क्रिसमस की परंपराएँ—क्या ये वाकई मसीही परंपराएँ हैं?
क्रिसमस की परंपराएँ—क्या ये वाकई मसीही परंपराएँ हैं?
क्रिसमस का महीना आ गया है। यह त्योहार आपके लिए, आपके परिवार और दोस्तों के लिए क्या मायने रखता है? क्या आप इस दौरान आध्यात्मिक बातों में मशगुल होते हैं या सिर्फ मौज-मस्ती करते और पार्टियाँ मनाते रहते हैं? क्या आप इस दौरान यीशु मसीह के जन्म के बारे में विचार करते हैं या सभी मसीही उसूलों को ताख पर रख देते हैं?
इन सवालों का जवाब देते वक्त याद रखना होगा कि अलग-अलग देशों में क्रिसमस के रिवाज़ अलग-अलग होते हैं। मिसाल के तौर पर, मॆक्सिको और दूसरे लातिन-अमरीकी देशों में, क्रिसमस का नाम कुछ और ही है। एक एनसाइक्लोपीडिया कहती है कि अंग्रेज़ी नाम क्रिसमस “क्रिसटॆस मासे या मसीह के मिस्सा से आया है।” मगर, इसे लातिन-अमरीकी देशों में ला नावीदाद या नेटिविटी कहा जाता है, जिसका असल मतलब है मसीह का जन्म। आइए मॆक्सिको की कुछ परंपराओं पर गौर करें। इससे आपको इस त्योहार के बारे में अपनी राय कायम करने में मदद मिलेगी।
पोसाडास, “तीन बुद्धिमान पुरुष,” और नासीमयेन्टो
मॆक्सिको में दिसंबर 16 तारीख से पोसाडास के साथ यह त्योहार शुरू हो जाता है। इसके बारे में किताब मॆक्सिकोस फीस्ट्स ऑफ लाइफ कहती है: “क्रिसमस के पहले के नौ दिनों के दौरान पोसाडास मनाया जाता है और इन नौ दिनों को बहुत खास समझा जाता है। पोसाडास उस घटना की याद में मनाया जाता है जब पनाह मिलने से पहले, यूसुफ और मरियम बैतलहम शहर में दर-दर भटक रहे थे। इस दौरान लोग मसीह के जन्म से पहले होनेवाली इन सब घटनाओं का अभिनय करते हैं और इसके लिए परिवार और दोस्त हर रात इकट्ठे होते हैं।”
मॆक्सिको में यह रिवाज़ है कि लोग हाथ में मरियम और यूसुफ की प्रतिमाएँ लेकर किसी के घर जाते हैं और गाते हुए उनसे पनाह या पोसाडा माँगते हैं। उस घर के लोग भी तब तक गाते हुए जवाब देते हैं जब तक कि इन मेहमानों को घर के अंदर आने की इज़ाज़त नहीं मिल जाती। फिर जोर-शोर से पार्टी शुरू होती है
जिसमें कुछ लोग, आँखों में पट्टी बाँधकर और हाथ में डंडा लेकर, बारी-बारी से पिनाटा फोड़ने की कोशिश करते हैं। पिनाटा सुंदर रूप से सजाया गया मटका है जिसे एक डोरी से छत से लटकाया जाता है। जब यह फूट जाता है तब उसमें से मिठाइयाँ, फल आदि बिखरते हैं जिन्हें सब लोग इकट्ठा करते हैं। इसके बाद, संगीत के साथ नाच-गाना और खान-पान होता है। दिसंबर 16 से 23 तारीख तक आठ पोसाडा पार्टियाँ की जाती हैं। फिर 24 तारीख को नोकेब्वेना (यानी क्रिसमस ईव) मनाया जाता है और उस रात होनेवाले खास भोजन के लिए परिवार के सभी लोग इकट्ठा होने की पूरी कोशिश करते हैं।
क्रिसमस के थोड़े ही दिनों बाद नया साल आता है और नए साल की शुरुआत में भी बहुत होहल्ला और शोर-शराबे के साथ पार्टियाँ मनायी जाती हैं। जनवरी 5 की शाम को, त्रेस रेयेस मागोस (यानी “तीन बुद्धिमान पुरुषों”) को बच्चों के लिए खिलौने लाने होते हैं। इसके बाद जनवरी 6 की पार्टी में रोस्का डे रेयेस (गोलनुमा केक) परोसा जाता है। केक खाते वक्त किसी को अपने टुकड़े में एक छोटा-सा गुड्डा मिलेगा जो नन्हें यीशु की तरह दिखता है। जिसे यह गुड्डा मिलता है, उसे फरवरी 2 को सबसे आखरी पार्टी रखनी होती है और सारा खर्चा अपनी जेब से देना पड़ता है। (कुछ जगहों में तीन गुड्डे रखे जाते हैं जो उन “तीन बुद्धिमान पुरुषों” को दर्शाता है।) इन सबसे यही दिखता है कि क्रिसमस की पार्टियाँ एक-के-बाद-एक चलती ही रहती हैं।
इस दौरान, नासीमयेन्टो यानी यीशु के जन्म के समय का दृश्य हर जगह नज़र आता है। इसमें क्या किया जाता है?
आम जगहों पर, चर्चों और घरों में, सेरामिक, लकड़ी या मिट्टी की छोटी-बड़ी प्रतिमाओं से यीशु के जन्म की झलकियाँ बनायी जाती हैं। इनमें यूसुफ और मरियम को चरनी में पड़े नवजात शिशु के सामने घुटने टेके हुए दिखाया जाता है। अकसर इनके साथ चरवाहों और लोस रेयेस मागोस (“बुद्धिमान पुरुषों”) को भी दिखाया जाता है। इस झलकी में अस्तबल बनाया जाता है और कुछ जानवर भी रखे जाते हैं। लेकिन सबसे खास आकर्षण होता है नवजात शिशु जिसे स्पैनिश भाषा में एल नीन्यो ड्योस (यानी बाल ईश्वर) कहा जाता है। इस खास आकर्षण को क्रिसमस ईव यानी क्रिसमस के एक दिन पहले भी रखा जा सकता है।यीशु के जन्म से जुड़ी हुई परंपराओं की शुरुआत
क्रिसमस के आम रिवाज़ों के बारे में दी एनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना कहती है: “आजकल क्रिसमस त्योहार के समय जो परंपराएँ होती हैं, उनकी शुरुआत ईसाई धर्म से नहीं हुई। इन्हें दरअसल क्रिस्चन चर्च ने मसीहियों के समय से पहले के रिवाज़ों और गैर-ईसाई रिवाज़ों से अपना लिया था। क्रिसमस के समय होनेवाले कुछ ऐसे रिवाज़ जिनमें मौज-मस्ती की जाती है, उन्हें सैटर्नेलिया नाम के रोमी भोज से लिया गया है। यह रोमी भोज दिसंबर 15 के आस-पास मनाया जाता था। मिसाल के तौर पर, इसी त्योहार से उन्होंने बड़ी-बड़ी दावत और मौज-मस्ती करने, तोहफे देने और मोमबत्तियाँ जलाने का रिवाज़ अपना लिया।”
लातिन अमरीका में, यीशु के जन्म के समय होनेवाले इन रिवाज़ों के साथ-साथ और भी कई रिवाज़ मनाए जाते हैं। शायद आपके मन में सवाल उठे कि ‘ये दूसरे रिवाज़ आए कहाँ से?’ साफ-साफ कहें तो, बाइबल को मानकर चलनेवाले लोग मानते हैं कि क्रिसमस के समय होनेवाले ये अतिरिक्त रिवाज़, अमरीका में मसीहियत शुरू होने से पहले वहाँ रहनेवाली एज़टॆक जाति के रीति-रिवाज़ों से आए हैं। मॆक्सिको सिटी के अखबार, एल यूनीवर्साल में यह लिखा था: “कैथोलिक मिशनरी, एज़टॆक लोगों को प्रचार करके अपने धर्म में खींचना चाहते थे। एज़टॆक जाति के कई त्योहार उसी समय होते थे जब ईसाइयों का त्योहार होता था। सो, इस बात का फायदा उठाते हुए कैथोलिक पादरियों ने एज़टॆक देवी-देवताओं के त्योहारों को ईसाई देवी-देवताओं के त्योहारों से बदल दिया। इससे दोनों संस्कृतियाँ और परंपराएँ एक-दूसरे से मिल गयीं और इसी से कई मसीही त्योहारों का नाम मॆक्सिकन भाषा में रखा गया है।”
दी एनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना कहती है: “क्रिसमस के शुरू होने के बाद, बहुत जल्द यीशु के जन्म से संबंधित नाटक क्रिसमस का एक रिवाज़ बन गया . . . कहा जाता है कि चर्च में चरनी की जो झलकी है, उसकी शुरुआत सेंट फ्रांसिस ने की थी।” और जब मॆक्सिको को स्पेन की सरकार अपनी कॉलोनी बना रही थी, तब एज़टॆक जाति के लोगों को यीशु के जन्म की कहानी सिखाने के लिए, फ्रांसिस के चेले ये नाटक वहाँ के चर्चों में करते थे। आगे जाकर पोसाडास ज़्यादा लोकप्रिय हो गए। इसकी शुरुआत करने का इरादा चाहे जो भी रहा हो, मगर जिस तरीके से आज पोसाडास मनाए जाते हैं वे इनकी असलियत का सबूत खुद ही देते हैं। अगर आप इस त्योहार के समय मॆक्सिको में हैं, तो आपको समझ आएगा कि एल यूनीवर्साल अखबार का एक लेखक क्या कहना चाह रहा है: “पहले होनेवाले पोसाडास हमें यह याद दिलाते थे कि किस तरह यीशु के माता-पिता उसे जन्म देने के लिए जगह की तलाश में भटक रहे थे, मगर आजकल के पोसाडास खोखले हो गये हैं। आजकल इस दौरान लोग शराब के नशे में धुत रहते हैं, मौज-मस्ती में हद पार करते हैं, पेटू होते हैं, फिज़ूल के कामों में ही वक्त बरबाद करते रहते हैं और कुछ ज़्यादा ही अपराध करते हैं।”
स्पेन की सरकार मॆक्सिको को जब अपनी कॉलोनी बना रही थी, उसी दौरान चर्चों में होनेवाले नाटकों से एक और परंपरा शुरू हुई जिसे नासीमयेन्टो कहा जाता है। हालाँकि कुछ लोगों को नासीमयेन्टो के दृश्य बहुत अच्छे लगते हैं, मगर क्या इनमें सचमुच बाइबल में लिखी सच्ची कहानी का ही अभिनय किया जाता है? यह पूछना वाज़िब है। जब वे तीन बुद्धिमान पुरुष जो दरअसल ज्योतिषी थे, यीशु से मिलने आए, तब यीशु और उसका परिवार उस समय अस्तबल में नहीं रह रहे थे। समय गुज़र चुका था और अब वे एक घर में रह रहे थे। इस दिलचस्प जानकारी के बारे में आप परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे मत्ती 2:1, 11 में पढ़ सकते हैं। इतना ही नहीं, बाइबल यह भी नहीं बताती है कि कितने ज्योतिषी आए थे। *
लातिन अमरीका में, सांता क्लॉस की जगह ये तीन बुद्धिमान पुरुष ले लेते हैं। दूसरे देशों की तरह यहाँ पर भी कई माता-पिता घर में खिलौने छिपा देते हैं। फिर 6 जनवरी की सुबह को बच्चे खिलौनों की तलाश करते हैं मानो इन्हें तीन बुद्धिमान पुरुष ही उनके लिए लाए हैं। कई नेकदिल लोग इसे बस मनगढ़ंत कहानी मानते हैं मगर खिलौने बेचनेवाले व्यापारियों ने मौके का फायदा उठाकर इसे धंधा बना लिया है। और इसी कथा के बिनाह पर वे लाखों कमा रहे हैं। मगर आज, तीन बुद्धिमान पुरुषों की यह कथा बहुत तेज़ी से कमज़ोर पड़ती जा रही है, यहाँ तक कि बच्चों का भी इस पर से विश्वास उठता जा रहा है। हालाँकि इस बात से कुछ लोग नाराज़ हैं, मगर इस तरह की मनगढ़ंत कहानी से और क्या उम्मीद की जा सकती है जो महज़ रिवाज़ और धंधे की बिनाह पर टिका हुआ है?
पहली सदी के मसीही क्रिसमस या नेटिविटी नहीं मनाते थे। इस बारे में एक एनसाइक्लोपीडिया कहती है: “क्रिस्चन चर्च शुरू होने के बाद, कई सदियों तक मसीही यह त्योहार नहीं मनाते थे, क्योंकि मसीहियों में, बड़ी-बड़ी हस्तियों के जन्मदिन के बजाय मौत का स्मारक मनाने का चलन था।” इतना ही नहीं, बाइबल में जन्मदिन मनाने का ताल्लुक मूर्तिपूजा करनेवाले लोगों के साथ किया गया है, परमेश्वर के सच्चे उपासकों के साथ नहीं।—मत्ती 14:6-10.
बेशक, इसका मतलब यह नहीं कि परमेश्वर के बेटे के जन्म के समय में हुई असल घटनाओं के बारे में जानने और याद रखने से हमें कोई फायदा नहीं होगा। इन घटनाओं के बारे में बाइबल में दी गयी सच्ची बातों से उन सभी लोगों को गहरी जानकारी और सबक मिलेगा जो सचमुच परमेश्वर की इच्छा पूरी करना चाहते हैं।
बाइबल के मुताबिक यीशु के जन्म की कहानी
बाइबल की मत्ती और लूका नाम की किताबों में आपको यीशु के जन्म के बारे में काफी भरोसेमंद जानकारी मिलेगी। उनमें लिखा है कि स्वर्गदूत जिब्राईल गलील के नासरत शहर में रहनेवाली मरियम नाम की एक कुआँरी स्त्री के पास आया। उसने उसे क्या संदेश दिया? “देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।”—लूका 1:31-33.
यह संदेश सुनकर मरियम हैरान रह गयी। उसकी शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए उसने पूछा: “यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।” तब स्वर्गदूत ने उसको जवाब दिया: “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिए वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।” मरियम समझ गयी कि यह परमेश्वर की इच्छा है, इसलिए उसने कहा: “देख, मैं प्रभु की दासी हूं, मुझे तेरे वचन के अनुसार हो।”—लूका 1:34-38.
मरियम का मँगेतर यूसुफ, मरियम के गर्भवती होने की खबर सुनकर उसे तलाक देने की सोच रहा था। लेकिन, स्वर्गदूत ने उसे बताया कि यह जन्म एक चमत्कार यानी परमेश्वर की मदद से होनेवाला है। तब वह परमेश्वर के बेटे की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए तैयार हो गया।—मत्ती 1:18-25.
उसके बाद औगूस्तुस कैसर की तरफ से एक आदेश आया जिसकी वजह से यूसुफ और मरियम को अपना पंजीकरण करवाने के लिए गलील के नासरत नगर से यहूदिया के बैतलहम नगर तक, जो उनके पूर्वजों का शहर था, सफर करना पड़ा। “उन के वहां रहते हुए उसके जनने के दिन पूरे हुए। और वह अपना पहिलौठा पुत्र जनी और उसे कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा; क्योंकि उन के लिये सराय में जगह न थी।”—लूका 2:1-7.
आगे क्या हुआ, उसके बारे में लूका 2:8-14 बताता है: “उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे। और प्रभु का एक दूत उन के पास आ खड़ा हुआ; और प्रभु का तेज उन के चारों ओर चमका, और वे बहुत डर गए। तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा। कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्त्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है। और इस का तुम्हारे लिये यह पता है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे। तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का दल परमेश्वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया। कि आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो।”
ज्योतिषी
मत्ती की किताब में बताया गया है कि यरूशलेम में यहूदियों के राजा की तलाश में पूर्व की तरफ से ज्योतिषी आए थे। यीशु के जन्म की बात में राजा हेरोदेस भी काफी दिलचस्पी ले रहा था हालाँकि उसके इरादे नेक नहीं थे। “उस ने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, कि जाकर उस बालक के विषय में ठीक ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उस को प्रणाम करूं।” ज्योतिषियों को वह बालक मिल गया और उन्होंने “अपना अपना थैला खोलकर उस को सोना, और लोहबान, और गन्धरस की भेंट चढ़ाई।” मगर वे वापस हेरोदेस के पास नहीं गए। क्यों? क्योंकि उन्हें ‘स्वप्न में यह चिताया गया था कि हेरोदेस के पास फिर न जाना।’ परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत के ज़रिये हेरोदेस के इरादों के बारे में यूसुफ को चिता दिया था। तब यूसुफ और मरियम अपने बेटे को लेकर मिस्र देश भाग गए। उसके बाद, इस नए राजा यानी शिशु को मार डालने के इरादे से दुष्ट राजा हेरोदेस ने बैतलहम और उसके आस-पास के इलाके के दो साल और उससे कम उम्र के सभी बच्चों को मार डालने की आज्ञा दी।—मत्ती 2:1-16.
इस कहानी से हम क्या सीख सकते हैं?
यीशु को देखने के लिए चाहे जितने भी ज्योतिषी आए हों, वे सब सच्चे परमेश्वर की उपासना नहीं करते थे। ले न्यूवा बिबलिया लैटिनोमेरिका बाइबल (1989 संस्करण) के एक फुटनोट में यह लिखा है: “ये मजाई राजा नहीं, बल्कि ज्योतिषी और मूर्तिपूजक धर्म के पुरोहित थे।” तारों को देखकर उन्होंने यीशु का पता लगाया था। सो अपनी खोज सही है या नहीं, सिर्फ यही जानने के लिए वे आए थे। अगर वो तारा परमेश्वर की ओर से होता और परमेश्वर उन्हें उस नन्हे बच्चे के पास ले जाना चाहता, तो वह उन्हें सीधा उसी के पास ले
जाता, न कि पहले यरूशलेम में हेरोदेस के महल के पास। लेकिन बाद में, परमेश्वर ने बच्चे की रक्षा करने की खातिर दखल दिया और उन्हें दूसरे मार्ग से जाने को कहा।क्रिसमस के समय पर, इस कहानी में अकसर मनगढंत और रूमानी बातें भरी हुई होती हैं जिनसे सबसे ज़रूरी बात दब कर रह जाती है। वह ज़रूरी बात यह है कि यह शिशु एक महान राजा बनने के लिए पैदा हुआ था जैसा मरियम और बाकी के चरवाहों को बताया गया। सो, यीशु मसीह अब एक बच्चा नहीं रहा! वह असल में परमेश्वर के राज्य का राजा है और यह राज्य बहुत जल्द परमेश्वर के खिलाफ उठनेवाले सभी शासकों को मिटा डालेगा और इंसानों की सभी समस्याओं को खत्म कर देगा। और प्रभु की प्रार्थना में हम इसी राज्य के आने की दुआ करते हैं।—दानिय्येल 2:44; मत्ती 6:9, 10.
स्वर्गदूतों ने चरवाहों से जो कहा, उससे हम यह सीखते हैं कि उद्धार पाने का मौका उन सभी को दिया जाता है जो सुसमाचार सुनना पसंद करते हैं। और फिर जो परमेश्वर की राह पर चलने लगते हैं, उनसे परमेश्वर खुश होता है और उन्हें “शान्ति” देता है। यीशु मसीह के राज्य में यह आशा की जा सकती है कि पूरी दुनिया में बहुत ही शांति होगी, मगर इसका आनंद उठाने के लिए लोगों को परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक काम करना होगा। क्या क्रिसमस के दौरान ऐसा करने की कोई भावना दिखती है और क्या परमेश्वर की आज्ञा को मानने की इच्छा दिखायी भी देती है? बाइबल के मुताबिक चलनेवाले कई नेकदिल लोगों को इसका जवाब साफ दिखायी देता है।—लूका 2:10, 11, 14.
[फुटनोट]
^ एक और ज़रूरी बात है: मॆक्सिको के नासीमयेन्टो में शिशु को “बाल ईश्वर” कहा जाता है क्योंकि वे मानते हैं कि परमेश्वर खुद एक शिशु के रूप में इस पृथ्वी पर आया था। लेकिन, बाइबल यीशु को परमेश्वर का बेटा कहती है जिसने इस पृथ्वी पर जन्म लिया था। बाइबल यह भी बताती है कि यीशु, सबसे शक्तिशाली परमेश्वर यहोवा के न तो बराबर है, ना ही उसके समान। इन सच्चाइयों को आप इन आयतों में पढ़ सकते हैं: लूका 1:35; यूहन्ना 3:16; 5:37; 14:1, 6, 9, 28; 17:1, 3; 20:17.
[पेज 4 पर बक्स]
यह पढ़कर आपको शायद ताज्जुब हो
क्रिसमस के त्योहार पर काफी सालों तक रिसर्च करने के बाद, अपनी किताब द ट्रबल वित क्रिसमस में लेखक टॉम फ्लिन यह निष्कर्ष लिखता है:
“आजकल क्रिसमस के समय होनेवाली काफी परंपराओं की असल में शुरुआत, मसीह धर्म के शुरू होने से पहले के मूर्तिपूजक धर्मों की परंपराओं से हुई है। इनमें से कुछ परंपराओं में अलग-अलग समाजों की, उनकी लैंगिक बातों की, और ज्योतिष-विद्या की मिलावट है। सो, जब आज के पढ़े-लिखे लोगों को इन रिवाज़ों की जड़ के बारे में पता चलता है, तो वे इन्हें ठुकरा देते हैं।”—पेज 19.
इस बारे में काफी जानकारी देने के बाद, फ्लिन एक खास बात कहता है: “क्रिसमस के साथ दरअसल अजीब बात यह है कि हालाँकि माना जाता है कि क्रिसमस मसीहियों का त्योहार है, मगर इसमें मसीहियत की बातें या शिक्षाएँ बिलकुल न के बराबर है। अगर इसमें से मसीही धर्म शुरू होने के पहले की और बाद की परंपराओं को निकाल दें तो हम देखेंगे कि इसमें मसीही धर्म की शुरुआत के समय की कोई भी परंपरा नहीं है।”—पेज 155.
[पेज 7 पर तसवीर]
जब स्वर्गदूतों ने यीशु के जन्म की घोषणा की, तब उन्होंने यह भी बताया कि वह आगे जाकर परमेश्वर का चुना हुआ राजा होगा