अपने बच्चों के दिलों में यहोवा के लिए प्यार का बीज बोना
जीवन कहानी
अपने बच्चों के दिलों में यहोवा के लिए प्यार का बीज बोना
वर्नर मात्ज़ॆन की ज़ुबानी
कुछ साल पहले मेरे बड़े बेटे हान्स वर्नर ने मुझे एक बाइबल दी। उसने बाइबल के कवर के अंदर लिखा: “प्यारे पापा, यहोवा की कृपा से उसका वचन हमें एक-साथ जीवन के मार्ग पर लेकर चलता रहे। ढेर सारे प्यार के साथ आपका बड़ा बेटा।” माता-पिता समझ सकते हैं कि इन शब्दों से मेरा दिल किस कदर धन्यवाद और खुशी से भर गया होगा। लेकिन तब मुझे इस बात का एहसास नहीं था कि हमारे परिवार को अभी और किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
मेरा जन्म सन् 1924 में, जर्मनी के हैम्बर्ग बंदरगाह से करीब 20 किलोमीटर दूर हालस्टेनबॆक में हुआ था। मेरी परवरिश मेरी माँ और नाना ने की थी। औज़ार बनाने का काम सीखने के बाद सन् 1942 में मुझे वेरमाक्त, यानी सेना में भर्ती किया गया। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब मैं रूसी मोर्चे पर लड़ रहा था उस वक्त मैं जिन खौफनाक हालात से गुज़रा मैं उनको शब्दों में बयान नहीं कर सकता। मुझे टाइफायड हो गया, मगर इलाज के बाद मुझे वापस मोर्चे पर भेज दिया गया। जनवरी 1945 को, मैं लॉद्ज़, पोलैंड में बुरी तरह घायल हो गया और मुझे सैनिक अस्पताल में भर्ती कर दिया। युद्ध के खत्म होने तक मैं वहीं था। अस्पताल और बाद में नोइनगाम के बंदीगृह में रहते समय मुझे बहुत-सी बातों के बारे में सोचने का वक्त मिला। मुझे ये सवाल बार-बार परेशान कर रहे थे कि क्या सचमुच एक परमेश्वर है? अगर है, तो फिर वह ज़ुल्मों को रोकता क्यों नहीं, क्यों इन्हें चलने देता है?
कैद से छूटने के कुछ समय बाद, सितंबर 1947 को मेरी शादी कार्ला से हुई। हम दोनों एक ही कस्बे में पले-बड़े थे, लेकिन कार्ला कैथोलिक थी और मुझे बचपन से धर्म के बारे में कोई शिक्षा नहीं दी गयी थी। जिस पादरी
ने हमारी शादी करायी उसने हमें सलाह दी कि कम-से-कम हम दोनों हर शाम प्रभु की प्रार्थना साथ-साथ करें। जैसा उसने कहा हमने वैसा ही किया लेकिन सच पूछो तो हमें इस प्रार्थना का सही अर्थ ही नहीं मालूम था।एक साल बाद हान्स वर्नर पैदा हुआ। और उन्हीं दिनों विलहेल्म आरेंस, जो मेरे साथ काम करता था, उसने मुझे यहोवा के साक्षियों से मिलवाया। उसने मुझे बाइबल से दिखाया कि एक दिन युद्ध खत्म हो जाएँगे। (भजन 46:9) सन् 1950 के पतझड़ में मैंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित करके बपतिस्मा लिया। एक साल बाद जब मेरी प्यारी पत्नी ने भी बपतिस्मा लिया तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा!
बच्चों को परमेश्वर का मार्ग सिखाते हुए बड़ा करना
मैंने बाइबल में पढ़ा कि शादी की शुरूआत करनेवाला यहोवा है। (उत्पत्ति 1:26-28; 2:22-24) अपने बच्चों हान्स वर्नर, कार्ल-हाइन्ज़, मिकाएल, गाब्रीएल और टॉमस के जन्म के समय मौजूद होने से मेरा संकल्प और भी मज़बूत हुआ कि मैं एक अच्छा पिता और पति बनूँ। कार्ला और मैं अपने हर बच्चे के जन्म पर बहुत खुश हुए।
सन् 1953 में, न्यूरमबर्ग शहर में यहोवा के साक्षियों का अधिवेशन हमारे परिवार के लिए एक यादगार मौका था। शुक्रवार की दोपहर को “नयी दुनिया के समाज में अपने बच्चों को बड़ा करना” भाषण के वक्ता ने एक ऐसी बात कही जो हमें आज भी याद है: “हम अपने बच्चों को जो सबसे बेहतरीन विरासत दे सकते हैं, वह है उनमें परमेश्वर की सेवा करने की ख्वाहिश जगाना।” मैं और कार्ला यहोवा की मदद से यही करना चाहते थे। लेकिन कैसे?
सबसे पहले, हमारे परिवार ने मिलकर हर रोज़ प्रार्थना करने की आदत डाली। इससे बच्चों को प्रार्थना की अहमियत मालूम पड़ी। हर बच्चे ने छुटपन से ही सीख लिया कि हम खाने से पहले हमेशा प्रार्थना करते हैं। यहाँ तक कि जब वे दूध पीते बच्चे ही थे, तब जैसे ही अपनी दूध की बोतल देखते अपने छोटे-छोटे सिर झुका लेते और अपने नन्हें-नन्हें हाथ बाँध लेते। एक बार, मेरी पत्नी के एक रिश्तेदार ने हमें अपनी शादी पर बुलाया। वो साक्षी नहीं थे। शादी की रस्म खत्म होने के बाद, दुल्हन के माता-पिता ने मेहमानों को हलके-फुलके भोजन के लिए घर बुलाया। हर कोई खाने पर टूट पड़ना चाहता था। लेकिन हमारे पाँच साल के बेटे कार्ल-हाइन्ज़ को यह ठीक नहीं लगा। उसने कहा: “प्लीज़, सबसे पहले प्रार्थना कीजिए।” मेहमानों ने उसकी तरफ देखा, फिर हमारी तरफ और फिर मेज़बान की तरफ। मैं नहीं चाहता था कि लोग शर्मिंदगी महसूस करें इसलिए मैंने मेज़बान से प्रार्थना करने की इजाज़त माँगी और वह राज़ी हो गया।
उस घटना ने मुझे यीशु के ये शब्द याद दिलाए: “बालकों और दूध पीते बच्चों के मुंह से तू ने स्तुति सिद्ध कराई।” (मत्ती 21:16) हमें पूरा यकीन है कि हमने अपने बच्चों के साथ हर दिन, सच्चे दिल से जो प्रार्थनाएँ की थीं उनसे वे स्वर्ग में रहनेवाले हमारे प्यारे पिता, यहोवा के और भी करीब आ गए।
यहोवा की तरफ हमारी ज़िम्मेदारी
अपने बच्चों को परमेश्वर से प्यार करना सिखाने के लिए नियमित तौर पर बाइबल पढ़ना और उसका अध्ययन करना भी ज़रूरी है। इस बात को याद रखते हुए हम हर हफ्ते, ज़्यादातर सोमवार की शाम को पारिवारिक अध्ययन करते थे। हमारे बड़े बेटे और सबसे छोटे बेटे में करीब नौ साल का अंतर था, इसलिए बच्चों की ज़रूरतें अलग-अलग थीं। इस वजह से सब बच्चों के साथ एक ही विषय पर अध्ययन करना हमेशा मुमकिन नहीं था।
उदाहरण के लिए, हमारे छोटे बच्चों को हमने काफी हद तक बुनियादी बातें ही सिखायीं। कार्ला उनके साथ बाइबल से बस एक ही आयत पर बात करती या बाइबल के प्रकाशनों में दी गयी तसवीरों से उन्हें सिखाती। मेरे दिल में अब भी उन दिनों की मीठी यादें बसी हुई हैं, जब वे सुबह-सुबह हमारे बिस्तर पर चढ़ आते थे और हमें जगाकर नयी दुनिया * (अँग्रेज़ी) किताब से अपनी पसंदीदा तसवीरें दिखाते थे।
कार्ला ने बड़े सब्र से बच्चों को सिखाने का कौशल हासिल किया। उसने बच्चों को उन तमाम वजहों के बारे में सिखाया कि क्यों उन्हें यहोवा से प्यार करना है। देखने में यह काम बहुत आसान और सीधा-सादा लग सकता है, मगर कार्ला और मेरे लिए बच्चों की देखभाल करना पूरे दिन की नौकरी करने जैसा था। क्योंकि हमें न सिर्फ उनके साथ वक्त बिताना था बल्कि उनके जज़्बातों को भी समझना था। लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी। इससे पहले कि यहोवा से अनजान कोई और इंसान हमारे बच्चों के कोमल हृदय पर छाप छोड़े, हम उनके हृदय में यहोवा के लिए प्यार का बीज बोना चाहते थे। यही वजह है कि जैसे ही हमारे बच्चे बैठने लायक हुए हमने इस बात का ध्यान रखा कि वे भी पारिवारिक अध्ययन में हमारे साथ बैठें।
माता-पिता होने के नाते हमें यह एहसास हुआ कि उपासना के मामले में अपने बच्चों के लिए एक अच्छा उदाहरण रखना कितना ज़रूरी है। इसीलिए खाने के वक्त, बागवानी करते वक्त या टहलते वक्त, हर पल हमने यहोवा परमेश्वर के साथ अपने हर बच्चे के रिश्ते को मज़बूत करने की कोशिश की। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) हम इस बात का ध्यान रखते थे कि छुटपन से ही हर बच्चे के पास अपनी-अपनी बाइबल हो। इसके अलावा, जैसे ही मुझे पत्रिकाएँ मिलतीं, मैं परिवार के हरेक सदस्य की निजी कॉपी पर उसका नाम लिख देता। इस तरह बच्चों ने अपनी किताबें-पत्रिकाएँ पहचानना सीखा। फिर हमें एक तरीका सूझा, हम बच्चों को सजग होइए! पत्रिका से कुछ लेख पढ़ने को देते। फिर उन्हें रविवार को दोपहर के खाने के बाद, हमें बताना होता था कि उन्होंने उससे क्या सीखा।
बच्चों पर ज़रूरत के हिसाब से ध्यान देना
हम यह ज़रूर मानते हैं कि ये सब इतना आसान नहीं था जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगे, हमने यह जाना कि बच्चों के दिल में प्यार का बीज बोने से पहले उनके दिल की बात जानना ज़रूरी है। इसका मतलब था उनकी बात सुनना। हमारे बच्चों को कई बार किसी बात से शिकायत होती थी, तो मैं और कार्ला बैठकर उनकी शिकायतें सुनते थे। इसलिए हम पारिवारिक अध्ययन के बाद आधा घंटा खासकर इस बातचीत के लिए अलग रखते थे। सभी बच्चों को अपनी दिल की बात कहने की छूट थी।
उदाहरण के लिए, हमारे दोनों छोटे बच्चों टॉमस और गाब्रीएल को लगा कि हम उनके बड़े भाई को ज़्यादा प्यार करते हैं। एक बार पारिवारिक अध्ययन के बाद उन्होंने अपने दिल की बात कह डाली: “पापा, हमें लगता है कि आप और मम्मी हमेशा हान्स वर्नर को अपनी मन-मरज़ी करने की छूट देते हैं।” पहले तो मैं एकदम दंग रह गया, मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। फिर भी, जब मैंने और कार्ला ने सच्चाई पर गौर किया तो मुझे मानना पड़ा कि बच्चों की बात में दम है। उसके बाद हमने हरेक के साथ एक जैसे पेश आने की पूरी कोशिश की।
कभी-कभी, मैं बिना सोचे-समझे या बच्चों की गलती न होने पर भी उन्हें सज़ा देता था। ऐसे मौकों पर माता-पिता होने के नाते हमने बच्चों से माफी माँगना सीखा। उसके बाद हम मिलकर यहोवा से प्रार्थना करते। बच्चों को यह एहसास दिलाना ज़रूरी था कि उनके पापा, यहोवा से और उनसे माफी माँगने को तैयार हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि हम सबके बीच प्यार बढ़ा और हम एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए। बच्चे हमसे अकसर कहते थे, “आप हमारे सबसे अच्छे दोस्त हैं।” इससे हमें बड़ी खुशी मिलती थी।
जब परिवार के सारे सदस्य मिलकर काम करते हैं तो परिवार में एकता बढ़ती है। इसके लिए हरेक को घर के कुछ काम करने पड़ते थे। हान्स वर्नर को हफ्ते में एक बार घर के लिए खरीदारी करने का काम सौंपा था। इसके लिए उसे क्या-क्या लाना था, उसकी लिस्ट और कुछ पैसे दिए जाते थे। एक हफ्ते हमने उसे ना तो कोई लिस्ट दी ना ही पैसे। जब उसने अपनी माँ से पूछा तो उसने कहा, हमारे पास पैसे नहीं हैं। फिर बच्चे आपस में खुसुर-फुसर करने लगे और तब सभी अपने-अपने पैसों के डिब्बे ले आए और उन्हें टेबल पर खाली कर दिया। वे सब एक-साथ बोल उठे: “मम्मी अब तो हम खरीदारी के लिए जा सकते हैं!” जी हाँ, बच्चों ने मुसीबत के वक्त साथ मिलकर काम करना सीख लिया था, इस वजह से हमारा परिवार एक-दूसरे के और भी करीब आ गया।
जब लड़के बड़े हुए, तो वे लड़कियों में दिलचस्पी लेने लगे। उदाहरण के लिए टॉमस एक 16 साल की लड़की में दिलचस्पी लेने लगा, वह भी यहोवा की साक्षी थी। मैंने उसे समझाया कि अगर वाकई वह इस मामले में गंभीर है तो शादी के साथ-साथ पत्नी और बच्चों की ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए खुद को तैयार करे। टॉमस को एहसास हुआ कि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं था क्योंकि वह सिर्फ 18 साल का था।
पूरा परिवार तरक्की करता गया
जब बच्चे छोटे ही थे, तब एक-के-बाद-एक सब ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में शामिल हुए। हम स्कूल में उनके हर भाग को बड़े ध्यान से सुनते थे और यह देखकर हमारा हौसला बढ़ता था कि बच्चों में यहोवा के लिए गहरा प्यार था। सर्किट और डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर कभी-कभी हमारे यहाँ रुकते थे और अपनी ज़िंदगी में हुए अनुभव बताते थे या बाइबल से हमें पढ़कर सुनाते थे। इन भाइयों और उनकी पत्नियों की बदौलत हमारे परिवार में पूरे समय की सेवा के लिए प्यार पैदा हुआ।
हम अधिवेशनों का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते थे। अपने बच्चों में यहोवा का सेवक बनने की इच्छा पैदा करने की कोशिशों में इन अधिवेशनों का बहुत बड़ा हाथ था। बच्चों के लिए यह बहुत ही खास घड़ी होती थी जब वे अधिवेशन में जाने से पहले अपने लेपल कार्ड लगा लेते थे। जब हान्स वर्नर ने दस साल की उम्र में बपतिस्मा लिया तो वाकई हमारा दिल भर आया। बहुतों ने सोचा कि यहोवा को समर्पण करने के लिए वह अभी बहुत छोटा है, लेकिन 50 की उम्र में, उसने मुझसे कहा कि वह यहोवा का बहुत ही शुक्रगुज़ार है कि वह 40 साल से उसकी सेवा कर रहा है।
हमने बच्चों को सिखाया कि यहोवा के साथ एक निजी रिश्ता कायम करना ज़रूरी है, मगर हमने समर्पण के लिए कभी बच्चों पर कोई दबाव नहीं डाला। और हम बहुत खुश हुए जब हमने अपने दूसरे बच्चों को भी अपने-अपने वक्त पर तरक्की करके बपतिस्मा लेते देखा।
यहोवा पर अपना बोझ डालने की सीख
हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब 1971 में, हान्स वर्नर वाच टॉवर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 51वीं क्लास से ग्रेजुएट हुआ और मिशनरी के तौर पर उसे स्पेन भेजा गया। एक-के-बाद-एक, दूसरे बच्चों ने भी पूरे समय की सेवा में कुछ साल बिताए जिससे हम दोनों बहुत ही खुश थे। और इसी समय के आस-पास हान्स वर्नर ने मुझे वो बाइबल दी जिसका ज़िक्र इस लेख की शुरूआत में किया
गया है। परिवार के तौर पर हमारी खुशी मानो पूरी लग रही थी।फिर हमें लगा कि हमें यहोवा से और भी नज़दीकी से चिपके रहना है। ऐसा क्यों? क्योंकि जब हमारे बच्चे बड़े हुए तो उन्हें गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा जिससे उनके विश्वास की परीक्षा हुई। उदाहरण के लिए, हमारी बेटी गाब्रीएल पर भी दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। सन् 1976 में उसने लोटर से शादी की। शादी के कुछ ही समय बाद वो बीमार पड़ गया। और वह दिन-पर-दिन कमज़ोर होता गया और गाब्रीएल ने उसकी मौत तक उसकी देखभाल की। परिवार के एक हँसते-खेलते सदस्य को बीमार होकर मरते देख हमने जाना कि यहोवा के सहारे की हमें कितनी ज़रूरत है।—यशायाह 33:2.
यहोवा के संगठन में सेवा करने के मौके
सन् 1955 में जब मुझे कॉन्ग्रिगेशन सर्वेंट (आज का प्रिसाइडिंग ओवरसियर) बनाया गया तो मैंने सोचा शायद मैं इस ज़िम्मेदारी को उठाने के काबिल नहीं हूँ। काम बहुत था और कलीसिया की सारी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए कभी-कभी मुझे सुबह चार बजे उठना पड़ता था। मेरी पत्नी और बच्चों ने मेरी बहुत मदद की। वे हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि जब कलीसिया का काम होता तो वे मुझे शाम को कभी परेशान नहीं करते थे।
फिर भी, हमारा परिवार जितना हो सकता था उतना वक्त साथ-साथ बिताता था। कभी-कभी मेरा मालिक मुझे अपनी कार इस्तेमाल करने देता था ताकि मैं अपने बीवी-बच्चों को बाहर घुमाने ले जाऊँ। और जब हम जंगल में प्रहरीदुर्ग अध्ययन करते तो बच्चों को बड़ा मज़ा आता। हम एक-साथ पैदल सैर करने निकल पड़ते, कभी-कभी जंगलों से गुज़रते हुए एक-साथ गाते-गुनगुनाते और मैं अपना हारमोनिका बजाता था।
सन् 1978 में, मुझे सबस्टिट्यूट सर्किट ओवरसियर (सफरी ओवरसियर) नियुक्त किया गया। इस बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए मैंने प्रार्थना की: “यहोवा, मुझे नहीं लगता कि मैं यह काम कर पाऊँगा। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि मैं कोशिश करके देखूँ, तो मैं जी-जान लगाकर इस काम को करूँगा।” दो साल बाद, 54 साल की उम्र में मैंने अपना छोटा-सा कारोबार अपने सबसे छोटे बेटे टॉमस को दे दिया।
हमारे सब बच्चे बड़े हो चुके थे, इस वजह से मुझे और कार्ला को यहोवा की सेवा में और अधिक करने का मौका मिला। उसी साल मुझे सर्किट ओवरसियर नियुक्त किया गया और हैम्बर्ग और श्लॆस्विग-होलस्टीन का पूरा इलाका सौंपा गया। हमारे पास बच्चों को पालने-पोसने का तजुर्बा था, इसलिए हम माता-पिता और उनके बच्चों के हालात को समझ पाए और उनकी मदद कर सके। बहुत सारे भाई हमें अपने सर्किट के मम्मी-पापा कहकर बुलाते थे।
दस साल तक सर्किट काम में मेरा साथ निभाने के बाद कार्ला को एक ऑपरेशन से गुज़रना पड़ा। और उसी साल डॉक्टर ने पता लगाया कि मुझे ब्रेन ट्यूमर है। इसलिए, मुझे सर्किट ओवरसियर के तौर पर अपनी सेवा छोड़नी पड़ी और मेरे ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ। उसके तीन साल बाद, फिर से मुझे सबस्टिट्यूट सर्किट ओवरसियर नियुक्त किया गया। मैं और कार्ला अब 70 की उम्र पार कर चुके हैं और अब हम सफरी काम नहीं कर सकते। यहोवा ने मुझे यह समझने में मदद दी कि जब हम किसी ज़िम्मेदारी को निभा नहीं सकते, तो उसे पकड़े रहने से कोई फायदा नहीं।
जब मैं और कार्ला अपने बीते दिनों को याद करते हैं तो हम यहोवा को बहुत धन्यवाद कहते हैं, जिसने हमें मदद दी कि हम बच्चों के दिलों में सच्चाई के लिए प्यार का बीज बो पाए। (नीतिवचन 22:6) इन तमाम सालों में यहोवा ने हमें राह दिखायी और सिखाया है और अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में हमेशा हमारी मदद की है। हालाँकि अब हम बूढ़े हो चुके हैं और हमारी सेहत भी साथ नहीं देती फिर भी यहोवा के लिए हमारा प्यार अब भी बरकरार है।—रोमियों 12:10, 11.
[फुटनोट]
^ यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित, मगर अब यह उपलब्ध नहीं है।
[पेज 26 पर तसवीर]
सन् 1965 में हैम्बर्ग में एलबॆ नदी के किनारे चलते हुए हमारा परिवार
[पेज 28 पर तसवीर]
सन् 1998 में बर्लिन के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में मेरे परिवार के कुछ सदस्य
[पेज 29 पर तसवीर]
अपनी पत्नी कार्ला के साथ