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संसार भर में भाइयों की बिरादरी से हौसला पाना

संसार भर में भाइयों की बिरादरी से हौसला पाना

जीवन कहानी

संसार भर में भाइयों की बिरादरी से हौसला पाना

थॉमसन कान्गाले की ज़ुबानी

अप्रैल 24,1993 को मुझे लूसाका, ज़ाम्बिया में 13 इमारतोंवाले नये शाखा दफ्तर के समर्पण कार्यक्रम में बुलाया गया था। नयी शाखा का दौरा करते वक्‍त मुझे चलने में परेशानी हो रही थी तो हमें दौरा करानेवाली एक मसीही बहन ने बड़े प्यार से मुझसे पूछा: “क्या आप चाहेंगे कि मैं अपने साथ आपके लिए एक कुर्सी ला दूँ ताकि आप थोड़े-थोड़े समय के बाद आराम कर सकें?” वह बहन श्‍वेत थी और मैं अश्‍वेत, मगर इसका उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उस बहन की वजह से मैं पूरी शाखा का दौरा आराम से कर पाया। उसका यह प्यार मेरे दिल को छू गया और मैंने उसको बहुत धन्यवाद दिया।

बीते कई सालों के दौरान, मुझे इस तरह के कई अनुभव हुए हैं, जिनसे मेरा विश्‍वास और भी मज़बूत हुआ कि सिर्फ यहोवा के साक्षियों की मसीही बिरादरी में ही वह प्यार देखा जा सकता है जो मसीह के मुताबिक उसके सच्चे चेलों की पहचान कराएगा। (यूहन्‍ना 13:35; 1 पतरस 2:17) आइए पहले मैं आपको बताऊँ कि कैसे सन्‌ 1931 में इन मसीहियों से मेरी पहचान हुई थी। यह वही साल था जब उन्होंने सरेआम ऐलान किया कि वे अब से बाइबल के मुताबिक यहोवा के साक्षी कहलाना चाहते हैं।—यशायाह 43:12.

अफ्रीका में सेवकाई शुरू करना

नवंबर 1931 में, मैं 22 साल का था और उत्तरी रोडेशिया (अब ज़ाम्बिया) के कॉपरबेल्ट प्रदेश में कीत्वे शहर में रहता था। मैं एक दोस्त के साथ फुटबॉल खेला करता था और उसी ने मुझे साक्षियों से मिलवाया। मैं उनकी कुछ सभाओं में गया और मैंने दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर के शाखा दफ्तर को लिखकर बाइबल अध्ययन करने की किताब, द हार्प ऑफ गॉड * भेजने की गुज़ारिश की। यह किताब अँग्रेज़ी में थी और मुझे यह भाषा अच्छी तरह नहीं आती थी, इसलिए मेरे लिए इसे समझना बड़ा मुश्‍किल था।

मैं कॉपरबेल्ट प्रदेश के पास पला-बढ़ा था। यह प्रांत, दक्षिणी-पश्‍चिम की बांगव्यूलू झील से करीब 240 किलोमीटर दूर है। वहाँ दूसरे प्रांतों से आए बहुत-से लोग ताँबे की खानों में काम करते थे, और वहीं पर यहोवा के साक्षियों के कई समूह, नियमित तौर पर बाइबल अध्ययन करने के लिए मिलते थे। कुछ समय बाद मैं कीत्वे छोड़, पासवाले कस्बे, एन्डोला में रहने लगा और वहाँ साक्षियों के एक समूह के साथ मिलने-जुलने लगा। उन दिनों मैं प्रिंस ऑफ वेल्स नाम की फुटबॉल टीम का कप्तान था। इसके अलावा, मैं एक श्‍वेत आदमी के घर नौकर का भी काम करता था जो अफ्रीकी झील निगम का मैनेजर था। इस कंपनी की कई दुकानें मध्य अफ्रीका में थीं।

मैं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया था और जिन यूरोपीय लोगों के यहाँ मैं काम करता था, उनसे मैंने थोड़ी-बहुत अँग्रेज़ी सीखी थी। लेकिन मुझमें और भी पढ़ने-लिखने की इच्छा थी, इसलिए मैंने पढ़ाई के लिए दक्षिणी रोडेशिया (आज ज़िम्बाबवे) में प्लमट्री स्कूल में नाम दे दिया। जब तक मेरा दाखिला नहीं हुआ, मैंने केप टाउन के शाखा दफ्तर को दूसरी बार खत लिखा। मैंने उनको बताया कि मुझे द हार्प ऑफ गॉड किताब मिल गयी है और मैं यहोवा की सेवा पूरे समय करना चाहता हूँ।

उनका जवाब पाकर मुझे हैरानी हुई। खत में लिखा था: “यहोवा की सेवा करने की आपकी इच्छा की हम सराहना करते हैं। हम आपको बढ़ावा देना चाहेंगे कि आप अपनी इस इच्छा के बारे में यहोवा को प्रार्थना में बताइए। यहोवा आपको सच्चाई की बेहतर समझ पाने में मदद देगा और वह आपके लिए उसकी सेवा करने की कोई जगह ज़रूर ढूँढ़ निकालेगा।” कई बार उस खत को पढ़ने के बाद मैंने बहुत-से साक्षियों से पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए। उन्होंने कहा: “अगर सचमुच आप यहोवा की सेवा करना चाहते हैं तो फिर नेक काम में देरी कैसी।”

मैं पूरे हफ्ते इस बारे में प्रार्थना करता रहा और आखिर में, मैंने अपनी स्कूल की पढ़ाई छोड़कर साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन जारी रखने का फैसला किया। उसके अगले साल, जनवरी 1932 में मैंने यहोवा परमेश्‍वर को किए गए अपने समर्पण की निशानी में बपतिस्मा लिया। एन्डोला को छोड़ने के बाद मैं पास ही में लूआनशा शहर में बस गया। वहाँ मेरी मुलाकात जॆनेट से हुई। वो भी यहोवा की एक साक्षी थी। और सितंबर 1934 में हम दोनों ने शादी कर ली। शादी के वक्‍त जॆनेट एक बेटे और बेटी की माँ थी।

वक्‍त के गुज़रते मैंने आध्यात्मिक तरक्की की और सन्‌ 1937 में मैंने पूरे समय की सेवा शुरू कर दी। उसके थोड़े ही समय बाद मुझे सफरी सेवक नियुक्‍त किया गया जिन्हें आज सर्किट ओवरसियर कहा जाता है। सफरी ओवरसियर, यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में दौरा करके उन्हें आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत करते हैं।

शुरूआती सालों में प्रचार करना

जनवरी 1938 में मुझे एक अफ्रीकी प्रधान, सोकोन्तवी के पास जाने के लिए कहा गया। इस आदमी ने गुज़ारिश की थी कि यहोवा के साक्षी उससे मिलने आएँ। उसके इलाके तक पहुँचने के लिए मुझे साइकिल पर तीन दिन लगे। मैंने उसे बताया कि मुझे उसके खत के जवाब में भेजा गया है, जो उसने केप टाउन में हमारे दफ्तर को लिखा था। यह सुनकर उसने सच्चे दिल से कदरदानी ज़ाहिर की।

मैं उसके लोगों से मिलने हर झोपड़ी में गया और उन्हें इनसाका (चौपाल) में आने को कहा। जब वे सभी इकट्ठे हो गए तो मैंने उनसे बात की। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुतों ने बाइबल अध्ययन शुरू कर दिया। उस गाँव का प्रधान और उसका क्लर्क कलीसिया के ओवरसियर बननेवालों में पहले थे। आज साम्फ्या नाम के उस इलाके में 50 से भी ज़्यादा कलीसियाएँ हैं।

सन्‌ 1942 से 1947 तक मैंने बांगव्यूलू झील के आस-पास के प्रदेश में सेवा की। मैं हर कलीसिया के साथ दस दिन बिताता था। उस वक्‍त आध्यात्मिक कटनी के काम में जुटे मज़दूर कम थे इसलिए हमने भी हमारे प्रभु, यीशु मसीह की तरह महसूस किया जिसने कहा था: “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।” (मत्ती 9:36-38) उन दिनों सफर करना बहुत मुश्‍किल था, इसलिए जब भी मैं कलीसियाओं का दौरा करने जाता तब जॆनेट, बच्चों के साथ लूआनशा में ही रहती थी। तब तक हमारे दो बच्चे और हुए, लेकिन एक बच्चा दस महीने की उम्र में ही मर गया।

उन दिनों गाड़ियाँ बहुत कम होती थीं और बेशक सड़कें भी बहुत कम थीं। एक दिन मैं जॆनेट की साइकिल पर 200 किलोमीटर के सफर पर निकल पड़ा। कभी-कभी जब मुझे छोटी नदी पार करनी होती, तब मैं साइकिल को अपने कंधे पर रखकर एक हाथ से उसे पकड़ता था और दूसरे हाथ के सहारे तैरता था। और हाँ, मैं आपको यह बता दूँ कि लूआनशा में साक्षियों की गिनती में बहुत बढ़ोतरी हुई और सन्‌ 1946 में 1,850 लोग मसीह की मौत के स्मारक में हाज़िर हुए।

हमारे काम में विरोध का सामना करना

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, एक बार कावाम्ब्वा के ज़िला कमिश्‍नर ने मुझे बुलाकर कहा: “मैं चाहता हूँ कि तुम वॉच टावर संस्था की किताबें बाँटना बंद करो क्योंकि इन पर रोक लगा दी गयी है। लेकिन मैं तुम्हें कुछ दूसरी किताबें दे सकता हूँ ताकि इनसे तुम खुद कुछ किताबें लिख सको और उन्हें अपने काम के लिए इस्तेमाल कर सको।”

मैंने जवाब दिया: “हम अपने साहित्य से खुश हैं। मुझे किसी और साहित्य की ज़रूरत नहीं है।”

उसने कहा: “तुम इन अमरीकियों को नहीं जानते, वे तुम्हें गुमराह कर देंगे।” (उस समय हमारा साहित्य अमरीका में छपता था।)

मैंने कहा: “नहीं, जिनके साथ मैं जुड़ा हुआ हूँ, वे ऐसा नहीं करेंगे।”

फिर उसने पूछा: “क्या तुम अपनी कलीसियाओं को युद्ध में मदद करने के लिए दान देने का बढ़ावा नहीं दे सकते, जैसे दूसरे धर्म के लोग कर रहे हैं?”

मैंने जवाब दिया: “यह काम तो सरकारी दूतों का है।”

उसने कहा: “क्यों न तुम घर जाकर इसके बारे में एक बार अच्छी तरह सोच लो?”

मैंने कहा: “बाइबल हमें निर्गमन 20:13 और 2 तीमुथियुस 2:24 में किसी की हत्या करने और लड़ाई करने से मना करती है।”

हालाँकि मुझे जाने दिया गया, मगर उसके बाद मुझे फोर्ट रोज़बॆरी, जो आज मान्सा नाम का कस्बा है, वहाँ के ज़िला कमिश्‍नर ने बुलाया और कहा: “मैंने तुम्हें यह बताने के लिए बुलाया है कि सरकार ने तुम्हारी किताबों पर पाबंदी लगा दी है।”

मैंने कहा: “हाँ, मैंने सुना है।”

“तो फिर जाओ और हर कलीसिया में जाकर जिनके साथ तुम उपासना करते हो उनसे कह दो कि वे सारी किताबें यहाँ ले आएँ। समझे कुछ?”

मैंने जवाब दिया: “यह मेरा काम नहीं, यह काम सरकारी दूतों का है।”

इत्तफाक से हुई एक मुलाकात का बढ़िया नतीजा

युद्ध खत्म होने के बाद हमने प्रचार करना जारी रखा। सन्‌ 1947 की बात है, म्वाँज़ा गाँव की एक कलीसिया का दौरा खत्म करने के तुरंत बाद मैंने लोगों से पूछा कि मुझे एक प्याली चाय कहाँ मिल सकती है। मुझे मिस्टर नकोन्डी की चाय की दुकान पर भेजा गया। मिस्टर नकोन्डी और उनकी पत्नी ने मेरा बढ़िया स्वागत किया। मैंने मिस्टर नकोन्डी को पूछा कि जब तक मैं चाय पीऊँ क्या आप मेरे लिए लॆट गॉड बी ट्रू किताब में से अध्याय “नरक, जहाँ लोगों को सुकून मिलता है और उन्हें आशा है,” पढ़कर सुनाएँगे।

मैंने चाय खत्म करने के बाद पूछा, “तो आपने नरक के बारे में क्या सीखा?” उसने जो पढ़ा उस पर उसे बड़ा ताज्जुब हुआ। फिर उसने साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू कर दिया और उसके कुछ समय बाद उसने और उसकी पत्नी ने बपतिस्मा ले लिया। हालाँकि वह आगे चलकर साक्षी नहीं रहा, मगर उसकी पत्नी और कई बच्चे सच्चाई में स्थिर रहे। यहाँ तक कि उसकी एक बेटी, पिल्नी अब भी ज़ाम्बिया में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में सेवा कर रही है। और हालाँकि पिल्नी की माँ बहुत बूढ़ी हो चुकी है, मगर अभी भी वह परमेश्‍वर की वफादार साक्षी है।

कुछ समय के लिए पूर्वी अफ्रीका में

सन्‌ 1948 की शुरूआत में उत्तरी रोडेशिया के लूसाका इलाके में हमारा शाखा दफ्तर स्थापित किया गया था। इसी दफ्तर ने मुझे तैन्गैनयिका (अब तंज़ानिया) भेजा। पैदल चलते हुए पहाड़ी इलाके का सफर करने में मेरे और मेरी पत्नी के साथ एक भाई भी आया। इस सफर में हमें तीन दिन लगे और हम बुरी तरह थक गए थे। इस सफर के दौरान मैंने किताबों का बंडल उठाया था, मेरी पत्नी ने हमारे कपड़े और दूसरे भाई ने हमारा बिस्तर उठाया था।

जब हम मार्च 1948 में अम्बेया पहुँचे तो हमने पाया कि वहाँ के भाई-बहनों को बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक जीने के लिए काफी तबदीलियाँ करने में मदद की ज़रूरत थी। पहली बात तो यह है, हालाँकि भाइयों ने यहोवा के साक्षी नाम अपनाया था, मगर सेवकाई के दौरान वे इस नाम को इस्तेमाल नहीं करते थे जिस वजह से उस इलाके के लोग उन्हें यहोवा के साक्षी के बजाय वॉचटावर के लोगों के नाम से जानते थे। इसके अलावा, कुछ साक्षियों को ऐसे रिवाज़ों को त्यागना था जिनका ताल्लुक मरे हुओं को श्रद्धा देने से था। मगर इन सबसे बढ़कर बहुतों के लिए जो मुश्‍किल आयी वह थी, अपनी शादी का पंजीकरण कराना ताकि उनकी शादी, सब में आदर की बात समझी जाए।—इब्रानियों 13:4.

उसके बाद मुझे पूर्वी अफ्रीका के दूसरे इलाकों, यहाँ तक कि युगाण्डा में भी सेवा करने का मौका मिला। मैंने करीब छः हफ्ते एनटेब्बी और कामपाला में बिताए और बहुतों को बाइबल की सच्चाई का ज्ञान पाने में मदद दी।

न्यू यॉर्क शहर आने का न्यौता

युगाण्डा में कुछ समय तक सेवा करने के बाद सन्‌ 1956 की शुरूआत में, मैं तैन्गैनयिका की राजधानी, दार एस सालाम पहुँचा। वहाँ यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय से मेरे लिए एक खत आया हुआ था। उसमें अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में हाज़िर होने की तैयारी करने के लिए निर्देशन दिए गए थे, जो न्यू यॉर्क में जुलाई 27 से अगस्त 3,1958 तक होनेवाला था। बेशक, मैं इस मौके के लिए बहुत उत्साहित था।

जब अधिवेशन में जाने का वक्‍त आया तो मैं और मेरे साथ एक दूसरा सफरी ओवरसियर, लूका मवाँगो, हवाई जहाज़ से एन्डोला से दक्षिणी रोडेशिया के सॉल्ज़बॆरी (अब हारारे) पहुँचे। फिर हम वहाँ से उड़कर नाइरोबी, केन्या पहुँच गए। नाइरोबी से हमने लंदन, इंग्लैंड के लिए रवाना होनेवाला हवाई जहाज़ पकड़ा और वहाँ पहुँचते ही हमारा बड़े प्यार से स्वागत किया गया। इंग्लैंड में पहली रात को हम बहुत उमंग से भरे हुए थे। हम बस बातें ही किए जा रहे थे कि किस तरह श्‍वेत लोगों ने हम अफ्रीकी लोगों का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। इस अनुभव से वाकई हमारा बहुत उत्साह बढ़ा।

आखिरकार, हम न्यू यॉर्क पहुँचे जहाँ अधिवेशन होनेवाला था। अधिवेशन के दौरान एक दिन मैंने उत्तरी रोडेशिया में चल रहे यहोवा के साक्षियों के काम के बारे में रिपोर्ट पेश की। उस दिन करीब 2,00,000 लोग न्यू यॉर्क शहर के पोलो ग्राउँड्‌स और यांकी स्टेडियम में इकट्ठा थे। मैं उस रात सो नहीं सका क्योंकि मैं बस यही सोच रहा था कि मुझे कितना शानदार अवसर मिला है।

देखते-ही-देखते अधिवेशन खत्म हो गया और हमारे घर लौटने का वक्‍त आया। अपनी वापसी यात्रा में हमने एक बार फिर इंग्लैंड में भाई-बहनों के प्यार और मेहमाननवाज़ी का आनंद उठाया। यह हमारे लिए एक यादगार सफर रहेगा क्योंकि हमने खुद अपनी आँखों से देखा है कि यहोवा के लोग चाहे किसी भी जाति या देश के हों, उनके बीच एकता है।

सेवा जारी रखना और परीक्षाएँ

सन्‌ 1967 में मुझे डिस्ट्रिक्ट सर्वेंट के तौर पर नियुक्‍त किया गया यानी वह सेवक जो एक सर्किट से दूसरे सर्किट का दौरा करता है। उस वक्‍त तक ज़ाम्बिया में साक्षियों की गिनती बढ़कर 35,000 से भी ज़्यादा हो गयी। लेकिन मेरी बिगड़ती सेहत की वजह से मुझे फिर से कॉपरबेल्ट में सर्किट ओवरसियर नियुक्‍त किया गया। बाद में, जॆनेट की सेहत भी खराब रहने लगी और दिसंबर सन्‌ 1984 में उसकी मौत हो गयी। मरते दम तक वह यहोवा की वफादार रही।

जॆनेट की मौत के बाद मुझे बहुत दुःख पहुँचा, क्योंकि मेरी ससुरालवालों ने मुझ पर यह इलज़ाम लगाया कि मैंने जादू-टोना करके उसे मार डाला। लेकिन कुछ रिश्‍तेदारों को जॆनेट की बीमारी का पता था और उन्होंने उसके डॉक्टर से भी बात की थी। तो इन्होंने उन बाकी रिश्‍तेदारों को असलियत बतायी। उसके बाद मेरे सामने एक और परीक्षा आयी। कुछ रिश्‍तेदार चाहते थे कि मैं ऊकूप्यानिका नाम की परंपरा निभाऊँ। जिस इलाके से मैं आया हूँ, वहाँ का रिवाज़ है कि जब किसी के जीवन-साथी की मौत हो जाती है तो उसे अपने मरे हुए साथी के करीबी रिश्‍तेदार के साथ लैंगिक संबंध कायम करना होता है। लेकिन मैंने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया।

आखिरकार रिश्‍तेदारों की तरफ से दबाव आने बंद हो गए। मैं यहोवा का शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे डटे रहने में मदद दी। मेरी पत्नी को दफनाए जाने के एक महीने बाद एक भाई ने आकर मुझसे कहा: “भाई कान्गाले, अपनी पत्नी की मौत पर आप किसी भी झूठे रिवाज़ के फंदे में नहीं फँसे, यह देखकर हमें वाकई बहुत हौसला मिला है। हम आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहते हैं।”

एक बढ़िया फसल

यहोवा के साक्षी के तौर पर पूरे समय की सेवा शुरू करके आज मुझे 65 साल हो चुके हैं। उन सालों के दौरान यह देखकर मुझे कितनी खुशी मिली है कि जिन इलाकों में मैंने सफरी ओवरसियर का काम किया था, वहाँ सैंकड़ों कलीसियाएँ बनी हैं और कई किंगडम हॉलों का निर्माण हुआ है! सन्‌ 1943 में ज़ाम्बिया में जहाँ 2,800 साक्षी थे, वहाँ अब उनकी गिनती बढ़कर 1,22,000 हो गयी है। पिछले साल स्मारक में 5,14,000 लोग हाज़िर हुए जबकि इस देश की आबादी 1.1 करोड़ से भी कम है।

यहोवा ने अब तक मेरी अच्छी देखभाल की है। जब मुझे किसी डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत पड़ती है, तो मसीही भाई मुझे अस्पताल ले जाते हैं। कलीसियाएँ अब भी मुझे जन-भाषण देने के लिए बुलाती हैं और इससे मुझे कई मौके मिलते हैं जब मेरा हौसला बढ़ता है। मेरी कलीसिया की बहनों को बारी-बारी से मेरे घर की सफाई करने का काम सौंपा गया है और भाई हर हफ्ते आकर मुझे सभाओं में ले जाते हैं। मैं जानता हूँ कि अगर मैंने यहोवा की सेवा न की होती तो मेरी कभी-भी ऐसे प्यार से देखभाल नहीं होती। मैं यहोवा का बहुत एहसानमंद हूँ कि अब भी वह पूरे समय की सेवा में मुझे इस्तेमाल कर रहा है और मैं बहुत-सी ज़िम्मेदारियों को सँभाल सकता हूँ।

अब मेरी नज़र कमज़ोर हो गयी है और जब मैं पैदल किंगडम हॉल जाता हूँ तो रास्ते में कितनी ही बार मुझे रुकना पड़ता है। सभाओं में ले जानेवाला बैग अब मुझे भारी लगने लगा है, इसलिए जिन किताबों की सभाओं में ज़रूरत नहीं पड़ती उन्हें मैं नहीं ले जाता। मैं अब भी क्षेत्र सेवकाई में हिस्सा लेता हूँ, मगर ज़्यादातर समय उन लोगों के साथ अध्ययन करता हूँ जो मेरे घर आते हैं। फिर भी जब मैं बीते सालों को याद करता हूँ और उस दौरान हुई शानदार बढ़ोतरी के बारे में सोचता हूँ तो मुझे कितनी खुशी मिलती है! मैंने एक ऐसे क्षेत्र में काम किया है जहाँ यशायाह 60:22 में लिखे यहोवा के शब्द बेहतरीन तरीके से पूरे हुए हैं। वहाँ लिखा है: “छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।” बेशक, मैंने अपने जीवनकाल में ना सिर्फ ज़ाम्बिया में बल्कि सारे संसार में इन शब्दों को पूरा होते देखा है। *

[फुटनोट]

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया था, मगर अब यह उपलब्ध नहीं है।

^ बड़े दुःख की बात है कि भाई कान्गाले की सेहत ने आखिर जवाब दे दिया और जब यह लेख प्रकाशित होने के लिए तैयार किया जा रहा था तब उनकी मौत हो गयी। मरते दम तक वे यहोवा के वफादार रहे।

[पेज 24 पर तसवीरें]

ज़ाम्बिया शाखा के सामने खड़े थॉमसन

[पेज 26 पर तसवीर]

आज ज़ाम्बिया शाखा