अपनी समझ पर संयम बढ़ाते जाओ
अपनी समझ पर संयम बढ़ाते जाओ
‘अपनी समझ पर संयम बढ़ाते जाओ।’—2 पतरस 1:5-8.
1. इंसान की ज़्यादातर समस्याएँ किस कमज़ोरी की वजह से हैं?
अमरीका में ड्रग्स के खिलाफ एक बहुत बड़े अभियान में जवानों को उकसाया गया कि वे ड्रग्स को ‘साफ-साफ ना कहें।’ यह दुनिया कितनी खुशहाल होती अगर हर इंसान न सिर्फ ड्रग्स को ‘ना’ कहता, बल्कि पियक्कड़पन, गलत चालचलन या बदचलनी, बिज़नेस में की जानेवाली बेईमानी और ‘शरीर की अभिलाषाओं’ में फँसने से भी साफ इनकार कर पाता! (रोमियों 13:14) लेकिन यह बात हर कोई मानेगा कि ‘ना’ कहना हमेशा आसान नहीं होता।
2. (क) बाइबल की कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि ‘ना’ कहने की मुश्किल कोई नयी बात नहीं है? (ख) इन मिसालों से हममें क्या इरादा पैदा होना चाहिए?
2 यह जानकर कि ‘ना’ कहना या संयम बरतना असिद्ध इंसानों के लिए कितना मुश्किल है, हममें से हरेक को यह सीखने की ज़रूरत है कि हम अपनी कमज़ोरियों पर जीत कैसे पा सकते हैं। बाइबल हमें बीते ज़माने के ऐसे लोगों के बारे में बताती है जिन्होंने परमेश्वर की सेवा में बहुत मेहनत की थी, मगर कुछ हालात में वे गलत काम करने से साफ इनकार नहीं कर सके। मसलन, दाऊद को याद कीजिए जिसने बतशेबा के साथ व्यभिचार किया था। इस पाप का अंजाम यह हुआ कि व्यभिचार से पैदा हुआ उनका बच्चा, और बतशेबा का पति दोनों मर गए, जबकि उनका कोई कसूर नहीं था। (2 शमूएल 11:1-27; 12:15-18) या प्रेरित पौलुस के बारे में सोचिए जिसने बेझिझक यह कबूल किया: “जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूं।” (रोमियों 7:19) क्या कभी-कभी आप भी इसी तरह निराश हो जाते हैं? पौलुस ने आगे कहा: “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है। मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?” (रोमियों 7:22-24) बाइबल में दर्ज़ ऐसी मिसालों से सीखकर हमें अपना यह इरादा मज़बूत कर लेना चाहिए कि हम संयम का गुण बढ़ाने में कभी हिम्मत नहीं हारेंगे।
संयम बढ़ाना सीखना होगा
3. समझाइए कि संयम दिखाना क्यों आसान नहीं हो सकता।
3 संयम बरतनेवाला इंसान गलत कामों को ‘ना’ कहने के भी काबिल होता है। दूसरा पतरस 1:5-7 में संयम का ज़िक्र कई और गुणों के साथ किया गया है। वे हैं विश्वास, सद्गुण, समझ, धीरज, भक्ति, भाईचारे की प्रीति और प्रेम। इन बढ़िया गुणों में से एक भी हममें पैदाइशी नहीं होता। इन्हें अपने अंदर बढ़ाने की ज़रूरत होती है। और ये गुण ज़िंदगी में अच्छी तरह दिखाने के लिए हममें अटल इरादा और लगन होना ज़रूरी है। तो संयम के बारे में हम क्या कह सकते हैं? क्या यह गुण दिखाना आसान होगा?
4. बहुत-से लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि संयम दिखाना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं है, मगर यह किस बात का सबूत है?
4 आज लाखों लोगों को शायद लगे कि संयम का गुण दिखाना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। वे अपनी मरज़ी के मालिक होते हैं, और जाने-अनजाने में वही करते हैं जो उनका असिद्ध शरीर उनसे करवाता है। वे इस बारे में ज़रा भी नहीं सोचते कि उनके कामों का खुद उन्हें और दूसरों को क्या अंजाम भुगतना पड़ेगा। (यहूदा 10) लोगों में ‘ना’ कहने की ताकत और इच्छा कितनी कम रह गयी है, इसे आज से बढ़कर पहले कभी नहीं देखा गया। यह इस बात का सबूत है कि हम सचमुच “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं, जिनके बारे में पौलुस ने यह भविष्यवाणी की थी: “कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, . . . असंयमी [होंगे]।”—2 तीमुथियुस 3:1-3.
5. यहोवा के साक्षी, संयम दिखाने के बारे में क्यों सीखने की इच्छा रखते हैं, और कौन-सी सलाह आज भी कारगर है?
5 यहोवा के साक्षी बखूबी जानते हैं कि संयमी होना कितनी बड़ी चुनौती है। पौलुस की तरह, उन्हें भी एहसास है कि उनके अंदर हमेशा यह कशमकश चलती रहती है कि परमेश्वर के स्तरों पर चलकर उसे खुश करें, या अपने असिद्ध शरीर का कहा मानकर गलत रास्ते पर जाएँ। इसीलिए उन्होंने एक लंबे फिलिप्पियों 4:8 को हमेशा मन में रखना चाहिए। इस आयत में लिखी परमेश्वर की सलाह, हालाँकि करीब 2,000 साल पहले दी गयी थी, मगर यह आज भी फायदेमंद है। और इस सलाह को मानना उस ज़माने में या सन् 1916 में जितना मुश्किल था, उससे भी कहीं ज़्यादा आज मुश्किल है। फिर भी मसीही, दुनिया की अभिलाषाओं को ‘ना’ कहने के लिए कड़ा संघर्ष करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करके वे अपने सिरजनहार की बात मानने के लिए ‘हाँ’ कहते हैं।
अरसे से यह जानने की कोशिश की है कि इस संघर्ष में जीत कैसे हासिल की जा सकती है। सन् 1916 में, प्रहरीदुर्ग के एक अंक ने समझाया कि “खुद को, अपने विचारों को, अपनी बातचीत और अपने चालचलन को काबू में रखने का सही तरीका” क्या है। उसमें सुझाव दिया गया कि हमें6. संयम का गुण बढ़ाने में अगर हम कभी नाकाम हो जाएँ, तो हमें क्यों निराश नहीं होना चाहिए?
6 गलतियों 5:22, 23 में, संयम को ‘[पवित्र] आत्मा के फलों’ में से एक बताया गया है। अगर हम “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, [और] नम्रता” के साथ-साथ संयम भी दिखाएँगे, तो हमें बहुत फायदा होगा। जैसा पतरस ने कहा, आत्मा के ये फल पैदा करने से हम परमेश्वर की सेवा में “निकम्मे और निष्फल” नहीं होंगे। (2 पतरस 1:8) लेकिन अगर हम ये गुण उतनी जल्दी नहीं बढ़ा पाते या उतनी अच्छी तरह नहीं दिखा पाते जितना कि हम चाहते हैं तो हमें निराश नहीं होना चाहिए, ना ही खुद को दोषी करार देना चाहिए। आपने शायद गौर किया होगा कि स्कूल में कुछ बच्चे जल्दी सीख जाते हैं, तो कुछ देरी से सीखते हैं। या नौकरी में जब कोई नया काम सिखाया जाता है तो कुछ लोग जल्दी सीख जाते हैं जबकि दूसरों को वक्त लगता है। उसी तरह, कुछ लोग मसीही गुणों को अपने व्यवहार में ज़ाहिर करना जल्दी सीख लेते हैं, जबकि दूसरों को वक्त लगता है। इस मामले में अहम बात यह है कि हम परमेश्वर के गुणों को अपने अंदर बढ़ाने की जी-जान से कोशिश करते रहें। इसके लिए ज़रूरी है कि यहोवा अपने वचन और अपनी कलीसिया के ज़रिए हमें जो मदद देता है, उसका हम पूरा-पूरा फायदा उठाएँ। अपने लक्ष्य तक पहुँचने में हम कितनी जल्दी तरक्की करते हैं, इससे ज़्यादा यह बात मायने रखती है कि क्या हम तरक्की करने के लिए लगातार और ज़ोरदार कोशिश कर रहे हैं या नहीं।
7. किस बात से पता चलता है कि संयम का गुण होना बहुत ज़रूरी है?
7 आत्मा के गुणों में संयम सबसे आखिर में दिया गया है, मगर इसकी अहमियत दूसरे गुणों से किसी भी तरह कम नहीं है। सच तो यह है कि संयम बढ़ाना भी उतना ही ज़रूरी है जितने कि दूसरे गुण। हमें याद रखना चाहिए कि अगर हम चौबीसों घंटे खुद पर संयम रखेंगे, तो हम “शरीर के [हर] काम” से दूर रह सकेंगे। फिर भी असिद्ध इंसानों के मन में किसी-न-किसी तरह से “व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन। मूर्त्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म” जैसे “शरीर के काम” करने का झुकाव होता ही है। (गलतियों 5:19, 20) इसलिए हमें ठान लेना होगा कि हम अपने दिल और दिमाग से ऐसी गलत इच्छाओं को जड़ से निकाल फेकेंगे। हमें उनके खिलाफ लगातार जंग लड़नी होगी।
कुछ को दूसरों से बढ़कर संघर्ष करना पड़ता है
8. किन वजहों से कुछ लोगों को संयम का गुण दिखाना खासकर मुश्किल लगता है?
8 कुछ मसीहियों को संयम का गुण दिखाना, दूसरों से ज़्यादा मुश्किल लगता है। ऐसा क्यों? हो सकता है बचपन में माता-पिता ने उनको सही तालीम न दी हो या ज़िंदगी में उन पर जो बीत चुकी है, उसका उन पर असर हो। हममें से जिनको संयम का गुण बढ़ाने और दिखाने में खास मुश्किल नहीं होती, वे खुश हो सकते हैं। लेकिन हमें ऐसे लोगों के साथ बेशक करुणा और समझदारी से पेश आना चाहिए जिन्हें यह गुण दिखाना बहुत मुश्किल लगता है, फिर चाहे उनके संयम न बरतने से हमें कुछ तकलीफें क्यों न सहनी पड़ती हों। आखिर हम भी तो असिद्ध हैं, और इसलिए क्या हमारे पास खुद को बहुत धर्मी समझने की कोई वजह है?—रोमियों 3:23; इफिसियों 4:2.
9. कुछ लोगों में कैसी कमज़ोरियाँ हैं, और इनको जड़ से मिटाना कब मुमकिन होगा?
9 इसे समझने के लिए गौर कीजिए: हम जानते हैं कि हमारे कुछ मसीही भाई-बहनों ने सच्चाई अपनाने से पहले तंबाकू या नशीली दवाओं की लत छोड़ दी थी, मगर आज भी कभी-कभी उनमें ऐसी चीज़ों के लिए ज़बरदस्त तलब उठ सकती है। कुछ लोग खान-पान या शराब के मामले में संयम बरतना मुश्किल पाते हैं। कुछ और लोगों के लिए अपनी ज़बान पर लगाम लगाना मुश्किल होता है, इसलिए वे अकसर अपनी बातचीत में चूक कर बैठते हैं। अगर ऐसी कमज़ोरियों का मुकाबला करना है, तो उन्हें संयम का गुण बढ़ाने के लिए बहुत याकूब 3:2 में इस सच्चाई को कबूल किया गया है: “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है; और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है।” कुछ और लोगों पर जूआ खेलने की इच्छा हावी हो सकती है। और कुछ लोगों के लिए अपने गुस्से पर काबू पाना एक समस्या है। इन सभी कमज़ोरियों पर काबू पाने या इस तरह की दूसरी बुरी आदतें छोड़ने में मसीहियों को काफी समय लग सकता है। हालाँकि इस मामले में हम आज काफी तरक्की कर सकते हैं, मगर गलत इच्छाओं को अपने अंदर से जड़ से मिटा पाना तो तभी मुमकिन होगा जब हम सिद्ध हो जाएँगे। लेकिन तब तक, हमें संयम बरतने की लगातार जी-तोड़ कोशिश करनी चाहिए ताकि पाप करने की आदत हममें दोबारा न पनपने लगे। इस जंग में लड़ते वक्त, आइए हम सभी एक-दूसरे की मदद करते रहें ताकि हम हार न मानें।—प्रेरितों 14:21, 22.
जतन करना होगा। ऐसा क्यों?10. (क) लैंगिकता के मामले में संयम बरतना कुछ लोगों के लिए क्यों खासकर मुश्किल है? (ख) एक भाई ने कौन-सा बड़ा बदलाव किया? (पेज 16 पर बक्स देखिए।)
10 एक और मामला जिसमें कुछ लोगों को संयम दिखाना मुश्किल लगता है, वह है लैंगिकता। यहोवा परमेश्वर ने हमें इस तरह बनाया है कि हममें लैंगिक इच्छाएँ होना स्वाभाविक है। लेकिन कुछ लोग परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक, लैंगिकता को उसकी सही जगह पर रखना बहुत मुश्किल पाते हैं। उनकी यह समस्या शायद इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि उनकी लैंगिक इच्छाएँ, दूसरों से कहीं ज़्यादा प्रबल होती हैं। और सेक्स के पीछे पागल दुनिया जिसमें हम रहते हैं, कई तरीकों से वासना को भड़काती है। ऐसे में उन मसीहियों को बहुत मुश्किल हो सकती है जो कुछ बरसों के लिए ही सही, मगर कुँवारे रहना चाहते हैं ताकि वे शादी-शुदा ज़िंदगी की चिंताओं से दूर रहकर परमेश्वर की सेवा कर सकें। (1 कुरिन्थियों 7:32, 33, 37, 38) लेकिन, बाइबल की इस सलाह को मानकर कि “विवाह करना कामातुर रहने से भला है,” वे शायद शादी करने का फैसला करें जो कि वाकई आदर की बात समझी जाएगी। मगर साथ ही वे यह भी ठान लेते हैं कि अगर शादी करेंगे तो “केवल प्रभु में” जैसी बाइबल में सलाह दी गयी है। (1 कुरिन्थियों 7:9, 39) यहोवा को यह देखकर ज़रूर बहुत खुशी होगी कि उनके दिल में उसके धर्मी सिद्धांतों पर चलने का कितना बढ़िया जज़्बा है। और उनके मसीही भाई-बहनों को उन पर फख्र महसूस होता है कि वे बढ़िया नैतिक आदर्शों को मानते और खराई बनाए रखते हैं।
11. हम ऐसे भाई-बहनों का कैसे हौसला बढ़ा सकते हैं जो शादी करना चाहते हैं, मगर किसी वजह से कर नहीं पाए हैं?
11 लेकिन तब क्या अगर एक मसीही को सही जीवन-साथी नहीं मिलता? ज़रा सोचिए कि एक ऐसा इंसान कितना निराश हो सकता है, जो शादी करना चाहता है मगर नहीं कर पाता! वह शायद देखे कि उसके दोस्त शादी करके काफी हद तक भजन 39:1) हमारे जो भाई-बहन कुँवारे होते हुए भी शुद्ध चाल चलते हैं, वे दिल से तारीफ किए जाने के काबिल हैं। इसलिए उनके मन को ठेस पहुँचानेवाली कोई बात कहने के बजाय, अच्छा होगा कि हम उनका हौसला बढ़ाते रहें। ऐसा करने का एक तरीका है, जब हम कुछ तजुर्बेकार मसीहियों को खाने पर या मसीही संगति के लिए न्यौता देते हैं तो साथ में कुछ कुँवारे भाई-बहनों को भी बुलाएँ।
खुश हैं, जबकि वह अब भी एक सही साथी की तलाश में है। ऐसी हालत में कुछ लोग हस्तमैथुन जैसी अशुद्ध करनेवाली आदत के शिकार हो सकते हैं और यह उनके लिए एक बड़ी समस्या बन सकती है। लेकिन, हममें से कोई भी, जाने-अनजाने में उन मसीही भाई-बहनों के लिए समस्या बनकर उनका दुःख बढ़ाना नहीं चाहेगा जो अपना चरित्र बेदाग रखने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं। अगर हम बिना सोचे-समझे उससे ऐसी बातें कहें जैसे “कब कर रहे हो शादी?” तो हम अनजाने में ही उसे चोट पहुँचा रहे होंगे। भले ही हमने यह साफ मन से क्यों न कहा हो, मगर फिर भी बेहतर होगा कि हम अपनी जीभ को काबू में रखकर संयम बरतें! (शादी में संयम
12. शादी-शुदा लोगों को भी कुछ हद तक संयम बरतने की ज़रूरत क्यों है?
12 इसका मतलब यह नहीं कि जो शादी-शुदा हैं, उन्हें लैंगिकता के मामले में संयम बरतने की ज़रूरत नहीं है। शादी में भी यह गुण दिखाने की ज़रूरत है। मसलन, पति और पत्नी की लैंगिक ज़रूरतें एक-दूसरे से काफी अलग हो सकती हैं। या कभी-कभी एक साथी की हालत ठीक न होने की वजह से शायद उसके लिए लैंगिक संबंध रखना मुश्किल हो या फिर नामुमकिन भी हो। या एक साथी पर पहले जो बीत चुकी है, उसकी वजह से शायद उसे यह आज्ञा मानना बहुत मुश्किल लगे: “पति अपनी पत्नी का हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का।” ऐसे हालात में दूसरे साथी को और भी ज़्यादा संयम बरतने की ज़रूरत होगी। मगर पति और पत्नी, दोनों को पौलुस की यह प्यार भरी सलाह माननी चाहिए, जो उसने शादी-शुदा मसीहियों को दी: “तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, 1 कुरिन्थियों 7:3, 5.
ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे।”—13. जो मसीही, संयम दिखाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनकी खातिर हम क्या कर सकते हैं?
13 अगर पति-पत्नी इस नज़दीकी और बेहद नाज़ुक रिश्ते में सही तरह से संयम बरतना सीखें, तो वे एक-दूसरे के कितने एहसानमंद हो सकते हैं। खुद संयम दिखाने के साथ-साथ, उन्हें ऐसे मसीही भाई-बहनों से हमदर्दी रखनी चाहिए जिन्हें अब भी इस मामले में संयम दिखाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। हमें कभी-भी यहोवा से यह प्रार्थना करना नहीं भूलना चाहिए कि हमारे आध्यात्मिक भाई-बहनों को गहरी समझ और हिम्मत दे और उनका इरादा मज़बूत करे, ताकि वे संयम दिखाने की कोशिश जारी रखें और गलत इच्छाओं पर काबू पाने के लिए कदम उठाएँ।—फिलिप्पियों 4:6, 7.
एक-दूसरे की मदद करते रहें
14. हमें अपने साथी मसीहियों के साथ करुणा और हमदर्दी से क्यों पेश आना चाहिए?
14 कभी-कभी, हमें उन मसीही भाई-बहनों के साथ समझदारी से पेश आना मुश्किल लग सकता है जो किसी ऐसे मामले में संयम दिखाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं जिसमें संयमी होना हमारे लिए आसान है। लेकिन हमें याद रखना है कि हर इंसान दूसरे से अलग होता है। कुछ लोग जज़बाती होते हैं, तो कुछ नहीं। कुछ लोगों के लिए अपनी भावनाओं को काबू में रखना दूसरों से आसान होता है, और उन्हें संयम दिखाने में खास तकलीफ नहीं होती। लेकिन दूसरों के लिए यह एक बड़ी समस्या है। फिर भी यह कभी मत भूलिए कि जो इंसान अपने साथ सख्ती बरतने के लिए संघर्ष करता है, वह बुरा इंसान नहीं हो सकता। हमारे साथी मसीहियों को हमारी हमदर्दी और करुणा की ज़रूरत है। जो मसीही, ज़्यादा-से-ज़्यादा संयम दिखाने के लिए कड़ा प्रयास कर रहे हैं उनके साथ दया से पेश आने से हमें भी खुशी मिलेगी। मत्ती 5:7 में दर्ज़ यीशु के शब्दों में हम इसका सबूत देख सकते हैं।
15. संयम दिखाने के मामले में, भजन 130:3 के शब्दों से हमें क्यों बहुत सुकून मिलता है?
15 अगर कोई मसीही, किसी एक मौके पर संयम दिखाने से चूक जाता है, तो हमें उसके बारे में गलत राय कायम नहीं करनी चाहिए। यह जानकर हमें कितनी तसल्ली मिलती है कि हम जो एकाध बार संयम दिखाने में चूक जाते हैं, यहोवा सिर्फ उसे देखने के बजाय, उन बेहिसाब मौकों को भी याद रखता है जब हमने संयम का गुण दिखाया था, फिर चाहे हमारे मसीही भाई-बहनों ने उन सभी मौकों पर गौर न किया हो। भजन 130:3 के इन शब्दों को मन में रखने से हमें कितना सुकून मिलता है: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा?”
16, 17. (क) संयम दिखाने के मामले में हम गलतियों 6:2, 5 को कैसे लागू कर सकते हैं? (ख) संयम के बारे में हम अगले लेख में किस बात पर चर्चा करेंगे?
16 यहोवा का दिल खुश करने के लिए, हममें से हरेक को संयम का गुण ज़रूर बढ़ाना चाहिए। ऐसा करते वक्त हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि हमारे मसीही भाई हमारी मदद करेंगे। यह सच है कि हरेक को अपनी ज़िम्मेदारियों का बोझ खुद उठाना है, लेकिन हमसे यह भी कहा गया है कि हम एक-दूसरे को अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने में मदद देते रहें। (गलतियों 6:2, 5) अगर हमारे माता या पिता, जीवन-साथी या दोस्त हमें गलत जगहों पर जाने, गलत चीज़ें देखने या गलत काम करने से रोकते हैं, तो हमें दिल से उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। वे हमें रोकने के ज़रिए हमें संयम का गुण दिखाना सिखा रहे हैं, यानी गलत बातों के लिए ‘ना’ कहने और फिर अपने फैसले पर अटल रहने की काबिलीयत बढ़ाने में हमारी मदद कर रहे हैं।
17 बहुत-से मसीही, संयम रखने में शायद वह सब कर रहे हैं, जिसके बारे में हमने इस लेख में चर्चा की है। मगर उन्हें लगता है कि यह गुण दिखाने में उन्हें और भी सुधार करने की ज़रूरत है। वे यह गुण ज़्यादा-से-ज़्यादा दिखाना चाहते हैं, जिस हद तक एक असिद्ध इंसान दिखा सकता है। क्या आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं? तो आप परमेश्वर की आत्मा का यह फल, संयम ज़्यादा-से-ज़्यादा बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं? और ऐसा करने से आप मसीही जीवन में बड़े-बड़े लक्ष्य कैसे हासिल कर सकेंगे? आइए इस बारे में अगले लेख में देखें।
क्या आपको याद है?
संयम का गुण . . .
• मसीहियों को अपने अंदर बढ़ाना क्यों ज़रूरी है?
• बढ़ाना कुछ लोगों के लिए क्यों खासकर मुश्किल है?
• शादी-शुदा ज़िंदगी में क्यों ज़रूरी है?
• बढ़ाने में हम क्यों एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 16 पर बक्स/तसवीर]
उसने ‘ना’ कहना सीखा
जर्मनी में रहनेवाला यहोवा का एक साक्षी, टेक्निकल कम्यूनिकेशन्स क्लर्क की नौकरी करता था। उसका काम था टी.वी. और रेडियो के करीब 30 कार्यक्रमों पर नज़र रखना और यह देखना कि वे ठीक-ठीक चल रहे हैं या नहीं। अगर कोई रुकावट पैदा होती, तो उसे कार्यक्रम पर ध्यान देना था ताकि सही-सही पता कर सके कि समस्या क्या है। वह कहता है: “कार्यक्रम में रुकावटें हमेशा गलत वक्त पर ही पैदा होती थीं, जैसे ठीक उस वक्त जब हिंसा या सेक्स के दृश्य दिखाए जाते थे। ऐसे अश्लील दृश्य मेरे दिमाग से कई दिनों तक, यहाँ तक कि कई हफ्तों तक नहीं निकलते थे, मानो वे मेरे दिमाग पर नक्श हो गए हों।” वह कबूल करता है कि उन दृश्यों का उसकी आध्यात्मिकता पर बुरा असर होने लगा था: “मार-पीट के जो सीन मैं देखता था उनकी वजह से मुझे अपनी मिज़ाज़ को काबू में रखना मुश्किल लगने लगा, इसलिए मैं अपना आपा खो बैठता था। और सेक्स के दृश्य देखने की वजह से मेरे और मेरी पत्नी के बीच तनाव पैदा होने लगा। इस बुरे असर के खिलाफ लड़ने के लिए मुझे हर रोज़ संघर्ष करना पड़ता था। कहीं मैं इस जंग में हार न जाऊँ, इस डर से मैंने एक नयी नौकरी तलाशने का फैसला किया, फिर चाहे उसमें तनख्वाह कम क्यों न हो। शुक्र है कि कुछ ही समय के अंदर मुझे दूसरी नौकरी मिल गयी और इस तरह मेरी ख्वाहिश पूरी हो गयी।”
[पेज 15 पर तसवीरें]
बाइबल के अध्ययन से मिलनेवाला ज्ञान, संयम दिखाने में हमारी मदद करता है