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अपने हृदय में यहोवा का भय पैदा कीजिए

अपने हृदय में यहोवा का भय पैदा कीजिए

अपने हृदय में यहोवा का भय पैदा कीजिए

“काश, उनमें ऐसा हृदय होता कि वे मेरा भय मानते तथा मेरी सब आज्ञाओं का सदा पालन करते।”व्यवस्थाविवरण 5:29, Nht.

1. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि एक दिन सभी इंसान भय से स्वतंत्रत होंगे?

 भय एक खौफनाक साये की तरह सदियों से इंसान को सताता आया है। भूख, बीमारी, अपराध या युद्ध के भय ने लाखों लोगों का जीना दुश्‍वार कर रखा है। मानव अधिकारों के विश्‍वव्यापी घोषणा-पत्र में, एक ऐसी दुनिया लाने की इच्छा ज़ाहिर की गयी जिसमें सभी इंसान भय से स्वतंत्र होकर जी सकें। * ऐसा संसार लाना इंसान के बस में नहीं। लेकिन खुशी की बात है कि परमेश्‍वर ऐसा संसार लाने का हमें यकीन दिलाता है। अपने भविष्यवक्‍ता मीका के ज़रिए यहोवा वादा करता है कि धार्मिकता के उसके नए संसार में हमें “डरानेवाला कोई न होगा।”—मीका 4:4NHT.

2. (क) बाइबल में हमें परमेश्‍वर का भय मानने के लिए कैसे उकसाया गया है? (ख) परमेश्‍वर का भय मानने के अपने कर्त्तव्य के बारे में सोचते वक्‍त हमारे मन में कौन-से सवाल उठ सकते हैं?

2 दूसरी तरफ एक ऐसा भी भय है जो फायदेमंद हो सकता है। बाइबल में परमेश्‍वर के सेवकों को यहोवा का भय मानने के लिए बार-बार उकसाया गया है। मूसा ने इस्राएलियों से कहा: “अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना।” (व्यवस्थाविवरण 6:13) सदियों बाद सुलैमान ने लिखा: “परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” (सभोपदेशक 12:13) उसी तरह स्वर्गदूतों के निर्देशन में हम भी अपने गवाही के काम के ज़रिए लोगों से आग्रह करते हैं कि वे ‘परमेश्‍वर से डरें और उस की महिमा करें।’ (प्रकाशितवाक्य 14:6,7) मसीहियों को यहोवा का भय मानने के साथ-साथ उसे अपने सारे हृदय से प्रेम भी करना चाहिए। (मत्ती 22:37,38) लेकिन यह कैसे हो सकता है कि हम परमेश्‍वर से प्रेम भी करें, साथ-ही-साथ उसका भय भी मानें? एक प्यार करनेवाले परमेश्‍वर का भय मानना क्यों ज़रूरी है? परमेश्‍वर का भय पैदा करने से हमें क्या-क्या लाभ होंगे? इन सवालों के जवाब पाने के लिए पहले हमें यह समझना होगा कि परमेश्‍वर का भय मानने का क्या मतलब है और यहोवा के साथ रिश्‍ता कायम करने के लिए यह भय कितनी बड़ी भूमिका निभाता है।

विस्मय, श्रद्धा और भय

3. परमेश्‍वर का भय मानने का क्या मतलब है?

3 परमेश्‍वर का भय वह भावना है जो सभी मसीहियों के दिल में अपने सृजनहार के लिए होनी चाहिए। ऐसे भय की एक परिभाषा है: “अपने सृजनहार के लिए विस्मय और गहरी श्रद्धा साथ ही उसे नाराज़ करने का डर।” इसलिए परमेश्‍वर का भय मानने में हमारे जीवन के दो खास पहलू शामिल हैं: एक तो परमेश्‍वर के बारे में हमारा नज़रिया और दूसरा ऐसा चालचलन के बारे में हमारा नज़रिया जिससे वह नफरत करता है। बेशक, ये दोनों पहलू बहुत मायने रखते हैं और गौर करने लायक हैं। जैसे वाइन की एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट वर्ड्‌स कहती है, मसीहियों के लिए परमेश्‍वर का पवित्र भय, ‘वह शक्‍ति है जो उसकी ज़िंदगी के हर आध्यात्मिक और नैतिक फैसलों को नियंत्रित करती है।’

4. हम अपने दिल में सृजनहार के लिए विस्मय और श्रद्धा कैसे पैदा कर सकते हैं?

4 हम अपने दिल में सृजनहार के लिए विस्मय और श्रद्धा कैसे पैदा कर सकते हैं? हरे-भरे नज़ारे, पहाड़ों से बहते झरने या डूबते सूरज की खूबसूरती देखकर हम विस्मित हो जाते हैं। जब हम अपनी विश्‍वास की आँखों से देख पाते हैं कि ये सब दरअसल परमेश्‍वर की कारीगरी का नमूना है तो यह भावना और भी गहरी हो जाती है। इसके अलावा, राजा दाऊद की तरह हमें एहसास होता है कि हम यहोवा की अद्‌भुत सृष्टि के सामने कुछ भी नहीं हैं। उसने कहा था: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्‍त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे?” (भजन 8:3,4) जब हम इस कदर विस्मित होते हैं तब हमारे मन में यहोवा के लिए श्रद्धा पैदा होती है। यही श्रद्धा हमें उन सभी कामों के लिए यहोवा का धन्यवाद और उसकी स्तुति करने के लिए उकसाती है, जो उसने हमारी खातिर किए हैं। दाऊद ने यह भी लिखा: “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्‍चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।”—भजन 139:14.

5. हमें क्यों यहोवा का भय मानना चाहिए और इस मामले में कौन बढ़िया मिसाल है?

5 विस्मय और श्रद्धा की यह भावना हमारे अंदर परमेश्‍वर की शक्‍ति और इस दुनिया पर उसके अधिकार के लिए भय पैदा करती है। हम इस बात का दिल से आदर करने लगते हैं कि वह हमारा सिरजनहार और इस विश्‍व का महाराजधिराज है। एक दर्शन में प्रेरित यूहन्‍ना ने स्वर्गीय महिमा पाए, यीशु के अभिषिक्‍त चेलों को यह ऐलान करते हुए देखा: “हे सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्‍वर, तेरे कार्य्य बड़े, और अद्‌भुत हैं। हे युग युग के राजा, तेरी चाल ठीक और सच्ची है। हे प्रभु, कौन तुझ से न डरेगा? और तेरे नाम की महिमा न करेगा?” ये अभिषिक्‍त चेले वे हैं ‘जो पशु पर और उस की मूरत पर जयवन्त हुए हैं।’ (प्रकाशितवाक्य 15:2-4) यहोवा के प्रताप के लिए गहरी श्रद्धा से मसीह के इन साथी राजाओं के दिल में भय पैदा होता है। वे परमेश्‍वर को विश्‍व का सर्वोच्च अधिकारी मानते हुए उसकी महिमा करते हैं। जब हम उन तमाम कामों पर ध्यान देते हैं जो यहोवा ने अब तक किए हैं और कि वह कैसे विश्‍व पर धार्मिकता से राज करता है तो हमारे लिए उसका भय मानने की यह वजह काफी नहीं?—भजन 2:11; यिर्मयाह 10:7.

6. हमें परमेश्‍वर को नाराज़ करने से क्यों डरना चाहिए?

6 परमेश्‍वर का भय मानने में सिर्फ विस्मय और श्रद्धा की भावना रखना ही नहीं, बल्कि उसे नाराज़ करने या उसकी आज्ञा तोड़ने से डरना भी है। क्यों? इसलिए कि यहोवा “कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय” ज़रूर है, मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ‘दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष नहीं ठहराएगा।’ (निर्गमन 34:6,7) यह सच है कि यहोवा प्रेमी और दयालु परमेश्‍वर है, लेकिन वह अधर्म और जानबूझकर किए जानेवाले अपराधों को हरगिज़ बरदाश्‍त नहीं करता। (भजन 5:4,5; हबक्कूक 1:13) यहोवा के विरोध में खड़े होनेवाले और वे लोग भी सज़ा से हरगिज़ नहीं बच सकते जो जानबूझकर और बिना पछतावा महसूस किए ऐसे काम करते हैं जो यहोवा की नज़रों में बुरे हैं। जैसा प्रेरित पौलुस ने कहा: “जीवते परमेश्‍वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।” अगर हममें यह भय होगा कि हम पर ऐसी नौबत न आए तो इससे हमारी रक्षा होगी।—इब्रानियों 10:31.

‘तुम उसी से लिपटे रहना’

7. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमारी मदद करने की सामर्थ रखता है?

7 परमेश्‍वर का पवित्र भय और उसकी अपार शक्‍ति का गहरा एहसास, दोनों ही यहोवा पर विश्‍वास और भरोसा करने की बुनियाद डालते हैं। ठीक जैसे एक बच्चा अपने पिता के नज़दीक रहने पर सुरक्षित महसूस करता है, उसी तरह हम यहोवा के हाथ के नीचे बिलकुल सुरक्षित और निश्‍चिंत महसूस करते हैं। ध्यान दीजिए कि जब इस्राएलियों को यहोवा मिस्र से छुड़ा लाया तो उन्होंने कैसा महसूस किया: ‘यहोवा ने मिस्रियों पर जो अपना पराक्रम दिखलाया था, उसको देखकर इस्राएलियों ने यहोवा का भय माना और उसकी प्रतीति की।’ (निर्गमन 14:31) एलीशा का निजी अनुभव भी इस बात का सबूत है कि “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है।” (भजन 34:7; 2 राजा 6:15-17) हमारे ज़माने के यहोवा के लोगों का इतिहास और शायद हमारी अपनी ज़िंदगी भी, इस बात को और पक्का करती है कि यहोवा अपने सेवकों की मदद करने के लिए अपना सामर्थ ज़रूर दिखाता है। (2 इतिहास 16:9) इस तरह हम जान पाते हैं कि ‘यहोवा का भय मानने से दृढ़ भरोसा होता है।’—नीतिवचन 14:26.

8. (क) परमेश्‍वर का भय हमें उसके मार्गों पर चलने के लिए कैसे उकसाता है? (ख) समझाइए कि हमें यहोवा से किस तरह “लिपटे” रहना चाहिए।

8 परमेश्‍वर का भय, न सिर्फ उस पर विश्‍वास और भरोसा पैदा करता है बल्कि हमें उसके मार्गों पर चलने के लिए भी उकसाता है। सुलैमान ने मंदिर का उद्‌घाटन करते वक्‍त यहोवा से यह प्रार्थना की “कि [इस्राएली] जितने दिन इस देश में रहें, जिसे तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते हुए तेरे मार्गों पर चलते रहें।” (2 इतिहास 6:31) इससे पहले मूसा ने इस्राएलियों से यह आग्रह किया था: “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के पीछे चलना, और उसका भय मानना, और उसकी आज्ञाओं पर चलना, और उसका वचन मानना, और उसकी सेवा करना, और उसी से लिपटे रहना।” (व्यवस्थाविवरण 13:4) ये आयतें साफ-साफ दिखाती हैं कि यहोवा पर विश्‍वास और भरोसा, उसके मार्गों पर चलने और उससे ‘लिपटे’ रहने की इच्छा पैदा करता है। जी हाँ, यहोवा का भय हमें उसकी आज्ञा मानने, उसकी सेवा करने और उससे ऐसे लिपटे रहने को उकसाता है, जैसे एक बच्चा अपने पिता से लिपटा रहता है और जिस पर उसे पूरा भरोसा और विश्‍वास होता है।—भजन 63:8; यशायाह 41:13.

परमेश्‍वर से प्रेम करने का मतलब उसका भय मानना है

9. परमेश्‍वर का भय मानने और उससे प्रेम करने के बीच क्या नाता है?

9 बाइबल के मुताबिक, परमेश्‍वर का भय मानने का यह मतलब नहीं कि हम उससे प्रेम नहीं कर सकते। इसके बजाय, इस्राएलियों को यह हिदायत दी गयी थी कि वे “यहोवा का भय माने, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे।” (व्यवस्थाविवरण 10:12) इससे हम समझ पाते हैं कि परमेश्‍वर का भय मानने और उससे प्रेम करने के बीच गहरा नाता है। परमेश्‍वर का भय हमें उसके मार्गों पर चलने के लिए उकसाता है और जब हम उसके मार्गों पर चलते हैं तो यह इस बात का सबूत होता है कि हम उससे प्रेम करते हैं। (1 यूहन्‍ना 5:3) यह बात सही भी है क्योंकि हम जिससे प्यार करते हैं, उसके दिल को दुखाने से हम डरते हैं। इस्राएलियों ने जब वीराने में यहोवा के खिलाफ बगावत की तो उन्होंने उसके दिल को ठेस पहुँचायी। बेशक, हम ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहेंगे जिससे हमारे स्वर्गीय पिता के मन को दुःख पहुँचे। (भजन 78:40,41) इसके बजाय, अगर हम यहोवा की आज्ञाएँ मानेंगे और उसके वफादार बने रहेंगे, तो उसका मन आनंदित होगा क्योंकि “यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्‍न होता है।” (भजन 147:11; नीतिवचन 27:11) परमेश्‍वर के लिए प्यार, हमें उसे खुश करने की प्रेरणा देता है और उसका भय हमें ऐसे काम करने से रोके रखता जो उसके दिल को चोट पहुँचा सकते हैं। तो यहोवा का भय मानना और उससे प्रेम करना, ये दोनों गुण एक-दूसरे के खिलाफ नहीं बल्कि एक गुण दूसरे की कमी पूरी करता है।

10. यीशु ने कैसे दिखाया कि यहोवा का भय मानना उसके लिए प्रसन्‍नता का कारण था?

10 यीशु मसीह की ज़िंदगी इस बात की जीती-जागती मिसाल है कि कैसे परमेश्‍वर का भय मानने के साथ-साथ उससे प्रेम भी किया जा सकता है। उसके बारे में भविष्यवक्‍ता यशायाह ने कहा: “यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्‍ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। और उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा।” (यशायाह 11:2,3) इस भविष्यवाणी के मुताबिक परमेश्‍वर की आत्मा ने यीशु को अपने स्वर्गीय पिता का भय मानने के लिए प्रेरित किया। हम यह भी गौर करते हैं कि यीशु ने परमेश्‍वर का भय मानना कभी बोझ नहीं समझा बल्कि इससे उसे लगातार सुख मिलता था। यीशु ने परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने में खुशी पायी, यहाँ तक कि मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी अपने पिता का मन आनन्दित करना, उसके लिए प्रसन्‍नता का कारण था। जब यातना स्तंभ पर उसकी मौत की घड़ी नज़दीक आ रही थी, तब उसने यहोवा से कहा: “जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” (मत्ती 26:39) यीशु में परमेश्‍वर का भय था, इसीलिए यहोवा उससे खुश हुआ और उसकी गिड़गिड़ाहट सुनी, उसका हौसला मज़बूत किया और उसे मौत के पंजे से छुड़ाया।—इब्रानियों 5:7.

यहोवा का भय मानना सीखना

11, 12. (क) हमें परमेश्‍वर का भय मानना सीखने की ज़रूरत क्यों है? (ख) यीशु, हमें यहोवा का भय मानना कैसे सिखाता है?

11 जब हम कुदरत का कोई शानदार नज़ारा या उसकी शक्‍ति का प्रदर्शन देखते हैं तो हमारे अंदर अपने आप विस्मय की भावना पैदा हो जाती है। लेकिन परमेश्‍वर का भय अपने आप पैदा नहीं हो जाता। इसीलिए दाऊद की लिखी भविष्यवाणी में महान दाऊद यानी यीशु मसीह हमें यह न्यौता देता है: “हे लड़को, आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा।” (भजन 34:11) यीशु, हमें यहोवा का भय मानना कैसे सिखा सकता है?

12 यीशु हमें अपने स्वर्गीय पिता की बेमिसाल शख्सियत की समझ देकर, यहोवा का भय मानना सिखाता है। (यूहन्‍ना 1:18) यीशु हू-ब-हू अपने पिता की तरह था इसलिए उसकी मिसाल से हमें पता चलता है कि उसका पिता कैसे सोचता है और दूसरों के साथ कैसे बर्ताव करता है। (यूहन्‍ना 14:9,10) इसके अलावा, यीशु ने अपना बलिदान देकर हमारे लिए यहोवा के सामने खड़े होने का रास्ता खोला और उसकी बिनाह पर हम अपने अपराधों की माफी माँग सकते हैं। परमेश्‍वर का भय मानने के लिए उसकी इस दया से बढ़कर और क्या वजह हो सकती है? भजनहार ने लिखा: “तू क्षमा करनेवाला है, जिस से तेरा भय माना जाए।”—भजन 130:4.

13. नीतिवचन की किताब में ऐसे कौन-से कदम बताए गए हैं जो परमेश्‍वर का भय पैदा करने में हमारी मदद कर सकते हैं?

13 नीतिवचन की किताब में ऐसे कुछ सिलसिलेवार कदम बताए गए हैं जो परमेश्‍वर का भय पैदा करने में हमारी मदद कर सकते हैं। “हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; और प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे, . . . तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्‍वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा।” (नीतिवचन 2:1-5) इन आयतों के मुताबिक परमेश्‍वर का भय पैदा करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम उसके वचन का अध्ययन करें, उसकी समझ हासिल करने के लिए लगन के साथ खोजबीन करें। और फिर उसमें जो-जो सलाहें दी गयी हैं उन पर पूरा-पूरा ध्यान देते हुए उनका पालन करें।

14. जो हिदायत इस्राएल के राजाओं को दी गयी उस पर हम कैसे चल सकते हैं?

14 प्राचीन इस्राएल के हर राजा को यह हिदायत दी गयी थी कि वह व्यवस्था की एक नकल बनाए और ‘जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय माने और इस व्यवस्था के मानने में चौकसी करे।’ (व्यवस्थाविवरण 17:18,19) अगर हम यहोवा का भय मानना सीखना चाहते हैं तो हमारे लिए भी बाइबल पढ़ना और उसका अध्ययन करना उतना ही ज़रूरी है। जब हम बाइबल के सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू करेंगे, तो धीरे-धीरे हम परमेश्‍वर की बुद्धि और ज्ञान हासिल करते जाएँगे। हम ‘यहोवा का भय समझ’ पाएँगे क्योंकि उसके अच्छे नतीजों को हम अपनी ज़िंदगी में देख सकेंगे और परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को जान से भी प्यारा समझेंगे। इसके अलावा, कलीसियाओं में अपने जवान और बुज़ुर्ग, सभी भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होकर परमेश्‍वर की शिक्षा सुनने से हम उसका भय मानना और उसके मार्गों पर चलना सीख पाएँगे।—व्यवस्थाविवरण 31:12.

धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है

15. किन तरीकों से परमेश्‍वर का भय उसकी उपासना का एक अहम हिस्सा है?

15 अब तक हमने जो चर्चा की उससे हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर का भय ऐसी भावना है जिससे हमें लाभ होता है। यह यहोवा की उपासना का एक अहम हिस्सा है इसलिए हम सभी को अपने अंदर परमेश्‍वर का भय पैदा करना चाहिए। परमेश्‍वर का भय ही वह गुण है जो उस पर पूरा भरोसा रखने, उसके मार्गों पर चलने और उससे लिपटे रहने में हमारी मदद करता है। परमेश्‍वर का भय होने पर हम भी यीशु की तरह, अभी और हमेशा तक अपने समर्पण का वादा निभा सकेंगे।

16. यहोवा, हमें उसका भय मानने का बढ़ावा क्यों देता है?

16 परमेश्‍वर के भय का मतलब यह हरगिज़ नहीं कि हम उससे खौफ खाएँगे या हमारी आज़ादी छिन जाएगी। बाइबल यह भरोसा दिलाती है: “क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है!” (भजन 128:1) यहोवा, हमें उसका भय मानने का बढ़ावा इसलिए देता है क्योंकि वह जानता है कि यह गुण हमारी हिफाज़त करेगा। मूसा से कहे उसके इन शब्दों में हम उसका प्यार और उसकी परवाह देख सकते हैं: “भला होता कि उनका [इस्राएलियों का] मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे!”—व्यवस्थाविवरण 5:29.

17. (क) परमेश्‍वर का भय मानने से हमें क्या लाभ होंगे? (ख) परमेश्‍वर के भय के बारे में अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?

17 उसी तरह अगर हम अपने हृदय में परमेश्‍वर का भय पैदा करेंगे तो इससे हमारा ही भला होगा। कैसे? सबसे पहले तो हमारा यह नज़रिया परमेश्‍वर को खुश करेगा और हमें उसके और नज़दीक लाएगा। दाऊद अपनी ज़िंदगी के अनुभव से जानता था कि परमेश्‍वर “अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, और उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है।” (भजन 145:19) दूसरी बात, परमेश्‍वर का भय हमें बुराई से नफरत करना सिखाएगा जिससे हमें लाभ होगा। (नीतिवचन 3:7) अगला लेख बताएगा कि यह भय हमें आध्यात्मिक खतरों से कैसे बचाता है। साथ ही, बाइबल से कुछ ऐसे लोगों की मिसाल की चर्चा की जाएगी जिन्होंने परमेश्‍वर का भय माना और बुरे मार्ग से दूर रहे।

[फुटनोट]

^ संयुक्‍त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने दिसंबर 10,1948 को मानव अधिकारों का विश्‍वव्यापी घोषणा-पत्र अपनाया था।

क्या आप इन सवालों के जवाब दे सकते हैं?

• परमेश्‍वर का भय मानने का मतलब क्या है और यह हम पर कैसा असर करता है?

• परमेश्‍वर का भय मानने और उसके साथ चलने के बीच क्या नाता है?

• यीशु की मिसाल कैसे दिखाती है कि परमेश्‍वर का भय मानने और उससे प्रेम करने के बीच नाता है?

• किन तरीकों से हम अपने हृदय में परमेश्‍वर का भय पैदा कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर तसवीर]

इस्राएल के राजाओं को अपने लिए व्यवस्था की एक नकल बनाने और उसे रोज़ाना पढ़ने की आज्ञा दी गयी थी

[पेज 18 पर तसवीर]

यहोवा का भय उस पर हमारा भरोसा पैदा करता है, ठीक जैसे एक बच्चा अपने पिता पर भरोसा करता है

[पेज 15 पर चित्र का श्रेय]

तारे: Photo by Malin, © IAC/RGO 1991