खुश है वह जिसका परमेश्वर यहोवा है
जीवन कहानी
खुश है वह जिसका परमेश्वर यहोवा है
टॉम डीडर की ज़ुबानी
हॉल किराए पर लिया जा चुका था। कनाडा के ससकाचवन प्रांत के पोर्क्युपाइन प्लेन शहर में सम्मेलन होनेवाला था, जहाँ करीब 300 लोगों के आने की उम्मीद थी। मगर बुधवार के दिन बर्फ पड़ने लगी और शुक्रवार को इतनी बर्फ पड़ी कि सफेदी के अलावा कुछ नज़र नहीं आ रहा था। तापमान गिरकर -40°C हो गया। सम्मेलन में सिर्फ अट्ठाईस लोग हाज़िर हुए जिनमें कुछ बच्चे भी थे। इधर मैं बहुत परेशान था क्योंकि नए सर्किट ओवरसियर के तौर पर यह मेरा पहला सम्मेलन था। उस समय मेरी उम्र सिर्फ 25 बरस थी। सम्मेलन कैसा रहा, यह बताने से पहले मैं आपको यह बताना चाहूँगा कि मुझे इस खास सेवा का सम्मान कैसे मिला।
हम आठ भाई हैं जिनमें मैं सातवें नंबर पर हूँ। सबसे बड़े भाई का नाम है, बिल, उसके बाद हैं, मेट्रो, जॉन, फ्रेड, माइक और अलिक्स। फिर सन् 1925 में मेरा जन्म हुआ और मेरे बाद वॉली का, जो सबसे छोटा है। हम मनिटोबा के यूक्रेन शहर में रहते थे जहाँ मेरे पिताजी माइकल और माँ एना डीडर का एक छोटा-सा फार्म था। पिताजी रेलवे में सैक्शन मैन के तौर पर काम करते थे। शहर से दूर रेलवे की तरफ से उन्हें एक छोटा-सा क्वॉर्टर मिला था, जहाँ बड़े परिवार की परवरिश करना मुश्किल था इसलिए हम अपने फॉर्म पर ही रहते थे। ज़्यादातर समय पिताजी साथ नहीं रहते थे इसलिए माँ ही हमारी देखभाल करती थी। बीच-बीच में एकाध हफ्ता या उससे ज़्यादा समय के लिए माँ घर से दूर पिताजी के साथ रहने चली जाती थी, लेकिन माँ ने हम सबको खाना और बेकरी की चीज़ें बनाना, साथ ही घर का सारा काम-काज सिखा दिया था। हम सभी ग्रीक कैथोलिक चर्च से थे, इसलिए माँ ने शुरू से ही हमें प्रार्थना मुँह ज़बानी याद करवायी थी और हम दूसरे रीति-रिवाज़ों में भी हिस्सा लिया करते थे।
बाइबल सच्चाई से पहचान
बाइबल समझने की ललक मुझमें किशोरावस्था से बढ़ने लगी थी। हमारा एक पड़ोसी जो यहोवा का साक्षी था, नियमित रूप से हमारे घर आकर बाइबल से परमेश्वर के राज्य, हरमगिदोन और नयी दुनिया की आशीषों के बारे में कुछ भाग पढ़कर सुनाया करता था। माँ उसकी बातों में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं लेती थी, लेकिन माइक और अलिक्स को उसका संदेश भा गया। यहाँ तक कि उन्होंने बाइबल से जो कुछ सीखा, उनके विवेक पर उसका इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान फौज में भरती होने से इनकार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि माइक को कुछ समय के लिए जेल हो गयी और अलिक्स को ऑन्टेरीयो के एक लेबर कैंप में भेज दिया गया। समय के बीतते फ्रेड और वॉली ने भी सच्चाई स्वीकार कर ली। लेकिन मेरे सबसे बड़े तीन भाइयों ने सच्चाई को नहीं स्वीकारा। मेरी माँ ने तो कई सालों तक सच्चाई का विरोध भी किया, मगर बाद में जब उसने यहोवा का पक्ष लिया तब हम सब हैरान रह गए। उसने 83 साल की उम्र में बपतिस्मा लिया। माँ 96 साल की उम्र में चल बसी। मेरे पिताजी ने भी मरने से पहले सच्चाई में दिलचस्पी दिखायी थी।
मैं सत्रह साल की उम्र में नौकरी की तलाश में और जो मुझे बाइबल सिखा सकें ऐसे लोगों के साथ मेलजोल करने की ख्वाहिश में विन्नीपेग गया। उन दिनों यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगी थी, फिर भी वे नियमित रूप से सभाएँ चलाते थे। मैं पहली बार जिस सभा में गया वह एक घर में रखी गयी थी। मेरी परवरिश क्योंकि ग्रीक कैथोलिक धर्म के मुताबिक हुई थी इसलिए शुरू-शुरू में मुझे साक्षियों की बातें अजीबो-गरीब लगती थीं। लेकिन धीरे-धीरे मैं समझ गया कि पादरी और आम जनता के बीच जो भेद रखा गया है, वह क्यों बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक नहीं है और जब पादरी युद्ध में विजयी होने की आशीष देते हैं तो परमेश्वर उसे क्यों मंज़ूर नहीं करता। (यशायाह 2:4; मत्ती 23:8-10; रोमियों 12:17, 18) इसके अलावा मुझे यह शिक्षा ज़्यादा व्यावहारिक और तर्कसंगत लगी कि इंसान फिरदौस बनी पृथ्वी पर जीएँगे बजाय इसके कि वे इस दुनिया से कहीं दूर, दूसरे लोक में अनंतकाल तक जीएँगे।
मुझे यकीन हो गया कि यही सच्चाई है, इसलिए मैंने यहोवा को अपना जीवन समर्पित करके विन्नीपेग में सन् 1942 में बपतिस्मा लिया। सन् 1943 में, कनाडा में यहोवा के साक्षियों के काम पर से प्रतिबंध हटा दिया गया जिससे प्रचार काम में तेज़ी आ गयी। समय के बीतते बाइबल की सच्चाई मेरे दिल पर भी गहरी छाप छोड़ने लगी। मुझे कलीसिया के सेवक यानी प्राचीन के तौर पर सेवा करने, जन-भाषण के अभियान में हिस्सा लेने और ऐसे इलाकों में काम करने का सुनहरा मौका मिला जहाँ तब तक प्रचार के लिए किसी को नहीं भेजा गया था। अमरीका के बड़े अधिवेशनों में हाज़िर होना भी मेरी आध्यात्मिक तरक्की के लिए बहुत फायदेमंद रहा।
यहोवा की सेवा और ज़्यादा करना
मैंने सन् 1950 में पायनियर सेवा शुरू की और उसी साल दिसंबर में मुझे सर्किट ओवरसियर के तौर पर सेवा करने का बुलावा मिला। इसके लिए मुझे टोरोन्टो के पास, एक अनुभवी और वफादार भाई चार्ली हैपवर्थ से प्रशिक्षण पाने का खास मौका मिला। मेरे लिए एक और खुशी की बात थी कि मैंने अपने प्रशिक्षण का आखिरी हफ्ता अपने भाई अलिक्स के साथ गुज़ारा जो पहले से ही विन्नीपेग में सर्किट ओवरसियर के तौर पर सेवा कर रहा था।
जैसा मैंने शुरू में बताया था, मेरा वह पहला सर्किट सम्मेलन मेरी यादों पर अमिट छाप छोड़ गया। इसमें शक नहीं कि मैं बहुत परेशान था कि न जाने क्या होगा। खैर, हमारे डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर भाई जैक नेथन ने हम सबको व्यस्त और खुश रखा। हमने मौजूद लोगों की मदद से असेंबली के पूरे कार्यक्रम का सारांश दिया। हमने बारी-बारी से अपना भाग अदा किया, कुछ ने अनुभव बताए, कुछ ने घर-घर की प्रस्तुति का अभ्यास किया, तो कुछ ने वापसी भेंट और गृह बाइबल अध्ययन का प्रदर्शन करके दिखाया। हम सबने राज्य गीत गाए। खाने की कोई कमी नहीं थी। लगभग हर दो घंटे बाद हम कॉफी पीते और पेस्ट्री खाते। कुछ लोग बेंचो पर सोए तो कुछ प्लेटफॉर्म पर और कुछ ज़मीन पर। रविवार आते-आते बर्फानी तूफान थोड़ा कम हुआ इसलिए जन-भाषण के लिए 96 लोग हाज़िर हुए। इस अनुभव ने मुझे मुश्किल हालत से निपटना सिखाया।
सर्किट काम में मेरी अगली नियुक्ति उत्तरी अलबर्टा, ब्रिटिश कोलंबिया और यूकोन नाम के क्षेत्रों में थी, जिन्हें अर्ध-रात्री सूर्य का देश कहा जाता है। ब्रिटिश कोलंबिया के डॉसन क्रीक से यूकोन के व्हाइटहॉर्स (1,477 किलोमीटर की दूरी) का रास्ता अलास्का के ऊबड़-खाबड़ मुख्य मार्ग से तय करना होता है, इसके लिए और इस मार्ग पर गवाही देने के लिए वाकई धीरज और सावधानी की ज़रूरत होती थी। यहाँ बर्फीले पहाड़ों पर से बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े गिरते हैं, पहाड़ों की ढलानें बड़ी फिसलनवाली होती हैं, साथ ही उड़ती बर्फ की वजह से साफ-साफ कुछ दिखायी भी नहीं देता, इसलिए सफर बहुत मुश्किल हो जाता था।
मैं इस बात से हैरान था कि उत्तर के दूर-दराज़ इलाके तक भी सच्चाई पहुँच गयी है। एक बार, वोल्टर लूकोवीट्स और मैं यूकोन इलाके की सीमा के पास अलास्का के मुख्य मार्ग पर, ब्रिटिश कोलंबिया के एक गाँव, लोवर पोस्ट पहुँचे। वहाँ हम एक छोटे-से घर के पास गए। हमें पता था कि वहाँ ज़रूर कोई रहता है क्योंकि उसकी छोटी-सी खिड़की से हमें हलकी-सी रोशनी दिखायी दे रही थी। उस समय रात के करीब नौ बजे थे। जब हमने दरवाज़ा खटखटाया तो एक आदमी ने आवाज़ दी कि अंदर आ जाओ। हम अंदर गए तो हमें इतना ताज्जुब हुआ कि एक बूढ़ा आदमी अपने दुमंजिले बिस्तर पर पड़ा वॉचटावर पत्रिका पढ़ रहा है! हम पत्रिका का जो अंक बाँट रहे थे, वह उससे भी नया अंक पढ़ रहा था। उसने बताया कि उसे यह पत्रिका हवाई डाक से मिली है। चूँकि हम आठ दिनों से कलीसिया से दूर थे इसलिए हमें नयी पत्रिकाएँ नहीं मिली थीं। उस आदमी ने फ्रेड बर्ग नाम बताकर अपना परिचय दिया। हालाँकि कई सालों से उसे यह पत्रिका डाक से मिल रही थी, मगर यहोवा के साक्षियों के साथ यह उसकी पहली मुलाकात थी। फ्रेड ने जबरन हमें उस रात रुकने के लिए कहा। हमने उसे बाइबल से बहुत-सी सच्चाइयाँ बतायीं और फिर उससे मिलने के लिए दूसरे साक्षियों का भी इंतज़ाम किया जो नियमित रूप से उस इलाके से होकर जाया करते थे।
कई सालों तक मैंने तीन छोटे-छोटे सर्किटों में सेवा की। मेरा इलाका 3,500 किलोमीटर से ज़्यादा क्षेत्र में फैला था, यानी पूर्व में अलबर्टा के ग्रॆन्डी प्रेइरी शहर से लेकर पश्चिम में अलास्का के कोडियाक तक।
यह देखकर भी मेरा रोम-रोम खिल उठा कि यहोवा का अपात्र अनुग्रह अन्य जगहों के जैसे, दूर-दराज़ के इलाकों में भी हर तरह के लोगों पर होता है। परमेश्वर की आत्मा उनके मन और हृदय को उभारती है, जो अनंत जीवन पाने के लिए सही मन रखते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति था,
हैनरी लपाइन जो यूकोन के डॉसन सिटी से था, जिसे आज डॉसन कहा जाता है। हैनरी एक दूर-दराज़ इलाके में रहता था। असल में 60 से भी ज़्यादा साल हो गए थे, मगर वह सोने की खान के इलाके से कहीं बाहर नहीं गया था। लेकिन यहोवा की आत्मा ने इस 84 बरस के बूढ़े आदमी को इस कदर उभारा कि वह 1,600 किलोमीटर की एक तरफा यात्रा करके एन्कोरेज गया और सर्किट सम्मेलन में हाज़िर हुआ, जबकि वह इससे पहले कभी कलीसिया की सभा में नहीं गया था। पूरा कार्यक्रम सुनकर वह बहुत रोमांचित हुआ और भाई-बहनों से मिलकर भी वह फूला न समाया। अपने शहर लौटने के बाद वह अपनी मौत तक वफादार रहा। कई लोग जो हैनरी को जानते थे, अचंभा करते थे कि आखिर किस वजह से यह बुज़ुर्ग इतनी लंबी यात्रा पर निकल पड़ा। इसी दिलचस्पी ने कुछ और बुज़ुर्गों को सच्चाई स्वीकार करने के लिए उभारा। इस तरह देखा जाए तो हैनरी ने अपने कार्यों से एक अच्छी गवाही दी।यहोवा के अपात्र अनुग्रह का भागी
सन् 1955 में जब मुझे वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 26वीं क्लास में हाज़िर होने का न्यौता मिला तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। इस प्रशिक्षण ने मेरे विश्वास को मज़बूत किया और यहोवा के और करीब आने में मेरी मदद की। ग्रेजुएट होने के बाद मुझे कनाडा में ही अपना सर्किट काम जारी रखने की नियुक्ति मिली।
करीब एक साल तक मैं ऑन्टेरीयो प्रांत में सेवा करता रहा। इसके बाद मुझे एक बार फिर उत्तरी अलास्का के बेहद खूबसूरत इलाके में सेवा करने को कहा गया। स्वच्छ, झिलमिलाती झीलों और बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियों की श्रृंखला पार करते सुंदर मुख्य मार्ग मुझे आज भी अच्छी तरह याद हैं। और गर्मी के महीने में घाटियों और चारागाह की खूबसूरती तो आँखों में नहीं समाती, लगता है मानो रंग-बिरंगे जंगली फूलों का कालीन बिछा हो। वहाँ की ठंडी हवा तरो-ताज़ा कर देती है और पानी एकदम शुद्ध और निर्मल है। रीछ, भेड़िए, अमरीकी हिरन, अमरीकी रेन्डियर और दूसरे जंगली जानवर अपने उस प्राकृतिक घर में खुलेआम मस्त घूमते हैं।
लेकिन अलास्का में सेवा करना वाकई चुनौती भरा है क्योंकि वहाँ का न सिर्फ बदलता मौसम बल्कि लंबा सफर भी समस्या खड़ी करता है। मेरा सर्किट पूर्व से पश्चिम तक 3,200 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ था। उन दिनों सर्किट ओवरसियरों को संस्था की तरफ से कार का प्रबंध नहीं था। कलीसिया के ही भाई खुद आगे बढ़कर मुझे दूसरी कलीसिया तक पहुँचा दिया करते थे। लेकिन कभी-कभी मुझे ट्रक ड्राइवरों या पर्यटकों की गाड़ी से जाना पड़ता था।
एक बार कुछ ऐसी ही घटना अलास्का के मुख्य मार्ग पर, यानी अलास्का के टोक जंक्शन और माइल 1202 यानी स्काटी क्रीक इलाके के बीच घटी। इन दो स्थानों के कस्टम ऑफिस एक-दूसरे से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर हैं। टोक के अमरीकी कस्टम ऑफिस को पार करने के बाद मैंने दूसरी सवारी ली और करीब 50 किलोमीटर की यात्रा तय की। लेकिन बाद में मुझे एक भी कार नहीं मिली। मैं करीब 10 घंटे तक पैदल चलता रहा और 40 किलोमीटर से भी दूर आ गया। मुझे इसकी खबर तो बाद में मिली कि जब मैंने अमरीकी कस्टम ऑफिस पार किया, उसके कुछ ही समय बाद, सारी गाड़ियों को रोक दिया गया क्योंकि बहुत ज़्यादा बर्फ पड़ने की वजह से आगे का रास्ता बंद हो गया था। आधी रात होते-होते तापमान गिरकर -23°C हो गया था। मुझे अब भी कुछ 80 किलोमीटर चलना था, तब कहीं जाकर मुझे सिर ढकने के लिए कोई जगह मिल पाती। मैं थककर इतना चूर हो गया था कि किसी भी हाल में आराम के लिए एक आश्रय चाहता था।
मैं लँगड़ाते-लँगड़ाते आगे बढ़ता गया तभी मैंने रास्ते पर छोड़ी गयी एक कार देखी जो कुछ हद तक बर्फ से ढकी सड़क के किनारे खड़ी थी। मैंने सोचा अगर मैं किसी तरह अंदर गद्दी
पर जाकर सो जाऊँ तो इस कड़ाके की ठंड से मेरी जान बच सकती है। मैंने जैसे-तैसे कार पर से बर्फ झाड़ी और दरवाज़ा खोला तो अंदर क्या देखता हूँ कि गद्दी ही गायब है और सिर्फ लोहे का ढाँचा पड़ा है। मगर शुक्र है कि थोड़ी दूर जाने पर मुझे रास्ते में एक खाली घर मिला। पहले तो मुझे अंदर घुसने और आग जलाने में थोड़ी दिक्कत हुई मगर उसके बाद मैं कुछ घंटों के लिए वहाँ आराम कर सका। सुबह मुझे एक सवारी मिली जो मुझे अगली मंज़िल तक ले गयी। वहाँ पहुँचने पर मैंने खाना खाया क्योंकि मैं भूख से तड़प रहा था, फिर मेरी उँगलियों का भी इलाज किया गया जो ठंड की वजह से कट गयी थीं।परमेश्वर उत्तर अलास्का में बढ़ोतरी करता है
फेयरबैंक्स में, मेरा पहला दौरा वाकई उत्साह बढ़ानेवाला था। हमें सेवा में बढ़िया सफलता मिली और रविवार को करीब 50 लोग जन-भाषण सुनने आए। सभा एक छोटे-से मिशनरी घर में रखी गयी थी, जहाँ वर्नर और लरेन डेविस रहते थे। कुछ लोग रसोईघर, सोने के कमरे और गलियारे से झाँककर भाषण सुन रहे थे। इतना बढ़िया नतीजा देखकर हमें मालूम पड़ गया था कि फेयरबैंक्स में अगर एक किंगडम हॉल हो तो प्रचार काम में और भी तेज़ी आएगी। सो यहोवा की मदद से हमने लकड़ी की एक बड़ी इमारत खरीदी, जिसमें पहले नाच-गाना हुआ करता था और फिर उसे हमने एक बढ़िया जगह पर खड़ा कर दिया। वहाँ एक कुआँ खोदा गया, गुसलखाना और हॉल गर्म रखने की प्रणाली लगायी गयी। एक साल के भीतर फेयरबैंक्स में किंगडम हॉल में सभाएँ संचालित होने लगीं। फिर उसमें एक रसोईघर बनाया गया, उसके बाद यह हॉल सन् 1958 में ज़िला अधिवेशन के लिए इस्तेमाल किया गया जिसमें 330 लोग हाज़िर हुए।
सन् 1960 की गर्मियों में, मैं कार से एक लंबी यात्रा करके न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों के विश्व मुख्यालय गया। वहाँ अमरीका और कनाडा के सफरी ओवरसियरों के लिए एक कोर्स रखा गया था, जिससे उन्हें अपना काम बेहतर तरीके से करने में मदद मिलती। जब मैं वहाँ था, तब भाई नेथन नॉर और दूसरे ज़िम्मेदार भाइयों ने यह जानने के लिए मुझसे कुछ सवाल पूछे कि क्या भविष्य में अलास्का में ब्राँच ऑफिस बनाना ठीक रहेगा। कुछ महीनों बाद हमें यह सुनकर बड़ी खुशी हुई कि सितंबर 1,1961 में अलास्का में हमारा खुद का एक ब्राँच ऑफिस होगा। ब्राँच की ज़िम्मेदारियों को सँभालने के लिए भाई एन्ड्रू के. वागनर को नियुक्त किया गया। उसने और उसकी पत्नी विरा ने ब्रुकलिन में 20 सालों तक सेवा की थी और उन्हें सफरी काम का भी अनुभव था। अलास्का में ब्राँच का इंतज़ाम करना बहुत मददगार रहा क्योंकि अब सर्किट ओवरसियरों को यात्रा करने में ज़्यादा समय गँवाने की ज़रूरत नहीं थी और उन्हें कलीसियाओं और दूर-दराज़ इलाकों की खास ज़रूरतों पर ज़्यादा ध्यान देने के लिए ज़्यादा समय मिलता।
सन् 1962 की गर्मी, उत्तर अलास्का के लिए बड़ी खुशी का समय था। अलास्का ब्राँच का समर्पण हुआ और वहाँ के जूनो प्रांत में एक ज़िला अधिवेशन हुआ। जूनो और व्हाइटहॉर्स, यूकोन में नए किंगडम हॉल बनाए गए, साथ ही कई छोटे-छोटे समूह बनाए गए।
कनाडा लौटना
कनाडा की मार्गारीटा पेट्रस और मैं, कई सालों से एक-दूसरे को खत लिखते आए थे। उसे अकसर रीटा कहकर बुलाया जाता था। उसने 1947 में पायनियरिंग शुरू की थी और 1955 में गिलियड से ग्रेजुएट होने के बाद वह कनाडा के पूर्वी भाग में पायनियरिंग करने लगी। जब मैंने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उसने कबूल कर लिया। सो हमने फरवरी, सन् 1963 में व्हाइटहॉर्स में शादी कर ली। उस साल के पतझड़ तक, मुझे पश्चिम कनाडा में सर्किट काम के लिए नियुक्त किया गया और हमने वहाँ 25 साल तक खुशी-खुशी सेवा की।
सेहत खराब होने की वजह से हमें सन् 1988 में मनिटोबा, विन्नीपेग में स्पेशल पायनियर के तौर पर नियुक्त किया गया। इसमें करीब पाँच सालों तक असेंबली हॉल की देखभाल करना शामिल था। आज भी जहाँ तक हो सके हम चेले बनाने के काम में हिस्सा लेते हैं। हमने पहले सर्किट काम में कई बाइबल अध्ययन शुरू किए थे, जिन्हें दूसरों ने ज़ारी रखा। अब यहोवा के अपात्र अनुग्रह से हमने न सिर्फ बाइबल अध्ययन शुरू किए हैं बल्कि विद्यार्थियों को समर्पण और बपतिस्मा के कदम तक प्रगति करने में भी मदद दी है।
मुझे यकीन है कि यहोवा की सेवा करना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। यह काम जीवन को अर्थ और संतुष्टि देता है। साथ ही यहोवा के लिए दिन-ब-दिन हमारा प्यार गहरा होता जाता है। इसी से सच्ची खुशी मिलती है। हमें परमेश्वर के संगठन की तरफ से चाहे जो काम मिले या फिर हम चाहे जहाँ रहें, हम सभी भजनहार के इन शब्दों से सहमत होंगे: “जिस . . . का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है!”—भजन 144:15.
[पेज 24, 25 पर तसवीर]
सर्किट काम में
[पेज 25 पर तसवीर]
डॉसन शहर में हैनरी लपाइन से मिलते वक्त। मैं बायीं तरफ
[पेज 26 पर तसवीर]
एन्कोरेज में पहला किंगडम हॉल
[पेज 26 पर तसवीर]
सन् 1998 में रीटा और मैं