‘यहोवा का वचन बढ़ता गया’
‘यहोवा का वचन बढ़ता गया’
“वह पृथ्वी पर अपनी आज्ञा का प्रचार करता है, उसका वचन अति वेग से दौड़ता है।”—भजन 147:15.
1, 2. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी ज़िम्मेदारी सौंपी, और उसमें क्या-क्या शामिल था?
बाइबल की एक बहुत ही शानदार भविष्यवाणी प्रेरितों 1:8 में दी गयी है। पृथ्वी छोड़कर स्वर्ग में जाने से कुछ ही समय पहले, यीशु ने अपने वफादार चेलों से कहा: “जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और . . . पृथ्वी की छोर तक [तुम] मेरे गवाह होगे।” उन्हें कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी!
2 उस समय पूरी दुनिया में परमेश्वर के वचन का प्रचार करना उन मुट्ठी भर चेलों को ज़रूर एक बहुत ही चुनौती-भरा काम लगा होगा। गौर कीजिए कि उन्हें कौन-कौन-से काम करने थे। उन्हें लोगों को परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार के बारे में समझाना था। (मत्ती 24:14) उन्हें यीशु की गवाही देनी थी यानी यीशु की ज़बरदस्त शिक्षाओं और यहोवा के मकसद में उसकी भूमिका के बारे में लोगों को समझाना था। इतना ही नहीं, उन्हें लोगों को चेला बनाना और फिर बपतिस्मा भी देना था। और यह काम दुनिया भर में किया जाना था!—मत्ती 28:19, 20.
3. यीशु ने अपने चेलों को क्या विश्वास दिलाया, और उन्होंने इस काम को किस तरह पूरा किया?
3 मगर, यीशु ने अपने चेलों को विश्वास दिलाया कि इस काम को पूरा करने में पवित्र आत्मा उनकी मदद करेगी। और इसीलिए, हालाँकि यह काम बहुत ही बड़ा था और इसे बंद करवाने के लिए विरोधियों ने जी-तोड़ कोशिश भी की, यहाँ तक कि वे हिंसा पर भी उतर आए थे, फिर भी यीशु के चेले उसके कहे अनुसार इस काम को पूरा करने में कामयाब रहे। और इतिहास इस बात का गवाह है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
4. किस तरह प्रचार और सिखाने के काम से परमेश्वर का प्यार झलकता था?
4 दुनिया भर में हो रहा प्रचार और सिखाने का काम यहोवा के प्यार की निशानी थी। एक उनके लिए जो यहोवा को नहीं जानते थे, क्योंकि इस काम के ज़रिए उन्हें यहोवा के करीब आने और अपने पापों की माफी पाने का मौका मिला। (प्रेरितों 26:18) साथ ही, यह काम उनके लिए भी यहोवा के प्यार की निशानी थी जो प्रचार और सिखाने की आज्ञा मानते थे। क्योंकि इस काम के ज़रिए उन्हें यहोवा के प्रति अपनी भक्ति और लोगों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करने का मौका मिलता था। (मत्ती 22:37-39) प्रेरित पौलुस मसीही सेवकाई को इतना अनमोल समझता था कि उसने इसे “धन” कहा।—2 कुरिन्थियों 4:7.
5. (क) पहली सदी के मसीहियों के बारे में हमें सबसे भरोसेमंद रिकार्ड कहाँ मिलता है, और उसमें किस तरह की बढ़ोतरी का ज़िक्र किया गया है? (ख) प्रेरितों की किताब आज परमेश्वर के सेवकों के लिए क्यों बहुत मतलब रखती है?
5 पहली सदी के मसीहियों के प्रचार काम का सबसे भरोसेमंद रिकार्ड हमें परमेश्वर द्वारा प्रेरित किताब में मिलता है। इस किताब का नाम है, प्रेरितों के काम जिसे लूका नाम के चेले ने लिखा था। इसमें चेलों की अनोखी और तेज़ बढ़ोतरी का ज़िक्र किया गया है। परमेश्वर के वचन का ज्ञान फैलने में हुई बढ़ोतरी हमें भजन 147:15 की याद दिलाती है जहाँ लिखा है: “[यहोवा] पृथ्वी पर अपनी आज्ञा का प्रचार करता है, उसका वचन अति वेग से दौड़ता है।” पहली सदी में चेलों को पवित्र आत्मा से बहुत ताकत मिली थी। उनकी कहानी आज हम, यहोवा के साक्षियों के लिए बहुत ही रोमांचक है और मतलब भी रखती है। क्योंकि हम भी उनकी तरह प्रचार और चेले बनाने के काम में लगे हुए हैं। बस फरक यही है कि हम उनसे भी बहुत बड़े पैमाने पर यह काम कर रहे हैं। हमारे सामने भी उसी तरह की समस्याएँ आती हैं जैसी पहली सदी के मसीहियों के सामने आती थीं। जब हम यह देखेंगे कि यहोवा ने किस तरह पहली सदी के मसीहियों को आशीष और ताकत दी थी, तो इससे हमारा विश्वास और भी मज़बूत होगा कि परमेश्वर हमारी भी मदद करेगा।
चेलों की गिनती में बढ़ोतरी
6. बढ़ोतरी से संबंधित कौन-सा वाक्यांश प्रेरितों की किताब में तीन बार आया है, और यह किसे सूचित करता है?
6 प्रेरितों 1:8 की पूर्ति को जाँचने का एक तरीका है कि हम इस वाक्य पर गौर करें, ‘यहोवा का वचन बढ़ता गया।’ बाइबल में यह वाक्य थोड़े अलग-अलग शब्दों में, सिर्फ तीन बार ही आता है और वह भी सिर्फ प्रेरितों की किताब में। (प्रेरितों 6:7; 12:24; 19:20) इन आयतों में ये वाक्यांश ‘यहोवा का वचन’ या “परमेश्वर का वचन” सुसमाचार को सूचित करते हैं। यह सुसमाचार ईश्वरीय सच्चाई का प्रभावशाली, जोश-भरा, और ज़बरदस्त संदेश है और इसमें इतनी ताकत है कि यह लोगों की ज़िंदगी को बदल देता है।—इब्रानियों 4:12.
7. प्रेरितों 6:7 में परमेश्वर के वचन की बढ़ोतरी का ताल्लुक किसके साथ किया गया है, और सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन क्या हुआ था?
7 परमेश्वर के वचन के बढ़ने का पहला ज़िक्र प्रेरितों 6:7 में किया गया है। वहाँ लिखा है: “परमेश्वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के आधीन हो गया।” यहाँ, फैलाव या बढ़ोतरी का ताल्लुक चेलों की गिनती में बढ़ोतरी से किया गया है। कुछ समय पहले, सा.यु. 33 में पिन्तेकुस्त के दिन, जब लगभग 120 चेले ऊपर कोठरी में इकट्ठे हुए थे तो उन पर परमेश्वर की पवित्र आत्मा उँडेली गयी। इसके बाद प्रेरित पतरस ने बहुत ही ज़बरदस्त भाषण दिया और उसी दिन सुननेवालों में से करीब 3,000 लोग परमेश्वर के सेवक बन गए। उस वक्त कितनी उत्तेजना और शोर-शराबा हुआ होगा जब हज़ारों लोग यरूशलेम और उसके आस-पास के तालाबों में यीशु के नाम से बपतिस्मा लेने के लिए जमा हुए होंगे। (प्रेरितों 2:41) जी हाँ, उसी व्यक्ति के नाम पर जिसे करीब 50 दिन पहले, अपराधी के तौर पर सूली पर लटका दिया गया था!
8. सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त से चेलों की गिनती किस तरह बढ़ती गयी?
8 वो तो सिर्फ शुरुआत थी। प्रचार के इस काम को बंद करवाने के लिए यहूदी धर्मगुरुओं ने बहुत कोशिशें कीं, मगर उनकी कोशिशें नाकाम रहीं। क्योंकि ‘जो उद्धार पाते जाते थे, उनको यहोवा प्रति दिन चेलों में मिला दिया करता था’ और यह मानो उन धर्मगुरुओं के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने की तरह था। (प्रेरितों 2:47) जल्द ही, “उन की गिनती पांच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।” उसके बाद, “विश्वास करनेवाले बहुतेरे पुरुष और स्त्रियां प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे।” (प्रेरितों 4:4; 5:14) बाइबल बताती है कि कुछ समय बाद, “सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती जाती थी।” (प्रेरितों 9:31) कुछ सालों बाद, शायद सा.यु. 58 में ‘हजारों विश्वासियों’ का ज़िक्र किया गया है। (प्रेरितों 21:20) तब तक, अन्यजातियों में से भी कई लोग विश्वासी बन गए थे।
9. पहली सदी के मसीहियों के बारे में आप क्या बता सकते हैं?
9 चेलों की गिनती में बढ़ोतरी ज़्यादातर धर्म-परिवर्तन के ज़रिए हुई थी। यह धर्म नया ज़रूर था मगर था बहुत प्रभावशाली। पहली सदी के चेले पूरी तरह से यहोवा और उसके वचन के प्रति समर्पित थे और चर्च जानेवालों की तरह वे अपने धर्म के कामों के प्रति ठंडे नहीं थे। कुछ चेलों ने तो अनगिनत ज़ुल्मों और तकलीफों का सामना करने के बावजूद लोगों को सच्चाई सिखायी थी। (प्रेरितों 16:23, 26-33) जो लोग मसीही धर्म स्वीकार करके चेले बने थे, उन्हें तर्क-वितर्क करके समझाया गया था और फिर उन्होंने खुद सोच-समझकर यह फैसला किया था। (रोमियों 12:1) उन्हें परमेश्वर के नियमों के बारे में शिक्षा दी गई थी; सच्चाई उनके दिलो-दिमाग में बिठायी गई थी। (इब्रानियों 8:10, 11) वे अपने विश्वास की खातिर अपनी जान भी देने को तैयार थे।—प्रेरितों 7:51-60.
10. पहली सदी के मसीहियों ने कौन-सी ज़िम्मेदारी कबूल की, और आज कौन उनकी तरह हैं?
10 जो लोग मसीही बने उन्होंने दूसरों को सच्चाई बताने की अपनी ज़िम्मेदारी को समझा था। इसी वजह से चेलों की गिनती और भी बढ़ती गयी। बाइबल के एक विद्वान ने कहा: “ऐसा नहीं समझा जाता था कि अपने विश्वास के बारे में दूसरों को बताने का हक सिर्फ जोशीले और नियुक्त प्रचारकों के पास ही है। प्रचार करना चर्च के हर सदस्य का खास अधिकार और फर्ज़ था। . . . सब मसीही कहीं भी, कभी भी, प्रचार करते थे, यह भी एक वजह थी जिससे शुरू से ही मसीहियों की गिनती बहुत बढ़ती गयी।” उसने आगे कहा: “सुसमाचार फैलाना पहली सदी के मसीहियों के खून में दौड़ रहा था।” यही बात आज सच्चे मसीहियों के मामले में भी सच है।
मसीही धर्म अपनानेवाले देशों की संख्या में बढ़ोतरी
11. प्रेरितों 12:24 में किस तरह की बढ़ोतरी के बारे में बताया गया है, और यह बढ़ोतरी कैसे हुई?
11 परमेश्वर के वचन के बढ़ने का दूसरा ज़िक्र प्रेरितों 12:24 में किया गया है। वहाँ लिखा है: “[यहोवा] परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया।” यहाँ बढ़ने या फैलने का ताल्लुक मसीही धर्म अपनानेवाले देशों की संख्या में बढ़ोतरी से है। यह संख्या, सरकारों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद दिन-दूनी, रात-चौगुनी बढ़ती गयी थी। पवित्र आत्मा सबसे पहले यरूशलेम में उँडेली गयी और वहाँ से परमेश्वर का वचन तेज़ी से फैलता गया। जब यरूशलेम में चेलों को सताया जाने लगा तो वे सब यहूदिया और सामरिया के देशों में तितर-बितर हो गए। नतीजा क्या हुआ? “जो तित्तर बित्तर हुए थे, वे [उन देशों में] सुसमाचार सुनाते हुए फिरे।” (प्रेरितों 8:1, 4) फिलिप्पुस को एक ऐसे व्यक्ति को साक्षी देने के लिए भेजा गया, जो बपतिस्मे के बाद राज्य का सुसमाचार कूश देश में ले गया। (प्रेरितों 8:26-28, 38, 39) सच्चाई ने बहुत जल्द लुद्दा, शारोन, और याफा के देशों में जड़ पकड़ ली। (प्रेरितों 9:35, 42) बाद में, प्रेरित पौलुस जल-थल में हज़ारों किलोमीटर सफर करता गया और उसने भूमध्य के कई देशों में कलीसियाएँ स्थापित कीं। और प्रेरित पतरस बाबुल में गया। (1 पतरस 5:13) पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा के उँडेले जाने के 30 साल के अंदर ही सुसमाचार “का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।” यह बात पौलुस ने लिखी थी और शायद ऐसा लिखने का उसका मतलब था कि उस समय के जाने-माने सारे देश।—कुलुस्सियों 1:23.
12. मसीही धर्म के विरोधियों ने किस तरह कबूल किया कि परमेश्वर का वचन ज़्यादा-से-ज़्यादा देशों में फैल चुका है?
12 मसीही धर्म के विरोधियों ने भी यह कबूल किया कि परमेश्वर के वचन ने पूरे रोमी साम्राज्य में जड़ पकड़ ली है। मिसाल के तौर पर प्रेरितों 17:6 (NHT) में बताया गया है कि थिस्सलुनीके, उत्तरी यूनान में विरोधियों ने चिल्लाकर कहा: “ये लोग जिन्होंने संसार में उथल-पुथल मचा दी है यहां भी आ पहुंचे हैं।” इतना ही नहीं, दूसरी सदी की शुरुआत में, बॆथिनीआ से प्लीनी द यंगर ने रोमी सम्राट ट्राजन को मसीही धर्म के बारे में शिकायत करते हुए लिखा: “[मसीहियत का प्रचार] सिर्फ शहरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह महामारी पास के गाँवों और देशों में भी फैल चुकी है।”
13. वचन को अपनानेवाले देशों की संख्या में बढ़ोतरी, किस तरह इंसानों के लिए परमेश्वर के प्यार की निशानी है?
13 इस तरह परमेश्वर के वचन को अपनानेवाले देशों की संख्या में जो बढ़ोतरी हुई, वह पाप में पड़े इंसानों के लिए यहोवा के गहरे प्यार की निशानी थी। जब पतरस ने अन्यजाति के कुरनेलियुस पर पवित्र आत्मा को काम करते हुए देखा, तब उसने कहा: “अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों 10:34, 35) जी हाँ, सुसमाचार का संदेश सब लोगों के लिए था और यह आज भी सबके लिए है। ज़्यादा-से-ज़्यादा देशों में परमेश्वर के वचन के फैलने की वजह से हर जगह के लोगों को परमेश्वर का प्यार स्वीकार करने का मौका मिला है। आज इस 21वीं सदी में, परमेश्वर का वचन सचमुच दुनिया के हर कोने में फैल चुका है।
बढ़ोतरी जो प्रबल हुई
14. प्रेरितों 19:20 में किस तरह की बढ़ोतरी के बारे में बताया गया है, और परमेश्वर का वचन किस पर प्रबल हुआ?
14 परमेश्वर के वचन के बढ़ने का तीसरा ज़िक्र प्रेरितों 19:20 में किया गया है। वहाँ लिखा है: “[यहोवा] का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।” जिस मूल यूनानी शब्द का अनुवाद “प्रबल होता गया” किया गया है, उसका यह मतलब भी निकलता है, “ज़्यादा ताकतवर होना।” 20 से पहले की आयतों में लिखा है कि इफिसुस के कई लोग विश्वासी बन गए और जादू-विद्या करनेवाले कई लोगों ने सरेआम अपनी-अपनी किताबों को जला दिया। इस तरह, परमेश्वर का वचन झूठे धर्म की शिक्षाओं पर प्रबल हुआ। सुसमाचार सताहटों जैसी दूसरी बाधाओं पर भी प्रबल हुआ। सुसमाचार को फैलने से कोई भी चीज़ नहीं रोक सकी। ठीक यही बात आज हमें सच्चे मसीही धर्म के मामले में भी साफ-साफ दिखायी देती है।
15. (क) बाइबल के एक इतिहासकार ने पहली सदी के मसीहियों के बारे में क्या लिखा? (ख) चेलों ने अपनी कामयाबी का श्रेय किसको दिया?
15 पहली सदी के प्रेरितों और मसीहियों ने पूरे जोश के साथ परमेश्वर के वचन का प्रचार किया। उनके बारे में बाइबल के एक इतिहासकार ने लिखा: “जब लोगों में अपने प्रभु के बारे में दूसरों को बताने की प्रबल-इच्छा होती है, तो वे दूसरों को प्रचार करने के लिए कहीं-न-कहीं से ढेर सारे रास्ते निकाल ही लेते हैं। सचमुच, उन स्त्री-पुरुषों के प्रचार करने के तरीकों से बढ़कर, हम उनके पक्के इरादों से प्रभावित हुए हैं।” फिर भी, पहली सदी के मसीहियों को यह अच्छी तरह मालूम था कि सेवकाई में उनकी कामयाबी सिर्फ उनकी मेहनत पर निर्भर नहीं थी। सेवकाई करने की आज्ञा उन्हें परमेश्वर ने दी थी और वही इसे पूरा करने के लिए उन्हें मदद भी देता। क्योंकि आध्यात्मिक बढ़ोतरी परमेश्वर की तरफ से होती है। इस बात को प्रेरित पौलुस ने अपनी पत्री में कबूल किया जब उसने कुरिन्थ की कलीसिया को लिखा: “मैं ने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया। क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं।”—1 कुरिन्थियों 3:6, 9.
पवित्र आत्मा के काम
16. कौन-सी बात दिखाती है कि पवित्र आत्मा ने चेलों को हिम्मत से बात करने के लिए ताकत दी थी?
16 याद कीजिए कि यीशु ने अपने चेलों को यकीन दिलाया था कि परमेश्वर के वचन की बढ़ोतरी में पवित्र आत्मा बहुत मदद करेगी। उसने कहा कि चेलों को प्रचार का काम करने के लिए पवित्र आत्मा ताकत देगी। (प्रेरितों 1:8) ये कैसे हुआ? पिन्तेकुस्त के दिन चेलों पर आत्मा उँडेले जाने के कुछ ही समय बाद, पतरस और यूहन्ना को यहूदी महासभा के सामने बात करने के लिए बुलाया गया। यहूदी महासभा उस समय देश की सबसे बड़ी अदालत थी और उसके न्यायी यीशु मसीह की मौत के लिए ज़िम्मेदार थे। इतनी ज़ालिम और ताकतवर महासभा के सामने क्या प्रेरित डर के मारे थरथराए? हरगिज़ नहीं! पवित्र आत्मा ने पतरस और यूहन्ना को इतने साहस के साथ बोलने की ताकत दी कि उनके विरोधी अचरज में पड़ गए और उन्होंने “उन को पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।” (प्रेरितों 4:8, 13) पवित्र आत्मा ने स्तिफनुस को भी महासभा के सामने हिम्मत से बात करने की ताकत दी। (प्रेरितों 6:12; 7:55, 56) इससे पहले, पवित्र आत्मा ने चेलों को बहादुरी से प्रचार करने के लिए उकसाया था। इस बारे में लूका कहता है: “जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहां वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।”—प्रेरितों 4:31.
17. पवित्र आत्मा ने और किन-किन तरीकों से चेलों को उनकी सेवकाई में मदद दी?
17 पुनरुत्थित यीशु के साथ यहोवा ने अपनी शक्तिशाली पवित्र आत्मा के ज़रिए प्रचार काम को निर्देशित किया। (यूहन्ना 14:28; 15:26) जब कुरनेलियुस, उसके रिश्तेदारों, और दोस्तों पर पवित्र आत्मा उँडेली गयी, तब प्रेरित पतरस समझ गया कि खतनारहित अन्यजाति के लोग भी यीशु मसीह के नाम पर बपतिस्मा लेने के काबिल हो सकते हैं। (प्रेरितों 10:24, 44-48) बाद में, बरनबास और शाऊल (प्रेरित पौलुस) को मिशनरी काम के लिए नियुक्त करने में और उन्हें यह निर्देश देने में कि उन्हें कहाँ जाना है और कहाँ नहीं, पवित्र आत्मा ने एक बहुत खास भूमिका निभायी। (प्रेरितों 13:2, 4; 16:6, 7) पवित्र आत्मा ने यरूशलेम में प्रेरितों और प्राचीनों द्वारा फैसले करने के तरीके के बारे में भी मार्गदर्शन दिया। (प्रेरितों 15:23, 28, 29) पवित्र आत्मा ने मसीही कलीसिया में अध्यक्षों को नियुक्त करने के मामले में भी मार्गदर्शन दिया।—प्रेरितों 20:28.
18. पहली सदी के मसीहियों ने किस तरह अपना प्रेम दिखाया?
18 इतना ही नहीं, पवित्र आत्मा ने मसीहियों में भी काम किया जिससे उन्हें अपने अंदर परमेश्वर के गुणों को पैदा करने में मदद मिली, जैसे कि प्रेम। (गलतियों 5:22, 23) प्रेम की वजह से चेले एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहते और मिल-बाँटकर खाते थे। मिसाल के तौर पर, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के बाद, यरूशलेम के चेलों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दान का इंतज़ाम किया गया था जिसमें सभी चेलों ने दान दिया। इस बारे में बाइबल कहती है: “उन में कोई भी दरिद्र न था; क्योंकि जिन के पास भूमि या घर थे, वे उन को बेच बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पांवों पर रखते थे। और जैसी जिसे आवश्यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बांट दिया करते थे।” (प्रेरितों 4:34, 35) ऐसा प्यार उन्होंने संगी उपासकों के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी दिखाया। उन्होंने दूसरों को सुसमाचार का प्रचार किया और उनकी मदद की। (प्रेरितों 28:8, 9) यीशु ने कहा था कि उनका निःस्वार्थ प्यार देखकर ही लोग पहचानेंगे कि वे यीशु के चेले हैं। (यूहन्ना 13:34, 35) इसमें कोई शक नहीं कि प्रेम का यही महत्त्वपूर्ण गुण लोगों को परमेश्वर की तरफ खींचता है, और पहली सदी में हुई बढ़ोतरी में इसका बहुत बड़ा योगदान रहा और यही बात आज भी सच है।—मत्ती 5:14, 16.
19. (क) पहली सदी में किन तीन तरीकों से यहोवा के वचन की बढ़ोतरी हुई? (ख) अगले लेख में हम क्या जाँच करेंगे?
19 जिस यूनानी शब्द का मतलब “पवित्र आत्मा” होता है, वह प्रेरितों की किताब के मूल-पाठ में कुल मिलाकर 41 बार आता है। इससे साफ पता चलता है कि पवित्र आत्मा की ताकत और मार्गदर्शन की वजह से ही पहली सदी में सच्चे मसीहियों में बढ़ोतरी हुई। चेलों की गिनती में बढ़ोतरी हुई, परमेश्वर का वचन ढेर सारे देशों में फैला, और यह उस ज़माने के धर्मों और तत्वज्ञानों पर प्रबल हुआ। पहली सदी में जो बढ़ोतरी हुई, वैसी ही बढ़ोतरी आज यहोवा के साक्षियों के काम में दिखायी देती है। अगले लेख में, हम आज के ज़माने में हुई परमेश्वर के वचन की ज़बरदस्त बढ़ोतरी की जाँच करेंगे, ठीक जैसे पहली सदी में हुई थी।
क्या आपको याद है?
• पहली सदी में, चेलों की गिनती में बढ़ोतरी किस तरह हुई?
• परमेश्वर का वचन दूसरे देशों में किस तरह फैला?
• पहली सदी में, परमेश्वर का वचन किस तरह प्रबल हुआ?
• परमेश्वर के वचन की बढ़ोतरी में पवित्र आत्मा की क्या भूमिका थी?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 12 पर तसवीर]
फिलिप्पुस ने कूश के व्यक्ति को प्रचार किया और इस तरह दूसरे देश में भी सुसमाचार फैला
[पेज 13 पर तसवीर]
पवित्र आत्मा ने यरूशलेम में प्रेरितों और प्राचीनों को मार्गदर्शित किया
[पेज 10 पर चित्र का श्रेय]
ऊपर दाँयीं तरफ: Reproduction of the City of Jerusalem at the time of the Second Temple - located on the grounds of the Holyland Hotel, Jerusalem