मसीह की शांति हमारे हृदयों में कैसे शासन कर सकती है?
मसीह की शांति हमारे हृदयों में कैसे शासन कर सकती है?
“मसीह की शान्ति तुम्हारे हृदय में शासन करे। इसी शान्ति के लिए तुम एक देह में बुलाए गए हो।” —कुलुस्सियों 3:15, नयी हिन्दी बाइबिल।
1, 2. किन तरीकों से “मसीह की शान्ति” एक मसीह के हृदय में शासन करती है?
शासन, इस शब्द से कई लोगों को चिढ़ आती है क्योंकि इससे उनके दिमाग में किसी के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती और धोखा-धड़ी किए जाने की तसवीर उभर आती है। इसलिए हो सकता है कि कुलुस्से के मसीही भाई-बहनों को दी गयी पौलुस की यह सलाह कुछ लोगों को ठीक न लगे: “मसीह की शान्ति तुम्हारे हृदय में शासन करे।” (कुलुस्सियों 3:15, नयी हिन्दी बाइबिल) वे शायद पूछें कि क्या हमें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी नहीं मिली है? तो फिर हम किसी और चीज़ या व्यक्ति को अपने हृदयों में शासन क्यों करने दें?
2 दरअसल, पौलुस कुलुस्सियों से यह नहीं कह रहा था कि वे अपने फैसले खुद करने की आज़ादी त्याग दें। कुलुस्सियों 3:15 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘शासन करना’ किया गया है, उसका संबंध ‘अम्पायर’ के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से है जो उस ज़माने में खेल-कूद की प्रतियोगिता में विजेताओं को पुरस्कार देता था। प्रतियोगिता में भाग लेनेवालों को, खेल के नियमों का पालन करते हुए कुछ हद तक आज़ादी ज़रूर मिलती थी। मगर आखिर में अम्पायर ही फैसला करता था कि किस खिलाड़ी ने नियमों का सही-सही पालन करके जीत हासिल की है। उसी तरह हमें भी अपनी ज़िंदगी में कई फैसले करने की आज़ादी है मगर ये फैसले करते समय हमेशा “मसीह की शान्ति” हमारे लिए “अम्पायर” की तरह होनी चाहिए। या फिर, जैसे अनुवादक, एडगर जे. गुडस्पीड कहते हैं, यह हमारे हृदय को “नियंत्रित करनेवाले सिद्धांत” की तरह होनी चाहिए।
3. “मसीह की शान्ति” क्या है?
3 “मसीह की शान्ति” क्या है? यह मन की शांति या सुकून है जो हमें यीशु के शिष्य बनने और यह जानने पर मिलती है कि यहोवा परमेश्वर और उसका पुत्र हम से प्यार करते हैं और हमें स्वीकार करते हैं। जब यीशु अपने शिष्यों को छोड़कर जाने ही वाला था, तब उसने उनसे कहा: “[मैं] अपनी शान्ति तुम्हें देता हूं; . . . तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।” (यूहन्ना 14:27) मसीह की देह के वफादार अभिषिक्त सदस्य तकरीबन 2,000 सालों से इस शांति का आनंद उठाते आए हैं और आज उनके साथी, “अन्य भेड़” भी इसका आनंद ले रहे हैं। (यूहन्ना 10:16, NW) उसी शांति का हमारे हृदयों पर शासन और प्रभाव होना चाहिए। जब हम कड़ी परीक्षा से गुज़रते हैं, तो यह शांति हमारी हिम्मत बँधा सकती है ताकि हम डर के मारे अपनी सुध-बुध न खो बैठें या हद-से-ज़्यादा चिंता न करने लगें। आइए देखें कि यह बात ऐसे हालात में कैसे सच साबित होती है जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है या हम चिंता से घिरे होते हैं या जब हम खुद को किसी काम के लायक नहीं समझते।
जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है
4. (क) यीशु ने अन्याय के बारे में कैसे जाना? (ख) जब मसीहियों के साथ अन्याय किया गया तो उन्होंने क्या किया?
4 राजा सुलैमान ने कहा: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक 8:9) यीशु इन बातों की सच्चाई जानता था। स्वर्ग में रहते समय उसने देखा था कि इंसान एक-दूसरे के साथ कितना घोर अन्याय करते हैं। और पृथ्वी पर रहते समय उसने खुद सबसे बड़ा अन्याय सहा था क्योंकि निष्पाप होने के बावजूद उस पर परमेश्वर की निंदा करने का इलज़ाम लगाया गया और उसे एक अपराधी की तरह मौत की सज़ा दी गयी। (मत्ती 26:63-66; मरकुस 15:27) आज भी हर जगह अन्याय ही अन्याय है और सच्चे मसीहियों ने हद-से-ज़्यादा अन्याय सहा है क्योंकि ‘सब जातियों के लोग उनसे बैर रखते हैं।’ (मत्ती 24:9) नात्ज़ियों के मृत्यु शिविरों में और सोवियत के लेबर कैंपों में उन्हें भयानक-से-भयानक वारदातों से गुज़रना पड़ा, उन पर भीड़ ने हमला किया, उन पर झूठे इलज़ाम लगाए गए और उनके बारे में अफवाहें फैलाई गईं। मगर इन सबके बावजूद, मसीह की शांति ने उन्हें अपने विश्वास में दृढ़ खड़े रहने की ताकत दी। वे यीशु के नक्शे-कदम पर चले, जिसके बारे में हम पढ़ते हैं: “वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।”—1 पतरस 2:23.
5. जब हम सुनते हैं कि कलीसिया में किसी के साथ नाइंसाफी हुई है तो सबसे पहले हमें किस बात पर ध्यान देना चाहिए?
5 उसी तरह एक छोटे पैमाने पर, शायद हमें लगे कि कलीसिया में किसी के साथ नाइंसाफी की गयी है। तब हम शायद पौलुस की तरह महसूस करें, जिसने कहा: “किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?” (2 कुरिन्थियों 11:29) ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? हमें अपने आप से पूछना चाहिए, ‘क्या इसे सचमुच अन्याय कहा जा सकता है?’ अकसर हमें एक मामले से जुड़ी सारी सच्चाइयों की खबर नहीं होती। और शायद हम किसी ऐसे व्यक्ति की बात सुनकर भड़क जाएँ जो इस बारे में सबकुछ जानने का दावा करता है। बाइबल बिलकुल ठीक कहती है: “भोला तो हर एक बात को सच मानता है।” (नीतिवचन 14:15) इसलिए हमें सावधानी बरतने की ज़रूरत है।
6. अगर हमें लगे कि कलीसिया में किसी ने हमारे साथ नाइंसाफी की है, तो हम क्या कर सकते हैं?
6 अब मान लीजिए, हमें लगता है कि किसी भाई या बहन ने हमारे साथ नाइंसाफी की है। अगर हमारे अंदर मसीह की शांति होगी, तो हम क्या करेंगे? हम शायद उसी भाई या बहन से जाकर सीधे बात करने की ज़रूरत महसूस करें। इसके बाद, दूसरों से इस बारे में बात करने के बजाय, क्यों न प्रार्थना करके यह मामला यहोवा के हाथ में छोड़ दें और भरोसा रखें कि वह ज़रूर न्याय करेगा? (भजन 9:10; नीतिवचन 3:5) ऐसा करने के बाद, अच्छा होगा कि हम अपने मन को समझा लें और “चुपचाप” रहें। (भजन 4:4) ज़्यादातर मामलों में पौलुस की यह सलाह लागू हो सकती है: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।”—कुलुस्सियों 3:13.
7. अपने भाइयों के साथ व्यवहार करने के संबंध में हमें कौन-सी बात हमेशा याद रखनी चाहिए?
7 हम चाहे जो भी करें, एक बात हमें याद रखनी चाहिए कि जो हो चुका, सो हो चुका, उसे हम बदल नहीं सकते। मगर आगे हम जिस तरह से पेश आएँगे, यह हमारे हाथ में है। जब हमें लगता है कि हमारे साथ नाइंसाफी हुई है, तब अगर हम खुद पर काबू न रखें और मामले को हद-से-ज़्यादा तूल दें, तो शायद हमें नाइंसाफी से हुए नुकसान से भी ज़्यादा नुकसान हो सकता है। (नीतिवचन 18:14) और ऐसा भी हो सकता है कि यह बात हमारे लिए ठोकर का कारण बन जाए, और हम तब तक कलीसिया में न जाएँ जब तक हमारे हिसाब से हमें न्याय नहीं मिलता। लेकिन भजनहार ने लिखा कि जो लोग यहोवा के नियमों से प्रीति रखते हैं, “उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।” (भजन 119:165) सच बात तो यह है कि हर किसी के साथ कभी-न-कभी अन्याय होता है। इसलिए जब आपकी ज़िंदगी में ऐसे बुरे हालात पैदा होते हैं, तो उनकी वजह से यहोवा की सेवा करना मत छोड़िए। इसके बजाय, मसीह की शांति को अपने हृदय में शासन करने दीजिए।
जब हम चिंता से घिरे होते हैं
8. किन-किन कारणों से हमें चिंता हो सकती है और इसका नतीजा क्या हो सकता है?
8 इन “अन्तिम दिनों” में चिंता, सचमुच ज़िंदगी का एक हिस्सा बन गयी है। (2 तीमुथियुस 3:1) यह सच है कि यीशु ने कहा था: “अपने प्राण की चिन्ता न करो, कि हम क्या खाएंगे; न अपने शरीर की कि क्या पहिनेंगे।” (लूका 12:22) लेकिन ज़िंदगी में सिर्फ खाने-पीने और पहनने-ओढ़ने की चिंताएँ नहीं होतीं। उदाहरण के लिए, लूत सदोम के लोगों की बदचलनी की वजह से “बहुत दुखी” था। (2 पतरस 2:7) पौलुस को “सब कलीसियाओं की चिन्ता” खाए जा रही थी। (2 कुरिन्थियों 11:28) यीशु को अपनी मृत्यु से पहले की रात ऐसी भारी वेदना हुई कि “उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाई भूमि पर गिर रहा था।” (लूका 22:44) तो यह साफ ज़ाहिर है कि हर तरह की चिंता विश्वास की कमी से नहीं होती। लेकिन चिंता का कारण चाहे जो भी हो, अगर यह बहुत गंभीर है और ज़्यादा समय तक रहती है, तो हम अपना चैन खो सकते हैं। कुछ लोगों को चिंता ने इस कदर घेर लिया है कि वे अब खुद को यहोवा की सेवा में ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल नहीं समझते। बाइबल कहती है: “चिन्ता से मनुष्य का हृदय निराश होता है।” (नीतिवचन 12:25, NHT) इसलिए अगर हम गहरी चिंता में डूब जाने की वजह से दुःखी हैं, तो हम क्या कर सकते हैं?
9. चिंता से राहत पाने के लिए कभी-कभी कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं, लेकिन चिंता के किन कारणों को दूर नहीं किया जा सकता?
9 कुछ मामलों में हम चिंता को शांत करने के लिए सही कदम उठा सकते हैं। अगर हमें किसी बीमारी की वजह से चिंता है, तो उस बीमारी का इलाज करवाने में समझदारी है। ऐसे फैसले करना हरेक की अपनी ज़िम्मेदारी है। * (मत्ती 9:12) अगर हम पर बहुत सारी ज़िम्मेदारियों का बोझ है, तो हम अपनी कुछ ज़िम्मेदारियाँ दूसरों को दे सकते हैं। (निर्गमन 18:13-23) लेकिन ऐसे लोगों के बारे में क्या जो अपनी भारी ज़िम्मेदारियाँ दूसरों को नहीं सौंप सकते, जैसे कि माता-पिता की ज़िम्मेदारी? एक ऐसे मसीही के बारे में क्या जिसका साथी उसका विरोध करता हो? ऐसे परिवार के बारे में क्या जो पैसों की बड़ी तंगी से गुज़र रहा हो या युद्ध-ग्रस्त इलाके में रहता हो? यह बात तो तय है कि हम इस दुनिया में चिंता के हर कारण को दूर नहीं कर सकते। मगर फिर भी हम अपने हृदयों में मसीह की शांति ज़रूर बरकरार रख सकते हैं। कैसे?
10. किन दो तरीकों से मसीही, चिंता से राहत पाने की कोशिश कर सकते हैं?
10 एक तरीका है, परमेश्वर के वचन से दिलासा पाना। राजा दाऊद ने लिखा: “जब मेरे मन में चिन्ताएं बढ़ जाती हैं, तब तेरी सान्त्वना मेरे प्राण को प्रसन्न करती है।” (भजन 94:19, NHT) यहोवा से मिलनेवाली “सान्त्वना” बाइबल में पाई जा सकती है। परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी इस किताब से अगर हम लगातार सलाह लेंगे, तो हम अपने हृदयों में मसीह की शांति कायम कर सकेंगे। दूसरे तरीके के बारे में बाइबल कहती है: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (भजन 55:22) कुछ ऐसी ही बात पौलुस ने भी लिखी: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों 4:6,7) अगर हम दिल खोलकर और बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करेंगे, तो हमें अपनी शांति बरकरार रखने में मदद मिलेगी।
11. (क) किस तरह यीशु, प्रार्थना के मामले में एक उम्दा मिसाल था? (ख) प्रार्थना के बारे में हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए?
11 प्रार्थना के मामले में यीशु एक बेहतरीन मिसाल था। कभी-कभी वह प्रार्थना के ज़रिए स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से घंटों बातें करता था। (मत्ती 14:23; लूका 6:12) प्रार्थना ने उसे कड़ी-से-कड़ी परीक्षाएँ सहने में मदद दी। अपनी मृत्यु से पहले की रात जब यीशु भारी वेदना में था, तब उसने क्या किया? वह “और अधिक तीव्रता से” प्रार्थना करने लगा। (लूका 22:44, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) जी हाँ, परमेश्वर का सिद्ध बेटा प्रार्थना करने में एक उम्दा मिसाल था। तो सोचिए कि यीशु के असिद्ध चेलों को प्रार्थना की आदत डालने की कितनी सख्त ज़रूरत है! यीशु ने अपने शिष्यों को बताया कि वे ‘नित्य प्रार्थना करें और हियाव न छोड़ें।’ (लूका 18:1) प्रार्थना करना बेहद ज़रूरी है और इसके ज़रिए हम सचमुच यहोवा से बात करते हैं जो हमारे बारे में हमसे बेहतर जानता है। (भजन 103:14) अगर हम अपने हृदयों में मसीह की शांति बरकरार रखना चाहते हैं तो हम ‘निरन्तर प्रार्थना में लगे रहेंगे।’—1 थिस्सलुनीकियों 5:17.
अपनी कमज़ोरियों पर जीत पाना
12. किन कारणों से शायद कुछ लोग सोचें कि उनकी सेवा कबूल नहीं की जाएगी?
12 यहोवा अपने हर सेवक को अनमोल समझता है। (हाग्गै 2:7) मगर कई लोगों को इस सच्चाई पर विश्वास करना मुश्किल लगता है। कुछ लोग अपनी ढलती उम्र, परिवार में बढ़ती ज़िम्मेदारियों या खराब सेहत होने की वजह से निराश हो सकते हैं। और कुछ लोग बचपन में हुए कड़ुवे अनुभवों की वजह से खुद को किसी लायक नहीं समझते हैं। इन सबके अलावा, कुछ लोग अपनी पिछली गलतियों की वजह से मन-ही-मन बहुत पीड़ित महसूस करते हैं और वे शायद सोचें कि यहोवा उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। (भजन 51:3) ऐसी भावनाओं पर काबू पाने के लिए क्या किया जा सकता है?
13. जो लोग खुद को किसी लायक नहीं समझते, उनके लिए बाइबल में क्या दिलासा है?
13 मसीह की शांति हमें यह भरोसा दिलाती है कि यहोवा हमसे प्यार करता है। यीशु ने ऐसा कभी नहीं कहा था कि हमारी कीमत इस बात से आँकी जाएगी कि हम दूसरों की तुलना में कितनी सेवा करते हैं। इस सच्चाई पर अगर हम मनन करें, तो हम अपने हृदयों में मसीह की शांति दोबारा कायम कर सकते हैं। (मत्ती 25:14,15; मरकुस 12:41-44) लेकिन एक बात है जिस पर यीशु ने ज़ोर दिया और वह है, वफादारी। उसने अपने शिष्यों को बताया: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 24:13) यीशु को भी लोगों ने “तुच्छ जाना” था मगर उसे इस बात का पूरा यकीन था कि उसका पिता उससे प्यार करता है। (यशायाह 53:3; यूहन्ना 10:17) उसने अपने शिष्यों को बताया कि यहोवा उनसे भी प्यार करता है। (यूहन्ना 14:21) इसी बात पर ज़ोर देने के लिए यीशु ने कहा: “क्या पैसे में दो गौरैये नहीं बिकतीं? तौभी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उन में से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। इसलिये, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।” (मत्ती 10:29-31) यीशु ने यहोवा के गहरे प्यार का क्या ही ज़बरदस्त आश्वासन दिलाया!
14. हमें यह कैसे भरोसा दिलाया गया है कि यहोवा हम में से हरेक को अनमोल समझता है?
14 यीशु ने यह भी कहा था: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” (यूहन्ना 6:44) जब यहोवा ने हमें खींच लिया है ताकि हम यीशु की मिसाल पर चलें, तो फिर वह यही चाहेगा कि हमारा उद्धार हो। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा था: “तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।” (मत्ती 18:14) इसलिए अगर आप पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते हैं, तो इन अच्छे कामों के लिए आप खुश हो सकते हैं। (गलतियों 6:4) अगर पिछली गलतियों के लिए आपका मन आपको कोसता रहता है, तो यह भरोसा रखिए कि जो लोग सच्चा पछतावा दिखाते हैं उन्हें यहोवा ‘पूरी रीति से क्षमा करेगा।’ (यशायाह 43:25; 55:7) अगर आप किसी और वजह से निराश हैं, तो याद रखिए कि “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।”—भजन 34:18.
15. (क) शैतान किस तरह हमारी मन की शांति छीनने की कोशिश करता है? (ख) हम यहोवा पर कैसा भरोसा रख सकते हैं?
15 शैतान आपकी शांति छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। आज हमें विरासत में मिले जिस पाप के खिलाफ संघर्ष करना पड़ता है, उसके लिए वही ज़िम्मेदार है। (रोमियों 7:21-24) वह बेशक आपको यही एहसास दिलाना चाहेगा कि परमेश्वर आपकी सेवा कबूल नहीं करेगा क्योंकि आप असिद्ध हैं। लेकिन शैतान को इस तरह आपका हौसला तोड़ने मत दीजिए! वह कैसी चालें चलता है, यह हमेशा ध्यान में रखिए और धीरज धरने का संकल्प कीजिए। (2 कुरिन्थियों 2:11; इफिसियों 6:11-13) याद रखिए कि “परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है।” (1 यूहन्ना 3:20) यहोवा सिर्फ हमारी कमज़ोरियों को नहीं बल्कि यह भी देखता है कि हमारे इरादे क्या हैं, हमारी ख्वाहिशें क्या हैं। इसलिए, भजनहार के इन शब्दों से तसल्ली पाइए: “यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा, वह अपने निज भाग को न छोड़ेगा।”—भजन 94:14.
“मसीह की शान्ति” में एक किए गए
16. किस तरह धीरज धरने की कोशिश में हम अकेले नहीं हैं?
16 पौलुस ने लिखा कि हमें मसीह की शांति को अपने हृदयों में शासन करने देना चाहिए क्योंकि हम ‘उसके लिए एक देह होकर बुलाए गए’ थे। पौलुस ने यह बात अभिषिक्त मसीहियों से कही थी, जो मसीह की देह का हिस्सा होने के लिए बुलाए गए थे। वैसे ही आज शेष अभिषिक्त जन भी बुलाए गए हैं। आज उनके साथी यानी ‘अन्य भेड़’ के लोग उनके साथ मिलकर ‘एक झुण्ड’ बन गए हैं और वे सभी ‘एक ही चरवाहे’ यीशु मसीह के अधीन रहकर सेवा करते हैं। (यूहन्ना 10:16, NW) आज दुनिया भर में फैले इस “झुण्ड” के लाखों लोग अपने हृदयों में मसीह की शांति को शासन करने दे रहे हैं। यह जानकर कि हम अकेले नहीं हैं, हमें धीरज धरने की बहुत हिम्मत मिलती है। पतरस ने लिखा: “विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर [शैतान का] साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं।”—1 पतरस 5:9.
17. क्या बात हमें उकसाती है कि हम मसीह की शांति को अपने हृदयों में शासन करने दें?
17 तो आइए हम सभी, लगातार अपने अंदर शांति या मेल का गुण बढ़ाने में लगे रहें, जो परमेश्वर की पवित्र आत्मा का एक बेहद ज़रूरी फल है। (गलतियों 5:22,23) जो लोग यहोवा की नज़रों में निष्कलंक, बेदाग और शांति में होते हैं, उन्हें आखिरकार धरती पर एक फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी जहाँ धार्मिकता वास करेगी। (2 पतरस 3:13,14) तो फिर हमारे पास कितने बढ़िया कारण हैं कि हम मसीह की शांति को अपने हृदयों में शासन करने दें।
[फुटनोट]
^ कुछ लोगों को गंभीर मायूसी (क्लिनिकल डिप्रेशन) जैसी बीमारी की वजह से चिंता हो सकती है या बढ़ सकती है।
क्या आपको याद है?
• मसीह की शांति क्या है?
• जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है, तब मसीह की शांति हमारे हृदयों में कैसे शासन कर सकती है?
• किस तरह मसीह की शांति हमें चिंता को शांत करने में मदद देती है?
• जब हम खुद को किसी लायक नहीं समझते, तब किस तरह मसीह की शांति हमें दिलासा देती है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीर]
निंदा करनेवालों के सामने, यीशु ने खुद को यहोवा के हाथों सौंप दिया
[पेज 16 पर तसवीर]
यहोवा की सांत्वना हमारी चिंताओं को शांत कर सकती है, मानो हमारे पिता ने प्यार से हमें अपनी बाहों में भर लिया हो
[पेज 18 पर तसवीर]
परमेश्वर की नज़रों में धीरज धरने का बड़ा मोल है