गेबन—जंगली जीव-जंतुओं का आसरा
गेबन—जंगली जीव-जंतुओं का आसरा
गेबन में सजग होइए! लेखक के द्वारा
क्या आप गरम इलाके के एक समुद्र-तट की कल्पना कर सकते हैं, जहाँ हाथियों का झुंड घास-पत्तियाँ खाने में मस्त रहता है, दरियाई घोड़े पानी में बड़े मज़े से नहाते हैं और व्हेल और डॉल्फिन समुद्र के किनारे अठखेलियाँ करतीं हैं? अफ्रीका के तटवर्ती इलाके में 100 किलोमीटर के ऐसे कई समुद्री किनारे हैं, जहाँ आज भी इस तरह के दिलकश नज़ारे देखने को मिलते हैं।
अगर लोग चाहते हैं कि वे भविष्य में भी इस तरह के नज़ारों का लुत्फ उठाते रहें, तो ज़ाहिर-सी बात है कि इस अनोखे तटवर्ती इलाके को सुरक्षित रखना होगा। और खुशी की बात यह है कि 4 सितंबर,2002 को इस इलाके को सुरक्षित रखने का इंतज़ाम किया गया था। उस दिन गेबन के राष्ट्रपति, ओमर बोंगो ओडीमबा ने यह घोषणा की कि गेबन देश के 10 प्रतिशत इलाके को नैशनल पार्कों में तबदील किया जाएगा। इस इलाके में दूर-दूर तक फैली, साफ-सुथरी तट-रेखाएँ भी शामिल हैं।
यह इलाका करीब 30,000 वर्ग किलोमीटर तक फैला है। राष्ट्रपति, बोंगो ओडीमबा ने कहा: “गेबन एक खास आकर्षण बन सकता है और धरती के कोने-कोने से ऐसे सैलानियों को अपनी तरफ खींच सकता है, जो पृथ्वी के आखिरी बचे कुदरती अजूबे को देखने के लिए तरसते हैं।”
आखिर गेबन में ऐसी क्या खास बात है, जिसकी वजह से वहाँ के कुछ इलाकों को सुरक्षित रखना ज़रूरी हो गया? गेबन का तकरीबन 85 प्रतिशत हिस्सा अभी-भी एक बियाबान जंगल है और यहाँ उगनेवाले कम-से-कम 20 प्रतिशत किस्म के पौधे पूरी पृथ्वी में और कहीं नहीं पाए जाते। इतना ही नहीं, यहाँ के भूमध्यवर्तीय जंगल ऐसे बहुत-से जानवरों के लिए आसरा हैं, जिनका वजूद खतरे में है। जैसे, ज़मीन पर रहनेवाले गोरिल्ले, चिंपैंज़ी, जंगली हाथी वगैरह। हाल ही में बनाए गए नैशनल पार्कों से बहुत जल्द गेबन, अफ्रीका के तरह-तरह के जीव-जंतुओं का अनोखा सरपरस्त बन जाएगा।
लोआँगो—एक निराला सागर तट
अगर आप अफ्रीका में जंगली जीव-जंतुओं को देखना चाहते हैं, तो ‘लोआँगो नैशनल पार्क’ से बेहतर जगह और कोई नहीं है। कई किलोमीटर तक फैले इस सागर तट का पानी, शीशे जैसा साफ है और यह, मीठे पानी से भरी छिछली झीलों (लगून) और घने भूमध्यवर्तीय जंगल से घिरा है। लेकिन जो बात लोआँगो के सागर तट को निराला बनाती है, वह है इसकी रेत पर चहल-कदमी करते जानवर, जैसे दरियाई घोड़े, जंगली हाथी, भैंसें, चीते और गोरिल्ले।
लेकिन क्या वजह है कि जानवर, जंगल छोड़कर इस खुले सागर तट पर आते हैं? लोआँगो के सफेद रेतीले किनारे में हरी-हरी घास उगती है, जहाँ दरियाई घोड़े और भैंसें चरने आते हैं। इसके अलावा, तट के किनारे रोन्ये नाम के ताड़ के पेड़ उगते हैं और इनमें इतने फल लगते हैं कि जंगली हाथी उनके पास ठीक वैसे ही खिंचे चले आते हैं, जैसे छोटे बच्चे आइसक्रीम देखकर दौड़े चले आते हैं। मगर इस जगह की सबसे बड़ी खासियत है, यहाँ का एकांत माहौल। यहाँ एक भी इंसान नहीं रहता है, इसलिए रेत में आपको सिर्फ जानवरों के पैरों के निशान मिलेंगे।
क्योंकि इंसान ने अभी तक इस जगह पर घुसपैठ नहीं की है, इसलिए समुद्री कछुए (लैदरबैक टर्टल), जिनका वजूद खतरे में है, इस सुनसान समुद्र-तट पर अपने अंडे देने आते हैं। रोज़ी नाम की पतरिंगा (बी-इटर्स्) चिड़िया भी एकांत जगहों में अपना घोंसला बनाना पसंद करती है। इसलिए समुद्र में ज्वार उठने पर लहरें जिस हद तक पहुँचती हैं, वहाँ से कुछ ही मीटर की दूरी पर कई रोज़ी पतरिंगा रेत पर खुदाई करते हैं और पास-पास अपने घोंसले बनाते हैं। इसके अलावा, गर्मी के महीनों में हज़ार से भी ज़्यादा हम्पबैक व्हेल
सहवास करने के लिए लोआँगो के शांत पानी में इकट्ठा होते हैं।लोआँगो सागर तट और भूमध्यवर्तीय जंगल के बीच दो बड़े-बड़े लगून हैं। ये लगून मगरमच्छों और दरियाई घोड़ों के रहने के लिए एकदम सही जगह हैं। इनमें मछलियों की भरमार है और इनके किनारों पर ऐसे जंगल पाए जाते हैं, जिनमें मैनग्रोव नाम के पेड़ उगते हैं। इन खुले लगूनों के ऊपर अफ्रीका के मछलीमार उकाब और बाज़ (ऑसप्रे) खाने की तलाश में मँडराते रहते हैं, जबकि नीचे उथले पानी में अलग-अलग किस्म के रंगबिरंगे किलकिला पक्षी मछलियाँ ढूँढ़ते हैं। हाथियों को पानी में लोट-पोट करना बेहद पसंद है, इसलिए वे खुशी-खुशी लगून में तैरकर लोआँगो सागर तट तक पहुँच जाते हैं और वहाँ ठूँस-ठूँसकर अपना मनपसंद फल खाते हैं।
भूमध्यवर्तीय जंगल में, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर बंदर एक डाली से दूसरी डाली पर कूदते-फाँदते हुए नज़र आते हैं। जबकि जिन जगहों में कोई भी पेड़-पौधा नहीं है, वहाँ खिली धूप में रंगबिरंगी तितलियाँ यहाँ-वहाँ उड़ती दिखायी देती हैं। फलाहारी चमगादड़ (फ्रूट बैट) दिन में अपने मनपसंद पेड़ों पर आराम फरमाते हैं और रात में अपना ज़रूरी काम निपटाते हैं, यानी पूरे जंगल में बीज फैलाते फिरते हैं। जंगल के किनारों पर, चमचमाती शकरखोरा चिड़िया (सनबर्ड), फूलदार पेड़ों और झाड़ियों से रस चूसती हुई दिखायी देती है। इसलिए हम समझ सकते हैं कि लोआँगो की तारीफ में कही गयी यह बात सौ फीसदी सच है: “यह एक ऐसी जगह है, जहाँ आपको भूमध्यवर्तीय अफ्रीका की समाँ का बेहतरीन अनुभव मिलता है।”
लोपे—एक ऐसी जगह, जहाँ अब भी बड़ी तादाद में गोरिल्ले पाए जाते हैं
‘लोपे नैशनल पार्क’ में अनछुए वर्षा वन का एक बड़ा इलाका है। साथ ही, पार्क के उत्तर में घास का मैदान है, जिसकी नहर के पास पेड़ कतार में पाए जाते हैं। यह उन प्रकृति प्रेमियों के लिए बहुत ही बढ़िया जगह है, जो यह देखना चाहते हैं कि गोरिल्ले, चिंपैंज़ी या मैंड्रिल जंगल में कैसे गुज़र-बसर करते हैं। पाँच हज़ार वर्ग किलोमीटर के इस सुरक्षित इलाके में 3,000 से 5,000 गोरिल्ले धमा-चौकड़ी मचाते रहते हैं।
पार्क के एक भूतपूर्व अधिकारी, ऑगस्टिन सन् 2002 में गोरिल्ले के साथ हुई अनोखी मुलाकात को आज भी याद करते हैं। वे कहते हैं: “जब मैं जंगल में से जा रहा था, तब अचानक चार गोरिल्लों के एक परिवार से मेरा आमना-सामना हुआ। नर गोरिल्ला करीब 35 साल का था और उसकी पीठ पर स्लेटी रंग के बाल थे। वह इतना बड़ा था कि जब वह मेरे सामने खड़ा हुआ तो मैं बिलकुल ठिगना-सा नज़र आ रहा था। उसका वज़न कम-से-कम मेरे वज़न से तीन गुना ज़्यादा रहा होगा। दूसरों से मिले सुझाव के मुताबिक, मैं फौरन ज़मीन पर बैठ गया, अपना सिर नीचे झुका लिया और ज़मीन की ओर देखने लगा। ऐसा करना, अधीनता की निशानी मानी जाती है। इस पर नर गोरिल्ला मेरे बगल में आकर बैठ गया और अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया। फिर उसने मेरा हाथ लिया और मेरी हथेली खोलकर जाँच करने लगा। एक बार जब उसे यकीन हो गया कि उसके परिवार को मुझसे कोई खतरा नहीं, तो वह इत्मीनान से जंगल में चला गया। मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकता। पहली बार मैंने जाना कि जंगली जानवरों से उनके ही कुदरती घरों में रू-ब-रू होना अपने आपमें एक अलग अनुभव है! लोग, गोरिल्ला का माँस खाने के लिए या इस गलतफहमी से उन्हें मारते हैं कि वे खतरनाक होते हैं। मगर सच तो यह है कि गोरिल्ला स्वभाव से शांत रहनेवाला जानवर है और उनकी हिफाज़त करना हमारा फर्ज़ है।”
लोपे में मैंड्रिल नाम के भारी-भरकम अफ्रीकी बंदर बड़े समूह बनाकर रहते हैं। एक समूह में मैंड्रिलों की गिनती कभी-कभी हज़ार से भी ऊपर हो जाती है। यह दुनिया के बंदरों का सबसे बड़ा समूह होता है और वे बहुत शोरगुल मचाते हैं। इस बारे में कैमरून से आए एक सैलानी की ज़बानी सुनिए।
“हमारे गाइड ने कई मैंड्रिल के गले में बंधे रेडियो कॉलरों की मदद से पता लगा लिया था कि वे किधर हैं। (रेडियो कॉलर, ट्रांसमिटर से लगा एक पट्टा होता है और यह जानवरों को पहनाया जाता है, ताकि उनके दूर-दूर तक जाने पर भी उन पर नज़र रखी जा सके।) फिर हम उनके आने से पहले ही जंगल के एक भाग में जा पहुँचे। हमने झटपट एक छिपने की जगह बनायी और उनके आने का इंतज़ार करने लगे। बीस मिनट तक हमने ढेर सारी चिड़ियों के सुरीले गीत और कीड़ों की तरह-तरह की मधुर आवाज़ें सुनीं। फिर जब मैंड्रिल बंदरों
की टोली नज़दीक आयी, तो जंगल की यह शांति भंग हो गयी। टहनियों के टूटने की आवाज़ और उनकी ऊँची पुकार सुनकर मुझे ऐसा लगा मानो कोई बड़ा तूफान आ रहा हो। तभी मुझे मैंड्रिलों के नेता दिखायी दिए। वे बिलकुल सेना के आगे-आगे चलनेवाले सिपाहियों जैसे लग रहे थे, जो इलाके की जाँच-पड़ताल करते हैं। नीचे ज़मीन पर ये बड़े-बड़े नर बंदर तेज़ी से अपना कदम बढ़ाते हुए चले जा रहे थे, जबकि ऊपर मादा बंदर और बच्चे डाली-डाली पर छलाँग लगाते हुए जा रहे थे। अचानक एक नर मैंड्रिल बीच रास्ते में रुक गया और शक की निगाहों से चारों तरफ नज़र दौड़ाने लगा। दरअसल एक बच्चा मैंड्रिल, जो पेड़ों के सहारे आगे बढ़ रहा था, उसने हमें देख लिया और सबको खबरदार कर दिया। फिर क्या था, पूरी टोली और भी तेज़ी से आगे बढ़ने लगी और मारे गुस्से के वे और भी ज़्यादा होहल्ला मचाने लगे। फिर कुछ ही पल में वे वहाँ से गायब हो गए। मेरे गाइड ने अनुमान लगाया कि हमारे पास से करीब 400 मैंड्रिल गुज़रे हैं।”चिंपैंज़ी भी मैंड्रिल जितना ही ऊधम मचाते हैं, मगर उनकी झलक पाना मैंड्रिल से भी मुश्किल है, क्योंकि वे लगातार खाने की खोज में जंगल में बड़ी फुर्ती से चलते हैं। दूसरी तरफ, सैलानियों को लगभग हर बार पुटीन रंग के नाकवाले बंदर (पट्टी-नोस्ड) दिख ही जाते हैं। और कभी-कभी तो जंगल के किनारे घास के मैदान में ये बंदर बड़ी तादाद में पाए जाते हैं। ऐसा लगता है कि लोपे के जानवरों में से जिस जानवर को तनहाई में रहना पसंद है, वह है, सन-टेल नाम का बंदर। ये बंदर, गेबन के एक खास इलाके में ही पाए जाते हैं और सिर्फ 20 साल पहले ही उनका पता लगाया गया है।
टुराकोस (चटकीले रंग के अफ्रीकी पक्षी) और धनेश (हॉर्नबिल) जैसे जंगल के बड़े-बड़े, रंगबिरंगे पक्षी बड़ी भर्राई आवाज़ में अपनी मौजूदगी का ऐलान करते हैं। हिसाब लगाया गया है कि ‘लोपे नैशनल पार्क’ में पक्षियों की कुछ 400 जातियाँ पायी जाती हैं। इसलिए चिड़ियों को देखने और उनका अध्ययन करनेवालों के लिए यह एक मनपसंद जगह है।
तरह-तरह के जीव-जंतुओं का आसरा
गेबन में लोआँगो और लोपे जैसे 11 और नैशनल पार्क हैं। इनमें मैनग्रोव पेड़ों के जंगलों, अनोखे पेड़-पौधों और प्रवासी पक्षियों के इलाकों की हिफाज़त की जाती है। वन्य जीव संरक्षण संस्था के ली व्हाइट कहते हैं: “पूरे गेबन देश में ऐसे कई इलाकों को अलग रखा गया है, जहाँ सबसे बढ़िया वातावरण पाया जाता है। ये इलाके न सिर्फ बड़े-बड़े हैं बल्कि उन्हें बेहतरीन तरीके से सुरक्षित भी रखा गया है। सन् 2002 में, बहुत ही कम समय में उन्होंने आले किस्म के नैशनल पार्क तैयार किए हैं, जिनमें पूरे देश के तरह-तरह के जीव-जंतुओं की हिफाज़त होती है।”
राष्ट्रपति बोंगो ओडीमबा बेझिझक कबूल करते हैं कि बहुत-सी चुनौतियों को पार करना अभी-भी बाकी है। उन्होंने कहा: “जीव-जंतुओं की हिफाज़त करने का काम पूरी दुनिया में चलाए जाने की ज़रूरत है। और बेशक, इसके लिए हम इंसानों को न सिर्फ कुछ समय के लिए, बल्कि लंबे समय तक कई त्याग करने होंगे। क्योंकि तभी हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को कुदरत की खूबसूरतियाँ विरासत में दे पाएँगे, ताकि वे भी इससे सराबोर हो सकें।” (g 1/08)
[पेज 17 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
अफ्रीका
गेबन
गेबन के 13 नैशनल पार्क
लोपे नैशनल पार्क
लोआँगो नैशनल पार्क
[पेज 16, 17 पर तसवीरें]
हम्बैक व्हेल और आसमान से ली गयी लोआँगो की तसवीर
[चित्र का श्रेय]
व्हेल: Wildlife Conservation Society
[पेज 16, 17 पर तसवीरें]
एक मैंड्रिल (बायीं तरफ) और एक गोरिल्ला (दायीं तरफ)
[पेज 15 पर चित्र का श्रेय]
Robert J. Ross