यहोवा के न्यौते स्वीकार करना आशीषें लाता है
जीवन कहानी
यहोवा के न्यौते स्वीकार करना आशीषें लाता है
मारीआ दो सेउ ज़ानार्दी की ज़ुबानी
“यहोवा जानता है कि वह क्या कर रहा है। अगर उसने तुम्हें यह न्यौता भेजा है तो तुम्हें नम्रता से इसे स्वीकार कर लेना चाहिए।” ये शब्द मेरे पापा ने मुझसे करीब 45 साल पहले कहे थे। इन्हीं शब्दों ने मुझे यहोवा के संगठन से मिला पहला न्यौता स्वीकार करने और पूरे समय का सेवक बनने के लिए उकसाया। आज भी मैं पापा की उस सलाह की बहुत शुक्रगुज़ार हूँ क्योंकि ऐसे न्यौते स्वीकार करने से मैंने आशीषों का खज़ाना पाया है।
सन् 1928 में पापा ने प्रहरीदुर्ग का सबस्क्रिप्शन लिया और बाइबल में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी। सॆंट्रल पुर्तगाल में रहते हुए उनके लिए परमेश्वर की कलीसिया से संपर्क रखने का बस एक ही तरीका था, डाक द्वारा साहित्य पाना और एक बाइबल, जो मेरे दादा-दादी की थी। सन् 1949 में जब मैं 13 साल की थी तब हमारा परिवार ब्राज़ील आ गया जहाँ मम्मी पली-बढ़ी थी और रियो दे जेनेरो शहर के एक सीमावर्ती इलाके में बस गया।
हमारे नए पड़ोसियों ने हमें अपने साथ चर्च आने के लिए कहा और हम दो-चार बार उनके साथ गए भी। पापा को नरकाग्नि, आत्मा और भविष्य में धरती का क्या होगा, ऐसे विषयों पर उनसे सवाल करना अच्छा लगता था। मगर उनके पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। पापा हमेशा कहा करते थे: “हमें जवाब पाने के लिए बस सच्चे बाइबल विद्यार्थियों का इंतज़ार करना होगा।”
एक दिन एक अंधा आदमी हमारे घर आया और उसने हमें प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाएँ दीं। पापा ने उससे भी वही सवाल किए और उसने इन सवालों के सही-सही जवाब बाइबल से दिए। अगले हफ्ते एक और यहोवा की साक्षी हमारे घर आयी। उसने और भी कई सवालों के जवाब दिए। फिर उसने कहा, अब मुझे इजाज़त दीजिए, मुझे क्षेत्र सेवकाई में जाना है। पापा को उसकी बात समझ में नहीं आयी। मत्ती 13:38 पढ़कर बताया कि यह काम पूरे संसार में किया जाना है। यह सुनकर पापा ने पूछा: “क्या मैं भी आ सकता हूँ?” उसने कहा: “हाँ, क्यों नहीं।” एक बार फिर बाइबल की सच्चाई पाकर हम तो खुशी से झूम उठे! अगले अधिवेशन में पापा ने बपतिस्मा लिया और उसके फौरन बाद, नवंबर 1955 में मैंने भी बपतिस्मा लिया।
तब उस साक्षी ने कहा कि वह प्रचार करने जा रही है औरअपना पहला न्यौता स्वीकार करना
बपतिस्मे के डेढ़ साल बाद, मुझे यहोवा के साक्षियों के रियो दे जेनेरो के शाखा दफ्तर से भूरे रंग का एक बड़ा लिफाफा मिला, जिसमें मुझे पूरे समय की सेवा करने का न्यौता दिया गया। उस समय मम्मी की तबियत बहुत खराब थी, इसलिए मैंने पापा से सलाह माँगी। उन्होंने पूरे विश्वास के साथ कहा: “यहोवा जानता है कि वह क्या कर रहा है। अगर उसने तुम्हें यह न्यौता भेजा है तो तुम्हें नम्रता से इसे स्वीकार कर लेना चाहिए।” इन शब्दों से मुझे इतना हौसला मिला और मैंने अपना फॉर्म भरकर भेज दिया। जुलाई 1,1957 से पूरे समय की सेवकाई शुरू कर दी। मुझे सबसे पहले रियो दे जेनेरो राज्य में ट्रेस रीऊस नाम के कस्बे में भेजा गया।
शुरू-शुरू में ट्रेस रीऊस के लोग हमारा संदेश सुनने से हिचकिचाते थे क्योंकि हम कैथोलिक बाइबल इस्तेमाल नहीं करते थे। लेकिन जब हमने कैथोलिक धर्म माननेवाले जरालडू रामाल्यू के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया तब हमारे लिए प्रचार करना आसान हो गया। उसकी मदद से मैं एक बाइबल हासिल कर सकी जिस पर वहाँ के पादरी के दस्तखत थे। तब से जब भी कोई प्रचार में एतराज़ करता तो मैं उसे पादरी के दस्तखत दिखाती और फिर आगे हमसे कोई सवाल नहीं पूछे जाते थे। कुछ समय बाद जरालडू ने बपतिस्मा ले लिया।
मैं तो खुशी से फूली नहीं समायी जब 1959 में ट्रेस रीऊस के बीचोंबीच एक सर्किट सम्मेलन आयोजित किया गया था। यहाँ तक कि एक पुलिस प्रमुख ने, जो उस वक्त बाइबल का अध्ययन कर रहा था, कस्बे के चारों तरफ सम्मेलन के इश्तहार लगवाने का इंतज़ाम किया। ट्रॉस रीऊस में तीन साल सेवा करने के बाद मुझे ईटू जाने की नयी नियुक्ति मिली। ईटू, साउँ पाउलो से करीब 110 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर है।
लाल, नीली और पीली किताबें
ईटू में, मुझे और मेरी पायनियर साथी को थोड़ी-बहुत तलाश के बाद रहने के लिए एक आरामदायक घर मिल गया। यह घर कस्बे के बीचोंबीच था और इस घर की मालकिन मारिया, एक विधवा थी। मारिया बड़ी रहमदिल थी। वह हमें अपनी बेटियों की तरह प्यार करती थी। लेकिन हमें वहाँ रहते हुए अभी ज़्यादा वक्त नहीं गुज़रा था कि ईटू का रोमन कैथोलिक बिशप, मारिया से मिलने आया और उससे कहा कि तुम उन्हें अपने घर से रफा-दफा कर दो। लेकिन वह हमें अपने घर में रहने देने के इरादे पर डटी रही और पादरी से कहा: “जब मेरे पति चल बसे तो आपने मुझे दिलासा देने के लिए कुछ भी नहीं किया। मगर इन यहोवा के साक्षियों को देखो, मैं उनके धर्म की सदस्य तक नहीं हूँ मगर फिर भी उन्होंने मेरी मदद की।”
उसी दौरान एक स्त्री ने हमें बताया कि ईटू के कैथोलिक पादरियों ने अपने चर्च के लोगों को “शैतान के बारे में बतानेवाली लाल किताब” लेने से मना किया है। वह लाल किताब दरअसल “परमेश्वर सच्चा ठहरे” (अँग्रेज़ी) थी जिसे हम उस हफ्ते के दौरान लोगों को दे रहे थे। जब पादरियों ने उस किताब पर “प्रतिबंध” लगा दिया, तो हमने नीली किताब (“नया आकाश और एक नयी पृथ्वी,” अँग्रेज़ी) पेश
करनी शुरू की। लेकिन बाद में जब पादरियों को इसकी भी खबर मिल गयी तो हमने पीली किताब (“धर्म ने मानवजाति के लिए क्या किया है?” अँग्रेज़ी) बाँटनी शुरू की और इसी तरह हम अलग-अलग किताबें देने लगे। हमारे पास तरह-तरह के रंगों की किताबें कितनी फायदेमंद साबित हुईं!ईटू में करीब एक साल रहने के बाद, मुझे एक तार मिला जिसमें मुझे रियो दे जेनेरो में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर, बेथेल में कुछ समय सेवा करने का न्यौता दिया गया, ताकि मैं राष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारियों में हाथ बँटा सकूँ। मैंने यह न्यौता खुशी-खुशी कबूल किया।
और भी नियुक्तियाँ और चुनौतियाँ
बेथेल में काम की कोई कमी नहीं थी और मैं हर मुमकिन तरीके से मदद करने के लिए तैयार थी। बेथेल में हर सुबह होनेवाले दैनिक पाठ की चर्चा और सोमवार की शाम को प्रहरीदुर्ग के पारिवारिक अध्ययन से मैंने क्या कुछ नहीं सीखा! भाई ओटो एस्टलमान और बेथेल परिवार के दूसरे अनुभवी भाइयों की दिल से की गयी प्रार्थनाओं का मुझ पर गहरा असर हुआ।
राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद मैंने ईटू वापस आने के लिए अपना सारा सामान बाँध लिया। लेकिन मैं हक्की-बक्की रह गयी जब ब्रांच सर्वेंट, भाई ग्रांट मिल्लर ने मुझे एक खत दिया, जिसमें मुझे बेथेल परिवार का स्थायी सदस्य बनने का न्यौता दिया गया था। मेरे साथ कमरे में बहन होज़ा यॉज़ेडजीअन रहती थी, जो आज भी ब्राज़ील के बेथेल में सेवा कर रही है। उन दिनों बेथेल परिवार बहुत छोटा था। हम सिर्फ 28 जन थे और हम एक-दूसरे के करीबी दोस्त थे।
सन् 1964 में ज़ाओ ज़ानार्डी नाम का एक नौजवान जो पूरे समय का सेवक था, बेथेल में ट्रेनिंग के लिए आया। फिर उसे सर्किट सर्वेंट या सफरी ओवरसियर नियुक्त करके पास के एक इलाके में भेजा गया। कभी-कभी जब वह अपनी रिपोर्टें भरने के लिए बेथेल आता तब हमारी मुलाकात होती थी। ब्रांच सर्वेंट ने ज़ाओ को बेथेल में सोमवार की शाम पारिवारिक अध्ययन में हाज़िर होने की इजाज़त दी। इसलिए हमें एक-दूसरे के साथ और ज़्यादा वक्त बिताने का मौका मिला। फिर अगस्त 1965 में हमने शादी कर ली। मैंने अपने पति के साथ सर्किट काम करने का न्यौता खुशी-खुशी स्वीकार किया।
उन दिनों ब्राज़ील के भीतरी इलाकों में सफरी काम जोखिम भरा होता था। मैं, मीना ज़हराइस राज्य में, आरनाह नाम के कस्बे में रहनेवाले प्रकाशकों के पास किए गए हमारे दौरों को कभी नहीं भूल सकती। वहाँ जाने के लिए हमें पहले ट्रेन पकड़नी थी और बाकी का रास्ता पैदल चलकर तय करना था। ऊपर से हमारे पास सूटकेसों, टाइपराइटर, स्लाइड प्रोजेक्टर, किताबों के बैग और साहित्य, इतना सारा सामान भी होता था। मगर हम जब भी वहाँ जाते थे तो वहाँ स्टेशन पर लुअरीवाल शांटाल नाम के एक बुज़ुर्ग भाई को हमारा इंतज़ार करते देख हमें कितनी खुशी होती थी। वह भाई सामान उठाने में हमेशा हमारी मदद के लिए मौजूद रहता था।
आरनाह में सभाएँ एक किराए के घर में होती थीं। उसी के पीछे एक कमरा हमारे सोने के लिए था। हम कमरे के एक कोने में लकड़ियों की आग जलाते थे और उसी आग पर हम खाना बनाते और पानी गरम करते थे जो हमारे भाई बाल्टियों में लाते थे। पड़ोस में बाँस का एक बागान था, जिसके बीच में एक गड्ढा खोदा गया था, वही हमारा टॉयलेट हुआ करता था। रात के वक्त बार्बर बीटल नाम के कीड़ों को भगाने के लिए हम गैसलाइट जलाकर रखते थे। इन कीड़ों से शागस रोग फैलने का खतरा रहता है। लेकिन धुएँ की वजह से सवेरे उठने पर हमारी नाक के नथुने काले हो जाते थे। वो भी क्या मज़ेदार अनुभव था!
जब हम पाराना राज्य के एक सर्किट में सेवा कर रहे थे तो हमें शाखा दफ्तर से एक और भूरे रंग का बड़ा लिफाफा मिला। यहोवा के संगठन से यह एक और न्यौता था और इस लूका 14:28 में दिए गए सिद्धांत पर विचार करें, फिर सोच-समझकर फैसला करें कि इस न्यौते को स्वीकार करना चाहिए या नहीं, क्योंकि पुर्तगाल में मसीही काम पर पाबंदी लगी हुई थी और वहाँ की सरकार ने पहले ही हमारे बहुत सारे भाइयों को गिरफ्तार कर लिया था।
बार सेवा करने के लिए हमें पुर्तगाल जाना था! लेकिन उस खत में हमें सलाह दी गयी कि हमक्या हम एक ऐसे देश में जाते जहाँ हमें बहुत सताया जाता? ज़ाओ ने कहा: “अगर हमारे पुर्तगाली भाई वहाँ रहकर यहोवा की वफादारी से सेवा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते?” तब मुझे पापा के वो हिम्मत बँधानेवाले शब्द याद आए और हामी भरते हुए मैंने कहा: “जब यहोवा ने हमें न्यौता भेजा है तो इसे स्वीकार कर लेना चाहिए और उस पर भरोसा रखना चाहिए।” इसके थोड़े ही समय बाद, हम साउँ पाउलो बेथेल पहुँचे, जहाँ हमें आगे के निर्देशन दिए गए और हमने अपनी यात्रा के कागज़ात तैयार किए।
ज़ाओ मारीआ और मारीआ ज़ाओ
हम सितंबर 6,1969 के दिन साउँ पाउलो राज्य के सैन्टोस बंदरगाह से औज़ौन्यू सै नाम की बोट से रवाना हो गए। नौ दिनों की समुद्री यात्रा के बाद आखिरकार हम पुर्तगाल पहुँचे। शुरू में हमने कई महीनों तक कुछ अनुभवी भाइयों के साथ लिसबन के पुराने ज़िले में अलफामा और मोरारिआ की तंग गलियों में प्रचार किया। उन भाइयों ने हमें हर वक्त चौकन्ना रहना सिखाया ताकि हम पुलिस की गिरफ्त में न आएँ।
कलीसिया की सभाएँ, साक्षियों के घरों में हुआ करती थीं। जब हमें एहसास होता कि पड़ोसियों को शक होने लगा है तब हम फौरन दूसरे घर में सभाएँ रखने लगते ताकि उस घर पर छापा न मारा जाए और भाइयों को गिरफ्तार न किया जाए। हम अपने सम्मेलनों को पिकनिक कहा करते थे। ये सम्मेलन लिसबन के सीमावर्ती इलाके के मोनसानटू पार्क में और समुद्रतट के पास पेड़ों से भरे एक इलाके, कोसटा द कापारीका में रखे जाते थे। हम इन मौकों पर ऐसे कपड़े पहनते थे जो पिकनिक और सैर-सपाटे वगैरह के लिए पहने जाते हैं। और कुछ अटेंडेंट भाई ऐसी जगहों पर पहरा देते थे जहाँ से किसी के आने का खतरा हो सकता था। अगर हमें वहाँ से गुज़रनेवाले किसी पर शक होता तो हम फौरन कोई खेल शुरू कर देते, पिकनिक मनाने लगते या लोक गीत गाने लगते।
हम अपने असल नाम इस्तेमाल नहीं करते थे ताकि सुरक्षा पुलिस के लिए हमारी पहचान करना मुश्किल हो जाए। हमारे भाई हमें ज़ाओ मारीआ और मारीआ ज़ाओ के नाम से जानते थे। चिट्ठियों और रिकॉर्डों पर हमारे नाम के बदले हमें दिए गए नंबर लिखे जाते थे। मैंने तो ठान लिया था कि मैं भाइयों का पता बिलकुल याद नहीं करूँगी ताकि अगर मैं पकड़ी जाऊँ,
तो मेरे लिए उनके साथ विश्वासघात करने की कोई गुंजाइश न रहे।हमारे काम पर लगी पाबंदियों के बावजूद ज़ाओ और मैंने फैसला किया था कि हम हर मौके का फायदा उठाकर गवाही देते रहेंगे क्योंकि हमें मालूम था कि किसी भी वक्त हमारी आज़ादी हमसे छिन सकती है। हमने अपने स्वर्गीय पिता, यहोवा पर भरोसा रखना सीखा। हमारा रक्षक होने के नाते, उसने हमारी मदद के लिए अपने स्वर्गदूतों का इस तरह इस्तेमाल किया कि हमें लगा मानो ‘हम अनदेखे को देख रहे हैं।’—इब्रानियों 11:27.
एक बार पोर्टू में, मैं और एक बहन घर-घर के प्रचार के दौरान एक आदमी से मिलीं जो हमें अंदर आने के लिए ज़ोर दे रहा था। मेरी साथी बहन अंदर जाने के लिए फट से राज़ी हो गयी और उसके साथ जाने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था। अंदर जाने पर जब मैंने देखा कि गलियारे में सैनिक की वर्दी पहने किसी का फोटो है, तो डर के मारे मेरा खून सूख गया। अब क्या करें? हमारे मेज़बान ने हमें बैठने के लिए कहा और मुझसे पूछा: “अगर आपके बेटे को सेना में भरती होने के लिए बुलाया जाए तो क्या आप उसे भेजेंगी?” यह एक बड़ा ही नाज़ुक मामला था। मैंने मन-ही-मन प्रार्थना करने के बाद उसे शांति से जवाब दिया: “देखिए साहब, मेरे कोई बच्चे नहीं है, और मुझे यकीन है कि अगर मैं भी ऐसा सवाल करूँ तो आपका जवाब भी यही होगा।” यह सुनते ही वह चुप हो गया। फिर मैंने आगे कहा: “लेकिन अगर आप मुझसे पूछते कि अपने भाई या पापा को खोने का गम क्या होता है तो मैं आपको बता सकती हूँ क्योंकि मेरा भाई और मेरे पापा, दोनों अब नहीं रहे।” उसे बताते वक्त मेरी आँखें भर आयीं और मैंने देखा कि उसकी आँखें भी नम थी। उसने बताया कि हाल ही में उसकी पत्नी की मौत हुई थी। जब मैंने उसे पुनरुत्थान की आशा के बारे में बताया तो उसने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी। फिर हमने अदब के साथ उससे विदा ली और मामला यहोवा के हाथ में छोड़कर सही-सलामत वहाँ से निकल पड़े।
हमारे काम पर प्रतिबंध होने के बावजूद हम नेकदिल इंसानों को सच्चाई का ज्ञान पाने में मदद देते रहे। पोर्टू में ही मेरे पति ने ओरसयू नाम के एक बिज़नेसमैन के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। वह बड़ी तेज़ी से सच्चाई में आगे बढ़ा। बाद में उसके बेटे, एमिल्यू ने भी जो एक बहुत बढ़िया डॉक्टर है, यहोवा के पक्ष में कदम उठाया और बपतिस्मा ले लिया। सचमुच, परमेश्वर की पवित्र आत्मा को काम करने से कोई नहीं रोक सकता।
“आप नहीं जानते कि यहोवा क्या करेगा”
सन् 1973 में मुझे और ज़ाओ को बेलजियम के ब्रस्सल्स शहर में होनेवाले “ईश्वरीय जीत” अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आने का न्यौता मिला। उस सम्मेलन में स्पेन और बेलजियम के हज़ारों भाई-बहन हाज़िर थे। साथ ही मोज़ाम्बिक, अंगोला, केपे वर्दे, मडिरा और एज़ॉर्ज़ से भी भाई-बहन आए थे। न्यू यॉर्क के विश्व मुख्यालय से आए भाई नॉर ने आखिर में यह कहकर हमारा हौसला बढ़ाया: “परमेश्वर की सेवा वफादारी से करते रहिए। आप नहीं जानते कि यहोवा क्या करेगा। कौन जाने आपका अगला अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन पुर्तगाल में ही हो!”
अगले साल पुर्तगाल में प्रचार काम को कानूनी मान्यता
मिल गयी। और भाई नॉर के शब्द सच साबित हुए जब 1978 को हमने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन लिसबन में आयोजित किया। हाथ में पोस्टर, पत्रिकाएँ और जन-भाषण की निमंत्रण पर्चियाँ लिए लिसबन की सड़कों पर से लोगों को गवाही देते वक्त हम कितना गर्व महसूस कर रहे थे! यह एक ख्वाब था जो हकीकत बन गया।पुर्तगाली भाइयों से हमें गहरा लगाव हो गया था, जिनमें से कितनों को बाइबल के मुताबिक संसार से अलग रहने की वजह से जेल की सज़ा दी गयी और पीटा गया। हमारी इच्छा थी कि हम पुर्तगाल में ही रहकर सेवा करते रहें लेकिन यह मुमकिन नहीं हुआ। सन् 1982 में ज़ाओ को एक गंभीर दिल की बीमारी लग गयी, इसलिए शाखा दफ्तर ने हमें ब्राज़ील लौट जाने की सलाह दी।
परीक्षा की घड़ी
ब्राज़ील के शाखा दफ्तर के भाई बहुत मददगार थे। उन्होंने हमें साउँ पाउलो राज्य में टायोबाटे की कीरीरीन कलीसिया में सेवा करने की नियुक्ति दी। ज़ाओ की तबियत दिन-ब-दिन बिगड़ती गयी और कुछ समय बाद तो वह घर से बाहर कदम रखने के भी काबिल न रहा। दिलचस्पी रखनेवाले लोग बाइबल अध्ययन के लिए हमारे घर आया करते थे। हमारे घर पर ही हर दिन क्षेत्र सेवा की सभाएँ और हर हफ्ते बुक स्टडी होती थी। इन इंतज़ामों की बदौलत हम आध्यात्मिक बातों में मज़बूत बने रह सके।
ज़ाओ ने आखिरी साँस तक यहोवा की सेवा में अपना भरसक किया। अक्टूबर 1,1985 को उसकी मौत हो गयी। मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं मायूस हो गयी। लेकिन फिर भी मैंने ठान लिया कि मुझे जो नियुक्ति मिली है, उसमें मैं लगी रहूँगी। मुझे एक और धक्का तब लगा जब अप्रैल 1986 को मेरे घर में कुछ चोर घुस आए और तकरीबन सब कुछ लूटकर ले गए। ज़िंदगी में पहली बार मैंने खुद को अकेला पाया और मैं डर गयी। फिर एक जोड़े ने मुझे अपने यहाँ कुछ समय रहने के लिए बुलाया, जिसके लिए मैं बहुत एहसानमंद थी।
ज़ाओ की मौत और घर में हुई चोरी की वजह से मैं यहोवा की सेवा भी ठीक से नहीं कर पा रही थी। मेरे लिए अब प्रचार करना आसान नहीं रहा। जब मैंने शाखा दफ्तर को खत लिखकर अपनी परेशानी बतायी तो मुझे कुछ समय तक बेथेल में रहने का न्यौता दिया गया ताकि मैं अपनी भावनाओं पर काबू पा सकूँ। वहाँ जाने पर वाकई मेरा हौसला मज़बूत हुआ!
जैसे ही मुझे थोड़ा अच्छा महसूस होने लगा, मैंने साउँ पाउलो राज्य के ईपूआन कस्बे में जाने की नियुक्ति स्वीकार कर ली। मैं प्रचार काम में बहुत व्यस्त रहती थी, लेकिन कभी-कभी मैं निराश भी होती थी। ऐसे वक्त पर मैं कीरीरीन के भाइयों को फोन करती और वहाँ का एक परिवार कुछ दिनों के लिए मुझसे मिलने आता था। उनके आने पर मुझे बहुत हिम्मत मिलती थी! ईपूआन में अपनी सेवकाई के पहले साल में 38 भाई-बहन लंबी-लंबी दूरी तय करके मुझसे मिलने आए।
ज़ाओ की मौत के 6 साल बाद 1992 में, मुझे यहोवा के संगठन से एक और न्यौता मिला। इस बार मुझे साउँ पाउलो राज्य के फ्रांका शहर में जाना था, और मैं आज भी यहाँ पूरे समय की सेवा कर रही हूँ। यहाँ की टेरिट्री में बहुत-से लोग सच्चाई में दिलचस्पी ले रहे हैं। सन् 1994 में मैंने यहाँ के मेयर के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। उस समय वह ब्राज़ील कांग्रेस में पद पाने के लिए चुनाव लड़ रहा था। मगर व्यस्त रहने के बावजूद वह हर सोमवार की दोपहर को बाइबल अध्ययन करता था। अध्ययन में किसी तरह की रोक-टोक न हो, इसलिए वह फोन बंद कर देता था। यह देखकर मेरे दिल को वाकई खुशी हुई कि धीरे-धीरे उसने राजनीति से नाता तोड़ लिया और सच्चाई की मदद से अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी को दोबारा बसा लिया! उसने और उसकी पत्नी ने 1998 में बपतिस्मा ले लिया।
अपनी बीती बातों को याद करते हुए मैं कह सकती हूँ कि पूरे समय के सेवक के तौर पर मुझे बेहिसाब आशीषें और सेवा करने के कितने ही सुनहरे मौके मिले हैं। अपने संगठन के ज़रिए यहोवा ने मुझे जो भी न्यौते दिए, उन्हें स्वीकार करने पर मुझे सचमुच आशीषों का खज़ाना मिला है। और भविष्य में मुझे जो न्यौते मिलेंगे, उन्हें भी खुशी-खुशी स्वीकार करने का मेरा इरादा पहले की तरह पक्का है।
[पेज 25 पर तसवीरें]
सन् 1957 में जब मैंने पूरे समय की सेवा शुरू की थी और आज
[पेज 26 पर तसवीर]
सन् 1963 में ब्राज़ील बेथेल परिवार के साथ
[पेज 27 पर तसवीर]
अगस्त 1965 में हमारी शादी
[पेज 27 पर तसवीर]
पुर्तगाल में एक सम्मेलन, जब हमारे काम पर पाबंदी लगी हुई थी
[पेज 28 पर तसवीर]
सन् 1978 के “विजयी विश्वास” अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान, सड़क गवाही देते हुए