योंकि जब हेनरी ने अरागोन की केथरीन से अपनी शादी तोड़नी चाही, तो पोप क्लेमेंट सप्तम ने इस तलाक को रज़ामंदी देने से इनकार कर दिया। कैथरीन, हेनरी की छ: पत्नियों में से पहली थी।
एक तरफ जहाँ हेनरी अपनी घरेलू समस्याओं में उलझा हुआ था, वहीं दूसरी तरफ प्रोटेस्टेंट धर्म-सुधार आंदोलन ने यूरोप के ज़्यादातर इलाकों के रोमन कैथोलिक चर्च में खलबली मचा दी थी। हेनरी नहीं चाहता था कि वह चर्च से मिले सम्मान को खो दे, इसलिए उसने धर्म-सुधारकों को इंग्लैंड से दूर रखने की कोशिश की। पर बाद में उसने अपना इरादा बदल दिया। जब उसने देखा कि कैथोलिक चर्च उसकी शादी को रद्द करने के लिए मंज़ूर नहीं था, तो उसने इस चर्च को ही रद्द कर देने का फैसला किया। सन् 1534 में उसने इंग्लैंड के कैथोलिकों पर से पोप का दबदबा हटा दिया और खुद को ‘चर्च ऑफ इंग्लैंड’ का सबसे बड़ा मुखिया ऐलान किया। जल्द ही उसने कैथोलिक मठों को बंद करवा दिया और उनकी सारी जायदाद बेच डाली। सन् 1547 में हेनरी की मौत हो गयी, लेकिन तब तक प्रोटेस्टेंट धर्म पूरे इंग्लैंड में ज़ोर पकड़ रहा था।
हेनरी के बेटे एडवर्ड छठे ने पोप से दूरी बनाए रखी। मगर सन् 1553 में एडवर्ड की मौत के बाद, हेनरी और कैथरीन की बेटी मेरी रानी बन गयी। वह कैथोलिक थी, इसलिए पूरे देश को फिर से पोप की हुकूमत में लाने की कोशिश करने लगी। उसने
कई प्रोटेस्टेंट लोगों को देशनिकाला दे दिया और 300 से ज़्यादा लोगों को ज़िंदा जलवा दिया। इसलिए ताज्जुब नहीं कि उसका नाम, ‘ब्लडी मेरी’ (खूनी मेरी) पड़ा। मगर मेरी धर्म-सुधार की उस बड़े बदलाव की आँधी को रोक नहीं सकी। सन् 1558 में मेरी की मौत हो गयी, और इसके बाद, उसकी सौतेली बहन एलिज़बेथ प्रथम राज करने लगी। एलिज़बेथ ने ठान लिया था कि अब से इंग्लैंड के धार्मिक मामलों पर पोप का कोई ज़ोर नहीं चलेगा।मगर कुछ प्रोटेस्टेंट लोगों को लगा कि सिर्फ रोम के चर्च से अलग हो जाना काफी नहीं है। वे अपने धर्म पर से रोमन कैथोलिक चर्च की हर छाप मिटा देना चाहते थे। वे चर्च की उपासना को शुद्ध करना चाहते थे, इसलिए वे प्यूरिटन या शुद्धिवादी कहलाए। कुछ प्यूरिटन लोगों का मानना था कि बिशपों की कोई ज़रूरत नहीं है और हर कलीसिया को चर्च से अलग होकर अपनी बागडोर खुद सँभालनी चाहिए। ऐसे प्यूरिटन लोगों को सेपरेटिस्ट या अलग रहनेवाले कहा जाने लगा।
प्यूरिटन लोगों का यह मतभेद रानी एलिज़बेथ के राज में खुलकर सामने आया। रानी यह देखकर बहुत चिढ़ गयी कि कुछ पादरी, अपनी पोशाक के मामले में ढिलाई बरत रहे थे। इसलिए सन् 1564 में उसने कैंटरबरी के आर्चबिशप को आज्ञा दी कि वह सभी पादरियों के लिए एक खास तरह की पोशाक का नियम बना दे। मगर प्यूरिटन लोगों को लगा कि अगर प्रोटेस्टेंट पादरियों की वेश-भूषा कैथोलिक पादरियों की तरह एक जैसी कर दी जाए, तो यह कैथोलिक धर्म में वापस जाने के बराबर होगा। इसलिए उन्होंने इस हुक्म को मानने से इनकार कर दिया। इसके अलावा बिशपों और आर्चबिशपों की सदियों पुरानी परंपरा को मिटाने पर विवाद छिड़ गया। एलिज़बेथ ने बिशपों को अपने पद पर बने रहने दिया, और उनसे माँग की कि वे रानी को चर्च का मुखिया मानने की शपत खाएँ।
सेपरेटिस्ट बने पिलग्रिम
सन् 1603 में जेम्स प्रथम ने एलिज़बेथ की जगह राजगद्दी सँभाली और उसने सेपरेटिस्ट लोगों के साथ बहुत ज़ोर-ज़बरदस्ती की कि वे उसके हुक्म को मानें। इसलिए सन् 1608 में स्क्रूबी नाम के कसबे की एक सेपरेटिस्ट कलीसिया, वहाँ से हॉलैंड भाग गयी क्योंकि वहाँ ज़्यादा आज़ादी थी। पर कुछ समय बाद उन्होंने देखा कि वहाँ सभी धर्मों को मान्यता दी जा रही है और बदचलनी को बरदाश्त किया जा रहा है। अब उन्हें लगने लगा कि यहाँ रहना इंग्लैंड में रहने से भी बदतर है। इसलिए उन्होंने तय किया कि वे यूरोप छोड़ देंगे और उत्तर अमरीका जाकर नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करेंगे। अपने उसूलों की खातिर अपना घर-बार छोड़कर इतना लंबा सफर करने की इस त्याग की भावना की वजह से सेपरेटिस्ट लोग आगे चलकर पिलग्रिम (मुसाफिर) कहलाए।
इन पिलग्रिम लोगों ने, जिनमें बहुत-से सेपरेटिस्ट थे, वर्जीनिया की एक ब्रिटिश बस्ती में जा बसने की इजाज़त पायी और सितंबर 1620 में वे मेफ्लावर नाम के एक जहाज़ पर सवार होकर उत्तर अमरीका के लिए रुखसत हो गए। बच्चों और बड़ों को मिलाकर करीब 100 लोग, दो महीने के लंबे सफर के दौरान उत्तरी अतलांतिक महासागर की तूफानी लहरों के थपेड़े खाते रहे। आखिरकार वे केप कॉड नाम की जगह पर आकर उतरे, जो वर्जीनिया से काफी दूर (लगभग 800 किलोमीटर) उत्तर की ओर थी। वहाँ उन्होंने ‘मेफ्लावर कोमपैक्ट’ नाम का एक करारनामा लिखा। इस दस्तावेज़ में उन्होंने अपनी यह इच्छा बतायी कि वे अपनी एक अलग बिरादरी बनाएँगे और उसके नियम-कायदों को मानेंगे। इस तरह, दिसंबर 21, 1620 को वे प्लायमाउथ नाम की एक पासवाली जगह में बस गए।
नयी दुनिया में ज़िंदगी शुरू करना
जब ये शरणार्थी उत्तर अमरीका पहुँचे, तो वे वहाँ की सर्दियों से जूझने के लिए तैयार नहीं थे। कुछ ही महीनों में आधे से ज़्यादा लोग मर गए। मगर जब वसंत का मौसम आया तो सबने राहत की साँस ली। बचे-कुचे लोगों ने अपनी ज़रूरत के हिसाब से घर बनाए और वहाँ के आदिवासी अमरीकियों से वहाँ की फसलें उगाना सीखा। सन् 1621 में पतझड़ के आते-आते, पिलग्रिम इतने अमीर हो गए थे कि उन्होंने परमेश्वर को उसकी आशीष के लिए धन्यवाद देने का एक अलग समय तय किया। इसी मौके से ‘थैन्क्सगिविंग’ (धन्यवाद दिवस) नाम के त्यौहार की शुरूआत हुई, जो आज भी अमरीका और दूसरी कई जगहों में मनाया जाता है। इसके बाद यहाँ विदेश से और भी लोग आकर बस गए, इसलिए 15 साल से भी कम समय में प्लायमाउथ की आबादी 2,000 पार कर गयी।
इस दरमियान इंग्लैंड के कुछ और प्यूरिटन लोग, सेपरेटिस्ट की तरह इस नतीजे पर पहुँचे कि उनका “वादा किया देश” अतलांतिक महासागर के उस पार है। इसलिए सन् 1630 में उनका एक झुंड प्लायमाउथ के उत्तर की ओर आ पहुँचा और वहाँ ‘मैसाचुसेट्स बे कॉलनी’ नाम की बस्ती बनायी। सन् 1640 तक इंग्लैंड से आए करीब 20,000 लोग इस नयी जगह पर
बस गए थे जो न्यू इंग्लैंड कहलायी। सन् 1691 में जब ‘मैसाचुसेट्स बे कॉलनी’ ने प्लायमाउथ को अपने कब्ज़े में कर लिया, तो इसके बाद से सेपरेटिस्ट पिलग्रिम पहले की तरह बाकियों से अलग नहीं रहे। अब न्यू इंग्लैंड के धार्मिक मामलों में मैसाचुसेट्स के प्यूरिटन लोगों की ज़्यादा चलती थी, और मैसाचुसेट्स का बॉस्टन उस पूरे इलाके का धार्मिक केंद्र बन गया था। प्यूरिटन लोगों की उपासना का तरीका कैसा था?प्यूरिटन की उपासना
न्यू इंग्लैंड के प्यूरिटन लोगों ने पहले लकड़ी के सभा-घर बनाए जहाँ वे रविवार की सुबह इकट्ठे होते थे। अच्छे मौसम में तो अंदर की हालत ठीक रहती थी, मगर जाड़े में कट्टर-से-कट्टर प्यूरिटन भी टिक नहीं पाते थे। इन सभा-घरों को गर्म रखने का कोई इंतज़ाम नहीं था, इसलिए चर्च में बैठे लोगों का ठंड से बुरा हाल हो जाता था। प्रचारक अकसर हाथों में दस्ताने पहनते थे, ताकि इशारे करते वक्त उनके हाथ सभा-घर के अंदर की बर्फीली हवा से बचे रहें।
प्यूरिटन लोग फ्राँसीसी प्रोटेस्टेंट सुधारक जॉन कैल्विन की शिक्षाओं पर चलते थे। वे मानते थे कि सबकी तकदीर लिखी हुई है, और परमेश्वर ने पहले से तय कर दिया है कि वह किन लोगों का उद्धार करेगा और किन्हें हमेशा के लिए नरक की आग में झोंक देगा। लोग चाहे कुछ भी कर लें, वे परमेश्वर का लिखा बदल नहीं सकते। एक इंसान नहीं जानता कि उसकी किस्मत में क्या लिखा है, मरने के बाद स्वर्ग का परम-सुख हासिल करना या हमेशा तक लौ की तरह बस जलते ही रहना।
कुछ समय बाद, प्यूरिटन प्रचारक पश्चाताप के बारे में सिखाने लगे। उन्होंने चेतावनी दी कि हालाँकि परमेश्वर रहमदिल है, मगर जो उसके कानूनों को तोड़ते हैं, उन्हें वह सीधे नरक भेज देता है। लोगों से कायदे-कानून मनवाने के लिए, वे उन्हें जलते नरक की धमकियाँ देते थे। अठारहवीं सदी के एक प्रचारक, जॉनाथन एडवड्र्स ने एक बार इस विषय पर भाषण दिया, “पापियों की गरदन, गुस्सैल परमेश्वर के हाथ में।” नरक कुंड के बारे में उसने इतनी डरावनी बातें बतायीं कि उसका उपदेश सुननेवालों में दहशत फैल गयी और दूसरे पादरियों को उन्हें ढाढ़स देनी पड़ी।
अगर मैसाचुसेट्स से बाहर का कोई आकर यहाँ प्रचार करता तो उसकी जान की खैर नहीं थी। जब क्वेकर नाम की एक धार्मिक संस्था से प्रचारक मेरी डायर यहाँ प्रचार करने आयी, तो तीन बार उसे भगा दिया गया। मगर हर बार वह यहाँ लौट आयी और अपनी धारणाएँ सुनाने लगी। आखिरकार जून 1, 1660 को उसे बॉस्टन में फाँसी दे दी गयी। फिलिप रैटक्लिफ नाम का प्रचारक शायद भूल गया था कि प्यूरिटन धर्म-गुरू अपने दुश्मनों का क्या हश्र करते हैं। उसने न्यू इंग्लैंड की सरकार और सैलम के चर्च के खिलाफ भाषण दिए, जिसके लिए उसे कोड़े मारे गए और उसे जुर्माना भरना पड़ा। इसके बाद उसे वहाँ से भगाने से पहले उसके दोनों
कान काट दिए गए ताकि वह यह सबक हमेशा याद रखे। जब लोगों ने देखा कि प्यूरिटन दूसरे धर्मों को बिलकुल बरदाश्त नहीं करते हैं, तो वे मैसाचुसेट्स छोड़कर जाने लगे और इस तरह दूसरी बस्तियों की आबादी बढ़ती गयी।हेकड़ीबाज़ी का नतीजा मारा-मारी
बहुत-से प्यूरिटन खुद को परमेश्वर के “खास चुने हुए” समझते थे, इसलिए वे वहाँ के आदिवासियों को नीचा देखते थे और मानते थे उन्हें वहाँ रहने का कोई हक नहीं है। इसी रवैये की वजह से उनके और आदिवासियों के बीच दुश्मनी पैदा हुई और वहाँ के कुछ आदिवासियों ने प्यूरिटन लोगों पर हमला करना शुरू किया। इसलिए प्यूरिटन धर्म-गुरुओं ने सब्त के नियमों में ढील दे दी और आदमियों को उपासना के लिए जाते वक्त अपने साथ बंदूकें रखने की इजाज़त दी। फिर सन् 1675 में मामला और बिगड़ गया।
वामपानोआग आदिवासी जाति के मैटाकॉमेट ने, जो राजा फिलिप प्रथम के नाम से भी जाना जाता था, जब देखा कि प्यूरिटन आकर उसके लोगों की ज़मीन हड़प रहे हैं, तो उसने प्यूरिटन बस्तियों पर धावा बोल दिया, उनके घरों को जला डाला और लोगों के झुंड-के-झुंड का कत्लेआम कर दिया। अब प्यूरिटन लोगों ने बदला लिया और यह लड़ाई महीनों चलती रही। अगस्त 1676 में प्यूरिटन लोगों ने रोड नाम की टापू में फिलिप को पकड़कर उसकी गरदन उड़ा दी और उसके शरीर के चार टुकड़े कर दिए। इस तरह न्यू इंग्लैंड के आदिवासियों को आज़ादी दिलाने की राजा फिलिप की जंग खत्म हो गयी।
अठारहवीं सदी के दौरान, प्यूरिटन लोगों के जोश ने एक नया रूप लिया। मैसाचुसेट्स के कुछ प्रचारकों ने अँग्रेज़ हुकूमत का खंडन किया और लोगों में अंग्रेज़ों से आज़ाद होने की इच्छा जगायी। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी बातों में राजनीति और धर्म को जोड़ना शुरू कर दिया।
ज़्यादातर प्यूरिटन बड़े मेहनती और बहादुर थे और उन्हें अपने धर्म में गहरी आस्था थी। लोग आज भी “प्यूरिटन के अच्छे चरित्र” और “प्यूरिटन की ईमानदारी” की चर्चा करते हैं। लेकिन सिर्फ नेकदिल होना एक इंसान को गलत शिक्षाओं से शुद्ध नहीं कर देता। और जहाँ तक धर्म में राजनीति को मिलाने की बात है, यीशु मसीह ने खुद को इससे बिलकुल दूर रखा। (यूहन्ना 6:15; 18:36) और मार-काट करना बाइबल में बतायी इस अहम सच्चाई के खिलाफ है: “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।”—1 यूहन्ना 4:8.
क्या आपका धर्म नरक की आग, किस्मत और ऐसी दूसरी शिक्षाएँ देता है जो बाइबल से नहीं हैं? क्या आपके धर्म के बड़े-बड़े लोग राजनीति में हिस्सा लेते हैं? अगर आप सच्चे दिल से परमेश्वर के वचन, बाइबल का अध्ययन करेंगे तो आप जान सकेंगे कि “शुद्ध और निर्मल भक्ति” क्या होती है जो सही मायनों में शुद्ध और परमेश्वर को मंज़ूर है।—याकूब 1:27. (g 2/06)
[पेज 29 पर बक्स/तसवीर]
प्यूरिटन और नरक की आग
नरक की आग के बारे में प्यूरिटन लोगों की शिक्षा परमेश्वर के वचन के खिलाफ थी। बाइबल सिखाती है कि मरे हुए अचेत हैं और उन्हें न दर्द का एहसास रहता है, न खुशियों का। (सभोपदेशक 9:5, 10) इसके अलावा, सच्चे परमेश्वर के ‘मन में कभी’ किसी को तड़पाने का खयाल तक नहीं आया है। (यिर्मयाह 19:5; 1 यूहन्ना 4:8) वह लोगों से गुज़ारिश करता है कि वे अपने बुरे तौर-तरीके छोड़ दें, और जो अपने पापों से पश्चाताप नहीं करते, उनके साथ भी वह दया से पेश आता है। (यहेजकेल 33:11) मगर प्यूरिटन प्रचारकों ने बाइबल की इन सच्चाइयों के उलट, परमेश्वर के बारे में यह तसवीर पेश की कि वह बहुत क्रूर है और इंसानों से बदला लेता है। उन्होंने ज़िंदगी के बारे में कठोर रवैया अपनाना सिखाया, जिसमें यह भी शामिल था कि दुश्मनों का मुँह बंद करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए।
[पेज 26 पर तसवीर]
सन् 1620 में पिलग्रिम उत्तर अमरीका पहुँचते हैं
[चित्र का श्रेय]
Harper’s Encyclopædia of United States History
[पेज 28 पर तसवीर]
सन् 1621 में पहला थैन्क्सगिविंग त्यौहार मनाते हुए
[पेज 28 पर तसवीर]
मैसाचुसेट्स में प्यूरिटन सभा-घर
[पेज 28 पर तसवीर]
जॉन कैल्विन
[पेज 28 पर तसवीर]
जॉनाथन एडवड्र्स
[पेज 29 पर तसवीर]
प्यूरिटन पति-पत्नी हथियार लेकर चर्च जाते हुए
[पेज 27 पर चित्र का श्रेय]
Library of Congress, Prints & Photographs Division
[पेज 28 पर चित्रों का श्रेय]
ऊपर बाँया: Snark/Art Resource, NY; ऊपर दाँया: Harper’s Encyclopædia of United States History; जॉन कैल्विन: Portrait in Paul Henry’s Life of Calvin, from the book The History of Protestantism (Vol. II); जॉनाथन एडवड्र्स: Dictionary of American Portraits/Dover
[पेज 29 पर चित्र का श्रेय]
चित्र: North Wind Picture Archives