“याह की स्तुति करो!”
“याह की स्तुति करो!”
“सब प्राणी याह की स्तुति करें।”—भजन १५०:६, NHT.
१, २. (क) पहली शताब्दी में सच्ची मसीहियत किस हद तक फली-फूली थी? (ख) प्रेरितों ने कौन-सी पूर्वचेतावनी दी थी? (ग) धर्मत्याग कैसे विकसित हुआ?
यीशु ने अपने चेलों को मसीही कलीसिया में संगठित किया, जो पहली शताब्दी में फली-फूली। कठोर धार्मिक विरोध के बावजूद, ‘सुसमाचार का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया था।’ (कुलुस्सियों १:२३) लेकिन यीशु मसीह के प्रेरितों की मृत्यु के बाद, शैतान ने कपटपूर्ण रीति से धर्मत्याग भड़काया।
२ प्रेरितों ने इसकी पहले से चेतावनी दी थी। उदाहरण के लिए, पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों को कहा: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने लोहू से मोल लिया है। मैं जानता हूं, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेड़िए तुम में आएंगे, जो झुंड को न छोड़ेंगे। तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेढ़ी बातें कहेंगे।” (प्रेरितों २०:२८-३०; २ पतरस २:१-३; १ यूहन्ना २:१८, १९ भी देखिए।) अतः, चौथी शताब्दी में, धर्मत्यागी मसीहियत रोमी साम्राज्य के साथ हाथ मिलाने लगी। कुछ शताब्दियों बाद, पवित्र रोमी साम्राज्य, जिसका रोम के पोप के साथ संबंध था, मनुष्यजाति के एक बड़े भाग पर शासन करने लगा। समय के बीतने पर, प्रोटॆस्टॆंट धर्मसुधार ने कैथोलिक चर्च के दुष्ट अतिक्रमणों के विरुद्ध विद्रोह किया, लेकिन वह सच्ची मसीहियत पुनःस्थापित करने में असफल रहा।
३. (क) कब और कैसे सुसमाचार का प्रचार सारी सृष्टि को किया गया? (ख) कौन-सी बाइबल आधारित अपेक्षाएँ १९१४ में पूरी हुईं?
३ फिर भी, जैसे-जैसे १९वीं शताब्दी का अन्त निकट आया, बाइबल विद्यार्थियों का एक निष्कपट समूह फिर से ‘सुसमाचार की आशा का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में करने’ और उसे फैलाने में व्यस्त था। बाइबल भविष्यवाणी के उनके अध्ययन के आधार पर, इस समूह ने ३० से भी अधिक साल पहले से १९१४ की ओर संकेत किया कि यह ‘अन्य जातियों के समय’ के अन्त को चित्रित करेगा, अर्थात् “सात काल,” या २,५२० सालों की एक समयावधि, जो सा.यु.पू. ६०७ में यरूशलेम के विनाश के साथ शुरू हुई। (लूका २१:२४; दानिय्येल ४:१६) इनकी प्रत्याशाओं की पूर्ति में, १९१४ पृथ्वी पर मानव मामलों में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। स्वर्ग में भी ऐतिहासिक घटनाएँ घटीं। तब सनातन राजा ने अपने साथी राजा, यीशु मसीह को इस पृथ्वी पर से सब दुष्टता को साफ़ करने और परादीस पुनःस्थापित करने की तैयारी में एक स्वर्गीय सिंहासन पर बिठाया।—भजन २:६, ८, ९; ११०:१, २, ५.
मसीहाई राजा को देखिए!
४. यीशु अपने नाम, मीकाईल के अनुरूप कैसे जीया?
४ वर्ष १९१४ में इस मसीहाई राजा, यीशु ने कार्यवाही शुरू की। बाइबल में उसे मीकाईल भी कहा गया है, जिसका अर्थ है “परमेश्वर के समान कौन है?,” क्योंकि वह यहोवा की सर्वसत्ता का दोषनिवारण करने पर तुला हुआ है। जैसे प्रकाशितवाक्य १२:७-१२ में अभिलिखित है, प्रेरित यूहन्ना ने दर्शन में वर्णन किया कि क्या होता: “स्वर्ग पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर और उसके दूत उस से लड़े। परन्तु प्रबल न हुए, और स्वर्ग में उन के लिये फिर जगह न रही। और वह बड़ा अजगर अर्थात् वही पुराना सांप, जो इब्लीस और शैतान कहलता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए।” वास्तव में एक बड़ी पराजय!
५, ६. (क) १९१४ के बाद स्वर्ग से कौन-सी रोमांचक उद्घोषणा की गयी? (ख) मत्ती २४:३-१३ इससे कैसे संबंध रखता है?
५ तब स्वर्ग में एक बुलंद आवाज़ ने घोषणा की: “अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्थ, और राज्य, और उसके मसीह का अधिकार प्रगट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला, जो रात दिन हमारे परमेश्वर के साम्हने उन पर दोष लगाया करता था, गिरा दिया गया। और वे [वफ़ादार मसीही] मेम्ने [मसीह यीशु] के लोहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्त हुए, और उन्हों ने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली।” इसका अर्थ खराई बनाए रखनेवाले उन लोगों के लिए छुटकारा है जिन्होंने यीशु के बहुमूल्य छुड़ौती बलिदान पर विश्वास रखा है।—नीतिवचन १०:२; २ पतरस २:९.
६ स्वर्ग पर से बड़ी आवाज़ ने आगे कहा: “इस कारण, हे स्वर्गो, और उन में के रहनेवालो मगन हो; हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” इस प्रकार इस पृथ्वी के लिए भविष्यवादित “हाय” विश्व युद्धों, अकालों, महामारियों, भूकम्पों, और अराजकता में प्रकट हुई है जिन्होंने इस शताब्दी में पृथ्वी को पीड़ित किया है। जैसे मत्ती २४:३-१३ दोहराता है, यीशु ने पूर्वबताया कि ये ‘इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति के चिन्ह’ (NW) का भाग होंगे। भविष्यवाणी की पूर्ति में, १९१४ से मनुष्यजाति ने पृथ्वी पर ऐसे दुःख का अनुभव किया है जो इससे पहले संपूर्ण मानव इतिहास में कभी अनुभव नहीं किया गया था।
७. यहोवा के साक्षी अत्यावश्यकता के साथ प्रचार क्यों करते हैं?
७ शैतानी हाय के इस युग में, क्या मनुष्यजाति को भविष्य की आशा मिल सकती है? जी हाँ, मिल सकती है, क्योंकि मत्ती १२:२१ यीशु के बारे में कहता है: “अन्यजातियां उसके नाम पर आशा रखेंगी”! राष्ट्रों के बीच तनावपूर्ण परिस्थितियाँ न केवल “इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का चिन्ह” हैं परन्तु मसीहाई राज्य के स्वर्गीय राजा के तौर पर ‘यीशु की उपस्थिति का चिन्ह’ भी हैं। उस राज्य के बारे में यीशु आगे कहता है: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती २४:१४) आज पृथ्वी पर कौन-सा एक समूह है जो परमेश्वर के राज्य शासन की महान आशा के बारे में प्रचार कर रहा है? यहोवा के साक्षी! अत्यावश्यकता के साथ, वे सार्वजनिक रूप से और घर-घर उद्घोषित करते हैं कि परमेश्वर की धार्मिकता और शांति का राज्य संसार के मामलों को जल्द ही सँभालने वाला है। क्या आप इस सेवकाई में भाग ले रहे हैं? आपका इससे बड़ा कोई विशेषाधिकार नहीं हो सकता!—२ तीमुथियुस ४:२, ५.
यह “अन्त” कैसे आता है?
८, ९. (क) न्याय “परमेश्वर के घर” से कैसे शुरू हुआ? (ख) मसीहीजगत ने परमेश्वर के वचन का उल्लंघन कैसे किया है?
८ मनुष्यजाति न्याय के समय में प्रवेश कर चुकी है। हमें १ पतरस ४:१७ के फुटनोट में बताया गया है कि न्याय “परमेश्वर के घर” से शुरू हुआ—तथाकथित मसीही संगठनों का न्याय जो १९१४-१८ के दौरान प्रथम विश्व युद्ध के जनसंहार के साथ इन “अन्तिम दिनों” की शुरूआत से स्पष्ट रहा है। मसीहीजगत इस न्याय में कैसा साबित हुआ है? १९१४ से युद्धों के समर्थन में गिरजों की स्थिति पर विचार कीजिए। क्या पादरीवर्ग उन ‘निर्दोष और दरिद्र लोगों के लोहू के चिन्ह’ से कलंकित नहीं है जिन्हें युद्धों में भेजने के लिए उन्होंने बाइबल का इस्तेमाल किया है?—यिर्मयाह २:३४.
९ मत्ती २६:५२ के अनुसार, यीशु ने कहा: “जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।” इस शताब्दी के युद्धों के बारे में यह कितना सच रहा है! पादरीवर्ग ने युवाओं से अन्य युवाओं का, और साथ ही अपने धर्म के युवाओं का जनसंहार करने का आग्रह किया है—कैथोलिक ने कैथोलिक को मारा है और प्रोटॆस्टॆंट ने प्रोटॆस्टॆंट को मारा है। राष्ट्रवाद को परमेश्वर और मसीह से भी ऊपर उठाया गया है। हाल ही में, कुछ अफ्रीकी राष्ट्रों में, नृजातीय संबंधों को बाइबल सिद्धांतों से आगे रखा गया है। रूवाण्डा में, जहाँ अधिकतर जनसंख्या कैथोलिक है, लगभग पाँच लाख लोग नृजातीय हिंसा में क़त्ल किए गए। पोप ने वैटिकन समाचारपत्र लॉसेरवातोरे रोमानो में स्वीकार किया: “यह पूरी तरह जातिसंहार है, जिसके लिए, दुःख की बात है कि कैथोलिक भी ज़िम्मेदार हैं।”—यशायाह ५९:२, ३; मीका ४:३, ५ से तुलना कीजिए।
१०. यहोवा झूठे धर्म पर कैसा न्याय कार्यान्वित करेगा?
१० सनातन राजा उन धर्मों को किस दृष्टि से देखता है जो मनुष्यों को एक दूसरे का क़त्ल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या जो ख़ामोश रहते हैं जबकि उनके झुंड के सदस्य दूसरे सदस्यों की हत्या करते हैं? झूठे धर्म की विश्वव्यापी व्यवस्था, बड़े बाबुल के बारे में प्रकाशितवाक्य १८:२१, २४ हमें बताता है: “एक बलवन्त स्वर्गदूत ने बड़ी चक्की के पाट के समान एक पत्थर उठाया, और यह कहकर समुद्र में फेंक दिया, कि बड़ा नगर बाबुल ऐसे ही बड़े बल से गिराया जाएगा, और फिर कभी उसका पता न मिलेगा। और भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगों, और पृथ्वी पर सब घात किए हुओं का लोहू उसी में पाया गया।”
११. मसीहीजगत में कौन-सी भयंकर बातें होती रही हैं?
११ बाइबल भविष्यवाणी की पूर्ति में, मसीहीजगत में भयंकर घटनाएँ घटती रही हैं। (यिर्मयाह ५:३०, ३१; २३:१४ से तुलना कीजिए।) मुख्यतः पादरीवर्ग की अनुज्ञात्मक मनोवृत्ति की वजह से, उनके झुंड में अनैतिकता व्याप्त है। एक तथाकथित मसीही राष्ट्र, अमरीका में सभी विवाहों में से क़रीब आधे तलाक़ में परिणित होते हैं। किशोर गर्भावस्था और समलिंगकामुकता गिरजे के सदस्यों में फैली हुई है। पादरी छोटे बच्चों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार कर रहे हैं—और ऐसी वारदातें कम नहीं हैं। यह कहा जाता है कि अमरीका में इन मुक़द्दमों से संबंधित न्यायालय समझौतों के भुगतान के लिए कैथोलिक चर्च को एक दशक में ही एक अरब डॉलर ख़र्च करने पड़ सकते हैं। मसीहीजगत ने १ कुरिन्थियों ६:९, १० में पायी जानेवाली प्रेरित पौलुस की सलाह की अवहेलना की है: “क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्त्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।”
१२. (क) सनातन राजा बड़े बाबुल के विरुद्ध कैसे कार्य करेगा? (ख) मसीहीजगत की विषमता में, किस कारण से परमेश्वर के लोग “हल्लिलूय्याह” गीत गाएँगे?
१२ जल्द ही, सनातन राजा, यहोवा, अपने स्वर्गीय फील्ड मार्शल, मसीह यीशु के माध्यम से कार्य करने के द्वारा, बड़े क्लेश की शुरूआत करेगा। पहले तो मसीहीजगत और बड़े बाबुल की सभी अन्य शाखाएँ यहोवा के न्यायदंड का कार्यान्वयन भुगतेंगी। (प्रकाशितवाक्य १७:१६, १७) उन्होंने अपने आपको उस उद्धार के अयोग्य साबित किया है जिसे यहोवा ने यीशु के छुड़ौती बलिदान के द्वारा प्रदान किया है। उन्होंने परमेश्वर के पवित्र नाम को तुच्छ जाना है। (यहेजकेल ३९:७ से तुलना कीजिए।) यह क्या ही ढोंग की बात है कि वे अपनी आलीशान धार्मिक इमारतों में “हल्लिलूय्याह” गीत गाते हैं! वे यहोवा के बहुमूल्य नाम को अपने बाइबल अनुवादों में से हटा देते हैं लेकिन इस तथ्य के प्रति विस्मरणशील प्रतीत होते हैं कि “हल्लिलूय्याह” का अर्थ है “याह की स्तुति करो”—“याह” “यहोवा” का संक्षिप्त रूप है। उचित ही, प्रकाशितवाक्य १९:१-६ उन “हल्लिलूय्याह” गीतों को अभिलिखित करता है जो जल्द ही बड़े बाबुल पर परमेश्वर का न्याय कार्यान्वित किए जाने की ख़ुशी मनाते हुए गाए जानेवाले हैं।
१३, १४. (क) इसके बाद कौन-सी महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटती हैं? (ख) परमेश्वर का भय माननेवाले मनुष्यों के लिए कौन-सा आनन्दप्रद परिणाम होता है?
१३ क्रम में अगला है जातियों और लोगों पर न्यायदंड घोषित करने और उसे कार्यान्वित करने के लिए यीशु का ‘आगमन।’ उसने स्वयं भविष्यवाणी की: “जब मनुष्य का पुत्र [मसीह यीशु] अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के [न्याय के] सिंहासन पर विराजमान होगा। और [पृथ्वी की] सब जातियां उसके साम्हने इकट्ठी की जाएंगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा। तब राजा अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।” (मत्ती २५:३१-३४) आयत ४६ आगे बताती है कि बकरी वर्ग “अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”
१४ प्रकाशितवाक्य की बाइबल किताब वर्णन करती है कि कैसे “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु,” हमारा स्वर्गीय प्रभु यीशु मसीह, उस समय शैतान की व्यवस्था के राजनैतिक और व्यवसायिक तत्त्वों को नाश करते हुए अरमगिदोन की लड़ाई में प्रवेश करेगा। इस प्रकार मसीह शैतान के संपूर्ण पार्थिव राज्य पर “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट” उण्डेल चुका होगा। जैसे-जैसे ये ‘पहली बातें जाती रहेंगी,’ परमेश्वर का भय माननेवाले मनुष्यों को महिमावान् नए संसार में ले जाया जाएगा, जहाँ परमेश्वर “उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।”—प्रकाशितवाक्य १९:११-१६; २१:३-५.
याह की स्तुति करने का एक समय
१५, १६. (क) यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि हम यहोवा के भविष्यसूचक वचन को मानें? (ख) भविष्यवक्ताओं और प्रेरितों के संकेत के अनुसार हमें उद्धार के लिए क्या करना चाहिए, और बड़ी संख्या में लोगों के लिए इसका क्या अर्थ हो सकता है?
१५ न्याय कार्यान्वित करने का वह दिन निकट है! अतः सनातन राजा के भविष्यसूचक वचन पर ध्यान देना हमारे लिए फ़ायदेमंद है। उन लोगों के लिए जो अब भी झूठे धर्म की शिक्षाओं और रिवाज़ों में उलझे हुए हैं, एक स्वर्गीय आवाज़ घोषित करती है: “हे मेरे लोगो, उस में से निकल आओ; कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उस की विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े।” लेकिन बचनेवालों को कहाँ जाना है? केवल एक ही सत्य हो सकता है, अतः एक ही सच्चा धर्म। (प्रकाशितवाक्य १८:४; यूहन्ना ८:३१, ३२; १४:६: १७:३) हमारा अनन्त जीवन पाना उस धर्म को ढूँढने और उसके परमेश्वर की आज्ञा मानने पर निर्भर करता है। बाइबल हमें भजन ८३:१८ में उसकी ओर निर्देशित करती है, जहाँ हम पढ़ते हैं: “केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।”
१६ लेकिन, हमें सनातन राजा का नाम मात्र जानने से ज़्यादा करने की ज़रूरत है। हमें बाइबल का अध्ययन करने और उसके महान गुणों और उद्देश्यों के बारे में सीखने की ज़रूरत है। फिर हमें इस समय के लिए उसकी इच्छा को पूरा करने की ज़रूरत है, जैसे रोमियों १०:९-१३ में सूचित किया गया है। प्रेरित पौलुस ने उत्प्रेरित भविष्यवक्ताओं को उद्धृत किया और यह निष्कर्ष निकाला: “जो कोई प्रभु [“यहोवा,” NW] का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।” (योएल २:३२; सपन्याह ३:९) उद्धार पाएगा? जी हाँ, क्योंकि आज बड़ी संख्या में वे लोग जो मसीह द्वारा यहोवा के छुड़ौती प्रबंध में विश्वास करते हैं, आनेवाले बड़े क्लेश से बचाए जाएँगे, जब शैतान के भ्रष्ट संसार पर न्याय कार्यान्वित किया जाता है।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १४.
१७. किस महान आशा को हमें मूसा के गीत, और मेम्ने के गीत को गाने में अब शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहिए?
१७ बचने की आशा रखनेवालों के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है? वह यह है कि हम अब भी उसकी विजय की प्रत्याशा में सनातन राजा की स्तुति करते हुए मूसा का और मेम्ने का गीत गाने में शामिल हो जाएँ। दूसरों को उसके महिमावान् उद्देश्यों के बारे में बताने के द्वारा हम ऐसा करते हैं। जैसे-जैसे हम बाइबल की समझ में प्रगति करते हैं, हम अपना जीवन सनातन राजा को समर्पित करते हैं। यह हमें सनातनकाल तक उस व्यवस्था के अधीन जीने की ओर ले जाएगा जिसका वर्णन यह सामर्थी राजा करता है, जैसे यशायाह ६५:१७, १८ में पाया जाता है: “देखो, मैं नया आकाश [यीशु का मसीहाई राज्य] और नई पृथ्वी [मनुष्यजाति का एक धार्मिक नया समाज] उत्पन्न करता हूं; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी। इसलिये जो मैं उत्पन्न करने पर हूं, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो।”
१८, १९. (क) भजन १४५ में दाऊद के वचनों को हमें क्या करने के लिए प्रेरित करना चाहिए? (ख) हम यहोवा से किस बात की विश्वास के साथ अपेक्षा कर सकते हैं?
१८ भजनहार दाऊद ने सनातन राजा का वर्णन इन शब्दों में किया: “यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है, और उसकी बड़ाई अगम है।” (भजन १४५:३) उसकी महानता उतनी अगम है जितनी अंतरिक्ष और अनन्तता की सीमाएँ हैं! (रोमियों ११:३३) जैसे-जैसे हम अपने सृष्टिकर्ता और उसके पुत्र, मसीह यीशु के ज़रिए उसके छुड़ौती प्रबंध के बारे में ज्ञान हासिल करना जारी रखते हैं, हम अपने सनातन राजा की अधिकाधिक स्तुति करना चाहेंगे। हम वैसे करना चाहेंगे जैसे भजन १४५:११-१३ बताता है: “वे तेरे राज्य की महिमा की चर्चा करेंगे, और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे; कि वे आदमियों पर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें। तेरा राज्य युग युग का और तेरी प्रभुता सब पीढ़ियों तक बनी रहेगी।”
१९ हम विश्वास के साथ अपेक्षा कर सकते हैं कि हमारा परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा: ‘तू अपनी मुट्ठी खोलकर, सब प्राणियों को तृप्त करता है।’ कोमलता से सनातन राजा इन अन्तिम दिनों के अन्त को पार करने में हमारी अगुवाई करेगा, क्योंकि दाऊद ने हमें आश्वस्त किया: “यहोवा अपने सब प्रेमियों की तो रक्षा करता, परन्तु सब दुष्टों को सत्यानाश करता है।”—भजन १४५:१६, २०.
२०. आप सनातन राजा के आमंत्रण के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं, जैसे आख़िरी पाँच भजनों में दिया गया है?
२० बाइबल के आख़िरी पाँच भजन “याह की स्तुति करो” के आमंत्रण के साथ शुरू और समाप्त होते हैं। अतः भजन १४६ हमें आमंत्रित करता है: “याह की स्तुति करो! हे मेरे मन यहोवा की स्तुति कर! मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपने परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।” क्या आप इस बुलावे को स्वीकार करेंगे? ज़रूर आपमें उसकी स्तुति करने की इच्छा होनी चाहिए! ऐसा हो कि आप उन लोगों में हों जिनका वर्णन भजन १४८:१२, १३ में किया गया है: “हे जवानो और कुमारियो, हे पुरनियो और बालको! यहोवा के नाम की स्तुति करो, क्योंकि केवल उसी का नाम महान है; उसका ऐश्वर्य पृथ्वी और आकाश के ऊपर है।” ऐसा हो कि हम पूर्ण हृदय से इस आमंत्रण को स्वीकार करें: “याह की स्तुति करो!” एक स्वर में, आइए हम सनातन राजा की स्तुति करें!
आपकी टिप्पणी क्या है?
◻ यीशु के प्रेरितों ने किस बात की पूर्वचेतावनी दी?
◻ १९१४ से शुरू होकर, कौन-से निर्णायक कार्य हुए हैं?
◻ यहोवा कौन-से न्यायदंड कार्यान्वित करने ही वाला है?
◻ सनातन राजा की स्तुति करने का यही सबसे महत्त्वपूर्ण समय क्यों है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 19 पर बक्स]
विपत्ति का यह भयानक युग
अनेक लोगों ने इस बात को स्वीकार किया है कि २०वीं शताब्दी के आरंभ में एक संकट के युग की शुरूआत हुई। उदाहरण के लिए, १९९३ में प्रकाशित अमरीकी सिनॆटर डैनियॆल पैट्रिक मोइनिहन द्वारा लिखी किताब कोलाहल (अंग्रेज़ी) की प्रस्तावना में “१९१४ की विपत्ति” पर एक टिप्पणी इस प्रकार है: “युद्ध आया और दुनिया बदल गयी—पूरी तरह। आज पृथ्वी पर सिर्फ़ आठ ऐसे राष्ट्र हैं जो १९१४ में अस्तित्व में भी थे और तब से हिंसा के द्वारा उनका शासन करने का तरीक़ा भी बदला नहीं है। . . . बाक़ी बचे क़रीब १७० समकालीन राष्ट्रों में से कुछ को बने तो इतना कम समय हुआ है कि उन्होंने हाल की हलचल का अनुभव नहीं किया है।” वास्तव में, १९१४ से चल रहा युग विपत्ति-पर-विपत्ति का गवाह रहा है!
१९९३ में किताब नियंत्रण से बाहर—इक्कीसवीं शताब्दी के पूर्व विश्वव्यापी हलचल (अंग्रेज़ी) भी प्रकाशित की गयी थी। लेखक है अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा समिति का भूतपूर्व अध्यक्ष ज़ूबिगनॆफ़ ब्रेज़िंस्की। वह लिखता है: “बीसवीं शताब्दी की शुरूआत को अनेक व्याख्याओं में तर्क-युग की वास्तविक शुरूआत कहा गया था। . . . उसकी प्रतिज्ञा के विपरीत, बीसवीं शताब्दी मानवजाति की सबसे रक्तरंजित और घृणा से भरी हुई शताब्दी बन गयी, भ्रामक राजनीति और भयानक हत्याओं की एक शताब्दी। क्रूरता को अपूर्व हद तक संगठित किया गया, हत्या बहुतायत में संगठित रूप से की जाने लगी। भलाई के लिए वैज्ञानिक सामर्थ और वास्तव में उपयोग की गयी राजनैतिक दुष्टता की विषमता दहलानेवाली है। इतिहास में इससे पहले कभी भी हत्या पृथ्वी भर में इतनी व्यापक नहीं थी, पहले कभी इतने सारे लोगों की जान इसके कारण नहीं गयी, पहले कभी ऐसे घमंडपूर्ण अविवेकी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एकाग्रता से सतत प्रयास नहीं किए गए थे जिससे मनुष्य का सर्वनाश होता है।” यह कितना सच है!
[पेज 17 पर तसवीरें]
मीकाईल ने शैतान और उसकी सेनाओं को १९१४ में राज्य की स्थापना के पश्चात् पृथ्वी पर फेंक दिया