हीमोग्लोबिन अणु एक गज़ब की कारीगरी
हीमोग्लोबिन अणु एक गज़ब की कारीगरी
“साँस लेना ज़िंदगी कायम रखने की ऐसी प्रक्रिया है, जो शायद बड़ी मामूली लगे। लेकिन यह प्रक्रिया तभी मुमकिन हो पाती है, जब एक पेचीदा अणु में पाए जानेवाले तरह-तरह के परमाणु साथ मिलकर काम करते हैं।”—मॉक्स एफ. पेरुट्स, जिन्हें हीमोग्लोबिन अणु पर अध्ययन करने के लिए सन् 1962 में नोबल पुरस्कार मिला।
साँस लेना हमारे लिए एक कुदरती बात है और हममें से ज़्यादातर लोग शायद ही इस पर ध्यान देते हों। लेकिन हीमोग्लोबिन के बिना हमारा साँस लेना नामुमकिन है। यह जटिल अणु हमारे सृष्टिकर्ता के हाथ की बेमिसाल कारीगरी का एक सबूत है। हमारे शरीर में मौजूद 300 खरब लाल रक्त कोशिकाओं की हरेक कोशिका में यह पाया जाता है। हीमोग्लोबिन का काम है, फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर के ऊतकों तक पहुँचाना। हीमोग्लोबिन के बिना हम पल-भर भी ज़िंदा नहीं रह सकते।
मगर हीमोग्लोबिन अणु कैसे सही वक्त पर ऑक्सीजन अणुओं को उठाते, उन्हें ठीक समय तक पकड़े रहते और सही समय पर छोड़ते हैं? इसके पीछे अणु की जटिल इंजीनियरिंग का हाथ है।
एक छोटी “टैक्सी”
कोशिका में पाए जानेवाले हीमोग्लोबिन अणु की तुलना एक छोटी टैक्सी से की जा सकती है, जिसमें चार दरवाज़े होते हैं। इसमें इतनी जगह होती है कि सिर्फ चार “यात्री” बैठ सकते हैं। इस टैक्सी में ड्राइवर की ज़रूरत नहीं होती, क्योंकि यह लाल रक्त कोशिका के अंदर ही अपना सफर तय करती है। लाल रक्त कोशिका एक ऐसा ट्रक है, जिसमें ढेरों हीमोग्लोबिन अणु भरे होते हैं।
हीमोग्लोबिन अणु का सफर तब शुरू होता है जब लाल रक्त कोशिकाएँ फेफड़ों के ऐलविओलाइ यानी “हवाई अड्डे” पर पहुँचती हैं। साँस लेने पर ऑक्सीजन के ढेरों अणु फेफड़ों में पहुँचते हैं, मानो हवाई अड्डे पर एक बड़ी भीड़ उतर आयी हो। यह छोटे-छोटे अणु टैक्सियों की तलाश में रहते हैं और जैसे ही लाल रक्त कोशिका के बड़े-बड़े ट्रक वहाँ पहुँचते हैं, ये उनमें चढ़ जाते हैं। उस वक्त कोशिका में पाए जानेवाले हीमोग्लोबिन यानी टैक्सियों के दरवाज़े बंद होते हैं। लेकिन कुछ ही समय बाद ऑक्सीजन के अणु भीड़-भाड़ से होते हुए टैक्सियों में बैठ जाते हैं।
फिर एक दिलचस्प घटना घटती है, लाल रक्त कोशिका के अंदर, हीमोग्लोबिन अणु अपना आकार बदलने लगता है। जैसे ही पहला यात्री हीमोग्लोबिन टैक्सी में घुसता है, उसके चारों दरवाज़े खुद-ब-खुद खुलने लगते हैं और बाकी यात्री आसानी से इसमें चढ़ जाते हैं। इस प्रक्रिया को कोऑपरेटिविटी कहते हैं। यह प्रक्रिया इतनी कारगर होती है कि एक ही बार साँस लेने पर लाल रक्त कोशिकाओं की सभी टैक्सियों की 95 प्रतिशत “सीटें” भर जाती हैं। एक लाल रक्त कोशिका में 25 करोड़ से भी ज़्यादा हीमोग्लोबिन अणु होते हैं, जिनमें तकरीबन 1 अरब ऑक्सीजन अणु समा सकते हैं! ये टैक्सियाँ जल्द-से-जल्द शरीर के ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए रवाना हो जाती हैं। मगर शायद आप सोचें, ‘ऑक्सीजन किस तरह कोशिका के अंदर सही वक्त तक बंद रहता है?’
असल में हरेक हीमोग्लोबिन के अंदर आयरन (लोहा) के परमाणु होते हैं और ऑक्सीजन के अणु उनसे जा चिपकते हैं। आपने शायद देखा होगा कि जब ऑक्सीजन, लोहा और पानी साथ मिलते हैं तो क्या होता है। लोहे पर ज़ंग लग जाता है और ऑक्सीजन ठोस रूप ले लेता है। तो फिर सवाल उठता है कि लाल रक्त कोशिका के गीले माहौल में कैसे हीमोग्लोबिन के अंदर आयरन और ऑक्सीजन बिना ज़ंग लगे चिपके रहते हैं और वक्त आने पर अलग हो जाते हैं?
एक करीबी जाँच
जवाब जानने के लिए आइए हीमोग्लोबिन अणु की करीबी से जाँच करें। यह अणु हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर और ऑक्सीजन के करीब 10,000 परमाणुओं से मिलकर बना होता है और ये सभी परमाणु बड़ी तरतीब से आयरन के चारों परमाणुओं के आस-पास रखे होते हैं। लेकिन आयरन के इन चार परमाणुओं को इतने सारे परमाणुओं की ज़रूरत क्यों होती है?
आम तौर पर जब परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ती या घटती है, तो वह आयन बन जाता है। हिमोग्लोबीन में आयरन के परमाणु, आयन के रूप में होते हैं और उन्हें काबू में रखना ज़रूरी होता है। क्योंकि अगर इन्हें यूँ ही छोड़ दिया जाए तो ये आयन, कोशिका को नुकसान पहुँचा सकते हैं। ये चार आयन, चार सख्त तश्तरी के बीच जड़े होते हैं। * ये चारों तश्तरियाँ हीमोग्लोबिन अणु में इस तरह सावधानी से बिठायी हुई होती हैं कि ऑक्सीजन के अणु तो आयन तक पहुँच पाते हैं, लेकिन पानी के अणु इस तक नहीं पहुँचते। यही वजह है कि आयन में ज़ंग नहीं लगता।
हीमोग्लोबिन में पाया जानेवाला आयरन खुद-ब-खुद ऑक्सीजन से नहीं जुड़ता या छुटता। अगर ये चार आयरन के परमाणु, आयन के रूप में मौजूद न होते, तो हीमोग्लोबिन अणु किसी काम का नहीं होता। आयन बखूबी हीमोग्लोबिन में जड़े होते हैं, इसलिए ये खून की नलियों से होते हुए ऑक्सीजन को ऊतकों तक आसानी से पहुँचाते हैं।
सवारी उतारना
जैसे ही लाल रक्त कोशिकाएँ धमनियों से होकर खून की छोटी-छोटी नलियों में आती हैं, तो कोशिका के आस-पास का तापमान बदल जाता है। फेफड़ों के मुकाबले नलियों
में तापमान गरम होता है। साथ ही, नलियों में ऑक्सीजन की कमी होती है और कार्बनडाइऑक्साइड से बननेवाले एसीड (अम्ल) की मात्रा ज़्यादा होती है। ये बदलाव हीमोग्लोबिन या टैक्सी के लिए एक संकेत होता है कि उन्हें अब अपने प्यारे यात्रियों यानी ऑक्सीजन को उतारने का वक्त आ गया है।ऑक्सीजन को उसकी मंज़िल तक पहुँचाने के बाद, हीमोग्लोबिन अपना आकार एक बार फिर बदल लेता है। हीमोग्लोबिन टैक्सी के दरवाज़ें इतने ही खुलते हैं कि ऑक्सीजन बाहर निकल जाए और फिर “दरवाज़ें बंद हो जाते हैं।” ऐसा इसलिए होता है कि ऑक्सीजन का कोई अणु अंदर न आ सके। वापसी यात्रा में हीमोग्लोबिन कार्बनडाइऑक्साइड को उठा ले जाते हैं।
इसके बाद, लाल रक्त कोशिकाएँ दोबारा फेफड़ों में पहुँचती हैं जहाँ हीमोग्लोबिन, कार्बनडाइऑक्साइड को छोड़कर फिर से जीवन कायम रखनेवाली ऑक्सीजन की सवारी बैठा लेते हैं। एक लाल रक्त कोशिका करीब 120 दिन तक जिंदा रहती है। इस दौरान हज़ारों बार फेफड़ों से लेकर ऊतकों तक उनका सफर जारी रहता है।
वाकई, हीमोग्लोबिन कोई मामूली अणु नहीं। जैसा इस लेख की शुरूआत में बताया गया था यह एक ‘पेचीदा अणु’ है, जिसके अंदर बहुत-सी हरकतें होती रहती हैं। सचमुच, जीवन कायम रखनेवाली ये छोटी-छोटी चीज़ें जिस बारीकी से और शानदार तरीके से रची गयी हैं, उसे देखकर हम दंग रह जाते हैं और सृष्टिकर्ता के लिए हमारा दिल एहसान से भर जाता है! (g10-E 09)
[फुटनोट]
^ तश्तरी एक अलग किस्म का अणु है, जिसे हीम कहा जाता है। यह एक प्रोटीन नहीं है। दरअसल जब हीम, ग्लोबिन नाम के प्रोटीन के साथ मिलता है, तो हीमोग्लोबिन बनता है।
[पेज २५ पर बक्स/चार्ट]
अपने हीमोग्लोबिन का अच्छा खयाल रखिए!
अकसर आपने लोगों को यह कहते सुना होगा कि मुझमें “खून की कमी” है। असल में खून की कमी कुछ और नहीं बल्कि आयरन या हिमोग्लोबिन की कमी होती है। अगर हिमोग्लोबिन के अणु में आयरन के चार ज़रूरी परमाणु न हों, तो बाकी 10,000 परमाणु किसी काम के नहीं। इसलिए पौष्टिक आहार लेना ज़रूरी है, जिसमें भरपूर मात्रा में आयरन हो। यहाँ दिए चार्ट में कुछ खाने की चीज़ों के नाम दिए गए हैं, जिनसे हमें आयरन मिलता है।
आयरन से भरपूर भोजन लेने के अलावा, आपको ये सलाहें भी माननी चाहिए: 1. रोज़ाना कसरत कीजिए। 2. सिगरेट मत पीजिए। 3. जहाँ लोग सिगरेट पी रहे हों, वहाँ मत रुकिए। लेकिन सिगरेट पीने या किसी और तरीके से तंबाकू का सेवन करना क्यों खतरनाक है?
सिगरेट के धूँए में भी वही जानलेवा कार्बन-मोनोऑक्साइड होता है, जो गाड़ियों से निकलनेवाले धूँए में पाया जाता है। इससे बेवक्त मौत हो जाती है और कई लोगों ने इससे खुदकुशी की है। ऑक्सीजन के मुकाबले कार्बन-मोनोऑक्साइड 200 गुना ज़्यादा आसानी से और मज़बूती से हिमोग्लोबिन में पाए जानेवाले आयरन से जुड़ जाता है। इसलिए सिगरेट पीनेवालों पर इसके धूँए का फौरन बुरा असर होता है क्योंकि यह उसे ऑक्सीजन लेने से रोकता है।
[चार्ट]
भोजन(100 ग्राम) आयरन(मिलीग्राम)
चिवड़ा (पोहा) 20.0
हरा धनिया 18.5
मेथी 16.5
गेहूँ का आटा 11.5
सोयाबीन 11.5
पालक 10.9
तिल 10.5
चना दाल 9.1
हरी मूँग (साबुत) 7.3
चिकन लीवर 6.5
गाजर 2.2
[पेज 23 पर रेखाचित्र/तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
प्रोटीन की बनावट
ऑक्सीजन
आयरन का अणु
हीम
साँस लेने पर फेफड़ों में ऑक्सीजन अणु, हीमोग्लोबिन से जुड़ जाता है
इस अणु के जुड़ने के बाद हीमोग्लोबिन का आकार थोड़ा बदल जाता है, जिससे तीन और ऑक्सीजन अणु इसमें आ जुड़ते हैं
हीमोग्लोबिन फेफड़ों से ऑक्सीजन अणु को उठाकर उन्हें ऊतकों में छोड़ते हैं