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हमने यहोवा को परखा

हमने यहोवा को परखा

जीवन कहानी

हमने यहोवा को परखा

पॉल स्क्रिबनर की ज़ुबानी

“नमस्ते, मिसिस स्टैकहाउस। आज सुबह मैं ईस्टर केक के लिए ऑर्डर ले रहा हूँ और मुझे यकीन है कि आप अपने परिवार के लिए एक केक का ऑर्डर देना पसंद करेंगी।” यह घटना सन्‌ 1938 में वसंत की शुरूआत में हुई थी। मैं एटको, न्यू जर्सी, अमरीका में जनरल बेकिंग कंपनी के लिए केक बेच रहा था और अपनी सबसे अच्छी ग्राहक से बात कर रहा था। लेकिन हैरत की बात तो यह थी कि मिसिस स्टैकहाउस ने केक खरीदने से इंकार कर दिया।

उसने कहा, “मुझे नहीं लगता कि मुझे केक चाहिए, क्योंकि हम ईस्टर नहीं मनाते।”

यह सुनकर तो मेरी बोलती बंद हो गई। ईस्टर नहीं मनाते, मतलब? बेशक, बिक्री करने के पेशे का सबसे पहला उसूल है कि ग्राहक हमेशा सही होते हैं। मगर अब मैं क्या करता? मैंने फिर भी बड़ी होशियारी से कहा, “लेकिन यह केक बहुत ही स्वादिष्ट है और मैं जानता हूँ कि आपको हमारी कंपनी की बनाई हुई चीज़ें पसंद हैं। आपको नहीं लगता कि आपके परिवार को यह केक खाने में बहुत मज़ा आएगा, अगर आप ईस्टर नहीं मनाती तो क्या हुआ?”

फिर उसने दोबारा कहा, “नहीं, हमें यह केक नहीं चाहिए। लेकिन मिस्टर स्क्रिबनर, मैं कई दिनों से आपसे कुछ बात करना चाह रही थी और शायद यही बढ़िया मौका है।” वह बातचीत मेरी ज़िंदगी का रुख ही बदलनेवाली थी! मिसिस स्टैकहाउस बर्लिन, न्यू जर्सी में यहोवा के साक्षियों की कंपनी (या कलीसिया) की सदस्या थी। उस बातचीत के दौरान उसने मुझे समझाया कि ईस्टर त्योहार की शुरूआत कैसे हुई और फिर उसने मुझे तीन (अँग्रेज़ी) पुस्तिकाएँ दीं। उन पुस्तिकाओं के शीर्षक थे: सुरक्षा, बेपरदा, और हिफाज़त। मैं उन पुस्तिकाओं को लेकर घर गया। हालाँकि, मैं उन्हें पढ़ने के लिए उत्सुक था मगर साथ ही मुझे डर भी लग रहा था। मिसिस स्टैकहाउस की बातें मुझे सुनी हुई लग रही थीं, कुछ बातें जो मैंने बचपन में सुनी थीं।

बाइबल स्टूडैंट के साथ शुरूआती मेल-जोल

मेरा जन्म 31 जनवरी सन्‌ 1907 को हुआ था और सन्‌ 1915 में, जब मैं सिर्फ आठ साल का था, मेरे पिता कैंसर की वजह से चल बसे। उसके बाद, मैं अपनी माँ के साथ मौलडन, मैसाचूसेट्‌स्‌ में अपने नाना-नानी के यहाँ उनके बड़े घर में रहने गया। मेरे मामा, बॆनजमिन रैनसम भी जिन्हें मैं अंकल बैन बुलाता था, अपनी पत्नी के साथ उसी घर की तीसरी मंज़िल पर रहते थे। अंकल बैन 20वीं सदी के शुरू होने से पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बाइबल स्टूडैंट के साथ संगति कर रहे थे जिन्हें आज यहोवा के साक्षी के नाम से जाना जाता है। मैं अंकल बैन को बहुत पसंद करता था, लेकिन मेरी माँ के परिवार के दूसरे लोग जो मैथोडिस्ट चर्च के सदस्य थे, उन्हें लगता था कि वे बड़े ही अजीब किस्म के इंसान हैं। अंकल बैन की पत्नी ने उन्हें तलाक देने के कई साल पहले एक बार उन्हें उनके धार्मिक विश्‍वासों की वजह से पागल खाने में भर्ती करवा दिया था! जब अस्पताल के डॉक्टरों को तुरंत पता चला कि मेरे अंकल बिलकुल ठीक हैं तो उन्होंने मेरे अंकल से माफी माँगी और उन्हें जाने दिया।

बॉस्टन में अंतर्राष्ट्रीय बाइबल स्टूडैंट की सभाओं में, खासकर जब दूसरी जगहों से वक्‍ता भाषण देने के लिए आते थे या जब कोई खास अवसर होता था तो अंकल बैन मुझे अपने साथ उन सभाओं में ले जाते थे। एक बार तो भाषण देने के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद चार्ल्स टेज़ रस्सल आए थे, जो उन दिनों प्रचार के काम की निगरानी करते थे। एक और खास अवसर पर, “फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन” दिखाया गया था। हालाँकि यह बात सन्‌ 1915 की है, मगर आज भी वह दृश्‍य मुझे अच्छी तरह याद है जिसमें यह दिखाया गया था कि इब्राहीम अपने बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने के लिए पहाड़ के ऊपर उसे अपने साथ ले जा रहा है। (उत्पत्ति, अध्याय 22) आज भी मेरे मन में वह तसवीर एकदम साफ है जिसमें यह दिखाया गया था कि इब्राहीम और इसहाक दोनों लकड़ियों का बोझ लिए हुए पहाड़ पर चढ़ रहे हैं और इब्राहीम को यहोवा पर पूरा विश्‍वास है। पिता और बेटे का वह दृश्‍य मेरे दिल को छू गया क्योंकि मेरे पिता नहीं थे।

फिर, अंकल बैन अपनी पत्नी के साथ मॆन शहर में जाकर बस गए। माँ ने दोबारा शादी कर ली और हम न्यू जर्सी में जाकर रहने लगे। इसलिए कई अरसे तक मैंने अंकल बैन को नहीं देखा। न्यू जर्सी में, किशोरावस्था के समय मेरी मुलाकात मैरीअन नैफ से हुई। वे आठ भाई-बहन थे और उनका पूरा परिवार प्रेसबिटेरियन चर्च का सदस्य था। उनके यहाँ जाना मुझे बहुत अच्छा लगता था। कई रविवार की शाम मैं उस परिवार और उनके चर्च जानेवाले जवानों के साथ बिताता था। आगे चलकर मैं भी प्रेसबिटेरियन चर्च का एक सदस्य बन गया। मगर फिर भी बाइबल स्टूडैंट की सभाओं में मैंने जो कुछ सीखा था, उसे मैं भुला नहीं पाया। सन्‌ 1928 में, मैंने और मैरीअन ने शादी कर ली। हमारी पहली बेटी डॉरिस का जन्म 1935 में और दूसरी बेटी लूवीज़ का जन्म 1938 में हुआ। घर में दो छोटी बच्चियाँ होने से हमें एहसास हुआ कि अपने परिवार का अच्छी तरह पालन-पोषण करने के लिए हमें आध्यात्मिक निर्देशन की सख्त ज़रूरत है।

उन पुस्तिकाओं में सच्चाई पाना

उस वक्‍त मैं और मैरीअन सोच रहे थे कि हम कौन-से चर्च के सदस्य बनें और इसी सिलसिले में हमने एक योजना बनायी। हर रविवार को बारी-बारी करके हम दोनों में से एक जन घर में रहकर बेटियों को सँभालता और दूसरा उस चर्च को जाता जिसके सदस्य बनने की हम सोच रहे होते। एक रविवार, घर पर रहने की बारी मैरीअन की थी, मगर मैंने उससे कहा कि आज तुम चर्च जाओ और मैं बच्चों को सँभालूँगा। असल में, मैं मिसिस स्टैकहाउस द्वारा दी गईं तीन पुस्तिकाओं में से सबसे पहलीवाली, सुरक्षा पढ़ना चाहता था। एक बार जब मैंने पढ़ना शुरू किया, तो बस रुकने का नाम ही नहीं लिया! मेरा यकीन बढ़ता गया कि मुझे वह सच्चाई मिल गई है जो दुनिया का कोई भी चर्च नहीं दे सकता था। अगले हफ्ते मैंने फिर वही किया, मैं बच्चों को सँभालने के लिए तैयार था और मैंने दूसरी पुस्तिका, बेपरदा भी पढ़ डाली। उसमें मैंने जो कुछ पढ़ा, वह मुझे थोड़ा जाना-पहचाना लगा। क्या अंकल बैन इन्हीं बातों पर विश्‍वास करते थे? जब हमारे परिवार को उनका धर्म बड़ा ही अजीबो-गरीब लगा था तो इसके बारे में मैरीअन क्या सोचेगी? असल में, मुझे इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए थी। बेपरदा पुस्तिका पढ़ने के कुछ दिन बाद, जब मैं काम से घर लौटा, तो मैरीअन ने मुझे चौंका दिया था। उसने कहा, “मैंने इन पुस्तिकाओं को पढ़ लिया है, जो तुम घर लाए थे। वे बड़ी ही दिलचस्प पुस्तिकाएँ हैं।” यह सुनकर मेरे दिल को चैन मिला!

इन पुस्तिकाओं के पीछे, हाल ही में प्रकाशित की गई एक नयी किताब, दुश्‍मनों (अँग्रेज़ी) के बारे में जानकारी दी गई थी। उसमें झूठे धर्मों का बड़े ही ज़बरदस्त ढंग से परदाफाश किया गया है। हमने उस किताब को मँगवाने का फैसला किया। हम डाक द्वारा इसकी गुज़ारिश करनेवाले ही थे कि यहोवा के एक साक्षी ने हमारे घर आकर हमें वही किताब पेश की। बस फिर क्या! हमने अलग-अलग चर्च जाना बंद कर दिया और कैमडन, न्यू जर्सी में यहोवा के साक्षियों की कंपनी की सभाओं में जाना शुरू कर दिया। कुछ ही महीने बाद, जुलाई 31, 1938 को रविवार के दिन, करीब 50 जन, बहन स्टैकहाउस के बगीचे में इकट्ठे हुए। जी हाँ, यह वही घर था जहाँ मैं ईस्टर केक बेचने की कोशिश कर रहा था। यहीं पर हमने भाई रदरफर्ड द्वारा बपतिस्मे पर दिए गए भाषण का टेप सुना। उसके बाद हममें से 19 लोगों ने घर में कपड़े बदले और पास की नदी में जाकर बपतिस्मा लिया।

पायनियर बनने का पक्का इरादा

मेरे बपतिस्मे के कुछ समय बाद, कलीसिया की एक बहन ने मुझे उन भाई-बहनों के बारे में बताया जिन्हें पायनियर कहा जाता है और जो प्रचार के काम को बहुत अहमियत देते हैं। फौरन मेरे अंदर पायनियर सेवा के बारे में और जानने की ख्वाहिश पैदा हुई और जल्द ही मेरी मुलाकात एक ऐसे परिवार से हुई जिसके सभी सदस्य पायनियर थे। एक बुज़ुर्ग भाई कोनिग, उसकी पत्नी, और उसकी बड़ी बेटी, सभी पास ही की कलीसिया में पायनियर सेवा कर रहे थे। छोटे बच्चोंवाले परिवार में एक पिता होने के नाते मैं इस बात से बहुत प्रभावित हुआ कि किस तरह कोनिग परिवार को सेवकाई से बेहद खुशी मिलती है। मैं अकसर उस परिवार से मिलता था और अपने बेकरी ट्रक को खड़ा करके उनके साथ घर-घर प्रचार करने जाता था। जल्द ही, मैं खुद एक पायनियर बनना चाहता था। लेकिन मैं यह कैसे करता? हमारी दो छोटी बच्चियाँ थीं, उस पर मेरी नौकरी भी ऐसी थी कि मेरा ज़्यादातर समय और ताकत उसी में चली जाती थी। दरअसल, जब से यूरोप में दूसरा विश्‍वयुद्ध शुरू हुआ, ज़्यादा-से-ज़्यादा नौजवान अमरीका की सेना में भर्ती हो गए थे, इसलिए देश में बाकी नौकरी करनेवाले नागरिकों पर काम का बोझ और भी बढ़ गया था। मुझे और भी दूसरी जगहों पर जाकर बेकरी की दूसरी चीज़ों को बेचने के लिए भेजा जाता था और मैं जानता था कि ऐसे हालात में पायनियर सेवा करना नामुमकिन है।

जब मैंने भाई कोनिग से इज़हार किया कि मैं एक पायनियर बनना चाहता हूँ, तो उसने मुझसे कहा: “बस, यहोवा की सेवा में मेहनत करते रहो, और अपने लक्ष्य के बारे में उससे प्रार्थना करते रहो। तुम्हारे लक्ष्य तक पहुँचने में वह तुम्हारी मदद ज़रूर करेगा।” एक साल से ज़्यादा मैंने ठीक वैसा ही किया। मैं अकसर मत्ती 6:8 जैसे वचनों पर मनन करता जो हमें आश्‍वासन देता है कि माँगने से पहले ही यहोवा हमारी ज़रूरतों के बारे में जानता है। और मैं मत्ती 6:33 में दी गई सलाह के मुताबिक चलने की पूरी कोशिश करता रहा, जहाँ परमेश्‍वर के राज्य और धर्म की खोज करते रहने के बारे में लिखा गया है। एक ज़ोन सर्वेन्ट (जिसे आज सर्किट ओवरसियर कहा जाता है), भाई मेलविन विनचेस्टर ने भी मेरा हौसला बढ़ाया।

मैंने मैरीअन को अपने लक्ष्यों के बारे में बताया। हम दोनों ने मलाकी 3:10 में लिखे शब्दों के बारे में चर्चा की, जो हमें यहोवा को परखने और यह देखने का बढ़ावा देते हैं कि यहोवा हम पर ढेर सारी आशीष बरसाएगा या नहीं। मैरीअन की बातों से मुझे बहुत हिम्मत मिली। उसने कहा: “अगर आप पायनियर सेवा करना चाहते हैं, तो मेरी वजह से अपने आपको मत रोकिए। मैं बच्चियों को सँभाल सकती हूँ। और फिर हमें तो ज़्यादा भौतिक चीज़ों की भी ज़रूरत नहीं है।” शादी के 12 साल बाद, मैं पहले से इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था कि मैरीअन घर का खर्चा बहुत सोच-समझकर करती थी और हर चीज़ पर बहुत ध्यान देती थी। पिछले कई सालों में, वह मेरी बहुत ही बढ़िया पायनियर साथी रही है। करीब 60 साल की पूरे समय की सेवकाई में हमारी कामयाबी का राज़ है मैरीअन की काबिलीयत, थोड़े में ही संतुष्ट रहने की और जो कुछ हमारे पास था उससे ऐसे खुश रहना जैसे कि हमारे पास बहुत कुछ है।

हमने कई महीने प्रार्थना करने और योजनाएँ बनाने में बिता दिए। और सन्‌ 1941 की गर्मियों तक हमने कुछ पैसे जमा कर लिए थे और उसी से अपने परिवार के रहने के लिए 18 फुट लंबा ट्रेलर खरीदा। मैंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और जुलाई 1941 में रेग्युलर पायनियर बना और तब से मैं पूरे समय की सेवा कर रहा हूँ। पायनियर सेवा का मेरा पहला असाइन्मेंट था न्यू जर्सी और सेंट लूई, मिज़ूरी के बीच पचासवें रूट पर जहाँ दस बस स्टॉप आते थे। उन्हीं जगहों पर मुझे प्रचार करने का काम सौंपा गया था। उस रूट में जो-जो भाई रहते थे, उनके नाम और पते मुझे भेज दिए गए थे, और मैं पहले से ही उन्हें खबर दे देता था कि हम फलाना तारीख को पहुँच रहे हैं। सेंट लूई, मिज़ूरी में अगस्त महीने की शुरूआत में अधिवेशन आयोजित किया गया। जब हम अधिवेशन में पहुँचे तो मुझे पायनियर विभाग में जाकर अपना अगला असाइन्मेंट लेना था।

“मैं यहोवा को परखूँगा”

हमने अपने छोटे-से ट्रेलर को साहित्य से भर दिया और कैमडन के सभी भाई-बहनों को अलविदा कहने के लिए, आखिरी सभा में गए। एक तो दो छोटी बच्चियों को सँभालना, ऊपर से इस बात का पता न होना कि अधिवेशन के बाद हमें कहाँ भेजा जाएगा, इन सभी बातों को देखते हुए कुछ भाइयों को लगा होगा कि हमारी योजना कामयाब होनेवाली नहीं! उनमें से बहुतों ने कहा: “देखना, तुम बहुत जल्द वापस लौट आओगे।” मेरा जवाब मुझे आज भी याद है: “मैं ये तो नहीं कहता कि मैं वापस लौटकर नहीं आऊँगा। लेकिन यहोवा ने कहा है कि वह मेरी देखभाल करेगा, इसलिए मैं यहोवा को परखूँगा।”

मैसाचूसेट्‌स्‌ और मिसीसिप्पी के बीच पड़नेवाले 20 शहरों में 60 साल तक पायनियर सेवा करने के बाद, हम कह सकते हैं कि यहोवा ने सिर्फ अपना वादा ही नहीं निभाया बल्कि हमारे लिए बहुत कुछ किया भी है। जब सन्‌ 1941 में हम पायनियर सेवा के लिए घर से निकल पड़े थे तब से मुझ पर, मैरीअन और हमारी बेटियों पर यहोवा ने जो आशीषें बरसाई हैं, वे हमारी उम्मीदों से बढ़कर थीं। उनमें से कुछ आशीषें हैं कि हमारी दोनों बेटियाँ पास की कलीसियाओं में वफादारी से पायनियर सेवा कर रही हैं, और अमरीका के पूर्वी तट में फैले (आखिरी बार जब गिनती की गई थी,) हमारे लगभग सौ आध्यात्मिक बेटे और बेटियाँ हैं। मैंने जिन 52 लोगों और मैरीअन ने जिन 48 लोगों के साथ अध्ययन किया था, उन सभी ने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया है।

अगस्त 1941 को हम सेंट लूई पहुँचे और वहाँ मेरी मुलाकात बेथेल के एक भाई टी. जे. सलिवन से हुई। उनके पास मेरा पायनियर नियुक्‍ति-पत्र था, जिसकी उस वक्‍त मुझे सख्त ज़रूरत थी क्योंकि देश में युद्ध के काले बादल मँडरा रहे थे और पुरुषों को सेना में भर्ती किया जा रहा था। मैंने भाई सलिवन को बताया कि सेवकाई में मेरी पत्नी भी मेरे जितना ही समय बिताती है और मेरी तरह वह भी पायनियर बनना चाहती है। हालाँकि उस अधिवेशन में पायनियर विभाग नहीं बना था, फिर भी भाई सलिवन ने उसी वक्‍त मैरीअन के लिए पायनियर नियुक्‍ति-पत्र तैयार कर दिया। उन्होंने हमसे पूछा: “अधिवेशन के बाद, आप दोनों पायनियर सेवा के लिए कहाँ जा रहे हैं?” इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं थी। फिर उन्होंने कहा: “चिंता मत करो। जिनके इलाके में पायनियरों की ज़रूरत होगी उनमें से कोई-ना-कोई आपको अधिवेशन में ज़रूर मिल जाएगा, और फिर आपकी समस्या हल हो जाएगी। आपको सिर्फ हमें लिखकर इत्तला करनी होगी कि आप कहाँ हैं और हम आपको आपकी असाइन्मेंट चिट्ठी भेज देंगे।” उन्होंने जैसा कहा वैसा ही हुआ। भाई जैक डविट जो पहले एक सर्किट ओवरसियर रह चुके थे, न्यू मार्केट, वर्जिनीया के ऐसे कुछ लोगों को जानते थे जिनके पास पायनियर होम था। उस घर में कुछ और पायनियरों के लिए रहने की जगह थी। इसलिए अधिवेशन के बाद, हम न्यू मार्केट के लिए रवाना हुए।

न्यू मार्केट में हमें इतनी खुशी मिली, जो हम कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे। क्या आपको मालूम है कि पायनियर सेवा करने के लिए हमारे साथ फिल्डेल्फिया से कौन आया? बॆनजमिन रैनसम। जी हाँ, मेरे अंकल बैन। बॉस्टन में मेरे दिल में सच्चाई का बीज बोने के 25 से भी ज़्यादा साल बाद, उनके साथ घर-घर की सेवकाई में काम करने में मुझे बेहद खुशी मिली! बरसों से अपने परिवार की बेरूखी, ठट्ठा, यहाँ तक कि सताए जाने पर भी अंकल बैन ने यहोवा से प्यार करना कभी नहीं छोड़ा और न ही सेवकाई के लिए अपनी कदर को कम होने दिया।

न्यू मार्केट के पायनियर होम में हमारे आठ महीने बहुत बढ़िया गुज़रे। उस दौरान, दूसरी चीज़ों के अलावा, हमने अंडे और मुर्गियों के बदले साहित्य देना सीखा। फिर अंकल बैन, मैं, मैरीअन, और तीन दूसरे लोगों को स्पेशल पायनियर के तौर पर हैनोवर, पॆंसिल्वेनिया भेजा गया। सन्‌ 1942 से 1945 तक पॆंसिल्वेनिया में हमें छः जगहों पर भेजा गया था और हैनोवर उनमें से सबसे पहली जगह थी।

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान स्पेशल पायनियर सेवा

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान ऐसा समय आया जब युद्ध में हिस्सा न लेने की वजह से हमें लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा, मगर यहोवा ने हमारा साथ कभी नहीं छोड़ा था। एक बार प्रोविंसटाउन, मैसाचूसेट्‌स्‌ में हमारी पुरानी ब्यूक गाड़ी खराब हो गई और पुनःभेंट के लिए मुझे एक ऐसे कैथोलिक इलाके में कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ा जहाँ के लोग हमारे सख्त खिलाफ थे। जब मैं आवारा लड़कों के एक गिरोह के सामने से गुज़रा तो उन्होंने मुझे पहचान लिया और चिल्लाना शुरू कर दिया। मैं तेज़ी से चलने लगा क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि वे मेरे पीछे आएँ और उनके द्वारा फेंके गए पत्थर बिलकुल मेरे कानों के पास से गुज़रे। मगर बिना किसी खरोंच के मैं दिलचस्पी दिखानेवाले व्यक्‍ति के घर पहुँच गया। लेकिन वह व्यक्‍ति जो अमेरिकन लीजिअन का एक इज़्ज़तदार सदस्य था, उसने मुझसे कहा: “माफ कीजिएगा, मैं आज आपको वक्‍त नहीं दे सकूँगा क्योंकि मैं भूल गया था कि आज हम शहर में एक फिल्म देखने जा रहे हैं।” यह सुनते ही मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ गए क्योंकि पत्थर फेंकनेवाले लड़कों का गिरोह मोड़ पर मेरे लौटने का इंतज़ार कर रहा था। मगर उसने कहा, “आप हमारे साथ कुछ दूरी तक क्यों नहीं चलते? फिर हम रास्ते में बात कर सकते हैं,” यह सुनकर मेरी जान में जान आई। इस तरह मैंने उसे गवाही दी और मैं ठीक-ठाक उस अशांत इलाके से भी बाहर निकल आया।

परिवार और सेवकाई की ज़िम्मेदारी में संतुलन बनाए रखना

युद्ध के बाद, वर्जिनीया में हमें कई जगहों पर प्रचार करने के लिए भेजा गया। इनमें से एक जगह थी शार्लट्‌सविल, जहाँ हमने आठ साल स्पेशल और रेग्युलर पायनियर के तौर पर सेवा की। सन्‌ 1956 तक हमारी बेटियों ने बड़ी होकर अपना-अपना घर बसा लिया, मैरीअन और मैं एक बार फिर दूसरी जगह जाकर सेवा करने के लिए निकल पड़े। हमने हैरिसनबर्ग, वर्जिनीया में पायनियर के तौर पर और लिनकनटन, नॉर्थ कैरोलाइना में स्पेशल पायनियर के तौर पर सेवा की।

सन्‌ 1966 में, मुझे सर्किट काम सौंपा गया। हम एक से दूसरी कलीसिया में जाते और भाइयों का हौसला बढ़ाते थे, ठीक उसी तरह जिस तरह भाई विनचेस्टर ने सन्‌ 1930 के दशक में न्यू जर्सी में मेरा हौसला बढ़ाया था। मैंने दो साल तक टॆनॆसे की कलीसियाओं में सर्किट काम किया। उसके बाद मैरीअन और मुझको फिर से वही काम सौंपा गया जो हमें दिल-से अज़ीज़ था, और वह है स्पेशल पायनियर सेवा। सन्‌ 1968 से 1977 तक, हमने यह सेवा दक्षिणी अमरीका में, जॉर्जिया से लेकर मिसीसिप्पी तक की अलग-अलग जगहों पर की।

ईस्टमन, जॉर्जिया में मुझे भाई पवल कर्कलंड की जगह कलीसिया का ओवरसियर (आज प्रिसाइडिंग ओवरसियर) बनाया गया। भाई पवल बड़े ही प्यारे बुज़ुर्ग भाई थे, जिन्होंने कई सालों तक बतौर सर्किट ओवरसियर सेवा की, मगर उनकी सेहत ठीक नहीं रहती थी। वे हर चीज़ की दिल-से कदर करते थे और दूसरों की बहुत मदद भी करते थे। उस समय मुझे उनकी मदद की सख्त ज़रूरत थी क्योंकि कलीसिया में कुछ मत-भेद चल रहा था जिसमें कुछ खास लोग शामिल थे। इस मसले को लेकर काफी गर्मा-गर्मी हुई और मैंने ज़्यादातर समय प्रार्थना में यहोवा से मदद माँगने में बिताया था। नीतिवचन 3:5, 6 जैसे वचन मेरे मन में आते: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” खुलकर मसले पर बातचीत के लिए कड़ी मेहनत करने के ज़रिए कलीसिया में दोबारा एकता लाने में हम कामयाब हो गए और इससे हरेक व्यक्‍ति को फायदा हुआ।

सन्‌ 1977 में, ढलती उम्र की समस्याएँ हम पर हावी होने लगीं। इसलिए हमें दोबारा शार्लट्‌सविल इलाके में भेजा गया, जहाँ हमारी दोनों बेटियाँ अपने-अपने परिवार के साथ रहती थीं। पिछले 23 साल तक, हमने इस इलाके में काम किया, रकर्सविल, वर्जिनीया कलीसिया की शुरूआत करने में हाथ बँटाया, साथ ही अपने शुरूआती बाइबल विद्यार्थियों के बच्चों और नाती-पोतों को बड़े होकर कलीसिया के प्राचीन, पायनियर और बेथेल परिवार के सदस्य बनते देखा है, इन सबसे हमें बड़ी खुशी मिली है। मैरीअन और मैं अभी तक सेवकाई की एक अच्छी सारणी रख पाए हैं और शार्लट्‌सविल की ईस्ट कलीसिया में मुझे प्राचीन के तौर पर सेवा करने का बढ़िया मौका मिला है, जो मैं बड़े जोश के साथ करता हूँ। वहाँ मैं एक पुस्तक अध्ययन चलाता हूँ और जन भाषण देता हूँ।

पिछले कई सालों में, दूसरे लोगों की तरह हमें भी कई समस्याओं से जूझना पड़ा है। मिसाल के लिए, हमारी कोशिशों के बावजूद हमारी बेटी डॉरिस जब बीस साल से भी कम उम्र की थी, तो वह आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर हो गई थी और कलीसिया से बाहर के आदमी से शादी कर ली। लेकिन उसके दिल में यहोवा के लिए प्यार पूरी तरह से मिटा नहीं था। आज उसका बेटा बिल करीब 15 साल से वॉलकिल, न्यू यॉर्क बेथेल में सेवा कर रहा है। अब डॉरिस और लूवीज़, दोनों के पति इस दुनिया में नहीं रहे, मगर फिर भी हमारी दोनों बेटियाँ पास की कलीसिया में खुशी-खुशी रेग्युलर पायनियर के तौर पर सेवा कर रही हैं।

पिछले कई सालों में सीखी बातें

यहोवा की सेवा में कामयाब होने के लिए मैंने कुछ सरल-सी बातों को लागू करना सीखा है: सबसे पहली, सादगी भरी ज़िंदगी जीना। आप जो कुछ भी करते हैं, यहाँ तक कि व्यक्‍तिगत मामलों में भी एक अच्छी मिसाल कायम करना। हर मामले में “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा दिए गए निर्देशनों का पालन करना।—मत्ती 24:45.

मैरीअन के पास भी कुछ मगर बहुत असरदार सुझाव हैं जो दिखाते हैं कि कैसे बच्चों की परवरिश करने के साथ-साथ हम पायनियर सेवा में भी कामयाब हो सकते हैं: एक कारगर सारणी बनाइए और उसके मुताबिक चलने की पूरी कोशिश कीजिए। पायनियर सेवा को सिर्फ अपने जीवन का लक्ष्य मत बनाइए बल्कि उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत भी कीजिए। पौष्टिक आहार खाइए। अच्छी तरह से आराम कीजिए। हद-से-ज़्यादा वक्‍त मनोरंजन में मत बिताइए। सच्चाई में यहाँ तक कि हर प्रकार की सेवकाई में खुशी पाने के लिए अपने बच्चों की मदद कीजिए। बच्चों की ज़िंदगी में सेवकाई को हर समय एक दिलचस्प अनुभव बनाइए।

अब हम दोनों की उम्र 90 से भी ज़्यादा हो चुकी है। स्टैकहाउस के घर के बगीचे में बपतिस्मा का भाषण सुने हुए बासठ साल बीत चुके हैं, और हमने पूरे समय की सेवा में 60 साल गुज़ार दिए हैं। मैरीअन और मैं सच्चे दिल से कह सकते हैं कि हमें अपनी ज़िंदगी से कोई गिला-शिकवा नहीं है और और हम बेहद खुश हैं। एक जवान पिता होने के नाते आध्यात्मिक लक्ष्यों को जीवन में पहला स्थान देने और उनको पूरा करने का जो बढ़ावा मुझे मिला, उसके लिए मैं बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। मैं अपनी प्यारी पत्नी, मैरीअन और अपनी बेटियों का भी एहसान मानता हूँ, जो सालों से मेरा साथ देते आ रहे हैं। हालाँकि हमारे पास धन-दौलत तो नहीं है, लेकिन मैं अकसर कहता हूँ कि सभोपदेशक 2:25 की बात मेरे लिए लिखी गई है: “खाने-पीने और सुख भोगने में मुझ से अधिक समर्थ कौन है?”

सचमुच, हमारे मामले में, यहोवा ने मलाकी 3:10 में दिए गए अपने वादों को हमारी उम्मीद से बढ़कर पूरा किया है। उसने वाकई, ‘हमारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा की है’!

[पेज 29 पर बक्स/तसवीर]

युद्ध के सालों की यादें

युद्ध हुए करीब 60 साल बीत चुके हैं, मगर फिर भी पूरे परिवार को उन सालों की बातें आज भी याद हैं।

डॉरिस उन दिनों को याद करते हुए कहती है, “पॆंसिल्वेनिया में कभी-कभी कड़ाके की ठंड पड़ती थी। एक रात तो तापमान शून्य से 35 डिग्री सॆलसियस से नीचे गिर गया था।” लूवीज़ आगे कहती है, “ब्यूक गाड़ी के पीछे की सीट पर कभी डॉरिस तो कभी मैं एक-दूसरे के पैर पर बैठते थे ताकि हमारा पैर ठंड से सुन्‍न न हो जाए।”

डॉरिस कहती है, “लेकिन हमें कभी नहीं लगा कि हम गरीब हैं या हमें किसी चीज़ की कमी है। हम जानते थे कि हम दूसरों से ज़्यादा घर बदलते थे, फिर भी, हम हमेशा अच्छा खाते-पीते थे, और हमारे पास उम्दा किस्म के कपड़े होते थे जो ओहायो में कुछ दोस्तों से लगभग नये-नये मिलते थे, जिनकी बेटियाँ हमसे उम्र में ज़्यादा बड़ी नहीं थीं।”

लूवीज़ ज़ोर देते हुए कहती है, “हमारे माता-पिता ने हमें हमेशा यह एहसास दिलाया कि वे हमसे बहुत प्यार करते हैं और हमारी कदर भी करते हैं। उनके साथ सेवकाई में हमने बहुत वक्‍त बिताया है। इन सबसे हमें लगता था कि हम उनकी नज़र में बहुत खास हैं और उनके करीब हैं।”

पॉल कहता है, “मेरे पास सन्‌ 1936 की ब्यूक स्पेशल गाड़ी थी और उन गाड़ियों के एक्सल का टूटना आम था। मुझे लगता है कि इंजिन उसके लिए ज़्यादा भारी पड़ता था। और देखने में आया है कि महीने में जब भी कड़ाके की ठंड पड़ती थी तो एक्सल टूट जाता था और उसके बाद, कबाड़-खाने में जाकर मैं एक दूसरा एक्सल ले आता था। ऐसा करते-करते मैं एक्सल बदलने में माहिर हो गया।”

मैरीअन कहती है, “और हाँ, राशन कार्ड के बारे में मत भूलना। सबकुछ राशन से मिलता था, मांस, पॆट्रोल, गाड़ियों के टायर, सबकुछ। जब भी हम अपनी पायनियर सेवा के लिए नयी जगह जाते, तो हमें इलाके के अधिकारी के पास जाकर राशन कार्ड बनवाना पड़ता था। कभी-कभी तो राशन कार्ड मिलने में महीने लग जाते थे और हमेशा ऐसा होता था कि जब बड़ी मुश्‍किल से हमें आखिर में राशन कार्ड मिल जाता कि हमें दूसरी जगह भेज दिया जाता था और दूसरी जगह जाकर हमें फिर से वही सिलसिला शुरू करना पड़ता। मगर यहोवा हमेशा हमारी देखभाल करता रहा।”

[तसवीर]

सन्‌ 2000 में, मैं और मैरीअन, डॉरिस (बाँयें) और लूवीज़ के साथ

[पेज 25 पर तसवीर]

सन्‌ 1918 में, अपनी माँ के साथ जब मैं 11 साल का था

[पेज 26 पर तसवीर]

सन्‌ 1948 में, लूवीज़, मैरीअन और डॉरिस के साथ, जब मेरी बेटियों ने बपतिस्मा लिया

[पेज 26 पर तसवीर]

अक्टूबर 1928 में हुई हमारी शादी की तसवीर

[पेज 26 पर तसवीर]

सन्‌ 1955 में, यैंकी स्टेडियम में, मैं और मेरी बेटियाँ (एकदम बाँयें में और एकदम दाँयें में)